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मशरूम उत्पादन हेतु तीन बेहतरीन तकनीकों के बारे में जानें

मशरूम उत्पादन हेतु तीन बेहतरीन तकनीकों के बारे में जानें

किसान भाइयों यदि आप भी मशरूम की पैदावार से शानदार कमाई करना चाहते हैं, तो मशरूम उगाने की ये तीन शानदार तकनीक आपके लिए अत्यंत सहयोगी साबित हो सकती हैं। हम जिन तकनीक की बात कर रहे हैं, वह शेल्फ तकनीक, पॉलीथीन बैग तकनीक और ट्रे तकनीक हैं। इस लेख में आगे हम इन्हीं तकनीकों पर चर्चा करेंगे। 

भारत के कृषकों के लिए मशरूम एक नकदी फसल है, जो उन्होंने कम लागत में बेहतरीन मुनाफा कमाकर प्रदान करती है। इन दिनों देश-विदेश के बाजार में मशरूम की मांग सर्वाधिक है, जिसके चलते बाजार में इनकी कीमत में भी अच्छी खासी वृद्धि देखने को मिल रही है। ऐसे में कृषक अपने खेत में यदि मशरूम की खेती करते हैं, तो वह अच्छा-खासा मोटा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। इसी कड़ी में आज हम कृषकों के लिए मशरूम की तीन बेहतरीन तकनीकों की जानकारी लेकर आए हैं, जिसकी सहायता से मशरूम की उपज काफी ज्यादा होगी।

मशरूम उत्पादन हेतु तीन बेहतरीन तकनीक निम्नलिखित हैं

मशरूम उगाने की शेल्फ तकनीक

मशरूम उगाने की इस शानदार तकनीक में किसान को सशक्त लकड़ी के एक से डेढ़ इंच मोटे तख्ते से एक शैल्फ निर्मित होता है, जिन्हें लोहे की कोणों वाली फ्रेमों से जोड़कर रखना पड़ता है। ध्यान रहे, कि मशरूम उत्पादन के लिए जिन फट्टे का उपयोग किया जा रहा है। वह काफी शानदार लकड़ी के होने अत्यंत जरूरी हैं, जिससे कि वह खाद व अन्य सामग्री का वजन सुगमता से उठा सकें। शेल्फ की चौड़ाई लगभग 3 फीट और साथ ही शैल्फों के मध्य का फासला डेढ़ फुट तक होना चाहिए। इस प्रकार से किसान मशरूम की शैल्फों को एक दूसरे के ऊपर लगभग पांच मंजिल तक मशरूम को उत्पादित किया जा सकता है। 

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मशरूम उगाने की पॉलीथीन बैग तकनीक 

मशरूम उगाने की पॉलीथीन बैग तकनीक कृषकों के द्वारा सर्वाधिक अपनाई जाती है। इस तकनीक में कृषकों को ज्यादा परिश्रम करने की भी आवश्यकता नहीं पड़ती है। यह तकनीक एक कमरे में सहजता से की जा सकती है। पॉलीथीन बैग तकनीक में 25 इंच लंबाई और 23 इंच चौड़ाई वाले 200 गेज माप के पॉलीथीन के लिफाफों की ऊंचाई 14 से 15 इंच और मशरूम उत्पादन करने का 15 से 16 इंच का व्यास होता है। ताकि मशरूम का काफी बेहतर ढ़ंग से विकास हो सके। 

मशरूम उगाने की ट्रे तकनीक

मशरूम उगाने की यह तकनीक बेहद सुगम है। इसमें तकनीक की सहायता से कृषक मशरूम को एक जगह से दूसरी जगह पर सहजता से ले जा सकते हैं। क्योंकि इसमें मशरूम की पैदावार एक ट्रे के जरिए से की जाती है। मशरूम उगाने के लिए एक ट्रे का आकार 1/2 वर्ग मीटर और 6 इंच तक गहरी होता है। ताकि उसमें 28 से 32 किग्रा तक खाद सुगमता से आ पाऐ। 

मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

आपने कई बार अखबारों और विज्ञापनों में पढ़ा होगा कि स्वास्थ्य के लिए बेहद सतर्क लोग कुकुरमुत्ता (कवक) यानि मशरूम (Mushroom) को निरंतर इस्तेमाल में लेते हैं। ऐसे ही अखबारों में छपी हेड-लाइन से प्रभावित होकर हरियाणा के 18 वर्षीय किसान विकास वर्मा (Vikas Verma) ने भी मशरूम की खेती करने के बारे में विचार बनाया। लेकिन शुरुआत में कृषि में काम आ रही आधुनिक विधियों का कोई ज्ञान ना होने की वजह से, पहले ही साल कम उम्र में ही विकास को 14 लाख रुपए का नुकसान झेलना पड़ा। इतना बड़ा नुकसान किसी भी युवा किसान का हिम्मत तोड़ने के लिये काफी साबित होता है, लेकिन विकास वर्मा ने ऐसी परिस्थितियों में अपने खेत और मशरूम की खेती उगाने की प्रक्रिया में कुछ संस्थागत बदलाव किए और उसी की बदौलत आज वह हर साल 50 लाख रुपए तक मुनाफा कमा पा रहे हैं। विकास बताते हैं कि आज उनके द्वारा अपनाई जा रही तकनीक को, उनके गांव एवं आसपास के जिलों में कई किसान भाई सीखने की कोशिश कर रहे हैं और कुछ लोग तो काफी सफल भी हो गए हैं। एक किसान परिवार में जन्मे विकास, बारहवीं कक्षा के बाद अपने दादा और पिता की तरह परंपरागत कृषि प्रणाली से उगाने वाले गेहूं, बाजरा और दूसरे धान की फसल से अलग हटकर कुछ करने की सोच रखते थे। इसी सोच पर काम करते हुए इन्होंने अपने परिवार वालों को उच्च शिक्षा छोड़कर कृषि में पूरा ध्यान लगाने की बात बताई, शुरुआत में कुछ नोकझोंक के बाद परिवार वाले विकास के समर्थन के लिए राजी हो गए।


