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आदिवासी किसानों ने सीखे सरसों की खेती के गुण

Published on: 05-Mar-2020

सरसों अनुसंधान निदेशालय द्वारा 4 दिवसीय आदिवासी किसान प्रशिक्षण एवं नदबई तहसील के न्यौठा गांव में सरसों प्रक्षेत्र दिवस कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में  निदेशक डाॅ. पी. के. राय ने कहा कि सरसों अनुसंधान निदेशालय की स्थापना के बाद देश में विषेशकर राजस्थान में राई-सरसों की खेती को नई दिशा मिली और इस प्रदेश के किसानों की आर्थिक तरक्की में सरसों फसल का विषेश योगदान रहा। देश में खाद्य तेलों की आवश्यकता पूरी करने एवं तिलहनी फसलों विषेशकर राई-सरसोें की उत्पादकता एवं उत्पादन बढाने के लिए विषेश प्रयासों के साथ आज एक नंई तिलहन क्रांति की आवश्यकता है।

देश के उत्तर पूर्वी राज्यों विशेषकर आसाम, मणीपुर एवं झारखण्ड की कृषि जलवायु एवं आर्थिक-सामाजिक परिस्थितियां राई-सरसों की खेती के लिए अनुकूल हैं। इन क्षेत्रों में धान की खेती के बाद किसान खेतों को खाली रखते हैं। किसानों की जोत छोटी है और पानी की कमी है। इन परिस्थितियों में अन्य फसलों की अपेक्षा राई-सरसों की खेती ही किसानों के लिए लाभदायक है। क्योंकि यह फसल कम पानी एवं कम लागत में भी आर्थिक रूप से लाभदायक उत्पादन देने में सक्षम है।

 

 इस अवसर पर परियोजना निदेशक, आत्मा, भरतपुर, श्री योगेश शर्मा ने कहा कि किसानों के हितों के लिए सरकार द्वारा कई कार्यक्रम और योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। किसानों को उनकी जानकारी लेकर लाभ उठाना चाहिए। उन्होेंने कहा कि कृृषि विकास के लिए नवीन तकनीकों को अपनायें। कृषि से आमदनी बढाने के लिए किसानों को खेती में कृषि विविधिकरण को अपनाना होगा। प्रधान वैज्ञानिक डाॅ. अशोक शर्मा ने कहा कि निदेशालय द्वारा नई किस्मों एवं तकनीकों का प्रदर्शन प्रति वर्ष किसानों के खेतों पर किया जाता है। इन प्रदर्षनों से यह साबित होता है कि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित तकनीकों एवं किस्मों को सही तरीके से अपनाने से सरसों फसल की पैदावार दुगनी की जा सकती है। इस दौरान बाहर से आए किसानों के किसानों के खेतों में लगी फसल भी दिखाई गई।

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