वैज्ञानिकों ने निकाली प्याज़ की नयी क़िस्में, ख़रीफ़ और रबी में उगाएँ एक साथ

By: MeriKheti
Published on: 01-Aug-2022

पिछले कुछ महीनों में भारत में प्याज की अच्छी खासी कमी देखी गई थी और इसी वजह से प्याज पिछले २ से ३ सालों में मांग में बढ़ोतरी होने पर मुंह मांगे दामों पर भी बेचा जाता है। भारत में प्याज गुजरात, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे राज्य में उगाया जाता है। प्याज के तीखे पन और कैंसर के खिलाफ पाए जाने वाली गुणों की वजह से भारत के लोगों के द्वारा इसे अपने भोजन में शामिल किया जाता है।

प्याज की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु व मिट्टी

वैसे तो प्याज ठंडी जलवायु वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है, लेकिन भारत में इसकी खेती खरीफ के दौरान भी की जाती है।अलग-अलग जगह के प्याज की कीमत, वहां की जलवायु के प्रभाव की वजह से इनकी लंबाई और तापमान में आए अंतर के कारण होती है। इनकी पकाई के समय में उच्च तापमान और लंबे समय तक धूप रहने वाले दिनों की आवश्यकता होती है। इसे २५ से ३० डिग्री सेंटीग्रेड तापमान वाले जलवायु क्षेत्र में उगाने से, प्रसंस्करण करने में भी काफी मदद मिलती है और लंबे समय तक बिना बिगड़े इस्तेमाल करने योग्य रहते हैं। यदि आपके खेत की जमीन में ऑर्गेनिक खाद की आपूर्ति पहले से ही पर्याप्त है, तो आप भी प्याज की खेती कर सकते हैं। इसे मुख्यतः दोमट और बलुई मिट्टी के में उगाया जाता है। यदि आपके खेत की मिट्टी रेगिस्तानी क्षेत्र में है, तो उसमें क्षारीयता और अम्लता ज्यादा होने की वजह से प्याज के लिए उत्पादक उपयुक्त नहीं समझी जाती है। कुछ सालों से वैज्ञानिकों ने बेहतरीन परीक्षण कर, भारतीय जमीन के लिए प्याज की अलग-अलग किस्में तैयार कर दी है, जिनमें सबसे लोकप्रिय है पूसा रत्नाकर (Pusa Ratnakar) - इस किस्म के पौधे लगभग 30 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ते है और तैयार होने पर इनका आकार बड़ा और गोलाकार होता है। भारतीय बाजारों में ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मार्केट में भी इस किस्म की बहुत ही डिमांड रहती है और केवल एक हेक्टेयर जमीन में ही ३०० से ४०० क्विंटल प्याज पैदा कर सकती है। इसके अलावा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद या इंडियन काउंसिल फॉर एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) ने अर्का बिंदु (Arka Bindu) नाम की एक लाल रंग वाली प्याज की वैरायटी भी तैयार की है, जो कि आकार में बहुत ही छोटे होते हैं और इन्हें लगभग 100 दिनों में ही पका कर तैयार किया जा सकता है। इस किस्म की प्याज की खेती के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है उन्नत किस्म का चुनाव और भूमि की तैयारी। यदि आप प्याज की खेती करना चाहते हैं तो खेत की एक जुताई गर्मी की शुरुआत में ही हल से करनी चाहिए और उसके बाद कल्टीवेटर की मदद से हर जुताई के बाद खेत को समतल बनाना चाहिए, जिससे कि मिट्टी की नमी बरकरार रहे।

