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पूसा परिसर में बिल गेट्स ने किया दौरा, खेती किसानी के प्रति व्यक्त की अपनी रुची

पूसा परिसर में बिल गेट्स ने किया दौरा, खेती किसानी के प्रति व्यक्त की अपनी रुची

गेट्स फाउंडेशन के चेयरमैन ब‍िल गेट्स (Bill Gates) द्वारा पूसा कैंपस में गेहूं एवं चने की उन प्रजातियों की फसलों के विषयों में जाना जो जलवायु पर‍िवर्तन की जटिलताओं का सामना करने में समर्थ हैं। विश्व के अरबपति बिल गेट्स (Bill Gates) द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) का भृमण करते हुए, यहां के पूसा परिसर में तकरीबन डेढ़ घंटे का समय व्यतीत किया एवं खेती व जलवायु बदलाव के विषय में लोगों से विचार-विमर्श किया।

बिल गेट्स ने कृषि क्षेत्र में अपनी रुची जाहिर की

आईएआरआई के निदेशक ए.के. सिंह द्वारा मीडिया को कहा गया है, कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष एवं ट्रस्टी बिल गेट्स (Bill Gates) द्वारा आईएआरआई के कृषि-अनुसंधान कार्यक्रमों, प्रमुख रूप से जलवायु अनुकूलित कृषि एवं संरक्षण कृषि में गहन रुचि व्यक्त की।

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इसी मध्य गेट्स (Bill Gates) द्वारा आईएआरआई की जलवायु में बदलाव सुविधा एवं कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च पैमाने के सहित खेतों में उत्पादित की जाने वाली फसलों के विषय में जानकारी अर्जित की है। बिल गेट्स ने मक्का-गेहूं फसल प्रणाली के अंतर्गत सुरक्षित कृषि पर एक कार्यक्रम में भी मौजूदगी दर्ज की। गेट्स ने संरक्षण कृषि के प्रति अपनी विशेष रुचि व्यक्त की। उसकी यह वजह है, कि गेट्स का एक लक्ष्य विश्व स्तर पर कुपोषण की परेशानी का निराकरण करना है। इसलिए ही वह स्थायी कृषि उपकरण विकसित करने के लिए निवेश कर रहे हैं। बिल गेट्स द्वारा खेतों में कीड़ों एवं बीमारियों की निगरानी हेतु आईएआरआई द्वारा विकसित ड्रोन तकनीक समेत सूखे में उत्पादित होने वाले छोले पर हो रहे एक कार्यक्रम को ध्यानपूर्वक देखा।

बिल गेट्स (Bill Gates) ने दौरा करने के बाद क्या कहा

संस्थान के निदेशक डॉ. अशोक कुमार स‍िंह द्वारा गेट्स के दौरा को कृषि अध्ययन एवं जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में कारगर कदम बताया है। गेट्स का कहना है, क‍ि देश में कृष‍ि के राष्ट्रीय प्रोग्राम अपनी बेहद अच्छी भूमिका निभा रहे हैं। फाउंडेशन से जुड़कर कार्य करने एवं सहायता लेने हेतु योजना निर्मित कर दी जाएगी। जलवायु परिवर्तन, बायोफोर्टिफिकेशन से लेकर फाउंडेशन सहयोग व मदद करेगा तब और बेहतर होगा। आईएआरआई को जीनोम एडिटिंग की भाँति नवीन विज्ञान के इलाकों में जीनोम चयन एवं मानव संसाधन विकास का इस्तेमाल करके पौधों के प्रजनन के डिजिटलीकरण पर परियोजनाओं हेतु धन उपलब्ध कराया जाएगा।
मेरीखेती द्वारा किसान पंचायत का भव्य आयोजन किया गया, सरकारी वैज्ञानिकों द्वारा किसानों की सभी समस्याओं पर चर्चा

मेरीखेती द्वारा किसान पंचायत का भव्य आयोजन किया गया, सरकारी वैज्ञानिकों द्वारा किसानों की सभी समस्याओं पर चर्चा

