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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां (Summer herbs to grow at home in hindi)

दोस्तों, आज हम बात करेंगे जड़ी बूटियों के विषय में ऐसी जड़ी बूटियां जो ग्रीष्मकालीन में उगाई जाती है और इन जड़ी बूटियों से हम विभिन्न विभिन्न प्रकार से लाभ उठा सकते हैं। यह जड़ी बूटियों को हम अपने घर पर उगा सकते हैं, यह जड़ी बूटियां कौन-कौन सी हैं जिन्हें आप घर पर उगा सकते हैं, इसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें।

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां

पेड़ पौधे मानव जीवन के लिए एक वरदान है कुदरत का यह वरदान मानव जीवन के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। विभिन्न प्रकार से यह पेड़-पौधे जड़ी बूटियां मानव शरीर और मानव जीवन काल को बेहतर बनाते हैं। पेड़ पौधे मानवी जीवन का एक महत्वपूर्ण चक्र है। विभिन्न प्रकार की ग्रीष्म कालीन जड़ी बूटियां  रोग निवारण करने के लिए इन जड़ी बूटियों का उपयोग किया जाता है। इन जड़ी-बूटियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार की बीमारियां दूर होती है अतः या जड़ी बूटियां मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण अंग है। यह ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां, औषधि पौधे न केवल रोगों से निवारण अपितु विभिन्न प्रकार से आय का साधन भी बनाए रखते हैं। औषधीय पौधे शरीर को निरोग बनाए रखते हैं। विभिन्न प्रकार की औषधि जैसे तुलसी पीपल, और, बरगद तथा नीम आदि की पूजा-अर्चना भी की जाती है। 

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घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां :

ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां जिनको आप घर पर उगा सकते हैं, घर पर इनको कुछ आसान तरीकों से उगाया जा सकता है। यह जड़ी बूटियां और इनको उगाने के तरीके निम्न प्रकार हैं: 

नीम

नीम का पौधा गर्म जलवायु में सबसे अच्छा पनपता है नीम का पेड़ बहुत ही शुष्क होता है। आप घर पर नीम के पौधे को आसानी से गमले में उगा सकते हैं। इसको आपको लगभग 35 डिग्री के तापमान पर उगाना होता है। नीम के पौधे को आप घर पर आसानी से उगा सकते हैं। आपको ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं होती, नीम के पेड़ से गिरे हुए फल को  आपको अच्छे से धोकर उनके बीच की गुणवत्ता  तथा खाद मिट्टी में मिला कर पौधों को रोपड़ करना होता है। नीम के अंकुरित लगभग 1 से 3 सप्ताह का टाइम ले सकते हैं। बगीचों में बड़े छेद कर युवा नीम के पौधों को रोपण किया जाता है और पेड़ अपनी लंबाई प्राप्त कर ले तो उन छिद्रों को बंद कर दिया जाता है। नीम चर्म रोग, पीलिया, कैंसर आदि जैसे रोगों का निवारण करता है।

तुलसी

तुलसी के पौधे को घर पर उगाने के लिए आपको घर के किसी भी हिस्से या फिर गमले में बीज को मिट्टी में कम से कम 1 से 4 इंच लगभग गहराई में तुलसी के बीज को रोपण करना होता है। घर पर तुलसी के पौधा उगाने के लिए बस आपको अपनी उंगलियों से मिट्टी में इनको छिड़क देना होता है क्योंकि तुलसी के बीज बहुत ही छोटे होते हैं। जब तक बीच पूरी तरह से अंकुरित ना हो जाए आपको मिट्टी में नमी बनाए रखना है। यह लगभग 1 से 2 सप्ताह के बीच उगना शुरू हो जाते हैं। आपको तुलसी के पौधे में ज्यादा पानी नहीं देना है क्योंकि इस वजह से पौधे सड़ सकते हैं तथा उन्हें फंगस भी लग सकते हैं। घर पर तुलसी के पौधा लगाने से पहले आपको 70% मिट्टी तथा 30 प्रतिशत रेत का इस्तेमाल करना होता है। तुलसी की पत्तियां खांसी, सर्दी, जुखाम, लीवर की बीमारी मलेरिया, सास से संबंधित बीमारी, दांत रोग इत्यादि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है।

बेल

बेल का पौधा आप आसानी से गमले या फिर किसी जमीन पर उगा सकते हैं। इन बेल के बीजों का रोपण करते समय अच्छी खाद और मिट्टी के साथ पानी की मात्रा को नियमित रूप से देना होता है। बेल के पौधे विभिन्न प्रकार की बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। जैसे: लीवर की चोट, यदि आपको वजन घटाना हो या फिर बहुत जादा दस्त हो, आंतों में विभिन्न प्रकार की गड़बड़ी, कब्ज की समस्या तथा चिकित्सा में बेल की पत्तियों और छालों और जड़ों का प्रयोग कर विभिन्न प्रकार की औषधि का निर्माण किया जाता है। 

