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इन व्यवसायों से आप शहरों के दूषित पर्यावरण से दूर गांव में भी कर सकते हैं अच्छी कमाई

इन व्यवसायों से आप शहरों के दूषित पर्यावरण से दूर गांव में भी कर सकते हैं अच्छी कमाई

शहर की भागमभाग के साथ नौकरी और पूरे दिन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर कार्य करना अब ऐसे में जिंदगी में चैन व शांति नहीं मिल पाती है। इस वजह से लोगों का रुझान गांव वापसी की तरफ बढ़ता जा रहा है क्योंकि गाँव की शुद्ध वायु में अजीब सा चैन, सुकून और आमदनी भी होती है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन जीवन में कृषि एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह केवल कृषकों का ही कार्य नहीं होता है यदि कोई भी व्यक्ति चाहे तो स्वयं के घर पर भी बागवानी कर सकता है। इस प्रकार वह भी अर्बन कृषि की श्रेणी में आता है, हालाँकि देश की बहुत बड़ी जनसंख्या कृषि पर ही आश्रित रहती है। परंतु यदि हम बात करें कृषि उत्पादों की तो इनपर पूर्ण विश्व आश्रित रहता है। भारत में उत्पादित कृषि उत्पाद वर्तमान में विदेशों में निर्यात हो रहे हैं, याद कीजिए कोरोना महामारी का वो दौर जब प्रत्येक व्यवसाय-नौकरी बिल्कुल बंद हो गई थी। उस भयानक घड़ी में सिर्फ खेती व किसानों ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। उस बात को देशवाशियों ने समझा एवं कृषि के महत्त्व को भी जान पाए हैं। इसलिए शहरों की थकानयुक्त जीवन को पीछे छोड़ खेती-किसानी संबंधित किसी ना किसी गतिविधि में शामिल हो गए हैं। यह सब मामला आज तक सुचारु है, बहुत सारे लोग गांव में आकर कृषि एवं कृषि व्यवसाय से जुड़ना चाहते हैं। परंतु यह नहीं समझ पा रहे हैं कि किस व्यवसाय में सर्वाधिक सफलता एवं बेहतरीन आमदनी हो सके। इसलिए आज हम उन कृषि व्यवसायों के बारे में बताने जा रहे हैं जो आपको ना केवल वर्तमान में बल्कि भविष्य में भी बेहतरीन आमदनी कराएगा।

ऑर्गेनिक फल-सब्जियों का उत्पादन कर कमाएं मुनाफा

भारत की मृदा में उत्पादित फल-सब्जियों की माँग देश ही नहीं विदेशों में भी हो रही है। रसायनों से उत्पादित किए गए फल-सब्जिओं से स्वास्थ्य को काफी हानि पहुंच रही है। इसलिए भारत एवं विश्व की एक बड़ी जनसँख्या जैविक फल व सब्जियों का सेवन करती है। बतादें, कि भविष्य में जैविक फल-सब्जियों की मांग और ज्यादा होगी, इसलिए आप जैविक फल-सब्जियों के उत्पादन के साथ-साथ शहरों में इसका विपणन व्यवसाय कर सकते हैं। इस काम के लिए आपको सरकार से ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन एवं FSSAI से भी एक प्रमाणपत्र लेना होगा। उसके उपरांत यदि आप अपने ऑर्गेनिक फल एवं सब्जियों को विदेश में भी निर्यात कर पाएंगे। खुशी की बात यह है, कि ऑर्गेनिक कृषि हेतु सरकार द्वारा बहुत सारी योजनाओं के माध्यम से परीक्षण, तकनीकी सहायता एवं आर्थिक मदद प्रदान करते हैं।

पशुपालन और डेयरी व्यवसाय से होगा खूब फायदा

स्वास्थ्य के प्रति लोग सजग एवं जागरूक होते जा रहे हैं। बेहतर स्वास्थ्य हेतु प्रोटीन को आहार में शम्मिलित करना अत्यंत आवश्यक है। दूध इसका सबसे बेहतरीन एवं प्राकृतिक स्त्रोत है। देश में दूध-डेयरी का व्यवसाय अच्छा खासा चलता है, साथ ही शहरों में गाय-भैंस के दुग्ध से निर्मित सेहतमंद उत्पादों की बेहद मांग होती है। गांव में सामान्यतः पर्यावरण स्वच्छ एवं शुद्ध रहता है, इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों में पशु व डेयरी का कार्य बेहद ही आसान होता है। पशुपालन के लिए काफी जगह होना बहुत ही जरूरी है, इसलिए आप इच्छानुसार भैंस, बकरी एवं गाय पालन एवं दूध उत्पादन कर सकते हैं। साथ ही, स्वयं की दूध प्रोसेसिंग व डेयरी फार्म भी आरंभ कर सकते हैं, लोग स्वयं आकर आपसे दूध खरीदेंगे। यदि आप अपना ब्रांड बनाकर दूध एवं इससे निर्मित उत्पादों की आपूर्ति कर सकते हैं।

