गार्सिनिया की खेती: सेहत और मुनाफे का हराभरा कारोबार

Published on: 28-Oct-2025
Updated on: 28-Oct-2025
गार्सिनिया की खेती
समाचार किसान-समाचार

भारत में गार्सिनिया या कोकम की खेती एक उभरता हुआ कृषि व्यवसाय है, जो छोटे किसानों से लेकर बड़े उत्पादकों तक को आकर्षित कर रहा है। खासतौर पर गार्सिनिया कैम्बोजिया जैसी प्रजातियां अपने औषधीय गुणों और पाक उपयोगों के चलते घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में खास मांग में हैं। भारत की जैव विविधता और अनुकूल मौसम इसे गार्सिनिया उत्पादन के लिए एक आदर्श स्थल बनाते हैं, जिससे यह टिकाऊ कृषि और ग्रामीण आय बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गया है।

गार्सिनिया के लिए आदर्श जलवायु

गार्सिनिया गर्म और नम उष्णकटिबंधीय या उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में अच्छी तरह पनपता है। इसके लिए 20°C से 30°C तापमान और उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है। अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी बेहद जरूरी है क्योंकि अत्यधिक नमी पौधों को नुकसान पहुँचा सकती है। यह पौधा 1800 मीटर की ऊंचाई तक उगाया जा सकता है और प्रतिदिन कम से कम 6 घंटे की सीधी धूप जरूरी होती है।

उपयुक्त मिट्टी का चयन

गार्सिनिया को दोमट मिट्टी सर्वाधिक पसंद है, जिसमें बालू, गाद और चिकनी मिट्टी का संतुलन होता है। मिट्टी की जल धारण और निकासी क्षमता अच्छी होनी चाहिए। मिट्टी का pH 6.0 से 7.0 के बीच होना चाहिए और इसमें पर्याप्त जैविक पदार्थ मौजूद होने चाहिए।

गार्सिनिया खेत की तैयारी

गार्सिनिया की बागवानी से पहले खेत की अच्छी तरह सफाई और जोताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। पौधे रोपने के लिए 60 x 60 x 60 सेमी आकार के गड्ढे खोदें। हर गड्ढे में अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद या कम्पोस्ट, साथ में थोड़ा सुपरफॉस्फेट मिलाकर डालें। पौधों के बीच की दूरी कम से कम 6 x 6 मीटर रखें।

गार्सिनिया की उन्नत किस्में

व्यावसायिक और औषधीय दृष्टि से गार्सिनिया की कई किस्में लोकप्रिय हैं:

ये भी पढ़ें: काजू की खेती कैसे करें: काजू की खेती से किसान होंगे मालामाल

कोकम की खेती की प्रमुख किस्में:

  • गार्सिनिया इंडिका (कोकम): पश्चिमी घाटों में प्रमुख
  • गार्सिनिया गुम्मिगुट्टा (मालाबार इमली): मसाले व एचसीए के लिए प्रसिद्ध
  • गार्सिनिया मैंगोस्टाना (मैंगोस्टीन): एक मूल्यवान उष्णकटिबंधीय फल
  • गार्सिनिया ज़ैंथोकाइमस (पीला मैंगोस्टीन): औषधीय गुणों के लिए

अन्य उल्लेखनीय किस्में:

  • गार्सिनिया एट्रोविरिडिस: दक्षिण भारत में प्रचलित
  • गार्सिनिया पेडुनकुलाटा: असम में उपयोगी
  • गार्सिनिया मोरेला व टैलबोटी: महाराष्ट्र, केरल व कर्नाटक में उगाई जाती हैं

कोकम की खेती की बुवाई का समय

गार्सिनिया की रोपाई के लिए मानसून (जून से सितंबर) का मौसम सबसे उपयुक्त होता है। इस दौरान नमी और तापमान पौधों की वृद्धि के लिए आदर्श होते हैं।

कोकम की खेती के पौधे तैयार करने की विधि

1. बीज से पौधे तैयार करना

ताजे बीजों को साफ कर, गीली मिट्टी में ½ इंच की गहराई पर बोएं। अंकुरण के बाद पौधों को अलग गमलों में स्थानांतरित करें।

2. कलम से पौध तैयार करना

स्वस्थ शाखाओं की कटिंग लें, रूटिंग हार्मोन लगाएं। इन्हें नम मिट्टी में रोपें और जड़ों के विकसित होने पर खेत में लगाएं।

खाद और उर्वरक प्रबंधन

गार्सिनिया के लिए जैविक और रासायनिक उर्वरकों का संतुलित उपयोग फायदेमंद होता है। गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट: मिट्टी की उर्वरता बढ़ाते हैं। प्रति पौधा 2 किलो FYM (समय अनुसार बढ़ा सकते हैं) आवश्यकता अनुसार सुपरफॉस्फेट या नीम खली मिलाई जा सकती है।

Kokum Cultivation -सिंचाई प्रबंधन

  • प्रारंभिक वर्षों में नियमित सिंचाई आवश्यक
  • ड्रिप सिंचाई प्रणाली अपनाने से गहरी जड़ें विकसित होती हैं
  • जल निकासी पर विशेष ध्यान दें – जलभराव से जड़ों को नुकसान होता है
  • सूखे के मौसम में अधिक देखभाल आवश्यक

तुड़ाई और भंडारण तकनीक

तुड़ाई का समय

अप्रैल से मई के बीच, जब फल बैंगनी या गहरे लाल रंग के हों। हाथ से या जालीदार उपकरण से सावधानीपूर्वक तोड़ना चाहिए। नीचे प्लास्टिक की चादर बिछाकर शाखाओं को हिला कर फल इकट्ठा करना भी प्रभावी है

भंडारण

पके फल जल्दी खराब होते हैं। सामान्य तापमान पर कुछ दिनों के लिए, या 13°C और 86% आर्द्रता पर 28 दिनों तक सुरक्षित रखे जा सकते हैं।

Merikheti आपको हमेशा ताज़ा जानकारी उपलब्ध कराता है। यहाँ ट्रैक्टरों के नए मॉडल और उनके कृषि उपयोग से जुड़ी ख़बरें नियमित रूप से प्रकाशित की जाती हैं। प्रमुख ट्रैक्टर ब्रांड्स जैसे जॉन डियर ट्रैक्टरमहिंद्रा ट्रैक्टर, आयशर, न्यू हॉलैंड ट्रैक्टर आदि की मासिक सेल्स रिपोर्ट भी उपलब्ध कराई जाती है, जिसमें थोक और खुदरा बिक्री की विस्तृत जानकारी शामिल होती है।