भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

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गन्ना उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश माना जाता है। फिलहाल भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई प्रजातियां तैयार करली गई हैं। इससे किसान भाइयों को बेहतरीन उत्पादन होने की संभावना रहती है।

भारत गन्ना उत्पादन के संबंध में विश्व में अलग स्थान रखता है। भारत के गन्ने की मांग अन्य देशों में भी होती है। परंतु, गन्ना हो अथवा कोई भी फसल इसकी उच्चतम पैदावार के लिए बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी अत्यंत आवश्यक है। शोध संस्थान फसलों के बीज तैयार करने में जुटे रहते हैं। हमेशा प्रयास रहता है, कि ऐसी फसलों को तैयार किया जाए, जोकि बारिश, गर्मी की मार ज्यादा सहन कर सकें। मीडिया खबरों के मुताबिक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई ऐसी ही किस्में तैयार की गई हैं। यह प्रजातियां बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं को सहने में सक्षम होंगी। साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी काफी सहायक साबित होंगी।

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जानकारी के लिए बतादें कि गन्ने की इस प्रजाति की बुवाई हरियाणा, पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और राजस्थान में की जा सकती है। यहां के मौसम के साथ-साथ मृदा एवं जलवायु भी इस प्रजाति के लिए उपयुक्त है। साथ ही, इसका रंग भी हरा एवं मोटाई थोड़ी कम है। इससे प्रति हेक्टेयर 82.8 टन उपज मिल जाती है। इसके रस में शर्करा 17 फीसद, पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.22 प्रतिशत है।

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इस किस्म की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जा सकती है। इस हम प्रजाति के गन्ना के रंग की बात करें तो हल्का पीले रंग का होता है। यदि उत्पादन की बात की जाए तो एक हेक्टेयर में इसका उत्पादन 95 टन गन्ना हांसिल होगा। इसके अंतर्गत 18.60 प्रतिशत शर्करा, पोल प्रतिशक 14.55 प्रतिशत है। किसान इससे अच्छी उपज हांसिल सकते हैं।

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अनुसंधान संस्थान द्वारा लंबे परिश्रम के उपरांत यह किस्म तैयार की है। इसके रस में 17.65 प्रतिशत शर्करा एवं पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.42 प्रतिशत है। इस किस्म के गन्ने की लंबाई थोड़ी कम और मोटी ज्यादा है। इस गन्ने की बुवाई उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में की जा सकती है। यहां का मौसम इस प्रजाति के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसका रंग भी हल्का पीला होता है। अगर उत्पादन की बात की जाए, तो यह प्रति हेक्टेयर 91.5 टन उत्पादन मिलेगी।यह किस्म लाल सड़न रोग से लड़ने में समर्थ है।

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