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सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) क्या है और कैसे दिलाएगी पराली की समस्या से निजात

सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) क्या है और कैसे दिलाएगी पराली की समस्या से निजात

हर साल ठंड का महीना शुरू होने के साथ ही उत्तर भारत में प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है। इसका एक कारण पराली जलाने की समस्या है। हमारे देश में किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर खेत में ही जला देते हैं। इस कचरे को पराली कहा जाता है। इसे खेत में जलाने से ना केवल प्रदूषण फैलता है बल्कि खेत को भी काफी नुकसान होता है। ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों से वंचित रह जाती है। किसानों का तर्क है कि धान के बाद उन्हें खेत में गेहूं की बुवाई करनी होती है और धान की पराली का कोई समाधान नहीं होने के कारण उन्हें इसे जलाना पड़ता है। पराली जलाने पर कानूनी रोक लगाने के बावजूद, सही विकल्प ना होने की वजह से पराली जलाया जाना कम नहीं हुआ है।

सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) और पराली की समस्या का हल

Super Seeder Machine

इस समस्या से निजात देने के लिए सुपर सीडर मशीन वरदान की तरह हैं। इस मशीन(Machine) के इस्तेमाल से धान की कटाई के बाद खेत में फैले हुए धान के अवशेष को जलाने की ज़रूरत नहीं होती है। सुपर सीडर(Super Seeder) के साथ धान की पराली जमीन में ही कुतर कर बिजाई करने से अगली फसल का विकास होता है। इसके अलावा जमीन की सेहत भी बेहतर होती है और खाद संबंधी खर्च भी घटता है। 

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 सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) से किसानों को धान के बाद गेंहू की बुवाई के लिए बार बार जुताई नहीं करानी होती और न हर पराली को जलाने की ज़रूरत होती है। बल्कि यह पराली खाद का काम करेगी। पराली की मौजूदगी में ही गेहूँ की बिजाई संभव है। इस प्रकार सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine) से बुवाई खर्च कम लगेगा और उत्पादन भी बढ़ेगा। धान की सीधी बिजाई एवं गेहूँ की सुपर सीडर(Super Seeder) से बुवाई करने पर कम समय एवं कम व्यय के साथ-साथ अधिक उत्पादन एवं पर्यावरण प्रदूषण तथा जल का संचयन भी आसानी से किया जा सकता है।

कैसी होती है सुपर सीडर मशीन(Super Seeder Machine)

 सुपर सीडर(Super Seeder) में रोटावेटर, रोलर व फर्टिसीडडृलि लगा होता है। सपुर सीडर ट्रैक्टर(Super Seeder Tractor) के साथ 12 से 18 इंच खड़ी पराली के खेत में जुताई करते हैं। रोटावेटर पराली को मिट़टी में दबाने, रोलर समतल करने व फर्टिसीडड्रिल खाद के साथ बीज की बुवाई करने का काम करता है। दो से तीन इंच की गहराई में बुवाई होती है। 

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खासियत

सुपर सीडर(Super Seeder) की खासियत है कि एक बार की जुताई में ही बुआई हो जाती है। पराली की हरित खाद बनने से खेत में कार्बन तत्व बढ़ा जता है और इससे अच्छी फसल होती है। इस विधि से बुवआई करने पर करीब पाँच प्रतिशत उत्पादन बढ़ सकता है और करीब 50 प्रतिशत बुआई लागत कम होती है। पहले बुआई के लिए चार बार जुताई की जाती थी। ज़्यादा श्रम शक्ति भी लगती थी। सुपर सीडर(Super Seeder) यंत्र से 10 से 12 इंच तक की ऊंची धान की पराली को एक ही बार में जोत कर गेहूं की बुआई की जा सकती है। जबकि किसान धान काटने के बाद पाँच से छह दिन जुताई कराने के बाद गेहूं की बुआई करते हैं। इससे गेहूँ की बुआई में ज्यादा लागत आती है। जबकि सुपर सीडर(Super Seeder) यंत्र से बुआई करने पर लागत में भारी कमी आती है।

किसानों में जागरुकता का प्रसार

कई राज्यों में किसानों को सुपर सीडर(Super Seeder) चलाने और इससे गेहूँ की बुवाई करने की जानकारी दी जा रही है। उन्हें बताया जा रहा है कि पराली जलाने की मजबूरी से सुपर सीडर(Super Seeder) निजात दिला सकता है। किसानों को जागरुक करने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र भी जुटा है। 

