Ad

भेड़

भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

अगर आप भी भेड़, बकरी, सुअर या मुर्गी पालन से जुड़े काम में इच्छुक हैं और इनसे जुड़ा व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो आप भी इस योजना का लाभ ले सकते हैं। इसके अंतर्गत आपको 50% की सब्सिडी दी जाती है। 

हमारे देश में काफी लोग अभी भी पालतू पशुओं को पालते हैं जो उनकी जीविका का प्रमुख स्रोत है। देश में एसे ही पशुपालकों को बढ़ावा देने के साथ साथ उन्हें उचित रोजगार देने की व्यवस्था इस योजना में की गई है। 

केंद्र सरकार ने इस मिशन को नेशनल लाइवस्टॉक मिशन (National Livestock Mission) नाम से शुरु किया है।

इस मिशन के तहत अपना फार्म शुरु करने वाले किसानों को पशुपालन विभाग की तरफ से 50% सब्सिडी का प्रावधान है। 

उत्तराखंड लाइवस्टॉक डेवलपमेंट बोर्ड के अपर प्रबंधक डॉ विशाल शर्मा इस योजना के बारे में अपनी राय देते हुए कहते हैं, "ये छोटे पशुओं जैसे कि भेड़, बकरी और सुअर के लिए के लिए योजना है, इसमें कोई भी पशुपालक अपना कारोबार शुरू करना चाहता हो तो वो इसका लाभ ले सकता है।" 

इस योजना में अगर कोई पशुपालक भेड़ या बकरी पालने का इच्छुक है तो उसे 500 मादा बकरी के साथ ही 25 नर भी पालने होगें। 

अगर कोई भी व्यक्ति इस योजना का लाभ उठाना चाहता है तो वह भारत सरकार की वेबसाइट https://nlm.udyamimitra.in/ पर जाकर इसमें आवेदन कर सकता है।

ये भी पढ़े: कम पैसे में उगायें हरा चारा, बढ़ेगा दूध, बनेगा कमाई का सहारा

इस योजना में आगे डॉ. विशाल बताते हैं, "अगर आप इसके लिए फॉर्म भरते हैं और किसी बैंक की डिटेल सबमिट करते हैं तो उस बैंक अकाउंट में मिलने वाली कुल राशि की आधी राशि होनी चाहिए, 

जैसे कि अगर आपका प्रोजेक्ट 20 लाख का है तो आपके खाते में 10 लाख रुपए होने चाहिए, अगर आपके खाते में आधी राशि नहीं है तो इसके लिए आप बैंक से लोन भी ले सकते हैं।" 

लोन मिलने के बाद आपको आवेदन करते समय इसकी डिटेल भी सबमिट करनी होगी और अगर किसी कारणवश आपको लोन नहीं मिलता तो इसकी जानकारी आपको ऑनलाइन आवेदन करते समय देनी होगी। 

आपका फॉर्म ऑनलाइन सबमिशन के बाद उत्तराखंड के देहरादून मुख्यालय पर वरिष्ठ अधिकारी उसकी जांच करते हैं कि आपके द्वारा दिए गए सभी आंकड़े सही हैं। 

अगर आपके द्वारा दिए गए आंकड़े सही हैं तो उसे प्रिंसिपल सहमति दी जाएगी। इसके बाद आपके दस्तावेज बैंक के पास पुनः जांच के लिए जाएंगे, जिसे बैंक वेरीफाई करेगा की आपके द्वारा दी गई जानकारी सही है या नहीं। 

ये भी पढ़े: कोरोना मरीजों पर कितना कारगर होगा बकरी का दूध 

इसके बाद आगे डॉ. शर्मा आगे कहते हैं, "वहां बैंक सब चेक करने के बाद आपका आवेदन एक बार फिर हमारे पास आ जाएगा, जो समिति के पास आएगा, 

वहां से सबमिट होने के बाद पशुपालन व डेयरी मंत्रालय, फिर भारत सरकार के पास जाएगा, इसके बाद आपके आवेदन में जिस बैंक की डिटेल भरी है वो बैंक सीधे लाभार्थी के खाते में 50% राशि भेज देगा।

