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यूरिया

ढैंचा की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

ढैंचा की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

भारत के विभिन्न राज्यों में किसान यूरिया के अभाव और कमी से जूझते हैं। यहां की विभिन्न राज्य सरकारों को भी यूरिया की आपूर्ति करने के लिए बहुत साड़ी समस्याओं और परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

आज हम आपको इस लेख में एक ऐसी फसल की जानकारी दे रहे हैं, जो यूरिया की कमी को पूर्ण करती है। ढैंचा की खेती किसान भाइयों के लिए बेहद मुनाफेमंद है। क्योंकि यह नाइट्रोजन का एक बेहतरीन स्रोत मानी जाती है। 

भारत में फसलों की पैदावार को अच्छा खासा करने के लिए यूरिया का उपयोग काफी स्तर पर किया जाता है। क्योंकि, इससे फसलों में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है, जो पौधों के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।

परंतु, यूरिया जैव उर्वरक नहीं है, जिसकी वजह से प्राकृतिक एवं जैविक खेती का उद्देश्य पूर्ण नहीं हो पाता है। हालांकि, वर्तमान में सामाधान के तोर पर किसान ढैंचा की खेती पर अधिक बल दे रहे हैं। 

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क्योंकि, ढैंचा एक हरी खाद वाली फसल है जो नाइट्रोजन का बेशानदार जरिया है। ढैंचा के इस्तेमाल के बाद खेत में किसी भी अतिरिक्त यूरिया की आवश्यकता नहीं पड़ती। साथ ही, खरपतवार जैसी समस्याएं भी जड़ से समाप्त हो जाती हैं।

ढैंचा की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु 

उपयुक्त जलवायु- ढैंचा की शानदार उपज के लिए इसको खरीफ की फसल के साथ उगाते हैं। पौधों पर गर्म एवं ठंडी जलवायु का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। 

परंतु, पौधों को सामान्य बारिश की आवश्यकता होती है। ढैंचा के पौधों के लिए सामान्य तापमान ही उपयुक्त माना जाता है। शर्दियों के दौरान अगर अधिक समय तक तापमान 8 डिग्री से कम रहता है, तो उत्पादन पर प्रभाव पड़ सकता है। 

ढैंचा की खेती के लिए मिट्टी का चयन

ढैंचा के पौधों के लिए काली चिकनी मृदा बेहद शानदार मानी जाती है। ढेंचा का उत्पादन हर प्रकार की भूमि पर किया जा सकता हैं। सामान्य पीएच मान और जलभराव वाली जमीन में भी पौधे काफी अच्छे-तरीके से विकास कर लेते हैं।  

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ढैंचा की खेती के लिए खेत की तैयारी 

सर्व प्रथम खेत की जुताई मृदा पलटने वाले उपकरणों से करनी चाहिए। गहरी जुताई के उपरांत खेत को खुला छोड़ दें, फिर प्रति एकड़ के हिसाब से 10 गाड़ी पुरानी सड़ी गोबर की खाद डालें और अच्छे से मृदा में मिला दें। 

अब खेत में पलेव कर दें और जब खेत की जमीन सूख जाए तो रासायनिक खाद का छिड़काव कर रोटावेटर चलवा देना चाहिए, जिसके पश्चात पाटा लगाकर खेत को एकसार कर देते हैं।

ढैंचा की फसल की बुवाई करने का समय  

हरी खाद की फसल लेने के लिए ढैंचा के बीजों को अप्रैल में लगाते हैं। लेकिन उत्पादन के लिए बीजों को खरीफ की फसल के समय बारिश में लगाते हैं। एक एकड़ के खेत में करीब 10 से 15 किलो बीज की आवश्यकता होती है। 

ढैंचा की फसल की रोपाई  

बीजों को समतल खेत में ड्रिल मशीन के माध्यम से लगाया जाता हैं। इन्हें सरसों की भांति ही पंक्तियों में लगाया जाता है। पंक्ति से पंक्ति के मध्य एक फीट की दूरी रखते हैं और बीजों को 10 सेमी की फासले के लगभग लगाते हैं। 

लघु भूमि में ढैंचा के बीजों की रोपाई छिड़काव के तरीके से करना चाहिए। इसके लिए बीजों को एकसार खेत में छिड़कते हैं। फिर कल्टीवेटर से दो हल्की जुताई करते हैं, दोनों ही विधियों में बीजों को 3 से 4 सेमी की गहराई में लगाएं।

जितना खेत,उतना मिलेगा यूरिया

जितना खेत,उतना मिलेगा यूरिया

अभी तक किसानों को यूंही मुंहमांगा यूरिया खाद देने वाले दुकानदारों के लिए परेशानी खडी होने लगी है। किसी भी एक किसान को एक से अधिक बार 20—25 बैग देने वाले कारोबारियों को इस तरह के नोटिस जा रहे हैं। केन्द्र सरकार खाद की कालाबाजारी रोकने की दिशा में इस तरह के कदम उठा रही है लेकिन अब दुकानदार भी किसानों से आधार नंबर और खतौनी खाद खरीदने आते वक़्त लेकर आने की बात कहने लगे हैं।

