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लम्पी

लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease)

लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease)

- ये लेख हमारे मेरीखेती डॉटकॉम-१४ व्हाट्सएप्प ग्रुप मैं पियूष शर्मा ने दिया है

डॉ योगेश आर्य (पशुचिकित्सा विशेषज्ञ)

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लम्पी स्किन डिजीज' या एलएसडी (LSD - Lumpy Skin Disease) नई चुनौती के रूप में उभरकर सामने आ रही है। यह एक संक्रामक बीमारी है जिसमें दुधारू पशुओं व मवेशियों में गाँठदार त्वचा रोग या फफोले बनने शुरू हो जाते हैं और दुधारू पशुओं का दूध कम होने लगता है। इस बीमारी की वैक्सीन भी बाजार में उपलब्ध नही है और गॉट-पॉक्स (बकरी-पॉक्स) वैक्सीन को वैकल्पिक रूप में काम मे ली जा रही है। लंपी का ईलाज करना भी पशुपालक के लिए महंगा साबित हो रहा है ऐसे में कुछ देशी इलाज मिल जाये तो पशुपालकों के लिए काफी राहत वाली बात होगी। 'नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड' और 'इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसडिसिप्लिनरी हेल्थ साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी' ने प्रो. एन. पुण्यमूर्थी के मार्गदर्शन में कुछ पारंपरिक पद्दति द्वारा देशी ईलाज सुझाए हैं।


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लम्पी स्किन डिजीज का देशी उपचार:-

  • पहली विधि- एक खुराक के लिए
  • पान का पत्ता- 10 पत्ते
  • काली मिर्च- 10 ग्राम
  • नमक- 10 ग्राम
  • गुड़ आवश्यकतानुसार
विधि- उपरोक्त वर्णित सामग्री को पीसकर सबसे पहले पेस्ट बना लेना है, अब इसमे गुड़ मिला लेवें। इन तैयार मिश्रण को पशु को थोड़ी थोड़ी मात्रा में खिलाएं।


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पहले दिन ये खुराक हर 3 घण्टे में देवें और उसके बाद दिनभर में तैयार तीन ताजा तैयार खुराकें 2 हफ्ते तक देवें।

दूसरी विधि- दो खुराक के लिए

  • लहसुन- 2 कली
  • धनियां- 10 ग्राम
  • जीरा- 10 ग्राम
  • तुलसी- 1 मुठ्ठी पत्ते
  • तेज पत्ता- 10 ग्राम
  • काली मिर्च- 10 ग्राम
  • पान का पत्ता- 5 पत्ते
  • छोटा प्याज - 2 नग
  • हल्दी पॉवडर- 10 ग्राम
  • चिरायता के पत्ते का पॉवडर- 30 ग्राम
  • बेसिल का पत्ता- 1 मुठ्ठी
  • बेल का पत्ता- 1 मुठ्ठी
  • नीम का पत्ता- 1 मुठ्ठी
  • गुड़- 100 ग्राम
विधि- उपरोक्त वर्णित सामग्री को पीसकर पेस्ट बना लो, इसमे गुड़ मिला लेवें। थोड़ी थोड़ी मात्रा में पशु को खिलाओ। पहले दिन इसकी खुराक हर 3 घण्टे में खिलाओ। दूसरे दिन से प्रतिदिन ताजा तैयार एक-एक खुराक सुबह शाम पशु को आराम आने तक देवें।

यदि घाव हो तो घाव पर लगाने हेतु मिश्रण:-



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सामग्री-

  • कुप्पी का पत्ता- 1 मुठ्ठी
  • लहसुन- 10 कलियाँ
  • नीम का पत्ता- 1 मुठ्ठी
  • नारियल/तिल का तेल- 500 मिली
  • हल्दी पॉवडर- 20 ग्राम
  • मेहंदी का पत्ता- 1 मुठ्ठी
  • तुलसी का पत्ता- 1 मुठ्ठी
विधि- उपरोक्त वर्णित सामग्री को पीसकर पेस्ट बना लेवें फिर इसमें 500 मिली नारियल/तिल का तेल मिलाकर उबाल लेवें और ठंडा कर लेवें। लगाने की विधि:- घाव को साफ करने के बाद इस मिश्रण को घाव पर लगाएं।

यदि घाव में कीड़े दिखाई दे तो-

पहले दिन नारियल तेल में कपूर मिलाकर लगाएं या सीताफल की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बनाकर लगाएं।
लंपी स्किन बीमारी से बचाव के लिए राजस्थान सरकार ने जारी किए 30 करोड़ रुपये

लंपी स्किन बीमारी से बचाव के लिए राजस्थान सरकार ने जारी किए 30 करोड़ रुपये

बरसात का मौसम आते ही जानवरों को तमाम तरह की बीमारियां लगने लगती हैं। आज कल देश में लम्पी स्किन बीमारी यानी ‘लम्पी स्किन डिजीज‘ या एलएसडी (LSD - Lumpy Skin Disease) ने जोर पकड़ा हुआ है। यह बीमारी सबसे ज्यादा कहर राजस्थान राज्य में बरपा रही है। अच्छी बात ये है कि सरकार ने बीमारी को गंभीरता से लिया है और इससे पशुपालकों को निजात दिलाने के लिए 30 करोड़ रुपये जारी कर दिए हैं, ताकि पशुपालक दवाई खरीदते हुए पशुओं का इलाज करवा सकें। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के इस कदम की सराहना हो रही है। सीएम अशोक गहलोत ने इस राशि को मुख्यमंत्री पशुधन निःशुल्क दवा योजना (Pashudhan Nishulk Dava Yojna) के अंतर्गत जारी किया है। यह बीमारी सबसे ज्यादा गायों को लग रही है। सरकार का मानना है कि इस फैसले का असर सकारात्मक होगा और इस बीमारी से बचाव के लिए दवाइयां पशुपालक जल्दी से जल्दी खरीद सकेंगे।


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वैसे इस बीमारी से प्रभावित राजस्थान इकलौता राज्य नहीं है, बल्कि सटे राज्य हरियाणा में भी इस रोग ने कहर बरपाया हुआ है। वैसे हरियाणा सरकार ने भी इस बीमारी को हल्के में नहीं लिया है और वैक्सिनेशन का काम शुरू करवा दिया है। गौर करने वाली बात है कि हरियाणा देश के उन राज्यों में से एक है जहां ग्रामीण जनता अपनी आमदनी के लिए खेती किसानी और पशु धन पर निर्भर है। यही वजह है कि मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने इस बीमारी के जल्दी से जल्दी रोकथाम की कोशिशें तेज कर दी हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 3000 वैक्सीन पशुपालकों को बांटी जा चुकी हैं, वहीं अभी 17000 वैक्सीन की जरूरत और आन पड़ी है। अगस्त महीने के अंत तक वैक्सीन के बांटने को लेकर और तेजी देखने को मिलेगी।