कीमत

इस मशीन(machine) की कीमत बाजार में 2 से सवा 2 लाख रुपये तक है। यह मशीन एक एकड़ जमीन की जुताई एक से दो घंटे में कर सकती है। 

समस्या

हालांकि यह मशीन किसानों के लिए कारगर तो है, लेकिन इसकी महंगी कीमत होने के कारण छोटी जोत के किसानों तक इसकी पहुँच नहीं हो पाएगी। ऐसे में किसानों ने सरकार से इस मशीन के लिए सब्सिडी(Subsidy) देने की मांग की है।

पराली जली तो प्रधान जाएंगे जेल

पराली जली तो प्रधान जाएंगे जेल

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण यानी कि एनजीटी की शख्ती का असर धान उत्पादन करने वाले राज्यों में होने लगा है। उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां पराली जलाने वाले किसानों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही के आदेश किए जा चुके हैं। आला अफसरों ने अधीनस्थों को यहां तक निर्देश दिए हैं कि यदि कहीं से पराली जलने की सूचना मिलती है तो उस गांव के प्रधान को भी जिम्मेदार मानते हुए उसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज की जा सकती है। इतना ही नहीं पराली प्रबंधन को लेकर गैर जिम्मेदार प्रधानों की ग्राम पंचायत के विकास कार्यों की निधि को भी रोकने के मौखिक आदेश कई जगहों पर दिए जा चुके हैं। parali prabandhan धान की पराली किसान और आमजन दोनों के जी का जंजाल बन चुकी है। धान की खेत की नमी में गेहूं की बिजाई करने की जल्दबाजी और करोड़ों करोड़ों रुपए के डीजल की बचत करना किसान की मजबूरी है। इसीलिए वह धान की पराली को आसान तरीके से आग लगा देते हैं लेकिन धान की पराली से उठने वाला धुआं दिल्ली जैसे महानगरों में दम घौंटू माहौल का कारण बन रहा है। कथित तौर पर पर्यावरण के हितेषी का दम भरने वाले लोग और मीडिया किसानों की इस हरकत को लेकर महीनों कोहराम करते नजर आते हैं लेकिन किसी के पास इसके बेहतर समाधान का कोई इंतजाम नजर नहीं आता। सरकार की पराली प्रबंधन को लेकर मशीनीकरण अनुदान योजना की बात हो या फिर ट्रेनिंग प्रोग्राम की बात हो करोड़ों करोड़ों रुपए फ्लेक्स, पंपलेट, भोजन के पैकेट और चाय नाश्ते पर बर्बाद हो जाते हैं लेकिन परिणाम बहुत ज्यादा आशा जनक नजर नहीं आता। गुजरे सालों की बात करें तो एक-एक जनपद में पिछले सालों में 25 से 50 लाख रुपए तक सरकार द्वारा खर्च किए जा चुके हैं। इसके बाद भी पराली को 1 हफ्ते के अंदर खेत में गलाने सडाने की कोई भी तकनीक वैज्ञानिक ईजाद नहीं कर पाए हैं।

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जुर्माने के नहीं कोई मायने

parali ki samasya धान की पराली को जलने से रोकने के लिए जुर्माने की जो व्यवस्था की गई है उसके कोई मायने नजर नहीं आते। पानी की कमी वाले इलाकों में ₹2000 एकड़ का जुर्माना देने में भी किसान को लाभ नजर आता है चूंकि यदि वह पराली को निस्तारित करने में 15 दिन का समय लगाएं और उसके बाद गेहूं की बिजाई के लिए खेत में पानी लगाएं तो खर्चा 2 गुना तक हो सकता है। इसके अलावा बरसात के दिनों की नमी और बोरिंग के पानी की नमी का अंतर और असर गेहूं की फसल पर बिल्कुल अलग नजर आता है। सरकारी यदि जुर्माने की राशि बढ़ाती हैं तो किसान आक्रोशित हो सकते हैं और कम जुर्माना पराली जलाने की उनकी प्रवृत्ति को बहुत ज्यादा नियंत्रित करने लायक नहीं है।