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उल्लेखनीय है कि यूरिया एवं डीएपी आदि उर्वरकों को सरकार किसानों के लिए सस्ती दर पर मुहैया कराती है लेकिन कुछ उद्योगों में भी इसका दुरुपयोग होता था। इसे रोकने के लिए सरकार ने यूरिया को नीम लेपित कर दिया। इसके बाद कुछ समय के लिए उद्योगों में इसका दुरुपयोग रुक गया। इधर किसान भी अपनी फसलों में यूरिया का अंधाधुंध प्रयोग कर रहे हैं। यूरिया के अधिक उपयोग से अनाज की पोषण क्षमता के अलावा जमीन की उर्वराशक्ति पर भी प्रभाव पड़ रहा है। सरकार धीरे धीरे किसानों को भी यूरिया के उचित उपयोग की आदी बनाना चाहती है। इस क्रम में जिन किसानों के नाम एक से अधिक यूरिया के बैगों की ज्यादा संख्या दर्ज की गई है उनके आंकडों को जिला कृषि अधिकारियों के माध्यम से सत्यापित किया जा रहा है। दुकानदारों से स्पष्टीकरण मांगा गया है कि यूरिया के बैग बार-बार एक ही किसान को ज्यादा तादात में देने का मामला संज्ञान में आ रहा है। यदि फीडिंग में कोई गलती है या किसान बटाई आदि पर ज्यादा खेत करता है तो प्रमाण सहित उसका स्पष्टीकरण उन्हें देना पड़ेगा।

खेती की जमीन की पुष्टी के बाद मिलेगा खाद

अभी तक होता यह आया है कि परचून की दुकान की तरह दुकानदार किसानों को उनकी मांग के हिसाब से खाद देते रहे लेकिन अब यह हालात नहीं रहेंगे। अब वह किसानों से उनकी खेती योग्य जमीन का ब्यौरा मांगेंगे ताकि उन्हें पता चल सके कि किसान जमीन से ज्यादा खाद तो नहीं ले गया। इसके अलावा यदि बटाई पर खेत करता है तो किसका खेत करता है व कितना खेत करता है इसका भी विवरण लेंगे। किसान के नाम, पता व फोन नंबर भी रखेंगे ताकि यदि किसी तरह की दिक्कत होतो उन्हें बुलाकर स्पष्टीकरण दिया जा सके।
नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

नैनो यूरिया का ड्रोन से गुजरात में परीक्षण

तरल नैनो यूरिया के कारोबारी उत्पादन करने वाला भारत विश्व का पहला देश बन गया है। गुजरात के भावनगर में केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया की मौजूदगी में गुजरात के भावगन में ड्रोन से नैनो यूरिया के छिडकाव का सफल परीक्षण किया गया।  जून में इसका उत्पादन शुरू हुआ और तब से अब तक हमने नैनो यूरिया की 50 लाख से अधिक बोतलों का उत्पादन कर लिया है। उन्होंने बताया कि नैनो यूरिया की प्रतिदिन एक लाख से अधिक बोतलों का उत्पादन किया जा रहा है। इस दौरान मौजूद किसानों के मध्य मंत्री ने कहा कि उर्वरक और दवाओं के परंपरागत उपयोग को लेकर कई तरह की शंकाएं किसानों के मन में रहती हैं। छिड़काव करने वाले के स्वास्थ्य को इससे होने वाले संभावित नुकसान के बारे में भी चिंता व्यक्त की जाती है। ड्रोन से इसका छिड़काव इन सवालों और समस्याओं का समाधान कर देगा। ड्रोन से कम समय में अधिक से अधिक क्षेत्र में छिड़काव किया जा सकता है। इससे किसानों का समय बचेगा। छिड़काव की लागत कम होगी।

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उन्होंने नैनो टेक्नोलाजी की खूबी पर चर्चा करते हुए कहा कि इससे यूरिया आयात घटेगा। किसानों को और जमीन को अधिक यूरिया डालने से होन वाले नुकसान से किसान बचेंगे। जमीन की उपज क्षमता में भी लाभ होगा। संतुलित उर्वरक उपयोग से खाद्यान्न गुणवत्ता भी सुधरेगी। यूरिया पर दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ भी कम होगा। इसका उपयोग अन्य जन कल्याणकारी कार्यों में किया जा सकेगा। इस दौरान इफको के प्रतिनिधियों ने किसानों की जिज्ञासा को शांत किया। उन्होंने किसानों को ड्रोन से किए जाने वाले छिडकाव को जीवन रक्षा के लिए बेहद कारगर बताया। इस अवसर पर भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ के अध्यक्ष और इफको के उपाध्यक्ष दिलीप भाई संघानी भी उपस्थित थे।
अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत

अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत

अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत - बंद पड़े खाद कारखानों को दोबारा खोला जाएगा

