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गुजरात

मुंबई में आज भी टमाटर की कीमतें सातवें आसमान पर हैं

मुंबई में आज भी टमाटर की कीमतें सातवें आसमान पर हैं

मुंबई में जून में, टमाटर की कीमतें 30 रुपये प्रति किलोग्राम के रेगुलर भाव से तकरीबन दोगुनी होकर 13 जून को 50-60 रुपये हो गईं। जून के समापन तक 100 रुपये को पार कर गईं।

मुंबई में टमाटर की कीमतें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कंज्यूमर अफेयर के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में टमाटर के मैक्सीमम प्राइस 200 रुपये से नीचे आ गए थे। साथ ही, बात यदि मुंबई की करें तो विभाग के मुताबिक टमाटर का खुदरा भाव 160 रुपये प्रति किलोग्राम था। परंतु, वीकेंड पर टमाटर के रिटेल भावों के सारे रिकॉर्ड तोड़ने की खबरें सामने आ रही हैं। जी हां, मुंबई में टमाटर का भाव 200 रुपये प्रति को पार करते हुए रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। कीमतों में बढ़ोतरी के कारण खरीदारों की संख्या पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिला है। यह अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ चुकी है, जिससे ग्राहकों की कमी की वजह से कुछ इलाकों में टमाटर की दुकानें बंद करनी पड़ीं।

टमाटर की कीमत विगत सात हफ्ते में 7 गुना तक बढ़ी है

मूसलाधार बारिश की वजह से कुल फसल की कमी एवं बड़े पैमाने पर क्षतिग्रस्त होने की वजह से बहुत सारी जरूरी सब्जियों के अतिरिक्त टमाटर की कीमतें जून से लगातार बढ़ रही हैं। जून में, टमाटर की कीमतें 30 रुपये प्रति किलोग्राम के रेगुलर भाव से तकरीबन दोगुनी होकर 13 जून को 50-60 रुपये हो गईं। जून के आखिर तक 100 रुपये को पार कर गईं। 3 जुलाई को इसने 160 रुपये का एक नया रिकॉर्ड बनाया, सब्जी विक्रेताओं ने भविष्यवाणी की कि रसोई का प्रमुख उत्पाद अंतिम जुलाई तक 200 रुपये की बाधा को तोड़ देगा, जो उसने किया है। ये भी पढ़े: सरकार अब 70 रुपए किलो बेचेगी टमाटर

किस वजह से टमाटर के भाव में आया उछाल

टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एपीएमसी वाशी के डायरेक्टर शंकर पिंगले के मुताबिक टमाटर का थोक भाव 80 रुपये से 100 रुपये प्रति किलोग्राम के मध्य है। हालांकि, लोनावाला लैंडस्लाइड की घटना, उसके पश्चात ट्रैफिक जाम और डायवर्जन की वजह से वाशी मार्केट में प्रॉपर सप्लाई की बाधा खड़ी हो गई, जिसकी वजह से कीमतों में अस्थायी तौर पर इजाफा देखने को मिला। डायरेक्टर ने बताया है, कि कुछ दिनों के भीतर सप्लाई पुनः आरंभ हो जाएगी।

जानें भारत में कहाँ कहाँ टमाटर 200 से ऊपर है

बतादें, कि वाशी के एक और व्यापारी सचिन शितोले ने यह खुलासा किया है, कि टमाटर 110 से 120 रुपये प्रति किलोग्राम पर विक्रय किया जा रहा है। दादर बाजार में रोहित केसरवानी नाम के एक सब्जी विक्रेता ने कहा है, कि वहां थोक भाव 160 से 180 रुपये प्रति किलो है। अचंभित करने वाली बात यह है, कि उस मुख्य दिन पर वाशी बाजार में अच्छी गुणवत्ता वाले टमाटर मौजूद नहीं थे। माटुंगा, फोर बंगलोज, अंधेरी, मलाड, परेल, घाटकोपर, भायखला, खार मार्केट, पाली मार्केट, बांद्रा और दादर मार्केट में विभिन्न विक्रेताओं ने टमाटर की कीमतें 200 रुपये प्रति किलोग्राम तक बताईं। लेकिन, कुछ लोग 180 रुपये किलो बेच रहे थे।