कौवे मार कर लटका दो

चौकाने वाली बात यह है कि उत्तर प्रदेश के जनपद में तो आला अफसर ने अधीनस्थों को पेड़ पर मारकर कौवे लटकाने की नसीहत तक दे डाली। उनका इस नसीहत के पीछे मर्म यही था कि जिस प्रकार किसी स्थान से कौवों को भगाने के लिए एक कौवा मारकर पेड़ पर लटका दिया जाता है, जिसे देख कर बाकी कौवे खतरे का अंदेशा होने पर पेड़ पर नहीं बैठते। उसी तर्ज पर पराली प्रबंधन में भी काम किया जाए। उनकी इस पहेली के पीछे की मंशा जिला पंचायत राज अधिकारी जैसे अफसरों को यह संदेश देने की थी किस गांव में पराली जले वहां के प्रधानों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए ताकि चंद प्रधानों के खिलाफ की गई कड़ी कार्यवाही का असर बाकी ग्राम प्रधानों पर भी हो।
पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस

पंजाब सरकार बनाएगी पराली से खाद—गैस

पंजाब सरकार करीब 500 करोड़ के निजी निवेश पर आधारित पांच बायोगैस प्रोजेक्टों को शीघ्र शुरू करने जा रही है। इनमें धान की पराली से बायोगैस एवं खाद बनाई जाएगी। मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री डा. राज कुमार वेरका और पेडा के चेयरमैन एच.एस. हंसपाल की मौजुदगी में राज्य के नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत विभाग की पंजाब ऊर्जा विकास एजेंसी (पेडा) ने मैसर्ज एवरएनवायरो रिसोर्स मैनेजमेंट प्राईवेट लिमटिड, मुंबई के साथ राज्य में धान की पराली पर आधारित पाँच बायोगैस प्रोजैक्टों के लिए हस्ताक्षर करके समझौता किया।

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इस मौके पर पेडा के सी.ई.ओ रंधावा ने बताया कि यह प्रोजैक्ट जगराओं, मोगा, धूरी, पातड़ां और फिलौर तहसीलों में स्थापित किये जाएंगे। यह कंपनी लगभग 500 करोड़ रुपए के निजी निवेश से इन प्रोजेक्टों की स्थापना करेगी। इन प्रोजेक्टों का कुल उत्पादन 222000 घन मीटर रा बायो गैस प्रति दिन है जिसको शुद्ध किया जायेगा जिससे प्रति दिन 92 टन बायो सीएनजी /सीबीजी प्राप्त की जा सके। इन प्रोजेक्टों में उप-उत्पाद के तौर पर जैविक खाद भी तैयार की जायेगी जो खेती ज़मीन की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाएगी और रासायनिक खाद के प्रयोग को भी बदलेगी। 

यह प्रोजैक्ट दिसंबर, 2023 तक या इससे पहले बायो सीएनजी का व्यापारिक उत्पादन शुरू कर देंगे। यह प्रोजैक्ट लगभग 7000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजग़ार प्रदान करेंगे। इन प्रोजैक्टों के चालू होने पर लगभग 3.5 लाख टन सालाना धान की पराली खपत होगी। इस तरह राज्य के किसानों को अपने खेतों में इन प्रोजैक्टों के लिए खेती के अवशेष की बिक्री से भी लाभ होगा और पराली जलाने की समस्या से भी काफ़ी निजात मिलेगी।

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सी.ई.ओ. ने आगे बताया कि पेडा ने राज्य में कुल 263 टन प्रति दिन सामर्थ्य वाले 23 ऐसे बायो सीएनजी प्रोजैक्ट, प्राईवेट डिवैलपरों को बीओओ के आधार पर अलाट किये हैं, जिनमें उपरोक्त 5 प्रोजैक्ट भी शामिल हैं। यह प्रोजैक्ट 2022-23 और 2023-24 तक लगभग 1300-1500 करोड़ रुपए के निजी निवेश से पूरे किये जाएंगे। इन प्रोजैक्टों से लगभग 35000 व्यक्तियों को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर रोजग़ार मिलेगा।

यह प्रोजैक्ट चालू होने पर लगभग 9 लाख टन सालाना धान की पराली का उपभोग करेंगे। मैसर्ज वर्बियो इंडिया प्राईवेट लिमटिड द्वारा गाँव भुटाल कलाँ, जि़ला संगरूर में प्रति दिन 33.23 टन बायो-सीऐनजी सामथ्र्य का स्थापित किया जा रहा सबसे बड़ा प्रोजैक्ट है, दिसंबर 2021 तक व्यापारिक उत्पादन शुरू कर देगा। इस प्रोजैक्ट में लगभग 1.25 लाख टन धान की पराली की खपत की जायेगी।