कृषि में गाय, भेड़, बकरी, चींटी, केंचुआ, पक्षी, पेड़ों का महत्व

कृषि में गाय, भेड़, बकरी, चींटी, केंचुआ, पक्षी, पेड़ों का महत्व

भारतीय कृषि इतिहास में प्रकृति प्रदत्त जीव जंतुओं के खेती किसानी में उपयोग लेने संबंधी तमाम प्रमाण मौजूद हैं। बिसरा दिए गए ये वे प्रमाण हैं जिनको पुनः उपयोग में लाकर, किसान मित्र खेती की उर्वरता के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य रक्षा मिशन में, देश-दुनिया के साथ हाथ बंटा सकते हैं।

कृषक करते हैं भेड़ के झुंड का इंतजार खाद के बदले किसान करते हैं भुगतान प्रकृतिक ड्रोन ऐसे करते हैं प्रकृति की मदद

भारत के धर्म शास्त्र एवं पुराण में योनिज और आयोनिज जैसे दो वर्गों में विभाजित 84 लाख योनियों का उल्लेख किया गया है। इन समस्त जीव योनियों के प्रति भारत में सम्मान का भाव रखने की सीख बचपन से दी जाती है। कुल 84 लाख योनियों से जनित जीवों के जीवन चक्र में बगैर खलल डाले, सहज प्राकृतिक चक्र के मुताबिक जीवन उपभोग की सामग्री जुटाने की कृषि विधियां भी भारत में बखूबी पल्लवित हुईं। गायों की सेवा कर बछड़ा, दूध, दही, मक्खन, छाछ और धरती के सर्वोत्कृष्ट खाद्य पदार्थ घी की उत्पत्ति के अलावा सर्प (सांप) नियंत्रण तक की मान्य विधियां भारत के गौरवमयी इतिहास का हिस्सा रही हैं। चींटी को दाना देने से लेकर कौओं तक को भोजन समर्पित करने की परंपरा भी भारतीय जीवन दर्शन की बड़ी उपलब्धि है। भारतीय कृषि इतिहास में प्रकृति प्रदत्त जीव जंतुओं के खेती किसानी में उपयोग लेने संबंधी तमाम प्रमाण मौजूद हैं। बिसरा दिए गए ये वे प्रमाण हैं जिनको पुनः उपयोग में लाकर, किसान मित्र खेती की उर्वरता के साथ-साथ मानव स्वास्थ्य रक्षा मिशन में देश-दुनिया के साथ हाथ बंटा सकते हैं।

ये भी पढ़ें: जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

आधुनिक कृषि के दुष्परिणाम

दुष्परिणामों को आधुनिक कृषि में उपयोग में लाए जा रहे खेती किसानी के तरीकों से बखूबी समझा जा सकता है। निश्चित ही ट्रैक्टर, रसायन, उपचारित बीजों जैसे आधुनिक कृषि तरीकों से किसान को कम समय में बंपर पैदावार के साथ ज्यादा कमाई हासिल हो रही हो, लेकिन उसके उतनी तेज गति से दुष्परिणाम भी हो रहे हैं। आधुनिक कृषि तरीकों को अपनाने के कारण खेत की उपजाऊ क्षमता के साथ ही, पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। मानव स्वास्थ्य से जुड़े अध्ययनों में रसायन प्रयुक्त उपज उत्पाद के सेवन से मानव की औसत आयु के साथ ही उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ रही है। ऐसे में आधुनिक कृषि के मुकाबले परंपरागत कृषि में अपनाए जाने वाले प्राकृतिक तरीकों को अपनाकर मानव और प्रकृति स्वास्थ्य संबंधी संतुलन को बरकरार रखा जा सकता है। ट्रेक्टर से खेत की जुताई आसान जरूर है, लेकिन इससे खेत में मौजूद प्राकृतिक जीव जंतुओं के आवास (बिल, बामी आदि) के खराब होने का खतरा रहता है। कृषि में कैसे मददगार हैं जीव-जंतु आधुनिक ड्रोन तकनीक का खेती में भले ही नया मशीनी प्रयोग देख मानव आश्चर्यचकित हो, लेकिन तोतों, कौओं, गौरैया आदि के जरिये प्रकृति बगैर किसी तरह का प्रदूषण फैलाए अपना विस्तार करती रही है। बगैर डीजल, पेट्रोल बिजली के संचालित होने वाले पक्षी प्राकृतिक रूप से बीजारोपण आदि में प्रकृति का सहयोग प्रदान करते हैं। कीट प्रबंधन में भी पक्षी एवं अन्य जीव प्रकृति चक्र का अहम हिस्सा एवं सहयोगी कारक हैं।

