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Health Benefits

अखरोट में है अद्भुत स्वास्थ्य लाभ, सेहत के लिए है गुणकारी

अखरोट में है अद्भुत स्वास्थ्य लाभ, सेहत के लिए है गुणकारी

अखरोट के अंदर बेहद लाभकारी गुण पाए जाते है , जो की स्वास्थ्य की लिए फायदेमंद होते है। अखरोट के अंदर मैग्नेसियम , विटामिन बी और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। साथ ही अखरोट को प्रोटीन का सबसे अच्छा श्रोत माना जाता है। अखरोट के अंदर अन्य तत्वों की तुलना में एएलए ओमेगा एसिड की मात्रा 3 फीसदी ज्यादा पायी जाती है। एएलए ओमेगा एसिड शरीर के अंदर एलडीएल कैलेस्ट्रोल को कम करता है और शरीर में स्वस्थ कैलेस्ट्रोल के स्तर को बनाये रखता है।  

अखरोट हृदय के लिए भी बेहद लाभकारी साबित हुआ है। ये रक्तचाप के स्तर को संतुलित बनाये रखता है ,और हृदय से जुडी परेशानियों को कम करता है। ये खून में जमने वाले थक्कों की स्तिथि को भी नियंत्रित करता है।  ये शरीर को एंटीऑक्सीडेंट भी प्रदान करता है। अखरोट सूजन को कम करने के साथ साथ वजन को भी कम करने में सहायक रहता है। 

अखरोट को ब्रेन फ़ूड के नाम से भी जाना जाता है , क्योंकि अखरोट देखने में बिलकुल दिमाग के जैसे दिखता है। रोजाना अखरोट का सेवन करने से दिमाग बेहतर तरीके से काम करता है। साथ ही अखरोट के अंदर प्रचुर मात्रा में कैलोरी पायी जाती है , इसीलिए इसका उपयोग संयम के साथ खाने के लिए कहा जाता है। 

आँत के स्वास्थ्य के लिए है बेहद फायदेमंद 

अखरोट में बहुत से पोषक तत्व ऐसे पाए जाते है , जिनके रोजाना आहार करने से आँतों में होने वाली सूजन और परेशानी को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही ये पेट से जुडी परेशानियों में भी राहत प्रदान करता है। यह पाचन तंत्र को स्वस्थ और मजबूत बनाये रखता है। यह शरीर को अधिक मात्रा में पोषक तत्व भी प्रदान करता है। 

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याददाश्त को बेहतर मनाने में मदद करता है 

अखरोट का उपयोग याददाश्त को बेहतर बनाने के लिए भी किया जाता है। अखरोट के अंदर पाए जाने वाले तत्व तनाव को दूर करने के लिए किया जाता है। अखरोट का सेवन करने से दिमाग पर सकारात्मक प्रभाव पड़ते है। अखरोट के अंदर विटामिन - इ , पॉलीअनसेचुरेटेड फैट पाया जाता है , जो मानसिक लचीलेपन और स्मृति जैसे कार्यो को बढ़ाने के लिए मददगार होते है। 

कैंसर रोग के लिए है उपयोगी 

अखरोट के अंदर पॉलीफिनोल तत्व पाया जाता है , जो कैंसर के रोग को नियंत्रित करने के लिए लाभकारी माना जाता है।  साथ ही शोध के अनुसार बताया गया है , यह कैंसर के ट्यूमर को भी शरीर के अंदर पनपने से रोकता है। अखरोट कैंसर की वजह से  शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों को भी कम करता है। 

हड्डियों के लिए है फायदेमंद 

अखरोट में कैल्शियम और फॉस्फोरस के साथ साथ अल्फा लिनोलेनिक एसिड भी पाया जाता है। यह एसिड हड्डियों को मजबूत बनाये रखता है। अखरोट हड्डियों में होने वाले ऑस्टियोपोरोसिस नामक रोग को भी प्रतिबंधित यानी रोकता है। अखरोट  हड्डियों में से आने वाली कट कट की आवाज को भी ख़त्म करता है और हड्डियों को स्वस्थ और मजबूत बनाता है। 

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साथ ही अखरोट में प्रचुर मात्रा में फाइबर भी पाया जाता है , जो की भूख को नियंत्रित कर वजन को कम करता है। अखरोट में कैलोरी और फैट भरपूर मात्रा में होने के बावजूद यह वजन कम करने में भी सहायक सिद्ध हुआ है। अखरोट में एंटी इंफ्लेमेट्री और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी पाए जाते है , जो थकान और चिंता को भी कम करने में सहायक होते है। 

लो ब्लड प्रेशर में सहायक 

लो ब्लड प्रेशर की स्तिथि में व्यक्ति को चिड़चिड़ापन होना , चक्कर आना  आदि समस्याएं हो सकती है। साथ ही ब्लड प्रेशर के ज्यादा कम होने से व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है।  इन सभी बीमारियों के लिए अखरोट का सेवन उचित माना जाता है। साथ ही ब्लड प्रेसर के बार बार घटने या बढ़ने से व्यक्ति को हृदय सम्बन्धी रोगों का भी सामना करना पड सकता है। 

अखरोट का तासीर गर्म होता है इसीलिए इसका सेवन सर्दियों के मुकाबले गर्मियों में कम करना चाहिए। अखरोट खाने से बहुत से फायदे होते है। कुछ लोगो द्वारा इसका सेवन सूखे मेवे के रूप में और कुछ लोगो द्वारा इन्हे भिगोकर किया जाता है। जिन लोगो को पित की पथरी की समस्या है, उनके लिए भी ये बेहद लाभकारी है। अखरोट का सेवन सुबह खाली पेट भी किया जा सकता है। 

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हर किसी चीज के दो पहलू होते है, ऐसा ही नहीं अखरोट खाने से सिर्फ फायदे ही होते और कोई नुक्सान नहीं। अखरोट का अत्यधिक सेवन नुकसानदायक साबित हो सकता है। अखरोट का सेवन गर्मियों के समय में कम करें , क्योंकि अखरोट का तासीर गर्म होता है। साथ ही किसी गर्भवती महिला के लिए भी अखरोट का सेवन हानिकारक सिद्ध हो सकता है। इसीलिए डॉक्टर से परामर्श लेकर ही इसका उपयोग करें। साथ ही, अखरोट के छिलके में कई ऐसे तत्व पाए जाते है, जो त्वचा पर लाल रैसेज पैदा कर सकते है।

जानें वन करेला की सम्पूर्ण जानकारी

जानें वन करेला की सम्पूर्ण जानकारी

वन करेला की खेती हमारे देश के बहुत से राज्यों में की जाती है। इसे अलग अलग जगहों पर अलग अलग नामो से जाना जाता है, जैसे : मीठा करेला ,जंगली करेला , कंटीला परवल , करोल ,भाट करेला ,आदि। यह मानसून में मिलने वाली एक तरह की सब्जी है। इस सब्जी के बाहरी सतह पर कांटेदार रेशे उगे हुए होते है। वन करेला आकर में बहुत छोटा रहता है। इसका वैज्ञानिक नाम मोमोरेख डाइगोवा है। 