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एक आंकड़े के मुताबिक लंपी स्किन रोग देश के 17 राज्यों में अब तक फैल चुका है। लेकिन इस दौरान इसने सबसे ज्यादा प्रभावित राजस्थान और हरियाणा को किया है। अच्छी बात है कि राज्य सरकारों ने इसके लिए वैक्सिनेशन का काम शुरू कर दिया है लेकिन वैक्सिनेशन होने में समय भी लग सकता है। ऐसे में जरूरी है कि उसके पहले आप कुछ घरेलू उपचार ज़रूर कर लें। घरेलू उपचार क्या हो सकते हैं, इसके बारे में हिमाचल प्रदेश कृषि विश्‍वविद्यालय पालमपुर के पशु चिकित्‍सा विशेषज्ञ डॉ. ठाकुर ने बताया है।

उपचार के लिए क्या चाहिए होगा -

10 ग्राम कालीमिर्च, 10 पान के पत्ते, 10 ग्राम नमक और गुड़ जरूरत के मुताबिक। - सभी चीज़ों को अच्छे से पीसें और तब तक पीसते रहें जब तक मिश्रित होकर पेस्ट न बन जाए और अब थोड़ा से गुड़ मिला लें। - अब आपको इसे अपने पशु को थोड़ा-थोड़ा खिलाना है। - जब आप पहले दिन इसकी खुराक पशु को दें तो हर तीन घंटे में दें, समय के पाबंद रहें क्योंकि यह जरूरी है। - यह सिलसिला दो हफ्ते तक चलने दें और दिन में तीन खुराक ही खिलाएं। - हर एक खुराक ताजा ही तैयार करें, ऐसा न करें कि कल की बनाई खुराक को आज खिला दें, उसका असर नहीं होगा। उपचार का दूसरा तरीका - इस तरीके में आपको एक मिश्रण तैयार करना होगा, जो आप घाव पर लेप के रूप में लगाएंगे। इसके लिए आपको लहसुन की 10 कली, मेहंदी के पत्ते कुछ, तिल का तेल करीब आधा लीटर, कुम्पी के कुछ पत्ते, हल्दी पाउडर, तुलसी के कुछ पत्ते चाहिए होंगे। इन सभी को मिक्सी या सिलबट्टे में पीस लें और पेस्ट बना लें । इसके बाद इसमें तिल का तेल मिलाते हुए उबाल लें, ठंडा होने के बाद लेप को आपको पशु के घाव पर लगाना है लेकिन इसके पहले पशु के घाव को अच्छी तरह साफ कर लें। इसके बाद उसका पेस्ट आप घाव पर लगा दें, आपको हर रोज घाव पर इसे लगाना है और यह दो हफ्ते तक करना है।
नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड‘ और ‘इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसडिसिप्लिनरी हेल्थ साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी’ ने प्रो. एन. पुण्यमूर्थी के मार्गदर्शन में 
कुछ पारंपरिक पद्दति द्वारा देशी ईलाज सुझाए हैं, जिन्हे आप इस लेख में पढ़ सकते हैं : लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease)
वैसे अगर आपको वैक्सिनेशन का लाभ मिलता है तो उसे तुरंत लें क्योंकि घरेलू उपचार की अपनी सीमाएं जबकि वैक्सीन शर्तिया काम करती है लेकिन जब तक आपको वैक्सीन न मिले, घरेलू इलाज करते रहें।
लंपी स्किन बीमारी का हरियाणा में कहर, 633 पशुओं की मौत

लंपी स्किन बीमारी का हरियाणा में कहर, 633 पशुओं की मौत

लंपी स्किन बीमारी (Lumpy Skin Disease) अब आए दिन अपना कहर बरपा रही है। इस बीमारी की वजह से हरियाणा और राजस्थान में हालात बद से बदतर हो गए हैं। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक अब हरियाणा में लंपी बीमारी की वजह से 633 पशुओं की जानें गई हैं, जो चौंकाने वाली खबर है। सरकार का कहना है कि वे वैक्सिनेशन पर जोर दे रहे हैं, लेकिन जिस तरह से पशु दिन ब दिन दम तोड़ रहे हैं उससे लग रहा है कि इतने प्रयास काफी नहीं हैं। पिछले दिनों मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि इस बीमारी की रोकथाम के लिए राज्य में 20 लाख टीके लगाए जाएंगे। जिसमें 3 लाख उपलब्ध हैं और बाकी 17 लाख का ऑर्डर दिया जाएगा। प्राप्त आंकड़ों के अनुसार अब तक केवल 245249 पशुओं का ही टीकाकरण हुआ है। ऐसे में एक बात साफ होती है कि जितनी तेजी से काम होना चाहिए, उसे देखते हुए हरियाणा सरकार अपने लक्ष्य से काफी पीछे चल रही है। अगर ऐसा ही रहा तो जल्दी ही राज्य में हालात और भी बदतर हो जाएंगे।


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देशभर के आंकड़ों पर नजर डालें तो अब तक 3497 गांव इस विकराल बीमारी की चपेट में आ चुके हैं। साथ ही 52,544 पशु इस बीमारी से संक्रमित हो चुके हैं। अगर आने वाले कुछ दिनों तक तुरत प्रयास नहीं किए जाते, तो मौतों का आंकड़ा और बढ़ेगा। इसके अलावा एक और अफवाह उड़ी है जिससे लोग सकते में हैं। कहा जा रहा है कि लंपी स्किन बीमारी जानवरों से इंसानों को भी लग सकती है। वैसे इस बात तो लेकर राज्य सरकार ने स्पष्टीकरण दिया है और कहा है कि ऐसा कुछ भी नहीं है और अफवाहों पर यकीन न करें।


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मुख्यमंत्री ने कहा है कि इस रोग से पशुओं की मृत्यु होने की आशंका बहुत कम है। और मृत्यु की दर को 1 से 5 प्रतिशत के बीच बताया गया है। कोरोना की तरह इस रोग के लिए भी बताया गया है कि केवल उन पशुओं को खतरा है जो पहले से किसी अन्य बीमारी से बीमार चल रहे हैं। वैसे अगर समय रहते पशुओं को वैक्सीनेशन मिल जाती है, तो पशु 2-3 दिन में ठीक भी हो जाता है। वैसे इस बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित गौशालाएं हैं, क्योंकि उसमें पशु पास-पास बांधे जाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक अब तक 286 गौशालाओं में 7938 गाय, बछड़े और बैल बीमार चल रहे हैं। जिसमें मृत्यु का आंकड़ा 126 है। सरकार का कहना है कि इस रोग की रोकथाम के लिए आप फॉगिंग करें ताकि मक्खी और मच्छर कम से कम पनप सकें।
मध्य प्रदेश सरकार ने लंपी रोग को लेकर जारी की एडवाइजरी

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डॉ. आर.के. मेहिया ने बताया कि शासन और प्रशासन की लगातार सतर्कता और ग्रामीणों को दी जा रही समझाइश से लम्पी (LSD – Lumpy Skin Disease) प्रकरणों में स्थिति नियंत्रण में है। उन्होंने कहा कि संतोष की बात है कि प्रकरण बढ़े नहीं है, कुछ हद तक घटे हैं। प्रदेश में लम्पी के विरूद्ध अब तक एक लाख 2 हजार से अधिक गौ-वंश का टीकाकरण किया जा चुका है।