पराली की समस्या से निबटने के लिए केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने कई कदम उठाए

पराली की समस्या से निबटने के लिए केन्द्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने कई कदम उठाए

2018 की समान अवधि की तुलना में पराली जलाने के मामलों में अब तक 12.01 प्रतिशत की कमी केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने खेतों में फसलों के अवशेष-पराली जलाने की समस्‍या से निबटने के लिए कई प्रभावी कदम उठाए हैं। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् आईसीएआर की प्रयोगशाला की ओर से 04 नंवबर, 2019 को जारी बुलेटिन संख्या 34 ( http://creams.iari.res.in/cms2/index.php/bulletin-2019 पर उपलब्ध) के अनुसार 2018 की समान अवधि की तुलना में पराली जलाने के मामलों में अब तक 12.01 प्रतिशत की कमी आई है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में इस वर्ष अब तक पराली जलाने के मामलों में क्रमशः 48.2 प्रतिशत, 11.7 प्रतिशत और 8.7 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। इन तीनों राज्यों में 01 अक्तूबर, 2019 से 03 नवंबर, 2019 के बीच पराली जलाने के कुल 31,402 मामलों की जानकारी प्राप्त हुई। पंजाब में 25366, हरियाणा में 4414 और उत्तर प्रदेश में ऐसी 1622 घटनाएं हुई।   

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 इससे पहले, पराली जलाने के कारण दिल्ली और एनसीआर क्षेत्र में होने वाले वायु प्रदूषण के संबंध में 2017 में प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया गया था। समिति ने फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए तकनीकी तरीके अपनाने की सिफारिश की है। इसके आधार पर कृषि और किसान मंत्रालय ने एक योजना तैयार की जिसे 2018-19 के बजट में शामिल किया गया था। केन्‍द्र सरकार की इस योजना को 1151. 80 करोड़ रूपए की लागत से पंजाब, हरियाणा,उत्‍तर प्रदेश तथा दिल्‍ली और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्‍या से निबटने के लिए 2018-19 से 2019-20 तक लागू किया जाना है। इसके तहत पराली निबटाने के लिए इस्‍तेमाल किए जाने वाले तकनीकी उपकरण सरकार की ओर से रियायती दरों पर उपलब्‍ध कराए जाएंगे। योजना के लागू होने के एक साल के अंदर देश के उत्‍तर पूर्वी राज्‍यों में आठ लाख हेक्‍टेयर भूमि पर 500 करोड़ रूपए के खर्च से हैप्‍पी सीडर / जीरो टिलेज तकनीक इस्‍तेमाल में लायी गई। योजना के तहत किसानों को तकनीकी तरीके से फसल अवशेष निबटाने के उपकरणों की खरीद पर सरकार की ओर से 50 प्रतिशत की छूट दी जाएगी। रियायती दरों पर उपकरण उपलब्ध कराने की योजना के तहत 2018-19 के दौरान पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार के लिए क्रमशः 269.38, 137.84 और 148.60 करोड़ रुपये जारी किए गए। वर्ष 2019-20 के दौरान अब तक पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकार को क्रमशः 273.80, 192.06 और 105.29 करोड़ रुपये जारी किए जा चुके हैं। इन पैसों की मदद से अब तक 29,488 मशीने खरीदी गई हैं, जिनमें से 10379 मशीनें सीधे किसानों को दी गई हैं और 19109 मशीनें सीएचसी को दी गईं। 

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आने वाले दिनों में ऐसा रहेगा आगरा का मौसम, कुछ महत्वपूर्ण सलाहें

आने वाले दिनों में ऐसा रहेगा आगरा का मौसम, कुछ महत्वपूर्ण सलाहें

कृषि विज्ञान केन्द्र बिचपुरी आगरा को भारत मौसम विज्ञान विभाग नई दिल्ली से प्राप्त मौसम के पूर्वानुमान के आधार पर आगामी पांच दिनों में बादल न रहने व वर्षा नहीं होने का अनुमान है। हवा लगभग 4.2 से 10.7 किमी प्रतिघंटा की औसत गति से मुख्यतः पूरव - उत्तर से पश्चिम - उत्तर से बहने की संभावना है। अधिकतम तापमान 26.9 से 30.2 व न्यूनतम तापमान 11.7 से 14.7 डिग्री सेल्सियस के लगभग रहने की संभावना है। आपेक्षिक आर्द्रता सुबह 33 से 46 व शाम को 18 से 24 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान है।