वन करेले की खेती 

वन करेले ज्यादातर बारिश के मौसम में होते है। बारिश होने पर वन करेला की बेले अपने आप उगने लग जाती है। यह सब्जी अन्य सब्जियों की तुलना में काफी महंगी होती है। इसके बीज आसानी से न मिलने के कारण इसकी खेती नहीं की जा सकती है। बारिश का सीजन ख़त्म होने के बाद वन करेले के बीज जमीन पर गिर जाते है। पहली बारिश के होते ही वन करेले की बेले उगने लगती है। 

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वन करेले की किस्में

वन करेला की दो किस्में होती है ,जो खेती के रूप में उगाई जाती है। जैसे : छोटे आकर वाले वन करेले और इंदिरा आकर ( आर एम एफ 37 )। वन करेले का प्रबंधन कंद या बीजो के द्वारा किया जाता है। इसीलिए किसानों द्वारा अच्छी वैरायटी वाले बीजो का उपयोग करना चाहिए। बुवाई से पहले बीजो की अच्छे से जांच कर ले ,कही बीज रोगग्रस्त तो नहीं है। 

वन करेला के बीजो की बुवाई 

वन करेले की खेती के लिए मिट्टी का पीअच स्तर 6-7 माना जाता है। इसकी बुवाई का काम दोमट और बलुई मिट्टी में किया जा सकता है। लेकिन अच्छी पैदावार के लिए दोमट मिट्टी को ज्यादा उपयोगी माना जाता है। वन करेले के पौधे को अच्छे से पनपने के लिए  गर्म आद्र जलवायु की आवश्यकता रहती है। 

वन करेले की बुवाई के लिए किसी खास तकनीक की आवश्यकता नहीं रहती है। वन करेले के बीजो को रात में गर्म पानी में भिगोकर रख दे। इससे बीजो का अच्छा अंकुरण होता है। इसकी बुवाई 3-4 इंच की दूरी पर की जाती है। आवश्यकता अनुसार इसमें पानी देते रहना चाहिए। बुवाई के कुछ दिन बाद ही इसमें नन्हे नन्हे पौधे देखने को मिलते है। 

वन करेला का आहार करने से हो सकते है ,ये लाभ 

वन करेला में बहुत से विटामिन ,कैल्शियम ,जिंक ,कॉपर और मैग्नीशियम जैसे तत्व पाए जाते है। इसके उपयोग से बहुत सी बिमारियों में तो आराम मिलता है ,लेकिन ये स्वास्थ के लिए भी बेहद लाभकारी होती है ,जानिए कैसे :

कार्बोहायड्रेट से परिपूर्ण 

वन करेले में अधिक मात्रा में कार्बोहायड्रेट पाया जाता है। कार्बोहायड्रेट का सेवन करने से शरीर में फुर्ती और ताकत आती हैं ,जो की किसी भी काम को करने के लिए बेहद आवश्यक रहती है। दिन प्रतिदिन होने वाले कामो के लिए शरीर में ताकत रहना जरूरी है ,बिना ताकत के कोई भी काम नहीं हो पायेगा। 

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विटामिन से भरपूर 

वन करेले के अंदर बहुत से विटामिन पाए जाते है, इसमें विटामिन ए और विटामिन बी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। वन करेले का सेवन करने से शरीर के अंदर विटामिन्स की जो कमी रहती है उसे कम करता है। महंगी महंगी दवाइयों के सेवन से भी कोई फायदा न मिलने पर भी आहार में वन करेले का उपयोग करके देख सकते है। इसके उपयोग से आपको शरीर में विटामिन की कमी महसूस नहीं होगी। 

प्रोटीन और फाइबर की उचित मात्रा 

वन करेले में प्रोटीन और फाइबर की उचित मात्रा पायी जाती है।  प्रोटीन जो शरीर के अंदर कोशिकाओं की मरम्मत करने में सहायक रहता है। और फाइबर जो शरीर की पाचन किर्यो को स्वस्थ रखने में मददगार रहता है। यह पाचन किर्याओ को सुचारु रूप से कार्य करने के लिए मदद करता है। 

वन करेले की खेती ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में की जाती है। वन करेले की तासीर गर्म रहती है, साथ ही ये खाने में भी बहुत स्वादिष्ट लगती है। 

वन करेला बरसात के मौसम में होने वाली खुजली , पीलिया और बेहोशी में भी लाभदायक साबित हुआ है।  इसके अलावा वन करेला का आहार करने से आँखों की समस्या ,बुखार और इन्फेक्शन जैसे समस्याओं से भी राहत मिलती है। इसके खाने से ब्लड शुगर लेवल भी संतुलित रहता है।

लोबिया दाल में सेहत के लिए बेहद फायदेमंद पोषक तत्व विघमान रहते हैं

लोबिया दाल में सेहत के लिए बेहद फायदेमंद पोषक तत्व विघमान रहते हैं

लोबिया के अंदर काफी ज्यादा मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है, जिसकी वजह से इसे प्रोटीन का पावरहाउस भी कहा जाता है। लोबिया केवल इंसान के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं की सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि लोबिया में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट एवं बहुत सारे अन्य पोषक तत्व भी भरपूर मात्रा में मौजूद होते हैं। हमारे शरीर को दीर्घकाल तक स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रोटीन एक जरूरी तत्व होता है, जो शरीर की मांसपेशियों को सशक्त और विभिन्न प्रकार के रोगों से लड़ने में भी सहायता करता है। जब भी प्रोटीन की बात होती है, तो इसका मुख्य स्त्रोत दूध, घी इत्यादि को माना जाता है। परंतु, क्या आपको मालूम है, कि इन सब से भी कहीं ज्यादा प्रोटीन की मात्रा लोबिया में होती है। लोबिया में काफी अच्छी मात्रा में प्रोटीन होता है। लोबिया को सुपरफूड भी कहा जाता है। क्योंकि यह प्रोटीन का पावर हाउस होता है। यह केवल इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि पशुओं के शरीर के लिए भी बेहद लाभकारी होता है। पशुओं के लिए लोबिया हरा चारा होता है, जिससे खाने से दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ काफी हद तक बढ़ जाती है। लोबिया के अंदर प्रोटीन, फाइबर, विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सीडेंट तथा विभिन्न अन्य पोषक तत्वों की मात्रा भी ज्यादा पाई जाती है। यह हरे रंग के दानेदार आकार में होता है। आज हम आपको लोबिया के फायदे और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी के विषय में बताऐंगे।

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लोबिया में पोषक तत्व कितनी मात्रा में पाए जाते हैं