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आंवला

घर पर  किसी भी गमले या जमीन पर आप आंवले के पौधे को आसानी से लगा सकते हैं। आंवले के पेड़ के लिए आपको मिट्टी का गहरा और फैलाव दार गमला लेना चाहिए। इससे पौधों को फैलने में अच्छी जगह मिलती है। गमले या फिर घर के किसी भी जमीन के हिस्से में पॉटिंग मिलाकर आंवले के बीजों का रोपण करें। आंवले में विभिन्न प्रकार का औषधि गुण मौजूद होता है आंवले में  विटामिन की मात्रा पाई जाती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों का निवारण होता है जैसे: खांसी, सांस की समस्या, रक्त पित्त, दमा, छाती रोग, मूत्र निकास रोग, हृदय रोग, क्षय रोग आदि रोगों में आंवला सहायक होता है।

घृत कुमारी

घृतकुमारी  जिसको हम एलोवेरा के नाम से पुकारते हैं। एलोवेरा के पौधे को आप किसी भी गमले या फिर जमीन पर आसानी से उगा सकते हैं। यह बहुत ही तेजी से उगने वाला पौधा है जो घर के किसी भी हिस्से में उग सकता है। एलोवेरा के पौधे आपको ज्यादातर भारत के हर घर में नजर आए होंगे, क्योंकि इसके एक नहीं बल्कि अनेक फायदे हैं। एलोवेरा में मौजूद पोषक तत्व त्वचा के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं। त्वचा के विभिन्न प्रकार के काले धब्बे दाने, कील मुहांसों आदि समस्याओं से बचने के लिए आप एलोवेरा का उपयोग कर सकते हैं। यह अन्य समस्याओं जैसे  जलन, डैंड्रफ, खरोच, घायल स्थानों, दाद खाज खुजली, सोरायसिस, सेबोरिया, घाव इत्यादि के लिए बहुत सहायक है।

अदरक

अदरक के पौधों को घर पर या फिर गमले में उगाने के लिए आपको सबसे पहले अदरक के प्रकंद का चुनाव करना होता है, प्रकंद के उच्च कोटि को चुने करें। घर पर अदरक के पौधे लगाने के लिए आप बाजार से इनकी बीज भी ले सकते हैं। गमले में 14 से 12 इंच तक मिट्टी को भर ले, तथा खाद और कंपोस्ट दोनों को मिलाएं। गमले में  अदरक के टुकड़े को डाले, गमले का जल निकास नियमित रूप से बनाए रखें। 

अदरक एक ग्रीष्मकालीन पौधा है इसीलिए इसको अच्छे तापमान की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है। यह लगभग 75 से लेकर 85 के तापमान में उगती  है। अदरक भिन्न प्रकार के रोगों का निवारण करता है, सर्दियों के मौसम में खांसी, जुखाम, खराश गले का दर्द आदि से बचने के लिए अदरक का इस्तेमाल किया जाता है। अदरक से बैक्टीरिया नष्ट होते हैं, पुरानी बीमारियों का निवारण करने के लिए अदरक बहुत ही सहायक होती है। 

दोस्तों हम यह उम्मीद करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल घर पर उगाने के लिए ग्रीष्मकालीन जड़ी बूटियां पसंद आया होगा। हमारे आर्टिकल में घर पर उगाई जाने वाली  जड़ी बूटियों की पूर्ण जानकारी दी गई है। जो आपके बहुत काम आ सकती है यदि आप हमारी जानकारी से संतुष्ट है। तो हमारी इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्त और सोशल मीडिया पर  शेयर करें। 

धन्यवाद।

घर में ऐसे लगाएं करी-पत्ता का पौधा, खाने को बनाएगा स्वादिष्ट एवं खुशबूदार

घर में ऐसे लगाएं करी-पत्ता का पौधा, खाने को बनाएगा स्वादिष्ट एवं खुशबूदार

वृंदावन। सब्जियों में अक्सर दिखने वाला वो पत्ता जो खाने को स्वादिष्ट और खुशबूदार बना देता है। इसे कढ़ी पत्ता या मीठी नीम की पत्तियां भी कही जाती हैं क्यूंकि इसकी पत्तियां देखने में कड़वे नीम की पत्तियों से मिलती-जुलती हैं। करी-पत्ता के पौधे को घर के गमले में लगाना चाहिए, जिससे जरूरत पड़ते ही इसके पत्तों को सब्जियों में डाल दें। सभी प्रकार की सब्जियों में इसका उपयोग किया जा सकता है।

गमले से बाहर भी लगा सकते हैं करी-पत्ता का पौधा

- जरूरी नहीं है कि करी-पत्ता का पौधा आप गमले में ही लगाएं। करी-पत्ता के पौधे को सीडलिंग के तौर पर किसी गहरे व छोटे साइज वाले कंटेनर में लगाएं। इसके बाद आप इन्हें अच्छे से जर्मिनेट करें। और 7-8 दिन बाद ये बीज ये बीज जर्मिनेट होने लगेंगे। इसके बाद आप इसमें सामान्य पानी डालकर भी विकसित कर सकते हैं। घर में पौधा उगाने के यह तरीका बहुत ही अच्छा है।