मेरीखेती द्वारा जनपद बुलंदशहर के नरसेना गांव में आयोजित की गई किसान पंचायत में कृषि से संबंधित बड़े बड़े कृषि वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस पंचायत में गौ संरक्षण और मशीनरी के माध्यम से जैविक खेती की महत्ता के विषय में कृषि विशेषज्ञों एवं किसानों के बीच संवाद हुआ। इस किसान पंचायत के दौरान कृषि विशेषज्ञों ने किसानों को गौ संरक्षण करने से होने वाले अनेकों फायदों के बारे में बेहतर ढ़ंग से जानकारी प्रदान की। इसके साथ साथ मशीनरी के माध्यम से किस तरह कृषि की जाए इसके संबंध में भी किसानों को बहुत सारी सलाह और महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। मांगेराम त्यागी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किसान यूनियन ने किसानों को गौ संरक्षण और आधुनिक मशीनरी से जैविक खेती करने के लिए आग्रह किया। साथ ही, उन्होंने मेरीखेती का आभार किया कि वह हर महीने किसानों और कृषि वैज्ञानिकों के बीच एक कड़ी का कार्य करती है। डॉ विपिन कुमार एसोसिएट डायरेक्टर एग्रोनोमी कृषि विज्ञान केंद्र गौतम बुद्ध नगर ने किसानों को जैविक खेती से होने वाले लाभ और इसकी जरूरत को लेकर किसानों से वार्तालाप किया। उन्होंने कहा कि जैविक खेती से मृदा की उर्वरक शक्ति बने रहने के साथ साथ जन मानस की सेहत भी ठीक रहेगी।

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डॉ रेशु सिंह सह प्राध्यापक पादप सुरक्षा एवं प्रभारी अधिकारी कृषि विज्ञान केंद्र बुलंदशहर ने किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि वह अच्छा बीज, उर्वरक का संतुलित प्रयोग, उन्नत कृषि विधियों को अपनाना तथा सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था आदि जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को सदैव कृषि विशेषज्ञों के सलाह मशवरा से करें। इससे उनको खेती किसानी में अच्छे परिणाम हांसिल होंगे। डॉ सी.बी. सिंह फॉर्मर सीनियर साइंटिस्ट कृषि विज्ञान IARI रीजनल स्टेशन पूसा बिहार & एक्स जॉइंट डायरेक्टर कृषि मंत्रालय भारत सरकार ने किसानों को कृषि की आधुनिक तकनीकों के विषय में काफी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की। उन्होंने कहा कि किसानों को अधिक मुनाफा पाने के लिए पारंपरिक खेती की लीक से हटकर आधुनिक एवं नवीन कृषि तकनीकों का उपयोग करना चाहिए। डॉ राजपाल सिंह प्रोफेसर अमर सिंह कॉलेज लखोटी बुलंदशहर ने किसान पंचायत में किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि किसान एवं पशुपालकों को गौ संरक्षण पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। क्योंकि गौवंश आदिकाल से खेती किसानी का अभिन्न भाग रहा है। आज गाय के गोबर से नवीन व आधुनिक मशीनरी द्वारा बायोगैस प्लांट, पेंट और ना जाने कितने प्रकार के उत्पाद किए जा रहे हैं। यदि गौ संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया गया तो आगामी समय में दूध की जगह मिलावटी जहर पीने को मिलेगा। डॉ. प्रशांत सिंह सहायक प्रोफेसर मृदा और जल संरक्षण इंजीनियरिंग, नई दिल्ली में आईएआरआई से एम.टेक और पीएचडी ने किसानों से वार्ता करते हुए कहा कि कृषि क्षेत्र में बेहतरीन उत्पादन अर्जित करने के लिए मृदा एक प्रमुख कारक होती है। इसलिए किसानों को फसल का चयन करने से भी पहले मृदा का परीक्षण अवश्य करना चाहिए। साथ ही, अत्यधिक उत्पादन की चाहत में इतना भी नहीं भूलें कि मृदा को जहरीले रसायनों से काफी नुकसान होता है। कुछ समय तक अच्छा उत्पादन मिल सकता है। लेकिन उसके पश्चात मृदा जहरीली और बंजर भी हो सकती है। इसलिए जैविक खाद का उपयोग करना सेहत और मिट्टी दोनों के लिए अच्छा होता है।
नींबू की खेती से अच्छी उपज पाने के लिए नींबू की इन खास किस्मों के विषय में जानें