जड़ी बूटियों की खेती से होगा लाभ

कोरोना महामारी के उपरांत लोगों ने आयुर्वेद की तरफ अपना रुझान किया है। लोगों का आयुर्वेदिक दवाइयों के प्रति विश्वास और बढ़ गया है। वर्तमान में लोग बीमारियों में सुबह-शाम दवाईयां लेने की जगह औषधियों एवं जड़ी-बूटियों का उपयोग करने लगे हैं। बहुत सारी बड़ी-बड़ी कंपनियां औषधियों एवं जड़ी-बूटियों से देसी दवाओं के साथ सेहतमंद खाद्य उत्पाद निर्मित कर विक्रय कर रही हैं। भारत की उच्च स्तरीय दवा कपंनियां हिमालया हर्ब्स एवं पतंजली जैसी अन्य भी आयुर्वेद की दिशा में कार्य करती हैं।


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इन कंपनियां द्वारा किसानों के साथ कांट्रेक्ट किया जाता है। खेती पर किये गए व्यय को आपस में विभाजित कर कृषकों से समस्त जड़ी-बूटी अथवा औषधी क्रय करली जाती है। औषधीय कृषि की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है, कि इसमें खर्च नाममात्र के बराबर होता है। किसान चाहें तो ऊसर या बंजर भूमि पर भी औषधियां उत्पादित कर सकते हैं। बीमारियों के सीजन में औषधीय कृषि एवं इसकी प्रोसेसिंग का व्यवसाय भी किसानों को कम लागात में अत्यधिक मुनाफा दिला सकता है।
पशु संबंधित इस व्यवसाय से आप मोटा मुनाफा कमा सकते हैं

पशु संबंधित इस व्यवसाय से आप मोटा मुनाफा कमा सकते हैं

भारत में दूध की माँग में बेहद बढ़ोत्तरी देखी जा रही है, इसके साथ-साथ पशुओं को अच्छा और उम्दा चारा खिलाना बेहद आवश्यक है। इसलिए आप भी स्वयं के गांव में पशु चारे का व्यवसाय करके अच्छा खासा लाभ उठा सकते हैं, इस व्यवसाय हेतु सरकार भी आपको अनुदान देगी। क्योंकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के दो आधार स्तंभ हैं, पहला कृषि एवं दूसरा पशुपालन। लेकिन अगर इन दोनों पहलुओं को देखें तो यह आपस में एक-दूसरे के पूरक की तरह हैं। बीते काफी समय से किसान कृषि करके फसलों से पैदावार लेते आये हैं, परंतु साथ ही अधिक व अतिरिक्त आमदनी हेतु पशुपालन भी अच्छा स्त्रोत है। गाँव में कृषि से उत्पन्न फसल अवशेष पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग होता है, साथ ही, पशुओं के अपशिष्ट गोबर से खाद निर्मित कर फसल द्वारा बहुत अच्छी पैदावार लेने में सहायता मिलती है। वर्तमान में इन दोनों कार्यों के मध्य आपको क्या व्यवसायिक अवसर प्राप्त हो सकता है इसके विषय में हम आपको बताने जा रहे हैं।


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अब हम बात करने जा रहे हैं, पशु चारे से किये जाने वाले व्यवसाय की, बाजार में निरंतर पशु चारे की माँग में वृद्धि हो रही है। इसकी मुख्य वजह अधिक माँग और कम आपूर्ति है। इसलिए चारे का भाव आसमान को छू रहा है। कभी-कभी पशु चारे की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। यदि आप भी अपने गाँव में कृषि कार्य करते हैं, तो आपको आज से ही इस व्यवसाय को आरंभ कर देना चाहिए। आगामी वक्त में दूध की माँग एवं पशुपालन का चलन बढ़ने वाला है। ऐसी स्थिति में पशु चारा निर्माण का व्यवसाय आपको वर्षभर के अंतराल में ही मोटा लाभ दिला सकता है।