नई दिल्ली। अब देश के किसानों को यूरिया की किल्लत नहीं झेलनी पड़ेगी। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात मे नैनो यूरिया संयंत्र का उद्घाटन किया था। अब उत्तर-प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा में बंद पड़े खाद कारखानों को दोबारा खोला जा रहा है। इन कारखानों में जल्दी ही उत्पादन शुरू किया जाएगा। इसके लिए तैयारियां जोरों पर चल रहीं हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगस्त के पहले सप्ताह में कारखानों में यूरिया का उत्पादन शुरू हो जाएगा। हिंदुस्तान उर्वरक और रासायन लिमिटेड के जनरल कामेश्वर झा ने बताया कि प्लांट में सभी मशीनों की जांच की जा रही है। कम्पनी का प्रयास है कि चरणबद्ध तरीके से उत्पादन कार्य शुरू किया जाए। इसकी शुरुआत जुलाई में ही शुरू हो जाएगी। और अगस्त के महीने में पूरी क्षमता के साथ उत्पादन होगा। पूरी क्षमता से उत्पादन शुरू हो जाने के बाद यहां प्रतिदिन 3850 नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन किया जाएगा।

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बीस साल बाद शुरू होगा सिंदरी खाद कारखाना

- बता दें कि पांच सितंबर 2002 को स्व. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में वित्तीय संकट के चलते सिंदरी खाद कारखाना बंद हो गया था। करीब 20 साल बाद फिर से कारखाना शुरू होने जा रहा है। सिंदरी खाद कारखाना से देश मे हरित क्रांति लाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

यूरिया की कमी होगी दूर

- साल 1951 में सिंदरी कारखाने की पहली यूनिट का उत्पादन शुरू हुआ था। उन दिनों प्लांट का संचालन फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा किया जाता था। यह कारखाना पूर्वी भारत में एफसीआई द्वारा संचालित एकमात्र यूरिया उत्पादन कारखाना था। इसके बंद होने के बाद पूर्वी राज्यों में यूरिया की भारी किल्लत हो गई थी। सभी आठ कारखाने बंद हो गए थे। और यूरिया की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। स्थिति ऐसी बन गई है कि देश को यूरिया का आयात करना पड़ा रहा है। इसे देखते हुए केन्द्र सरकार ने गौरखपुर, सिंदरी और बरौनी में फिर से बंद पड़े यूरिया खाद कारखानों को शुरू करने की योजना बनाई है। बताया जा रहा है कि प्रत्येक प्लांट शुरू करने की योजना के अंतर्गत 6000 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई है।

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डीएपी से अभी राहत नहीं

- सरकार भले ही यूरिया की किल्लत दूर करने का दावा कर रही है। लेकिन फिलहाल डीएपी पर कोई राहत दिखाई नहीं दे रही है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में डीएपी की किल्लत और बढ़ेगी। ------- लोकेन्द्र नरवार
वैश्विक बाजार में यूरिया की कीमतों में भारी गिरावट, जानें क्या होगा भारत में इसका असर

वैश्विक बाजार में यूरिया की कीमतों में भारी गिरावट, जानें क्या होगा भारत में इसका असर

वैश्विक बाजार में यूरिया की कीमतों में भारी गिरावट - मांग बढ़ने से यूरिया की कीमतें 45 फीसदी तक घटीं

नई दिल्ली। उर्वरकों को लेकर रिकॉर्ड बनाती कीमतों के बीच सब्सिडी बजट मोर्चे पर सरकार को कुछ राहत मिलती दिख रही है। वैश्विक बाजार में यूरिया की कीमतों में भारी गिरावट हुई है। 

बढ़ती मांग के चलते यूरिया की कीमतें 45 फीसदी तक घट गईं हैं। वैश्विक बाजार में यूरिया की कीमत 1000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच गई थी। जो गिरकर अब 550 डॉलर प्रति टन तक आ गईं हैं। 

भारत ने 980 डॉलर प्रति टन की कीमत तक यूरिया खरीदा था। देश में करीब 350 लाख टन यूरिया की खपत होती है। उम्मीद जताई जा रही है कि जुलाई के पहले सप्ताह में भारत यूरिया आयात का टेंडर जारी करेगा। 

संभावना है कि भारत को 540 डॉलर प्रति टन की कीमत में आयात सौदा मिल जाएगा। इससे किसानों को यूरिया की कीमतों में राहत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।

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भारत में कितनी होंगी कीमतें

मिली जानकारी के अनुसार 540 डॉलर प्रति टन की कीमत पर होने वाले सौदे पर पांच फीसदी का आयात शुल्क लगेगा। और 1500 रुपये प्रति टन का हैंडलिंग व बैगिंग खर्च जोड़ा जायेगा। 

इसके बाद यह करीब 42 हजार रुपये प्रति टन हो जाएगा। एक समय यूरिया की कीमत करीब 75 हजार रुपए प्रति टन तक पहुंच गई थी।

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 कीमतों में आई गिरावट के चलते सरकार को सब्सिडी के मोर्चे पर उच्चतम स्तर पर कीमत के मुकाबले करीब 30 हजार रुपए प्रति टन की बचत होगी। ------ लोकेन्द्र नरवार

किसानों को भरपूर डीएपी, यूरिया और एसएसपी खाद देने जा रही है ये सरकार

किसानों को भरपूर डीएपी, यूरिया और एसएसपी खाद देने जा रही है ये सरकार

जयपुर। खरीफ की फसल के सीजन में किसानों को भरपूर बीज एवं खाद देने की व्यवस्था की जा रही है। राजस्थान सरकार ने समस्त अधिकारियों को खाद व बीज की व्यवस्था दुरुस्त करने के निर्देश दिए हैं। 