नींबू की खेती से अच्छी उपज पाने के लिए नींबू की इन खास किस्मों के विषय में जानें

नींबू की खेती करने के लिए दोमट मृदा सबसे उपयुक्त होती है। नींबू का उपयोग सब्जी के स्वाद को बढ़ाने, नींबू की चाय बनाने और गर्मियों में शिकंजी बनाने के लिए किया जाता है। आज हम इस लेख में आपको नींबू की विभिन्न प्रकार की किस्मों के विषय में बताने वाले हैं। नींबू की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। यह पीले रंग का बेहद ही खट्टा एवं चटपटे स्वाद का होता है। इसका उपयोग चटनी, अचार एवं शरबत आदि बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसे औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसकी खेती के लिए कम देखभाल की आवश्यकता होती है। आज हम आपको इन विभिन्न तरह की किस्मों एवं उनसे जुड़ी विशेषताओं के संबंध में बताने जा रहे हैं।

नींबू की गोंधोराज लेबू किस्म

बतादें, कि
नींबू की इस किस्म की खेती अधिकांश बंगाल में होती है। गोंधोराज लेबू की खेती इन क्षेत्रों में काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके छिलके मोटे एवं काफी मजबूत होते हैं। इसकी सुगंध बेहद अच्छी होती है। इसका उपयोग बंगाल के डाक्टर दवाइयाँ तैयार करते हैं। ये भी पढ़े: नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की नेपाली गोल किस्म

नेपाली गोल किस्म के नींबू की खेती भारत के दक्षिणी राज्यों में की जाती है। इस नींबू के अंदर बाकी नींबू की तुलना में काफी अधिक रस होता है। बतादें, कि इस प्रजाति का नाम नेपाली है। परंतु, यह दक्षिणी राज्यों में काफी ज्यादा मशहूर है।

नींबू की मौसंबी नींबू किस्म

मौसंबी नींबू आकाक मौसंबी की तरह होता है। यह सबसे सहजता से मिलने वाली किस्म है। इसे आप किसी भी फल अथवा सब्जियों की दुकान पर सहजता से खरीद सकते हैं। यह नींबू की प्रमुख किस्मों में से एक है, जो स्वाद में हल्का कड़वा एवं मीठा होता है।

नींबू की शरबती नींबू किस्म

शरबती नींबू के छिलके आकार में काफी मोटे होते हैं। साथ ही, इनका रस भी काफी मोटा होता है। इसकी खेती मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में अधिक होती है। इसका अधिकांश इस्तेमाल आचार निर्मित करने के लिए किया जाता है। ये भी पढ़े: नींबू की बढ़ती कीमत बढ़ा देगी आम लोगों की परेशानियां

नींबू की काजी नींबू किस्म

काजी नींबू असम राज्य का मशहूर नींबू है। बतादें, कि इस पौधे को तैयार होने में लगभग एक वर्ष तक का समय लग जाता है। बाकी नींबू के मुकाबले में यह काजी नींबू ज्यादा रसदार एवं ताजा होता है। बतादें, कि इसका उपयोग भी जूस एवं अचार तैयार करने में किया जाता है।
डॉ हरिशंकर गौड़ बने बीमा सलाहकार समिति के सदस्य

डॉ हरिशंकर गौड़ बने बीमा सलाहकार समिति के सदस्य

डॉ हरिशंकर गौड़ एक बेहतरीन कृषि वैज्ञानिक हैं। डॉ हरिशंकर ने अपना पूरा जीवन कृषि के लिए समर्पित कर दिया। इन्हें हमेशा से ही कृषि के प्रति बेहद लगाव लगा रहा है। इन्होंने लाखों विद्यार्थियों को कृषि की बारीकियां सिखाईं हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि डॉ हरिशंकर जी को बीमा सलाहकार समिति का सदस्य बनाया गया है। डॉ हरिशंकर गौड़ पूर्व में डीन एंड जॉइन्ट डायरेक्टर IARI नई दिल्ली, वाईस चांसलर सरदार बल्लभ भाई पटेल यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी और यह शारदा यूनिवर्सिटी में डीन एंड प्रोफेसर भी रहे हैं। वर्तमान में डॉ हरिशंकर गलगोटिया यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं। बतादें कि कृषि क्षेत्र पर इनकी काफी अच्छी पकड़ है। साथ ही, ये हेड ऑफ डिवीजन ऑफ नेमाटोलॉजी ICAR- IARI और प्रोजेक्ट कोर्डिनेटर (Nematology) भी रह चुके हैं।