पशु चारा इकाई स्थापित करने के लिए सरकार से अनुमति जरूर लेनी चाहिए

अगर आप दुधारु पशुओं से अच्छा दूध लेना चाहते हैं तो आपको याद रहे कि उनको चारा भी अच्छा ही खिलाना होगा। बहुत सारे किसान एवं पशुपालक अपने खेत में ही चारा उत्पन्न करते हैं एवं सालभर के लिए चारा भंडारण भी करते हैं। परंतु यदि आप पशु चारे की प्रोसेसिंग को उच्च स्तर पर ले करके व्यवसायिक रूप निर्मित करना चाहते हैं, तो सरकार द्वारा लाइसेंस प्राप्त करना पंजीयन कराना भी अत्यंत आवश्यक है। FSSAI द्वारा इस लाइसेंस को जारी किया जाता है। इसके अतिरिक्त पर्यावरण विभाग से NOC एवं पशु चारा निर्मित करने वाले उपकरणों के उपयोग हेतु भी स्वीकृति लेनी पड़ सकती है। क्योंकि यह व्यवसाय पशुओं से संबंधित होता है, इसलिए पशुपालन विभाग की भी कुछ औपचारिकता पूर्ण करनी होंगी। पशु चारे की इकाईयाँ स्थापित करने हेतु सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना में आवेदन कर पंजीयन नंबर लें, इसके साथ में आपको आर्थिक सहायता भी प्राप्त हो जाएगी। साथ ही, पशु चारे को विक्रय हेतु GST Registration भी लेना अत्यंत आवश्यक है। अगर आप स्वयं के ब्रांड नाम से पशु चारा बाजार में बेच रहे हैं, ऐसे में ट्रेड मार्क ISI मानक के अनुसार आपको BIS प्रमाणपत्र भी लेना जरुरी होगा।

पशु चारा बनाने के लिए आवश्यक उत्पाद

पशु चारा निर्माण संबंधित कोई इकाई, प्लांट अथवा व्यवसाय करने जा रहे हैं, तो ऐसी स्थिति में आरंभ से ही बेहतरीन योजना बनाकर चलें। प्लांट के लिए जगह, मजदूरों की नियुक्ति, ट्रांसपोर्ट के साधन, व्यवसाय की मार्केटिंग, पूंजी, कच्चे माल, मशीनरी की व्यवस्था अवश्य कर लें। सबसे विशेष बात जिसका अधिक ध्यान रखें जहां पशु चारे की इकाई या प्लांट स्थापित कर रहे हैं, उस जगह की सकड़ें एवं अन्य भी आधारभूत संरचना जैसे बिजली, पानी बेहतर होनी चाहिए। जिससे पशु चारे को बेहतर तरीके से इधर से उधर पहुँचाया जा सके।


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पशु चारा निर्माण एवं भंडारण हेतु 2000 से 2500 स्क्वायर फीट जगह होनी चहिए, इसमें 1000 से 1500 स्क्वायर फीट जगह मशीनरी हेतु होगी। साथ ही, 900 से 1000 स्क्वायर फीट जगह कच्चे माल व चारे के भंडारण हेतु होगी। पशु चारा निर्माण हेतु जिस भी कच्चे माल का उपयोग होता है जैसे कि मूंगफली की खल, सरसों की खल, सोयाबीन, चावल, गेहूं, चना, मक्के की भूसी, चोकर, नमक आदि प्रत्यक्ष रूप से थोक विक्रेता द्वारा न्यूनतम कीमतों पर खरीदें।

