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पॉलीहाउस

बोनसाई के पेड़ उगा सौमिक दास बने लखपति वातावरण शुद्धि में भी किया योगदान

बोनसाई के पेड़ उगा सौमिक दास बने लखपति वातावरण शुद्धि में भी किया योगदान

सौमिक दास (Saumik Das) ने बोनसाई(Bonsai) एवं पेनजिंग(Penjing) के पेड़ उगाकर वातावरण को प्रदुषण और गर्मी से बचाने की सराहनीय पहल शुरू की है। आज वह ३० लाख तक पौधे उगाकर लाखों की आय कर रहे हैं, साथ ही पेंजिंग और बोंजाई की खेती का ३०० से अधिक लोगों को "ग्रो ग्रीन बोनसाई फार्म" (Grow Green Bonsai Farm) के तहत प्रशिक्षण दे उनकी आय का स्त्रोत बनाया है।

दिल्ली का प्रदुषण चरम सीमा पर रहता है, क्योंकि वहां गाँव की अपेक्षा में पेड़ों की संख्या बेहद कम है। इसलिए दिल्ली में प्रदुषण एवं गर्मी देहात से अधिक होती है, इन सब समस्याओं को देखते हुए सौमिक दास ने अपने ही घर में बोन्साई पेनजिंग (Bonsai Penjing) के हजारों पेड़ उगाकर कीर्तिमान स्थापित किया है। उनके पेड़ों की बिक्री ३५ लाख रुपये तक की सीमा तक पंहुच चुकी है, जिसमे उन्होंने खुद के घर में २००० के करीब बोनसाई और पेंजिंग के पेड़ उगा रखे हैं। बतादें की बोनसाई के वृक्ष तापमान को १० डिग्री तक कम कर देते हैं, एवं वातावरण को शुद्ध रखने में काफी मददगार साबित होते हैं। पेड़ पौधे ऑक्सीजन के मुख्य स्त्रोत होते हैं, जो कार्बन डाई ऑक्साइड को खुद संचय करके हमको प्राणवायु देते हैं, इसलिए जनजीवन को स्वस्थ्य बनाने के लिए वृक्षारोपण अधिक मात्रा में करना एवं पेड़ पौधों का संरक्षण करना बेहद आवश्यक है।



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सौमिक दास को कैसे बोनसाई के पेड़ों को लगाने का विचार आया ?

बोनसाई का पेड़ घरों की शोभा बढ़ाता है, जिसको विदेशों में ज्यादातर लोग अपने घरों के अंदर लगाते हैं। सौमिक दास ने बोनजाई के पेड़ को सर्वप्रथम दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम(Talkatora Indoor Stadium) में एक मैच के दौरान देखा था। बोनजाई के पेड़ ने सौमिक दास को बहुत आकर्षित किया जिससे प्रभावित होकर सौमिक दास ने बोनजाई के पेड़ों को उगाकर तैयार करना शुरू कर दिया। जिसके लिए सौमिक दास ने पेंजिंग विधि की जानकारी विदेश से ली, क्योंकि बोंजाई के पेड़ों का प्रचलन हिंदुस्तान में उपलब्ध नहीं था। बोंजाई के पेड़ का जीवनकाल लगभग ५०० साल तक होता है, साथ ही इसको तैयार करने में काफी समय लगता है। बोंजाई के पेड़ को लगाकर वातावरण शुद्ध एवं ठंडा रख सकते हैं।

बोनजाई के पेड़ की क्या विशेषता है ?

बोनजाई का पेड़ वातावरण को शीतल बनाने और शुद्ध रखने में बेहद सहायक होता है। इसकी शुरुआत जापान से हुई है, जिसकी सुरक्षा पॉलीहाउस के माध्यम से की जाती है। इसके लिए किसी भी अन्य उर्वरक या कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता, लेकिन यह तैयार होने में काफी समय लगाता है। बोनजाई के पेड़ की कीमत ७०० से लेकर ढ़ाई लाख तक होती है। कई देशों में इसको गुडलक ट्री(Good Luck Tree) भी बोलते हैं। बोनजाई का पेड़ न केवल वातावरण को अच्छा बनाता है, बल्कि घरों के सौंदर्यीकरण में भी इसकी अहम भूमिका होती है। लोग अपने घरों को सजाने के लिए भी बोनसाई के पेड़ों को लगाते हैं।

पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

पॉलीहाउस की मदद से हाईटेक कृषि की राह पर चलता भारतीय किसान

अपने जीवन में अपने कभी ना कभी हरित गृह प्रभाव या ग्रीनहाउस प्रभाव (greenhouse effect) के बारे में तो अवश्य सुना होगा, लेकिन इसी हरित ग्रह प्रभाव की मदद से कई भारतीय किसान अब पॉलीघर या पॉलीहाउस (Polyhouse) तकनीक का इस्तेमाल कर हाईटेक फार्मिंग या संरक्षित खेती करने में सफल हो रहे हैं।

क्या होता है पॉलीहाउस ?

पोली-हाउस हरित गृह प्रभाव पर काम करने वाली एक तकनीक होती है, जिसमें विशेष प्रकार की पॉलीथिन का इस्तेमाल फसलों को ढकने के लिए एक आवरण बनाकर किया जाता है। इस पोली हाउस की मदद से किसी भी जगह की कठोर पर्यावरणीय परिस्थितियों को नियंत्रित किया जाता है। कृषि में आई नई तकनीकों के शुरुआती दौर में हरित गृह प्रभाव के लिए लकड़ी के चेंबर बनाकर उसे कांच से ढका जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों से पॉलीथिन और प्लास्टिक के निर्माण में आए सुधारों की वजह से अब प्लास्टिक अथार्त पॉलीथिन (Polyethylene या Polythene) का इस्तेमाल भी हरित गृह प्रभाव के लिए किया जा रहा है। [caption id="attachment_10755" align="alignnone" width="487"]पॉलीहाउस - बाहर से (Polyhouse) पॉलीहाउस - बाहर से[/caption]

पॉलीहाउस में किस फसल का हो सकता है सर्वश्रेष्ठ उत्पादन ?

वैसे तो पॉलीहाउस का इस्तेमाल दैनिक दिनचर्या में इस्तेमाल होने वाली सब्जी के उत्पादन और पौधे की छोटी नर्सरी तैयार करने में किया जाता है। वर्तमान में भारत के उत्तरी पूर्वी और हिमालय पर्वत से जुड़े राज्यों में कुकुम्बर (cucumber) और गुच्ची मशरूम (Gucchi Mushroom) के अलावा कई फसलें इसी विधि से तैयार की जा रही है। इसके अलावा सजावट और स्वास्थ्यवर्धक फायदे वाले कई प्रकार के फूल जैसे कि जरबेरा, गुलाब और ऑर्किड की खेती भी की जा रही है।


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कैसे लगाएं पॉलीहाउस ?

