काजू (Anacardium occidentale L.) की उत्पत्ति का स्थान पूर्वी ब्राज़ील माना जाता है। बाद में यह फसल दुनिया के कई देशों में फैली। भारत में काजू की शुरुआत सबसे पहले गोवा से हुई और यहीं से यह धीरे-धीरे देश के अन्य हिस्सों में फैल गया। आज भारतीय काजू अपनी उत्कृष्ट गुणवत्ता और स्वाद के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
भारत न केवल काजू का सबसे बड़ा उत्पादक है, बल्कि यह दुनिया का सबसे बड़ा प्रोसेसर और निर्यातक भी है। भारतीय काजू की मांग विदेशों में इतनी अधिक है कि यह किसानों के लिए बेहद लाभकारी नकदी फसल साबित हो रही है।
भारत में काजू की खेती मुख्य रूप से पश्चिमी तट और पूर्वी तट पर होती है:
काजू की खेती के लिए सबसे उपयुक्त मिट्टी गहरी रेतीली दोमट और लेटराइट मिट्टी मानी जाती है, जिसमें जल निकासी अच्छी हो। भारी चिकनी मिट्टी उपयुक्त नहीं होती, क्योंकि काजू जल जमाव सहन नहीं कर पाता।
यह फसल 20°C से 38°C तापमान, 60-95% आर्द्रता और 2000-3500 मिमी वार्षिक वर्षा वाली जलवायु मेंअच्छा उत्पादन देती है। यह उष्णकटिबंधीय फसल है, इसलिए गर्म और आर्द्र वातावरण इसकी सफलता के लिए बेहद जरूरी है।
काजू के नए बाग की स्थापना के लिए भूमि की सही तैयारी आवश्यक है:
1. सामान्य रोपण प्रणाली:
2. उच्च घनत्व रोपण:
भारत में कई उन्नत किस्में विकसित की गई हैं, जो अधिक उपज और गुणवत्तापूर्ण नट्स प्रदान करती हैं। इनमें प्रमुख हैं:
ओए-1 (बल्ली-2), वेंगुरला-4, वेंगुरला-7, उल्लाल-2, उल्लाल-4, बीपीपी-1, बीपीपी-2, टी-40
इसके अलावा, W-180 किस्म को "काजू का राजा" कहा जाता है, क्योंकि इसमें कई बायोएक्टिव कंपाउंड पाए जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक लाभकारी हैं।
काजू की अधिक उपज के लिए संतुलित खाद और उर्वरक जरूरी हैं:
पौधों की समय-समय पर छंटाई करने से उनका ढांचा मजबूत होता है। सूखी व रोगग्रस्त शाखाओं को तुरंत हटा देना चाहिए। नई कोपलों और पत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों पर नियंत्रण करना जरूरी है।
काजू के पेड़ चौथे वर्ष से फल देना शुरू कर देते हैं, लेकिन अच्छी उपज 10वें वर्ष से मिलती है। प्रति पेड़ 10-15 किलोग्राम नट और 70-100 किलोग्राम काजू सेब की उपज मिल सकती है। कटाई का समय फरवरी से मई तक होता है। केवल गिरे हुए नट्स को इकट्ठा किया जाता है। नट्स को धूप में सुखाकर जूट के बोरों में भरकर ऊंचे स्थान पर रखा जाता है ताकि नमी का असर न हो।
काजू स्वादिष्ट होने के साथ-साथ पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
काजू की खेती किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी व्यवसाय है। सही किस्मों, उचित खाद-उर्वरक और अच्छे प्रबंधन से किसान उच्च उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। भारतीय काजू की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग को देखते हुए आने वाले वर्षों में इसका निर्यात और लाभ और भी अधिक बढ़ने की संभावना है।
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