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जब अपनी पढ़ाई के दौरान ही विकास अपने गांव से चंडीगढ़ जा रहे थे, तभी रास्ते में ही सोनीपत के एक क्षेत्र में इन्होंने मशरूम की खेती होती देखी और जब पूछताछ करने की कोशिश की तो पता चला कि वह किसान मशरूम की खेती से काफी अच्छा मुनाफा कमा पा रहा है। लेकिन, विकास को जानकर आश्चर्य हुआ कि आखिर क्यों दूसरे कई किसान इस क्षेत्र में मशरूम नहीं ऊगा रहे हैं, जब की एक किसान इतना मुनाफा कमा पा रहा है। इस सवाल का जवाब विकास को खुद ही मिल गया जब उन्होंने पहले ही साल में परंपरागत रूप से मशरूम की खेती की और उन्हें बड़ा नुकसान झेलने को मिला। साल 2014 में राज्य सरकार के कृषि विभाग के अंतर्गत कार्य करने वाले कृषि विज्ञान केंद्र से ट्रेनिंग लेकर, विकास भी मशरूम की खेती के उत्पादन में हाथ आजमाने की तैयारी कर चुके थे। आज विकास 'कंपनी कानून 2013' के तहत रजिस्टर्ड 'वेदांता मशरूम प्राइवेट लिमिटेड' (Vedanta Mushrooms (opc) Private Limited) नाम की एक सफल कंपनी भी चलाते है, जोकि मशरूम से तैयार होने वाले उत्पादों को सही दामों में लोगों तक पहुंचाने में सफल रही है। विकास ने बताया कि कृषि कैरियर के शुरुआती दिनों में, घर में जमा पैसों से और बैंक से लोन लेकर उन्होंने 14 लाख रुपए की राशि इकट्ठा की, इस पैसे की मदद से उन्होंने मशरूम उगाने के लिए इस्तेमाल होने वाले बैग और एक यूनिट की स्थापना की, लेकिन जल्दबाजी में किए गए प्रयासों से विकास को बुरी तरह धक्का लगा। जब विकास ने अपनी खेती की विफलता के बारे में पूरा रिसर्च किया, तो पता चला कि उनके द्वारा इस्तेमाल किया गया कंपोस्ट खाद मशरूम की खेती के लिए बिल्कुल भी लाभदायक नहीं रहा और इसी कंपोस्ट खाद की वजह से विकास को इतना अधिक नुकसान उठाना पड़ा। जब विकास ने अपने खेत में जैसे-तैसे तैयार हुई कुछ मशरूम को बाजार में बेचने की कोशिश की, तब भी उन्हें कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। सौ रुपये प्रति किलो की मांग रखने वाले विकास को कोल्ड स्टोरेज फैसिलिटी ना होने की वजह से, अपनी मेहनत से तैयार की गई फसल को औने पौने दामों में पचास रुपए प्रति किलो की दर से बेचना पड़ा।


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अपनी गलतियों से सीख कर उन्होंने कृषि विभाग के कुछ वैज्ञानिकों की मदद ली और मशरूम की खेती से कई दूसरे प्रकार के वैल्यूएटेड उत्पाद बनाने की शुरुआत की। दूसरे सीजन के शुरुआती दिनों में विकास ने खेत से तैयार मशरूम को पहले सुखाकर उसका पाउडर बनाया और फिर उससे कई प्रकार के स्वास्थ्यवर्धक पेय-पदार्थ (Health drinks), बिस्कुट और पापड़ जैसे मार्केट में बिकने वाले प्रोडक्ट तैयार किए। विकास बताते है कि मशरूम से तैयार की गई हेल्थ ड्रिंक टीबी, थायराइड और ब्लड प्रेशर से जूझ रहे मरीजों के लिए काफी लाभदायक साबित हुआ, इसी वजह से जहां वह 100 रुपए प्रतिकिलो में मशरूम बेचने को लेकर संघर्ष कर रहे थे, वही उनके द्वारा तैयार उत्पाद एक हजार रुपए प्रति किलो की दर से बाजार में आसानी से बिक रहे थे। इसी एक साल में विकास ने कुल 35 लाख रुपए का मुनाफा कमाया। विकास ने बताया कि पहले उन्होंने पंजाब के लुधियाना शहर में कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट जोड़ा और आज वह दिल्ली में रहने वाले मशरुम प्रेमियों की मांग को भी पूरा कर रहे हैं।


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एक बार खुद को सफलता मिलने के बाद विकास ने अपने ज्ञान को दूसरे किसानों तक पहुंचाने के लिए भी काफी प्रयास किए। विकास वर्मा का मानना है कि आप केवल तभी विचारों से बड़े और अच्छे व्यक्ति बन सकते है, यदि आप अपने समाज के बुरे समय में भी उनके साथ खड़े रहे और उन्हें नई वैज्ञानिक विधियों से मदद करने की सोच रखें। पिछले 6 सालों में कुल 15000 से ज्यादा किसानों को मशरूम उत्पादन की नई तकनीक के माध्यम से फायदा पहुंचा चुके विकास बताते हैं कि, वर्तमान में वह कई खाद्य प्रसंस्करण संस्थाओं (Food processing organisation) में लगभग 3000 किसानों को प्रत्यक्ष रूप से मशरूम उगाने की ट्रेनिंग दे रहे है। हालांकि विकास इस दुविधा को भी समझते हैं कि उन्ही की मेहनत की बदौलत आने वाले समय में मशरूम का उत्पादन बढ़ने से किसानों को होने वाले मुनाफे में कमी आ सकती है, इसीलिए वह भारत के दूसरे राज्यों और अलग-अलग हिस्सों में मशरूम से तैयार उत्पादों के लिए नए मार्केट की खोज की शुरुआत भी कर चुके है।


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पिछले साल 2021 में ही उन्होंने अपना कस्टमर बेस बनाना भी शुरू किया है और अब स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रही कई बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियां विकास से तैयार उत्पाद सीधे ही खरीद कर विदेशों में बेच रही है। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए विकास बताते है कि शुरुआत में उनके पास किसी प्रकार की कोई वित्तीय सहायता नहीं थी, लेकिन फिर भी लोन लेकर उन्होंने कृषि क्षेत्र में कुछ नया करने की सोच रखते हुए एक बार विफलता मिलने के बाद भी आज वह अपने आसपास के क्षेत्र के सबसे सफलतम किसानों में गिने जाते है।


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आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को विकास वर्मा जैसे प्रगतिशील किसानों की कहानी सुनकर, कृषि से जुड़ी नई तकनीकों को इस्तेमाल करने की प्रेरणा मिली होगी और भविष्य में आप भी ऐसे ही प्रगतिशील किसान बनकर, स्वास्थ्यवर्धक लोगों की मांग को पूरा करने में अपना पर्याप्त सहयोग प्रदान करने के अलावा, अच्छा मुनाफा कमाने में भी सफल हो पाएंगे।
बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