एक समीक्षा बैठक में अधिकारियों को सख्त निर्देश देते हुए कृषि मंत्री लालचंद कटारिया ने कहा है कि किसानों को इन दोनों कृषि इनपुट की दिक्कत न हो। इसके लिए कृषि विभाग डीएपी, यूरिया और सिंगल सुपर फास्फेट (एसएसपी) फर्टिलाइजर का स्टॉक प्रचुर मात्रा में रखें। 

किसान भाई इस वर्ष खाद की चिंता न करें। आंकड़ो के अनुसार राजस्थान में 164.17 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल के लक्ष्य के विपरीत अब तक 66.05 लाख हेक्टेयर बुवाई हो चुकी है।

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उच्च क्वालिटी की पाइप लाइन बिछाने के निर्देश :

सरकार ने किसानों के खेतों में बिछाई जाने वाली पाइप लाइन की क्वालिटी उच्च रखने के निर्देश दिए हैं। माना जा रहा है कि पाइपलाइनों को जमीन के भीतर डालने की अपेक्षा जमीन के ऊपर बिछाने की व्यवस्था करनी चाहिए। 

जिससे किसानों को पाइपलाइन में लीकेज की जानकारी का सही व जल्दी पता चल सके। इसके अलावा खेतों में बनने वाले किसान फार्म पौंड स्कीम (Farm pond (Khet talai )) पर सुरक्षा की व्यावक व्यवस्था करने के लिए भी सख्ती से निर्देश दिए गए हैं।

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राज्य में 15 लाख बीज किट वितरित

- राजस्थान सरकार ने इस साल करीब 25 लाख किसानों को मुफ्त में बीज देने का लक्ष्य रखा है। जिसमें अब तक 15 लाख मिनिकिट्स वितरित किए जा चुके हैं। 

किसानों को बाजरा, मक्का, मूंग, उड़द व सोयाबीन के बीज दिए जा रहे हैं। इससे किसानों को काफी राहत मिलेगी।

जैविक खेती के लिए किसानों को दी जाएगी ट्रेनिंग

- राजस्थान सरकार अपने राज्य के किसानों को जैविक खेती के क्रियान्वयन के लिए ट्रेनिंग देने जा रही है। जैविक खेती के क्रियान्वयन और प्रचार-प्रसार में अधिक से अधिक प्रगतिशील एवं युवा किसानों को शामिल किया जा रहा है। 

ट्रेनिंग के दौरान किसानों को कृषि ज्ञान के साथ-साथ व्यवहारिक ज्ञान भी दिया जाएगा। ------- लोकेन्द्र नरवार

ऐसे करें असली और नकली खाद की पहचान, जानिए विशेष तरीका

ऐसे करें असली और नकली खाद की पहचान, जानिए विशेष तरीका

डीएपी, यूरिया और पोटास असली या नकली ?

वृंदावन(मथुरा) बाजार में लगातार नकली खाद की बिक्री बढ़ती जा रही है। किसानों को नकली खाद के कारण काफी नुकसान झेलना पड़ता है। इन दिनों बुवाई का सीजन चल रहा है और किसान
खाद डालकर ही बुवाई कर रहे हैं। खाद की कीमतें आसमान छू रहीं हैं। खाद की बढ़ती कीमतों के बीच किसान को नुकसान तब होता है, जब ज्यादा से ज्यादा खाद डालने के बाद भी अच्छी पैदावार नहीं मिलती है। फसल में अच्छी पैदावार के लिए कहीं ना कहीं नकली खाद ही जिम्मेदार होता है। इस मिलावट के दौर में किसानों को हमेशा यही चिंता रहती है कि जो खाद वह अपनी फसल में डाल रहे हैं क्या वो नकली है या असली?

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आइए जानते हैं कैसे करें हम नकली या असली खाद की पहचान :

1 - डीएपी खाद (DAP) की पहचान

- किसान भाई ध्यान दें, कि आप जो DAP (Diammonium phosphate) खाद खरीद रहे हैं वो असली है या नकली है, इसकी पहचान के लिए किसान भाई डीएपी के कुछ दाने अपने हाथ मे लेकर उसमें चूना मिलाकर तम्बाकू की तरह मसलें। इसको मसलनें के बाद अगर उसमें से ऐसा तेज गंध निकलने लग जाता है, जिसे सूंघना बहुत मुश्किल हो जाता है। जो समझ जाइए डीएपी खाद असली है। उधर नकली डीएपी खाद सख्त, दानेदार और भूरे व काले रंग की होती है। अगर आप इसको अपने नाखूनों से तोड़ने की कोशिश करेंगे तो यह आसानी से नहीं टूटेगा। तो आप समझ लीजिए यह कतई नकली खाद है।

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2 - यूरिया खाद की पहचान

- प्रायः यूरिया (Urea) के बीज सफेद और चमकदार होते हैं। आकार में एक समान व गोल आकार के होते हैं। यह पानी मे पूरी तरह से घुल जाते हैं। असली यूरिया के घोल को छूने पर ठंडा महसूस होता है। उधर नकली यूरिया खाद के दानों को तवे पर गर्म करके देखें, यदि इसके दाने पिघलें नहीं तो समझो यह यूरिया खाद नकली है। क्योंकि असली यूरिया के दाने गर्म करने पर आसानी से पिघल जाते हैं।