बहुत सारे विक्रेताओं ने बंद की अपनी दुकान

रविवार को ग्राहकों की कमी के चलते फोर बंगलों और अंधेरी स्टेशन इलाके में टमाटर की दोनों दुकानें बिल्कुल बंद रहीं। टमाटर विक्रेताओं का कहना है, कि जब टमाटर की कीमतें गिरेंगी तब ही वो दुकान खोलेंगे। वैसे कुछ विक्रेताओं ने यह कहा है, कि त्योहारी सीजन जैसे कि रक्षाबंधन अथवा फिर जन्माष्टमी के दौरान दुकान खोलेंगे। बाकी और भी बहुत सारे दूसरे सब्जी दुकानदारों ने अपने भंडार को कम करने अथवा इसे प्रति दिन मात्र 3 किलोग्राम तक सीमित करने जैसे कदम उठाए गए हैं। विक्रेताओं में से एक ने हताशा व्यक्त की क्योंकि ज्यादातर ग्राहक सिर्फ और सिर्फ कीमतों के बारे में पूछ रहे हैं और बिना कुछ खरीदे वापिस लौट रहे हैं।

गुजरात में गोबर-धन से मिलेगी क्लीन एनर्जी, एनडीडीबी और सुजुकी ने मिलाया हाथ

गुजरात में गोबर-धन से मिलेगी क्लीन एनर्जी, एनडीडीबी और सुजुकी ने मिलाया हाथ

आम तौर पर खेती करने वाले लोग कृषि क्षेत्र में गाय के गोबर का उपयोग करते हुए नजर आते हैं, क्योंकि गाय के गोबर से बने हुए खाद में मौजूद पोषक तत्व फसल के उपज को बढ़ाव देते हैं। मानव सभ्यता के जन्म से ही गाय के गोबर का उपयोग प्राकृतिक खाद के रूप में किया जाता रहा है। व्यापक पैमाने पर अब गाय के गोबर से जैविक खाद बनाई जा रही है, दूसरी तरफ देश का प्रमुख राज्य गुजरात गाय के गोबर से स्वच्छ ऊर्जा और जैविक खाद को बढ़ावा देने के लिए जबरदस्त रणनीति तैयार कर रहा हैं। बीते दिनों नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड यानी एनडीडीबी (राष्‍ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (NDDB - National Dairy Development Board)) और जापानी कार निर्माता कंपनी सुजुकी (Suzuki) ने साथ मिलकर दो बायोगैस संयंत्र (Biogas plant) बनाने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया है।

गुजरात में दो बायोगैस प्लांट लगाने की तैयारी

इस वर्ष सुजुकी का भारत में 40 साल पूरे होने पर पिछले दिनों गुजरात में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस आयोजन में गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल भी मौजूद थे। इस कार्यक्रम में एनडीडीबी और सुजुकी के बीच दो बायोगैस प्लांट बनाने को लेकर एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया। गुजरात पहले से ही रीन्यूएबल और क्लीन एनर्जी (Renewable and Clean Energy) उत्पादन के क्षेत्र में अग्रणी रहा है।


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राज्य में सौर ऊर्जा विकल्पों पर भी काफी काम किया गया है| अब, गोबर गैस प्लांट यानी बायो गैस उत्पादन के जरिये एक बार फिर गुजरात पूरे देश के लिए एक मिसाल बन कर सामने उभरेगा। गौरतलब है की देश में जितनी बड़ी संख्या में दुधारू पशुओं की संख्या है और आम लोग भी जितनी बड़ी संख्या में पशुपालन के कार्य से जुड़े हुए हैं, उसे देखते हुए अगर गोबर गैस प्लांट के विकल्प पर इसी संजीदगी से हर राज्य विचार करे, तो देश रीन्यूएबल एवं क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की क्षमता रखता है।