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डॉ. मेहिया ने बताया कि लगातार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पशुपालन विभाग के संभागीय और जिला स्तरीय अधिकारी और लैब प्रभारी को विषय-विशेषज्ञों द्वारा मार्गदर्शन दिया जा रहा है। स्थिति की लगातार समीक्षा कर गौ-वंश में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, निदान और उपचार जारी है।

लक्षण एवं सुझाव

लम्पी रोग से पशुओं को शुरू में बुखार आता है और वे चारा खाना बंद कर देते हैं। इसके बाद चमड़ी पर गाँठें दिखाई देने लगती है, पशु थका हुआ और सुस्त दिखाई देता है, नाक से पानी बहना एवं लंगड़ा कर चलता है। यह लक्षण दिखाई देने पर पशुपालक तुरंत अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय या पशु औषधालय से संपर्क कर बीमार पशुओं का उपचार कराएँ। पशु सामान्यत: 10 से 12 दिन में स्वस्थ हो जाता है।


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क्या करें, क्या न करें

संक्रमित पशु को स्वस्थ पशु से तत्काल अलग करें। पशु चिकित्सक से तत्काल उपचार आरंभ कराएँ। संक्रमित क्षेत्र के बाजार में पशु बिक्री, पशु प्रदर्शनी, पशु संबंधी खेल आदि पूर्णत: प्रतिबंधित करें। संक्रमित पशु प्रक्षेत्र, घर, गौ-शाला आदि जगहों पर साफ-सफाई, जीवाणु एवं विशाणु नाशक रसायनों का प्रयोग करें। पशुओं के शरीर पर होने वाले परजीवी जैसे- किलनी, मक्खी, मच्छर आदि को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करें। स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराएँ और पशु चिकित्सक को आवश्यक सहयोग भी करें।
दिल्ली सरकार ने की लम्पी वायरस से निपटने की तैयारी, वैक्सीन खरीदने का आर्डर देगी सरकार

दिल्ली सरकार ने की लम्पी वायरस से निपटने की तैयारी, वैक्सीन खरीदने का आर्डर देगी सरकार

देश में लम्पी वायरस ( Lumpy Virus ) कहर मचा रहा है। इस बीमारी के कारण देश में अब तक लाखों मवेशी मारे जा चुके हैं। लम्पी वायरस का सबसे ज्यादा कहर राजस्थान में देखने को मिला है, जहां पर इस वायरस की वजह से रातों रात लाखों गायों ने दम तोड़ दिया। इसके साथ ही राजस्थान की सीमा से लगने वाले राज्यों में भी इस वायरस का प्रकोप देखा जा रहा है। इस वायरस ने दिल्ली को भी अपनी चपेट में ले लिया है, जिससे दिल्ली के किसान बेहद चिंतित हैं। इसके समाधान के लिए अब दिल्ली सरकार ने पहल शुरू कर दी है। इसके तहत दिल्ली सरकार 60 हजार गोट पॉक्स वैक्सीन ( Goat Pox Vaccine ) खरीदने जा रही है। इसकी जानकारी दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने दी थी। उन्होंने बताया कि लम्पी वायरस दिल्ली में तेजी से फ़ैल रहा है। अभी तक दिली में इस वायरस के 173 मामले दर्ज किये जा चुके हैं जो बेहद चिंता का विषय है। दिल्ली में लम्पी वायरस के सभी मामले दक्षिण-पश्चिम दिल्ली से सामने आये हैं जहां इस वायरस का प्रकोप दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सरकारी पशु चिकित्स्कों के साथ दिल्ली सरकार की टीम ने गोयला डेयरी, घुम्मनहेड़ा, नजफगढ और रेवला खानपुर इलाके से लम्पी वायरस के ये मामले दर्ज किये हैं। इन इलाकों में बहुत सारी गौशालाएं मौजूद हैं जहां पर हजारों की तादाद में गायें रहती हैं।


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दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने बताया कि दिल्ली में लगभग 80 हजार गायें हैं। इस हिसाब से सरकार ने कैलकुलेशन करके 60 हजार गोट पॉक्स वैक्सीन खरीदने की योजना बनाई है। ताकि जल्द से जल्द राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की गायों को लम्पी वायरस से सुरक्षित किया जा सके। गोपाल राय ने बताया कि वैक्सीन खरीददारी अपने अंतिम दौर में है और दवा कम्पनी की तरफ से जल्द से जल्द दिल्ली सरकार को वैक्सीन उपलब्ध करवा दी जाएंगी। गोपाल राय ने बताया कि सरकार इस वायरस से निपटने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसके तहत दिल्ली सरकार ने वायरस की रोकथाम में के लिए सैम्पल लेने प्रारम्भ कर दिए हैं और सैम्पलों की जांच जल्दी से जल्दी की जा रही है ताकि समय रहते गायों में वायरस का पता लगाया जा सके। इसके लिए सरकार ने वायरस के नमूने इकट्ठे करने के लिए दो मोबाइल पशु चिकित्सालय भी तैनात किए हैं जो जगह-जगह पर जाकर पशुओं से सैंपल एकत्रित करके जांच के लिए भेज रहे हैं। इसके साथ ही सरकार ने वायरस से निपटने के लिए ग्यारह रैपिड रिस्पांस टीमों का गठन किया है। साथ ही कई अन्य लोगों को नियुक्त किया है जो समूह में जाकर गौ पालकों को लम्पी वायरस से होने वाले नुकसान के बारे में जागरुक करेंगे। गोपाल राय ने बताया कि सरकार ने इस बीमारी से सम्बंधित गौ पालकों और किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है। किसान 8287848586 में फ़ोन करके वायरस से सम्बंधित अपनी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं। इसके लिए सरकार ने एक अलग से कार्यालय बनाया है जहां पर इसका कॉल सेंटर स्थापित किया गया है।


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पशुओं में फैलने वाला यह लम्पी रोग देश के कई राज्यों में तेजी से पैर पसार रहा है। अभी तक देश के 12 से अधिक राज्यों में 15 लाख से ज्यादा पशु इस रोग से संक्रमित हो चुके हैं। साथ ही हजारों पशुओं की इस वायरस की वजह से मौत हो चुकी है। इसका कहर मुख्यतः राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में देखने को मिल रहा है। हालांकि कई प्रदेशों की सरकारों ने वैक्सीनेशन की रफ़्तार तेज करके इस रोग पर काबू पाने का भरसक प्रयास किया है। फिलहाल सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन राजस्थान में किया जा रहा है क्योंकि इस वायरस की वजह से राजस्थान सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है।

क्या है लम्पी वायरस और यह कैसे फैलता है ?

