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कैसे करें पैशन फल की खेती

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पैशन फल अपने स्वाद पौष्टिकता और औषधीय गुणों के लिए विश्व भर में जाना जाता है। सर्वप्रथम यह फल ब्राजील में उगाया गया यहां से इसका प्रचार-प्रसार अफ्रीका तथा एशियाई देशों में हुआ। इस फल की पूरे विश्व में 500 प्रजातियां पाई जाती हैं। भारत में इस फल की मुख्य दो प्रजातियां पाई जाती हैं।

1. पैसीफ्लोरा यूडिलिस

इस प्रजाति के फलों का रंग शुरुआती दौर में हरा एवं आकार गोल होता है । पकने पर इसका रंग बैंगनी तथा स्वाद में हल्का अम्लीयता होता है । फल में रस की मात्रा अधिक और बीजों का रंग हल्का काला होता है।

2. पैसीफ्लोरा फ्लेवीकॉरपा

इस प्रजाति के पौधों के फलों का रंग पीला होता है। इसका आकार बैंगनी रंग के फलों की अपेक्षा बड़ा होता है। इस प्रजाति के फलों में रस की मात्रा कम तथा फलों का स्वाद अम्लीय होता है।

भारत में पैशन फल मुख्यत

भारत में पैशन फल

केरल, तमिलनाडु, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, आंध्र प्रदेश हिमाचल प्रदेश तथा पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय में होता है। उत्तराखंड के शीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में भी इसकी बागवानी सीमित क्षेत्र में होने लगी है। विडंबना यह है की महत्वपूर्ण पोषक तत्वों से भरपूर फल होते हुए भी इसकी नियमित बागवानी हमारे देश में नहीं हो पा रही है। देश के कुछ प्रदेशों में ही इसकी बागवानी के प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्रीय शीतोष्ण बागवानी संस्थान के शोधकर्ताओं के अनुसार किसानों को इस की बागवानी के बारे में पूरी जानकारी का ना होना इसकी खेती के विस्तार में बाधक है ।

जलवायु

पैशन फल का पौधा एक बेल युक्त पौधा होता है जिसकी लंबाई 15 से 20 फुट तक हो सकती है। इसे किसी भी जलवायु में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है लेकिन अर्ध शुष्क जलवायु इसके लिए उपयुक्त पाई गई है। इसकी बागवानी अट्ठारह सौ मीटर ऊंचाई तक तथा 15 – 40 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है।

मृदा तथा भूमि

इस फल की खेती के लिए हल्की या भारी बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इस फल की बागवानी के लिए पीएच मान 6:30 से 7:30 होना चाहिए। जिस मिट्टी में अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ तथा पोषक तत्व हो वह मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। यदि मिट्टी में अम्लीयता अधिक हो तो उसमें चूना मिलाकर से खेती योग्य बनाया जा सकता है।

उर्वरक

फलों के बड़े आकार तथा अच्छी पैदावार के लिए समय-समय पर उर्वरकों का प्रयोग करते रहना चाहिए ।उर्वरकों में जैविक खाद के रूप में गोबर की साड़ी खाद को समय-समय पर निश्चित अनुपात में डालना चाहिए ।अगर जैविक खाद उपलब्ध ना हो तो रासायनिक खादों का सही तथा निश्चित अनुपात में प्रयोग होना चाहिए । नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश को 2-1-4 के अनुपात में डालना चाहिए। इसके अलावा अन्य पोषक तत्वों का भी निश्चित मात्रा में प्रयोग करना चाहिए, जिससे पौधों की वृद्धि तथा अच्छी पैदावार मिलती रहे।

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सिंचाई

इस फल की अच्छी पैदावार के लिए इसमें समय समय पर सिंचाई करनी चाहिए। खसकर जब फल परिपक्व हो रहे हों उस समय सिंचाई करते रहने से पौधे को पोषक तत्व मिलते रहते हैं तथा फलों का आकार भी ठीक रहता है। यदि समय पर सिंचाई नहीं की जाती तो पौधे को उचित पोषक तत्व नहीं मिलते और फलों का आकार भी परिपक्व नहीं हो पाता।

पौधों की सफाई व छंटाई

पौधों की सफाई का कार्य नियमित अंतराल पर करते रहना चाहिए जिससे पौधों की उचित वृद्धि होती रहे तथा पौधे उत्तम पैदावार देते रहें। पौधों की सधाई का कार्य फल तोड़ाई के बाद करना चाहिए तथा सूखी और बीमारियों से ग्रसित शाखा या बैलों को काट देना चाहिए। सफाई का कार्य जाड़े के मौसम में करना चाहिए।

नर्सरी तैयार करना

पैशन फल के पौधे मोक्षित है बीज द्वारा तैयार किए जाते हैं। बीजों की बुवाई फलों से निकलने के तुरंत बाद कर देनी चाहिए। बुवाई के लिए पौधशाला की ऊंचाई 15 से 20 सेंटीमीटर तथा लंबाई 1 से 10 सेंटीमीटर होनी चाहिए। 20 को आधे से 1 इंच तक मिट्टी में दबाना चाहिए। जब पौधे की लंबाई 10 इंच की हो जाए तब इसे पौधशाला से निकाल कर दूसरी जगह रोहित कर देना चाहिए। अन्य विधियों में रोपण ग्राफ्टिंग या कटिंग विधि से भी पर तैयार की जा सकती है। ग्राफ्टिंग रोपण विधि में जब कलिका तैयार हो जाए तो इसे मूल ग्रंथ से काटकर पुराने बीजू पौधे पर सावधानीपूर्वक चढ़ाना चाहिए। 70 से 80% सफलता प्राप्त की जा सकती है।

फलों की तोड़ाई

पैशन फलों की तोड़ाई

फल का रंग जब हरे रंग से गहरे बैंगनी रंग का हो जाता है तो यह पक चुका होता है तथा फल को इस समय तोड़ लेना चाहिए। इसका फल परागण के 70 से 80 दिनों के बाद पक जाता है। पैशन फल वर्ष में दो बार तैयार होता है। पहली बार मार्च से मई तक तथा दूसरी बार अगस्त से दिसंबर तक पूर्ण विकसित पौधे से साल में 25 से 30 किलोग्राम फल प्राप्त किया जा सकता है।

भंडारण एवं विपणन

फलों की तोड़ाई के पश्चात सबसे महत्वपूर्ण प्रक्रिया भंडारण की होती है। पके फलों को ज्यादा समय तक सामान्य तापमान पर भंडारित किया जा सकता है । इस फल के भंडारण के लिए कोई विशेष प्रबंध नहीं करना होता। पैशन फल शीघ्र खराब ना हो इसके लिए फल को पकने के बाद तोड़ लेना चाहिए। इन्हें आकर्षक दिखाने के लिए पॉलिथीन की थैलियों में रख देना चाहिए तथा इसे 2 सप्ताह तक इस अवस्था में रखा जा सकता है। इस प्रकार यह फल अपनी उत्पादकता पोषक तत्व की प्रचुरता सरल बागवानी से काश्तकारों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने हेतु महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। जरूरत इस बात की है कि किसान भाइयों के बीच इसका सरकारी व गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रचार प्रसार किया जाए।

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