बिहार राज्य के डॉक्टर दयाराम (Doctor Dayaram) ने लाखों महिलाओं एवं किसानों के जीवन को मशरूम या कुकुरमुत्ता (कवक; Mushroom) की खेती की बेहतर जानकारी देके उनकी आजीविका के लिए आय का स्त्रोत निर्मित किया है। कोरोना जैसी महामारी के चलते लोगों की आजीविका खतरे में आ गयी थी, इस समस्या को देखते हुए डॉक्टर दयाराम जी ने किसानों को मशरूम करके आय करने के लिए प्रेरित किया एवं भरपूर उनकी भरपूर सहायता भी की। डॉक्टर दयाराम जी को बिहार के मशरूम मैन (Mushroom Man) के नाम से भी जाना जाता है। इनके मशरूम की खेती के बारे में पूर्ण जानकारी एवं सहायता करने की वजह से सभी किसान उनको बेहद सम्मान और प्रेम के भाव से देखते हैं। डॉक्टर दायाराम जी द्वारा गरीबों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए मशरूम को ही उनकी आजीविका का साधन बना दिया है। दयाराम जी की मेहनत एवं लगन के जरिये आज हजारों गरीब परिवारों को आय का स्त्रोत प्राप्त हो पाया है, साथ ही उनकी आजीविका में भी बेहद सुधार हुआ है। डॉक्टर दयाराम का कहना है कि उनके इस सराहनीय प्रयास से भूमिहीन मजदूर भी अपनी झुग्गी झोपडी में मशरूम उत्पादित कर, बिना किसी के आश्रित हुए अपना जीवन यापन कर सकते हैं।


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मशरूम की खेती को लेकर डॉक्टर दयाराम का क्या कहना है ?

डॉक्टर दयाराम जी ने बताया है कि कोरोना वायरस महामारी के चलते पूरे देश की ही अर्थव्यवस्था खतरे में आ गयी थी। सबसे ज्यादा प्रभावित बिहार के लोग हुए थे, इसका कारण यह है कि बिहार में औघोगिक इकाईओं की कमी है। जिसके चलते बिहार के लोगों को अपनी आजीविका के लिए अन्य प्रदेशों में जाना पड़ता है। कोरोना महामारी की वजह से हजारों मजदूरों का रोजगार समाप्त हो गया था,और उनको पुनः अपने राज्य में वापस आना पड़ा। ऐसी स्तिथि में मजदूरों का जीवन यापन बेहद कठिन हो गया था। इसलिए दयाराम जी ने मजदूरों को मशरूम की खेती के फायदे एवं उसे करने की पूरी विधि किसानों एवं मजदूरों से साझा की जिसको किसान व मजदूरों ने अपनाया और मशरूम उगाना शुरू कर दिया।

सर्वप्रथम यहां से की थी मशरूम की खेती

डॉक्टर दयाराम जी ने सर्वप्रथम समस्तीपुर जनपद के एक गांव में ईंट- भट्ठे पर कार्य करने वाले मजदूरों को मशरूम की खेती करने के लिए प्रेरित किया गया था, जिसके लिए दयाराम जी ने मजदूरों को अच्छी तरह खेती की विधि एवं बीज भी प्रदान किये। मशरूम की खेती मजदूरों के लिए एक नयी अजीब बात थी। विचित्र बात यह है की मजदूरों द्वारा ओएस्टर का थैला भी उनके पशुओं के रहने वाले स्थान पर ही लटकाया जाता था, जिसकी पूर्ण विधि महिलाओं ने भी जानी और आज महिलायें मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भरता की राह पर चल रही हैं।


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कितना कमा सकते हैं मशरूम की खेती से ?

मशरूम की ओएस्टर वैरायटी की उपज लगभग न्यूनतम २५ और अधिकतम ४० डिग्री पर आसानी से होती है, जिसकी सहायता से एक परिवार प्रति माह १०-२० बैग मशरूम बेचकर ४ से ५ हजार रूपये की आय कर अपना जीवन यापन कर रहा है। इसकी पैदावार में लगभग २० से २५ दिन लग जाते हैं। समस्तीपुर से शंकर का कहना है जो कि खुद एक मशरूम के किसान है, पहले उनको मशरूम की खेती के बारे में कोई अंदाजा नहीं था। डॉक्टर दयाराम जी द्वारा किये गए प्रयास और अथक मेहनत से आज उनके परिवार की महिलाएं भी मशरूम उगा रही हैं, साथ ही आसपास के सभी लोग भी मशरूम उगाकर फायदा कमा रहे हैं।
सरकार के प्रोत्साहन से हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती की तरफ बढ़ी रुची

सरकार के प्रोत्साहन से हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती की तरफ बढ़ी रुची

मोरनी क्षेत्र के कृषकों के लिए मशरूम की खेती वरदान सिद्ध होते दिख रही है। यहां के युवा भी मशरूम की खेती में अपनी तकदीर चमकाते दिखाई नजर रहे हैं। हरियाणा सरकार मशरूम की खेती के लिए अनुदान देकर कृषकों का होसला बुलंद कर रही है। पंचकूला जनपद के मोरनी इलाके के कृषकों के लिए मशरूम की खेती वरदान सिद्ध हो रही है। यहां के अधिकांश बेरोजगार युवा सरकार से अनुदान हांसिल कर मशरूम की खेती मे अपनी तकदीर चमका रहे हैं। मोरनी क्षेत्र के कृषकों के लिए सर्वाधिक मुनाफा इस खेती से हांसिल हो रहा है। यहां पर पहले किसान परंपरागत ढंग से खेती किया करते थे, जिसमें सरसों, तिल, गेंहू, टमाटर और मक्का के अतिरिक्त बाकी नकदी फसलें उगाई जाती थी। मगर जंगली जानवरों के  भय की वजह से ज्यादातर किसान इन फसलों को उगाना बंद करके मशरूम की खेती पर ज्यादा ध्यान देने लगे। हरियाणा सरकार भी अनुदान देकर कृषकों के हौसलों को बुलंद कर रही है। 

खेती के लिए सबसे उपयुक्त समय कौन-सा होता है 

मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए अनुकूल वक्त दिसंबर के प्रथम हफ्ते से शुरू होकर मार्च के आखिर तक होता है। इसी से जागरूक होकर मोरनी गांव के बहलों निवासी युद्ध सिंह परमार कौशिक ने मशरूम की खेती आरंभ कर दी, जिसमें उन्हें काफी शानदार मुनाफा मिलने की आशा है। हरियाणा के मोरनी क्षेत्र में मशरूम की खेती के लिए अनुकूल वातावरण है। इस काम को करने के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता नहीं होती। किसान इसको छोटे से कमरे से भी चालू कर सकते हैं। इसके पश्चात सरकार द्वारा अनुदान लेकर बड़ा व्यवसाय भी आरंभ कर सकते हैं। 

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मशरूम उत्पादन का शानदार तरीका

