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राठी गाय: एक अमूल्य भारतीय नस्ल

Published on: 10-Mar-2025
A healthy white and brown-spotted cow with a hump and curved horns walking on a dirt path near a farm with a stone wall and a shaded shelter in the background
पशुपालन पशुपालन गाय-भैंस पालन

भारतीय देसी गायों में राठी नस्ल एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह एक अत्यंत सुंदर और उच्च दूध उत्पादन करने वाली नस्ल है। दुर्भाग्यवश, विदेशी गायों के बढ़ते प्रभाव के चलते हम अपनी देसी नस्लों को भूलते जा रहे हैं। 

राठी जैसी कई अन्य भारतीय नस्लें भी धीरे-धीरे लुप्त होने के कगार पर हैं। हजारों वर्षों में प्राकृतिक रूप से विकसित हुई इन गायों में अनूठे गुण पाए जाते हैं। 

यह किसी प्रयोगशाला में निर्मित नस्ल नहीं है, बल्कि प्रकृति द्वारा प्रदत्त एक अनमोल उपहार है। भारत की मिट्टी में जन्मी और पली-बढ़ी ये नस्लें हमारे लिए अमूल्य धरोहर हैं।

राठी गायों का मूल स्थान कहा है   

राठी गायों की उत्पत्ति राजस्थान में हुई है। यह मुख्य रूप से चितकबरे रंग की होती है और इसकी शारीरिक बनावट साहीवाल गाय से मिलती-जुलती है, जबकि रंग गीर और डांगी नस्ल के समान होता है। 

बीकानेर जिले के लूणकरसर क्षेत्र को राठी गायों का मूल स्थान माना जाता है। ये गायें झुंड में रहने वाली होती हैं और दिनभर कई किलोमीटर तक विचरण करती हैं। 

अत्यधिक गर्मी सहन करने की इनकी क्षमता अद्भुत होती है। सीमित भोजन और प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद, यह प्रतिदिन 10 से 20 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती हैं। 

इस नस्ल को पालने वाले गौपालकों को ‘राठ’ कहा जाता है। कभी इन गायों के झुंड राजस्थान के बड़े हिस्से में देखे जा सकते थे, लेकिन अब इनकी संख्या तेजी से घट रही है।

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राठी नस्ल की घटती संख्या के कारण  

राठी गायों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही है, जिसका मुख्य कारण इनका अन्य राज्यों में पलायन है। अच्छी गुणवत्ता वाली राठी गायों को दूर-दराज के क्षेत्रों में ले जाया गया, जिससे स्थानीय स्तर पर इनकी उपलब्धता कम हो गई।

इसके अलावा, राठी नस्ल के नंदी (बैल) की अनुपलब्धता भी इस नस्ल के प्रजनन में बाधा बन रही है। गौपालकों को राठी नस्ल के महत्व के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है। 

इस दिशा में दिल्ली के दिव्य धाम आश्रम की कामधेनु गौशाला महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और राठी नस्ल के संरक्षण के प्रयास कर रही है।

राठी नंदी का महत्व 

किसी भी नस्ल को बचाने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले नंदी का चयन अत्यंत आवश्यक है। हालांकि बीकानेर क्षेत्र में राठी नंदी आसानी से मिल जाते हैं, लेकिन उनकी वंशावली अज्ञात होने के कारण उन्हें नस्ल सुधार कार्यक्रमों में उपयोग नहीं किया जा सकता। 

कामधेनु गौशाला ने वर्षों की खोज के बाद दो शुद्ध राठी नंदी खोज निकाले हैं, जिनमें से एक ने सीमेन (वीर्य) देना भी शुरू कर दिया है। इन नंदियों की सहायता से राठी नस्ल के संरक्षण में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा।

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सरकार के द्वारा चालाए गए  राठी नस्ल संरक्षण कार्य       

राजस्थान सरकार ने बीकानेर और नोहर में राठी नस्ल के संरक्षण और संवर्धन के लिए विभिन्न प्रयास किए हैं। हालांकि, इस दिशा में और अधिक ठोस कदम उठाने की जरूरत है। 

राठी नस्ल भारतीय संस्कृति और कृषि विरासत का हिस्सा है, जिसे बचाना हमारा दायित्व है। नस्ल की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ इसकी गुणवत्ता पर भी ध्यान देना आवश्यक है। 

इसके लिए उचित प्रजनन प्रक्रिया अपनाकर उच्च गुणवत्ता वाली गायों को संरक्षित किया जाना चाहिए।  

कई गौपालकों का ध्यान केवल इस बात पर होता है कि गाय गर्भवती हो और दूध देना शुरू करे, लेकिन वे यह सुनिश्चित नहीं करते कि नवजात बछड़ा या बछड़ी नस्ल के मानकों को पूरा करता है या नहीं। 

हमें केवल वर्तमान की चिंता तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि भविष्य को सुरक्षित रखने के प्रयास भी करने चाहिए।