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गमले में कैसे लगाएं करी-पत्ता का पौधा

★ आप इसे सीधे गमले में लगा सकते हैं। पहले आप तीन-चार बीज एक साथ ग्रो करें। सिर्फ एक ही बीज से नहीं बल्कि अच्छी पत्तियों वाला पौधा कई सारे बीज एक साथ लगाने पर ही उगता है।साथ में अगर खाद की उचित व्यवस्था हो तो वो भी मिट्टी में मिलाएं, नहीं तो मिट्टी और थोड़ी सी रेत मिलाकर इस पौधे को लगाएं। आप थोड़ा सा सूखा गोबर भी खाद की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं। 

★ करीब 45 दिन बाद आप देखेंगे कि ये पौधा कितनी अच्छी तरह से उग गया है। अब आप इसमें अच्छे से खाद या वर्मी कम्पोस्ट डालें। आप घर में बनाई हुई खाद का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इसे ऐसी जगह रखें जहां हवा और धूप अच्छे से दिख रही हो। 

★ बीस दिन बाद आप देखेंगे कि इसमें पत्तियां आने लगी हैं। इन्हें आप अभी गमले में शिफ्ट कर सकती हैं। अगर सीधे गमले में लगाया है तो आपको इसके लिए कुछ भी करने की जरूरत नहीं होगी। बस इसे दो हफ्ते में एक बार खाद और रोज़ थोड़ा सा पानी देते रहिए।

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करी-पत्ता को सब्जियों डालने के फायदे

1- करी पत्ता में पर्याप्त मात्रा में विटामिन A होता है। विटामिन A आंखों के स्वास्थ्‍य के लिए बहुत जरूरी होता है। इसकी कमी से आंखों की रोशनी कम होना जैसी कई समस्या हो सकती है। तो विटामिन A की कमी को पूरा करने के लिए भी आपको करी पत्ते का सेवन करना चाहिए। 

2- करी पत्ते में आयरन तथा फोलिक एसिड दोनों पाए जाते हैं। इसलिए यह शरीर में खून की कमी को भी दूर करता है। 

 3- करी पत्ते में बालों को मॉइश्‍चराइजिंग करने वाले कई गुण मौजूद होते हैं। जो बालों को गहराई से साफ करते हैं और इन्‍हें बढ़ाने के साथ-साथ मजबूत भी बनाते हैं। करी पत्ते की सूखी पत्तियों का पाउडर बनाकर तिल या नारियल के तेल में मिला लें, फिर इस तेल को थोड़ा गर्म करके सिर में मसाज करें। इसे रातभर रखें और फिर सुबह शेंपू कर लें। इस प्रकार मालिश करने से बाल गिरना बंद हो जाएंगे और वह मजबूत भी होंगे। 

4- करी पत्ता के पौधे में औषधीय गुण होते हैं। करी पत्ता लीवर को सशक्त बनाता है। यह लीवर को बैक्‍टीरिया तथा वायरल इंफेक्शन से बचाता है। इसके अलावा यह फ्री रेडिकल्स, हेपेटाइटिस, सिरोसिस जैसी कई बीमारियों से भी बचाता है।

 ------- लोकेन्द्र नरवार

मालाबार नीम की खेती करते हुए किसान कमा रहे हैं, लाखों का मुनाफा, जाने कैसे ले सकते हैं सब्सिडी

मालाबार नीम की खेती करते हुए किसान कमा रहे हैं, लाखों का मुनाफा, जाने कैसे ले सकते हैं सब्सिडी

पिछले कुछ सालों में भारत में खेती के स्वरूप में काफी बदलाव आए हैं और आजकल हर जगह मल्टीटास्किंग खेती की बात हो रही है। फसल उत्पादन के साथ-साथ पशुपालन, मछली पालन, मुर्गी पालन और पेड़ की खेती करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। अंतरवर्तीय और मिश्रित खेती को भी खासतौर पर बढ़ावा मिल रहा है, जिससे किसानों को कम समय में अच्छी आमदनी हो जाती है। जब भी किसान मल्टीटास्किंग खेती करता है, तो उसके उत्पादन की लागत कम हो जाती है और एक ही खाद बीज और कीटनाशक का इस्तेमाल करते हुए कई तरह की फसलें उगाई जा सकती हैं। आज दुनियाभर के किसान इसी मॉडल पर काम कर रहे हैं। भारतीय किसानों को भी इस मॉडल से जुड़ने के लिए सरकार आर्थिक और तकनीकी मदद दे रही है। इसी बीच छत्तीसगढ़ सरकार ने भी मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना चलाई है, जिसके तहत पेड़ों की व्यवसाय खेती करने के लिए अनुदान दिया जा रहा है।