पॉलीहाउस की शुरुआत करने के लिए आपको लगभग 1000 स्क्वायर मीटर की जगह की आवश्यकता होगी। किसान भाई ध्यान रखें कि किसी भी पॉलीहाउस की संरचना बनाने से पहले उस जगह पर पानी की उपलब्धता और मार्केट की दूरी के बारे में पूरी जानकारी अवश्य प्राप्त कर लेवें। [caption id="attachment_3641" align="alignnone" width="750"]पॉलीहाउस निर्माण कार्य पॉलीहाउस निर्माण कार्य[/caption] इसके अलावा पॉलीहाउस को हमेशा समतल धरातल पर ही बनाना चाहिए और पॉलीहाउस का स्थान अपने आसपास के समतल धरातल से थोड़ा ऊपर उठा हुआ होना चाहिए। इसके लिए या तो आप कोई ऐसी जगह निश्चित कर सकते हैं जो ऊपर उठी हुई हो, या फिर अपने खेत की ही समतल जगह पर मिट्टी का जमाव कर स्थान को ऊपर उठा सकते है।

क्या है पॉलीहाउस फार्मिंग के फायदे ?

भारतीय किसानों के लिए मुख्यतः मौसम की मार कई बार उनके खेतों में सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इसी मौसम के बदलते स्वरूप से होने वाले नुकसान से बचने के लिए, कठोर वातावरण वाले जगहों पर कृषि करने वाले किसान भाई, धीरे-धीरे पॉलीहाउस फार्मिंग की तरफ बढ़ रहे हैं। जलवायुवीय बदलाव जैसे की हवा की तेजी और बारिश का कम या ज्यादा होना जैसे नकारात्मक पर्यावरणीय प्रभावों से पोली हाउस की मदद से बचा जा सकता है। पॉलीहाउस का एक और सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इसके इसके अंदर उगाई जाने वाली कोई भी फसल को उसकी आवश्यकता अनुसार तापमान और नमी की मात्रा उपलब्ध करवाई जा सकती है, जिससे उसकी वृद्धि दर तेज हो जाती है और उत्पाद जल्दी तथा अधिक प्राप्त होता है।


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[caption id="attachment_2895" align="alignnone" width="666"]ग्रीनहाउस टेक्नोलॉजी पॉलीघर या पॉलीहाउस -भीतर से (Polyhouse - inside view)[/caption] कृषि वैज्ञानिकों की राय में पोली हाउस में कार्बन डाइऑक्साइड के अधिक सांद्रण की वजह से उत्पाद अधिक तैयार होते हैं और परंपरागत तरीके से की जाने वाली खुली खेती की तुलना में पॉलीहाउस में लगभग 2 गुना तक उत्पाद प्राप्त हो सकते हैं। वर्तमान में पॉलीहाउस में मशीनीकरण के बेहतर इस्तेमाल की वजह से फर्टिलाइजर का छिड़काव और पानी की नियमित सिंचाई स्वचालित रूप से ही हो रही है, इसी वजह से किसान भाइयों की मजदूरी में लगने वाली लागत कम खर्च होती है। हालांकि इन सभी फायदों के अलावा पॉलीहाउस फार्मिंग के कुछ नकारात्मक प्रभाव भी हैं, जैसे कि पॉलीहाउस को बनाना और पूरी तरह सेट अप करना काफी खर्चीला होता है। इसके अलावा पॉलीहाउस विधि से होने वाली कृषि की निरंतर निगरानी रखनी होती है और तापमान या नमी में थोड़े से बदलाव होने की वजह से ही फसल का नुकसान हो सकता है। पॉलीहाउस को चलाने के लिए किसी स्किल्ड सुपरवाइजर की आवश्यकता होती है और किसान भाइयों को कई प्रकार का तकनीकी ज्ञान हासिल करना होता है। खुले पर्यावरण से मिलने वाले कई पोषक तत्व और हवा में उपलब्ध कई सूक्ष्म पोषक तत्व पॉलीहाउस फार्मिंग में पौधे तक नहीं पहुंच पाते हैं, इसीलिए इस विधि में उर्वरक और कीटनाशक का अधिक इस्तेमाल किया जाता है जो कि जैविक खेती की तरफ बढ़ते भारतीय किसानों की सोच के लिए नकारात्मक असर देता है। [embed]https://www.youtube.com/watch?v=KiHbtPNAyUg[/embed]

सामान्यतः पूछे जाने वाले सवाल (FaQs) :

सवाल :- क्या पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए सरकार किसी तरह की कोई सहायता उपलब्ध करवाती है ?

जवाब :- वर्तमान में केंद्र और राज्य सरकार के अलावा कई स्थानीय पंचायती सरकारें भी किसान भाइयों के लिए कई प्रकार की सब्सिडी और तकनीकी ज्ञान के लिए ट्रेनर की सुविधा उपलब्ध करवा रही है। इसके अलावा केंद्र सरकार अपनी हॉर्टिकल्चर ट्रेंनिंग स्कीम के तहत अलग-अलग जगह पर सेंटर खोल कर पॉलीहाउस के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए कोशिश कर रही है।

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सवाल :- क्या किसी भी पॉलीहाउस को बनाने से पहले पूरी प्लानिंग करना आवश्यक है ?

जवाब :- जी हां, किसी भी अन्य व्यवसाय की तरह ही पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए भी पहले से पूरी प्लानिंग बनाएं और इसके लिए किसान भाई एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करें। इस प्रोजेक्ट रिपोर्ट में आप अपने पॉलीहाउस को संचालित करने के लिए काम में आने वाले तकनीकी ज्ञान और वित्तीय सहायता के अलावा बाजार से जुड़ी संबंधित जानकारियों के बारे में लिस्ट तैयार करके ही फार्मिंग की शुरुआत करें।

सवाल :-  क्या पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए किसी प्रकार के लाइसेंस की आवश्यकता होती है ?

जवाब :- वर्तमान में कृषि मंत्रालय की वेबसाइट के अनुसार पॉलीहाउस फार्मिंग के लिए किसी लाइसेंस की जरूरत नहीं है, हालांकि किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि पॉलीहाउस बनाने के दौरान बची हुई पॉलीथिन को खुले में ना फेंके। आशा करते हैं कि हमारे सभी किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा पॉलीहाउस फार्मिंग से जुड़ी यह जानकारी पसंद आई होगी और भविष्य में बदलती जलवायुवीय परिस्थितियों से बचने के लिए आप भी कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन की राह पर चलते हुए पॉलीहाउस फार्मिंग में जरूर हाथ आजमाना चाहेंगे।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि सुझाई इस वैज्ञानिक तकनीक से करें करेले की बेमौसमी खेती

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि सुझाई इस वैज्ञानिक तकनीक से करें करेले की बेमौसमी खेती

करेले की खेती करने वाले किसान भाई यह तो जानते ही हैं कि इसकी फसल का उत्पादन गर्मियों के मौसम में किया जाता है, लेकिन स्वास्थ्य के लिए जागरूक होती जनसंख्या भारतीय बाजार में करेले की मांग को पूरे वर्ष भर बनाए रखती है। 