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3 - पोटास की करें पहचान

- असली पोटाश (Potash) के दाने हमेशा खिले-खिले रहते हैं। पोटाश की असली पहचान इसका सफेद नमक व लाल मिर्च जैसा मिश्रण ही होता है। उधर नकली पोटाश की पहचान के लिए आप उसके दानों पर पानी की कुछ बूंदे डाल दें, इसके बाद अगर ये आपस मे चिपक जाते हैं तो समझ लेना कि ये नकली पोटाश है। क्योंकि पोटाश के दाने पानी मे डालने पर कभी भी नहीं चिपकते हैं। *अपने खेत में खाद लगाने के लिए किसान भाई खाद खरीदने से पहले इसी तरह असली और नकली खाद की पहचान जरूर कर लें। ----------- लोकेन्द्र नरवार
'एक देश में एक फर्टिलाइजर’ लागू करने जा रही केंद्र सरकार

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भारत ब्रांड के तहत बिकेंगे देश में सभी उर्वरक

नई दिल्ली। देश भर में फर्टिलाइजर ब्रांड में यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए सरकार एक देश में एक ही फर्टिलाइजर (One Nation One Fertilizer) के तहत काम करने जा रही है। भारत सरकार आज से एक आदेश जारी कर सभी कंपनियों को अपने उत्पादों को 'भारत' के सिंगल ब्रांड नाम के तहत बेचने का निर्देश दिया है। अब देश मे सभी फर्टिलाइजर ब्रांड एक ही नाम से बिकेंगे। देश भर में फर्टिलाइजर ब्रांड में यूनिफॉर्मिटी लाने के लिए सरकार ने आज एक आदेश जारी कर सभी कंपनियों को अपने उत्पादों को 'भारत' के सिंगल ब्रांड नाम के तहत बेचने का निर्देश दिया है।



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आदेश के बाद सभी उर्वरक बैग, चाहे यूरिया या डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (DAP) या म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP - Muriate of Potash) या एनपीके (NPK) हों, वह सभी ब्रांड नाम 'भारत यूरिया', 'भारत DAP', 'भारत MOP' और 'भारत NPK' के नाम से बाजार मे बिकेंगे। प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के मैन्युफैक्टर दोनों को भारत ब्रांड नाम देना होगा।


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हालांकि, इसका फर्टिलाइजर कंपनियों ने नेगेटिव प्रतिक्रया दी है। कंपनियों के मुताबिक उनके ब्रांड वैल्यू और मार्केट में फर्क उन्हें खत्म कर देगा। सरकारी आदेश में यह भी कहा गया है कि सिंगल ब्रांड नाम और प्रधानमंत्री भारतीय जनउरवर्क परियोजना (PMBJP) का लोगो भी लगाना होगा। ये वो स्कीम है जिसके जरिये केंद्र सरकार सालाना सब्सिडी देती है। कंपनी को ये लोगो (Logo) बैग पर दिखाना होगा। इंडस्ट्री के मुताबिक कुल पैकेजिंग के छोटे हिस्से पर ही कंपनी का नाम लिखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार का यह कदम उर्वरक कंपनियों को काफी नुकसान पहुंचा सकता है। क्योंकि अलग ब्रांडिंग होने से फर्टिलाइजर में किसानों को फर्क साफ तरीके से दिखाई देगा। फर्टिलाइजर कंपनियां अपने आप को दूसरों से अलग करने के लिए कई तरह की एक्टिविटी करती है। इसके बाद यह सब शीघ्र ही बंद हो जाएगा। ---- लोकेन्द्र नरवार
इस राज्य में किसानों की बढ़ी परेशानी, यूरिया में मिलने वाली सब्सिडी से हैं वंचित

इस राज्य में किसानों की बढ़ी परेशानी, यूरिया में मिलने वाली सब्सिडी से हैं वंचित

इस साल लम्बे समय तक कई राज्यों में उर्वरक की कमी महसूस की गई है। इसके साथ ही ओडिशा में भी किसानों को उर्वरक की कमी के कारण परेशानी झेलनी पड़ी। लेकिन अब केंद्र सरकार के उर्वरक मंत्रालय की तरफ से राज्य को पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध करवाया गया है ताकि राज्य के किसानों को इसकी कमी न होने पाए। इसको लेकर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने केंद्र सरकार का आभार जताया है। ओडिशा राज्य में अब उर्वरक के पर्याप्त भण्डार मौजूद हैं, इसके बावजूद राज्य के किसानों को उर्वरक की कमी खल रही है, क्योंकि केंद्र द्वारा भेजा गया उर्वरक किसानों को सब्सिडी वाले दामों में नहीं मिल पा रहा है। यह उर्वरक खुले बाजार में ब्लैक में बेचा जा रहा है।