मालाबार नीम की खेती

मालाबार नीम की लकड़ी की सबसे बड़ी खासियत यह है, कि उस में दीमक लगने की संभावना नहीं होती है। यही कारण है, कि देश और दुनिया में फर्नीचर की मार्केट में इस लकड़ी की बहुत ज्यादा डिमांड है। किसान अपने पूरे खेत में नीम की खेती नहीं करना चाहते हैं, तो ऐसे में वह खेत के चारों तरफ बाउंड्री बनाकर मालाबार नीम की खेती की शुरुआत कर सकते हैं। कुछ ही साल में पौधे बड़े होने के बाद उन्हें बेचकर आप अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं। 

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किस काम आती है मालाबार नीम की लकड़ी

आपको बता दें मालाबार नीम की लकड़ी का इस्तेमाल कृषि उपकरण, भवन निर्माण, पेंसिल, माचिस की डिब्बी, संगीत वाद्ययंत्र, चाय की पेटी, फलों की पेटी, कुर्सी, अलमारी, सोफा, पलंग, चौकी जैसे फर्नीचरों को बनाने में किया जाता है। मालाबार नीम का पेड़ कुछ ही सालों में लगभग 7 से 8 फीट तक ऊंचा हो जाता है। इसकी सबसे अच्छी बात यह है, कि इसकी खेती में बहुत ज्यादा खाद और रसायनों का खर्चा नहीं आता है। यदि 1 एकड़ में मालाबार नीम की खेती की जाए तो कुछ ही समय में इसकी लकड़ी को बेच कर 2 से 2.5 लाख रुपये की आमदनी अर्जित कर सकते हैं। इस पेड़ की खेती करना किसानों के लिए किसी फिक्स डिपाजिट से कम नहीं है।


 

छत्तीसगढ़ सरकार मालाबार नीम की खेती के लिए दे रही है सब्सिडी

छत्तीसगढ़ सरकार ने मुख्यमंत्री वृक्ष संपदा योजना चलाई है। जिसके तहत मालाबार नीम की खेती करने के लिए प्रति एकड़ 1000 पौधों की रोपाई के लिए ₹25500 का अनुदान दिया जा रहा है।

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यह राशि किसानों को तीन टेस्ट में दी जाएगी। पहले साल में पहली किश्त के तौर पर 11,500 रुपये का अनुदान दिया जाएगा। दूसरे साल और तीसरे साल में क्रमशः साथ 7,000 की आर्थिक मदद किसानों को दी जानी है।


 

इस तरीके से कुल मिलाकर 25,500 रुपये की अनुदान राशि किसानों को दी जा रही है।

आवेदन देने के लिए आवश्यक दस्तावेज

  • किसान का आधार कार्ड
  • किसान का स्थाई निवास प्रमाण पत्र
  • किसान का आय प्रमाण पत्र
  • किसान के बैंक पासबुक की कॉपी
  • जमीन के कागजात (खसरा खतौनी की कॉपी)
  • किसान का मोबाइल नंबर
  • किसान का पासपोर्ट साइज फोटो

कहां कर सकते हैं आवेदन

अगर आप अपने खेत में मालाबार नीम की खेती करना चाहते हैं। तो इसके लिए सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए आपको नजदीकी वन विभाग के कार्यालय में संपर्क करना होगा। यहां जाकर किसान अपने जरूरी दस्तावेज अटैच करते हुए अपना आवेदन फॉर्म भर सकते हैं। इस फॉर्म को भरने के बाद वन विभाग के कार्यालय में अच्छी तरह से रिव्यु करने के बाद सबमिट कर दिया जाता है। उचित आवेदन होने पर राशि का आवंटन किया जाता है।

नींबू की बढ़ती कीमत बढ़ा देगी आम लोगों की परेशानियां

नींबू की बढ़ती कीमत बढ़ा देगी आम लोगों की परेशानियां

आपको बतादें कि गाजीपुर सब्जी मंडी के चेयरमैन सत्यदेव प्रसाद का कहना है, कि सब्जियों के भाव में बीते 15 दिनों से निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है। आकस्मिक जलवायु परिवर्तन एवं तापमान में वृद्धि होने से केंद्र सरकार सतर्क हो गई है। केंद्र सरकार द्वारा गर्मी से फसलों की पैदावार पर पड़ने वाले प्रभाव से बचने के लिए समस्त राज्य सरकारों को तैयारी करने को कहा है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अनुसार, गर्मी की सर्वाधिक मार हरी सब्जियों पर देखने को मिल रही है। यदि इसी प्रकार से तापमान में वृद्धि होती रही तो गेहूं के साथ- साथ हरी सब्जियों की भी पैदावार गिर सकती है। इसकी वजह से महंगाई में एक बार पुनः वृद्धि हो जाएगी एवं खाने- पीने की चीजें भी महंगी हो जाएंगी।

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 खाद्य और आपूर्ति विभाग के अधिकारियों के अनुसार, मौस्मिक परिवर्तन का प्रभाव फल के साथ- साथ टमाटर एवं गोभी समेत बहुत सी हरी सब्जियों पर हो सकता है। ऐसे में आशंका जताई जा रही है, कि नींबू का भाव बीते साल की भांति इस बार भी 400 रुपये किलो तक पहुंच सकता है। साथ ही, विभाग के अधिकारियों का यह भी मानना है, कि आने वाले दिनों में फल एवं सब्जियों की पैदावार में 30 प्रतिशत तक की कमी देखने को मिल सकती है।


