हल्दी भारतीय मसालों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह सिर्फ रसोई तक ही सीमित नहीं है, बल्कि औषधीय गुणों और धार्मिक उपयोगों के कारण इसकी मांग हर मौसम में बनी रहती है। हल्दी के बिना भारतीय व्यंजन अधूरे लगते हैं। यही कारण है कि हल्दी को “गोल्डन स्पाइस” भी कहा जाता है। इसके औषधीय तत्व करक्यूमिन (Curcumin) शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं और कई आयुर्वेदिक दवाओं में इसका प्रयोग किया जाता है।
किसानों के लिए यह नकदी फसल (Cash Crop) बेहतर आय का जरिया बन सकती है क्योंकि इसकी मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में लगातार बनी रहती है। हल्दी की खेती एक बार करने पर लंबे समय तक लाभ देती है। विशेष रूप से मई से जून का समय हल्दी की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।
आज हम आपको हल्दी की उन टॉप 5 किस्मों के बारे में बता रहे हैं, जो न केवल जल्दी तैयार होती हैं बल्कि ज्यादा उत्पादन भी देती हैं।
यह किस्म किसानों के लिए बहुत लाभदायक साबित हो सकती है। इसे केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा अनुसंधान संस्थान (CIMAP) द्वारा विकसित किया गया है।
यह किस्म किसानों के बीच लोकप्रिय है क्योंकि इसके कंद लंबे और हल्की लालिमा लिए हुए पीले रंग के होते हैं।
यह किस्म अपनी रंगत और उपज क्षमता के लिए जानी जाती है।
इस किस्म की खूबसूरती और उत्पादन क्षमता इसे विशेष बनाती है।
यह किस्म हल्दी की सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्मों में से एक है।
हल्दी की अच्छी पैदावार के लिए सही बुवाई तकनीक का चुनाव बेहद जरूरी है। इसके लिए दो प्रमुख विधियां अपनाई जाती हैं:
1. समतल विधि
सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करके उसे समतल कर लिया जाता है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और कंद से कंद की दूरी 20 सेमी रखी जाती है। इस विधि से बुवाई आसान होती है और निराई-गुड़ाई में सुविधा रहती है।
2. मेढ़ विधि
इस विधि में दो प्रकार की पंक्ति प्रणाली अपनाई जाती है:
एकल पंक्ति विधि: 30 सेमी चौड़ी मेढ़ पर 20 सेमी की दूरी पर कंद लगाते हैं और ऊपर से 40 सेमी मिट्टी चढ़ाते हैं।
दो पंक्ति विधि: 50 सेमी चौड़ी मेढ़ पर दो पंक्तियाँ बनाई जाती हैं, जिनमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और कंद से कंद की दूरी 20 सेमी होती है। इसमें 60 सेमी मिट्टी चढ़ाई जाती है।
बुवाई के लिए 30 से 35 ग्राम के स्वस्थ और रोगमुक्त कंद चुनने चाहिए। कंदों को 5–6 सेमी गहराई पर लगाया जाता है। रोपण से पहले कंदों को इंडोफिल एम-45 (2.5 ग्राम) और वेभिस्टीन (1 ग्राम) प्रति लीटर पानी के घोल में 30–45 मिनट तक उपचारित करना चाहिए। इससे फसल को रोगों से बचाव मिलता है और अंकुरण बेहतर होता है।
हल्दी की खेती किसानों के लिए बेहतर आय का साधन है। सिम पीतांबर, सुंगधम, सोरमा, सुदर्शन और आरएच-5 जैसी उन्नत किस्मों को अपनाकर किसान कम समय में अधिक उत्पादन कर सकते हैं। इसके अलावा हल्दी की बाजार में हमेशा डिमांड रहती है, जिससे इसकी बिक्री में किसानों को नुकसान की आशंका बहुत कम होती है। सही किस्म का चुनाव और उचित बुवाई तकनीक अपनाने से किसान अपनी आमदनी दोगुनी तक कर सकते हैं।
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