इसीलिए अब विश्व भर के वैज्ञानिकों के साथ भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने भी पॉली-हाउस तकनीकी की मदद से बिना मौसम के ही फल और सब्जियों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कमर कस ली है। 

करेला (Karela; Bitter Gourd or Bitter Melon) एक व्यावसायिक फसल है जो किसान को बेहतर आय देने के अलावा कई स्वास्थ्यवर्धक फायदे भी उपलब्ध करवाती है। पॉली-हाउस तकनीकी की मदद से अब सर्दियों के मौसम में भी करेले की वैज्ञानिक खेती की जा सकती है। दो आधा और दो क्रॉस सेक्शन के साथ एक पूर्ण करेला (मोमोर्डिका चारेंटिया) 

दो आधा और दो क्रॉस सेक्शन के साथ एक पूर्ण करेला (मोमोर्डिका चारेंटिया)। (Bitter_gourd (Momordica_charantia); Source-Wiki; Author-Salil Kumar Mukherjee)[/caption]

कैसे करें करेले के लिए पॉलीहाउस में भूमि की तैयारी ?

एक बार पॉलीहाउस को सेट-अप करने के बाद उसमें बड़ी और थोड़ी ऊंचाई वाली क्यारियां बनाकर उन्हें पूरी तरीके से समतल कर देना चाहिए। 

जैविक खाद का इस्तेमाल कर इन क्यारियों में डाली गई मिट्टी की उर्वरता को बेहतर बनाया जाना चाहिए, इसके अलावा वर्मी कंपोस्ट खाद को भी इस्तेमाल किया जा सकता है। 

रासायनिक उर्वरकों पर विश्वास रखने वाले किसान भाई फार्मेल्डिहाइड का छिड़काव कर क्यारियों को पुनः पॉलिथीन से ढककर कम से कम 2 सप्ताह तक छोड़ देना चाहिए। 

इस प्रक्रिया की मदद से खेत की मिट्टी में पाए जाने वाले कई सूक्ष्म कीटों को नष्ट किया जा सकता है, इस प्रकार तैयार मिट्टी भविष्य में करेले के बेहतर उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।   

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पॉलीहाउस की जलवायु को कैसे करें निर्धारित ?

किसी भी पॉली-हाउस के अंदर फसल की आवश्यकता अनुसार तापमान को कम या अधिक किया जा सकता है। करेले की खेती में रात के समय तापमान को 15 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में रखना चाहिए, जबकि दिन में इसे 22 से 26 डिग्री सेंटीग्रेड के मध्य रखना चाहिए। 

इसके अलावा किसी भी फसल की बेहतर वृद्धि के लिए आर्द्रता की आवश्यकता होती है, पॉली-हाउस के अंदर आद्रता को कम से कम 30% रखना चाहिए। 

ऊपर बताई गई जानकारी से आर्द्रता या तापमान का स्तर कम होने पर फसल की वृद्धि दर पूरी तरीके से रुक सकती है और फलों का आकार अनियमित होने की संभावनाएं बढ़ जाती है। 

करेले के बीज करेले के बीज 

कैसे करें करेले के बीज की रोपाई और दो पौध के मध्य की दूरी का निर्धारण:

यदि कोई किसान भाई मैदानी क्षेत्र वाले इलाकों में सर्दियों के समय में करेले की फसल का उत्पादन करना चाहता है तो, बीज का रोपण सितंबर महीने के आखिरी सप्ताह या अक्टूबर के शुरुआती दिनों में किया जा सकता है। 

करेले की दो पौध के मध्य कम से कम 50 सेंटीमीटर की दूरी बनाकर रखनी चाहिए और दो अलग-अलग कतारों के 60 से 70 सेंटीमीटर दूरी रखना अनिवार्य है।

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करेले की फसल के बड़ी होने के समय रखें इन बातों का ध्यान :

एक बार बीज के रोपण हो जाने के बाद पौध 15 से 20 दिनों में बड़ी होनी शुरू हो जाती है। करेले की खेती करने वाले किसान भाई जानते होंगे कि फसल के बड़े होने के समय शाखाओं की कटाई-छंटाई करना अनिवार्य होता है। 

शुरुआती दिनों में एक या दो शाखाओं को काट कर हटा दिया जाना चाहिए, इसके अलावा शाखाओं को काटते समय पोषक तत्वों वाली शाखाओं को काटने से बचना चाहिए और केवल पुरानी शाखा को ही काटना चाहिए। 

उसके बाद किसी पौध के मुख्य तने और अलग-अलग शाखाओं को रस्सी की सहायता से उसके निचले हिस्से में बांधकर छत की दिशा में ले जाकर बांध दिया जाता है। 

पौधे के तने और ऊपर के हिस्से को छत से बांधने के लिए किसी कठोर तार का इस्तेमाल करना चाहिए अन्यथा बड़े होने पर पौधे का वजन अधिक होने से रस्सी के टूटने का खतरा बना रहता है। 

पौधे के चारों तरफ रस्सी बांधते समय किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि हाल ही में पल्वित हुए छोटे फूल और तने को नुकसान नहीं पहुंचाए, नहीं तो उत्पादन में भारी कमी देखने को मिल सकती है।  

पॉलीहाउस में कैसे करें सिंचाई का बेहतर प्रबंधन :

आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए वर्तमान युवा किसान पॉलीहाउस में उत्पादन के लिए बून्द-बून्द सिंचाई विधि (Drip irrigation) को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। 

शुरुआत के दिनों में करेले के पौधे को कम पानी की आवश्यकता होती है, इसलिए सीमित मात्रा में ही पानी दिया जाना चाहिए, अधिक पानी देने पर उसमें कई प्रकार के रोग लगने की संभावना होती है। डंपिंग ऑफ (Damping off) रोग भी पानी के अधिक इस्तेमाल से ही होता है। [caption id="attachment_11411" align="alignnone" width="675"]करेले के पौधे में पुष्प व फल (Bitter Gourd-habitus with flowers and fruits; Source Wiki; Author H Zell)

करेले के पौधे में पुष्प व फल    (Bitter Gourd-habitus with flowers and fruits; Source Wiki; Author H Zell)[/caption]

कैसे करें करेले के उत्पादन में उर्वरकों का बेहतर तरीके से प्रबंधन :

शुरुआती दिनों में जैविक खाद का इस्तेमाल करने के बाद मिट्टी की जांच करवा कर कमी पाए जाने वाले पोषक तत्वों का ही उर्वरक के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए। 

यदि मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा पर्याप्त है तो यूरिया और डीएपी खाद का इस्तेमाल ना करें, किसी भी मिट्टी में पहले से उपलब्ध पोषक तत्व को बाहर से उर्वरक के रूप में डालने से उगने वाली फसल की उत्पादकता तो कम होती ही है, साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी काफी नुकसान होता है।

