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भारत के वनों के प्रकार और वनों से मिलने वाले उत्पाद

भारत के वनों के प्रकार और वनों से मिलने वाले उत्पाद

प्राकृतिक वनस्पतियों में विविधता के मामले में भारत विश्व के कुछ गिनती के देशों में शामिल है। हिमालय की ऊंचाइयों से लेकर पश्चिमी घाट और अंडमान तथा निकोबार दीप समूह पर पाई जाने वाली वनस्पतियां भारत के लोगों को अच्छा वातावरण उपलब्ध करवाने के अलावा कई प्रकार के फायदे पहुंचाती है। भारत में पाए जाने वाले जंगल भी इन्हीं वनस्पतियों की विविधताओं के हिस्से हैं।

क्या होते हैं जंगल/वन (Forest) ?

एक परिपूर्ण और बड़े आक्षेप में बात करें तो मैदानी भागों या हिल (Hill) वाले इलाकों में बड़े क्षेत्र पर, पेड़ों की घनी आबादी को जंगल कहा जाता है। दक्षिण भारत में पाए जाने वाले जंगलों से, उत्तर भारत में मिलने वाले जंगल और पश्चिम भारत के जंगल में अलग तरह की विविधताएं देखी जाती है।

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भारत में पाए जाने वाले जंगलों के प्रकार :

जलवायु एवं अलग प्रकार की वनस्पतियों के आधार पर भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान (Forest Survey of India - FSI) के द्वारा भारतीय वनों को 5 भागों में बांटा गया है :

सामान्यतः भारत के दक्षिणी हिस्से में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन उत्तरी पूर्वी राज्य जैसे असम और अरुणाचल प्रदेश में भी फैले हुए हैं।

इस प्रकार के वनों के विकास के लिए वार्षिक वर्षा स्तर 200 सेंटीमीटर से अधिक होना चाहिए और वार्षिक तापमान लगभग 22 डिग्री सेंटीग्रेड होना चाहिए।

इस प्रकार के वनों में पाए जाने वाले पौधे लंबी उचाई तक बढ़ते हैं और लगभग 60 मीटर तक की ऊंचाई प्राप्त कर सकते हैं।

इन वनों में पाए जाने वाले पेड़ पौधे वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं और इनकी पत्तियां टूटती नहीं है, इसीलिए इन्हें सदाबहार वन कहा जाता है

भारत में पाए जाने वाले सदाबहार वनों में रोजवुड (Rosewood), महोगनी (Mahogany) और ईबोनी (ebony) जैसे पेड़ों को शामिल किया जा सकता है। उत्तरी पूर्वी भारत में पाए जाने वाले चीड़ (Pine) के पेड़ भी सदाबहार वनों की विविधता के ही एक उदाहरण हैं।

भारत के कुल क्षेत्र में इस प्रकार के वनों की संख्या सर्वाधिक है, इन्हें मानसून वन भी कहा जाता है। इस प्रकार के वनों के विकास के लिए वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेंटीमीटर के बीच में होनी चाहिए।

पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के कुछ इलाकों के अलावा उड़ीसा और हिमालय जैसे राज्यों में पाए जाने वाले वनों में, शीशम, महुआ तथा आंवला जैसे पेड़ों को शामिल किया जाता है। पर्णपाती वन उत्तर प्रदेश और बिहार के कुछ क्षेत्रों में भी पाए जाते हैं, जिनमें तेंदू, पलाश तथा अमलतास और बिल्व तथा खैर के पेड़ों को शामिल किया जा सकता है।

इस प्रकार के वनों में पाए जाने वाले पेड़ों की एक और खास बात यह होती है, कि मानसून आने से पहले यह पेड़ अपनी पत्तियों को गिरा देते हैं और जमीन में बचे सीमित पानी के इस्तेमाल से अपने आप को जीवित रखने की कोशिश करते हैं, इसीलिए इन्हें पतझड़ वन भी कहा जाता है।

  • उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन (Tropical Thorn Forest) :

50 सेंटीमीटर से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगने वाले कांटेदार वनों को सामान्यतः वनों की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि इनमें घास और छोटी कंटीली झाड़ियां ज्यादा होती है।

पंजाब, हरियाणा और राजस्थान तथा गुजरात के कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इन वनों को देखा जाता है। बबूल पेड़ और नीम तथा खेजड़ी के पौधे इस श्रेणी में शामिल किए जा सकते हैं।

  • पर्वतीय वन (Montane Forest) :

हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर उगने में सहज होते हैं, इसके अलावा दक्षिण में पश्चिमी घाट और पूर्वी घाट के कुछ इलाकों में भी यह वन पाए जाते हैं।

वनीय विज्ञान के वर्गीकरण के अनुसार इन वनों को टुंड्रा (Tundra) और ताइगा (Taiga) कैटेगरी में बांटा जाता है।

1000 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले यह पर्वतीय जंगल, पश्चिमी बंगाल और उत्तराखंड के अलावा तमिलनाडु और केरल में भी देखने को मिलते हैं।

देवदार (Cedrus Deodara) के पेड़ इस प्रकार के वनों का एक अनूठा उदाहरण है। देवदार के पेड़ केवल भारतीय उपमहाद्वीप में ही देखने को मिलते हैं। देवदार के पेड़ों का इस्तेमाल विनिर्माण कार्यों में किया जाता है।

विंध्या पर्वत और नीलगिरी की पहाड़ियों में उगने वाले पर्वतीय वनों को 'शोला' नाम से जाना जाता है।

  • तटीय एवं दलदली वन (Littoral and Swamp Forest) :

वेटलैंड वाले क्षेत्रों में पाए जाने वाले इस प्रकार के वन उड़ीसा की चिल्का झील (Chilka Lake) और भरतपुर के केवलादेव राष्ट्रीय पार्क के आस पास के क्षेत्रों के अलावा सुंदरवन डेल्टा क्षेत्र और राजस्थान, गुजरात और कच्छ की खाड़ी के आसपास काफी संख्या में पाए जाते हैं।

यदि बात करें इन वनों की विविधता की तो भारत में विश्व के लगभग 7% दलदली वन पाए जाते है, इन्हें मैंग्रोव वन (Mangrove forest) भी कहा जाता है।

वर्तमान समय में भारत में वनों की स्थिति :

भारतीय वन सर्वेक्षण के द्वारा जारी की गयी इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021 (Forest Survey of India - STATE OF FOREST REPORT 2021) के अनुसार, साल 2019 की तुलना में भारतीय वनों की संख्या में 1500 स्क्वायर किलोमीटर की बढ़ोतरी हुई है और वर्तमान में भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 21.67 प्रतिशत क्षेत्र में वन पाए जाते हैं। "इंडिया स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट 2021" से सम्बंधित सरकारी प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) रिलीज़ का दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें मध्य प्रदेश राज्य फॉरेस्ट कवर के मामले में भारत में पहले स्थान पर है। पर्यावरण के लिए एक बेहतर विकल्प उपलब्ध करवाने वाले वन क्षेत्र पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में सहयोग के अलावा किसानों के लिए भी उपयोगी साबित हो सकते है।

अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल (जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स - Genetically Modified Crops)

अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल (जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स - Genetically Modified Crops)

एक समय विश्व व्यापार में होने वाले निर्यात में भारतीय कृषि की भूमिका चीन के बाद में दूसरे स्थान पर हुआ करती थी। हालांकि अभी भी कुछ फसलों के उत्पादन और निर्यात में भारत सर्वश्रेष्ठ स्थान पर है, परंतु अन्य फसलों में उत्पादकता बढ़ाने के लिए पिछले कुछ समय से भारतीय कृषि वैज्ञानिकों और विदेश के कई बड़े कृषि विश्वविद्यालयों की सहायता से आनुवांशिकरूप से संशोधित फसलें तैयार की जा रही है। इस प्रकार तैयार फसलों को 'जेनेटिकली मोडिफाइड क्रॉप्स' या 'जीएम फसल' (Genetically Modified Crops) भी कहा जाता है।

क्या होती है आनुवांशिक रूप से संशोधित फसल (What is Genetically Modified Crops) ?