  • प्रोटीन की मात्रा- 100 ग्राम लोबिया में तकरीबन 25-30 ग्राम प्रोटीन होता है।
  • फाइबर की मात्रा- 16-25 ग्राम लोबिया में लगभग 100 ग्राम तक फाइबर पाया जाता है।
  • कॉम्प्लेक्स कार्ब्सस की मात्रा- 60-65% कार्बोहाइड्रेट लोबिया में होती है।
  • आयरन की मात्रा- लोबिया के अंदर भरपूर मात्रा में आयरन होता है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन C और फोलेट की भी भरपूर मात्रा उपलब्ध होती है।
  • ये ही नहीं बल्कि लोबिया की शुरुआती ताजी पत्तियों एवं डंठल में भी पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसमें कुछ फीसदी कच्चा प्रोटीन, 3.0% ईथर का अर्क और 26.7% कच्चा फाइबर इत्यादि होता है।
  • लोबिया का सेवन करने से क्या-क्या लाभ होते हैं
  • यदि आप नियमित तौर पर लोबिया का सेवन करते हैं तो निश्चित तौर पर आपका वजन जल्दी से कम होने लगेगा।
  • लोबिया के सेवन से पाचन तंत्र काफी मजबूत बनता है।
  • यदि आप ह्रदय संबंधित किसी भी रोग से ग्रसित हैं, तो आप लोबिया का सेवन करें।
  • रात को सटीक समय पर नींद ना आने की बीमारी और इससे संबंधित अन्य बीमारी के लिए भी लोबिया बेहद फायदेमंद है।
  • लोबिया इम्युनिटी को बूस्ट करने में काफी सहयोग करता है।
  • लोबिया ब्लड शुगर लेवल को काबू में करता है। यदि आप मधुमेह यानी डायबिटीज की बीमारी से जूझ रहे हैं, तो लोबिया का सेवन जरूर करें।
कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की 5 उन्नत किस्मों को विकसित किया है

कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की 5 उन्नत किस्मों को विकसित किया है

कृषक भाइयों रबी सीजन आने वाला है। इस बार रबी सीजन में आप मटर की उन्नत किस्म से काफी अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। बेहतरीन किस्मों के लिए भारत के कृषि वैज्ञानिक नवीन-नवीन किस्मों को तैयार करते रहते हैं। इसी कड़ी में वाराणसी के काशी नंदिनी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा मटर की कुछ बेहतरीन किस्मों को विकसित किया है। भारत में ऐसी बहुत तरह की फसलें हैं, जो किसानों को कम खर्चे व कम वक्त में अच्छा उत्पादन देती हैं। इन समस्त फसलों को किसान भाई अपने खेत में अपनाकर महज कुछ ही माह में मोटा मुनाफा कमा सकते हैं।

सब्जियों की खेती से भी किसान अच्छा-खासा मुनाफा कमा सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसी फसलों में
सब्जियों की फसल भी शम्मिलित होती है, जो किसान को हजारों-लाखों का फायदा प्राप्त करवा सकती है। यदि देखा जाए तो किसान अपने खेत में खरीफ एवं रबी सीजन के मध्य में अकेले मटर की बुवाई से ही 50 से 60 दिनों में काफी मोटी पैदावार अर्जित कर सकते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि देश-विदेश के बाजार में मटर की हमेशा मांग बनी ही रहती है। बतादें, कि मटर की इतनी ज्यादा मांग को देखते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के कृषि वैज्ञानिकों ने मटर की बहुत सारी शानदार किस्मों को इजात किया है। जो कि किसान को काफी शानदार उत्पादन के साथ-साथ बाजार में भी बेहतरीन मुनाफा दिलाएगी।

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काशी अगेती

इस किस्म की मटर का औसत वजन 9-10 ग्राम होता है। बतादें, कि इसके बीज सेवन में बेहद ही ज्यादा मीठे होते हैं। इसकी फलियों की कटाई बुवाई के 55-60 दिन उपरांत किसान कर सकते है। फिर किसानों को इससे औसत पैदावार 45-40 प्रति एकड़ तक आसानी से मिलता है।

काशी मुक्ति

मटर की यह शानदार व उन्नत किस्म चूर्ण आसिता रोग रोधी है। यह मटर बेहद ही ज्यादा मीठी होती है। यह किस्म अन्य समस्त किस्मों की तुलना में देर से पककर किसानों को काफी अच्छा-खासा उत्पादन देती है। यदि देखा जाए तो काशी मुक्ति किस्म की प्रत्येक फलियों में 8-9 दाने होते हैं। इससे कृषक भाइयों को 50 कुंतल तक बेहतरीन पैदावार मिलती है।

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अर्केल मटर

यह एक विदेशी प्रजाति है, जिसकी प्रत्येक फलियों से किसानों को 40-50 कुंतल प्रति एकड़ पैदावार प्राप्त होती है। इसकी प्रत्येक फली में बीजों की तादात 6-8 तक पाई जाती है।

काशी नन्दनी

मटर की इस किस्म को वाराणसी के काशी नंदिनी भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने इजात किया है। इस मटर के पौधे आपको 45-50 सेमी तक लंबे नजर आऐंगे। साथ ही, इसमें पहले फलियों की उपज बुवाई के करीब 60-65 दिनों के उपरांत आपको फल मिलने लगेगा। बतादें, कि इसकी किस्म की हरी फलियों की औसत पैदावार 30-32 क्विंटल प्रति एकड़ तक अर्जित होती है। साथ ही, बीज उत्पादन से 5-6 क्विंटल प्रति एकड़ तक अर्जित होती है। ऐसे में यदि देखा जाए तो मटर की यह किस्म जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, पंजाब, उत्तर प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के कृषकों के लिए बेहद शानदार है।

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काशी उदय

इस किस्म के पौधे संपूर्ण तरीके से हरे रंग के होते हैं। साथ ही, इसमें छोटी-छोटी गांठें और प्रति पौधे में 8-10 फलियां मौजूद होती हैं, जिसकी प्रत्येक फली में बीजों की तादात 8 से 9 होती है। इस किस्म से प्रति एकड़ कृषक 35-40 क्विंटल हरी फलियां अर्जित कर सकते हैं। किसान इस किस्म से एक नहीं बल्कि दो से तीन बार तक सुगमता से तुड़ाई कर सकते हैं।
लीची की खेती से इस बार किसानों को मिलेगा मोटा मुनाफा, जानें क्यों

लीची की खेती से इस बार किसानों को मिलेगा मोटा मुनाफा, जानें क्यों

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस बार आपको लगभग 15 मई तक बाजार में लीची आना शुरू हो जाएगी। बिहार के लोग ऑनलाइन भी इसकी खरीददारी कर सकेंगे। 

लीची का सेवन करने वालों के लिए बहुत अच्छी खबर है। बिहार के मुजफ्फरपुर की सुविख्यात शाही लीची कुछ ही दिनों में बागानों से निकलने वाली है। 

बिहार की मशहूर शाही लीची आगामी 20 दिनों में आसानी से बाजार में मिल जाएगी। इस बार राज्य सरकार की तरफ से खास तैयारियाँ की गई हैं। 

रेल और हवाई जहाज की सहायता से देश के भिन्न-भिन्न राज्यों व विदेशों में भी शाही लीची भेजने की तैयारी है।

लीची के बेहतर उत्पादन की आशा

इस बार लीची की काफी शानदार पैदावार होने की संभावना है। बिहार के अतिरिक्त मुंबई, नागपुर, बेंगलुरु, चेन्नई, लखनऊ और विशाखापट्टनम जैसे शहरों में 18 मई से लीची भेजना प्रारंभ कर दिया जाएगा। 

कोल्ड चेन की सहायता से 20 डिग्री सेल्सियस तापमान पर इसे भेजा जाएगा। इन शहरों में 10 से 15 किलो के पैक भेजे जाएंगे। वहीं, बिहार के अलग-अलग शहरों में एक किलो लीची का कंज्यूमर पैक व पांच किलो का फैमिली पैक निर्मित किया जाएगा। 

इसको ताजा रखने के लिए बीते वर्ष खुद से तैयार हर्बल सॉल्यूशन का परीक्षण सफल रहा है। इस बार इसका इस्तेमाल किया जाएगा, ताकि आप ताजा लीची का स्वाद ले सकें।

लीची के सफल यातायात के लिए क्या तैयारी है ?

