डांगी मवेशी महाराष्ट्र के डांग घाटी और इसके आस-पास के पहाड़ी इलाकों की एक महत्वपूर्ण स्थानीय नस्ल है। यह नस्ल मुख्य रूप से महाराष्ट्र के ठाणे जिले, नासिक के सिन्नर और इगतपुरी तालुका, तथा अहमदनगर के अकोला तालुका में पाई जाती है।
इसके अलावा, गुजरात के डांग जिले के पहाड़ी और वर्षा-प्रधान क्षेत्रों को इस नस्ल का मूल स्थान माना जाता है। डांगी मवेशी सह्याद्री पर्वतीय जंगलों के पास के क्षेत्रों में बहुतायत में पाए जाते हैं, जहाँ जलवायु नमीयुक्त और कृषि संसाधन सीमित होते हैं। यह नस्ल कठिन पर्यावरणीय परिस्थितियों में भी बेहतर प्रदर्शन करने के लिए जानी जाती है।
डांगी मवेशी अपनी बनावट और कार्यक्षमता के कारण देओनी नस्ल के समान मानी जाती है। यह गिर, रेड सिंधी और साहीवाल जैसी प्रसिद्ध दूधारू नस्लों के समूह में भी सम्मिलित की जाती है।
इस नस्ल को स्थानीय भाषा में "कनाड़ी" नाम से भी जाना जाता है। भारत में डांगी मवेशियों की कुल अनुमानित आबादी लगभग 2 से 2.5 लाख के बीच है, जो इसे एक महत्वपूर्ण देशी नस्ल बनाती है।
डांगी मवेशी अपने मजबूत और धीमे लेकिन टिकाऊ श्रम प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं। ये विशेषकर भारी वर्षा वाले क्षेत्रों, दलदली धान के खेतों और ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाकों में काम करने के लिए उपयुक्त माने जाते हैं।
मुख्यतः चराई पर आधारित इन मवेशियों का उपयोग खेत की जुताई, हल चलाने, लकड़ी लाने और अन्य भारी श्रम वाले कार्यों में किया जाता है।
ये पशु प्रति घंटे लगभग 2 से 3 मील की रफ्तार से भारी सामान जैसे लकड़ियाँ आसानी से ढो सकते हैं और एक दिन में 20 से 24 मील की दूरी तय करने में सक्षम होते हैं।
हालांकि, डांगी गायें दूध उत्पादन में अपेक्षाकृत कमजोर होती हैं, लेकिन वैज्ञानिक व नस्ल सुधार कार्यक्रमों के माध्यम से इनके दुग्ध उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास जारी हैं।
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डांगी मवेशियों को उनके शरीर के रंग के आधार पर छह प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
डांगी मवेशी मध्यम से बड़े आकार के होते हैं और इनका शरीर मजबूत, संतुलित और टिकाऊ होता है। इनकी छाती गहरी, कंधे मजबूत और पीठ छोटी होती है। इनकी टांगें छोटी लेकिन मज़बूत होती हैं, और खुर काले, कठोर तथा मजबूत होते हैं, जो इन्हें नमीयुक्त और फिसलन भरे इलाकों में भी बेहतर पकड़ देते हैं।
इनकी त्वचा मध्यम मोटाई की होती है, जिसमें एक प्राकृतिक तैलीय परत मौजूद रहती है जो बारिश से सुरक्षा देती है। सिर का आकार मध्यम होता है, कान छोटे और सींघ मोटे लेकिन छोटे होते हैं, जो बाहर की ओर मुड़े होते हैं। माथा थोड़ा उभरा हुआ होता है, और थूथन बड़ा होता है। कूबड़ मध्यम आकार का और मजबूत होता है, जबकि गलकंबल थोड़ा झूलता है।
नर डांगी मवेशी का औसतन वजन 310 से 330 किलोग्राम के बीच होता है, जबकि मादा मवेशी का वजन लगभग 220 से 250 किलोग्राम के बीच होता है।
डांगी गायें दूध उत्पादन में कम मात्रा देती हैं, फिर भी ग्रामीण क्षेत्रों में इनका उपयोग दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किया जाता है।
डांगी मवेशी न केवल एक मजबूत कार्यशील नस्ल है, बल्कि यह भारत की समृद्ध पशुधन परंपरा का भी एक अहम हिस्सा है। सह्याद्री क्षेत्र की कठोर परिस्थितियों में भी इसकी कार्यक्षमता इसे अन्य नस्लों से अलग बनाती है।
हालांकि दूध उत्पादन की क्षमता सीमित है, लेकिन इसकी उपयोगिता, सहनशीलता और मेहनती स्वभाव इसे पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्रों के किसानों के लिए अत्यंत उपयोगी बनाते हैं।