इन फसलों को एक ऐसे पौधे से तैयार किया जाता है जिसकी जीन में आंशिक रूप से या फिर पूरी तरीके से परिवर्तन कर दिया जाता है। एक सामान्य पौधे की जीन में दूसरी पौधे की जीन को शामिल कर दिया जाता है। मुख्यतः यह कार्य इस प्राथमिक पौधे के कुछ गुणों को बदलने के लिए किया जाता है। इस तकनीक की मदद से पौधे की उत्पादकता को बहुत ही आसानी से बढ़ाया जा सकता है, साथ ही कई कीट और जीवाणुओं के प्रतिरोधक क्षमता भी तैयार की जाती है। अलग-अलग पौधों में होने वाले रोगों के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता का विकास भी जेनेटिकली मोडिफाइड विधि के तहत किया जाता है। 

जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसल तैयार करने की विधियां तथा तकनीक:

वर्तमान में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा अनुवांशिक रूप से संशोधित फ़सल तैयार करने के लिए अलग-अलग विधियों का इस्तेमाल किया जाता है। अमेरिका के खाद्य एवं ड्रग व्यवस्थापक संस्थान यानी
फ़ूड एण्ड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA या USFDA - Food and Drug Administration Organisation) की तरफ से कुछ विधियों के बारे में जानकारियां उपलब्ध करवाई गई है, जो कि निम्न प्रकार है:- 

  • परंपरागत संशोधन विधि (Conventional Modification Method) :-

 इस विधि का इस्तेमाल प्राचीन काल से ही किसानों के द्वारा किया जा रहा है।परंपरागत संशोधित विधि के तहत एक ही पौधे की अलग-अलग ब्रीड को चुना जाता है और दोनों ब्रीड के मध्य पोलिनेशन करवाया जाता है। इस क्रॉस पोलीनेशन (Cross-pollination) से तैयार नई पौध तैयार पहले की तुलना में बेहतरीन उत्पादन करने के अलावा पोषक तत्वों की भी अच्छी गुणवत्ता उपलब्ध करवा सकती है। वर्तमान में किसानों के द्वारा उगाए जाने वाले लगभग सभी प्रकार के अनाज और फल-सब्जियां इसी परंपरागत संशोधित विधि से तैयार की हुई रहती है। 

  • जीन में बदलाव कर संशोधन करना :-

यह विधि डीएनए (DNA) की खोज के बाद शुरू हुई थी। वर्तमान में इस विधि के तहत जेनेटिक इंजीनियरिंग (Genetic Engineering) और जीनोम एडिटिंग (Genome Editing) जैसी दो विधियां आती है। 

  • पहली विधि में किसी एक बैक्टीरिया या वायरस की जीन को पौधे की जीन में सम्मिलित कर दिया जाता है। इस तरह तैयार यह नया पौधा भविष्य में इस वायरस या बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के खिलाफ आसानी से प्रतिरोधी क्षमता तैयार कर सकता है।
  • जिनोम एडिटिंग विधि में किसी पौधे की जीन में से कुछ अनावश्यक जीन्स को हटाया जाता है। कई बार किसी पौधे की एक पूरी जीन के कुछ हिस्से की वजह से बीमारियां जल्दी लग सकती है, इसलिए इस विधि के तहत जीन के उस कमजोर हिस्से को काटकर अलग कर दिया जाता है और बाकी बची हुई जिन को पुनः जोड़ दिया जाता है।

भारत में कौन करता है जीएम फसलों को रेगुलेट (Regulate)?