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किसानों के लिए फसल बीमा और उसके लाभ डॉ हरिशंकर गौड़ ने दिल्ली युनिवर्सिटी से बेचलर ऑफ लॉज (LL.B.) CIVIL, CRIMINAL एंड ADMINISTRATIVE LAW जैसी डिग्रियां हांसिल की हैं। इसके अलावा उन्होंने ROTHAMSTED RESEARCH, UK से NEMATOLOGY की है। डॉ हरिशंकर गौड़ ने अपने जीवन काल में कृषि क्षेत्र को विशेष समय व तवज्जो और बेहद सकारात्मक योगदान दिया है। बतादें कि बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 (1999 का 41) के अनुच्छेद 25 के उप-धारा (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए प्राधिकरण निम्नलिखित अधिसूचना द्वारा बीमा सलाहकार समिति का पुनर्गठन करता है। इस राजपत्र में समकुल 18 सदस्यों के नाम हैं। डॉ हरिशंकर भी इस सूची में शामिल हैं।
जानें आईएआरआई-पूसा किस तरह किसानों को MSP से दोगुनी कीमत दिला रहा है ?

जानें आईएआरआई-पूसा किस तरह किसानों को MSP से दोगुनी कीमत दिला रहा है ?

किसान भाइयों आज हम आपके लिए एक अच्छी खबर लेकर आए हैं। अब आप यह सोच रहे होंगे कि, आपके लिए अच्छी खबर क्या है। तो अगर आपसे कोई कहे कि आपकी फसल का एमएसपी से डेढ़ गुना ज्यादा भाव मिल सकता है, तो यह किसानों के लिए काफी खुशी का समाचार होगा। जी हाँ, बेशक आपको यह सुनकर बड़ा ही अजीब लग रहा होगा। अब आप यह सोच रहे होंगे कि जब सरकार ने एमएसपी तय कर रखी है तो उससे ज्यादा भाव कैसे मिल सकता है। यदि यह कहा जाए कि इसमें स्वयं इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएआरआई-पूसा) कृषकों की सहायता कर रहा है, तो आपको और भी ज्यादा अचम्भा होगा। परन्तु यह बात एकदम सत्य है। हजारों की संख्या में किसान पूसा की सहायता से एमएसपी से फसल का डेढ़ गुना या इससे भी ज्यादा भाव प्राप्त कर रहे हैं।

आईएआरआई कैसे कर रहा है किसानों की मदद

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के प्रधान वैज्ञानिक और बीज उत्‍पादन इकाई के प्रभारी डा. ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है, कि "आईएआरआई किसानों की पैदावार और आय बढ़ाने में मदद कर रहा है। यह प्रयास इसी कड़ी में ही किया गया है। उन्‍होंने बताया कि आईएआरआई के पास इतनी जमीन नहीं है, कि वो तमाम किसानों को उच्‍च गुणवत्‍ता वाले बीज मुहैया करा पैदावार बढ़वा सके। इसके लिए वो किसानों के खेतों में बीज तैयार करा रहा है। आईएआरआई का यह प्रयास किसानों की आय और पैदावार दोनों को बढ़ाने में मददगार हो रहा है। शोधों से स्‍पष्‍ट हो गया है, कि उन्‍नत किस्‍म के बीजों से 30 से 40 प्रतिशत तक उपज बढ़ाई जा सकती है।

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किसानों को MSP से दोगुनी कीमत पाने के लिए इस प्रकिया से गुजरना पड़ेगा