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इस बारे में ओडिशा की एक वेबसाइट ने खबर प्रकाशित की है, जिसमें वेबसाइट ने बताया कि ओडिशा के बलांगीर में उर्वरक की जमकर कालाबाजारी की जा रही है। यहां पर यूरिया की एक बोरी 500 रूपये में खुले बाजार में बेची जा रही है, जिसे खरीदने के लिए किसान मजबूर हैं, क्योंकि सब्सिडी वाली यूरिया किसानों को उपलब्ध नहीं करवाई जा रही है। राज्य में सब्सिडी वाली यूरिया की 45 किलोग्राम की एक बोरी का मूल्य 266.50 रुपये प्रति बोरी है। इस हिसाब से किसान अपने खेत में यूरिया डालने के लिए ज्यादा पैसे चुका रहे हैं। वेबसाइट ने बताया कि बलांगीर जिले में खरीफ की फसलों के लिए मात्र 22,000 मीट्रिक टन यूरिया की जरूरत है। जबकि सरकार ने इस जिले को 30,000 मीट्रिक टन यूरिया उपलब्ध करवाई है। इसके बावजूद बाजार में यूरिया की कालाबाजारी रुकने का नाम नहीं ले रही है। जिले में यूरिया का पर्याप्त स्टॉक होने का बावजूद किसान ब्लैक में यूरिया लेने पर मजबूर हैं और इसके लिए वो अतिरिक्त दाम भी चुका रहे हैं। यह स्थिति पूरे ओडिशा में है जहां किसान अपने खेतों में डालने के लिए ऊंचे दामों में यूरिया खरीद रहा है।

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ओडिशा में राज्य सहकारी विपणन संघ लिमिटेड ( मार्कफेड-ओडिशा (Odisha State Co-Operative Marketing Federation Ltd. (MARKFED) ) किसानों को उर्वरक मुहैया करवाने का काम करता है। यह काम मार्कफेड प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के माध्यम से पूरा करता है, जिसमें उर्वरक बेचने पर किसानों को 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी प्रदान की जाती है। राज्य को मिलने वाले 50 प्रतिशत उर्वरक को मार्कफेड खुले बाजार में एजेंसियों के माध्यम से बेचता है। जबकि 50 प्रतिशत उर्वरक को सब्सिडी के साथ प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को उपलब्ध करवाया जाता है। इस मामले में किसानों का कहना है कि राज्य में उर्वरक उपलब्ध करवाने वाली एजेंसियां सही से काम नहीं कर रही है। उनके अंदर बैठे लोग उर्वरक के इस वितरण से मोटा पैसा कमाना चाहते हैं, जिसके कारण वो उर्वरक वितरण में धांधली कर रहे हैं।

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ओडिशा में यूरिया की बढ़ती हुई कालाबाजरी से किसान परेशान हैं। बहुत सारे किसान इन बढ़े हुए दामों पर यूरिया खरीदने में सक्षम भी नहीं हैं। कई सहकारी समितियों ने मार्कफेड को अभी तक करोड़ों रूपये का भुगतान नहीं किया है। जिसका फायदा निजी कंपनियां उठा रही हैं। वो मार्कफेड के यूरिया को खरीदकर बाजार में ऊंचे दामों में बेंच रही हैं। यह किसानों के साथ-साथ सरकार के लिए भी चिंता का विषय हो सकता है, क्योंकि यदि किसान यूरिया नहीं खरीद पाए तो इसका असर खरीफ में होने वाली खेती के उत्पादन में दिख सकता है। बिना यूरिया के फसलें कमजोर हो सकती हैं और उनके उत्पादन में भी गिरावट आ सकती है।
बिहार में खाद की भयंकर कमी, मांग के मुकाबले यूरिया की आपूर्ति में 22 फीसदी की कमी

बिहार में खाद की भयंकर कमी, मांग के मुकाबले यूरिया की आपूर्ति में 22 फीसदी की कमी

1 अप्रैल से 12 सितंबर के बीच, बिहार सरकार को बिहार कृषि विभाग से जानकारी मिली कि बिहार को खरीफ सीजन के लिए 10,100 मीट्रिक टन खाद की जरूरत है। लेकिन आंकड़ों के मुताबिक अब तक केंद्र सरकार ने सिर्फ 7.89576 मीट्रिक टन खाद की आपूर्ति की है। खरीफ फसल का मौसम चल रहा है। खरीफ मौसम की मुख्य फसल धान देशभर में उगाई जाती है। वहीं, इस सीजन में खाद की मांग सबसे ज्यादा होती है। बिहार में इस खरीफ सीजन में खाद की आपूर्ति नही होना किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या है। इससे किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जानकारी के मुताबिक केंद्र सरकार ने बिहार को खरीफ सीजन के दौरान पिछले सालों की तुलना में यूरिया का आबंटन बहुत ही कम किया है। बिहार सरकार के अनुसार, केंद्र सरकार ने पीक सीजन (जून से अगस्त) के दौरान उपयोग के लिए आबंटित यूरिया की मात्रा को 22 फ़ीसदी कम कर दिया है।