 

जानें नीबू की कितनी कीमत हो गई है

साथ ही, गाजीपुर सब्जी मंडी के चेयरमैन सत्यदेव प्रसाद ने भी बताया है, कि सब्जियों के भाव में बीते 15 दिनों से निरंतर वृद्धि देखने को मिल रही है। नींबू का भाव थोक में जो पहले केवल 30 रुपये किलो थी। वह फिलहाल 60 से 80 रुपये किलो पर पहुँच गई है। इसी प्रकार खुदरा में अब 250 ग्राम नींबू का भाव 25 से 30 रुपये हो गया है। सत्यदेव प्रसाद का कहना है, कि बीते वर्ष नींबू की कीमत खुदरा बाजार में 400 प्रति किलो हो गया था। अगर गर्मी में इज़ाफा इसी प्रकार से चलता रहा तो इस बार भी नींबू 400 रुपये किलो के पार पहुंच सकता है। साथ ही, अन्य सब्जियों के भाव में भी वृद्धि होगी। वर्तमान में खुदरा बाजार में टमाटर 20 से 30 रुपये किलो के भाव से बेचा जा रहा है। इसी प्रकार एक किलो गोभी का मूल्य 40 रुपये हो गया है। वहीं, होली से पूर्व एक किलो गोभी का भाव 20 रुपये था।


 

प्याज की हुई बेहतरीन पैदावार

जानकारी के लिए बतादें कि देश में इस बार आलू एवं प्याज का बेहतरीन उत्पादन हुआ है। इसकी वजह से इनके भावों में कमी देखने को मिली है एवं किसान खर्चा भी नहीं हांसिल कर पा रहे हैं। साथ ही, कृषि मंत्रालय के अधिकारियों की टीम दूसरे मंत्रालयों के विभागों के साथ समन्वय बनाए हुए हैं। इसके लिए समयानुसार प्रदेश सरकार को एडवाइजरी जारी की जा रही है, जिससे कि तापमान वृद्धि से राहत दी जा सके।

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खाद्य पदार्थों की पैदावार प्रभावित होगी

बतादें कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के साथ- साथ पूरे देश में गर्मी तीव्रता से बढ़ती जा रही है। दिल्ली में विगत दिनों पारा 34 डिग्री पर पहुंच गया था। साथ ही, मुंबई में तापमान 39 डिग्री के पार पहुंच गया है। विशेष बात यह है, कि मुंबई शहर में तापमान सामान्य से 6 डिग्री अधिक है। अब ऐसी स्थिति में आशंका जताई जा रही है, कि आगामी दिनों में गर्मी और तीव्रता से बढ़ेगी, जिससे खाद्य पदार्थों की पैदावार पर प्रभाव पड़ेगा।

नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की खेती अधिकांश किसान मुनाफे के तौर पर करते हैं। नींबू के पौधे एक बार अच्छी तरह विकसित हो जाने के बाद कई सालों तक उत्पादन देते है। यह कम लागत में ज्यादा मुनाफे देने वाली फसलों में से एक है। बतादें, कि नींबू के पौधों को सिर्फ एक बार लगाने के उपरांत 10 साल तक उत्पादन लिया जा सकता है। पौधरोपण के पश्चात सिर्फ इनको देखरेख की जरूरत पड़ती है। इसका उत्पादन भी प्रति वर्ष बढ़ता जाता है। भारत विश्व का सर्वाधिक नींबू उत्पादक देश है। नींबू का सर्वाधिक उपयोग खाने के लिए किया जाता है। खाने के अतिरिक्त इसे अचार बनाने के लिए भी इस्तेमाल में लिया जाता है। आज के समय में नींबू एक बहुत ही उपयोगी फल माना जाता है, जिसे विभिन्न कॉस्मेटिक कंपनियां एवं फार्मासिटिकल कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। नींबू का पौधा झाड़ीनुमा आकार का होता है, जिसमें कम मात्रा में शाखाएं विघमान रहती हैं। नींबू की शाखाओ में छोटे-छोटे काँटे भी लगे होते है। नींबू के पौधों में निकलने वाले फूल सफेद रंग के होते हैं, लेकिन अच्छी तरह तैयार होने की स्थिति में इसके फूलों का रंग पीला हो जाता है। नींबू का स्वाद खट्टा होता है, जिसमें विटामिन ए, बी एवं सी की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। बाजारों में नींबू की सालभर काफी ज्यादा मांग बनी रहती है। यही वजह है, कि किसान भाई नींबू की खेती से कम लागत में अच्छी आमदनी कर सकते हैं।


 