ये भी पढ़ें: अब होगी ड्रोन से राजस्थान में खेती, किसानों को सरकार की ओर से मिलेगी 4 लाख की सब्सिडी

कृषि में पशुओं का महत्व

प्राकृतिक कृषि पद्धति में पशुओं का अहम स्थान है। बैल आधारित जुताई खेतों के स्वास्थ्य के लिए अच्छी मानी गई है। ट्रैक्टर के बजाए हल से खेत जोतने पर खेत की मिट्टी की गहराई में मौजूद उर्वरा शक्ति नष्ट नहीं होती। ट्रैक्टर के मुकाबले पशु धुआं नहीं छोड़ते, पेट्रोल-डीजल नहीं पीते ऐसे में पर्यावरण संतुलन बनाने में भी मददगार साबित होते हैं। उल्टे इनके गोबर से खेत की उपजाऊ शक्ति में ही वृद्धि होती है।

भेड़-बकरी से कृषि में लाभ

भेड़-बकरी की इन विशेषताओं को जानकर अनभिज्ञ किसान भी मालवा, राजस्थान के किसानों की तरह इन पशुओं को पालने वाले पालकों और पशुओं का काफिला गुजरने का बेसब्री से इंतजार करने लगेंगे। मध्य प्रदेश में मालवा अंचल के किसान उनके खेतों के आसपास से गुजरने वाले भेड़, बकरी के समूहों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दरअसल, राजस्थान के भेड़ (गाटर), बकरी, ऊंट आदि मवेशियों को पालने वालों का समूह प्रतिवर्ष अपने मवेशियों को चराने के लिए मध्य प्रदेश के पहाड़ी इलाकों से होकर गुजरता है। मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के किसान यायावर जीवन जीने वाले इन पशु पालकों से उनके मवेशियों के झुंड को खेत में रोकने का अनुरोध करते हैं। इतना ही नहीं खेत के मालिक किसान, पशुपालकों को अनाज, कपड़े एवं रुपए तक पशुओं को खेत में ठहराने के ऐवज में प्रदान करते हैं।

भेड़ की लेंड़ी की शक्ति

आधुनिक किसानी में परंपरागत खेती का सम्मिश्रण कर जैविक, या फिर हर्बल पदार्थों एवं घोलों को खेत की मिट्टी में मिलाने की सलाह दी जाती है, हालांकि यह विधि भारत के लिए नई नहीं है। अनुभवी किसान भेड़ों के झुंड को इसलिए अपने खेतों में ठहरवाते हैं ताकि भेड़, बकरियों की लेंड़ियां खेत की मिट्टी में मिल जाएं। जंगली पत्ती, वनस्पति चारा खाने वाली भेड़-बकरियों की लेंड़ी में भूमि की उर्वरा शक्ति में वृद्धि करने की अपार क्षमता होती है। ऐसे में बगैर किसी कृत्रिम तरीके से तैयार खाद के मुकाबले प्राकृतिक तरीके से ही खेत में भेड़-बकरी जनित जैविक खाद का सम्मिश्रण भी हो जाता है। शाजापुर जिले के खामखेड़ा ग्राम निवासी पवन कुमार बताते हैं कि, वे अपने दादा-परदादा के समय से खेतों में भेड़-बकरियों के झुंड को ठहरवाते देख रहे हैं। इससे खेत की उत्पादन क्षमता में प्राकृतिक तरीके से काफी वृद्धि होती है। यह हमारे लिए एक परंपरा बन चुकी है क्योंकि भेड़ पालक प्रति वर्ष हमारे इलाके से गुजरते हैं तो हमारे या आसपास के किसानों के खेतों पर अपना डेरा जमाते हैं।