विशेषज्ञों ने बताया है कि लम्पी वायरस एक त्वचा रोग है। यह पशुओं के बीच तेजी से फैलता है। इस वायरस के माध्यम से स्वस्थ्य पशु, संक्रमित पशु के संपर्क में आने के बाद तुरंत ही संक्रमित हो जाता है। इसके अलावा यह वायरस मच्छरों, मक्खियों, जूं और ततैया के माध्यम से भी फैलता है, क्योंकि इनकी वजह से स्वस्थ्य पशुओं का बीमार पशुओं के साथ संपर्क स्थापित हो जाता है। इसके अलावा यह वायरस पशुओं के एक ही पात्र में पानी पीने से भी तेजी से फैलता है। इस वायरस से संक्रमित होने के बाद मवेशियों में तेज बुखार, आंखों से पानी आना, नाक से पानी निकलना, त्वचा की गांठें और दुग्ध उत्पादन में कमी हो जाना जैसे लक्षण आसानी से देखे जा सकते हैं जो बेहद चिंता का विषय है, क्योंकि इस वायरस से संक्रमित होने के बाद पशु बहुत जल्दी दम तोड़ देते हैं।


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लम्पी वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण देश में हजारों मवेशी प्रतिदिन मारे जा रहे हैं, जिससे देश में जानवरों की कमी हो सकती है। इसका सीधा असर देश में दुग्ध उत्पादन पर पड़ेगा। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ दिनों बाद भारत में दूध की कमी महसूस की जाने लगेगी, जो सरकार के लिए एक नया सिरदर्द साबित हो सकती है। क्योंकि दुग्ध उत्पादन में कमी के बाद दूध के दामों में तेजी से बढ़ोत्तरी संभव है और यह बाजार में ग्राहकों को प्रभावित करेगी।
लम्पी वायरस: मवेशियों के लिए योगी सरकार बनाने जा रही है 300 किमी लंबा सुरक्षा कवच

लम्पी वायरस: मवेशियों के लिए योगी सरकार बनाने जा रही है 300 किमी लंबा सुरक्षा कवच

अभी देश को कोरोना जैसे भयावह और जानलेवा बीमारी से पूर्ण रूप से निजात मिला भी नहीं था, तब तक देश के 12 राज्यों के पशुओं के ऊपर एक भयावह वायरस का प्रकोप शुरू हो गया और वह वायरस है ‘लम्पी स्किन डिजीज‘ या एलएसडी (LSD – Lumpy Skin Disease) वायरस. इस बीमारी की वजह से देश में लगभग 56 हजार से अधिक मवेशी की मौत अब तक हो चुकी है. आपको बताते चले कि उत्तर प्रदेश राज्य में भी इसका प्रकोप काफी बढ़ गया है और अब तक वहां लगभग 200 पशुओं की मौत हो चुकी है. इसको यूपी सरकार ने काफी गंभीरता से लिया है और इसके लिए काफी महत्वपूर्ण कदम भी उठाए है. आपको मालूम हो की यूपी के योगी सरकार ने वहां के गायों और अन्य मवेशियों को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षा कवच का निर्माण करने का निर्देश दिया है. गौरतलब है की सुरक्षा कवच के रूप 300 किमी का इम्यून बेल्ट (Immune Belt) बनाने का निर्णय लिया गया है.

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पशुपालन विभाग का मास्टर प्लान

खबरों के मुताबिक उत्तर प्रदेश सरकार पशुपालन विभाग के मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने इम्यून बेल्ट पर आधारित मास्टर प्लान सरकार के सामने पेश किया है, जिस पर यूपी की योगी सरकार ने सहमति भी जताई है और उस पर कार्य करने को योजना भी तैयार किया है. योगी सरकार का मानना है कि इस सुरक्षा कवच यानी इम्यून बेल्ट के निर्माण से वायरस का प्रसार प्रतिबंधित होगा.

क्या है इम्यून बेल्ट ?

इम्यून बेल्ट एक सुरक्षा कवच है जो पीलीभीत और इटावा के बीच बनाई जाएगी. इस इम्यून बेल्ट का दायरा 300 किमी लंबा और 10 किमी चौड़ा होगा. Immune Belt - Pilibhit to Etawah, UP आपको मालूम हो कि लंपी स्किन डिजीज के वायरस का प्रकोप वेस्ट यूपी में सबसे ज्यादा है. यहां सबसे ज्यादा संक्रमण देखा जा रहा है. वेस्ट यूपी के कुछ जिले जैसे अलीगढ़, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर सबसे ज्यादा प्रभावित है. वही मथुरा, बुलंदशहर, बागपत, हापुड़, मेरठ में लम्पी स्किन डिजीज के वायरस का संक्रमण काफी तेजी से फ़ैल रहा है. संक्रमण के तेज होने के कारण ही योगी सरकार ने ये सुरक्षा कवच के रूप में 5 जिलों और 23 ब्लॉकों से होकर गुजरने वाली इम्यून बेल्ट बनाने का निर्णय किया है. आपको यह भी जान कर हैरानी होगी कि यह इम्यून बेल्ट मलेशियाई मॉडल पर आधारित होगा.

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खबरों के अनुसार इम्यून बेल्ट वाले इलाके में निगरानी के लिए कुछ टास्क फोर्स को सुरक्षा कवच के रूप में तैनात किए जाएंगे. यह टास्क फोर्स मवेशियों में वायरस के उपचार और उनके निगरानी पर खास ध्यान देंगे ताकि उस इम्यून बेल्ट से कोई संक्रमित मवेशी बाहर न आए और अन्य मवेशियों को संक्रमित ना करें. गौरतलब हो की राज्य में अब तक लगभग 22000 गायों को इस लम्पी वायरस का सामना करना पड़ा है यानी वो संक्रमित हुए हैं. यह राज्य के लगभग 2331 गावों का आंकड़ा है. असल में अब तक राज्य के 2,331 गांवों की 21,619 गायें लम्पी वायरस की चपेट में आ चुकी हैं, जिनमें से 199 की मौत हो चुकी है. जबकि 9,834 का इलाज किया जा चुका है और वे ठीक हो चुकी हैं. जानलेवा वायरस पर काबू पाने के लिए योगी सरकार बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान चला रही है. अब तक 5,83,600 से अधिक मवेशियों का टीकाकरण किया जा चुका है. यह कदम लम्पी वायरस पर नकेल कसने के दिशा में एक सफल प्रयास है और आशा है की इस तरह के योजना और सुरक्षा कवच (इम्युन बेल्ट) बनाने से जल्द ही यूपी सरकार इस वायरस को भी मात दे देगी.