किसी भी प्रकार की अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल को मार्केट में बेचने और इस्तेमाल करने योग्य बनाने से पहले फसल तैयार करने वाली कम्पनी को सरकार के द्वारा अनुमति की आवश्यकता होती है। वर्तमान में यह अनुमति 'जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमेटी' (Genetic Engineering Appraisal Committee (GEAC)) के द्वारा दी जाती है। यह समिति पर्यावरण मंत्रालय (Ministry of Environment, Forest and Climate Change) के अंतर्गत काम करती है। इस समिति से अनुमति मिल जाने के बाद पर्यावरण मंत्रालय के द्वारा अंतिम परमिशन प्रदान की जाती है  

वर्तमान में भारत में इस्तेमाल होने वाली जेनेटिक मॉडिफाइड फसलें :

पर्यावरण मंत्रालय और जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल समिति की वेबसाइट के अनुसार वर्तमान में भारत में केवल एक ही अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल उगाने की अनुमति दी गई है। 

  • बीटी कॉटन (Bt-Cotton) :

महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात में वर्तमान में इस्तेमाल की जा रही इस फसल की संशोधित किस्म को भारत सरकार के द्वारा 2002 में अनुमति प्रदान की गई थी। जेनेटिक इंजीनियरिंग विधि से तैयार की गई इस फसल में मिट्टी में पाया जाने वाला एक बैक्टीरिया Bacillus Thuringiensis की जीन को इस्तेमाल किया जाता है, जोकि कपास की सामान्य फसल को नुकसान पहुंचाने वाले गुलाबी रंग के कीड़े (Pink Bollworm) के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता तैयार करता है। कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में उत्पादित होने वाले कपास में केवल इसी एक कीड़े की वजह से ही लगभग 30 से 40 प्रतिशत कपास पूरी तरीके से अनुपयोगी हो जाती है। ये भी पढ़ें : पंजाबः पिंक बॉलवर्म, मौसम से नुकसान, विभागीय उदासीनता, फसल विविधीकरण से दूरी Ht-bt-cotton नाम से मार्केट में बेची जाने वाली अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल में इस बैक्टीरिया के अलावा एक और अतिरिक्त जीन इस्तेमाल की जाती है, जो कि कपास के छोटे पौधे को खरपतवार को खत्म करने के लिए इस्तेमाल में आने वाले रासायनिक केमिकल Glyphosphosate से बचाने में मददगार होता है। 

  • बीटी ब्रिंजल (Bt-Brinjal ) :-

बैंगन की फसल में लगने वाले रोगों से बचाने के लिए तैयार की गई यह अनुवांशिक संशोधित फसल को शुरुआत में अप्रेजल समिति के द्वारा अनुमति दे दी गई थी, परंतु बाद में इस प्रकार तैयार फसल को खाने से होने वाले कई रोगों को मध्य नजर रखते हुए इस अनुमति को वापस ले लिया गया था। हाल ही में पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे कई एनजीओ (NGOs) के विरोध के बाद अनुवांशिक रूप से तैयार की गई मशरूम की संशोधित फ़सल के दैनिक इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई है।  

जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों से होने वाले फायदे :

अनुवांशिक रूप से संशोधित की हुई फसलें किसानों की आय को बढ़ाने और खर्चे को कम करने के अलावा कई दूसरे प्रकार के फायदे भी उपलब्ध करवा सकती है, जैसे कि स्वर्णिम चावल (Golden Rice) नाम की एक जेनेटिकली मोडिफाइड फ़सल स्वाद में बेहतरीन होने के अलावा परंपरागत चावल की खेती की तुलना में बहुत ही कम समय में पक कर तैयार हो जाती है।