मुजफ्फरपुर के किसान के अनुसार, वर्ष 1993 में ही गांव में प्रोसेसिंग प्लांट लगाया गया था, जिसकी वजह से वह लीची के पल्प को भी बेचते हैं। उन्होंने कहा कि इस बार मौसम साथ नहीं दे रहा है। 

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इस वजह से लीची काफी कमजोर हो जा रही है। इसके फल भी गिर रहे हैं। फिर भी बगान से लगभग 100 टन से ज्यादा लीची की पैदावार होगी। 

इस बार बिहार सरकार की सहायता से पैक हाउस तैयार कर रहे हैं। साथ ही, रेफ्रिजरेटर वैन की भी खरीदारी करेंगे। इससे छह डिग्री सेल्सियस में लीची पहुंचाई जाएगी। 

किसान भाई ऑनलाइन भी लीची खरीद सकेंगे 

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस बार लगभग 15 मई तक बाजार में लीची उपलब्ध हो जाएगी। बिहार के लोग ऑनलाइन भी इसकी खरीदारी कर सकेंगे। 

कोरोना काल में इस सुविधा को प्रारंभ किया गया था। इस सीजन में सभी बागों से लगभग 3,000 टन लीची की पैदावार होगी। यहां से विशेषकर यूपी, बिहार व झारखंड में 15 व 10 किलो के पैक में लीची भेजी जाएगी।

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें प्याज की खेती, होगा बंपर मुनाफा

गर्मियों के मौसम में ऐसे करें प्याज की खेती, होगा बंपर मुनाफा

देश के कई राज्यों में प्याज की खेती साल में सिर्फ एक बार की जाती है। लेकिन कुछ राज्य ऐसे भी हैं जहां प्याज की खेती साल में तीन बार की जाती है। इसमें महाराष्ट्र का स्थान सबसे ऊपर है। इस राज्य के धुले, अहमदनगर, नासिक, पुणे और शोलापुर जिलों में प्याज का बंपर उत्पादन होता है। यहां पर साल में अमूमन तीन बार प्याज की खेती की जाती है। इसलिए महाराष्ट्र को देश का सबसे बड़ा प्याज उत्पादक राज्य कहा जाता है। महाराष्ट्र के नाशिक जिले की लासलगांव मंडी को एशिया की सबसे बड़ी प्याज की मंडी का दर्जा प्राप्त है। प्याज का उपयोग ज्यादातर सब्जी के रूप में हर घर में किया जाता है। इसके अलावा थोड़ी बहुत मात्रा में इसका उपयोग दवाई बनाने में भी किया जाता है। प्याज की फसल सामान्यतः 100 से 120 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। प्याज का बंपर उत्पादन होने के कारण किसान भाई इस खेती से ज्यादा मुनाफा कमाते हैं।

प्याज की खेती के लिए उचित जलवायु और मृदा

प्याज की खेती के लिए ज्यादा तापमान उचित नहीं माना जाता। ऐसे में गर्मियों के मौसम में किसानों को यह सुनिश्चित करना होता है कि खेत का तापमान बहुत ज्यादा न बढ़ने पाए। इसके साथ ही शुष्क जलवायु इस खेती के लिए बेहतर मानी जाती है। अगर प्याज की खेती में मृदा की बात करें तो  उचित जलनिकास एवं जीवांषयुक्त उपजाऊ दोमट तथा बलुई दोमट मिट्टी इसके लिए उपयुक्त होती है। प्याज की खेती अत्यंत गीली या दलदली जमीन पर नहीं करना चाहिए। प्याज की खेती के लिए मिट्टी का पी.एच. मान 6.5-7.5 के मध्य होना चाहिए। इसके लिए किसान भाई बुवाई के पहले मृदा परीक्षण अवश्य करवा लें।

प्याज की किस्में

बाजार में प्याज की कुछ किस्में ज्यादा प्रसिद्ध हैं, जिनमें एग्री फाउण्ड डार्क रेड, एन-53 और भीमा सुपर का नाम आता है। एग्री फाउण्ड डार्क रेड किस्म को भारत में कहीं भी आसानी से उगाया जा सकता है। इसके कंद गोलाकार होते हैं, जिनका आकार 4 से 6 सेंटीमीटर बड़ा होता है। इसके साथ ही यह फसल 95-110 दिनों के भीतर तैयार हो जाती है। यह किस्म एक हेक्टेयर में 300 क्विंटल का उत्पादन दे सकती है। ये भी पढ़े: वैज्ञानिकों ने निकाली प्याज़ की नयी क़िस्में, ख़रीफ़ और रबी में उगाएँ एक साथ एन-53 किस्म को भी भारत में कहीं भी उगाया जा सकता है। लेकिन इसकी फसल 140 दिनों में तैयार होती है। साथ ही इस किस्म का उत्पादन 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है। भीमा सुपर एक अलग तरह की प्याज की किस्म है। जिसमें किसानों को उगाने में ज्यादा मेहनत नहीं करनी होती है। यह किस्म 110-115 दिन में तैयार हो जाती है और इसका उत्पादन भी 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है।

ऐसे करें भूमि की तैयारी

प्याज की खेती के लिए भूमि को अच्छे से तैयार करना बेहद जरूरी है। इसके लिए कल्टीवेटर या हैरो की मदद से 2 से 3 बार जुताई करें। जुताई के साथ ही खेत में पाटा अवश्य चलाएं, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो सके और नमी सुरक्षित रहे। भूमि की सतह से 15 से.मी. उंचाई पर 1.2 मीटर का बेड तैयार कर लें। जिस पर प्याज की बुवाई की जाती है।

खाद एवं उर्वरक की मात्रा

प्याज की फसल के लिए खाद एवं उर्वरक का प्रयोग मिट्टी के परीक्षण के आधार पर करना चाहिए। अगर खेत में अधिक पोषक तत्वों की जरूरत हो तो खेत में गोबर की सड़ी खाद 20-25 टन/हेक्टेयर की दर से बुवाई के 1 माह पूर्व डालना चाहिए। इसके अलावा खेत में नत्रजन 100 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर, स्फुर 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर तथा पोटाश 50 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाल सकते हैं। यदि खेत की गुणवत्ता ज्यादा ही खराब है तो खेत में सल्फर 25 कि.ग्रा.एवं जिंक 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से डाल सकते हैं। ये भी पढ़े: आलू प्याज भंडारण गृह खोलने के लिए इस राज्य में दी जा रही बंपर छूट