इम्यून बेल्ट का कार्य

यूपी सरकार की तरफ से बनाई जाने वाली 300 किमी लंबी इम्यून बेल्ट को मलेशियाई मॉडल के तौर पर जाना जाता है. जानकारी के मुताबिक पशुपालन विभाग द्वारा इम्यून बेल्ट वाले क्षेत्र में वायरस की निगरानी के लिए एक टॉस्क फोर्स का गठन किया जाएगा. यह टास्क फोर्स वायरस से संक्रमित जानवरों की ट्रैकिंग और उपचार को संभालेगी.
अन्य राज्यों से होता हुआ अब झारखंड में भी पहुंचा लम्पी रोग, राज्य सरकार हुई अलर्ट

अन्य राज्यों से होता हुआ अब झारखंड में भी पहुंचा लम्पी रोग, राज्य सरकार हुई अलर्ट

देश में कहर बरपा रहा ‘लम्पी स्किन डिजीज‘ या एलएसडी (LSD – Lumpy Skin Disease) रोग, अब कई राज्यों से होता हुआ झारखंड में भी पहुंच गया है। ये संक्रमण राज्य के कई जिलों में पैर पसार रहा है, जिसने सरकारी अधिकारियों की रातों की नींद खराब कर दी है। इस लंपी रोग से मवेशी लगातार संक्रमित हो रहे हैं। अगर इसे नहीं रोका तो यह रोग राज्य में तेजी से फ़ैल सकता है और ज्यादा से ज्यादा मवेशियों को अपनी चपेट में ले सकता है, हालांकि अभी तक राज्य में आधिकारिक तौर पर किसी भी मवेशी के मरने की पुष्टि नहीं हुई है। लेकिन इसके बावजूद भी हजारों की संख्या में मवेशी बीमार बताये जा रहे हैं। लम्पी स्किन डिजीज एक संक्रामक रोग है, जो संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने से अन्य पशुओं के ऊपर फ़ैल जाता है। इसके अलावा यह रोग एक ही बर्तन में पानी पीने से तथा मच्छरों, मक्खियों, जूँ और ततैया के माध्यम से भी एक मवेशी से दूसरे मवेशी तक फैलता है। यह पशुओं के लिए बेहद घातक होता है। संक्रमण ज्यादा फैलने से पशुओं की मौत भी हो सकती है।

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प्रारंभिक तौर पर इस रोग से संक्रमित मवेशी रांची और देवघर में पाए गए हैं, जिनके मामलों को देखते ही सरकार चिंतित हो गई है। इसलिए सरकार ने इस बीमारी को और अधिक फैलने से रोकने के लिए राज्य के 24 जिलों में तत्काल एडवाइजरी जारी की है, जिसमें बताया गया है कि किसी भी पशु में लम्पी रोग के लक्षण दिखने पर उसके नमूने तत्काल जांच के लिए भेजें। इस साल इस रोग के मामले देश भर में बेहद तेजी के साथ बढ़ रहे हैं जिसको देखकर राज्य सरकार चिंतित है। झारखंड में एक साल पहले भी इस रोग के मामले आये थे, तब सरकार ने बहुत जल्दी ही इस रोग पर काबू पा लिया था। लेकिन इस साल परिस्थियां अलग हैं, सरकार को इन परिस्थियों के साथ रोग पर काबू पाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी। सरकार ने किसानों को सलाह दी है कि जिन पशुओं में लम्पी रोग के लक्षण दिखें, उन्हें अन्य पशुओं से तुरंत अलग करके आइसोलेट कर दें। अभी तक यह स्किन लम्पी रोग देश भर में कहर बरपा रहा है, इस रोग के कारण गायों की त्वचा में गाठें पड़ जाती हैं। मवेशी को तेज बुखार रहता है तथा दुग्ध उत्पादन में भी कमी आती है। अभी तक भारत में 3 लाख से ज्यादा मवेशी इस रोग से संक्रमित हो चुके हैं जबकि लगभग 57 हजार मवेशियों की इस रोग की वजह से मौत हो चुकी है।

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हर राज्य की राज्य सरकार इस रोग से निपटने का भरपूर प्रयास कर रही है। इसके तहत मवेशियों को वैक्सीन लगवाई जा रही है। लम्पी रोग की वजह से दुग्ध उत्पादन में भी भारी कमी आई है। इसको लेकर आम लोग भी भयभीत हैं, कई राज्यों में लोगों ने इस रोग के डर से दूध पीना बंद कर दिया है। इन घटनाक्रमों को देखते हुए सरकार बेहद चिंतित है और जल्द से जल्द इस रोग से निपटने के उपायों पर विचार कर रही है।
राजस्थान में लंपी के वेरिएंट बदलने की आशंका से पशुपालको में चिंता

राजस्थान में लंपी के वेरिएंट बदलने की आशंका से पशुपालको में चिंता

आजकल पशुओं में लंपी स्किन रोग यानी ‘लम्पी स्किन डिजीज‘ या एलएसडी (LSD – Lumpy Skin Disease) किसान व पशुपालकों के लिए बेहद चिंता का विषय बना हुआ है, जिसके चलते लोग दूध का सेवन तक कम करने के लिए मजबूर हो गए हैं। देश के कई राज्य लंपी स्किन रोग की चपेट में आ गए हैं। हाल ही में राजस्थान सूबे के पशुपालन मंत्री लालचंद्र कटारिया ने लंपी रोग के वेरिएंट बदलने की सम्भावना व्यक्त की है, जिससे निपटने के लिए राजस्थान सरकार ५०० पशु एम्बुलेंस खरीदने व पशु चिकित्सा केंद्र को सुचारु एवं मजबूत बनाने की पुरजोर तैयारी में है। क्योंकि पहले लंपी स्किन रोग सिर्फ गोवंश में ही था, लेकिन अब भैंस भी इसकी चपेट में आ चुकी हैं, इसलिए राज्य सरकार इसको बहुत ही गंभीरता से ले रही है। पशुपालन मंत्री लालचंद्र कटारिया जी ने ये भी बताया कि राजस्थान सरकार गोवंश का मुफ्त में टीकाकरण तेज़ी से करा रही है एवं पशुओं में लम्पी रोग की तबाही को रोकने के लिए पर्याप्त मात्रा में पशु चिकित्सा केंद्रों पर औषधी का पर्याप्त बंदोबस्त भी किया है। पशुपालकों को इससे काफी सहायता प्राप्त होगी और इस रोग से निपटने में भी सहजता होगी। हालाँकि भैसों में इस रोग के पाए जाने से पशुपालक व किसान दोनों की ही समस्या बढ़ गयी है। पशुपालन विभाग भी इस बात को बहुत ही गंभीरता से ले रहा है।

राजस्थान सरकार ने ३० करोड़ की राशि पशु चिकित्सा सुविधा के लिए जारी की

लंपी स्किन रोग से निवारण के लिए सरकार ने पशु चिकित्सा केंद्रों के लिए ३० करोड़ की धन राशि जारी की है, जो कि सहजता से इस रोग से निपटने में काफी हद तक मदद करेगी और पशुपालकों पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। साथ ही उनके रोगग्रस्त पशुओं को पशु चिकित्सा केंद्र ले जाने के लिए एम्बुलेंस की भी सुविधा प्रदान की जाएगी। पशुपालक सरकार के इस सराहनीय कदम की प्रशंसा कर रहे हैं।
नेशनल डेयरी डवलपमेंट बोर्ड‘ और ‘इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रांसडिसिप्लिनरी हेल्थ साइंसेज एंड टेक्नोलॉजी’ ने प्रो. एन. पुण्यमूर्थी के मार्गदर्शन में 
कुछ पारंपरिक पद्दति द्वारा देशी ईलाज सुझाए हैं, जिन्हे आप इस लेख में पढ़ सकते हैं : लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease)