कम्पोस्ट को निर्मित करने के लिए धान की पुआल को भिगोकर एक दिन पश्चात इसमें डीएपी, यूरिया, पोटाश, गेहूं का चोकर, जिप्सम तथा कार्बोफ्यूडोरन मिलाकर इसे सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है। करीब डेढ़ माह के उपरांत कम्पोस्ट तैयार होता है। वर्तमान में गोबर की खाद और मिट्टी को बराबर मिलाकर लगभग डेढ़ इंच मोटी परत बिछाकर उस पर कम्पोस्ट की दो-तीन इंच मोटी परत चढ़ाई जाती है। इसमें नमी स्थिर बनी रहे, इसलिए स्प्रे से मशरूम पर दिन में दो से तीन बार छिड़काव किया जाता है। इसके ऊपर एक-दो इंच कम्पोस्ट की परत और चढ़ाई जाती है। इस प्रकार से मशरूम का उत्पादन आरंभ हो जाता है। 

सरकार कितना अनुदान प्रदान कर रही है 

सरकार ने मशरूम उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए जिन तीन योजनाओं पर अनुदान देने का निर्णय किया है, उसमें मशरूम उत्पादन इकाई, मशरूम स्पॉन इकाई और मशरूम कंपोस्ट उत्पादन इकाई शम्मिलित है। इन तीनों योजनाओं की समकुल लागत 55 लाख रुपये है। इसपर कृषकों को 50 प्रतिशत मतलब 27.50 लाख रुपये का अनुदान प्रदान किया जाता है। यदि किसान भिन्न-भिन्न योजनाओं का फायदा लेना चाहें तो इसकी भी छूट है। किसान किसी भी योजना का आसानी से चयन कर सकते हैं।
बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान

बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान

पटना। मशरूम यानी कुकुरमुत्ता (कवक - Mushroom) की खेती को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार ने बड़ा एलान किया है। बिहार सरकार ने राज्य के किसानों को मशरूम की खेती करने पर 90 फीसदी तक अनुदान देने की घोषणा की है। अभी तक बिहार में किसान परम्परागत खेती ही करते रहे हैं। लेकिन इस बार मशरूम की खेती की ओर किसानों का ध्यान आकर्षित करने के लिए सरकार ने एक अच्छी मुहिम शुरू की है। इस साल मशरूम की खेती पर 90 फीसदी तक अनुदान देकर सरकार मशरूम की खेती पर जोर दे रही है।

मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना से मिलेगा अनुदान

बिहार सरकार मशरूम की खेती करने वाले किसानों को 'मुख्यमंत्री बागवानी मिशन' के तहत 90 फीसदी तक अनुदान दे रही है। योजना में शामिल होने के लिए किसानों से आवेदन मांगे जा रहे हैं, किसानों में भी इस योजना को लेकर खासा उत्साह दिखाई दे रहा है। ये भी पढ़े: मशरूम के इस मॉडल से खड़ा किया 50 लाख का व्यवसाय

खगरिया जिले में 500 किसान कर रहे हैं मशरूम की खेती

बिहार में अभी तक खगरिया जिले में तकरीबन 500 किसान मशरूम की खेती कर रहे हैं। सरकार द्वारा मशरूम की खेती पर प्रोत्साहन राशि मिलने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि मशरूम की खेती करने वाले किसानों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हो सकती है।

झोंपड़ी में मशरूम की खेती से किसान की आमदनी होगी दोगुनी

राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत झोंपडी में मशरूम की खेती करने वाले किसानों की आमदनी दोगुनी हो सकती है। इस योजना के तहत किसानों को अलग से 50 फीसदी तक अनुदान दिया जा रहा है। झोंपड़ी बनाने से लेकर मशरूम की खेती करने तक आने वाली लागत पर 50 फीसदी अनुदान देने का प्रावधान रखा गया है, इस कुल लागत का 50 प्रतिशत खर्च यानि 20 लाख रुपए की लागत में 10 लाख रुपये सब्सिडी के रूप में राज्य सरकार वहन करेगी और शेष धनराशि किसान को लगानी होगी।

मशरूम पर अनुदान के लिए ऐसे करें आवेदन

मुख्यमंत्री बागवानी विकास मिशन के तहत मशरूम की खेती पर सब्सिडी का लाभ लेने के लिए बिहार कृषि विभाग, उद्यान निदेशालय की आधिकारिक वेबसाइट http://horticulture.bihar.gov.in/ पर आवेदन कर सकते हैं। अगर किसान चाहें तो इस योजना से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए अपने नजदीकी जिले के उद्यान विभाग कार्यालय में जाकर सहायक निदेशक से भी संपर्क किया जा सकता है।
जाने दुनिया के कुछ दुर्लभ मशरूम किस्मों के बारे में, बाजार में मूल्य है लाखों से भी ज्यादा

जाने दुनिया के कुछ दुर्लभ मशरूम किस्मों के बारे में, बाजार में मूल्य है लाखों से भी ज्यादा

आजकल लोग अपनी सेहत को लेकर काफी ध्यान दे रहे हैं। ऐसे में वह किसी भी तरह की सब्जियां फल खाते समय इस बात का जरूर ध्यान रखते हैं, कि उससे उन्हें अच्छी तरह से पोषण मिल सके। मशरूम भी एक ऐसी ही सब्जी है। मशरूम को अलग-अलग तरह की सब्जियों के साथ मिलाकर बनाया जा सकता है या फिर ऐसे कई बार सलाद आदि में भी इस्तेमाल किया जाता है। मशरूम की कुछ वैरायटी बेहद दुर्लभ होती हैं। ये सेहत के लिए संजीवनी समान है, लेकिन इन्हें खरीदने के लिए आपको लाखों खर्च करने पड़ सकते हैं। इनकी खेती करना फायदे का सौदा साबित होगा।

यूरोपियन व्हाइट ट्रफल मशरूम

यूरोपियन व्हाइट ट्रफल मशरूम को दुनिया का सबसे महंगा मशरूम कहते हैं। वैसे तो हम सभी जानते हैं, कि मशरूम एक तरह की फंगी है, लेकिन यह मशरूम बेहद दुर्लभ है। इसके दुर्लभ होने का कारण है, कि इस मशरूम की खेती पारंपरिक तरीके से नहीं की जा सकती है। बल्कि यह बहुत से पुराने पेड़ों पर कई बार अपने आप ही उग जाता है।
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इस मशरूम में बहुत से चमत्कारी गुण हैं, जिसकी वजह से यह हमेशा ही डिमांड में रहता है। इंटरनेशनल मार्केट में यूरोपियन व्हाइट ट्रफल मशरूम की कीमत 7 लाख से 9 लाख प्रति किलोग्राम बताई गई है।

