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सामान्य खेती के साथ फलों की खेती से भी कमाएं किसान: अमरूद की खेती के तरीके और फायदे

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अमरूद का वैज्ञानिक नाम सीडियम ग्वायवा है। इसकी प्रजाति सीडियम है और जाति ग्वायवा है। विटामिन की बात करें तो इस फल में विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा विटामिन ए तथा विटामिन बी भी पाए जाते हैं। साथ ही इसमें आयरन, कैल्शियम तथा फास्फोरस काफी अच्छी मात्रा में पाया जाता है। इसके कारण ये फल मानव जीवन के स्वास्थ्य के लिए कई तरह से लाभकारी होता है।

इतिहास में झांक कर देखें तो पता चलता है कि इस फल की उत्पत्ति केन्द्रीय अमेरिका में हुई, जिसे आजकल हम वेस्ट इंडीज के नाम से भी जानते हैं। वहां से यह फल 17 वीं शताब्दी में भारत आया। उसके बाद यह फल भारत की मिट्टी में इस तरह से रच बस गया कि मानों यह भारत के लिए ही पैदा किया गया हो। अब यह फल भारत के कोने-कोने में पैदा होता है। भारत में यह फल उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्रा, कर्नाटक, उड़ीसा, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी बंगाल और आंध्र प्रदेश में उगाया ही नहीं जाता है बल्कि इसकी खेती भी की जाती है।

मीठे-मीठे व खट्टे -मीठे अमरूद तो आपने बहुत खाये होंगे। अमरूदों को गरीबों का सेब कहा जाता है। अमरूद के कितने फायदे होते हैं, शायद ही आप उनसे परिचित होंगे। यदि प्राचीन ग्रंथों की बात मानी जाये तो प्राचीन काल के ग्रंथों में अमरूद के औषधीय गुणों को देखते हुए संस्कृत भाषा में इस फल को अमृत फल कहा जाता था। इस फल एवं वृक्ष के औषधीय गुणों की बात करें तो अमरूद खाने से खून की कमी दूर होती है, इस फल में बीटा कैरोटीन होता है, इसलिये इसका सेवन करने से त्चचा संबंधी बीमारियां दूर होती हैं, चेहरे पर निखार आता है। इस फल से कब्ज की शिकायत दूर होती है। भुना हुआ अमरूद खाने से सर्दी-खांसी में फायदा मिलता है। फाइबर युक्त होने के कारण यह फल डायबिटीज को कंट्रोल करता है। अमरूद की पत्तियों का लेप लगाने से गठिया की बीमारी ठीक हो जाती है। अमरूद की पत्तियों के काढ़े से कुल्ला करने से मुंह की सारी बीमारियां दूर होतीं हैं, पत्तों के चबाने से दांत का दर्द दूर हो जाता है।कच्चे अमरूद का लेप सिर पर लगाने से पुराना सिर दर्द भी ठीक हो जाता है।

सस्ता और औषधीय  गुणों के कारण यह फल आम तौर पर लोकप्रिय है। इसी कारण इस फल की भारत में व्यावसायिक खेती की जाती है। इससे किसानों को अच्छा लाभ प्राप्त होता है। अनेक लोगों के लिए इस फल की खेती रोजगार व आय का साधन बनी हुई है। आइये जानते है कि इसकी खेती किस प्रकार की जाती है।

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जलवायु व मिट्टी

अमरूद के लिये शुष्क व गर्म जलवायु सबसे उपयुक्त है। केवल नन्हे पौधों को छोड़कर अमरूद का पेड अधिक गर्मी और सर्दी में पड़ने वाले पाला को भी वर्दाश्त कर लेता है। इस फल की खेती के लिए 20 से 300 सेंटीग्रेड का तापमान बहुत ही अच्छ होता है। इसके अलावा ये सूखा भी वर्दाश्त कर लेता है। अधिक लू लपेट व कम वर्षा तथा बाढ़ आदि का भी अमरूद की फसल पर असर नहीं पड़ता है। वैसे तो अमरूद हर प्रकार की मिट्टी में पैदा हो सकता है लेकिन बलुई दुमट मिट्टी अमरूद की खेती के लिए सबसे अच्छी होती है। इस फल की खेती 6 से लेकर 9 पीएच मान की मृदा अधिक लाभकारी होती है।