चिकित्सा केंद्र में कितनी भर्तियां होने की सम्भावना है

तेज़ी से फैलने वाले इस संक्रामक लंपी रोग से निपटने के लिए अधिक मात्रा में कर्मचारियों की आवश्यकता पड़ रही है। इसके अनुरूप सरकार ने अर्जेंट टेम्पररी बेसिस पर काफी नियुक्तियां की है एवं अभी और नियुक्ति करने के विचार में है, क्योंकि पशुओं को लंपी स्किन रोग तीव्रता से चपेट में लेता जा रहा है। उपरोक्त में जैसा बताया गया है कि इसने भैंसों में भी अपनी दस्तक दे दी है, इसके चलते पशु चिकित्सा केंद्रों में पशुधन सहायक व पशु चिकित्सक दोनों की आवश्यक पड़ेगी, इसलिए सरकार द्वारा ३०० पशुधन सहायकों की भर्ती की जा रही है।

गोवंश टीकाकरण को लेकर राजस्थान की रणनीति क्या है

राजस्थान राज्य सरकार ने लंपी स्किन रोग की दस्तक की खबर से ही गंभीरता पूर्वक गोवंश टीकाकरण करना सुचारु रूप से शुरू करा दी थी, साथ ही पशुओं के लिए प्रयाप्त मात्रा में औषधि और पशु चिकित्सकों का प्रबंध भी कर चुकी है। इसके साथ ही गोट पॉक्स टीकाकरण का पूरा खर्चा राज्य सरकार खुद ही वहन कर रही है। हालाँकि केंद्र सरकार से भी इस चिंताजनक पशु रोग से सम्बंधित मदद के लिए राजस्थान सरकार परस्पर वार्ता में है।
राजस्थान: लंपी स्किन रोग को लेकर सरकार एक्शन मोड पर

राजस्थान: लंपी स्किन रोग को लेकर सरकार एक्शन मोड पर

अगले 2 माह में 40 लाख पशुओं का वैक्सीनेशन करवाएगी सरकार

देश भर में इन दिनों लंपी स्किन रोग या ‘लम्पी स्किन डिजीज‘ या एलएसडी (LSD –
Lumpy Skin Disease) मवेशियों के ऊपर कहर बनकर टूट पड़ा है। इस रोग की वजह से अभी तक देश में हजारों गायों की मौत हो चुकी है और लाखों गायें संक्रमित हो चुकी हैं, जिससे दुग्ध उत्पादन में कमी आई है और किसानों को भारी घाटा झेलना पड़ा है। राज्य में ज्यादातर पशु बीमार हैं, इसलिए राज्य सरकार के ऊपर इसे ठीक करने का प्रेशर भी बढ़ता जा रहा है। इसको देखते हुए अब राजस्थान की सरकार लंपी स्किन रोग से निपटने के लिए एक्शन मोड में आ गई है। राज्य सरकार ने त्वरित फैसला लेते हुए बताया है, राजस्थान के भीतर सरकार अगले 60 दिनों में 40 लाख मवेशियों का वैक्सीनेशन करवाने जा रही है। वैक्सीनेशन के प्रबंधन को लेकर सरकार ने आदेश जारी कर दिए हैं। मवेशियों में फैल रही लंपी स्किन बीमारी की रोकथाम के लिए जो भी कार्य हो रहे हैं, उसको लेकर राजस्थान सरकार की मुख्य सचिव ऊषा शर्मा ने सभी जिला कलेक्टरों एवं पशुपालन विभाग के अधिकारियों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेसिंग के माध्यम से चर्चा की तथा कार्यों में प्रगति की जानकारी ली। लम्पी स्किन डिजीज के देशी उपचार के लिए यह पोस्ट पढ़ें : लम्पी स्किन डिजीज (Lumpy Skin Disease) ऊषा शर्मा ने बताया कि मवेशियों में फैल रही लंपी स्किन डिजीज को लेकर राज्य सरकार बेहद चिंतित है तथा इसके रोकथाम के लिए आवश्यक कदम उठा रही है। अब पशुओं को जितनी भी वैक्सीन लगाईं जाएंगी, उनकी प्रतिदिन समीक्षा की जाएगी। टीकाकरण के लिए सरकार ने जो लक्ष्य रखा है उसके अनुसार ही प्रतिदिन काम किया जाएगा। अब पशु विभाग के अधिकारियों को गौशालाओं में प्रतिदिन अवलोकन के आदेश दिए गए हैं। पशुपालन विभाग के सरकारी सचिव पीसी किशन ने कहा, "वैक्सीनेशन के काम में किसी प्रकार की कोताही बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। 40 लाख वैक्सीन लगाने के टारगेट को देख़ते हुए प्रतिदिन एक लाख वैक्सीन लगाने का लक्ष्य रखा गया है। अभी तक गोट पॉक्स वैक्सीन Goat Pox Vaccine ) की सबसे ज्यादा 7 लाख डोज एकमेर जिले को आवंटित की गईं हैं।"

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पीसी किशन ने बताया कि अभी तक इस वायरस के रोकथाम के लिए राज्य में 16 लाख 22 हजार मवेशियों को पूर्ण रूप से वैक्सीनेट किया जा चुका है। राज्य में अभी तक लम्पी स्किन रोग की वजह से 14.16 लाख पशु संक्रमित हुए हैं, जिनमें से 13.63 लाख का अभी तक उपचार किया जा चुका है। उपचार किये जाने के बाद अभी तक 8.67 लाख पशु पुर्ण रूप से स्वस्थ्य हो चुके हैं। सरकार लगातार प्रयास कर रही है ताकि जल्दी से जल्दी इस बामारी को पूर्ण रूप से ख़तम किया जा सके। इस बीमारी की वजह से किसानों को बहुत ज्यादा घाटा हुआ है, इसलिए राजस्थान सरकार ने केंद्र सरकार से इस इस बीमारी को महामारी घोषित करने की मांग की है, ताकि पशुपालकों और गौशालाओं को इस बीमारी से मरने वाली गायों का मुआवजा दिलवाया जा सके। इसके लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख चुके हैं, जिसमें उन्होंने इस बीमारी की भयावहता पर प्रधाममंत्री मोदी का ध्यान आकृष्ट करवाया है।
महाराष्ट्र सरकार ने पशुपालकों को दिया मुआवजा, लगभग 98% हुआ टीकाकरण

