हल्दी की टॉप 5 किस्में: ज्यादा उत्पादन देने वाली प्रमुख हल्दी की वैराइटी

Published on: 03-Oct-2025
Updated on: 06-Oct-2025
हल्दी की टॉप 5 किस्में
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हल्दी की प्रमुख किस्में: आधुनिक खेती में ज्यादा उत्पादन वाली वैराइटी

हल्दी भारतीय मसालों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह सिर्फ रसोई तक ही सीमित नहीं है, बल्कि औषधीय गुणों और धार्मिक उपयोगों के कारण इसकी मांग हर मौसम में बनी रहती है। हल्दी के बिना भारतीय व्यंजन अधूरे लगते हैं। यही कारण है कि हल्दी को “गोल्डन स्पाइस” भी कहा जाता है। इसके औषधीय तत्व करक्यूमिन (Curcumin) शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करते हैं और कई आयुर्वेदिक दवाओं में इसका प्रयोग किया जाता है।

किसानों के लिए यह नकदी फसल (Cash Crop) बेहतर आय का जरिया बन सकती है क्योंकि इसकी मांग घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में लगातार बनी रहती है। हल्दी की खेती एक बार करने पर लंबे समय तक लाभ देती है। विशेष रूप से मई से जून का समय हल्दी की बुवाई के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है।

आज हम आपको हल्दी की उन टॉप 5 किस्मों के बारे में बता रहे हैं, जो न केवल जल्दी तैयार होती हैं बल्कि ज्यादा उत्पादन भी देती हैं।

1. हल्दी की सिम पीतांबर किस्म

यह किस्म किसानों के लिए बहुत लाभदायक साबित हो सकती है। इसे केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा अनुसंधान संस्थान (CIMAP) द्वारा विकसित किया गया है।

  •  उत्पादन क्षमता: प्रति हेक्टेयर लगभग 65 टन हल्दी कंद।
  •  पकने की अवधि: 7 से 9 महीने।
  •  विशेषता: इस किस्म में कीट प्रकोप बहुत कम देखा जाता है और इसकी पत्तियां धब्बा रोग से सुरक्षित रहती हैं।
  •  लाभ: इस किस्म की खेती से किसानों को बेहतर क्वालिटी के साथ उच्च उत्पादन मिलता है, जिससे उन्हें बाजार में अच्छे दाम प्राप्त हो सकते हैं।

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2. हल्दी की सुंगधम किस्म

यह किस्म किसानों के बीच लोकप्रिय है क्योंकि इसके कंद लंबे और हल्की लालिमा लिए हुए पीले रंग के होते हैं।

  • उत्पादन क्षमता: प्रति एकड़ 80 से 90 क्विंटल।
  •  पकने की अवधि: 210 दिन।
  •  विशेषता: इस किस्म में हल्की सुगंध होती है, जिससे इसका बाजार मूल्य अधिक हो जाता है।
  •  लाभ: ज्यादा उत्पादन और बाजार में मांग अधिक होने के कारण किसानों की आमदनी बढ़ती है।

3. हल्दी की सोरमा किस्म

यह किस्म अपनी रंगत और उपज क्षमता के लिए जानी जाती है।

  • उत्पादन क्षमता: प्रति एकड़ 80 से 90 क्विंटल।
  • पकने की अवधि: 210 दिन।
  • विशेषता: इसके कंद नारंगी रंग के होते हैं, जो बाजार में ज्यादा आकर्षण पैदा करते हैं।
  • लाभ: निर्यात बाजार के लिए उपयुक्त किस्म है, क्योंकि विदेशी बाजारों में नारंगी रंग की हल्दी की मांग अधिक रहती है।

4. हल्दी की सुदर्शन किस्म

इस किस्म की खूबसूरती और उत्पादन क्षमता इसे विशेष बनाती है।

  • उत्पादन क्षमता: प्रति एकड़ 110 से 115 क्विंटल।
  • पकने की अवधि: 190 दिन (अन्य किस्मों से जल्दी तैयार)।
  • विशेषता: इसके कंद छोटे लेकिन सुंदर और आकर्षक आकार के होते हैं।
  • लाभ: जल्दी तैयार होने के कारण किसान समय पर फसल बेच सकते हैं और अगली फसल की तैयारी भी कर सकते हैं।

5. हल्दी की आरएच-5 किस्म

यह किस्म हल्दी की सबसे ज्यादा उत्पादन देने वाली किस्मों में से एक है।

  • पौधे की ऊँचाई: 80 से 100 सेंटीमीटर।
  • उत्पान क्षमता: प्रति एकड़ 200 से 220 क्विंटल।
  • पकने की अवधि: 210 से 220 दिन।
  • विशेषता: यह किस्म बड़े पैमाने पर व्यावसायिक खेती के लिए उपयुक्त है।
  •  लाभ: इसकी उपज क्षमता अधिक होने के कारण किसानों को अधिक लाभ मिलता है।

हल्दी की बुवाई का तरीका

हल्दी की अच्छी पैदावार के लिए सही बुवाई तकनीक का चुनाव बेहद जरूरी है। इसके लिए दो प्रमुख विधियां अपनाई जाती हैं:

1. समतल विधि

सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करके उसे समतल कर लिया जाता है। पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और कंद से कंद की दूरी 20 सेमी रखी जाती है। इस विधि से बुवाई आसान होती है और निराई-गुड़ाई में सुविधा रहती है।

2. मेढ़ विधि

इस विधि में दो प्रकार की पंक्ति प्रणाली अपनाई जाती है:

एकल पंक्ति विधि: 30 सेमी चौड़ी मेढ़ पर 20 सेमी की दूरी पर कंद लगाते हैं और ऊपर से 40 सेमी मिट्टी चढ़ाते हैं।

दो पंक्ति विधि: 50 सेमी चौड़ी मेढ़ पर दो पंक्तियाँ बनाई जाती हैं, जिनमें पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेमी और कंद से कंद की दूरी 20 सेमी होती है। इसमें 60 सेमी मिट्टी चढ़ाई जाती है।

हल्दी की बुवाई का सही तरीका

बुवाई के लिए 30 से 35 ग्राम के स्वस्थ और रोगमुक्त कंद चुनने चाहिए। कंदों को 5–6 सेमी गहराई पर लगाया जाता है। रोपण से पहले कंदों को इंडोफिल एम-45 (2.5 ग्राम) और वेभिस्टीन (1 ग्राम) प्रति लीटर पानी के घोल में 30–45 मिनट तक उपचारित करना चाहिए। इससे फसल को रोगों से बचाव मिलता है और अंकुरण बेहतर होता है।

हल्दी की खेती किसानों के लिए बेहतर आय का साधन है। सिम पीतांबर, सुंगधम, सोरमा, सुदर्शन और आरएच-5 जैसी उन्नत किस्मों को अपनाकर किसान कम समय में अधिक उत्पादन कर सकते हैं। इसके अलावा हल्दी की बाजार में हमेशा डिमांड रहती है, जिससे इसकी बिक्री में किसानों को नुकसान की आशंका बहुत कम होती है। सही किस्म का चुनाव और उचित बुवाई तकनीक अपनाने से किसान अपनी आमदनी दोगुनी तक कर सकते हैं।

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