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इसके अलावा अलग-अलग रोगों के साथ ही खरपतवार को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल में आने वाले रासायनिक उर्वरकों के खिलाफ भी प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर सकती है। इस प्रकार तैयार फसलों में पोषक तत्वों की मात्रा तो अधिक मिलती ही है, साथ ही रासायनिक उर्वरकों का भी कम इस्तेमाल करना पड़ता है, जिससे खेत की मृदा की गुणवत्ता भी बरकरार रहती है। यदि ऐसी फसलों को पशुओं को खिलाया जाए, तो पशुओं की प्रतिरक्षा प्रणाली भी मजबूत होती है और उनकी वृद्धि को भी बढ़ाया जा सकता है, जिससे पशुओं से अधिक मांस, अंडे और दूध प्राप्त किया जा सकता है। यदि बात करें पर्यावरणीय फायदों की, तो यह फसलें मिट्टी की उर्वरता को तो बढ़ाती ही है, साथ ही पानी के काफी कम इस्तेमाल में भी आसानी से बड़ी हो सकती है, इसीलिए रेगिस्तानी और कम बारिश होने वाले क्षेत्रों में इन फसलों का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है। जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों का इस्तेमाल प्राकृतिक खरपतवार नाशक के रूप में भी किया जा सकता है क्योंकि bt-cotton जैसी फ़सल में ऐसे बैक्टीरिया और वायरस की जीन का इस्तेमाल किया जाता है, जो कि पौधे के आसपास उगने वाली खरपतवार को पूरी तरीके से नष्ट कर सकती है। यदि बात करें किसानों के फायदे की तो इन फसलों की कम लागत पर अच्छी पैदावार की जा सकती है, क्योंकि कम सिंचाई और मृदा की कम देखभाल की वजह से खर्चे कम होने से से किसान का मुनाफा बढ़ने के साथ ही बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए भोजन की मांग की की पूर्ति भी सही समय पर की जा सकती है।

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जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों के इस्तेमाल से पहले रखें इन बातों का ध्यान:

अरुणाचल प्रदेश में कुछ किसानों के द्वारा सोयाबीन की अनुवांशिक रूप से संशोधित फसल का गैर कानूनी रूप से इस्तेमाल किया जा रहा था, हालांकि इसके इस्तेमाल से किसानों की आमदनी तो बढ़ी परंतु पूरी जांच पड़ताल ना करने और फसल को तैयार करने वाली कम्पनी के द्वारा भारतीय क्षेत्रों को ध्यान में रखकर संशोधन ना करने की वजह से उस क्षेत्र में पाई जाने वाली तितली की एक प्रजाति पूरी तरीके से खत्म हो चुकी है। ऐसा ही एक और उदाहरण गोल्डन चावल के रूप में भी देखा जा सकता है। भारत में पूरी तरीके से प्रतिबंधित चावल की अनुवांशिक रूप से संशोधित यह फसल महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के कुछ किसानों के द्वारा गैरकानूनी रूप से उत्पादित की जा रही है। केवल आमदनी बढ़ाने और जल्दी पक कर तैयार होने जैसे फायदों को ही ध्यान में रखते हुए इस फसल के द्वारा तैयार चावल के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान पर कंपनी और किसानों के द्वारा कोई ध्यान नहीं दिया गया, जिसकी वजह से इसे खाने वाले लोगों में अंधापन और शरीर में कई दूसरी बीमारियों के अलावा मौत होने जैसी खबरें भी सामने आई है। इसीलिए आशा करते हैं कि हमारे किसान भाई ऊपर बताई गई दो घटनाओं से सीख ले पाएंगे और कभी भी गैरकानूनी रूप से अलग-अलग कंपनी के द्वारा बेचे जाने वाली जेनेटिकली मोडिफाइड फसलों का इस्तेमाल नहीं करेंगे। आशा करते है कि किसान भाइयों को Merikheti.com के द्वारा आनुवांशिक रूप से संशोधन कर प्राप्त की गई फसलों के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में बीटी-कॉटन और सरकार से अनुमति प्राप्त ऐसी फसलों का उत्पादन कर आप भी कम लागत पर अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे।

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने आसियान भारत बैठक में एलान किया है कि पोषक अनाज उत्पादों को प्रोत्साहित करेगा भारत