महाराष्ट्र सरकार ने पशुपालकों को दिया मुआवजा, लगभग 98% हुआ टीकाकरण

कोरोना महामारी से अभी पूर्ण रुप से निजात मिला ही नहीं था तब तक एक नया महामारी जो पशुओं के लिए काफी घातक साबित हो रहा है, वह है लंपी स्किन रोग (‘लम्पी स्किन डिजीज‘ या एलएसडी ; LSD - Lumpy Skin Disease), विगत कुछ महीने के यह रोग भारत के कई राज्यों में फैल चुका है। आपको यह जान कर हैरानी होगी की इन्ही राज्यों में है महाराष्ट्र, जहाँ के 33 के करीब जिलों में इस रोग से संक्रमित पशु देखे गए हैं। आपको बता दें की इस रोग के कारण यहां के पशुपालक भी काफी चिंतित थे। लेकिन अब महाराष्ट्र सरकार ने इन पशुओं के लिए काफी व्यवस्था की जिससे कुल 1 लाख 73 हजार 528 पशु में से 1 लाख 12 हजार पशु ठीक हो चुके हैं। गौरतलब हो की महाराष्ट्र सरकार ने टीकाकरण का रफ्तार बढ़ा दिया है और आपको जान कर हैरानी होगी की अब तक महाराष्ट्र में 97% टीकाकरण सफलतापूर्वक किया जा चुका है। इस टीकाकरण को सफल बनाने के लिए बहुत सारे निजी संगठन, दुग्ध संघ और पशुपालकों ने भी अपना अहम योगदान दिया है। पशुपालन विभाग के द्वारा बचे हुए पशुओं का भी टीकाकरण जल्द ही पूरा कर लेने की बात की है।

राज्य स्तरीय टास्क फोर्स का गठन

महाराष्ट्र सरकार ने लंपी स्किन रोग से निपटने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया है, जिसका कमान पशुपालन आयुक्त, पुणे को सौंप दिया है। इस टास्क फोर्स के अंदर राज्य के 12 लोग को शामिल किए हैं, जिनको पशुपालन विभाग के अधिकारियों और इन रोग के टिका उत्पादकों के साथ बातचीत के लिए अधिकृत किया है।


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महाराष्ट्र सरकार का पशुपालकों के लिए अनोखा पहल

महाराष्ट्र सरकार ने पशुपालकों के लिए एक राहत का ऐलान किया है, जिसमें उनके द्वारा कहा गया है जान गँवाने वाले प्रति गाय के लिए 30 हजार रुपए और बैल के लिए 25 हजार रुपए दिया जायेगा। इसके अलावा मरने वाले प्रति बछड़े के लिए 16 हजार रुपए दिया गया है। आपको बता दें की इस मुवाजा का पशुपालकों को काफी लंबे समय से इंतजार था, जिससे पशुपालक को काफी सहयोग एवम सहूलियत मिला है। जानकारी के मुताबिक अब तक इस रोग से मरने वाले पशुओं के लगभग 3100 पशुपालकों के लिए उनके खाते में लगभग 8 करोड़ रुपए सीधे जमा किए गए हैं। गौरतलब हो की इस लंपी स्किन रोग का मामला इतना बढ़ गया है की सभी अधिकारियों को हाई अलर्ट पर रहने का निर्देश दिया गया है । पशुपालन विभाग ने सभी प्रजनकों को भी पशुओं का टीकाकरण कराने की अपील की है। आपको बता दें कि महाराष्ट्र के बहुत सारे राज्यों को लगभग 141 लाख टीके दिए गए हैं। आपको बता दें कि महाराष्ट्र के लगभग 13 जिलों में टीकाकरण का काम पूरा कर लिया गया है, जिसमे अहमदनगर, धुले, अकोला, बीड, कोल्हापुर, सोलापुर आदि अन्य जिले भी शामिल हैं। अब तक लगभग 98% प्रतिशत गोजातीय पशुओं का टीकाकरण हो जाएगा. जानकारी के लिए लंपी स्किन रोग का पहला मामला जलगांव में अगस्त के महीने में 4 तारीख को आया था।
आने वाले दिनों में ऐसा रहेगा आगरा का मौसम, कुछ महत्वपूर्ण सलाहें

आने वाले दिनों में ऐसा रहेगा आगरा का मौसम, कुछ महत्वपूर्ण सलाहें

कृषि विज्ञान केन्द्र बिचपुरी आगरा को भारत मौसम विज्ञान विभाग नई दिल्ली से प्राप्त मौसम के पूर्वानुमान के आधार पर आगामी पांच दिनों में बादल न रहने व वर्षा नहीं होने का अनुमान है। हवा लगभग 4.2 से 10.7 किमी प्रतिघंटा की औसत गति से मुख्यतः पूरव - उत्तर से पश्चिम - उत्तर से बहने की संभावना है। अधिकतम तापमान 26.9 से 30.2 व न्यूनतम तापमान 11.7 से 14.7 डिग्री सेल्सियस के लगभग रहने की संभावना है। आपेक्षिक आर्द्रता सुबह 33 से 46 व शाम को 18 से 24 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है।


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किसानों को सलाह है, कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाऐं। क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण होता है, जिससे स्वास्थय सम्बन्धी बीमारियों की संभावना बढ जाती है। इस कारण फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है, कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें। इससे मृदा की उर्वरकता बढ़ती है, साथ ही यह पलवार का भी काम करती है। धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग @ 4 कैप्सूल/हैक्टेयर किया जा सकता है। किसानों को सलाह दी जाती है, कि वह स्थानीय कृषि रसायन विक्रेताओं की सलाह पर कृषि कार्य ना करें कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लेकर ही कृषि कार्य करें।

फसल सम्बंधित महत्वपूर्ण सलाहें

गेंहू की बुवाई हेतू खाली खेतों को तैयार करें तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें। उन्नत प्रजातियाँ-सिंचित परिस्थिति- (एच. डी. 3226), (एच. डी. 2967), (एच. डी. 3086), (एच. डी. 2851)। बीज की मात्रा 100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर। जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरपाईरिफाँस 20 ईसी @ 5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से पलेवा के साथ दें। नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर होनी चाहिये।


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बरसीम की बुवाई के लिए खेत की तैयारी करें। बुवाई का समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक उचित रहता है, प्रजातियां- वरदान, मेस्कावी, J.H.B-146, J.H.T.B-146. बीज दर: प्रति हैक्टेयर 25-30 किग्रा० बीज बोते है। पहली कटाई मे चारा की उपज अधिक लेने के लिए 1 किग्रा० /हे० चारे वाली टा -9 सरसों का बीज बरसीन में मिलाकर बोना चाहियें। उर्वरक: 20 किग्रा० नत्रजन एंव 80 किग्रा० फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से बोते समय खेत में छिड़क कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।

बागवानी (अमरुद) सम्बंधित सलाह

अमरूद में शीत ऋतु के फल बन चुके हैं। आवश्यकता आधारित सिंचाई के माध्यम से मिट्टी में उचित नमी बनाए रखें। कलम के नीचे से निकल रहे कल्लों को तोड़ते रहें। वृक्ष के थाले को खरपतवार मुक्त रखें। यदि ड्रिप प्रणाली से उर्वरकोंका कों प्रयोग किया जा रहा है, तो पानी में घुलनशील उर्वरकों को 7 दिनों के अंतराल पर प्रयोग करें। इस स्तर पर, फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पोटेशियम का प्रयोग महत्वपूर्ण है।