नींबू की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

नींबू की खेती के लिए सबसे अच्छी बलुई दोमट मृदा मानी जाती है। साथ ही, अम्लीय क्षारीय मृदा एवं लेटराइट में भी इसका उत्पादन सहजता से किया जा सकता है। उपोष्ण कटिबंधीय एवं अर्ध शुष्क जलवायु वाले इलाकों में नींबू की पैदावार ज्यादा मात्रा में होती है। भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान राज्यों के विभिन्न इलाकों में नींबू की खेती काफी बड़े क्षेत्रफल में की जाती है। ऐसे इलाके जहां पर ज्यादा वक्त तक ठंड बनी रहती हैं, ऐसे क्षेत्रों में नींबू का उत्पादन नहीं करनी चाहिए। क्योंकि, सर्दियों के दिनों में गिरने वाले पाले से इसके पौधों को काफी नुकसान होता है। 

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नींबू में रोग एवं उनका नियंत्रण

कागजी नींबू

नींबू की इस किस्म का भारत में अत्यधिक मात्रा में उत्पादन किया जाता है। कागजी नींबू के अंदर 52% प्रतिशत रस की मात्रा विघमान रहती है | कागजी नींबू को व्यापारिक तौर पर नहीं उगाया जाता है।


 

प्रमालिनी

प्रमालिनी किस्म को व्यापारिक तौर पर उगाया जाता है। इस प्रजाति के नींबू गुच्छो में तैयार होते हैं, जिसमें कागजी नींबू के मुकाबले 30% ज्यादा उत्पादन अर्जित होता है। इसके एक नींबू से 57% प्रतिशत तक रस अर्जित हो जाता है।


 

विक्रम किस्म का नींबू

नींबू की इस किस्म को ज्यादा उत्पादन के लिए किया जाता है। विक्रम किस्म के पौधों में निकलने वाले फल गुच्छे के स्वरुप में होते हैं, इसके एक गुच्छे से 7 से 10 नींबू अर्जित हो जाते हैं। इस किस्म के पौधों पर सालभर नींबू देखने को मिल जाते हैं। पंजाब में इसको पंजाबी बारहमासी के नाम से भी मशहूर है। साथ ही, इसके अतिरिक्त नींबू की चक्रधर, पी के एम-1, साई शरबती आदि ऐसी किस्मों को ज्यादा रस और उत्पादन के लिए उगाया जाता है। 

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नींबू के खेत की तैयारी इस तरह करें

नींबू का पौधा पूरी तरह से तैयार हो जाने पर बहुत सालों तक उपज प्रदान करता है। इस वजह से इसके खेत को बेहतर ढंग से तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम खेत की बेहतर ढ़ंग से मृदा पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर देनी चाहिए। क्योंकि, इससे खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है। इसके पश्चात खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसकी रोटावेटर से जुताई कर मृदा में बेहतर ढ़ंग से मिला देना चाहिए। खाद को मृदा में मिलाने के पश्चात खेत में पाटा लगाकर खेत को एकसार कर देना चाहिए। इसके उपरांत खेत में नींबू का पौधरोपण करने के लिए गड्डों को तैयार कर लिया जाता है।


 

नींबू पोधरोपण का उपयुक्त समय एवं विधि

नींबू का पौधरोपण पौध के तौर पर किया जाता है। इसके लिए नींबू के पौधों को नर्सरी से खरीद लेना चाहिए। ध्यान दने वाली बात यह है, कि गए पौधे एक माह पुराने एवं पूर्णतय स्वस्थ होने चाहिए। पौधों की रोपाई के लिए जून और अगस्त का माह उपयुक्त माना जाता है। बारिश के मौसम में इसके पौधे काफी बेहतर ढ़ंग से विकास करते हैं। पौधरोपण के पश्चात इसके पौधे तीन से चार साल उपरांत उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। नींबू का पौधरोपण करने के लिए खेत में तैयार किये गए गड्डों के बीच 10 फीट का फासला रखा जाता है, जिसमें गड्डो का आकार 70 से 80 CM चौड़ा एवं 60 CM गहरा होता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 600 पौधे लगाए जा सकते हैं। नींबू के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। वह इसलिए क्योंकि नींबू का पौधरोपण बारिश के मौसम में किया जाता है। इस वजह से उन्हें इस दौरान ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसके पौधों की सिंचाई नियमित समयांतराल के अनुरूप ही करें। सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देता होता है। इससे ज्यादा पानी देने पर खेत में जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो कि पौधों के लिए अत्यंत हानिकारक साबित होती है।


 

नींबू की खेती में लगने वाले कीट

रस चूसक कीट

सिटरस सिल्ला, सुरंग कीट एवं चेपा की भांति के कीट रोग शाखाओं एवं पत्तियों का रस चूसकर उनको पूर्णतय नष्ट कर देते हैं। बतादें, कि इस प्रकार के रोगों से बचाव करने के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफॉस की समुचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा इन रोगो से प्रभावित पौधों की शाखाओं को काटकर उन्हें अलग कर दें।