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तैयार हुए करेले के फलों को तोड़ने की विधि :

एक बार बीज बुवाई के बाद लगभग 60 से 70 दिनों में करेला लगना शुरू हो जाता है। पूरी तरह से पक कर तैयार हुए करेले जल्दी ही लाल रंग के हो जाते हैं, इसलिए इन्हें तुरंत तोड़ना आवश्यक होता है। 

फलों को तोड़ने के लिए चाकू या कैंची का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। किसान भाइयों को ध्यान रखना चाहिए कि कभी भी फलों को खींचकर नहीं तोड़ना चाहिए, इससे पौधे का भी नुकसान हो सकता है। 

करेले के फल जब कोमल और हरे रंग के होते हैं तभी तोड़ना अच्छा होता है, नहीं तो इन्हें मंडी में पहुंचाने के दौरान परिवहन में ही यह पककर लाल हो जाते हैं, जो कि पूरी तरह से स्वादहीन हो जाते हैं।

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा सुझाई गई इस पॉलीहाउस तकनीक का इस्तेमाल कर किसान भाई प्रति हज़ार वर्गमीटर पॉलीहाउस में 100 क्विंटल तक करेले की सब्जी का उत्पादन कर सकते हैं आशा करते हैं merikheti.com के द्वारा किसान भाइयों को इस तकनीक के बारे में संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी और आप भी भविष्य में ऊपर दी गई जानकारी का सही फायदा उठाकर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।

जानें सर्दियों में कम खर्च में किस फसल से कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा

जानें सर्दियों में कम खर्च में किस फसल से कमा सकते हैं अच्छा मुनाफा

स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने वाले कृषक सर्वप्रथम खेत की मृदा का की जाँच पड़ताल कराएं। यदि किसान स्ट्रॉबेरी का उपादान करना चाहते हैं, तो खेती की मृदा बलुई दोमट होनी अति आवश्यक है। स्ट्रॉबेरी एक ऐसा फल है, जो कि आकर्षक दिखने के साथ-साथ बेहद स्वादिष्ट भी होता है। स्ट्रॉबेरी का स्वाद हल्का खट्टा एवं मधुर होता है। बाजार में स्ट्रॉबेरी की मांग बारह महीने होती है। इसी कारण से इसका उत्पादन करने वाले किसान हमेशा लाभ कमाते हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिकाँश रबी सीजन के दौरान किया जाता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि इसके बेहतर उत्पादन के लिए जलवायु और तापमान ठंडा होना अति आवश्यक है। स्ट्रॉबेरी का उत्पादन अधिकाँश महाराष्ट्र, जम्मू & कश्मीर, उत्तराखंड एवं हिमाचल प्रदेश में किया जाता है। परन्तु वर्तमान में किसान नवीन तकनीकों का उपयोग कर स्ट्रॉबेरी का उत्पादन विभिन्न राज्यों के अलग-अलग क्षेत्रों में कर रहे हैं। आगे हम इस लेख में बात करेंगे कि कैसे किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करें और लाभ अर्जित करें।

अन्य राज्य किस तरह से कर रहे हैं स्ट्रॉबेरी का उत्पादन

बतादें, कि आधुनिक तकनीक के सहयोग आज के वक्त में कुछ भी आसानी से किया जा सकता है। खेती-किसानी के क्षेत्र में भी इसका उपयोग बहुत तीव्रता से किया जा रहा है। तकनीकों की मदद से ही कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों के कृषक फिलहाल ठंडे राज्यों में उत्पादित होने वाली स्ट्रॉबेरी का उत्पादन कर रहे हैं। बतादें, कि इन राज्यों के किसान स्ट्रॉबरी का उत्पादन करने हेतु पॉलीहाउस तकनीक का उपयोग करते हैं। पॉलीहाउस में उत्पादन करने हेतु सर्व प्रथम मृदा को सूक्ष्म करना अति आवश्यक है एवं उसके उपरांत डेढ़ मीटर चौड़ाई व 3 मीटर लंबाई वाली क्यारियां निर्मित की जाती हैं। इन क्यारियों में ही स्ट्रॉबेरी के पौधे रोपे जाते हैं।


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स्ट्रॉबेरी का एक एकड़ में कितना उत्पादन हो सकता है

स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करने वाले कृषकों को सर्वप्रथम बेहतर मृदा परख होनी आवश्यक है। यदि किसान स्ट्रॉबेरी का उत्पादन करना चाहते हैं, तो उसके लिए भूमि की मृदा का बलुई दोमट होना अत्यंत जरुरी है। साथ ही, किसान यदि 1 एकड़ भूमि में तकरीबन 22000 स्ट्रॉबेरी के पौधे उत्पादित कर सकते हैं। हालाँकि, इन पौधों में जल देने के लिए किसानों को ड्रिप सिंचाई (Drip irrigation) की सहायता लेनी होती है। स्ट्रॉबेरी के पौधे तकरीबन 40 से 50 दिनों के अंतराल में ही फल प्रदान करने लगते हैं।

स्ट्रॉबेरी की अच्छी बाजार मांग का क्या राज है

आपको बतादें कि दो कारणों से स्ट्रॅाबेरी के फल की मांग वर्ष के बारह महीने होती है। इसकी पहली वजह इसकी सुंदरता एवं इसका मीठा स्वाद दूसरी वजह इसमें विघमान बहुत से पोषक तत्व जो सेहत के लिए बहुत लाभकारी साबित होते हैं। यदि बात करें इसमें पाए जाने वाले पोषक तत्वों की तो इसमें विटामिन के, विटामिन सी, विटामिन ए सहित फास्फोरस, पोटेशियम, केल्सियम, मैग्नीशियम एवं फोलिक ऐसिड पाया जाता है। स्ट्रॉबेरी के सेवन से कील मुंहासों को साफ किया जा सकता है एवं यह आंखों के प्रकाश एवं दांतों हेतु भी लाभकारी है।
क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती

क्या होता है कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple), कैसे की जाती है इसकी खेती

कस्टर्ड एप्पल को भारत में शरीफा या सीताफल के नाम से जाना जाता है। यह भारत में मुख्यतः सर्दियों के मौसम में मिलने वाला फल है। लेकिन अगर इसकी उत्पत्ति की बात करें तो प्रारम्भिक तौर पर यह फल अमेरिका और कैरेबियाई देशों में पाया जाता था। जिसके बाद इसका प्रसार अन्य देशों तक हुआ, इसके प्रसार में अंतरराष्ट्रीय व्यापारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple)

भारत में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की खेती बहुतायत में होती है। अगर मुख्य रूप से इसकी खेती की बात करें, तो महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, असम और आंध्रप्रदेश में इसकी खेती होती है। इन राज्यों में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) का सबसे ज्यादा उत्पादन महाराष्ट्र में होता है। महाराष्ट्र में बीड, औरंगाबाद, परभणी, अहमदनगर, जलगाँव, सतारा, नासिक, सोलापुर और भंडारा कस्टर्ड एप्पल के प्रमुख उत्पादक जिले हैं।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) के उपयोग से कौन-कौन से फायदे होते हैं