पशु चारे की इकाई स्थापित करने में कितना खर्च आता है

यदि आप स्वयं के गांव में आपकी भूमि है, तो कुल खर्च में से बेहद खर्च बचेगा। परंतु स्वयं की भूमि के मालिक नहीं हो ऐसी स्थित में प्लांट खोलने हेतु आपको 5 से 10 लाख रुपए का व्यय करना होगा। साथ ही, पशु चारे को बेचने हेतु पैकेजिंग, परिवहन, बिजली एवं विपणन पर भी व्यय करना पड़ेगा। पशु चारे की यूनिट स्थापित करने हेतु 10 से 20 लाख रुपये तक का खर्च आ सकता है। मानी सी बात है, कि गांव में रहने वाले किसान, पशुपालक व अन्य लोगों हेतु इस प्रकार की ज्यादा कीमत इकट्ठा करना सरल साबित नहीं होगा। इस वजह से केंद्र सरकार द्वारा सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना जारी की गयी है, इसके अंतर्गत कुल खर्च पर 35 फीसद का अनुदान प्राप्त हो सकता है। नाबार्ड अथवा अन्य वित्तीय संस्थाएं भी पशु चारे के व्यय हेतु कर्ज की व्यवस्था करती हैं। बतादें, कि आपके दस्तावेज सही और पूरे हैं, तो 10 लाख रुपये तक की धनराशि के कर्ज हेतु भी आवेदन कर सकते हैं।
सावधान फलों को ताजा एवं आकर्षक दिखाने हेतु हो रही जहरीली वैक्स की कोटिंग

सावधान फलों को ताजा एवं आकर्षक दिखाने हेतु हो रही जहरीली वैक्स की कोटिंग

आजकल खाद्य पदार्थों में बहुत ज्यादा मिलावटखोरी की जा रही है। फिर चाहे वो आटा हो दूध हो या मसाला यहां तक कि अब फल-सब्जियां भी सुरक्षित नहीं रही हैं। सब्जियों की बात करें तो इनको ताजातरीन व चमकीला बनाए रखने हेतु काफी हानिकारक दवाइयां लगाई जा रही हैं, जिनकी पहचान करना अत्यंत आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य हेतु फलों का उपभोग करता है। इन फलों द्वारा ऐसे पोषक तत्व अर्जित होते हैं, जो कि सामान्य रूप से खाद्य पदार्थों से प्राप्त नहीं हो पाता है। परंतु, क्या आपको पता है कि कभी-कभी इन फलों द्वारा आपका स्वास्थ्य भी खराब हो सकता हैं। आपको जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि फलों को चमकाने व ताजा रखने हेतु एक प्रकार की वैक्स अथवा मोम का उपयोग किया जाता है। बाजार में जब यह चमकीले फल आते हैं, तो अपने आकर्षण के कारण हाथों हाथ बिक जाते हैं। लोग बिना किसी जाँच-पड़ताल के इन फलों का सेवन भी कर लेते हैं। परंतु, इन पर फलों पर लगाई गयी नुकसानदायक वैक्स आपके शरीर को अंदरूनी तरीके से काफी हानि पहुंचाती है।


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आगे हम आपको इस इस लेख के माध्यम से बताएंगे कि आखिर क्यों फलों पर वैक्स की कोटिंग की जा रही है। फलों पर चढाई जा रही वैक्स कितने प्रकार की होती है, इससे क्या हानि हैं, कैसे वैक्स की कोटिंग वाले फल को पहचानें एवं खाने से पूर्व फलों से कैसे इस वैक्स को हटाएं।

वैक्स की कोटिंग किस वजह से की जाती है

सर्वाधिक वैक्स सेब के फल पर लगाई जाती है। फल पेड़ों पर लगे हों तो उनकी तुड़ाई से 15 दिन पूर्व रंग लाने हेतु रासायनिक छिड़काव किया जाता है। इसकी वजह से सेब का रंग लाल व चमकीला हो जाता है। रसायन के सूखने के उपरांत सेब के ऊपर प्लास्टिक अथवा मोम जैसी परत निर्मित हो जाती है। जल से धोने की स्थिति में सेब हाथ से भी फिसल जाएगा, परंतु वैक्स नहीं हट पायेगी। इस प्रकार सेब के ऊपर मोम की कोटिंग करने के पीछे भी एक बड़ा कारण है। आमतौर पर फल, सब्जियों की तुड़ाई के उपरांत फलों में शीघ्रता से खराब होने की संभावना बनी रहती है। फल व सब्जियों के विपणन हेतु शहर तक ले जाने में भी काफी वक्त लग जाता है। ऐसे में फल व सब्जियों के संरक्षण एवं आसानी से बाजार तक ले जाने हेतु प्राकृतिक वैक्स का उपयोग किया जाता है, जो बिल्कुल शहद की भाँति मधुमक्खी के छत्ते द्वारा प्राप्त की जाती है। वैक्स के छिड़काव से फलों का प्राकृतिक पोर्स बंद हो जाता है एवं नमी ज्यों की त्यों रहती है। सामन्यतः ऐसा हर फल के साथ में नहीं किया जाता, बल्कि निर्यात होने वाले अथवा महंगे फल-सब्जियों पर ही वैक्स का उपयोग किया जाता है।