जैविक खाद

मिट्टी की उर्वरा शक्ति में चींटी, केंचुआ के अलावा अन्य दृश्य-अदृस्य सूक्षम जीवों की जरूरत एवं महत्व को जानकर अब अधिकतर किसान जैविक खाद के उपयोग को अपना रहे हैं। छोटे समझ में आने वाले चींटी और केंचुआ खेती के स्वास्थ्य के लिए खासे मददगार हैं। इनकी मदद से भूमि का भुरभुरापन कायम रहता है वहीं कीट रक्षा प्रबंधन में भी ये किसान का प्राकृतिक रूप से हाथ बंटाते हैं।

ये भी पढ़ें: एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

पेड़ों का महत्व

खेत का दायरा बढ़ाने के लिए आज के कृषक खेत के उन फलदार पेड़ों को काटने में भी गुरेज नहीं करते, जिन्हें उनके दूरदर्शी पूर्वजों ने बतौर विरासत सौंपा था। मौसम में इन पेड़ों से जहां फल के रूप में आय सुनिश्चित रहती है, वहीं फल, पत्ती, छाल, लकड़ी आदि से भी अतिरिक्त आय किसान को होती रहती है। अमरूद, आम, बेर, बांस, करौंदा, बेल, कैंथा, जामुन आदि के पेड़ों को खेत की मेढ़ के आसपास करीने से लगाकर किसान अपनी अतिरिक्त आय सुनिश्चित कर सकता है। इन पेड़ों पर पक्षियों का बसेरा होने से कीट-पतिंगों के नियोजन में भी किसान को मदद मिलती है। या यूं कहें कि पक्षियों के निवास के कारण कीट-पतिंगे खेत के पास कम ही फटकते हैं।

आधुनिक तरीकों का समावेश

प्राकृतिक कृषि पद्धिति में आधुनिक तरीकों का सम्मिश्रण कर किसान खेती को कम लागत वाला भरपूर मुनाफे का धंधा बना सकते हैं। उदाहरण के तौर पर सख्त भूमि, अनाज की ढुलाई आदि कृषि कार्य में ट्रैक्टर आदि की मदद ली जा सकती है। क्यारी एवं टपक सिंचन विधि में आधुनिक तरीकों का उपयोग कर उसे और लाभदायक बनाया जा सकता है। रासायनिक पदार्थों की जगह गौपालन, भेड़-बकरी पालन कर जैविक खाद का खेत पर ही उत्पादन कर प्राकृतिक चक्र बरकरार रखा जा सकता है।

ये भी पढ़ें: भेड़, बकरी, सुअर और मुर्गी पालन के लिए मिलेगी 50% सब्सिडी, जानिए पूरी जानकारी

कृषि में संगीत का सहारा

कृषि में म्यूजिक का भी तड़का लगाते देखा जा रहा है। देश-विदेश के कई किसानों ने खेतों में समय आधारित राग-रागनियों की ध्वनि पैदा कर उपज पैदावार में वृद्धि के दावे किए हैं। आवाज की रिकॉर्डिंग आधारित उपकरणों एवं लाउड स्पीकर से कुत्तों या जिन जानवरों से फसल को नुकसान पहुंचाने वाले मवेशी डरते हैं की आवाज निकालकर खेतों की जानवरों से सुरक्षा की जा सकती है।

भेड़ों का पालन करने से पहले इनकी नस्लों के बारे में जरूर जानें

भेड़ों का पालन करने से पहले इनकी नस्लों के बारे में जरूर जानें

भेड़ों का पालन मुख्य रूप से ऊन उत्पादन के लिए किया जाता है। भेड़ ऊन उत्पादन का सबसे अच्छा स्त्रोत है। आज हम आपको भेड़ों की कुछ नस्ल जैसे कि गद्दी, मारवाड़ी, मांड्या, नेल्लोर और दक्कनी भेड़ के संबंध में जानकारी देंगे। किसान भेड़ पालन अपने मोटे मुनाफे के साथ-साथ अपनी दैनिक आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए करते हैं। परंतु, भेड़ पालन करने से पूर्व आपको अच्छी तरह इनकी नस्लों की जानकारी होनी जरूरी होती है। भेड़ों में भी बहुत सारी नस्लें ऐसी होती हैं, जो ज्यादा कीमत की ऊन की पैदावार करने के साथ ही दूध उत्पादन के लिए पाली जाती हैं।