यह एक ठंडी तासीर वाला मीठा फल होता है, जिसमें कैल्शिम और फाइबर जैसे न्यूट्रिएंट्स की भरपूर मात्रा मौजूद होती है। अगर हेल्थ बेनेफिट की बात करें तो यह फल आर्थराइटिस और कब्ज जैसी परेशानियों से छुटकारा दिलाता है। इसके पेड़ की छाल में मौजूद टैनिन दवाइयां बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके आलवा अगर इसके नुकसान की बात करें तो इसके फलों का सेवन करने से बहुत जल्दी मोटापा बढ़ता है। इसमें शुगर की मात्रा ज्यादा पाई जाती है, जिसके कारण इसका ज्यादा सेवन करने से बचना चाहिए।


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कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की ये किस्में भारतीय बाजार में मौजूद हैं

भारतीय बाजार में कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की ढेर सारी किस्में मौजूद हैं। जो अलग-अलग राज्यों में अगल-अलग जगह पर उगाई जाती हैं। कस्टर्ड एप्पल की मुख्य किस्मों में बाला नगरल, लाल शरीफा, अर्का सहन का नाम आता है। बाला नगरल किस्म के फल हल्के रंग के होते हैं और इसके फल में बीजों की मात्रा ज्यादा होती है। सीजन आने पर इस किस्म के पेड़ से 5 किलो तक कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा लाल शरीफा दूसरी प्रकार की किस्म है, जिसके फल लाल रंग के होते हैं। इस किस्म के हर पेड़ से सालाना 50 फल प्राप्त किये जा सकते हैं। अर्का सहन कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की तीसरी किस्म है, इसे हाइब्रिड किस्म कहा जाता है। इसके फल तीनों किस्मों में सबसे अधिक मीठे होते हैं।

कस्टर्ड एप्पल की खेती करने के लिए उपयुक्त मिट्टी

कस्टर्ड एप्पल की खेती वैसे तो किसी भी मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन पीएच स्तर 7 से 8 बीच वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त बताई जाती है। यह विशेषता खास तौर पर दोमट मिट्टी में पाई जाती है, इसलिए यह मिट्टी कस्टर्ड एप्पल की खेती के लिए अन्य मिट्टियों की अपेक्षा में बेहतर मानी गई है।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) की खेती करने के लिए उपयुक्त जलवायु एवं तापमान

कस्टर्ड एप्पल की खेती हर प्रकार की जलवायु में की जा सकती है, इसकी खेती के लिए कोई विशेष प्रकार की जलवायु की जरुरत नहीं होती है। लेकिन यदि इसकी खेती शुष्क जलवायु में की जाए तो यह पेड़ ज्यादा ग्रोथ दिखाता है। इस पेड़ को गर्म एवं शुष्क जलवायु में आसानी से विकसित किया जा सकता है। यह पेड़ इस तरह की जलवायु में ज्यादा उत्पादन देता है।


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इस तरह से लगाएं कस्टर्ड एप्पल का पेड़

कस्टर्ड एप्पल का पेड़ लगाने के लिए इसके बीज की 2 से 3 इंच गहरे गड्ढे में बुवाई करें। इसके बाद यह पौधा अंकुरित हो जाएगा, जिसके बाद समय-समय पर पौधे को पानी देते रहें और निराई गुड़ाई करते रहें। इसके अलावा इस पौधे को पॉली हाउस में भी तैयार किया जा सकता है। पोलीहाऊस में तैयार करके पौधे को किसी दूसरे स्थान पर स्थानांतरित कर दें। अगर कस्टर्ड एप्पल लगाने के तीसरे तरीके की बात करें, तो यह पौधा ग्राफ्टिंग तकनीक का उपयोग करके भी तैयार किया जा सकता है। इस तकनीक में कलम के द्वारा पौध को तैयार किया जाता है, बाद में इसे कहीं और स्थानांतरित कर सकते हैं।

कस्टर्ड एप्पल (Custard Apple) के पौधों में इतने दिनों के बाद करें सिंचाई

वैसे तो कस्टर्ड एप्पल के पौधों को ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। लेकिन फिर भी इसे समय-समय पर पाती देते रहना चाहिए। इसके पौधों को अंकुरित होने के तुरंत बाद पानी दें। इसके बाद एक साल तक 3-4 दिन में पानी डालते रहें। एक साल बीतने के बाद हर 20 दिनों में पौधे को पानी दें।
उत्तराखंड सरकार राज्य में किसानों को पॉलीहॉउस के लिए 304 करोड़ देकर बागवानी के लिए कर रही प्रोत्साहित

उत्तराखंड सरकार राज्य में किसानों को पॉलीहॉउस के लिए 304 करोड़ देकर बागवानी के लिए कर रही प्रोत्साहित

किसानों की बेहतरीन और उन्नति के लिए केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से निरंतर प्रयास करती हैं। इसकी एक वजह यह भी है, कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। 

यहां की अधिकांश जनसँख्या कृषि पर ही निर्भर रहती है। इसलिए कृषि क्षेत्र पर अधिक ध्यान देना सरकार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है। धामी सरकार प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसर अधिक करने को लेकर चिंतन कर रही है। 

इसके लिए मुख्यमंत्री धामी निरंतर योजनाएं तैयार कर रही है। इसी कड़ी में धामी ने बहुत सारे सार्वजनिक मंचों से भी कई बार यह कहा है, कि हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भी खेती-बागवानी को रोजगार का माध्यम बनाया जाए। अब इसी कड़ी में राज्य सरकार ने पॉलीहाउस को लेकर बड़ा निर्णय लिया गया है।

सरकार ने 304 करोड़ की धनराशि मंजूर की है

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसर उत्पन्न करने की दिशा में धामी सरकार की तरफ से एक बड़ी पहल की गई है। इसके अंतर्गत प्रदेश में पॉलीहाउस के जरिए एक-एक लाख से ज्यादा कृषकों को रोजगार प्रदान करने की योजना है। 

विगत दिवस हुई राज्य कैबिनेट की बैठक में पॉलीहाउस बनाने के लिए धामी सरकार द्वारा 304 करोड़ की योजना को स्वीकृति दे दी है। बतादें, कि धामी सरकार राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार के अवसर अधिक बढ़ाने के संबंध में विचार कर रही है। 

इसके लिए मुख्यमंत्री धामी निरंतर योजना तैयार करने में लगे हुए हैं। धामी जी कई सारे सार्वजनिक मंचों के माध्यम से भी यह ऐलान कर चुके हैं, कि वह हिमाचल की तर्ज पर उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भी खेती-बागवानी को रोजगार का माध्यम बनाया जाए। अब इसी कड़ी में राज्य सरकार की तरफ से पॉलीहाउस को लेकर बड़ा निर्णय लिया गया है।