इसकी अनुमति किसके माध्यम से प्राप्त होती है

बहुत सारे लोग यह सोचते हैं, कि बहुत सारे दशकों से फलों पर वैक्स का उपयोग किया जा रहा है, तो क्या ये सुरक्षित है? आपको बतादें, कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया FSSAI द्वारा एक निर्धारित सीमा तक प्राकृतिक मोम मतलब नेचुरल वैक्स की कोटिंग करने की स्वीकृति देदी है। यह प्राकृतिक मोम शारीरिक हानि नहीं पहुंचाता। विशेषज्ञों के अनुसार फलों पर उपयोग की जा रही वैक्स भी तीन प्रकार की होती है, जिसमें ब्राजील की कार्नाबुआ वैक्स (Queen of Wax), बीज वैक्स एवं शैलेक वैक्स शम्मिलित है।


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अगर फलों पर इनमें से किसी भी वैक्स उपयोग हुई है, तो दुकानदार का यह सबसे बड़ा दायित्व है, कि फलों पर लेबल लगाकर खरीदने वाले को ज्ञात कराए कि इस वैक्स को क्यों लगया गया है। परंतु नेचुरल वैक्स के बहाने कुछ लोग अधिकाँश रासायनिक वैक्स का उपयोग करते हैं। उसका न तो फलों पर लेबल दिखाई देता है व ना ही किसी प्रकार की कोई जानकारी दी गयी होती है। बहुत से शोधों द्वारा पता चला है, कि फलों पर हर प्रकार की वैक्स स्वास्थ्य हेतु काफी नुकसानदायक होती है। इसकी वजह से शरीर में टॉक्सिंस की मात्रा में वृद्धि हो जाती है, जिससे देखते ही देखते बदहजमी, अपच एवं पेट दर्द की समस्या से लेकर आंख, आंत, लीवर, हृदय, आंत में कैंसर, आंतों में छाले अथवा इंफेक्शन उत्पन्न हो जाता है।

वैक्स की आड़ में मिलावट खोर कर रहे धांधली

रिपोर्ट्स के मुताबिक, FSSAI की तरफ से एक सीमित मात्रा में ही नेचुरल वैक्स के उपयोग की अनुमति प्राप्त होती है। जो कि मधुमक्खी के छत्ते से तैयार किया जाता है, जिसको जल में डालते वक्त ही निकल जाती है, साथ ही, यह पूर्णतय सुरक्षित है। परंतु इस प्राकृतिक मोम के अतिरिक्त, बहुत सारे व्यापारी बाजार में जब फलों की मांग बढ़ती है तब कुछ मिलावट-खोर लोग फल एवं सब्जियों को चमकाने हेतु पेट्रोलियम लुब्रिकेंट्स, रसायनयुक्त सिंथेटिक वैक्स, वार्निश का उपयोग भी करते हैं। जो स्वास्थ्य हेतु नुकसानदायक अथवा जानलेवा भी साबित हो सकता है। इनकी पहचान हेतु फल खरीदते वक्त ही रंग, रूप एवं ऊपरी सतह को खुरचकर पहचान की जा सकती है। किसी धारदार चीज अथवा नाखून से फल को रगड़ने तथा खुरचने के उपरांत सफेद रंग की परत या पाउडर निकलने लगे तो समझ जाएं कि वैक्स का उपयोग किया गया है।

वैक्स को हटाने का आसान तरीका

बाजार में मानकों पर आधारित वैक्स की कोटिंग वाले फलों के विक्रय हेतु अनुमति होती है। इस वैक्स को हटाना को ज्यादा मुश्किल काम नहीं होता है, आप फलों को पहले देखभाल करके ही खरीदें एवं घर लाकर गर्म जल से बेहतरीन रूप से धुलकर-कपड़ों से साफ करके खाएं। बतादें, कि गर्म जल की वजह से वैक्स पिघल जाती है साथ ही केमिकल भी फलों से निकल जाता है। यदि आप चाहें तो एक बर्तन में जल लेकर नींबू एवं बेकिंग सोडा डालें और सब्जियों-फलों को इस पानी में छोड़ सकते हैं। कुछ देर के उपरांत सब्जियों को बेहतर तरीके से रगड़कर साफ करें और खाएं। कुल मिलाकर फल-सब्जियों को खरीदते वक्त एवं खाने से पूर्व सावधानियां जरूर बरतें। क्योंकि आजकल बाजार में मिलावटखोर खूब मिलावटी सामान बाजार में शुद्ध बताकर बेच रहे हैं। इसलिए हमें बेहद सावधान और जागरुक होने की आवश्यकता है। यदि आपको कोई गलत पदार्थ बेचता है तो उसकी तुरंत शिकायत की जाए।
प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी गंभीर हो गया है, FSSAI ने इसको लेकर गाइडलाइन भी जारी की हैं