इन नस्लों की भेड़ों के बारे में जानें

गद्दी नस्ल की भेड़

इस नस्ल की भेंड़ आकार में छोटी होती हैं। ये जम्मू के बहुत सारे क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इस नस्ल को पालने की प्रमुख वजह ऊन है। इस नस्ल के नर भेड़ के सींग होते हैं और मादा सींग रहित होती हैं। इस नस्ल का ऊन काफी चमकदार होता है। बतादें, कि प्रति भेड़ से औसतन 1.15 किलोग्राम वार्षिक उत्पादन किया जा सकता है, जिसे सामान्यतः वर्ष भर में तीन बार काटा जाता है।

ये भी पढ़ें:
इन नस्लों की भेड़ पालने से पशुपालक जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

दक्कनी नस्ल की भेड़

यह नस्ल आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु एवं राजस्थान में पाई जाती है। इन भेड़ों को ऊन उत्पादन के लिए पाला जाता है। भेड़ की यह नस्ल भूरे और काले रंग की होती है। ये ऊन उत्पादन के लिए शानदार भेड़ें हैं। इस नस्ल की हर एक भेड़ तकरीबन 5 किलोग्राम वार्षिक ऊन उत्पादित करती है। यह ऊन निम्न गुणवत्ता का होता है, जो मुख्य रूप से बालों और रेशों के मिश्रण से बना होता है। दरअसल, इसका इस्तेमाल प्रमुख तौर पर मोटे कंबल निर्मित करने के लिए किया जाता है।

मांड्या नस्ल की भेड़

यह अधिकांश कर्नाटक के मांड्या जनपद में पाए जाने वाली नस्ल हैं। यह भेड़ सफेद रंग की होती हैं। परंतु, कभी-कभी हल्के भूरे मुंह के साथ भी पाई जाती है। इस नस्ल का आकार छोटा होता है। नर भेड़ का औसत वजन तकरीबन 35 किलोग्राम तक होता है। वहीं, मादा भेड़ का वजन तकरीबन 25 किलोग्राम तक होता है।

ये भी पढ़ें:
भेड़-बकरियों में होने वाले पीपीआर रोग की रोकथाम व उपचार इस प्रकार करें

नेल्लोर नस्ल की भेड़

नेल्लोर नस्ल की भेड़ मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ हिस्सों में पाई जाती है। यह छोटे बालों के साथ आकार में लंबी होती हैं। यह नस्ल भारत की बाकी सभी नस्लों में सबसे ऊंची है। साथ ही, यह दिखने में बकरी के जैसी होती है। नेल्लोर नस्ल की भेड़ के कान लंबे और झुके हुए होते हैं। नर भेड़ का औसत शारीरिक वजन 36-38 किलोग्राम होता है। मादा भेड़ का वजन अच्छे फार्म प्रबंधन के साथ 28-30 किलोग्राम हो जाता है। इस नस्ल का चेहरा लंबा, कान लंबे होते हैं और शरीर घने छोटे बालों से ढका होता है। इस नस्ल की ज्यादातर भेड़ें लाल रंग की दिखाई देती है, इस वजह से लोग इन्हें नेल्लोर रेड कहते हैं।

मारवाड़ी नस्ल की भेड़

मारवाड़ी नस्ल की भेड़ के पैर लंबे, काला चेहरा और उभरी हुई नाक होती है। पूंछ छोटी और नुकीली होती है। यह नस्ल प्रमुख तौर पर राजस्थान के जोधपुर और जयपुर जनपदों के कुछ इलाकों में पाई की जाती है। ये भेड़ें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कुछ जनपदों और महाराष्ट्र के कुछ इलाकों में भी पाई जाती हैं।
कम लागत में किसान इस पशु को पालकर हो सकते हैं मालामाल, सरकार दे रही है 50% सब्सिडी

कम लागत में किसान इस पशु को पालकर हो सकते हैं मालामाल, सरकार दे रही है 50% सब्सिडी