ऐसे तैयार करें पौध

प्याज की पौध को उठी हुई क्यारियों में तैयार किया जाता है। बोने के पहले बीजों को अच्छे से उपचारित करना चाहिए। प्रति वर्ग मीटर क्षेत्र में 15 से 20 ग्राम बीज बोना चाहिए। इसके लिए 3 वर्ग मीटर की क्यारियां बनाना चाहिए। एक हेक्टेयर भूमि में 8 से 10 किलोग्राम बीज बोया जाता है।

ऐसे करें रोपाई

प्याज की पौध की रोपाई मिट्टी के तैयार किए गए बेड में की जाती है। इसके लिए एक हेक्टेयर क्षेत्र में रोपाई करने के लिए 12 से 15 क्विंटल पौध की जरूरत होती है। पौध की रोपाई कूड़ शैय्या पद्धति से करना चाहिए। इसमें 1.2 मीटर चौड़ा बेड एवं लगभग 30 से.मी. चौड़ी नाली तैयार की जाती हैं। पौध को अंकुरित होने के 45 दिन बाद ही बेड पर लगाना चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण

प्याज की फसल में खरपतवार से छुटकारा पाने के लिए समय-समय पर निराई गुड़ाई की जरूरत होती है। पूरी फसल के दौरान कम से कम 3 से 4 बार निराई गुड़ाई अवश्य करना चाहिए। इसके अलावा खरपतवार को नष्ट करने के लिए रासायनिक पदार्थो का उपयोग भी किया जा सकता है। इसके लिए पौध की रोपाई के 3 दिन पश्चात 2.5 से 3.5 लीटर/हेक्टेयर की दर से पैन्डीमैथेलिन का छिड़काव किया जा सकता है। इसे 750 लीटर पानी में घोला चाहिए। इसके अलावा इतने ही पानी में 600-1000 मिली/हेक्टेयर के हिसाब से ऑक्सीफ्लोरोफेन का छिड़काव भी किया जा सकता है। ये भी पढ़े: प्याज की खेती के जरूरी कार्य व रोग नियंत्रण

प्याज की फसल की सिंचाई

प्याज की फसल में सिंचाई बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। अन्यथा फसल तुरंत ही सूख जाएगी। इस फसल में यह ध्यान देने योग्य बात होती है कि जब कंदों का निर्माण हो रहा हो तब खेत में पानी की कमी न रहे। नहीं तो पौध का विकास रुक जाएगा और प्याज का आकार बड़ा नहीं हो पाएगा। ऐसे में उपज प्रभावित हो सकती है। आवश्यकतानुसार 8 से 10 दिन के अंतराल में फसल में पानी देते रहें। यदि खेत में पानी रुकने लगे तो उसकी जल्द से जल्द निकासी की व्यवस्था करना चाहिए। अन्यथा फसल में फफूंदी जनित रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है।

कंदों की खुदाई

जैसे ही प्याज की पत्तियां सूखने लगती हैं और प्याज की गांठ अपना आकार ले लेती है तो 10-15 दिन पहले सिंचाई बंद कर देना चाहिए। जब खेत पूरी तरह से सूख जाए, उसके बाद पौधों के शीर्ष को पैर की मदद से कुचल देना चाहिए। इससे कंदों की वृद्धि रुक जाती है और कंद ठोस हो जाते हैं। इसके बाद कंदों को खोदकर खेत में ही सुखाना चाहिए। सूखने के बाद प्याज को भरकर भंडारण के लिए भेज देना चाहिए।
अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

अब उत्तर प्रदेश में होगी स्ट्रॉबेरी की खेती, सरकार ने शुरू की तैयारी

स्ट्रॉबेरी (strawberry) एक शानदार फल है। जिसकी खेती समान्यतः पश्चिमी ठन्डे देशों में की जाती है। लेकिन इसकी बढ़ती हुई मांग को लेकर अब भारत में भी कई किसान इस खेती पर काम करना शुरू कर चुके हैं। पश्चिमी देशों में स्ट्रॉबेरी की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है जो वहां पर किसानों के लिए लाभ का सौदा है। इसको देखकर दुनिया में अन्य देशों के किसान भी इसकी खेती शुरू कर चुके हैं। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती करना और उसे खरीदना एक स्टेटस का सिंबल है। इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार दिनोंदिन इस खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास कर रही है। इसके लिए प्रदेश में नई जमीन की तलाश की जा रही है जहां स्ट्रॉबेरी की खेती की जा सके। [caption id="attachment_10376" align="alignright" width="225"]एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry) एक उत्तम स्ट्रॉबेरी (A Perfect Strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश सरकार के अंतर्गत आने वाले उद्यान विभाग की गहन रिसर्च के बाद यह पाया गया है कि प्रयागराज की जमीन और जलवायु स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए पूरी तरह से उपयुक्त है। इसके लिए सरकार ने प्रायोगिक तौर पर कार्य करना शुरू किया है और बागवानी विभाग ने 2 हेक्टेयर जमीन में खेती करना शुरू कर दी है, जिसके भविष्य में बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। बागवानी विभाग के द्वारा प्रयागराज की जमीन की स्ट्रॉबेरी की खेती करने के उद्देश्य से टेस्टिंग की गई थी जिसमें बेहतरीन परिणाम निकलकर सामने आये हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती से जुड़े सरकारी अधिकारियों का कहना है कि जल्द ही प्रयागराज में बड़े पैमाने पर स्ट्रॉबेरी की खेती आरम्भ की जाएगी।

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स्ट्रॉबेरी की खेती करना बेहद महंगा सौदा है। लेकिन इस खेती में मुनाफा भी उतना ही शानदार मिलता है जितनी लागत लगती है। स्ट्रॉबेरी की खेती में लागत और मुनाफे का अंतर अन्य खेती की तुलना में बेहद ज्यादा होता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की एक एकड़ में खेती करने में लगभग 4 लाख रुपये की लागत आती है। जबकि इसकी खेती के बाद किसानों को प्रति एकड़ 18-20 लाख रुपये का रिटर्न मिलता है, जो एक शानदार रिटर्न है। प्रयागराज के जिला बागवानी अधिकारी नलिन सुंदरम भट्ट ने बताया कि एक हेक्टेयर (2.47 एकड़) खेत में लगभग 54,000 स्ट्रॉबेरी के पौधे लगाए जा सकते हैं और साथ ही इस खेती में ज्यादा से ज्यादा जमीन का इस्तेमाल किया जा सकता है। [caption id="attachment_10375" align="alignleft" width="321"]आधा स्ट्रॉबेरी दृश्य (Half cut strawberry view) आधा स्ट्रॉबेरी आंतरिक संरचना दिखा रहा है (Half cut strawberry view)[/caption] खेती विशेषज्ञों के अनुसार स्ट्रॉबेरी की खेती को ज्यादा पानी की जरुरत भी नहीं होती है। यह भारतीय किसानों के लिए एक शुभ संकेत है क्योंकि भारत में आजकल हो रहे दोहन के कारण भूमिगत जल लगातार नीचे की ओर जा रहा है, जिसके कारण ट्यूबवेल सूख रहे हैं और सिंचाई के साधनों में लगातार कमी आ रही है। इसलिए भारतीय किसान अन्य खेती के साथ स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए भी पानी का उचित प्रबंधन करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सिंचाई के लिए उपयुक्त मात्रा में पानी की उलब्धता बनाई जा सके।    