प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी गंभीर हो गया है, FSSAI ने इसको लेकर गाइडलाइन भी जारी की हैं

जानकारी के लिए बतादें कि मिलावटी बासमती चावल का यह मु्द्दा अब काफी ज्यादा उठ चुका है। इसके लिए फिलहाल FSSAI मतलब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा गाइडलाइन भी जारी कर दी गई हैं। भारत में आप उत्तर से लेके दक्षिण तक नजर डालोगे तो आपको रोटी से अधिक चावल को पसंद करने वाले लोग मिल जाएंगे। भारत में चावल की बहुत सारी प्रजातियां उपस्थित हैं। परंतु, सर्वाधिक बासमती चावल को पसंद किया जाता है। बासमती चावल की मांग वर्ष भर भारत में बनी रहती है। इसका एक मुख्य कारण यह भी है, कि यहां घरों में तो ये चावल बनता ही है, इसके साथ-साथ कोई भी कार्यक्रम हो उसमें भी लोग बासमती चावल ही बनाना पसंद करते हैं। इसी का लाभ उठा कर मिलावट खोर वर्तमान में इसमें मिलावट करने लग गए हैं। आइए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि कैसे आप असली और नकली बासमती चावल की पहचान कर सकते हैं।

प्लास्टिक वाले चावल का मुद्दा काफी अहम बन चुका है

जैसा से कि हम जानते हैं, कि मिलावटी बासमती चावल का मु्द्दा इतना ज्यादा उठ चुका है, कि वर्तमान में इसको लेके FSSAI मतलब फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया द्वारा गाइडलाइन भी जारी कर दी गई है। FSSAI के अनुसार, अगस्त 2023 से सभी को इस गाइडलाइन को मानना आवश्यक होगा। इसके लिए विशेष क्वालिटी और स्टैंडर्ड से जुड़े नियम जारी किए गए हैं। इन नियमों के अंतर्गत चावल की पहचान होगी, जो चावल इन मानकों पर उपयुक्त नहीं होंगे उनके मालिकों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

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अगर आप भी चावल में मिलावट कर उसे बेच रहे हैं तो सावधान हो जाइए

प्लास्टिक वाले चावल की क्या पहचान होती है

प्लास्टिक वाले चावल बनते कैसे हैं। इस सवाल से पहले यह जानने की आवश्यकता है, कि प्लास्टिक के चावल बनते कैसे हैं। दरअसल, प्लास्टिक वाले बासमती चावल को बनाने हेतु मिलावटखोर कंपनियां प्लास्टिक और आलू का उपयोग करती हैं। यह चावल दिखने में और सुगंध में आम चावल की ही भांति होता है। परंतु, यह पूर्णतया नकली होता है और शरीर के लिए काफी ज्यादा हानिकारक भी होता है। इसकी पहचान करने का सबसे सुगम तरीका इसका स्वाद होता है। साथ ही, यदि आप इस चावल को धुलते हैं, तो आम चावल की भांति इसका पानी उतना सफेद नहीं होता है। वहीं, यदि आप इस चावल को थोड़े समय के लिए भिगो देंगे तो यह रबड़ की भांति हो जाएगा।

असली बासमती चावल किस तरह का दिखाई पड़ता है

असली बासमती चावल को आप उसकी गंध से ही पहचान सकते हैं। तो वहीं यह चावल आम चावलों की तुलना में अधिक लंबे होते हैं। इन चावलों की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीका इनका सिरा होता है। जब आप असली बासमती चावलों को देखेंगे तो आपको उनके सिरे काफी नुकीले दिखाई देंगे। इसके साथ ही यह चावल बनते वक्त एक दूसरे से चिपकते नहीं हैं।