किसान पारंपरिक खेती से परेशान होकर अब पशुपालन की तरफ रुख कर रहे हैं। पारंपरिक खेती में किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। आपको यह भी बता दें कि केंद्र व राज्य सरकार पशुपालन के लिये बहुत सारी सुविधाएँ व सब्सिडी भी दे रही है, जिससे किसानों को पशु पालन करना और भी आसान हो रहा है। आपको यह भी बता दें कि जिन किसानों के पास भूमि काफी कम है, वहाँ पशुपालन कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। किसानों को यह पता नहीं है कि कौन से पशु को पालने में उनको ज्यादा मुनाफा मिलेगा। आज इस लेख में हम आपको बताएंगे कि पारंपरिक पशुपालन के अलावा इन पशुओं को पालने से आपको मिल सकता है बेहतर मुनाफा।

भेड़ पालन क्यों हो रहा है लोकप्रिय

देशभर में गाय, भैंस, बकरी के अलावा अभी जो सबसे ज्यादा पशु पालन हो रहा है, वह है भेड़ (sheep) पालन। आए दिन भेड़ पालन (Sheep rearing) में किसान काफी रुचि ले रहे हैं, इसका मुख्य कारण यह है कि भेड़ पालने में खर्च भी कम लगता है और मुनाफा भी अच्छा खासा हो जाता है। किसानों में भेड़ पालन लोकप्रिय होने का महत्वपूर्ण कारण यह है कि इसके खाने के लिए चारा की उपलब्धता भी काफी आसान है। अधिकांश भेड़ हरी पत्तियाँ व घास का सेवन करती हैं, जिससे किसानों को कम लागत में भी उसके लिए चारा उपलब्ध कराना आसान होता है।

ये भी पढ़ें: बकरी बैंक योजना ग्रामीण महिलाओं के लिये वरदान
किसानों के बीच इसका लोकप्रिय होने का सबसे मुख्य कारण यह है, कि उसके हर एक चीज़ का प्रयोग नए नए उत्पाद को बनाने में किया जाता है। जैसे उसके बालों का प्रयोग ऊन (wool) बनाने में किया जाता है, वहीं उसके चमड़े का प्रयोग बहुत सारे उत्पादों को बनाने के लिए भी किया जाता है। इतना ही नहीं इसके अलावा भी भेड़ों के दूध की बाजार में अच्छी कीमत किसानों को मिल जाती है, जिससे किसान की आय पहले की तुलना में और भी अधिक बढ़ जाता है।

सरकार दे रही है सब्सिडी

गौरतलब हो कि भेड़ पालन के लिए केंद्र सरकार के तरफ से भी अनेकों प्रकार की सब्सिडी किसानों के लिए उपलब्ध है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नेशनल लाइव स्टॉक मिशन के तहत केंद्र सरकार भेड़ पालन पर 50% तक की सब्सिडी की सुविधा किसानों को दे रही है। इतना ही नहीं इसके अलावा भी विभिन्न राज्य सरकारे अपने राज्य में भेड़ पालन के लिए अनेकों प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध करा रही है, जिससे अभी भेड़ पालन किसानों के बीच काफी लोकप्रिय बना हुआ है।

ये भी पढ़ें: कड़कनाथ पालें, लाखों में खेलें

कम लागत में शुरू करें व्यवसाय

आपको यह भी बता दें कि किसान लगभग ₹1,00,000 से भी व्यवसाय को शुरू कर सकते हैं। आपको यह भी बताते चलें कि बाजार में एक भेड़ की कीमत लगभग ₹8000 के आसपास है। भेड़ की ऊन (wool) की बनी हुई कपड़े की मांग काफी ज्यादा है, क्योंकि ठंडे प्रदेश में यह काफी उपयोगी होता है। आपको बता दें की इसके बने हुए कपड़े काफी गर्व होता है, जिसको अत्यधिक ठंड में उपयोग किया जाता है। आपको यह भी बता दें की भेड़ के ऊन का कंबल लोगों के बीच काफी लोकप्रिय है। इसके ऊन के अलावा इसका मांस और इसका दूध भी बाजार में अच्छा मूल्य देता है, जिससे किसानों का रुझान इसके तरफ काफी बढ़ रहा है। इतना ही नहीं भेड़ के द्वारा निकला हुआ गोबर भी काफी उर्वरक माना जाता है, जिसको किसान अपने खेतों में प्रयोग कर फसल को भी अच्छा उगा सकते हैं, जिससे भी किसान को काफी लाभ मिलेगा। भेड़ के गोबर की कीमत बाजार में काफी अच्छी है, क्योंकि इसमें उर्वरक शक्ति अधिक पायी जाती है, जिसका प्रयोग बड़े बड़े किसान अपने खेती के लिए करते हैं।
जानें इन सरकारी योजनाओं के बारे में जिनसे आप अच्छा खासा लाभ उठा सकते हैं