डा. ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है, कि "सबसे पहले वैज्ञानिक यह देखते हैं कि किस फसल की कौन सी प्रजाति अच्‍छी है और उसके बीज के लिए कौन-कौन से इलाके सबसे अच्‍छे रहेंगे। जहां पर सबसे उच्‍च गुणत्‍ता का बीज पैदा करा सकते हैं। वैज्ञानिक इस पर रिसर्च करते हैं। इसके बाद वहां के किसानों से संपर्क करते हैं। इसमें किसानों के चयन के बहुत सारे आधार होते हैं। बीज तैयार करने में लागत किसान के द्वारा ही लगाई जाती है। लेकिन गाइड यानी दिशा निर्देशन आईएआरआई के वैज्ञानिक करते हैं। इस प्रक्रिया में आईएआरआई केन्‍द्र के 100-120 किमी. के दायरे में रहने वाले किसानों का चयन किया जाता है, जिससे उन्‍हें बीज तैयार होने के बाद केन्‍द्र में पहुंचाने में ज्‍यादा खर्च ना करना पड़े। कई किसान मिलकर भी बीज उत्‍पादन में शामिल हो सकते हैं, जिससे उनका बीज पहुंचाने में भाड़ा कम लगेगा।"

किसानों द्वारा तैयार की गई फसल का इस तरह भुगतान होगा

किसान अपनी फसल को तैयार होने के बाद आईएआरआई केन्‍द्र पर ले जाता है। किसान को उसी समय एमएसपी के मुताबिक भुगतान किया जाता है। इसके पश्चात वैज्ञानिक उसकी जांच-पड़ताल करते हैं, जिसमें औसतन 8 फीसदी माल गुणवत्‍ता के अनुरूप नहीं निकलता है। इसके लिए किसान और खरीदार को केन्‍द्र में बुलाया जाता है, जो इस माल को बेचता है। चूंकि, आईएआरआई इसे बीज के रूप में तैयार कराता है। इस वजह से फसल और बीज कीमत में एमएसपी के अनुसार करीब डेढ़ गुना या इससे भी ज्यादा का अंतर होता है। आईएआरआई किसान को अंतर में आए रुपये का भुगतान करता है। इस तरह से किसान को डेढ़ गुना से अधिक लागत मिल जाती है।

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कृषकों को मिलेगी घर बैठे जानकारी

किसान भाई पूसा दिल्‍ली के बीज उत्‍पादन से सीधा 011 25842686 पर डायल करके संपर्क कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त देशभर के किसान विज्ञान केन्‍द्र (केवीके) और एग्रीकल्‍चर टेक्‍नीकल इनफार्मेशन केन्‍द्र (एटीके) से संपर्क कर इसकी जानकारी हांसिल कर सकते हैं।

दिल्‍ली, उत्तर प्रदेश समेत इन राज्‍यों के किसान यहां संपर्क कर सकते हैं 

दिल्‍ली के समीपवर्ती शहरों में रहने वाले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) दिल्‍ली में बीज इकाई में जाकर सीधा संपर्क कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में वाराणसी, मेरठ, मोदीपुरम, मऊ, इज्‍जतनगर, लखनऊ, झांसी और कानपुर, मध्‍य प्रदेश में भोपाल, हरियाणा में करनाल और हिसार, राजस्‍थान में जोधपुर और बीकानेर, बिहार में पटना, छत्‍तीसढ़ में रायपुर, झारखंड में रांची, उत्‍तराखंड में देहरादून और अल्‍मोड़ा के आईसीएआर में जाकर इसकी जानकारी हांसिल कर सकते हैं।

भारत के अन्‍य राज्‍यों के लोग कैसे करें संपर्क

पूरे भारत के किसान फार्मर व्‍हाट्सअप हेल्‍पलाइन 9560297502, पूसा हेल्‍पलाइन 011-25841670 / 25841039, 25842686 और पूसा एग्रीकॉम 1800-11-8989 टोल फ्री नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। ऑनलाइन सवाल https://www.iari.res.in/bms/faq/index.php पर भेज सकते हैं। 

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा ने किसानों के हित में उठाया बड़ा कदम

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) पूसा ने किसानों के हित में उठाया बड़ा कदम

किसान भाइयों के लिए फसलों की कटाई के उपरांत सबसे बड़ी चुनौती उन्हें नुकसान होने से बचाने की होती है। इसके लिए बहुत से किसान कोल्ड स्टोरेज का  उपयोग करते हैं। 