कई राज्यों ने शुरू कर दिया है पशुपालकों से गोबर खरीदने का काम

बीते दिनों छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने भी यह घोषणा की थी कि राज्य सरकार पशुपालकों से गाय का गोबर खरीदेगी। सरकार इस योजना का विस्तार अब अनेक शहरों में भी कर रही हैं क्योकि गाय का गोबर एक सस्ता और आसानी से उपलब्ध जैव संसाधन है। गाय के गोबर में मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने की प्राकृतिक क्षमता होती है। वास्तव में छतीसगढ़ की सरकार राज्य में लगभग 500 से अधिक बॉयोगैस प्लांट स्थापित करने की योजना पर पहल कर रही हैं।
गुजरात सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक सहायता के लिए ६३० करोड़ रुपये जारी करने की घोषणा

गुजरात सरकार द्वारा किसानों को आर्थिक सहायता के लिए ६३० करोड़ रुपये जारी करने की घोषणा

गुजरात राज्य सरकार द्वारा आर्थिक सहायता के रूप में ६३० करोड़ रुपये प्रदान करने की घोषणा की गई है। प्रदेश सरकार के इस ऐलान से लगभग 8 लाख से ज्यादा किसानों को निश्चित रूप से लाभ होगा। गुजरे दिनों में मूसलाधार बारिश के चलते राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र समेत गुजरात में भी किसानों की बेहद फसल बर्बाद हुई है। अत्यधिक बारिश के चलते किसानों की हजारों एकड़ फसल चौपट हो चुकी है, जिसके कारण किसान आर्थिक संकट से बचने के लिए सरकार से आर्थिक सहायता की मांग कर रहे हैं। इसी के मध्य यह भी खबर है, कि गुजरात सरकार ने शुक्रवार को २०२२ खरीफ सीजन के समय प्रचंड बरसात की वजह से फसल में हुई हानि की भरपाई के लिए आर्थिक सहायक पैकेज का ऐलान किया है। खबरों के हिसाब से, गुजरात सरकार ने सहायता पैकेज के रूप में ६३० करोड़ रुपये जारी करने की घोषणा की है। सरकार की इस घोषणा से लगभग ८ लाख से ज्यादा किसानों को जमीनी तौर पर लाभ होगा। सरकार द्वारा जारी एक बयान के मुताबिक १४ जनपदों के किसानों के खेत खलियान में अत्यधिक जलभराव के चलते फसलों को काफी हानि हुई है। जिसके अंतर्गत तापी, सूरत, कच्छ, मोरबी, पोरबंदर, आणंद छोटा उदयपुर, नर्मदा, पंचमहल, नवसारी, वलसाड, डांग एवं जूनागढ़ जिले के 2554 गांवों के किसान सम्मिलित थे।


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आर्थिक सहायता पैकेज से कितने हेक्टेयर फसल नुकसान की भरपाई हो पायेगी

राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (एसडीआरएफ) एवं राज्य के बजट से यह आर्थिक सहायता पैकेज लगभग ९.१२ लाख हेक्टेयर नुकसान ग्रस्त कृषि भूमि को लाभन्वित करेगा। मदद पैकेज में उन किसानों को सम्मिलित किया जाएगा, जिन्हें अपने खेतों में ३३ फीसदी से ज्यादा हानि हुई है। विशेष बात यह है कि किसानों को ६,८०० रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से मुआवजा मिलेगा। हालांकि, सहायता अधिकतम दो हेक्टेयर तक सीमित होने के साथ ही, केला उगाने वाले किसानों के लिए यह मदद अधिकतम दो हेक्टेयर के लिए अनुमानित ३०००० रुपये प्रति हेक्टेयर है।

बिहार राज्य सरकार द्वारा पहले चरण में ही ५०० करोड़ रुपये जनपदों के लिए भेजे जा चुके हैं।

साथ ही यह भी बता दें कि, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने धनतेरस के दिन प्रदेश के सूखाग्रस्त किसानों को खुशनुमा तोहफा दिया था। बिहार राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की थी, कि छठ पूजा से पूर्व इस साल सूखे के संकट से जूझ रहे प्रत्येक किसान परिवारों के बैंक खाते में ३५०० रुपये की सहायक धनराशि भेज दी जाएगी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बोला था, कि पहले चरण में ५०० करोड़ रुपये जनपदों को जारी किये जा चुके हैं। हालाँकि, बिहार राज्य की राजधानी पटना में एक कार्यक्रम के चलते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रिमोट के द्वारा राशि जारी की। साथ ही, उन्होंने कहा कि यह दिवाली समस्त प्रदेशवासियों के लिए समृद्धि एवं खुशहाली प्रदान करे, भगवान से यही प्रार्थना करता हूँ।
क्या आपके राज्य के दिहाड़ी मजदूर का हाल भी गुजरात और मध्य प्रदेश जैसा तो नहीं