जानें इन सरकारी योजनाओं के बारे में जिनसे आप अच्छा खासा लाभ उठा सकते हैं

प्रधानमंत्री कुसुम योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार सिंचाई करने हेतु सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से किसान भाइयों को अनुदान पर सोलर पंप मुहैया कराती है। भारत में किसान कृषि के साथ-साथ पशुपालन किया करते हैं। दूध उत्पाद बेचकर उनकी अच्छी आय हो सकती है। राज्य सरकारें भी पशुपालन को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं जारी की जा रही हैं। साथ ही, विभिन्न राज्यों में तो दुधारू पशु पालने के लिए सीमांत किसानों को बेहतरीन पैदावार भी दी जा रही है। इस लेख में आज हम किसान भाइयों को उन मुख्य योजनाओं के विषय में बताने जा रहे हैं। जिनकी जानकारी लेकर वह सरकारी योजनाओं का खूब फायदा ले सकते हैं।

राष्ट्रीय बागवानी मिशन

राष्ट्रीय बागवानी मिशन के अंतर्गत सरकार सब्जी की खेती, फल- फूल की खेती एवं औषधीय फसलों की खेती को प्रोत्साहन दे रही है। इसके लिए सरकार बंपर अनुदान दे रही है। वास्तविकता में सरकार यह मानती है, कि कम भूमि रखने वाले किसान भूमि के छोटे से हिस्से में ही सब्जी एवं फलों का उत्पादन करके बेहतरीन आय कर सकते हैं। विशेष बात यह है, कि इस मिशन के अंतर्गत किसानों को बागवानी करने का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इस मिशन के चलते किसान सब्सिड़ी पाने के लिए आवेदन कर ग्रीनहाउस, पॉलीहॉउस एवं लो टनल जैसे ढांचे लगा सकते हैं। जिसमें सब्जियों की पैदावार बेहतरीन होती है और जलवायु परिवर्तन का भी प्रभाव नहीं पड़ता है। ये भी देखें: बागवानी के साथ-साथ फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर हर किसान कर सकता है अपनी कमाई दोगुनी

राष्ट्रीय पशुधन मिशन

राष्ट्रीय पशुधन मिशन केंद्र द्वारा जारी की गई एक योजना है। इस योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार सीमांत किसानों की आय को बढ़ाना चाहती है। इसके लिए सरकार की ओर से मछली पालन, बकरी पालन, भेड़ पालन एवं गाय- भैंस पालन करने वाले किसानों की आर्थिक सहायता करी जाती है। इसके अतिरिक्त किसान भाइयों को अनुदान भी दिया जाता है। ऐसी स्थिति में किसान भाई इस योजना से फायदा उठाकर अपनी कमाई में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं। खबरों के अनुसार, इस राष्ट्रीय पशुधन मिशन के अंतर्गत गांव में पोल्ट्री फॉर्म एवं गोशाला शुरू करने के लिए 50 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाता है। इस योजना से जुड़ी विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए आप https://dahd.nic.in/national_livestock_miss पर जा सकते हैं।

पीएम कुसुम योजना

प्रधानमंत्री कुसुम योजना के अंतर्गत केंद्र सरकार सिंचाई करने हेतु किसान भाइयों के हित में सोलर पंप उपलब्ध कराती है। इसके लिए केंद्र सरकार किसानों को 60 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है। देश में लाखों किसानों ने इस योजना का फायदा उठाया है। अब इन किसानों को फसलों को सिंचित करने के लिए वर्षा पर आश्रित नहीं रहना पड़ रहा है। साथ ही, यह डीजल भी नहीं खरीद रहे हैं। फिलहाल, किसान सौर उर्जा के जरिए से सिंचाई कर रहे हैं। इससे किसानों को कृषि पर किए जाने वाले व्यय से राहत मिली है। विशेष बात यह है, कि सरकार अनुदान के अतिरिक्त सोलर पंप स्थापित करने के लिए समकुल व्यय का 30 प्रतिशत कर्ज भी मुहैय्या करा रही है। यदि देखा जाए तो किसान भाइयों को केवल सोलर पंप स्थापित करने में अपनी जेब से 10 फीसद ही कुल लागत का खर्च करना होगा।
इन नस्लों की भेड़ पालने से पशुपालक जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