बुआई, अवधि और कुल उम्र

अमरूद के पौधे की बुआई वैसे तो जुलाई अगस्त के बीच में की जाती है लेकिन जहां पर सिंचाई आदि की अच्छी सुविधा हो वहां पर  अमरूद की बुआई फरवरी-मार्च में भी की जा सकती है।

अमरूद की फसल 700 से 900 दिन यानी दो से तीन साल में तैयार होती है। यह अवधि अमरूद की विभिन्न किस्मों पर आधारित होती हैं। यह कहा जाता है कि अमरूद का पेड़ 30 साल तक फल देता रहता है। उसके बाद उसको बदलना पड़ता है।

कैसे करें खेत की तैयारी

खेत की पहली जुताई गहरी की जानी चाहिये। इसके बाद खेत को समतल करना चाहिये ताकि कहीं भी पानी न रुक सके और खरपतवार को बीन कर खेत को एकदम साफ कर लेना चाहिये। इसके 15 दिन बाद पौधे लगाने के लिए पौधों की किस्मों के अनुसार 3-6 मीटर की लाइन में एक निश्चित दूरी पर 20 इंच की गहराई, लम्बाई व चौड़ाई वाले गड्ढे बना लेने चाहिये। गोबर से तैयार  की गई खाद, सुपर फॉस्फेट, पोटाश, मिथाइल पैराथियॉन पाउडर को अच्छी तरह से मिलाकर मिश्रण तैयार करके इन गड्ढों में भर देनी चाहिये। इसके बाद सिंचाई करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए। उसके बाद पौधे लगाएं।

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बीजों का उपचारित कर इस प्रकार रोपें

बीजों को रोपे जाने से पहले उनका उपचार करना आवश्यक होता है।  कार्बोनडाजिम को प्रति लीटर पानी में दो ग्राम घोल कर उसमें पौध को रात भर रखकर उसे उपचारित करें उसके बाद ही उन्हें रोपें।

अमरूद के पौधों को रोपने के लिए उनकी नस्ल यानी किस्म के पौधों की लम्बाई चौड़ाई को देखते हुए जगह छोड़नी होती है। गड्डा बनाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना होता है। कुछ पौधे पास-पास तो कुछ पौधे दूर-दूर लगाये जाते हैं। नस्लों के अनुसार तीन तरह से पौधों की रोपाई की जाती है जो इस प्रकार है

  • प्रति हेक्टेयर 2200 लगाये जाने वाले पौधों के लिए लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखी जाती है और पौधों से पौधों की दूरी 1.5 मीटर रखी जाती है
  • दूसरे तरह के 1100 पौधे प्रति हेक्टेयर लगाये जाने के लिए लाइन से लाइन की दूरी तो 3 मीटर ही रखी जाती है लेकिन पौधों से पौधों की दूरी 3 मीटर हो जाती है।
  • सबसे बड़े आकार के पेड़ों की पौध के लिए लाइन से लाइन की दूरी 6 मीटर रखी जाती है और पौधों से पौधों की दूरी 1.5 मीटर ही रखी जाती है। इस तरह की बुआई में प्रति हेक्टेयर 600 पौधे रोपे जाते हैं।

बिजाई के तरीके

बिजाई के कई तरीके इस्तेमाल किये जाते हैं। इसमें पके हुए फल के बीजों से बिजाई की जा सकती है। दूसरे तरीके में खेतों में पौधे पहले से तैयार करके उन्हेंं लगाया जा सकता है।  तीसरा तरीका कलमे लगा कर बिजाई की जा सकती है। चौथा तरीका पनीरी तैयार करे उनकी अंकुरित टहनियों को लगा कर बिजायी की जा सकती है। बिजाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिये कि उनकी जड़ों को लगभग 25 सेमी. तक की गहराई में रोपना चाहिये।