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पशु सम्बंधित सलाह

किसान भाइयो लम्पी स्किन रोग की रोकथाम के लिए जनपद में "गोट पॉक्स वैक्सीन" उपलब्ध है। स्वस्थ पशु का वैक्सीनेसन कराएं। रोग से प्रभावित पशु को देखते ही नजदीकी पशुचिकित्सक को सूचना दें। लंपी स्किन रोग का घरेलू उपचार-1 kg नीम की पत्तियों को 4 लीटर पानी मे हल्की आग पर उबालें और जब पानी आधा रह जाये तब उसे ठंडा करके छान लें, और रोग से प्रभावित पशु के शरीर को शूती कपड़े से पोछदें। यह प्रक्रिया पशु के ठीक होने तक करते रहें।
इस राज्य के एक गांव में आज तक नहीं जलाई गयी पराली बल्कि कर रहे आमदनी

इस राज्य के एक गांव में आज तक नहीं जलाई गयी पराली बल्कि कर रहे आमदनी

बीते खरीफ सीजन की कटाई के दौरान जलने वाली पराली से जनता का सांस तक लेने में दिक्क्त पैदा करदी थी। परंतु फिर भी एक गांव में एक भी पराली नहीं  जलाई गयी थी। बल्कि इस गांव में पराली द्वारा बहुत सारी समस्याओं का निराकरण किया गया है। अक्टूबर-नवंबर माह के दौरान खरीफ फसलों की कटाई उपरांत देश में पराली जलाने की परेशानी चिंता का विषय बन जाती है। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं पंजाब से लेकर के बहुत सारे गांव में किसान धान काटने के उपरांत बचे-कुचे अवशेष को आग के हवाले कर देते हैं, इस वजह से बड़े स्तर पर पर्यावरण प्रदूषित होता है। यह धुआं हवा में उड़ते हुए   शहरों में पहुंच जाता है एवं लोगों के स्वास्थ्य पर अपना काफी प्रभाव डालता है। साथ ही, खेत में अवशेष जलने की वजह से खेती की उर्वरक ताकत कम हो जाती है। इन समस्त बातों से किसानों में सजगता एवं जागरुकता लाई जाती है, इतना करने के बाद भी बहुत सारे किसान मजबूरी के चलते पराली में आग लगा देते हैं। अब हम बात करेंगे उस गांव के विषय में, जहां पर पराली जलाने का एक भी मामला देखने को नहीं मिला है। इस गांव में किसान पूर्व से ही सजग एवं जागरूक हैं एवं खुद से कृषि से उत्पन्न फसल अवशेषों को जलाने की जगह पशुओं के चारे एवं मल्चिंग खेती में प्रयोग करते हैं। इसकी सहायता से गांव में ना तो पशु चारे का कोई खतरा होता है एवं ना ही प्रदूषण, साथ ही, पशुओं के दुग्ध के और फसल की पैदावार भी बढ़ जाती है। किसानों को बेहतर आय अर्जन में बेहद सहायता मिलती है।

किसानों की पहल काबिले तारीफ है

किसान तक की खबर के अनुसार, झारखंड राज्य भी धान का एक प्रमुख उत्पादक राज्य माना जाता है। झारखंड के किसानों द्वारा भी खरीफ सीजन में धान का उत्पादन करते हैं। परंतु इस राज्य में पराली जलाने के अत्यधिक कम मामले देखने को मिले हैं। यहाँ बहुत से गांवों में बहुत वर्षों से पराली जलाने की एक भी घटना नहीं हुई है। अब यह किसानों की समझदारी और जागरुकता का परिचय देती है। खबरों के मुताबिक, झारखंड राज्य के अधिकाँश किसानों द्वारा धान की कटाई-छंटाई हेतु थ्रेसिंग उपकरणों का प्रयोग किया गया है। इसके उपरांत पराली को खेत में ही रहने दिया जाता है, जिससे कि यह मृदा में गलने के बाद खाद में तब्दील हो जाए अथवा सब्जी की खेती हेतु मल्चिंग के रूप में पराली का समुचित प्रयोग किया जा सके। हालांकि, कई सारे किसान इस पराली को घर भी उठा ले जाते हैं।

पराली से बनाया जा रहा है पशु चारा

बतादें, कि केवल झारखंड के गांव ही नहीं बल्कि देश में बहुत सारे गांव ऐसे हैं, जिन्होंने शून्य व्यर्थ नीति को अपनाया है। मतलब कि, फसल अवशेषों में आग नहीं लगाई जाती है, बल्कि उसको पशुओं के चारे हेतु तथा पुनः खेती में ही प्रयोग किया जाता है। बहुत सारे गांव में इस पराली द्वारा पशुओं हेतु सूखा चारा निर्मित किया जाता है, जिसको भुसी अथवा कुटी के नाम से जाना जाता है।


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पराली से निर्मित चारे में मवेशियों के लिए काफी पोषक तत्व एवं देसी आहार विघमान होते हैं, जिससे कि पशु भी चुस्त दुरुस्त व स्वस्थ रहते हैं। साथ ही, बेहतर दूध भी प्राप्त हो पायेगा। भारत में चारे की बढ़ती कीमतों की सबसे मुख्य वजह यह है, कि जिस पराली को पूर्व में पश चारे के रूप में उपयोग किया जाता था।  विडंबना की बात यह है, कि आज पराली को जला दिया जाता है। बहुत सारे स्थानों पर पशुपालन की जगह मशीनों का उपयोग बढ़ रहा है, इस वजह से चारे और दूध दोनों के दाम बढ़ रहे हैं । विशेषज्ञों का कहना है, कि बहुत सारे गांव में लंपी के बढ़ते संक्रमण के मध्य पशुपालन में बेहद कमी देखने को मिली है। फिलहाल, चारे को खाने के लिए पशु ही नहीं होंगे, तो पराली भी किसी कार्य की नहीं है। इसलिए ही किसान पराली को आग लगा देते हैं, हालाँकि किसान यदि चाहें तो अन्य राज्यों में अथवा अन्य चारा निर्माण करने वाली इकाइयों को पराली विक्रय कर आय कर सकते हैं।

पराली से इस प्रकार होती है आमदनी

झारखंड राज्य में रहने वाले किसान रामहरी उरांव का कहना है, कि पूर्व में किसान पारंपरिक तौर से कृषि करते थे। फसल कटाई के उपरांत जो अवशेष बचते थे, उसे पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता था। खेत में ही इन अवशेषों को सड़ाकर खाद में तब्दील किया जाता था। उनका कहना है, कि वर्तमान में भी उनके गांव में पराली से पशुओं हेतु कुटी निर्मित की जाती है, जिसमें चोकर इत्यादि का मिश्रण कर पशुओं को खिलाते हैं। बहुत सारे किसान फसल अवशेषों को मल्चिंग के रूप में उपयोग करते हैं। यह पूर्णतया पर्यावरण के अनुकूल एवं जैविक है, जिसे खेत में फैलाने से मृदा को बहुत सारे लाभ अर्जित होते हैं। इसी वजह से बहुत सारे किसान पराली को जलाने की जगह फसल की पैदावार में वृद्धि हेतु खेती में प्रयोग करते हैं।