सरकार 70 प्रतिशत तक अनुदान देगी

उत्तराखंड में भी इसके तहत क्लस्टर आधारित छोटे पॉलीहाउस में बागवानी यानी सब्जी एवं फूलों की खेती की योजना का फैसला लिया गया है। 

नाबार्ड की योजना के तहत क्लस्टर आधारित 100 वर्गमीटर आकार के 17,648 पॉलीहाउस निर्मित करने के लिए 304 करोड़ रुपये राज्य कैबिनेट द्वारा मंजूर किये गये हैं, जिसमें किसान भाइयों को 70 फीसद अनुदान प्रदान किया जायेगा।

इसके तहत प्रदेश के तकरीबन 1 लाख कृषकों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर स्वरोजगार के साधन प्राप्त होने के साथ-साथ उनकी आमदनी में भी इजाफा हो पाएगा। 

जिससे सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। वहीं, पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले पलायन में भी काफी गिरावट आयेगी। साथ ही, सब्जियों की पैदावार में 15 फीसद और फूलों की पैदावार में 25 प्रतिशत तक का इजाफा होगा।

पॉली हाउस तकनीक से खीरे की खेती कर किसान कमा रहा बेहतरीन मुनाफा

पॉली हाउस तकनीक से खीरे की खेती कर किसान कमा रहा बेहतरीन मुनाफा

पॉली हाउस में खीरे का उत्पादन करने पर बारिश, आंधी, लू, धूप और सर्दी का प्रभाव नहीं होता है। आप किसी भी मौसम में पॉली हाउस के भीतर किसी भी फसल का उत्पादन कर सकते हैं। खीरा खाना प्रत्येक व्यक्ति को अच्छा लगता है। साथ ही, खीरा में आयरन, फास्फोरस, विटामिन ए, विटामिन बी1, विटामिन बी6, विटामिन सी,विटामिन डी और पौटेशियम भरपूर मात्रा में विघमान रहता है। नियमित तौर पर खीरे का सेवन करने पर शरीर चुस्त-दुरुस्त रहता है। साथ ही, खीरे में बहुत ज्यादा फाइबर भी पाया जाता है। खीरे से कब्ज की परेशानी से छुटकारा मिलता है। यही कारण है, कि बाजार में खीरे की मांग वर्षों बनी रहती है। अब ऐसी स्थिति में मांग को पूर्ण करने के लिए किसान पॉली हाउस के भीतर खीरे का उत्पादन कर रहे हैं। इससे किसानों को अच्छी-खासी आमदनी हो रही है।

पॉली हाउस फसल को विभिन्न आपदाओं से बचाता है

वास्तव में पॉली हाउस में खीरे की खेती करने पर ताप, धूप, बारिश, आंधी, लू और ठंड का प्रभाव नहीं पड़ता है। आप किसी भी मौसम में पॉली हाउस के भीतर किसी भी फसल की खेती आसानी से कर सकते हैं। इससे उनका उत्पादन भी बढ़ जाता है और किसान भाइयों को मोटा मुनाफा प्राप्त होता है। इसी कड़ी में एक किसान हैं दशरथ सिंह, जिन्होंने पॉली हाउस तकनीक के जरिए खेती शुरू कर लोगों के सामने नजीर पेश की है। दशरथ सिंह अलवर जनपद के इंदरगढ़ के निवासी हैं। वह लंबे वक्त से पॉली हाउस के भीतर खीरे का उत्पादन कर रहे हैं। इससे उनको काफी अच्छी आमदनी भी अर्जित हो रही है। ये भी देखें: नुनहेम्स कंपनी की इम्प्रूव्ड नूरी है मोटल ग्रीन खीरे की किस्म

किसान खीरे की कितनी उपज हांसिल करता है

दशरथ सिंह पूर्व में पारंपरिक विधि से खेती किया करते थे। उनको पॉली हाउस के संदर्भ में कोई जानकारी नहीं थी। एक दिन उनको उद्यान विभाग के संपर्क में आकर उनको पॉली हाउस तकनीक से खेती करने की जानकारी प्राप्त हुई है। इसके पश्चात उन्होंने 4000 वर्ग मीटर के क्षेत्रफल में पॉली हाउस का निर्माण करवाया और उसके अंदर खीरे का उत्पादन चालू कर दिया।

बहुत सारे किसान पॉली हाउस तकनीक से खेती करते हैं

किसान दशरथ सिंह का कहना है, कि पॉली हाउस की स्थापना करने पर उनको 15 लाख रुपये का खर्चा करना पड़ा। हालांकि, सरकार की ओर से उनको 23 लाख 50 हजार का अनुदान भी मिला था। उनको देख कर फिलहाल जनपद में बहुत सारे किसान भाइयों ने पॉली हाउस के भीतर खेती शुरू कर दी है।

लखन यादव ने पॉली हाउस तकनीक को लेकर क्या कहा

साथ ही, दशरथ सिंह के बेटे लखन यादव का कहना है, कि हम पॉली हाउस के भीतर केवल खीरे की ही खेती किया करते हैं। विशेष बात यह है, कि वह पॉली हाउस के भीतर सुपर ग्लो-बीज का उपयोग करते हैं, इससे फसल की उन्नति एवं प्रगति भी शीघ्र होती है। उनका यह भी कहना है, कि उन्हें एक बार की फसल में 60 से 70 टन खीरे की उपज अर्जित हुई थी। वहीं, एक फसल तैयार होने में करीब 4 से 5 माह का समय लगता है। बतादें, कि 60 से 70 टन खीरों का विक्रय कर वे 12 लाख रुपये की आय कर लेते हैं। इसमें से 6 लाख तक का मुनाफा होता है।
सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

सफेद बैंगन की खेती से किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा मिलता है

अगर आप सफेद बैंगन की बिजाई करते हैं, तो इसके तुरंत उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अधिक जल की जरुरत नहीं पड़ती। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि प्रत्येक क्षेत्र में लोग लाभ उठाने वाला कार्य कर रहे हैं। 

उसी प्रकार खेती-किसानी के क्षेत्र में भी वर्तमान में किसान ऐसी फसलों का पैदावार कर रहे हैं। जिन फसलों की बाजार में मांग अधिक हो और जो उन्हें उनके खर्चा की तुलना में अच्छा मुनाफा प्रदान कर सकें। 

सफेद बैंगन भी ऐसी ही एक सब्जी है, जिसमें किसानों को मोटा मुनाफा अर्जित हो रहा है। काले बैंगन की तुलनात्मक इस बैंगन की पैदावार भी अधिक होती है। 

साथ ही, बाजार में इसका भाव भी काफी अधिक मिल पाता है। सबसे मुख्य बात यह है, कि बैंगन की यह प्रजाति प्राकृतिक नहीं है। इसे कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान के माध्यम से विकसित किया है।