मत्सुताके मशरूम

जापान के बारे में हम सभी जानते हैं, कि जापान को दुनिया के सबसे महंगे फल, सब्जी और अनाज उत्पादक देश के तौर पर जानते हैं। यहां दुनिया का सबसे दुर्लभ मत्सुताके मशरूम भी पाया जाता है, जो अपनी खुशबू के लिए बहुत मशहूर है। इस मशरूम का रंग भूरा होता है और यह खाने में भी बहुत ज्यादा अच्छा लगता है। अगर इसकी कीमत की बात की जाए तो यह अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह 3 लाख से 5 लाख का बिकता है।

ब्लू ऑयस्टर मशरूम

आपने व्हाइट ऑयस्टर मशरूम का नाम तो काफी सुना होगा। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं, ब्लू एस्टर मशरूम के बारे में, जो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा और फाइबर का काफी अच्छा सोर्स है। आजकल मशरूम की यह कि हम भारतीयों के बीच में काफी लोकप्रिय हो रही है। अगर बाजार में इसके मूल्य की बात की जाए तो यह मशरूम बाजार में 150 से 200 रुपये प्रति किलो के भाव बिक रहा है। साधारण किस्मों के मशरुम के बजाय भारत में इन दिनों ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती का चलन काफी बढ़ रहा है।

शैंटरेल मशरूम

वैसे तो हम सभी जानते हैं, कि मशरूम ज्यादातर जंगली इलाकों में पाए जाते हैं और यह बहुत बार अपने आप ही उठ जाते हैं। लेकिन एक मशरूम की किस्म ऐसी भी है जो यूरोप और यूक्रेन के समुद्र तटों पर पाया जाता है। इसका नाम शैंटरेल मशरूम है। वैसे तो इसके कई रंग हैं, लेकिन पीले रंग का सेंट्रल मशरूम सबसे खास है, जो अंतरराष्ट्रीय बाजार में 30,000 से 40,000 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिकता है।
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एनोकी मशरूम

मशरूम की है, कि साल 2021 में गूगल की टॉप सर्च रेसिपी में से एक मानी गई है। यह मशरूम ज्यादातर जापान और चीन के जंगली इलाकों में उगाया जाता है और वहीं पर खाया जाता है। यह मशरूम एक जंगली मशरूम है, जो चीनी हैकबेरी, टुकड़े, राख, शहतूत और खुरमा के पेड़ों पर उगता है। इसे विंटर फंगस भी कहते हैं, जिसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा कम करते हैं। आपको बतादें, कि केसर की तरह ही एनोकी मशरूम की खेती भी एक चारदीवारी में आधुनिक लैब बनाकर की जा सकती है। इसे एनोकी टेक मशरूम भी कहते हैं।

गुच्छी मशरूम

यह मशरूम हिमालय के आसपास और वहां पर सटे हुए इलाकों में पाया जाता है। मशरूम की यह किस्म प्रमुख तौर पर चीन, नेपाल, भारत और पाकिस्तान से सटी हिमालय की वादियों में मिलती है। ऐसा माना जाता है, कि गुच्छी मशरूम अपने आप ही उग जाता है। इसे स्पंज मशरूम भी कहते हैं, जिसमें कई औषधीय गुण मौजूद होते हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गुच्छी मशरूम को 25,000 से 30,000 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बेचा जाता है। विदेशी बाजारों में इस मशरूम का काफी डिमांड है। हिमालय के स्थानीय लोग इस मशरूम को ढूंढने तड़के सुबह जंगलों में निकल पड़ते हैं।
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ब्लैक ट्रफल मशरूम

व्हाइट ट्रफल मशरूम की तरह ही ब्लैक ट्रफलमशरूम भी बेहद लोकप्रिय हैं। इस मशरूम को खोजने के लिए वैल ट्रेन्ड डॉग्स का सहारा लिया जाता है। ब्लैक ट्रफल मशरूम भी कई विदेशी बाजारों में 1 लाख से 2 लाख रुपये प्रति किलोग्राम के भाव बिक रहा है।
मशरूम उत्पादन यूनिट के लिए यह राज्य दे रहा है 40% तक सब्सिडी

मशरूम उत्पादन यूनिट के लिए यह राज्य दे रहा है 40% तक सब्सिडी

आजकल भारत में अंतरवर्तीय खेती बहुत ज्यादा चलन में है। पारंपरिक फसलों के साथ-साथ किसान सब्जी, फल, औषधि और मसालों की भी खेती करने लगे हैं। इससे किसानों को अतिरिक्त आमदनी तो मिल ही जाती है। पिछले कुछ समय से मशरूम भी एक ऐसी ही फसल है जो प्रमुख बागवानी फसल बनकर सामने आई है। बिहार जैसे कई राज्य मशरूम की खेती करते हुए अच्छा-खासा मुनाफा कमा रहे हैं। दूसरे राज्य भी आज बिहार से प्रेरित होकर मशरूम की खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। देश-विदेश में सुपरफूड के तौर पर इस फंगी/कवक की मांग बढ़ रही है। बिहार की तर्ज पर ही राजस्थान सरकार भी मशरूम की खेती को बढ़ावा दे रही है। राज्य में किसानों को मशरूम यूनिट लगाने के लिए सब्सिडी प्रदान कर रही है। सरकार ने किसानों से इसके लिए आवेदन भी मांगे हैं।

कैसे ले सकते हैं अनुदान का लाभ

मशरूम उत्पादन यूनिट लगाने के लिए राजस्थान की सरकार 40% सब्सिडी पर 8 लाख रुपये का क्रेडिट लिंक बैक एंडेड अनुदान देती है। अगर आप 2000000 रुपए तक की लागत में मशरूम का उत्पादन कर रहे हैं। तो इसके लिए 40% की सब्सिडी सरकार द्वारा आप को दी जाएगी। इसके लिए सरकार 8 लाख रुपये प्रति इकाई क्रेडिट लिंक बैक एंडिडयड अनुदान देती है। ये भी देखें: बिहार में मशरूम की खेती करने पर सरकार दे रही 90 फीसदी अनुदान वहीं 15 लाख रुपये तक की लागत वाली इकाई के लिए भी 40% अनुदान पर 6 लाख रुपये का क्रेडिट लिंक बैक एंडिड अनुदान दिया जाता है।