काले धब्बे

नींबू की खेती में काले धब्बे का रोग नजर आता है। बतादें, कि काला धब्बा रोग से ग्रसित नींबू के ऊपर काले रंग के धब्बे नजर आने लगते हैं। शुरआत में पानी से धोकर इस रोग को बढ़ने से रोक सकते हैं। अगर इस रोग का असर ज्यादा बढ़ जाता है, तो नींबू पर सलेटी रंग की परत पड़ जाती है। इस रोग से संरक्षण करने हेतु पौधों पर सफेद तेल एवं कॉपर का घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है। 

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नींबू में जिंक और आयरन की कमी होने पर क्या करें

नींबू के पौधों में आयरन की कमी होने की स्थिति में पौधों की पत्तियां पीले रंग की पड़ जाती हैं। जिसके कुछ वक्त पश्चात ही पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं और पौधा भी आहिस्ते-आहिस्ते सूखने लगती है। नींबू के पौधों को इस किस्म का रोग प्रभावित ना करे। इसके लिए पौधों को देशी खाद ही देनी चाहिए। इसके अलावा 10 लीटर जल में 2 चम्मच जिंक की मात्रा को घोलकर पौधों में देनी होती है।


 

नींबू की कटाई, उत्पादन और आय

नींबू के पौधों पर फूल आने के तीन से चार महीने बाद फल आने शुरू हो जाते हैं। इसके उपरांत पौधों पर लगे हुए नींबू को अलग कर लिया जाता है। नींबू की उपज गुच्छो के रूप में होती है, जिसके चलते इसके फल भिन्न-भिन्न समय पर तुड़ाई हेतु तैयार होते है। तोड़े गए नीबुओं को बेहतरीन ढंग से स्वच्छ कर क्लोरीनेटड की 2.5 GM की मात्रा एक लीटर जल में डालकर घोल बना लें। इसके पश्चात इस घोल से नीबुओं की साफ-सफाई करें। इसके पश्चात नीबुओं को किसी छायादार स्थान पर सुखा लिया जाता है। नींबू का पूरी तरह विकसित पौधा एक साल में लगभग 40 KG की उपज दे देता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 600 नींबू के पौधे लगाए जा सकते हैं। इस हिसाब से किसान भाई एक वर्ष की उपज से 3 लाख रुपए तक की आमदनी सुगमता से कर सकते हैं।

जानिए नीम की पत्तियों के अद्भुत गुणों के विषय में

जानिए नीम की पत्तियों के अद्भुत गुणों के विषय में

जैसा कि हम सब जानते हैं, कि नीम एक औषधीय पौधा होता है। इसका उपयोग औषधियां बनाने, सौंदर्य प्रसाधन एवं जानवरों के उपचार के लिए किया जाता है। नीम एक औषधीय पौधा होता है, इसके बीज, पत्ती, तना, छाल, गोंद सभी चीजों में औषधीय गुण विघमान होता है। इसकी खेती उष्णकटिबंधीय इलाकों में अधिकांश की जाती है। नीम औषधीय गुणों के साथ पाया जाता है। इतने ढेर सारे गुणों के चलते इसे दूसरे पौधों के मुकाबले में एक लाभकारी पेड़ के रूप में जाना जाता है। संस्कृत में नीम को 'अरिस्टा' के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है अच्छा स्वास्थ्य देने वाला। यहां तक नीम का महत्व पर्यावरण संरक्षण, कीट नियंत्रण और चिकित्सा तक हर क्षेत्र में होता है।


 

नीम का इस्तेमाल विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है

औषधीय गुण:

आयुर्वेद में नीम का एक काफी लंबा इतिहास रहा है। इसमें एंटी-एलर्जेनिक, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीपायरेटिक और एंटी-डायबिटिक गुण होते हैं। नीम-आधारित उपचारों का उपयोग मुंहासे, एक्जिमा और सोरायसिस जैसी त्वचा के रोग से संरक्षण के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल करके संभावित कैंसर-रोधी दवाओं की भी खोज की जा रही है। 

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कृषि

नीम के अर्क का इस्तेमाल प्राकृतिक उर्वरक के तौर पर किया जाता है। यह फसलों को कीटों एवं बीमारियों से भी बचाता है। नीम आधारित कीटनाशकों को सबसे उत्तम उर्वरक माना जाता है। यह कीटों की प्रजनन क्षमता को कम करते हैं।


 

नीम से जानवरों का उपचार व देखभाल

कीड़ों एवं परजीवियों को दूर रखने के लिए नीम का तेल मवेशियों पर लगाया जाता है, जिससे पशुओं के स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है। साथ ही, रासायनिक उपचार की जरूरत भी काफी कम हो जाती है। नीम की पत्तियों का इस्तेमाल जानवरों के लिए स्वास्थ्य लाभ के तोर पर किया जाता है। रोग ग्रसित जानवरों के चारे में मिलाकर इसका उपयोग किया जाता है। 