कोल्ड स्टोरेज फसलों को संरक्षित रखने का एक अच्छा तरीका है। भारत में लाखों की संख्या में कोल्ड स्टोरेज उपलब्ध हैं। अनाज, फल और सब्जियों का भंडारण करके किसान उनको बर्बाद होने से बचा सकते हैं। इसके पश्चात उन्हें बाद में शानदार कीमतों पर बेचा जा सकता है। 

विगत कुछ वर्षों में किसानों का रूझान कोल्ड स्टोरेज की तरफ बढ़ा है। परंतु, कोल्ड स्टोरेज की तकनीक काफी मंहगी होने की वजह से सभी किसान इसका फायदा नहीं उठा पाते हैं। ऐसे ही किसानों की सहायता के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI), पूसा ने देश का सबसे सस्ता कोल्ड स्टोरेज तैयार किया है। 

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PUSA के वैज्ञानिकों ने इसका 'पूसा फार्म सन फ्रिज' (Sun Farm Fridge) नाम रखा है। यह किसानों की फसलों को खराब होने से बचाने का एक सबसे सस्ता उपाय है। इस कोल्ड-स्टोरेज को किसान बड़ी आसानी से अपने घर पर स्थापित कर सकेंगे, जिसमें उनका कोई ज्यादा खर्चा नहीं होगा।

कोल्ड स्टोरेज की विशेषताएं क्या-क्या हैं ?

बतादें, कि किसानों को फल-सब्जियों और अनाज के नष्ट होने से काफी नुकसान होता है। परंतु, पूसा का ये कोल्ड स्टोरेज किसानों की चुनौतियों को हल कर देगा। पूसा द्वारा विकसित किए गए इस कोल्ड स्टोरेज में फल-सब्जियों को सुरक्षित रखा जा सकेगा। 

यदि 'पूसा फार्म सन फ्रिज' की खूबियों की बात करें तो इसे चलाने के लिए अगल से किसी बिजली या बैटरी की जरूरत नहीं होगी। इसमें 415 वॉट के 12 सोलर पैनल लगे हैं, जो इसे चलाने के लिए बिजली तैयार करते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें हर मौसम के अनुरूप तापमान एडजस्ट किया जा सकता है। 

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यानी गर्मियों में ये अंदर से ठंडा और ठंड में अंदर से गर्म रहता है। इसकी भंडारण क्षमता 2 से 5 टन के आसपास है। इसका आकार 3x3x3 मीटर है और इसे सुगमता से कहीं भी स्थापित किया जा सकता है। इसको तैयार करने में लगभग 7 से 8 लाख रुपये का खर्चा आता है।

IARI की शोधकर्ता टीम ने हांसिल की सफलता

IARI शोधकर्ता डॉ. संगीता चोपड़ा के साथ वैज्ञानिकों की एक टीम ने इस कोल्ड स्टोरेज सिस्टम को तैयार किया है। टीम में मिशिगन यूनिवर्सिटी, अमेरिका के डॉ. रैंडॉल्फ ब्यूड्री और डॉ. नॉर्बर्ट म्यूएलर भी शम्मिलित थे। 

डॉ. संगीता के मुताबिक, भारत में प्रति वर्ष हजारों टन अनाज और अन्य कृषि उत्पाद उचित देखरेख न करने के चलते नष्ट हो जाते हैं। इसके लिए किसानों के पास कोल्ड स्टोरेज की सुविधा तो है। परंतु, वह काफी महंगी है। इसको देखते हुए पूसा ने इस सस्ते कोल्ड स्टोरेज को तैयार किया है।

किसानों की परेशानी दूर होगी 

बतादें, कि आईआरआई किसानों के फायदे के लिए हमेशा रिसर्च और नए-नए प्रयोग करता रहता है। ताकि किसानों को उन्नत सुविधाएं प्राप्त कर सकें। एक अंकड़े के मुताबिक, प्रति वर्ष सही देखभाल न होने की वजह से किसानों की लगभग 10% प्रतिशत फसल खराब हो जाती है। 

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इससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। परंतु, आईआईआर के गहन अध्ययन और शोध के जरिए इस नई तकनीक को विकसित किया है। यह कवायद इसलिए की गई है, जिससे किसानों की लागत को कम किया जा सके और उनकी आमदनी में भी बढ़ोतरी हो सके।