किन किसानों को मिलेगा लाभ

मशरूम एक बागवानी फसल है और इसी के तहत राजस्थान सरकार राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत इसके लिए अनुदान दे रही है। लेकिन राजस्थान सरकार ने अनुदान देने के लिए कुछ जिले चयनित किए हैं। जो इस प्रकार से हैं। अजमेर, अलवर, बांसवाड़ा, बाड़मेर, भीलवाड़ा, बूंदी, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, श्रीगंगानगर, जयपुर, जैसलमेर, जालौर, झालावार, झुंझुनू, जोधपुर, कोटा, नागौर, पाली, सिरोही, सवाई माधोपुर, टोंक, उदयपुर, बांरा और करौली के किसान या किसानों के समूह को ही अनुदान के लिए शामिल किया गया है।

कैसे कर सकते हैं आवेदन

अगर आप भी राजस्थान से हैं और मशरूम उत्पादन यूनिट लगाने के बारे में सोच रहे हैं। तो सरकार की तरफ से दी जा रही क्रेडिट लिंक बैंक एंडेड सब्सिडी योजना का लाभ आप ले सकते हैं। इस स्कीम में आवेदन करने से पहले अपने जिले के कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र के कार्यालय में संपर्क कर सकते हैं। यहां पर कार्यालय में जाकर ही आप इस योजना से जुड़ी हुई सभी तरह की जानकारी ले सकते हैं। जानकारी के बाद कृषि विभाग में ही आप ऑफलाइन अपना फॉर्म जमा करवा सकते हैं या फिर किसी नजदीकी मित्र केंद्र या सीएससी सेंटर पर जाकर भी निशुल्क आवेदन कर सकते हैं। ध्यान रखें कि किसानों को आवेदन के साथ कुछ डोक्यूमेंट भी अटैच करने होंगे। जिसमें आधार कार्ड, बैंक पासबुक, पैन कार्ड, किसान का शपथ पत्र या लोन की कॉपी, जनाधार या भामाशाह कार्ड की कॉपी और अपनी पूरी प्रोजेक्ट रिपोर्ट भी सब्मिट करनी होगी।
4 मार्च से शुरू होगा मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण, 25 दिनों तक चलेगा कार्यक्रम

4 मार्च से शुरू होगा मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण, 25 दिनों तक चलेगा कार्यक्रम

छोटी सी जगह पर शुरू की जाने वाली मशरूम की खेती किसानों के लिए काफी अच्छा मुनाफा लाती है. इस काम को शुरू करने के लिए बेहद कम लागत लगती है. मशरूम को पोषण का अच्छा और सरल जरिया भी माना जाता है. मशरूम के अच्छे उत्पादन के लिए केंद्र सरकार भी अच्छी पहल शुरू करने जा रही है. इम्यूनिटी स्ट्रांग करने के लिए मशरूम काफी फायदेमंद होता है.पोषण से भरपूर मशरूम की खेती किसानों के लिए मात्र एक ऐसा संसाधन है, जिसकी वजह से किसानों को अच्छा खासा मुनाफा होता है. 

हालांकि बाजार में मशरूम की काफी ज्यादा डिमांड बढ़ चुकी है. मशरूम की खेती करने के लिए ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती. आप चाहें तो अपने घर की किसी खाली जगह पर मशरूम को आराम से उगा सकते हैं. वहीं ग्रामीण महिलाओं की बात की जाए तो, उनके लिए भी मशरूम की खेती करने आय बढ़ाने में मददगार हो सकती हैं. जहां घर पर ही रहकर महिलाएं व्यापक स्तर पर मशरूम को उगाकर आय का जरिया बना सकती हैंअब मत दीजियेगा. या फिर दीजियेगा तो शाम तक दे सकती हैं. वहीं हमारे किसान भाई भी मशरूम की खेती छोटे स्तर से शुरू करके साइड इनकम कर सकते हैं. जिसे लेकर कृषि विज्ञान केंद्र भी मशरूम उत्पादन पर व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करने की तैयारी में है.

4 मार्च से शुरू हो रहा प्रशिक्षण

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कृषि विज्ञान केंद्र शाजापुर में मशरूम के अच्छे उत्पादन के विषय पर युवाओं के लिए प्रिशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत की जा रही है. 25 दिनों तक चलने वाले व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम की शुरुआत 4 मार्च से की जा रही है.

इन चीजों की पड़ेगी जरुरत

कृषि विज्ञान केंद्र शाजापुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर जीआर अम्बावतीया के मुताबिक जो भी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेना चाहते हैं, वो प्रतिभागी अपने साथ आधार कार्ड और अपनी 10वीं की मार्कशीट और पासपोर्ट साइज़ की फोटो के साथ अपना रजिस्ट्रेशन कृषि विज्ञान केंद्र गिरवर शाजापुर में करवा सकते हैं.  इसके अलावा प्रतिभागियों का चयन पहले आयें पहले पायें की नीति पर किया जाएगा. इस सम्बन्ध में कृषि विज्ञान केंद्र की कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर गायत्री वर्मा से किया जा सकता है. जिनका मोबाइल नंबर 9575036055 है. 

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मशरूम के व्यापार में लाभ

कुचल प्रशिक्षण के बाद अगर आप मशरूम का उत्पादन करते हैं, तो बता दें कि, पूरी दुनिया में मशरूम के व्यापार में हर साल 12.9 फीसद की बढ़ोतरी हो रही है. मशरूम के व्यापार में सरकारी मदद भी मिलती है. जिसके लिए आपको व्यावसायिक प्रस्ताव बनाकर सरकारी कार्यालय में जमा करना होता है. इसमें पैन कार्ड, आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र और बैंक खाते से जुड़ी जानकारी को साझा करना होता है. मशरूम के उत्पादन में व्यावसायिक प्रशिक्षण छोटे किसानों को मशरूम की खेती के गुण भी सिखाते हैं, जो बिलकुल फ्री होते हैं. इसके लिए सरकार ने कई प्रशिक्षण केंद्र खोल रखे हैं. जहां मशरूम उगाने से लेकर सभी तरह की तकनीक के बारे में जानकारी दी जाती है.

