भारत में गायों की नस्लें - भारत में गाय की प्रमुख दुग्ध उत्पादक नस्लें

Published on: 22-May-2025
Updated on: 22-May-2025
Herd of Indigenous Indian Cattle Grazing in Dry Pasture
पशुपालन पशुपालन गाय-भैंस पालन

भारत विभिन्न गायों की नस्लों का घर है और यह अपनी जीवंत संस्कृति और विविध भू-प्राकृतिक स्वरूपों के लिए प्रसिद्ध है। 

सदियों से मवेशी भारतीय कृषि और ग्रामीण जीवन का एक अभिन्न हिस्सा रहे हैं, जो देश की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। 

प्रत्येक नस्ल की अपनी अनोखी विशेषताएँ और महत्व होते हैं। इस ब्लॉग में हम भारत में पाई जाने वाली कुछ प्रमुख गाय की नस्लों का विस्तार से अध्ययन करेंगे।

भारत में गायों की नस्लें

भारत में मवेशियों को आमतौर पर दूध और दुग्ध उत्पादों के लिए पाला जाता है। हिंदू धर्म में गाय को पवित्र माना गया है और इसे मारा नहीं जाता। ज़ेबू (Zebu) नस्ल की गायें मुख्य रूप से भारत और एशिया, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं। 

भारतीय गायों का वैज्ञानिक नाम Bos indicus है और यह Bovidae परिवार से संबंधित हैं। भारतीय गायों की नस्लों ने भारतीय लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और निभा रही हैं। 

नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, देश में लगभग 50 गायों की नस्लें हैं, जिनमें दुग्ध उत्पादक, कार्य के लिए और दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त नस्लें शामिल हैं।

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गायों की विभिन्न नस्लें

भारत में गायों की नस्लों को मुख्यतः उनके पालन के उद्देश्य के आधार पर वर्गीकृत किया गया है। इस वर्गीकरण के अनुसार, भारत में गायों की नस्लों के प्रकार हैं:

  • दुग्ध उत्पादक नस्लें (Dairy or Milch breeds)
  • दुग्ध और कार्य के लिए उपयोगी नस्लें (Dual Purpose breeds)
  • खेती के कार्य के लिए उपयोगी नस्लें  (Draught breeds)

1. दुग्ध उत्पादक नस्लें

इन नस्लों की गायें अधिक मात्रा में दूध देती हैं, जबकि इनके बैल कमजोर श्रमिक होते हैं। भारतीय दुग्ध नस्लों में साहीवाल, रेड सिंधी, गिर और थारपारकर शामिल हैं। ये नस्लें आम तौर पर 1600 किलोग्राम से अधिक दूध देती हैं।

2. दुग्ध और कार्य के लिए उपयोगी नस्लें

इन नस्लों की गायें औसत मात्रा में दूध देती हैं और बैल श्रम के लिए उपयुक्त होते हैं। ये नस्लें प्रति बार प्रसव में 500 से 1500 किलोग्राम दूध देती हैं। उदाहरण: हरियाणा, कांकरेज, थारपारकर।

3. खेती के कार्य के लिए उपयोगी नस्लें 

इन नस्लों की गायें औसतन प्रति बार प्रसव में 500 किलोग्राम से कम दूध देती हैं, लेकिन बैल मजबूत श्रमिक होते हैं। ये आमतौर पर सफेद रंग की होती हैं। 

जोड़ी में बैल 1000 किलोग्राम तक भार खींच सकते हैं और दिन में 30-40 किलोमीटर की दूरी तय कर सकते हैं। इस श्रेणी में हल्लिकर, उम्बलाचेरी, अमृतमहल, कंगायम जैसे उदाहरण शामिल हैं।

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भारत की प्रमुख दुग्ध नस्लें   

1. गिर नस्ल

  • उत्पत्ति: गुजरात के सौराष्ट्र (गिर जंगल)
  • अन्य राज्य: महाराष्ट्र, राजस्थान
  • त्वचा का रंग: सफेद शरीर पर चॉकलेट ब्राउन, गहरे लाल या काले धब्बे
  • सींग: अर्धचंद्राकार
  • दूध उत्पादन: 1200 से 2200 किलोग्राम

2. साहीवाल नस्ल

  • उत्पत्ति: मोंटगोमरी क्षेत्र (अब पाकिस्तान)
  • अन्य नाम: लोला, लंबी बार, मोंटगोमरी, मुल्तानी, तेली
  • रंग: हल्का लाल या पीला, सफेद धब्बों के साथ
  • विशेषता: भारत की सबसे अधिक दूध देने वाली नस्ल
  • दूध उत्पादन: 1600 से 3500 किलोग्राम

 3. रेड सिंधी नस्ल

  • उत्पत्ति: कराची व हैदराबाद (अब पाकिस्तान)
  • रंग: गहरे से हल्के लाल रंग के साथ सफेद धारियाँ
  • दूध उत्पादन: 1250 से 2200 किलोग्राम

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द्वैत उपयोगी नस्लें

1. थारपारकर नस्ल

  • उत्पत्ति: थारपारकर (अब पाकिस्तान), राजस्थान में भी पाई जाती है
  • अन्य नाम: व्हाइट सिंधी, ग्रे सिंधी, थारी
  • रंग: सफेद या हल्का ग्रे
  • दूध उत्पादन: 1800 से 2600 किलोग्राम
  • बैल: कृषि व भार ढोने के लिए उपयुक्त

2. हरियाणा नस्ल

  • उत्पत्ति: हरियाणा के रोहतक, हिसार, जींद, गुरुग्राम
  • अन्य राज्य: पंजाब, यूपी, एमपी
  • सींग: छोटे, शरीर मजबूत
  • दूध उत्पादन: 800 से 1600 किलोग्राम
  • बैल: मजबूत श्रमिक

3. कांकरेज नस्ल

  • अन्य नाम: वड़ाड, वाघेड, वधियार
  • उत्पत्ति: गुजरात के कच्छ और राजस्थान के बारमेर, जोधपुर क्षेत्र
  • रंग: स्टील ग्रे से सिल्वर ग्रे
  • चाल: अनोखी “सवा चाल”
  • दूध उत्पादन: लगभग 1500 किलोग्राम
  • बैल: तेज और मजबूत, गाड़ी व हल जोतने में उपयुक्त

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खेती के कार्य के लिए उपयोगी नस्लें 

1. हल्लिकर नस्ल

  • उत्पत्ति: कर्नाटक (विजयनगर राज्य)
  • रंग: ग्रे या डार्क ग्रे
  • आकार: मजबूत, मंझोला, उन्नत माथा और लंबे सींग
  • विशेषता: उत्कृष्ट ट्रॉटिंग क्षमता और भार वहन

 2. अमृतमहल नस्ल

  • उत्पत्ति: कर्नाटक के हासन, चिकमंगलूर और चित्रदुर्ग जिलों में
  • रंग: ग्रे से लेकर काला, थूथन, पैर और पूंछ काले
  • सींग: लंबे और नुकीले

 3. कंगायम नस्ल

  • अन्य नाम: कोंगनाड, कोंगु
  • उत्पत्ति: तमिलनाडु (ईरोड, धारापुरम, कोयंबटूर)
  • रंग: गायें सफेद या ग्रे, बैल के शरीर के आगे व पीछे हिस्सों में काले निशान
  • सींग: पीछे की ओर हल्के मुड़े हुए, आंखें बड़ी और काली पट्टियों से घिरी