कटाई-छंटाई की आवश्यकता

पौधों को सही तरीके से बढ़ने व अधिक बढ़ने से रोकने के लिए उनकी कटाई-छंटाई की जाती है। अमरूद का पेड़ जितना छोटा और घना होगा उतने अधिक फल देगा। इस बात को ध्यान में रखते हुए साल में एक बार अवश्य कटाई-छंटाई की जानी चाहिये।

खाद कब-कब और कितनी डालनी चाहिये

अमरूद के पौधों की बुवाई के 12 महीने बाद प्रति पौधे को 15 किग्रा. गोबर की खाद, 400 ग्राम सुपर फास्फेट, 100 ग्राम कार्बोफरान, 200 ग्राम यूरिया और 100 ग्राम पोटाश देना जरूरी होता है । 24 महीने के बाद सभी खादों की मात्रा दोगुनी कर देनी चाहिये।  तीन साल बाद इन खादों व रसायनों मात्रा को बढ़ाकर तीन गुना कर दिया जाना चाहिये।

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सिंचाई कब-कब करें और कब नहीं करें

अमरूद की पौध लगाने के तुरंत बाद सिंचाई करनी चाहिये। उसके बाद तीसरे दिन फिर सिंचाई करनी चाहिये। इसके बाद मौसम, मिट्टी व फसल की जरूरत के हिसाब से सिंचाई करते रहना चाहिये। गर्मियों में कम से कम प्रति सप्ताह दो बार सिंचाई करनी चाहिये। सर्दियों में दो से तीन बार सिंचाई करना जरूरी है। जब पेड़ में फूल आ रहे हों तो सिंचाई नहीं करनी चाहिये। वरना फूल झड़ सकते हैं।

कीट व रोग प्रबंधन

अमरूद के पौधे में कई तरह के कीडे लगते हैं और कई तरह की बीमारियां भी लगतीं हैं। इनसे फसल का बहुत नुकसान हो सकता है। इन दोनों से फसल को बचाने के लिए भी प्रबंधन करने होते हैं।

  • अमरूद की शाख का कीट होने पर क्लोरपाइरीफॉस या क्विनलफॉस के पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • चेपा गंभीर कीट है, इसका हमला होने पर डाइमैथेएट या मिथाइल डेमेडान को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • सूखा रोग होने पर अमरूद के खेत में जमा पानी को बाहर निकालें। बीमार पौधों को बाहर निकाल कर दूर ले जाकर नष्ट करें। कॉपर ऑक्सीक्लोराइड या कार्बेनडाजिम को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।
  • एंथ्राक्नोस रोग लगने से फल गलने लग जाते हैं। इससे बचाने के लिए बीमार पौधों को बाहर निकालें, प्रभावित फलों को नष्ट करें। खेत में पानी हो तो तुरन्त निकालें। छंटाई के बाद कप्तान को पानी में मिलाकर छिड़काव करें। फल पकने तक इसका छिड़काव समय-समय पर करते रहें। इसके अलावा कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

फसल की कटाई करें

अमरूद की नस्लों के अनुसार बिजाई के दो या तीन साल बाद फसल तैयार हो जाती है। माल की सप्लाई की सुविधानुसार अधपके फलों को तोड़कर कार्टून  में पैक करके मार्केट भेजें। फलों को ज्यादा नहीं पकाना चाहिये। अधिक पकने से फल की क्वालिटी खराब हो जाती है।

अमरूद की प्रसिद्ध किस्में

इलाहाबाद सफेदा, पंजाब पिंक, सरदार या एल49, पंजाब सफेदा, अरका अमूल्या, स्वेता, निगिस्की, इलाहाबाद सुरखा, एपल गुवावा, चित्तीदार आदि।

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