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स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए रेतीली मिट्टी या भुरभुरी जमीन की जरुरत होती है। इसके साथ ही स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए 12 से लेकर 18 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान हो तो बहुत ही अच्छा होता है। यह परिस्थियां उत्तर भारत में सर्दियों में निर्मित होती हैं, इसलिए सर्दियों के समय स्ट्रॉबेरी की खेती किसान भाई अपने खेतों में कर सकते हैं और मोटा मुनाफा कमा सकते हैं। इजरायल की मदद से भारत में अब ड्रिप सिंचाई पर भी काम तेजी से हो रहा है, यह सिंचाई तकनीक इस खेती के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस माध्यम से सिंचाई करने पर सिंचाई की लागत में किसान भाई 30 प्रतिशत तक की कमी कर सकते हैं। इसके साथ ही भारी मात्रा में पानी की बचत होती है। ड्रिप सिंचाई का सेट-अप खरीदना और उसे इस्तेमाल करना बेहद आसान है। आजकल बाजार में तरह-तरह के ब्रांड ड्रिप सिंचाई का सेट-अप किसानों को उपलब्ध करवा रहे हैं। [caption id="attachment_10377" align="alignright" width="300"]एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (strawberries in a nursery pot) एक नर्सरी पॉट में स्ट्रॉबेरी (Strawberries in a nursery pot)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी अधिकारियों ने बताया कि स्ट्रॉबेरी की खेती में एक एकड़ जमीन में लगभग 22,000 पौधे या एक एक हेक्टेयर जमीन में लगभग 54,000 पौधे  लगाए जा सकते हैं। इस खेती में किसान भाई लगभग 200 क्विंटल प्रति एकड़ की उपज ले सकते हैं। स्ट्रॉबेरी की खेती में लाभ का प्रतिशत 30 से लेकर 50 तक हो सकता है। यह फसल के आने के समय, उत्पादन, डिमांड और बाजार भाव पर निर्भर करता है। भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती सितम्बर और अक्टूबर में शुरू कर दी जाती है। शुरूआती तौर पर स्ट्रॉबेरी के पौधों को ऊंची मेढ़ों पर उगाया जाता है ताकि पौधों के पास पानी इकठ्ठा होने से पौधे सड़ न जाएं। पौधों को मिट्टी के संपर्क से रोकने के लिए प्लास्टिक की मल्च (पन्नी) का उपयोग किया जाता है। स्ट्रॉबेरी के पौधे जनवरी में फल देना प्रारम्भ कर देते हैं जो मार्च तक उत्पादन देते रहते हैं। पिछले कुछ सालों में भारत में स्ट्रॉबेरी की तेजी से डिमांड बढ़ी है। स्ट्रॉबेरी बढ़ती हुई डिमांड भारत में इसकी लोकप्रियता को दिखाता है। [caption id="attachment_10379" align="alignleft" width="300"]स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry) स्ट्रॉबेरी की सतह का क्लोजअप (Closeup of the surface of a strawberry)[/caption] उत्तर प्रदेश के बागवानी विभाग ने बताया कि सरकार स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। इसके अंतर्गत सरकार किसानों को स्ट्रॉबेरी के पौधे 15 से 20 रूपये प्रति पौधे की दर से मुहैया करवाने जा रही है। सरकार की कोशिश है कि किसान इस खेती की तरफ ज्यादा से ज्यादा आकर्षित हो ताकि किसान भी इस खेती के माध्यम से ज्यादा मुनाफा कमा सकें। सरकार के द्वारा सस्ते दामों पर उपलब्ध करवाए जा रहे पौधों को प्राप्त करने के लिए प्रयागराज के जिला बागवानी विभाग में पंजीयन करवाना जरूरी है। जिसके बाद सरकार किसानों को सस्ते दामों में पौधे उपलब्ध करवाएगी। पंजीकरण करवाने के लिए किसान को अपने साथ आधार कार्ड, जमीन के कागज, आय प्रमाण पत्र, निवास प्रमाण पत्र, बैंक की पासबुक, पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ इत्यादि ले जाना अनिवार्य है। [caption id="attachment_10380" align="alignright" width="300"]पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries) पके और कच्चे स्ट्रॉबेरी (Ripe and unripe strawberries)[/caption] जानकारों ने बताया कि कुछ सालों पहले पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में खास तौर पर सहारनपुर और पीलीभीत में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू की गई थी। वहां इस खेती के बेहतर परिणाम देखने को मिले हैं। सबसे पहले इन जिलों के किसानों की ये खेती करने में सरकार ने मदद की थी लेकिन अब जिले के किसान इस मामले में पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुके हैं। इसको देखते हुए सरकार प्रयागराज में स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू करने को लेकर बेहद उत्साहित है। सरकार के अधिकारियों का कहना है, चूंकि इस खेती में पानी की बेहद कम आवश्यकता होती है और पानी का प्रबंधन भी उचित तरीके से किया जा सकता है, इसलिए स्ट्रॉबेरी की खेती का प्रयोग सूखा प्रभावित बुंदेलखंड के साथ लगभग 2 दर्जन जिलों में किया जा रहा है और अब कई जिलों में तो प्रयोग के बाद अब खेती शुरू भी कर दी गई है।
सोने चांदी से कम नहीं यह सब्जी, जानिये क्यों है अमीरों की पहली पसंद

सोने चांदी से कम नहीं यह सब्जी, जानिये क्यों है अमीरों की पहली पसंद

आजकल बाजार में तरह तरह की सब्जियां देखने को मिल रही हैं. जिनका ना सिर्फ रंग रूप बाकियों से अलग होता है बल्कि महंगी भी होती हैं. हालांकि खाने की चीज कोई भी हो, ज्यादातर महंगी ही होती है. लेकिन एक सब्जी ऐसी भी है, जो इतनी महंगी है जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है. हम बात कर रहे हैं हॉप शूट नाम की सब्जी की. विटामिन् ई, बी, सी और खनिज तत्वों से भरपूर इस सब्जी को अमीरों की सब्जी क्यों कहते हैं, आप इस बारे में तो जरुर सोच रहे होंगे. तो आपको बता दें कि, हॉप शूट की सोने चांदी से कम नहीं है. इस सब्जी की कीमत इतनी ज्यादा है कि, इसे सिर्फ आमिर लोग ही अपनी प्लेट में सजाना पसंद करते हैं. बात इसकी कीमत की करें तो ये लाख रुपये के करीब है. महानगरों में मिलने वाली इस सब्जी को खाना है तो इससे पहले इसे ऑर्डर करना पड़ता है.