क्या आपके राज्य के दिहाड़ी मजदूर का हाल भी गुजरात और मध्य प्रदेश जैसा तो नहीं

अगर आंकड़ों की बात की जाए तो देश में हर 12 मिनट में एक दिहाड़ी मजदूर आत्महत्या कर लेता है, अब सोचने की बात यह है कि ऐसा क्यों है ?? हाल ही में जारी किए गए आरबीआई के आंकड़ों की तरफ देखा जाए तो आरबीआई ने हर राज्य के अनुसार दिहाड़ी मजदूरों की राष्ट्रीय औसत आय बताई है। जहां पर केरल में दिहाड़ी मजदूरों को जहां लगभग ₹730 मिले वहीं पर कुछ राज्य जैसे कि मध्यप्रदेश और गुजरात के आंकड़े बहुत ज्यादा चौंका देने वाले हैं। गुजरात में जहां दिहाड़ी मजदूरों की आय ₹220 के लगभग है, वहीं पर मध्यप्रदेश में तो हालात और भी खराब हैं। मध्य प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में दिहाड़ी मजदूरों की आय लगभग ₹217 के करीब है। ऐसे में अगर आंकड़ों को देखा जाए तो गुजरात में अगर एक दिहाड़ी मजदूर महीने में लगभग 25 दिन काम करता है। तो उसकी आमदनी लगभग 5500 ₹ होती हैं, जो तीन-चार लोगों के परिवार को पालने के लिए काफी नहीं है।

कितना है अलग अलग दिहाड़ी मजदूरों की आमदनी का आंकड़ा

अगर बागवानी कंस्ट्रक्शन और गैर कृषि से जुड़े हुए मजदूरों की आमदनी के बारे में बात की जाए तो वहां भी केरल राज्य सबसे आगे है। गुजरात और मध्य प्रदेश सबसे नीचे पाए गए हैं। अगर उदाहरण के लिए देखा जाए तो 2020-21 के आंकड़ों के अनुसार जहां केरल में कंस्ट्रक्शन वर्कर्स को लगभग ₹840 के करीब दिया जाता है, वही गुजरात और मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा ₹237 के करीब है। औसतन आधार पर देखा जाए तो केरल के मुकाबले यह लगभग 4 गुना कम है। यही हाल बागवानी और गैर कृषि से जुड़े हुए मजदूरों का भी है, इन दोनों क्षेत्रों में भी केरल सबसे आगे है एवं गुजरात और मध्य प्रदेश सबसे निचले स्तर पर आते हैं और आमदनी का अंतर लगभग 2 गुना कम है।


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मनरेगा में मिलने वाली दिहाड़ी

मजदूरों के लिए खास तौर पर बनाई गई योजना मनरेगा के तहत सरकार की तरफ से किसानों को साल में 120 दिन के लिए काम देना अनिवार्य है। अगर यहां पर मजदूरों की दिहाड़ी की बात की जाए तो हरियाणा में यह सबसे ज्यादा है। हरियाणा में लगभग 1 दिन काम करने के लिए मजदूरों को ₹331 दिए जाते हैं। यहां पर लिस्ट में इससे नीचे गोवा है, जहां पर यह आमदनी ₹315 है और उसके बाद 311 रुपए के साथ केरल तीसरे नंबर पर बना हुआ है।


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कम मजदूरी है चिंता का विषय

इन सबके अलावा काम में आ रही कमी लोगों की चिंता का विषय बनती जा रही है। माना जा रहा है, कि मनरेगा के तहत भी नौकरियों की मांग कम होती जा रही है, और उन्हें काम मिलने की संभावनाएं ना के बराबर हो गई हैं। ऐसे में जरूरी है, कि सरकार कुछ ऐसे कदम उठाए, जिसमें एक दिहाड़ी मजदूर भी मेहनत कर अच्छी तरह से अपने परिवार का पेट पाल पाए। राज्य सरकारों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उनके राज्य में दिहाड़ी मजदूरों की आमदनी का क्या स्तर चल रहा है, जिससे वह समय आने पर इस पर सही तरह का एक्शन ले सकें।
गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ एस रमन ने फर्टिगेशन सॉफ्टवेयर तैयार किया

गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ एस रमन ने फर्टिगेशन सॉफ्टवेयर तैयार किया

गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर डॉ. एस रमन जल की खपत कम करने के लिए फर्टिगेशन सॉफ्टवेयर विकसित किया है। इसकी सहायता से 50% प्रतिशत तक सिंचाई हेतु उपयोग किए जाने वाले पानी की बचत की जा सकती है। गुजरात कृषि विश्वविद्यालय के एक पूर्व प्रोफेसर द्वारा एक ऐसा सॉफ्टवेयर विकसित किया गया है। इसकी सहायता से फसलों के लिए उत्पन्न होने वाली पानी और ऊर्जा की जरुरत को 50% प्रतिशत तक कम किया जा सकता है। बतादें, कि तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने डॉ. एस रमन के सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करके सूक्ष्म एवं ड्रिप सिंचाई पर शोध किया है। इसके जरिए सिंचाई करने से फसल का अच्छी तरह से विकास हुआ है। क्योंकि जल की समान रूप से आपूर्ति हुई एवं पौधों को ज्यादा पानी नहीं दिया गया था। केले की फसल में सिंचाई की दर 50% प्रतिशत कम हुई है। रमन ने माइक्रो इरिगेशन शेड्यूलिंग एवं फर्टिगेशन हेतु सॉफ्टवेयर निर्मित करने का दावा किया है। सॉफ्टवेयर विकास के अलग-अलग चरणों में फसल के पानी की जरूरतों का अंदाजा लगाने हेतु एक जलवायु तकनीक का इस्तेमाल करता है। ये भी पढ़े: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान कि सुझाई इस वैज्ञानिक तकनीक से करें करेले की बेमौसमी खेती यह साफ्टवेयर जिला स्तर के मौसम से जुड़े आंकड़ों के आधार पर फसल में जल की आवश्यकताओं की गणना करता है। यह जल की जरूरतों का मूल्यांकन करते वक्त फसल ज्यामिति की भी जांच करता है। यह रिक्ति और मिट्टी के प्रकार पर आधारित सूक्ष्म सिंचाई की प्रक्रिया को भी बताता है। उन्होंने बताया है, कि इस साफ्टवेयर को एक क्षेत्र में हांसिल होने वाली प्रभावी बारिश के आधार पर एक विशिष्ट दिन के लिए जल की जरुरत का विश्लेषण कर सकता है। वहीं, इसको नियमित रूप से अपडेट भी कर सकते है। फर्टिगेशन सॉफ्टवेयर राज्य कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि और बागवानी जैसे विभागों द्वारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है। इसके अंतर्गत मृदा एवं फसल के प्रगति के चरण के आधार पर उर्वरक के इस्तेमाल करने के प्रावधान हैं। बतादें, कि इस प्रक्रिया में पोटेशियम, नाइट्रोजन और फास्फोरस के इस्तेमाल के पैटर्न पर भी विचार विमर्श किया जा रहा है। यह अतिरिक्त उर्वरक अनुप्रयोगों की जरूरतों से बचकर किसान भाइयों के धन को बचा सकता है। उन्होंने बताया है, कि यह सरकार को जल में घुलनशील उर्वरक के आयात की मात्रा में गिरावट करने में भी सहायता करेगा। केंद्र व राज्य सरकारें भी अत्यधिक जल की खपत को लेकर चिंतित हैं। बिहार समेत कई अन्य राज्यों में भी भूजल स्तर में गिरावट देखने को मिली है। भूजल स्तर को संतुलित करने के लिए सरकारें अपने अपने स्तर से हर संभव प्रयास करती हैं। ड्रिप सिंचाई के लिए सरकार किसानों को ड्रिप सिंचाई हेतु उपयोग होने वाले उपकरणों पर अनुदान प्रदान करती हैं।