बैंगन की खेती कब और कैसे होती है

सामान्यतः सफेद बैंगन की खेती ठण्ड के दिनों में होती है। परंतु, आजकल इसे टेक्नोलॉजी द्वारा गर्मियों में भी उगाया जाता है। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा सफेद बैंगन की दो किस्में- पूसा सफेद बैंगन-1 और पूसा हरा बैंगन-1 को विकसित किया है। 

सफेद बैंगन की यह किस्में परंपरागत बैंगन की फसल की तुलना में अतिशीघ्र पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि इसका उत्पादन करने हेतु सबसे पहले इसके बीजों को ग्रीनहाउस में संरक्षित हॉटबेड़ में दबाकर रखा जाता है। 

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साथ ही, इसके उपरांत इसकी बिजाई से पूर्व बीजों का बीजोपचार करना पड़ता है। ऐसा करने से फसल में बीमारियों की आशंका समाप्त हो जाती है। 

बीजों के अंकुरण तक बीजों को जल एवं खाद के माध्यम से पोषण दिया जाता है और पौधा तैयार होने के उपरांत सफेद बैंगन की बिजाई कर दी जाती है। यदि अत्यधिक पैदावार चाहिए तो सफेद बैंगन की बिजाई सदैव पंक्तियों में ही करनी चाहिए।

सफेद बैंगन की खेती बड़ी सहजता से कर सकते हैं

जानकारी के लिए बतादें कि सफेद बैंगन की रोपाई यदि आप करते हैं, तो इसके शीघ्र उपरांत फसल में सिंचाई का कार्य कर देना चाहिए। इसकी खेती के लिये अत्यधिक जल की आवश्यकता नहीं पड़ती है। 

यही कारण है, कि टपक सिंचाई विधि के माध्यम से इसकी खेती के लिए जल की जरूरत बड़े आराम से पूरी हो सकती है। हालांकि, मृदा में नमी को स्थाई रखने के लिये वक्त-वक्त पर आप सिंचाई करते रहें। 

सफेद बैंगन की पैदावार को बढ़ाने के लिए जैविक खाद अथवा जीवामृत का इस्तेमाल करना अच्छा होता है। जानकारी के लिए बतादें, कि इससे बेहतरीन पैदावार मिलने में बेहद सहयोग मिल जाता है। 

इस फसल को कीड़े एवं रोगों से बचाने के लिये नीम से निर्मित जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल अवश्य करना चाहिए। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बैंगन की फसल 70-90 दिन के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है।

पॉलीहाउस खेती क्या होती है और इसके क्या लाभ होते हैं

पॉलीहाउस खेती क्या होती है और इसके क्या लाभ होते हैं

जैसा कि हम जानते हैं, भारतीय समाज हमेशा से ही खेती पर निर्भर रहा है। हमारे देश की 70 प्रतिशत आबादी कृषि से जुड़ी हुई है। लोग अपनी जलवायु परिस्थितियों के अनुसार अलग-अलग मौसमों में अलग-अलग फसलें उगाते हैं। 

जलवायु परिवर्तन के कारण जलवायु पैटर्न बहुत तेजी से बदल रहा है। भारत एक ऐसा देश है जो अपनी कृषि गतिविधियों के लिए मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर है।

किसानों को जलवायु परिवर्तन से भारी हानि पहुँचती है

जलवायु परिवर्तन की वजह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है, जिससे कुछ तकनीकों को विकसित करने की आवश्यकता होती है। जो किसानों को कृषि गतिविधियों में काफी सहायता करेगी। 

पॉलीहाउस खेती भारतीय समाज हमेशा से कृषि पर निर्भर रहा है। हमारी 70% आबादी पूरी तरह से अपने निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भरती को अधिक लाभदायक, लागत प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल बनाने की दिशा में एक कदम है। आगे इस लेख में, हम पॉलीहाउस खेती के लाभों को देखेंगे।

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पॉलीहाउस कृषि क्षेत्र का एक नवाचार है

वक्त के साथ, खेती को लाभदायक बनाने के लिए खेती के तरीके बदल गए हैं। पॉलीहाउस खेती कृषि का एक नवाचार है, जहां किसान जिम्मेदार कारकों को नियंत्रित करके अनुकूल वातावरण में अपनी कृषि गतिविधियों को जारी रख सकते हैं।

यह ज्ञानवर्धक तरीका किसानों को कई लाभ निकालने में सहायता करता है। आजकल लोग पॉलीहाउस खेती में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। क्योंकि यह ज्यादा लाभदायक है, और पारंपरिक खुली खेती की तुलना में इसके जोखिम बहुत कम हैं। 

साथ ही, यह एक ऐसी विधि है, जिसमें किसान पूरे वर्ष फसल उगाते रह सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने स्तर से पोलीहॉउस खेती के लिए सब्सिड़ी प्रदान कर सकते हैं।

खेती में पॉलीहाउस का इस्तेमाल क्यों किया जाता है

पॉलीहाउस नियंत्रित तापमान में फसल उगाने में बेहद लाभदायक होता है। इसके इस्तेमाल से फसल को नुकसान होने की संभावना कम होती है। 

पॉलीहाउस के अंदर कीट, कीड़ों और बीमारियों के फैलने की संभावना काफी कम होती है, जिससे फसलों को नुकसान से बचाया जा सकता है। इसलिए पॉलीहाउस तकनीक बाधाओं से लड़ने में काफी प्रभावी है।

सरकारी नौकरी को छोड़कर मुकेश पॉलीहाउस के जरिए खीरे की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहा है

सरकारी नौकरी को छोड़कर मुकेश पॉलीहाउस के जरिए खीरे की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहा है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि युवा किसान मुकेश का कहना है, कि नेट हाउस निर्मित करने के लिए सरकार की ओर से अनुदानित धनराशि भी मिलती है। शुरुआत में नेट हाउस स्थापना के लिए उसे 65% की सब्सिडी मिली थी। हालांकि, वर्तमान में हरियाणा सरकार ने अनुदान राशि को घटाकर 50% कर दिया है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि आज भी सरकारी नौकरी के पीछे लोग बिल्कुल पागल हो गए हैं। प्रत्येक माता- पिता की यही चाहत होती है, कि उसकी संतान की सरकारी नौकरी लग जाए, जिससे कि उसकी पूरी जिन्दगी सुरक्षित हो जाए। अब सरकारी नौकरी बेशक निम्न स्तर की ही क्यों न हो। परंतु, आज हम एक ऐसे व्यक्ति के बारे में बात करेंगे, जो कि अच्छी-खासी सरकारी नौकरी को छोड़ अब गांव आकर खेती कर रहा है।

किसान मुकेश कहाँ का रहने वाला है

दरअसल, हम जिस युवा किसान के संबंध में बात करने जा रहे हैं, उसका नाम मुकेश कुमार है। मुकेश हरियाणा के करनाल जनपद का रहने वाला है। पहले वह हरियाणा बोर्ड में सरकारी नौकरी करता था। नौकरी के दौरान मुकेश को प्रति महीने 45 हजार रुपये सैलरी मिलती थी। परंतु, इस सरकारी कार्य में उसका मन नहीं लगा, तो ऐसे में उसने इस नौकरी को लात मार दी। आज वह अपनी पुश्तैनी भूमि पर नेट हाउस विधि से खेती कर रहा है, जिससे उसको काफी अच्छी कमाई हो रही है।