हॉप शूट के बारे में

हॉप शूट के बारे में बताएं तो यह दुनिया की सबसे महंगी
सब्जियों में शुमार है. बाजार में इसकी कीमत हमेशा 80 हजार से करीब एक लाख रुपये प्रति किलो तक रहती है. जिस वजह से सिर्फ बड़े और खानदानी लोग ही इसे खरीदने की हिम्मत दिखा पाते हैं. इसकी कीमत जितनी ज्यादा है, उतनी ही ज्यादा इसकी खेती करने में मेहनत लगती है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक एल्कोहल को बनाने में इसके फूलों का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा हर्बल प्रोडक्ट्स बनाने में ही हॉप शूट का इस्तेमाल किया जाता है.

कैंसर से लड़ने में करे मदद

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हॉप शूट में ज्यादा मात्रा में विटामिन ई, बी, ससी समेत कई तरह के खनिज तत्व पाए जाते हैं. इसके अलावा इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट के भी गुण होते हैं. इसके अलावा इसमें कई तरह की बिमारियों से लड़ने की भी ताकत होती है, जिससे शरीर मजबूत बनता है. अगर आपको चिंता, तनाव, टेंशन, बेचैनी, चिडचिडापन या फिर घबराहट की समस्या है तो, हॉप शूट के सेवन से इससे छुटकारा पाया जा सकता है. इसकी अनगिनत खूबियों की वजह से इसकी कीमत काफी ज्यादा है. एक्सपर्ट्स की मानें तो हॉप शूट खाने से शरीर को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ने की ताकत मिलती है. ये भी देखें: परती खेत में करें इन सब्जियों की बुवाई, होगी अच्छी कमाई

इन देशों में हॉप शूट को समझा जाता है कचरा

शोध के मुताबिक हॉप शूट को खाने से मसल्स में दर्द और बदन में दर्द की शिकायत से आराम मिलता है. इसके अलावा डायजेशन की समस्या से निपटने में भी हॉप शूट काफी मददगार है. नींद से जुड़ी समस्या का समाधान भी इस सब्जी के पास है. हॉप शूट को कच्चा भी खाया जाता है. खाने में कड़वा टेस्ट होने की वजह से इसका आचार भी बनाकर खाया जा सकता गौ. इस सब्जी की कीमत काफी ज्यादा है, जिसके बाद भी ब्रिटेन समेत कई देशों में इसे कचरा समझा जाता है. हॉप शूट सब्जी के बारे में ये कुछ ऐसी खास बाते हैं, जिनको जानना तो हर कोई चाहता है, लेकिन इसे खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं है.
महुआ के तेल से किसान अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं

महुआ के तेल से किसान अच्छी-खासी आमदनी कर सकते हैं

महुआ का तेल शरीर के लिए काफी लाभकारी होता है। क्योंकि इसके अंदर कई सारे अहम व महत्वपूर्ण पोषक तत्व जैसे कि फाइबर, प्रोटीन और विटामिन आदि मौजूद रहते हैं। महुआ का पेड़ सामन्यतः गांव में आज भी नजर आ जाएगा। हालाँकि, पूर्व की तुलना में इनकी तादात काफी शीघ्रता से घटती जा रही है। उसकी मुख्य वजह अनुमानुसार महुआ के पेड़ से होने वाले फायदों की जानकारी का अभाव है। अब बताइए जब लोगों को इससे होने वाले फायदों के विषय में नहीं पता होगा, तो वह उस पेड़ की देखभाल और रोपण क्यों करेंगे ? सबसे बड़ी बात यह है, कि किसान यदि चाहें तो महुआ के पेड़ से प्रति सीजन में लाखों की आय कर सकते हैं। अगर आप अच्छी खासी जमीन के मालिक हैं, तो आप महुआ का बाग लगा सकते हैं। उसके बाद आप प्रतिवर्ष इसके सीजन में अच्छी आमदनी कर सकते हैं। विशेष तौर पर इसके तेल से कृषकों को अच्छा-खासा मुनाफा हो सकता है। क्योंकि महुआ के फल से निकलने वाला तेल बेहद स्वास्थ्य वर्धक होता है और इसकी हमेशा बाजार में बनी रहती है। महुआ का तेल किसानों को काफी मुनाफा दिला सकता है।

महुआ के फल से तेल निकालने की विधि

महुआ के पेड़ की सर्वोच्च खासियत यह है, कि इसके फूल एवं फल दोनों से किसान भाई आमदनी कर सकते हैं। किसान इसके गिरते हुए फूलों को इकट्ठा कर के सुखा कर बेचते हैं। सूखे महुआ के फूलों का किसानों को बेहतर भाव मिलता है। साथ ही, इसके फल से निकलने वाले तेल की भी बाजार में खूब मांग रहती है। आपको बतादें, कि महुआ के फल से तेल निकालने के लिए सर्वप्रथम इसको छील कर इसकी गुठली निकाली जाती है। उसके बाद इस गुठली को छील कर उसके अंदर का हिस्सा निकाल कर उसको सुखाया जाता है। जब यह पूर्णतय सूख जाता है, तब इसका तेल निकल जाता है। महुआ के तेल की खासियत यह है, कि यह जितना प्राचीन होता है, इसके भीतर उतने ही अधिक औषधीय गुण बढ़ जाते हैं।

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महुआ तेल में मौजूद गुण

आपको बतादें, कि महुआ के तेल के अंदर प्रोटीन, फाइबर और विटामिन जैसे पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। इस वजह से इसका नियमित सेवन आपके शरीर को महत्वपूर्ण पोषण प्रदान करता है। साथ ही, महुआ तेल विटामिन ई का एक बेहतरीन स्रोत है, जो एंटीऑक्सीडेंट के तौर पर कार्य करता है। वहीं, आपके शरीर को विभिन्न प्रकार के बेकार तत्वों से बचाता है। साथ ही, महुआ के तेल में फाइटोस्टेरोल नामक पोषक तत्व उपस्थित रहता है, जो कोलेस्ट्रॉल को काबू करने एवं दिल से जुड़े स्वास्थ्य को सुधारने में सहायता करता है। बतादें, कि इसके तेल में पोलीयूनसेटेड फैट विघमान रहता है, जो कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। महुआ के तेल के अंदर विटामिन ई और विटामिन बी भी भरपूर मात्रा में पाई जाती है। जो कि मांसपेशियों को काफी शक्ति प्रदान कर सकती है। इस वजह से जब आप महुआ तेल से शरीर की मालिस करते हैं, तो आपकी शारीरिक थकावट के साथ-साथ आपका दर्द भी ठीक हो जाता है।
कंटोला एक औषधीय गुणों से भरपूर सब्जी है, इसके सेवन से कई सारे रोग दूर भाग जाते हैं

कंटोला एक औषधीय गुणों से भरपूर सब्जी है, इसके सेवन से कई सारे रोग दूर भाग जाते हैं

