रबी मौसम में गेहूं एक अत्यंत महत्वपूर्ण फसल है और इस समय गेहूं की बुआई का उपयुक्त दौर चल रहा है। किसानों की आय बढ़ाने और कम लागत में अधिक उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने कुछ आवश्यक सुझाव दिए हैं। संस्थान के अनुसार इस समय तापमान और वातावरण बुवाई के लिए एकदम अनुकूल है। इसलिए किसान बुआई का समय न चूकें और अपने क्षेत्र के अनुसार उपयुक्त किस्मों का चयन करें। संस्थान ने विशेष रूप से यह सलाह दी है कि किसान बीज केवल विश्वसनीय और प्रमाणित स्रोतों से ही खरीदें।
संस्थान के अनुसार गेहूं की अगेती बुआई (Early cultivation of wheat) नवंबर के पहले सप्ताह तक की जाती है, जबकि समय पर बुआई के लिए 20 नवंबर तक का समय उपयुक्त माना जाता है। देरी से बुआई करने पर पौधों की वृद्धि एवं दानों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, साथ ही गर्मी बढ़ने पर दानों के भराव पर भी असर पड़ता है।
किसानों को अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी की स्थिति के अनुसार ही किस्मों का चयन करना चाहिए। रोगों से बचाव के लिए दूसरे क्षेत्रों की किस्मों को न अपनाने की सलाह दी जाती है।
धान कटाई के बाद खेत में पराली की उपस्थिति की स्थिति में हैप्पी सीडर या स्मार्ट सीडर मशीनों का उपयोग करके सीधे गेहूं की बुआई करना लाभकारी है। इससे मिट्टी का स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहता है और पराली जलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती, जिससे पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होता।
बुआई से पहले बीजों का उपचार करना बेहद जरूरी है जिससे लूज स्मट, फ्लैग स्मट, करनाल बंट और सीडलिंग ब्लाइट जैसे बीज एवं मृदा जनित रोगों से फसल की सुरक्षा की जा सके। इसके लिए कार्बोक्सिन 75 WP, कार्बेंडाजिम 50 WP या टेबुकोनाजोल 2DS जैसे फफूंदनाशकों का निर्धारित मात्रा में उपयोग करना चाहिए। ध्यान रहे कि उपचारित बीज केवल बुआई के लिए ही उपयोग किए जाएं, इन्हें पशु चारे या भोजन में प्रयोग न करें।
खेती में उर्वरकों का प्रबंधन भूमि परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। सिंचाई समय पर और आवश्यकता अनुसार ही करें, अत्यधिक सिंचाई लागत बढ़ाती है और पौधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
देश के विभिन्न कृषि-आबोहवा क्षेत्रों के अनुसार गेहूं की अलग-अलग किस्में अनुशंसित की गई हैं।
समय पर बुआई के लिए 100 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त माना जा रहा है। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा क्षेत्र एवं सिंचाई की उपलब्धता के अनुसार बदलती है। सामान्यतः सिंचित फसल के लिए 150:60:40 किलोग्राम NPK प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा बुआई के समय और शेष दो किश्तों में पहली और दूसरी सिंचाई के दौरान दें। फॉस्फोरस और पोटाश को बुआई के समय ही मिट्टी में मिला देना चाहिए।
कुनकी (फ्लरिस माइनर) और अन्य खरपतवारों पर नियंत्रण के लिए बुआई के 0 से 3 दिन के अंदर पाइरोक्सासल्फ़ोन 85 WG या पेंडामेथालिन 30 EC का छिड़काव करना प्रभावी होता है। इसके अलावा तैयार मिश्रण शाकनाशी जैसे ऐक्लोनिफेन + डाईफ्लुफेनिकन + पाईरोक्सासल्फोन का उपयोग भी लाभकारी है। कठिया गेहूं में पाइरोक्सासल्फ़ोन आधारित शाकनाशियों से बचने की सलाह दी गई है।
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