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने आसियान भारत बैठक में एलान किया है कि पोषक अनाज उत्पादों को प्रोत्साहित करेगा भारत

खेती और वानिकी के संबंध में 7वीं आसियान भारत मंत्रीस्तरीय बैठक (एआईएमएमएएफ;AIMMAF - ASEAN-India Ministerial Meeting held on Agro-Forestry) बुधवार 26-अक्टूबर 2022 को वर्चुअल माध्यम से सम्पन्न हुई। बैठक दौरान लाओ पीडीआर, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, वियतनाम, थाईलैंड, ब्रुनेई दारुस्सलाम, कंबोडिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर के कृषि मंत्रियों की भी मौजूदगी रही। साथ ही, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता की पुनःवृत्ती की, जिसमें भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी में आसियान को केंद्र बिंदु में माना है। इसके साथ ही उन्होंने क्षेत्र में मजबूत और उन्नत विकास सुनिश्चित करने के लिए कृषि विकास के लिए आसियान के साथ गहनता से क्षेत्रीय सहयोग पर ध्यान दिया। [embed]https://twitter.com/nstomar/status/1585234444600102914?[/embed] आसिआना बैठक में, आसियान-भारत सहयोग की मध्यावधि कार्ययोजना (साल 2021-2025) के चलते विभिन्न कार्यक्रम एवं गतिविधियों के कार्यप्रणाली की प्रगति का निरीक्षण किया। बैठक में केंद्रीय मंत्री ने पोषक खाद्य के रूप में मिलेट (पोषक-अनाज; Millets) एवं अंतरराष्ट्रीय पोषक-अनाज वर्ष 2023 (इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (आईवायओएम/IYoM)) के महत्व का वर्णन करते हुए आसियान सदस्य देशों से निवेदन किया है कि वे मिलेट के पैदावार, प्रसंस्करण, उपभोग एवं मूल्य संवर्धन की वृद्धि में भारत के प्रयासों में सहयोगिक भूमिका अदा करें।
इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स (IYoM) 2023 योजना का सरकारी दस्तावेज पढ़ने या पीडीऍफ़ डाउनलोड के लिए, यहां क्लिक करें
साथ ही, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि लोगों के स्वास्थ्य और पोषण के लिए पोषक-अनाज के उत्पादों को भारत प्रोत्साहित करेगा। पोषक-अनाज पौष्टिक, कम संसाधन आवश्यकता वाले एवं ज्यादा वातानुकूलित कृषि-खाद्य प्रणालियों के निर्माण में बेहद सहायक साबित होते हैं। वहीं, बैठक में, आसियान भारत संबंधों की 30वीं वर्षगांठ का भी धूम धाम से स्वागत हुआ। बैठक में, कृषि एवं वानिकी में आसियान-भारत सहयोग की सराहना की गयी।


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आसियान भारत के सहयोग की कटिबद्धता की चर्चा की गयी

बैठक के दौरान में कहा गया है कि आसियान और भारत में सुरक्षित तथा पौष्टिक कृषि उत्पादों का सुगम प्रवाह निर्धारित करके कोविड-19 महामारी के अभूतपूर्व प्रभाव को समाप्त करने के लिए, महामारी के बाद किए जाने वाले रिकवरी उपायों के कार्यान्वयन हेतु आसियान-भारत सहयोग के तहत निरंतर उपाय सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने डिजिटल कृषि, प्रकृति-हितैषी कृषि, खाद्य प्रसंस्करण, वैल्यू चेन, कृषि विपणन खाद्य सुरक्षा, पोषण, जलवायु परिवर्तन अनुकूलन एवं क्षमता निर्माण में आसियान के साथ भारत के सहयोग को बढ़ाने में पूर्ण सहमती जताई है। Source : PIB (Press Information Bureau - Government of India) https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1870992
‘सुपर काऊ’ से फिर फेमस हुआ चीन, इस मामले में छोड़ा दुनिया को पीछे