इन नस्लों की भेड़ पालने से पशुपालक जल्द ही हो सकते हैं मालामाल

भारत में भेड़ पालन एक लोकप्रिय पशुपालन उद्योग है। भेड़ को दूध, मांस और ऊन के उत्पादन के लिए पाला जाता है। भेड़ पालन से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर बनते हैं और इससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति मजबूत होती है। यह काम किसान भाई खेती बाड़ी के साथ ही करते हैं जिससे उन्हें अतिरिक्त आमदनी हो जाती है। भेड़ पालन का काम ज्यादातर छोटे और सीमांत किसान करते हैं। भेड़ों की मौत के बाद उनकी खाल की भी बाजार में अच्छी खासी मांग रहती है। भेड़ की खाल से जूते, चप्पल और हैंड बैग जैसी चीजें बनाई जाती हैं। इन दिनों भारत में किसानों के द्वारा कई नस्लों की भेड़ें पाली जाती हैं। जिनका उपयोग ज्यादातर ऊन उत्पादन में किया जाता है। इनमें जैसलमेरी, मंडियां, छोटा नागपुरी शहाबाबा, मारवाड़ी, बेकानेरी, मालपुरा, कोरिडायल रामबुतु और मैरिनो प्रमुख हैं। इन सभी प्रजातियों की भेड़ें किसी भी प्रकार के मौसम में रह सकती हैं, जिससे पशुपालकों को इनको पालने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती है। पशुपालकों द्वारा ऐसा कई बार कहा जाता है कि उन्हें भेड़ पालन में उचित मुनाफा नहीं होता है, इसलिए आज हम आपको भेड़ों की ऐसी नस्लों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे किसान भाई रातोंरात मालामाल बन सकते हैं।

अविकालीन भेड़

यह भेड़ उन्नत किस्म के ऊन का उत्पादन करती है। जिसका उपयोग कालीन बनाने में किया जाता है। इस भेड़ से प्राप्त होने वाला ऊन बेहद पतला होता है। अगर इसके वार्षिक उत्पादन की बात करें तो यह भेड़ एक साल में 2 से लेकर 2.5 किलो तक ऊन दे सकती है। इस नस्ल की भेड़ का पालन करके किसान भाई अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं। ये भी पढ़े: कृषि में गाय, भेड़, बकरी, चींटी, केंचुआ, पक्षी, पेड़ों का महत्व

अविवस्त्र भेड़

यह सबसे ज्यादा ऊन देने वाली भेड़ की नस्ल है। यह एक साल में 4 किलोग्राम से ज्यादा ऊन दे सकती है। इसके साथ ही इस भेड़ का वजन भी तेजी से बढ़ता है। ऐसे में इसका मांस बेंचकर भी पशुपालक अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। इस भेड़ का वजन एक साल के भीतर 23 किलोग्राम तक हो सकता है।

चौकला भेड़

यह बेहद वजनी भेड़ होती है, जिसका वजन 32 से लेकर 40 किलोग्राम तक हो सकता है। यह भेड़ एक साल में 2.5 किलोग्राम ऊन का उत्पादन कर सकती है। इस नस्ल की भेड़ में सींग नहीं होते। यह ज्यादातर राजस्थान के सीकर, झुंझुनू और चुरू जिले में पाई जाती है। ये भी पढ़े: हरियाणा में 39 वें राज्य स्तरीय पशु मेले का आयोजन किया जा रहा है इनके अलावा भारत में लोही, कूका, गुरेज, नुरेज, हसन, नैल्लोर, जालौनी, शाहवादी, बजीरी, बैलारी, जालौनी, भाकरवाल, मागरा, काठियावाड़ी, भादरवाल और दक्कनी नस्ल की भेड़ें भी पाई जाती हैं।