राज्य में शुरू हुई ब्लू मशरूम की खेती, आदिवासियों को हो रहा है बम्पर मुनाफा

राज्य में शुरू हुई ब्लू मशरूम की खेती, आदिवासियों को हो रहा है बम्पर मुनाफा

विश्व में मशरूम की खेती हजारों सालों से की जा रही है लेकिन भारत में इसकी खेती मात्र 3 दशक पहली ही शुरू हुई है। अगर हाल ही के कुछ वर्षों में गौर करें तो भारत में लोगों के बीच मशरूम खाने का चलन बढ़ा है, जिसके कारण बाजार में मशरूम की लगातार मांग बढ़ती जा रही है। प्रकृति में मशरूम की हजारों किस्में मौजूद हैं, इनमें से कुछ किस्में ही खाने योग्य होती हैं। इन दिनों मशरूम से बने व्यंजन उच्च श्रेणी के माने जाते हैं, जिसके कारण लोगों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। मशरूम की बढ़ती हुई मांग को देखते हुए हाल ही कुछ वर्षों में मशरूम की खेती को लेकर भी देश के किसानों के बीच इसकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। चूंकि मशरूम का भाव भी अच्छा रहता है इसलिए किसानों का इसकी खेती की तरफ रुझान तेजी से बढ़ रहा है। अब कई राज्यों में अन्य किसानों के साथ-साथ आदिवासी लोग भी मशरूम की खेती की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। जिसके कारण अब राज्यों के आदिवासी इलाकों में भी मशरूम की खेती बड़े पैमाने पर की जाने लगी है। इन दिनों महाराष्ट्र के सतपुड़ा जंगल के अंतर्गत आने वाले नंदुरबार जिले में मशरूम की खेती की जा रही है। इस खेती में ज्यादातर आदिवासी सक्रिय हैं। पहले यहां इस खेती को असंभव माना जाता था लेकिन यहां के लोगों ने सरकार द्वारा चलाई जा रही स्कीमों के अंतर्गत प्रशिक्षण लेकर इस खेती को संभव बनाया है। मशरूम की खेती के प्रशिक्षण की वजह से अब बहुत से बेरोजगार लोग इसकी खेती करने में लग गए हैं जिससे जिले में बेरोजगारी कम हुई है। साथ ही जिले के युवा मशरूम की खेती करके अच्छा खास मुनाफा कमा रहे हैं।

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महाराष्ट्र का नंदुरबार जिला आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से काफी पिछड़ा हुआ है। जिसके कारण यहां के लोगों के लिए आमदनी के स्रोत बेहद सीमित हैं। ऐसे में ब्लू मशरूम की खेती आदिवासी युवाओं के लिए वरदान साबित हो रही है। इसकी खेती से युवा जमकर पैसा काम रहे हैं, जिससे उन्हे अपना परिवार चलाने में काफी मदद मिल रही है। देखा गया है कि मशरूम की खेती करने वाले ज्यादातर युवा किसान बेहद छोटी सी जगह में ब्लू ऑयस्टर मशरूम की खेती कर रहे हैं। यह बेहद तेजी से विकसित होने वाला मशरूम की किस्म है जो मात्र 15 दिनों के भीतर ही तुड़ाई के योग्य हो जाता है। इससे महीने में 2 से 3 बार तक युवा किसान इसकी फसल को बाजार में बेंच रहे हैं और पैसे कमा रहे हैं। 10 बाय 10 की छोटी सी जगह में खेती करने वाले किसान भी हर महीने 10 से 12 हजार रुपये तक कमा लेते हैं। मशरूम की खेती में बम्पर कमाई को देखते हुए अब अन्य युवा भी इसकी खेती की तरफ तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।
किसानों की बढ़ेगी आय सितंबर माह में वितरित की जाएगी मशरूम की नवीन विकसित किस्म

किसानों की बढ़ेगी आय सितंबर माह में वितरित की जाएगी मशरूम की नवीन विकसित किस्म

जम्मू कश्मीर में मशरूम की नई प्रजाति तैयार की गई है। इस प्रजाति को स्थानीय कृषि विभाग सितंबर माह में बाजार में लाएगा। इससे मशरूम की पैदावार काफी ज्यादा हो जाएगी। उन्नत खेती के लिए बीजों की अच्छी किस्म होनी अत्यंत आवश्यक है। किसानों को बेहतरीन किस्म के बहुत सारी फसलों के बीज प्राप्त हुए। इसको लेकर केंद्र एवं राज्य सरकार पहल करती रहती हैं। वैज्ञानिक एवं कृषि विशेषज्ञ नवीनतम विभिन्न फसलों की नवीन किस्म तैयार करते रहते हैं। इसी कड़ी में किसान भाइयों के लिए जम्मू कश्मीर से सुकून भरी खबर सामने आई है। किसानों के लिए मशरूम की ऐसी ही बेहतरीन प्रजाति तैयार की है। इससे कृषकों की आमदनी में इजाफा होगा।

मशरूम की इस नई प्रजाति को विकसित किया गया है

मीडिया खबरों के मुताबिक, जम्मू कश्मीर के कृषि विभाग द्वारा किसानों के फायदे के लिए कदम उठाया गया है। कृषि विभाग के स्तर से मशरूम एनपीएस-5 की प्रजाति तैयार की गई है। बतादें, कि बीज का सफल परीक्षण भी कर लिया गया है। किस्म की खासियत यह है, कि यह उच्च प्रतिरोधी है एवं अतिशीघ्रता से बेकार भी नहीं होगी।

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बाजारों में इस नवीन किस्म का वितरण सितंबर माह में किया जाएगा

मशरूम की यह नवीन प्रजाति सितंबर में बाजार में आ पाएगी। जम्मू-कश्मीर का कृषि विभाग किसान भाइयों को व्यवसायिक खेती के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसको लेकर इसका बीज बाजार में उतारा जाएगा। कृषि विभाग के सीनियर अधिकारी का कहना है, कि विकसित की गई मशरूम की दूसरी प्रजाति एनपीएस-5 है। इसका मास्टर कल्चर भी बनाया जा रहा है। यह प्रयास है, कि इस साल के आने वाले सितंबर माह तक किसानों को इसके बीज वितरण की प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी। अभी तक बीज को लेकर जो परीक्षण किया गया है। वह सफल रहा है।

ये सब एनपीएस-5 की खासियत हैं

मशरूम की नवीन प्रजाति एनपीएस-5 कम जल अथव ज्यादा जल होने पर भी उपज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस प्रजाति को कार्बन-डाइऑक्साइड ज्यादा प्रभावित नहीं करती है। इसी वजह से यह अतिशीघ्र खराब होने वाली फसलों में नहीं आती है। विशेषज्ञों के कहने के अनुसार, अब तक बाजार में उपस्थित ज्यादातर मशरूम अगर एक या दो दिन नहीं बिकते हैं, तो खराब होने लगते हैं। लेकिन, अब नई किस्म के अंदर यह बात नहीं है। अच्छी गुणवत्ता होने की वजह से मशरूम के बीज भी अच्छी कीमतों पर बिकेंगे। इससे किसान भाइयों की आमदनी भी बढ़ जाएगी।
बिहार इन बागवानी फसलों के उत्पादन में प्रथम स्थान पर बना हुआ है