‘सुपर काऊ’ से फिर फेमस हुआ चीन, इस मामले में छोड़ा दुनिया को पीछे

सुपर काऊ का नामा सुनते ही सभी के जहन में गाय से जुड़ा कोई ना कोई ख्याल जरूर आ रहा हो होगा. तो आपको बता दें कि, आपका यह ख्याल कुछ हद तक सही भी है. लेकिन आप उस जगह तक सोच भी नहीं सकते जिस जगह तक चीन ने कर दिखाया है. क्योंकि इस मामले में चीन ने दुनिया को पीछे छोड़ दिया है. चीनी साइंटिस्ट ने तीन सुपर काऊ का एक अनोखा क्लोन बनाया है, जो सोच से भी ज्यादा दूध देगी. हालांकि चीन ने अपने डेयरी उद्योग को बढ़ाने कजे लिए इस क्लोन को बनाया है. जानकारी के मुताबिक इस क्लोन को नार्थ वेस्ट यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड फॉरेस्ट्री साइंस एंड टेक्नोलॉजी के साइंटिस्टों ने बनाया है. इस क्लोन से लगभग तीन बछिया का जन्म नये साल से पहले निंग्जिया क्षेत्र में हुआ. साइंटिस्टों के मुताबिक यह सभी बछियाँ जब मां बनेंगे तो कम से कम 16 से 18 टन तक दूध देंगे. यानियो यह तीनों बछियाँ सुपर काऊ बनकर अपनी पूरे जीवन में सौ टन दूध देंगे. बताया जा रहा है कि, क्लोन किये गये इन बछियों में से सबसे पहली बछिया 30 दिसंबर को ऑपरेशन के जरिये हुआ था. जिसका वजह आम बछियों की तुलना में ज्यादा था.

आसान नहीं इन्हें पालना

जानकारी के मुताबिक साइंटिस्टों ने ज्यादा दूध देने वाली गायों के कानों की कोशिकाओं की मदद से कुल 120 भ्रूण बनाए. जिसके बाद उन्हें सेरोगेट गायों में रखा गया. हालांकि साइंटिस सुपर काऊ के जन्म को सक्सेस बता रहे हैं. जो चीन में डेयरी उत्पादकों को बढ़ाएंगे ही साथ में मालामाल भी कर देंगे. सुपर काऊ का प्रजनन जल्दी बंद हो जाता है. जिसके बाद उन्हें पलना मुश्किल हो सकता है. ये भी देखें: बिना गाय और भैंस पालें शुरू करें अपना डेयरी सेंटर

सुपर काऊ का बनेगा झुंड

चीन में आधे से ज्यादा डेयरी गायों को विदेश से मंगाया जाता है. ऐसे में विदेशी गायों पर निर्भरता कम करने के लिए सुपर काऊ का क्लोन बनाया गया है. ऐसे में चीन सुपर काऊ का झुंड बनाने की तैयारी कर रहा है, जिसमें एक हजार से ज्यादा सुपर काऊ शामिल होंगी. इतना ही नहीं चीन आने वाले दो से तीन सालों में ऐसा करने में सफल भी हो जाएगा. जानकारी के लिए बता दें कि, अमेरिका समेत कई देशों में ज्यादा दूध के उत्पादन के लिए जानवरों के साथ क्लोन को पैदा करते हैं. लेकिन चीन ने पिछले कुछ सालों में जानवरों के क्लोन में बड़ी उपलब्धी हासिल की है. इससे पहले चीन ने पहला क्लोन आर्कटिक भेड़िया भी बनाया था. चीन में क्लोन जानवरों की वजह से कईदेशों के जानवरों को खतरा हो सकता है, इस बात को भी नहीं नकारा जा सकता.
10 रुपये की फिक्स डिपॉजिट पर मिलेंगे पेड़, किसानों की होगी बंपर कमाई

