मवेशियों और फसलों की आने वाले 15 दिनों में विशेष ध्यान रखने की जरूरत

मवेशियों और फसलों की आने वाले 15 दिनों में विशेष ध्यान रखने की जरूरत

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नवंबर माह में आगामी 15 दिनों के दौरान कृषकों को अपने खेत में क्या करना चाहिए एवं क्या नहीं इस संबंध में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा सलाह जारी कर दी गई है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने पशुपालकों के लिए भी जरूरी सलाह जारी की है। जैसा कि हम जानते हैं, कि नवंबर महीना चाल हो चुका है। ऐसी स्थिति में प्रसार शिक्षा निदेशालय, चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के वैज्ञानिकों ने कृषकों के लिए नवंबर माह के प्रथम पखवाड़े मतलब कि आगामी 15 दिनों के चलते किए जाने वाले कृषि एवं पशुपालन से जुड़े कार्यों को सुव्यवस्थित ढ़ंग से करने के लिए सलाह जारी कर दी गई है। जिससे किसान इन कामों को करके स्वयं की आय को बढ़ा सकें। बतादें, कि कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से जारी की गई सलाह में फसल उत्पादन, मसर, सब्जी उत्पादन, फसल संरक्षण और पशुधन इत्यादि के विषय में बताया गया है।

गेंहू की रबी फसलों का उत्पादन

भारत के विभिन्न राज्यों में गेहूं रबी मौसम की प्रमुख फसल है। ऐसे में गेहूं की आरंभिक फसल को शीतोष्ण वातावरण की आवश्यकता पड़ती है। यदि वातावरण प्रारंभ में गर्म है, तो फसल की जड़ काफी कम बनती है। साथ ही, इसके रोगग्रसित होने की संभावना भी ज्यादा बढ़ जाती है। साथ ही, निचले एवं मध्यवर्ती इलाकों के कृषक नवंबर माह के प्रथम पखवाड़े में गेहूं की ऐच.पी.डब्ल्यू-249, एच.पी.डब्ल्यू-368, एच.पी.डब्ल्यू-155, एच.पी.डब्ल्यू-236, वी.एल.-907, एच.एस.507, एच.एस.562 व एच.पी. डब्ल्यू-349 किस्मों को अपने खेत में लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त निचले इलाकों के किसान गेहूं की एच.डी. -3086. डी. पी. डब्ल्यू- 621-50-595, व एच.डी.-2687 किस्में लगाएं। किसान को बिजाई के लिए रैक्सिल 1 ग्राम/कि.ग्रा बीज बाविस्टिन या विटावेक्स 2.5 ग्राम/किग्रा. बीज से उपचारित बीज का उपयोग करना चाहिए।

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बतादें, कि गेहूं की बिजाई सितंबर माह के समापन या फिर अक्टूबर माह की शुरुआत में की गई हो। खरपतवारों के पौधे 2-3 पत्तों की अवस्था, बिजाई के 35 से 40 दिनों पश्चात में हो तो इस समय गेहूं में खरपतवार नाशक रसायनों का छिड़काव जरूर करें। आइसोप्रोट्यूरॉन 75 डब्ल्यू.पी. 70 किग्रा दवाई या वेस्टा 16 ग्राम एक कनाल के लिए पर्याप्त होती है। छिड़काव के लिए 30 लीटर पानी प्रति कनाल के अनुरूप इस्तेमाल करें।

पशुओं में बिमारियों को पहचाने

पशुओं में शर्दियों के मौसम में होने वाले रोगों की और प्रबंधन से जुड़े काम को पशुपालक सुनिश्चित करें। अगर देखा जाए तो इस मौसम में फेफड़ों वसन तंत्र और चमड़ी के रोग ज्यादा होते हैं। घातक संक्रामक रोग जैसे पी. पी. आर. इस समय सिरमौर जनपद में सम्भावित भेड़ एवं बकरी पॉक्स, इस समय किन्नौर जनपद में संभावित गलघोंटू रोग, शिमला में खुरपका एवं मुंहपका रोग होते हैं। अगर पशुपालक मवेशियों में बीमारी के किसी भी लक्षण जैसे कि भूख न लगना अथवा कम होना, तीव्र बुखार की हालत में शीघ्र पशु चिकित्सक की सलाह लें। इस वक्त फेशियोला और एम्फीस्टोम नामक फीता कृमियों के संक्रमण को नजरअंदाज ना करें।

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