आज हम इस लेख में कंटोला नामक बागवानी फसल के विषय में बात करेंगे। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि कंटोला के अंदर भरपूर मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसमें मौजूद फाइटोकेमिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट हमारे शरीर को स्वस्थ व सेहतमंद रखते हैं। हमारे शरीर के बेहतरीन स्वास्थ्य के लिए अच्छे पोषक तत्वों की काफी जरूरत होती है। इसके लिए हमें कई तरह की सब्जियों का सेवन करना चाहिए, जो हमारे शरीर में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करें। साथ ही, हमें बाकी बीमारियों से भी दूर रखें। ऐसी स्थिति में आज हम आपको एक बेहद ही फायदेमंद सब्जी कंटोला के संबंध में बताने जा रहे हैं, जो आयुर्वेद में एक ताकतवर औषधि के तौर पर मशहूर है। इस सब्जी के अंदर मांस से 40 गुना अधिक प्रोटीन विघमान होता है। इस सब्जी में उपस्थित फाइटोकेमिकल्स हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को काफी बढ़ाता है। इसकी खेती विशेष रूप से भारत के पहाड़ी हिस्सों में की जाती है। भारत में इसे अन्य लोकल नाम कंकोड़ा, कटोला, परोपा एवं खेख्सा के नाम से जाना जाता है।

कंटोला की फसल हेतु खेत की तैयारी

कंटोला की खेती के लिए बलुई दोमट मृदा काफी अच्छी होती है। आप खेत की जुताई के बाद इसपर कम से कम 2 से 3 बार पाटा जरुर चला दें. इसकी बेहतर पैदावार के लिए खेत में समय-समय पर गोबर की खाद मिला कर जैविक तरीके से खाद देते रहें। किसी भी फसल की बेहतरीन उपज के लिए खेत की तैयारी काफी अहम भूमिका अदा करती है।

कंटोला की बुआई कब की जाती है

कंटोला एक खरीफ के समय में उत्पादित की जाने वाली फसल है। गर्मी के समय में मैदानी इलाकों में जनवरी और फरवरी महीने के अंतर्गत उगाई जाती है। साथ ही, खरीफ की फसल की जुलाई-अगस्त में बुवाई की जाती है। इसके बीजों को, कंद अथवा कटिंग के जरिए से लगाया जाता है।

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कंटोला की कटाई कब की जाती है

कंटोला के फल का बड़े आकार में होने पर ही इसकी कटाई की जाती है। इन फलों की मुलायम अवस्था में दो से तीन दिनों की समयावधि पर नियमित तुड़ाई करना फायदेमंद होता है। कंटोला की खेती करना किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।

कंटोला में कौन कौन से औषधीय गुण विघमान हैं

कंटोला अपने औषधीय गुणों की वजह से जाना जाता है। यह हमारे शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाता है। इसमें उपस्थित रासायनिक यौगिक मानव शरीर के लिए फायदेमंद होते हैं। यह शरीर के ब्लड शुगर लेवल, त्वचा में दरार एवं आंखों के बेहतरीन स्वास्थ्य के लिए सहायक साबित होता है। यह किडनी में होने वाली पथरी को भी दूर करता है। साथ ही, बवासीर के मरीजों के लिए भी लाभदायक होता है।
मोटे अनाज यानी ज्वार, बाजरा और रागी का सेवन करने से होने वाले लाभ

मोटे अनाज यानी ज्वार, बाजरा और रागी का सेवन करने से होने वाले लाभ

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ज्वार, बाजरा एवं रागी जैसे मोटे अनाजों में फाइबर, विटामिंस, आयरन और प्रोटीन जैसे मिनरल तत्व भरपूर मात्रा में उपस्थित होते हैं। इसके साथ ही ये अनाज ग्लूटन-फ्री सुपरफूड्स के रूप में जाने जाते हैं, जो डाइबिटीज को नियंत्रित करने में बेहद सहायता करते हैं। ऐसी स्थिति में आज हम आपको मोटे अनाज जैसे कि रागी, बाजरा और ज्वार का सेवन करने से होने वाले लाभों के विषय में बताऐंगे। विगत दीर्घकाल से ना सिर्फ भारत में, बल्कि विश्वभर में लोगों के मध्य मोटे अनाजों की चर्चा काफी तीव्र हो गई है। क्योंकि इस साल यानी कि 2023 को भारत सरकार के आह्वान पर इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स के रूप में मनाया जा रहा है। मोटे अनाजों की खेती तथा इस्तेमाल को प्रोत्साहन देने में जुटी भारत सरकार लगातार इस बात के प्रयास में जुटी है, कि मोटे अनाजों की पहुंच भारत में हर घर तक बने। साथ ही, मोटे अनाज का सेवन करने से होने वाले लाभों के विषय में लोगों को जानकारी मिल सके।

श्री अन्न यानी मोटे अनाज का सेवन करने से होने वाले लाभ

दरअसल, ये तो स्पष्ट तौर पर जाहिर है, कि ज्वार, बाजरा तथा रागी जैसे मोटे अनाज विटामिंस, आयरन, प्रोटीन और फाइबर जैसे मिनरल तत्वों से भरपूर होते हैं। साथ ही, ये अनाज ग्लूटन-फ्री सुपरफूड्स के रूप में जाने जाते हैं, जो कि डाइबिटीज को नियंत्रित करने में बेहद सहायता करते हैं। अगर हम बात करें ग्लूटन की तो, ग्लूटन एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो गेहूं, जौ एवं राई में पाया जाता है। इसके साथ ही ग्लूटन-फ्री डाइट सेहत में सुधार लाने, वजन घटाने एवं एनर्जी बढ़ाने में सहायता करती है।

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साथ ही, जिन व्यक्तियों को हृदय संबंधित बीमारियां हैं, उनके लिए मिलेट्स खाना लाभदायक साबित हो सकता है। क्योंकि ज्वार और बाजरा खाने से ब्लड सर्कूलेशन काफी अच्छा रहता है। ऐसी स्थिति में यदि आप दिल के मरीज हैं, तो आप ज्वार और बाजरा का सेवन अवश्य करें। इसके अतिरिक्त पेट में कब्ज हो अथवा एसिडिटी, पाचन शक्ति को बढ़ाने में भी श्री अन्न काफी लाभदायक साबित होता है। बतादें, कि मोटे अनाजों को इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में भी जाना जाता है। अस्थमा, मेटाबॉलिज्म और डायबिटीज जैसी विभिन्न स्वास्थ्य परेशानियों को दूर करने में मोटे अनाजों को शानदार माना गया है।

मोटे अनाजों का सेवन इन बीमारियों से ग्रसित लोग ना करें

हाइपोथायरायडिज्म, जिसको अंडरएक्टिव थायरॉयड ग्रंथि के नाम से भी जाना जाता है। यदि कोई व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित है, तो उन्हें मोटे अनाजों का सेवन करने से बचना चाहिए। क्योंकि, मोटे अनाज में गोइट्रोजेन होता है जो आयोडीन के अवशोषण में बाधा पैदा कर सकता है। हालांकि, जब खाना पकाया जाता है, तो पकने की वजह से इसमें मौजूद गोइट्रोजेन की मात्रा कम हो सकती है। परंतु, इसको पूर्णतय समाप्त नहीं किया जा सकता।