10 रुपये की फिक्स डिपॉजिट पर मिलेंगे पेड़, किसानों की होगी बंपर कमाई

इन दिनों देश में खेती किसानी को भी मुनाफे वाले व्यवसायों में गिना जाने लगा है, क्योंकि अब देश के किसान आधुनिक तरीकों से खेती करके कम समय में अच्छी खासी कमाई कर रहे हैं। अब किसान पारंपरिक खेती के अलावा पेड़ों की खेती की तरफ भी आकर्षित हो रहे हैं। अगर किसान धैर्य बनाए रखें तो कई ऐसे पेड़ हैं जो समय के साथ किसानों को बंपर मुनाफा प्रदान करते हैं। किसानों की आय बढ़ाने को ध्यान में रखते हुए बिहार राज्य के वन विभाग ने एक नई योजना लॉन्च की है, जिसे 'कृषि वानिकी योजना' कहा जा रहा है। इस योजना के अंतर्गत वन विभाग की तरफ से किसानों को मात्र 10 रुपये की सिक्योरिटी डिपोजिट पर पौधे दिए जा रहे हैं। 3 साल बाद यह सिक्योरिटी डिपोजिट 6 गुना अधिक अनुदान के साथ किसानों को वापस कर दी जाएगी। इस योजना का उद्देश्य खेतों में फसलों के साथ बड़े स्तर पर पेड़ लगाना है, जिसके लिए सरकार लगातार प्रयत्नशील है। ये भी पढ़े: इन 8 योजनाओं से बढ़ेगी किसानों की स्किल, सरकार दे रही है मौका ट्विटर पर जारी 'मुख्यमंत्री कृषि वानिकी योजना' के नोटिफिकेशन में कहा गया है कि इस योजना के अंतर्गत 10 रुपये प्रति पौधा सिक्योरिटी डिपोजिट देकर वन विभाग की नर्सरी से 25 से अधिक पौधे खरीदने होंगे। अगर तीन साल बाद 50 फीसदी पौधे जीवित रहते हैं तो किसान को प्रति पौधा 60 रुपये का अनुदान दिया जाएगा। साथ ही जमा किया गया सिक्योरिटी डिपोजिट भी किसान को वापस कर दिया जाएगा।

इस योजना से ये होंगे लाभ

इस योजना के अंतर्गत पेड़ लगाने से किसानों को अतिरिक्त आय होगी। इसके साथ ही शीशम, अमरूद, गंभीर, आंवला, महोगनी, सागौन, पीपल, जामुन, कचनार, गुलमोहर, आम नीलगिरी, नीम, कदम, बहेड़ा, पलास आदि के पेड़ों की संख्या भी बढ़ेगी। ये पेड़ आगे चलकर पर्यावरण संरक्षण में भी अपना योगदान देंगे।

इस योजना के तहत लाभ उठाने के लिए ऐसे करें आवेदन

इस योजना का लाभ उठाने के लिए बिहार राज्य का निवासी होना आवश्यक है। इसके लिए किसान भाई अपने जिले के कृषि विभाग या वन विभाग के कार्यालय में जाकर आवेदन कर सकते हैं। आवेदन के साथ किसानों को मांगे गए दस्तावजों की फोटो कॉपी लगानी होगी। जिसके बाद अधिकारियों के द्वारा वेरिफिकेशन किया जाएगा। वेरिफिकेशन पूरा होने के बाद पौधे किसानों को दे दिए जाएंगे। साथ ही समय समय पर इन पौधों का निरीक्षण भी किया जाएगा। 3 साल बाद यदि 50 फीसदी पौधे सुरक्षित रहते हैं तो अनुदान और सिक्योरिटी डिपॉजिट की राशि किसान के खाते में जमा कर दी जाएगी। इसके अलावा अधिक जानकारी बिहार के वन विभाग की वेबसाइट  https://forestonline.bihar.gov.in से प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही 0612-2226911 पर फोन के माध्यम से संपर्क कर सकते हैं।