Ad

फसलों में बीजों से होने वाले रोग व उनसे बचाव

Published on: 16-Aug-2021

कई रोग बीज जनित होते हैं। यानी कि बीज के साथ ही किसी रोग संक्रमण के कारक मौजूद होते हैं। जैसे ही उन्हें विकास करने के लिए अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थिति मिलती है रोग का प्रसार तेज हो जाता है। इन रोगों की जानकारी होना किसानों के लिए बेहद जरूरी है। यदि वह इन रोगों के बारे में जान लेंगे तो फसलों में होने वाले व्यापक नुकसान से बचा जा सकता है।

बीजों से होने वाले रोग व उनसे बचाव

धान की फसल

धान की फसल में 1121 एवं 1509 किस्म के धान में आने वाला बकानी रोग इसका जीता जागता उदाहरण है। धान में बकानी एवं पदगलन रोग भी बीज जनित होता है। बकानी रोग में चंद पौधे सामान्य से ज्यादा लम्बे हो जाते हैं और धीरे करके जल जाते हैं। यह रोग फसल में बहुत तेजी से फैलता है। इस रोग से बचाव के लिए प्रारंभ में ही संक्रमित पौधों को उखाड देना चाहिए। उखाड़ते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि गीली मिट्टी खेत में ज्यादा न फैले अन्यथा मिट्टी के साथ छिटक कर रोगाणु ज्यादा जगह को प्रभावित कर सकते हैं।

उपचार

रोग रहित बीज का प्रयोग करें। दो प्रतिशत नमक का घोल बनाकर उनमें बीज को भिगोएं। थोथे बीज को फैंक देंं। बाकी बचे बीज को कई बार साफ पानी से साफ करें ताकि उसमें नमक का अंश न रहे। बृद्धि कारक नाइट्रोजन आदि उर्वरकों का रोग संक्रमण के दौरान बिल्कुल भी प्रयोग न करें। ssबीज को उपचारित करके ही बोएं। रोग संक्रमण के लक्षण प्रदर्शित होने पर प्रभावी फफूंदनाशी का छिड़काव भी करें साथ ही बालू में मिलाकर खेत में बुरकाव भी करें।

ये भी पढ़ें: धान की खेती की रोपाई के बाद करें देखभाल, हो जाएंगे मालामाल

गेहूं की फसल

गेहूं की फसल में लगने वाला कंडुआ रोग बीज जनित ही होता है। ज्यादातर किसान बीज को उपचारित करके नहीं बेचते। बीज विक्रेता कई राज्यों में बीज में दवा नहीं मिलाते। यह काम वह दुकानदारों को दोहरी परेशानियों से बचाने के लिए करते हैं। पहला दवा मिश्रित बीज से दुकान में बैठने के दौरान दिक्कत होती है। दूसरा बीज बचने पर उसे मण्डी आदि में बेच कर नुकसान की भरपाई नहीं हो पाती। गेहूं का कंडुआ रोग बीज के भ्रूण में होता है। वह पौधे के विकास के साथ ही बढ़ता रहता है। जब फसल में बाली आने वाली होती है तब वह अपना प्रभाव दिखाता है। किसी भी संक्रमित बाली में लाखों रोगाणु होते हैं। जब हवा चलती है तो यह रोगाणु एक बाली से उडकर दूसरी बाली में जाते हैं। इससे अधिकांश फसल प्रभावित हो जाती है।

बचाव

फसल को इस रेाग से बचाने के लिए बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। इसके लिए 2.5 ग्राम थायरम या बाबस्टीन आदि किसी भी गैर प्रतिबंधित फफूंदनाशक दवा से प्रति किलोग्राम बीज में मिलाकार उपचार करना चाहिए। इसके बाद ही बीज को खेत में बोना चाहिए।

सरसों कुल की फसलों के रोग

बंद गोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, सरसों एवं मूली फसल में कृष्ण गलन रोग काफी नुकसान पहुंचाता है। यह रोग जीवाणु जनित होता है। रोग का प्रसार पत्त्यिों के किनारों पर हरिमाहीन धब्बों के बनने की प्रक्रिया से शुरू होता है। पत्तियों की शिराएं भूरी होकर बाद में काली पड़ जाती हैं। धीरे धीरे पत्तियां पीली पड़कर झड़ने लगती हैं।

ये भी पढ़ें: सरसों के कीट और उनसे फसल सुरक्षा 

बचाव

रोग रहित बीज का प्रयोग करेंं। बीज को 50 डिग्री सेल्सियस गर्म पानी में आधा घण्टे तक रखेंं। संक्रमित पौधों को उखाड़ दें। रोग से छुटकारा पाने के लिए बीज का रासायनिक उपचार करें। इसके लिए एग्रीमाइसिन 100 की एक प्रतिशत अथवा स्टेप्टोसाइक्लिन एक प्रतिशत का उपयोग करें। खडी फसल पर स्टेप्टोसाइक्लिन 18 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। इसके अलावा कॉपरआक्सीक्लोराइड का तीन प्रतिशत की दर से छिड़काव करना चाहिए।

प्याज का बैंगनी धब्बा रोग

यह रोग समूचे प्याज लहसुन की खेती वाले इलाकों में होता है। यह रोग पहले सफेद धंसे विक्षतों के रूप में दिखाई देता है। धीरे धीरे इनका आकार बढ़ता है और बाद में यह धारी का आकार ले लेते हैं। धीरे धीरे इनका रंग भूरा हेाता है और पौधा इसी स्थान से गलना आरंभ हो जाता है। इसके बाद सूखने लगता है।

बचाव

बचाव के लिए बीज का थीरम से 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करने के बाद बोना चाहिए। फसल पर कार्बेन्डाजिम एवं मेन्कोजेब के मिश्रण का छिड़काब करना चाहिए। रोग का लक्षण दिखाई देने पर टोबुकोनाजोल 50 प्रतिशत एवं ट्राइफ्लोक्सीस्ट्राबिन 25 प्रतिशत का 80 से 100 ग्राम मात्रा में 200 लीटर पानी के साथ प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए।

बाजरा की फसल

बाजरा की फसल में भी अर्गट रोग लगता है। इसके अलावा हरी बाली रोग भी लगता है। इस तरह के रोगों का पता आरंभिक अवस्था में नहीं चलता। बाद में बाली बनने की अवस्था पर पता चलने पर शुरूआत में ही यदि उपचार किए जाए तो ठीक अन्यथा बालियों में दाने ही नहीं बनते और किसानों को केवल चारे से ही संतुष्ट होना पड़ता है। इससे बचाव के लिए प्रतिरोधी किस्मों की बिजाई करें। बीज को प्रभावी दवाओं से उपचारित करके बोएंं।

श्रेणी