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किसान मुकेश लोगों को रोजगार मुहैय्या करा रहा है

किसान मुकेश अन्य बहुत से किसानो के लिए भी रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रहे हैं। किसान मुकेश का कहना है, कि उसने अपनी भूमि पर चार नेट हॉउस तैयार कर रखे हैं। इनके अंदर किसान मुकेश खीरे की खेती करते हैं। किसान मुकेश के मुताबिक खीरे की मांग गर्मियों में काफी ज्यादा बढ़ जाती है। अब ऐसे में किसान मुकेश लगभग 2 वर्षों से खीरे की खेती कर रहा। बतादें कि इससे किसान मुकेश को काफी अच्छी कमाई हो रही है। यही वजह है, कि वह आहिस्ते-आहिस्ते खीरे की खेती का रकबा और ज्यादा बढ़ाते गए हैं। इसके साथ साथ मुकेश ने अपने आसपास के बहुत से लोगों को रोजगार भी उपलब्ध कराया है।

खीरे की वर्षभर खेती की जा सकती है

मुकेश का कहना है, कि एक नेट हाउस निर्मित करने के लिए ढ़ाई से तीन लाख रुपये की लागत आती है। परंतु, इसके अंदर खेती करने पर आमदनी काफी ज्यादा बढ़ जाती है। युवा किसान का कहना है, कि खीरे की बहुत सारी किस्में हैं, जिसकी नेट हाउस के अंदर सालों भर खेती की जा सकती है।

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ड्रिप विधि से सिंचाई करने पर जल की काफी कम बर्बादी होती है

किसान मुकेश का कहना है, कि उनको खीरे की खेती की सबसे बड़ी खासियत यह लगी है कि इसकी खेती में जल की काफी कम खपत होती है। दरअसल, नेट हॉउस में ड्रिप विधि के माध्यम से फसलों की सिंचाई की जाती है। ड्रिप विधि से सिंचाई करने से जल की बर्बादी बेहद कम होती है। इसके साथ ही पौधों की जड़ो तक पानी पहुँचता है। किसान मुकेश अपने खेत में पैदा किए गए खीरे की सप्लाई दिल्ली एवं गुरुग्राम समेत बहुत सारे शहरों में करता है। वर्तमान में वह 15 रूपए किलो के हिसाब से खीरे बेच रहा है।
इस राज्य में पॉलीहाउस और शेड नेट पर 50% प्रतिशत सब्सिड़ी दी जा रही है

इस राज्य में पॉलीहाउस और शेड नेट पर 50% प्रतिशत सब्सिड़ी दी जा रही है

केंद्र और राज्य सरकार अपने अपने स्तर से कृषकों की आर्थिक स्थिति मजबूत करने के लिए विभिन्न प्रयास करती रहती हैं। खेती किसानी के विकास और किसानों की आमदनी को दोगुना करने के उद्देश्य से सरकार आए दिन नई-नई योजनाओं को जारी करती रहती है। 

अब इसी कड़ी में बिहार सरकार किसानों के लिए एक और नई योजना लेकर आई है। दरअसल, सरकार ने संरक्षित खेती द्वारा बागवानी विकास योजना के अंतर्गत पॉलीहाउस और शेड नेट की व्यवस्था  उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।

सरकार पॉलीहाउस और शेड नेट के माध्यम से खेती करने पर किसानों को अच्छा खासा अनुदान मुहैय्या करा रही है। सरकार के इस निर्णय से किसानों की आमदनी के साथ-साथ उत्पादन में भी इजाफा होगा। 

योजना के अंतर्गत कितना अनुदान दिया जाएगा ?

योजना की जानकारी बिहार कृषि विभाग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर साझा की है। कृषि विभाग की पोस्ट के अनुसार, सरकार संरक्षित खेती द्वारा वार्षिक बागवानी विकास योजना के अंतर्गत पॉलीहाउस और शेड नेट की मदद से खेती करने पर कृषकों को 50 प्रतिशत तक का अनुदान प्रदान कर रही है।

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इसमें किसानों को प्रति वर्ग मीटर की इकाई लगाने के लिए 935 रुपये के खर्च में से 50 फीसद मतलब 467 रुपये दिए जाएंगे तथा शेड नेट के लिए प्रति वर्ग मीटर की इकाई 710 रुपये में से 50% फीसद यानी 355 रुपये दिए जाएंगे। 

पॉलीहाउस और शेड नेट किसानों के लिए कैसे फायदेमंद है ? 

यदि आप भी एक किसान हैं और पॉलीहाउस और शेड नेट तकनीक को अपनाकर खेती करने की सोच रहे हैं, तो इससे आपको बेहद लाभ होने वाला है। दरअसल, खेती की ये तकनीक फसलों को कीटों के हमलों से बचाती है। 

इस तकनीक का इस्तेमाल करने से कीट आक्रमण में 90% प्रतिशत तक की कमी आती है। पॉलीहाउस और शेड नेट तकनीक के जरिए आप वर्षों-वर्ष सुरक्षित तरीके से खेती कर सकते हैं। 

योजना का फायदा लेने के लिए कैसे करें आवेदन ?

योजना का लाभ उठाने के लिए सबसे पहले बागवानी विभाग की आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं। होम पेज पर उद्यान निदेशालय अंतर्गत संचालित योजनाओं का लाभ लेने के लिए Online Portal के ऑप्शन पर क्लिक करें।

वहां संरक्षित खेती द्वारा बागवानी विकास योजना के लिए आवेदन पर क्लिक करें। इसके बाद आपके सामने नए पेज पर कुछ नियम और शर्तें आएंगी। 

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अब इन नियम और शर्तों को ध्यानपूर्वक पढ़कर जानकारी से सहमत वाले ऑप्शन पर क्लिक करें। ऐसा करते ही आपके सामने आवेदन फॉर्म खुल जाएगा। अब मांगी गई सभी आवश्यक जानकारी को ध्यानपूर्वक भरें। 

इसके बाद आवश्यक दस्तावेजों को अपलोड करें। दस्तावेज अपलोड करते ही सबमिट के ऑप्शन पर क्लिक करें। इस प्रकार आप सफलतापूर्वक इस योजना के तहत ऑनलाइन आवेदन हो जाएगा। 

किसान अधिक जानकारी के लिए यहां करें संपर्क

योजना से संबंधित ज्यादा जानकारी के लिए किसान भाई बिहार कृषि विभाग, बागवानी निदेशालय की ऑफिशियल वेबसाइट पर विजिट कर सकते हैं। 

इसके अलावा, स्थानीय जनपद के उद्यान विभाग के सहायक निदेशक से भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है।