बिहार इन बागवानी फसलों के उत्पादन में प्रथम स्थान पर बना हुआ है

बिहार राज्य में 36.67 हजार हेक्टेयर में लीची का उत्पादन किया जाता है। प्रति वर्ष 308 हजार मैट्रिक टन से अधिक लीची की पैदावार होती है। यहां से पूरी दुनिया में शाही लीची का भी निर्यात होता है। बिहार राज्य के किसानों ने अपने अथक परिश्रम से प्रदेश का नाम रोशन किया है। शाही मखाना, लंबी भिंडी, मशरूम और लीची की पैदावार के मामले में बिहार भारत का नंबर एक प्रदेश है। यह सब मुमकिन हो पाया है, राष्ट्रीय बागवानी मिशन और मुख्यमंत्री बागवानी मिशन योजना के सहयोग से। क्योंकि, प्रदेश सरकार में बागवानी फसलों का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए किसानों को अनुदान दे रही है। ऐसी हालत में किसान पारंपरिक खेती करने की जगह बागवानी फसलों की खेती की तरफ रूख कर रहे हैं। प्रदेश में किसान भिंडी, बैगन, आलू, टमाटर और लोकी के साथ-साथ सेब और अंगूर का भी उत्पादन कर रहे हैं। इससे किसानों की आमदनी में काफी इजाफा हुआ है।

बिहार ने 2021-22 के दौरान कितने टन मशरूम की पैदावार की है

जानकारी के अनुसार, बिहार ने वर्ष 2021-22 के वक्त अकेले 28000 टन से ज्यादा मशरूम की पैदावार की है, जो कि पूरे भारत में मशरूम की पैदावार का 10.82 प्रतिशत है। साथ ही, महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है, जबकि ओडिशा तीसरे स्थान पर है। विशेष बात यह है, कि बिहार में उत्पादित किए जाने वाली मशरूम की मांग पूर्वोत्तर राज्यों के साथ- साथ उत्तर प्रदेश और दिल्ली में भी खूब है। ये भी देखें: बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर

किसान भाइयों को 50 फीसदी अनुदान प्रदान किया जा रहा है

बिहार में किसान अधिकाँश हरी सब्जियों की खेती करते हैं। वर्तमान में यहां की सब्जियों का निर्यात नेपाल में किया जाएगा। मुख्यमंत्री बागवानी मिशन के अंतर्गत पपीता, आम, कटहल, जामून, अमरूद, सेब, लीची और केला की खेती करने वाले किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त मशरूम की खेती करने वाले किसान भाइयों को भी सरकार की ओर से अनुदान मिलता है। यही वजह है, कि प्रदेश में मशरूम समेत सब्जियों का उत्पादन करने वाले कृषकों की तादात बढ़ रही है, जिसका प्रभाव उत्पादन में दिखाई पड़ रहा है।

आलू की पैदावार में बिहार की हिस्सेदारी कितने फीसदी है

इस प्रकार बिहार लंबी भिंडी की पैदावार में भी देश का एक नंबर राज्य है। यह अकेले भारत में कुल उत्पादन का 13% प्रतिशत लंबी भिंडी उत्पादित करता है। इसी प्रकार आलू उत्पादन में बिहार की भागीदारी 17.1 फीसद है। तो वहीं यह 12.6% प्रतिशत शहद का उत्पादन करता है।

मखाने की पैदावार में बिहार की कितने फीसद हिस्सेदारी है

बिहार राज्य में 36.67 हजार हेक्टेयर में लीची का उत्पादन किया जाता है। प्रतिवर्ष 308 हजार मैट्रिक टन से अधिक लीची की होता है। यहां से पूरी दुनिया में शाही लीची का भी निर्यात होता है। इसी प्रकार संपूर्ण विश्व में सबसे ज्यादा मखाने की खेती भी बिहार में ही की जाती है। यह कुल पैदावार का अकेले 80 प्रतिशत मखाने का उत्पादन करता है। बतादें, कि भारत में मखाना उत्पादन में बिहार की भागीदारी 85 प्रतिशत है।
मशरूम से अब मिठाई ही नहीं नमकीन भी बनाई जा रही है

मशरूम से अब मिठाई ही नहीं नमकीन भी बनाई जा रही है

बिहार राज्य में किसानों को मशरूम की खेती करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। यहां पर सरकार मशरूम की खेती करने पर कृषकों को 50 प्रतिशत तक अनुदान राशि प्रदान करती है। मशरूम का नाम कान में पड़ते ही लोगों के दिल में सर्वप्रथम लजीज सब्जी का स्वाद सामने आता है। अधिकांश लोगों को यह लगता है, कि मशरूम से केवल स्वादिष्ट सब्जी ही निर्मित की जाती है। परंतु ऐसी कोई बात नहीं है। फिलहाल मशरूम से बर्फी, ठेकुआ, गुजिया, जलेबी, बिस्किट, लड्डू और पेड़ा समेत विभिन्न प्रकार की मिठाइयां बनाई जा रही हैं, जिनकी बाजार में काफी ज्यादा मांग है।

भारत में मशरूम का सर्वाधिक उत्पादन कहाँ होता है

ऐसी स्थिति में बिहार में सबसे ज्यादा मशरूम की खेती की जाती है। बतादें कि साल 2021- 22 में बिहार के कृषकों ने 28 हजार टन मशरूम का उत्पादन किया था। विशेषकर उत्तरी बिहार में किसान सबसे ज्यादा मशरूम की खेती किया करते हैं। यहां पर कृषकों को मशरूम की खेती करने हेतु प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अगर आप मशरूम से निर्मित लड्डू खाएंगे तो आप इसका स्वाद कभी नहीं भूल पाऐंगे।

मशरूम की खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है

बिहार में किसानों को मशरूम की खेती करने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है। यहां पर सरकार मशरूम की खेती करने के लिए कृषकों को 50 फीसद तक अनुदान राशि देती है। यही कारण है, कि बिहार में मशरूम से अचार समेत विभिन्न प्रकार के उत्पाद निर्मित किए जा रहे हैं।

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बिहार में मशरूम की खेती कर महिलाएं हजारों कमा हो रही हैं आत्मनिर्भर
बिहार के किसान मशरूम से मिठाई के साथ-साथ अब नमकीन डिशेज भी निर्मित कर रहे हैं, जिसकी बाजार में काफी ज्यादा मांग है। मशरूम से निर्मित नमकीन खाने में चटपटे लगते हैं। बिहार का नाम कान में पड़ते ही लोगों के मन में सर्वप्रथम ठेकुआ का नाम आता है। ऐसा मानना है, कि ठेकुआ गेहूं के आटे से तैयार होता है। परंतु, फिलहाल मशरूम से भी स्वादिष्ट ठेकुआ निर्मित हो रहा है, जिसका कोई जवाब नहीं है।