इतने खाद की है आवश्यकता

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक बिहार को खरीफ सीजन 1 अप्रैल से 12 सितंबर तक 10.100 मीट्रिक टन खाद की जरूरत थी। केंद्र सरकार ने इस वर्ष अब तक 7.89576 मीट्रिक टन खाद की आपूर्ति की है, जो आवश्यकता अनुपात का 78% है। ये भी पढ़े: डीएपी जमाखोरी में जुटे कई लोग, बुवाई के समय खाद की किल्लत होना तय बिहार सरकार द्वारा सार्वजनिक किए गए आंकड़ों के अनुसार जून में 1.20 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता के मुकाबले 1.03 लाख मीट्रिक टन खाद दी गई. इसी प्रकार जुलाई में  2.50 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता थी, लेकिन जुलाई में 1.72 लाख मीट्रिक टन खाद की आपूर्ति की गई, और अगस्त में 2.80 लाख मीट्रिक टन की आवश्यकता के मुकाबले 2.51 लाख मीट्रिक टन की आपूर्ति की गई। पिछले खरीफ सीजन के दौरान भी कम आपूर्ति देखी गई थी। पिछले खरीफ सीजन में बिहार सहित कई क्षेत्रों में उर्वरक की भारी किल्लत थी। इसके चलते किसानों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था। उस वक्त भी बिहार के लिए जरूरी यूरिया का महज 77 फीसदी ही मुहैया कराया गया था। ये भी पढ़े: इफको ने देश भर के किसानों के लिए एनपी उर्वरक की कीमत में कमी की बिहार के दौरे के दौरान, केंद्रीय उर्वरक राज्य मंत्री भगवंत खुबा ने नीतीश कुमार पर केंद्र से लगातार और पर्याप्त शिपमेंट के बावजूद उर्वरक की कमी का नाटक करने का आरोप लगाया है। उर्वरक राज्य मंत्री ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा की नीतीश कुमार को किसानों को गुमराह करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए, किसानों के लिए नरेंद्र मोदी की सरकार ने हमेशा कार्य किया है। किसानों से अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा की वे यूरिया खरीदारी पर दर से अधिक पैसा न दें, क्योंकि नरेंद्र मोदी की सरकार किसानों की खातिर यूरिया, डीएपी, एनपीके और अन्य कृषि आदानों पर भारी सब्सिडी दे रही है। मंत्री जी ने ये भी कहा कि सरकार को राजनीतिक उद्देश्यों के लिए किसानों को निशाना नहीं बनाना चाहिए। प्रशासकों को किसानों को सब्सिडी वाले उर्वरकों के उपयोग के उनके अधिकार के बारे में सूचित करने के लिए निर्देश भी दिए जाते हैं। ये भी पढ़े: डीएपी के लिए मारामारी,जानिए क्या है समाधान वही वर्तमान समय में उर्वरक की भारी कमी और इसकी बढ़ती कालाबाजारी और अवैध रूप से बिक्री के कारण पूरे बिहार के किसान चिंतित और आक्रोशित हैं।
अब नहीं होगी किसानों को उर्वरकों की कमी, फसलों के लिए प्रयाप्त मात्रा में मिलेगा यूरिया और डी ए पी

अब नहीं होगी किसानों को उर्वरकों की कमी, फसलों के लिए प्रयाप्त मात्रा में मिलेगा यूरिया और डी ए पी

किसानों को फसलों की अच्छी पैदावार लिए पर्याप्त मात्रा में यूरिया (urea) और डी ए पी (DAP) की आवश्यकता होती है। पिछले साल किसानों को पर्याप्त मात्रा में उर्वरक न उपलब्ध होने की वजह से बहुत समस्या आयी थी, जिसको ध्यान में रखते हुए मध्य प्रदेश सरकार उर्वरकों की उपलब्धता पूर्ण मात्रा में करने की तैयारी में जुटी हुई है। साथ ही किसानों को सूचित किया गया है कि उर्वरकों की तरफ से किसानों को बिल्कुल चिंता करने की आवश्यता नहीं है, भरपूर मात्रा में यूरिया और डी ए पी का प्रबंध है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी ने स्वयं उर्वरकों की प्रबंधन प्रणाली की समीक्षा की है। शिवराज चौहान केंद्र सरकार के सहयोग से भरपूर मात्रा में उर्वरकों की पूर्ति करने में सफल रहे हैं। अप्रैल से लेकर अब तक १९.०९ लाख मीट्रिक टन यूरिया, ८.५८ लाख मीट्रिक टन सिंगल सुपर फॉस्फेट और ३. ४२ लाख मीट्रिक टन एनपीके (NPK) की व्यवस्था हो चुकी है।


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मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान जी की पहचान किसान मित्र के रूप में उभर कर सामने आ रही है। वह किसानों के लिए कई प्रकार की कल्याणकारी योजनायें लागू करते रहते हैं। दशहरा से पहले उन्होंने किसानों के खातों में अतिवृष्टि व बाढ़ से हुए नुकसान से राहत देने के लिये सहायक धनराशि ट्रांसफर की है। अब रबी की फसल के लिए किसानों को यूरिया और डी ए पी आदि की कमी न रहे, इसलिए मध्य प्रदेश सरकार पूर्व से ही यूरिया और डी ए पी का उचित प्रबंध करने में जुट गयी है।

उर्वरकों के वितरण का क्या प्रबंध होगा ?