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नीम से सौंदर्य प्रसाधन

नीम के अर्क का इस्तेमाल लोशन, साबुन, शैंपू और अन्य सौंदर्य प्रसाधन उत्पाद तैयार करने में किया जाता है। इसमें बहुत से पोषक गुण उपलब्ध होते हैं, जो कि हमारी त्वचा के लिए अच्छा होता है। नीम के तेल का इस्तेमाल करने से मनुष्यों को मच्छरों एवं अन्य काटने वाले कीड़ों से बचाता है। नीम एक बेहद ही ज्यादा गुणकारी पौधा है। इसके औषधीय गुणों के अतिरिक्त घर के सामने भी लगाया जाता है, जिससे घर के आस-पास ऑक्सीजन की मात्रा अच्छी बनी रहती है।

रासायनिक कीटनाशकों को छोड़ नीम के प्रयोग से करें जैविक खेती

रासायनिक कीटनाशकों को छोड़ नीम के प्रयोग से करें जैविक खेती

आजकल कीटनाशक असली है या नकली ये कहना बहुत कठिन हो गया है, कई बार रासायनिक कीटनाशक फसल पर प्रतिकूल प्रभाव भी डालते हैं। किसान कम कीमत में कीटनाशक खरीदने के चक्कर में रसीद ही नहीं लेते, क्योंकि वह १८ % जी एस टी (GST) से बच जाते हैं और इस वजह से उनको घटिया किस्म के कीटनाशक पकड़ा दिए जाते हैं। नकली रासायनिक कीटनाशकों को छोड़कर, स्वयं नीम(Neem) के प्रयोग से कीटनाशक बनाने का प्रयास करें। नकली रासायनिक कीटनाशक भूमि और फसल को काफी हद तक दूषित और जहरीली बना देते हैं।

फसल को प्राकृतिक रूप से पैदा करने से, खाने वाले का स्वास्थ्य और मन दोनों स्वस्थ और मस्त रहता है, क्योंकि प्राकृतिक खेती करने से फसल में जहरीले रासायनिक कीटनाशकों व उर्वरकों का लेश मात्र भी मिश्रण नहीं होता। नीम के प्रयोग से किसान खुद अपने घर खेत पर ही कीटनाशक तैयार कर सकते हैं, जो कि रासायनिक कीटनाशकों की जगह एक अच्छे विकल्प की भूमिका अदा करेगा। नीम द्वारा बनाई गयी कीटनाशक दवा का फसल में छिड़काव करके किसान अपनी फसल की कीटों से सुरक्षा कर सकते हैं।

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नीम से कीटनाशक बनाने के क्या फायदे हैं ?

नीम से कीटनाशक बनाकर किसान कीटनाशकों पर किये जाने वाले अधिक खर्च से बच सकते हैं। किसान दूषित खानपान को रोकने के लिए ऑर्गेनिक और जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। जैविक एवं आर्गेनिक खेती की चर्चा आज पूरे देशभर में चल रही है, क्योंकि इसमें किसानों की कम लागत लगने के साथ साथ फसल भी उत्तम गुणवत्ता के साथ होती है, जिसे खाने से लोगों को किसी भी प्रकार का कोई नुकसान नहीं होता। जबकि रासायनिक तरीके से उत्पन्न की जाने वाली फसल में अच्छे बुरे केमिकल्स मिले हुए होते हैं, जो कि काफी हद तक सेहत को खराब करने में सक्षम होते हैं। इसलिए नीम से बनायीं गयी कीटनाशक दवाओं का ही छिड़काव किया जाना चाहिए। नीम से निर्मित कीटनाशक दवा बहुत ही उम्दा और शुद्ध होती है।

घर बैठे किस प्रकार तैयार करें जैविक कीटनाशक

जैविक कीटनाशक घर पर तैयार करने के लिए नीम का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है, नीम के अंदर बहुत सारे गुण विघमान होते हैं। नीम में जीवाणुरोधी एंटी कार्सिनोजेनिक एवं एंटीफंगल जैसी विशेषताएं कीटनाशक बनाने के लिए बहुत सहायक साबित होती हैं। साथ ही नीम के तेल का निचोड़ भी कीटनाशक प्रतिरोधी अवयवों से उत्पन्न हुआ है, जिसकी दुर्गंध एवं कड़वेपन की वजह से यह फसलों को कीट व कीड़ों से बचाने की क्षमता रखता है।

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नीम का कीटनाशक घर पर तैयार करने की विधि :

नीम का कीटनाशक बनाने के लिए :

  • हरी मिर्च और लहसुन को अच्छी तरह से पीस कर, अच्छी तरह मिश्रण करने के उपरांत उबले हुए चावल के जल में डालदें।
  • मिश्रण के बाद कम से कम २४ घंटे के लिए किसी अच्छे स्थान पर रखें,
  • उसके बाद इसको लहसुन और हरी मिर्च वाले जल में सही तरीके से मिलाकर, मिर्च और लहसुन के छिलकों को छानकर बाहर निकालदें।
  • तीन चार चम्मच नीम के तेल के अर्क को मिश्रित करने के बाद, एक बोतल पानी में मिलाकर पतला करें,
  • मिश्रण को कीट व रोगों से ग्रसित पौधों पर छिड़कें।