गाय, भैंस या भेड़-बकरी, सभी को चारे की कमी का सामना करना पड़ता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, हरा-सूखा चारा और मिनरल मिक्सर की उपलब्धता में लगातार कमी हो रही है।
इस कमी के कारण पशुपालकों को कठिनाई होती है, लेकिन इसके बावजूद उनकी आय दोगुनी हो सकती है। बाजार में चारे की कमी के साथ साइलेज और हे की मांग भी बढ़ गई है। जब हरा चारा प्रचुर मात्रा में होता है, तो उसे साइलेज में बदलकर स्टॉक किया जाता है।
देशभर में कई सरकारी संस्थान किसानों और पशुपालकों को हे और साइलेज बनाने की तकनीक सिखा रहे हैं। थोड़ी सी ट्रेनिंग के बाद, किसान और पशुपालक अपने पशुओं को पूरे साल सस्ता हरा चारा प्रदान कर सकते हैं और इसे बेच भी सकते हैं।
एनिमल एक्सपर्ट का कहना है कि यह प्रशिक्षण केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा द्वारा प्रदान किया जाता है। इस प्रशिक्षण के बाद, घर पर हे और साइलेज बनाकर चारे की कमी को पूरा किया जा सकता है।
फोडर एक्सपर्ट ने किसानों को बताया है कि साइलेज और हे घर पर तैयार करने के लिए विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
तैयार किए गए साइलेज और हे को बिना उचित ट्रेनिंग और एक्सपर्ट की सलाह के पशुओं को न खिलाएं।
साइलेज बनाने से पहले, हरे चारे को सुबह काटें ताकि उसे पूरे दिन सूखने का समय मिल सके। साइलेज बनाने के लिए चारे के पत्तों को सूखा होना चाहिए।
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चारे को सीधे जमीन पर कभी भी न सुखाएं। इसे लोहे की जाली या स्टैंड पर रखकर सुखाना चाहिए, या छोटे-छोटे गठ्ठर बनाकर लटका सकते हैं। जमीन पर चारा डालने से फंगस लगने की संभावना बढ़ जाती है।
साइलेज प्रक्रिया में तब शामिल हों जब चारे की नमी 15 से 18 प्रतिशत रह जाए। और ध्यान रखें कि पशुओं को कभी भी फंगस लगा चारा न दें।
फोडर एक्सपर्ट के अनुसार, साइलेज बनाने के लिए सही फसल का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। साइलेज बनाते समय चारे में फंगस न लगे, इसके लिए पतले तने वाली फसलों का चुनाव करें।
फसल को पकने से पहले काट लें और तनों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर ऊपर बताए गए तरीकों से सुखा लें। पतले तने वाली फसलें जल्दी सूख जाती हैं, जिससे फायदा होता है। नमी की जांच के लिए तने को हाथ से तोड़कर देखें।