उर्वरकों का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद भी सही प्रकार से वितरण करना एक मुख्य समस्या रही है। इसलिए मध्य प्रदेश सरकार वितरण प्रणाली को बेहतर और प्रभावी बनाने की हर संभव कोशिश कर रही है, जिससे किसी भी किसान को उर्वरकों के लिए इंतज़ार न करना पड़े और उसके पास समय से ही पूर्ण मात्रा में यूरिया इत्यादि उपलब्ध हो सके। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का सख्त निर्देश है कि उर्वरकों की उपलब्धता से सम्बंधित किसी भी किसान की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए और जिन किसानों की शिकायत आयी हों, उनका जल्द से जल्द निराकरण किया जाये।


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आखिर किस कारण सहकारिता विभाग से कम हुआ उठान?

सहकारिता विभाग से उर्वरकों के कम उठान के सन्दर्भ में कृषि विभाग के मुख्य सचिव अजित केसरी जी का कहना है कि राज्य में उर्वरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है, मध्य प्रदेश सरकार उर्वरकों के लिए केंद्र सरकार का सहयोग ले रही है। केंद्र की तरफ से मध्य प्रदेश के किसानों के लिए भरपूर उर्वरक प्रदान किये जा रहे हैं, यही कारण है कि सहकारिता विभाग से उर्वरकों के उठान में बेहद कमी देखने को मिल रही है। साथ ही जनपद विपणन अधिकारियों को किसानों की उर्वरक सम्बंधित मांग को अतिशीघ्र पूर्ण करने का आदेश है।
जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद

जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद

जिमीकंद को सूरन या बिहार जैसे राज्य में ओल भी कहा जाता है, यह असला में गर्म जलवायु में उगाया जाने वाला पौधा है। जिसकी सब्जी से ले कर अचार तक बनाई जाती है और उत्तर भारत से ले कर दक्षिण भारत तक में इसका इस्तेमाल बड़े पैमाने पर किया जाता है। यानी, अगर किसान इसकी खेती करे तो निश्चित ही उनके जीवन में आनंद आ जाएगा।

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कैसी हो मिट्टी

ओल के लिए सबसे अच्छी मिट्टी भूरभुरी दोमट मिट्टी मानी जाती है, ओल को अधिक जल जमाव वाले क्षेत्र में नहीं उगाया जाना चाहिए, इससे किसानों को नुकसान हो सकता है। 

ओल की खेती के लिए 5.5 से 7.2 तक की पीएचमान वाली मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। ओल की कई किस्में बाजार में आजकल उपलब्ध हैं, किसान अपनी जरूरत के हिसाब से इसमें से कोई एक किस्म का चुनाव कर सकते हैं। 

जैसे, गजेन्द्र, एम -15, संतरागाछी, कोववयूर आदि। किसान भाइयों को अपने क्षेत्र की मिट्टी और जलवायु को ध्यान में रखते हुए ओल की किस्म का चुनाव करना चाहिए ताकि वे ओल की खेती से बेहतर कमाई कर सके।

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सूरन यानी जिमीकंद की खेती बारिश के मौसम से पहले और बाद में की जानी चाहिए, फिर भी इसकी खेती के लिए अप्रैल से जून के बीच का समाया सबसे बेहतर माना जाता है। 

किसान भाई ध्यान रखे कि, इसकी बुवाई से पहले इसके बीजों का उपचार अच्छी तरह से कर लिया गया है। खेत की अच्छे से गहरी जुताई कर कुछ दिनों के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दें, ताकि खेत की मिट्टी में अच्छे से धूप लग सके। 

आप चाहे तो जुटे हुए खेत में पुरानी गोबर की खाद को डाल सकते हैं। आप ओल बोने से पहले अपने खेत में पोटाश 50 KG, 40 KG यूरिया और 150 KG डी.ए.पी. का इस्तेमाल अवश्य करें ताकि आपको बेहतर उपज मिल सके। 

बीजों को क्यारी बना कर लगाए क्योंकि ओल के पौधे होते हैं, जो अगर क्यारी में लगे हो और एक निश्चित दूरी बना कर रोप गए हो तो आपको ओल का फल अच्छे आकार का मिल सके।

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इसकी खेती में यह ध्यान रखना है, कि बरसात के समय सिंचाई नहीं करनी है। हां, सर्दी के मौसम में इसके पौधों को 15-20 दिन सिंचाई की आवश्यकता होती है। 

एक अच्छी बात यह है, कि इसके पौधे के बीच बहुत अधिक मात्रा में खर-पतवार नहीं उगते। लेकिन, फिर भी आपको इसका ध्यान रखना चाहिए, ऐसा करने से पौधों में रोग लगाने की संभावना कम हो जाती है। 

ओल के खेत के लिए आपको दस से पंद्रह क्विंटल गोबर की सड़ी खाद, यूरिया, फास्फोरस और पोटाश 80:60:80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करना चाहिए।

बेहतर कमाई

ओल का बाजार भाव तकरीबन 30 से 50 रुपए प्रति किलो तक होता है। एक हेक्टयर में आप 70 से 80 टन ओल उगा सकते है, इस हिसाब से देखे तो किसान भाइयों को एक बेहतर कमाई का जरिया ओल के रूप में मिल सकता है। 

तो देर किस बात की, सर्दी का मौसम है, तब भी आप सिंचाई के बेहतर प्रबंधन के साथ ओल की खेती शुरू कर सकते हैं।