प्याज की बुवाई में पौधों के बीच दूरी

प्याज की पौध को लगाते समय इनमें 1 मीटर की दूरी रखनी चाहिए, वैसे तो आजकल प्याज की पौध बाजार में भी आसानी से मिल जाती है परंतु वहां आपको पता नहीं रहता कि यह किस किस्म का प्याज है तो अपने कम जलभराव वाले खेत में आप भी प्याज की पौध बना सकते है। इसके लिए उस जगह पर पहले पर्याप्त मात्रा में ऑर्गेनिक खाद्य कंपोस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए, इसके लिए आप दो से तीन क्यारियां लगाकर पौध बना सकते है। किसान भाई ध्यान रखे कि बीजों को एक पंक्ति में ही लगाना चाहिए, जब क्यारी अलग से तैयार हो जाए तो उन पर सुखी घास के कटे हुए बारीक कणों को फैला देना चाहिए, जिससे की प्याज के बीजों का अंकुरण बहुत ही आसानी और तेजी से हो सके। एक बार आप के पौधे नर्सरी में अंकुरित हो जाए तो उन्हें बहुत ही सीमित मात्रा में पानी देने शुरू कर देना चाहिए, खरीफ मौसम के दौरान आपको प्रति हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 10 से 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है जबकि रबी की फसल के दौरान इसकी मात्रा कम भी की जा सकती है। कृषि विभाग के द्वारा जारी किए गए सॉइल हेल्थ कार्ड के अनुसार ही आपको अपने खेत में खाद और उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहिए, क्योंकि प्याज की पौध को उचित मात्रा में उर्वरक नहीं मिलने पर उनके आकार बहुत ही छोटे हो जाते हैं और स्वाद भी पूरी तरीके से खत्म हो जाता है। प्राथमिक स्तर पर आप गोबर की खाद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं, इसके बाद प्रति हेक्टेयर में 50 किलोग्राम तक फास्फोरस और पोटास के मिश्रण को मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।

प्याज की खेती में खरपतवार नियंत्रण

यदि आप की जमीन में खरपतवार बहुत ही तेजी से उगता है तो इसे रोकने के लिए तीन से चार बार हाथों से ही निराई गुड़ाई कर खरपतवार को कम किया जा सकता है, इसके अलावा ऑक्सीफ्लोरफेन जैसे खरपतवार नाशी का भी सीमित मात्रा में छिड़काव करना प्रभावी साबित होता है।

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प्याज के पौधों की सिंचाई व्यवस्था

यह बात सभी किसान भाइयों को ध्यान रखनी चाहिए कि प्याज की पौध की सही समय पर सिंचाई करना अनिवार्य है, क्योंकि जब तक मानसून है तब तक तो बिना सिंचाई के भी काम चल सकता है लेकिन जब कन्द का निर्माण शुरू हो जाता है, उस समय पानी की कमी होने से कुछ रोग भी हो सकते है, जिनमें पर्पल ब्लीच नाम का रोग आपके प्याज की बिक्री को बहुत ही कम कर देता है। एक बार पककर तैयार हुए प्याज के कंद की खुदाई लगभग 2 से 3 माह में की जा सकती है, जैसे ही प्याज की गांठ अपना पूर्ण स्वरूप धारण कर लेती है तो धीरे-धीरे उसकी पत्तियां सूखने लगती है और इसके बाद 5 से 10 दिन में आपको उसकी सिंचाई को बंद करना होगा और उन्हें खोदकर खेत में ही नमी को सुखाने के लिए धूप में रख देना चाहिए। इसके अलावा, बड़े स्तर पर उत्पादन होने पर तैयार प्याज को फंगस से होने वाले रोगों से बचाने के लिए ठंडी जगह पर भी भंडारण करके रखा जा सकता है।

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प्याज में कीट प्रबंधन

यदि बात करें प्याज में लगने वाले प्रमुख कीट और बीमारियों की तो थ्रिप्स नाम का कीट प्याज की पत्तियों का रस चूस लेता है, जिससे कि प्याज का स्वाद पूरी तरीके से खत्म हो जाता है। इन्हें रोकने के लिए नीम के तेल से बने हुए कीटनाशकों का इस्तेमाल करना चाहिए, इनमें इमिडाक्लोप्रिड एक प्रमुख कीटनाशी है। हमारे किसान भाई प्याज की फसल में लगने वाले एक कीड़े 'प्याज की मक्खी' का नाम तो जरुर जानते होंगे। यह कीड़ा पूरी तरीके से ही पौधे को खत्म करने की क्षमता रखता है, इसलिए इसे रोकने के लिए क्विनालफ़ास के मिश्रण का छिड़काव किया जाता है। आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई, हमारे द्वारा दी गई जानकारी का पूरा फायदा उठा कर रबी और खरीफ, दोनों ही समय की फसलों के साथ प्याज की फसल को भी आसानी से उगाकर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।

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