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किसानों को सलाह है, कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को ना जलाऐं। क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण होता है, जिससे स्वास्थय सम्बन्धी बीमारियों की संभावना बढ जाती है। इस कारण फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है, कि धान के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जमीन में मिला दें। इससे मृदा की उर्वरकता बढ़ती है, साथ ही यह पलवार का भी काम करती है। धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग @ 4 कैप्सूल/हैक्टेयर किया जा सकता है। किसानों को सलाह दी जाती है, कि वह स्थानीय कृषि रसायन विक्रेताओं की सलाह पर कृषि कार्य ना करें कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह लेकर ही कृषि कार्य करें।

फसल सम्बंधित महत्वपूर्ण सलाहें

गेंहू की बुवाई हेतू खाली खेतों को तैयार करें तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें। उन्नत प्रजातियाँ-सिंचित परिस्थिति- (एच. डी. 3226), (एच. डी. 2967), (एच. डी. 3086), (एच. डी. 2851)। बीज की मात्रा 100 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर। जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो तो क्लोरपाईरिफाँस 20 ईसी @ 5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से पलेवा के साथ दें। नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 कि.ग्रा. प्रति हैक्टेयर होनी चाहिये।


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बरसीम की बुवाई के लिए खेत की तैयारी करें। बुवाई का समय मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक उचित रहता है, प्रजातियां- वरदान, मेस्कावी, J.H.B-146, J.H.T.B-146. बीज दर: प्रति हैक्टेयर 25-30 किग्रा० बीज बोते है। पहली कटाई मे चारा की उपज अधिक लेने के लिए 1 किग्रा० /हे० चारे वाली टा -9 सरसों का बीज बरसीन में मिलाकर बोना चाहियें। उर्वरक: 20 किग्रा० नत्रजन एंव 80 किग्रा० फास्फोरस प्रति हैक्टेयर की दर से बोते समय खेत में छिड़क कर मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें।

बागवानी (अमरुद) सम्बंधित सलाह

अमरूद में शीत ऋतु के फल बन चुके हैं। आवश्यकता आधारित सिंचाई के माध्यम से मिट्टी में उचित नमी बनाए रखें। कलम के नीचे से निकल रहे कल्लों को तोड़ते रहें। वृक्ष के थाले को खरपतवार मुक्त रखें। यदि ड्रिप प्रणाली से उर्वरकोंका कों प्रयोग किया जा रहा है, तो पानी में घुलनशील उर्वरकों को 7 दिनों के अंतराल पर प्रयोग करें। इस स्तर पर, फलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए पोटेशियम का प्रयोग महत्वपूर्ण है।

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पशु सम्बंधित सलाह

किसान भाइयो लम्पी स्किन रोग की रोकथाम के लिए जनपद में "गोट पॉक्स वैक्सीन" उपलब्ध है। स्वस्थ पशु का वैक्सीनेसन कराएं। रोग से प्रभावित पशु को देखते ही नजदीकी पशुचिकित्सक को सूचना दें। लंपी स्किन रोग का घरेलू उपचार-1 kg नीम की पत्तियों को 4 लीटर पानी मे हल्की आग पर उबालें और जब पानी आधा रह जाये तब उसे ठंडा करके छान लें, और रोग से प्रभावित पशु के शरीर को शूती कपड़े से पोछदें। यह प्रक्रिया पशु के ठीक होने तक करते रहें।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा पराली से निर्मित किया गया बागवानी प्लांटर्स से होंगे ये लाभ

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा पराली से निर्मित किया गया बागवानी प्लांटर्स से होंगे ये लाभ

विशेषज्ञों के अनुसार शहरों में बढ़ रहे बागवानी के शौक के बीच पराली के इन नर्सरी प्लांटर्स का प्रयोग किचन बागवानी अथवा सामान्य पौधरोपण हेतु किया जा सकता है। देश में धान की कटाई के उपरांत पराली को खत्म करना बहुत ही चुनौतीपूर्ण कार्य हो जाता है। अधिकाँश किसान इस पराली का समुचित प्रबंधन करने की जगह जलाकर प्रदूषण में भागीदार बनते हैं। इसकी वजह से पर्यावरण प्रदूषण में वृध्दि हुई है व लोगों का स्वास्थ्य बेहद दुष्प्रभावित होता है। इस समस्या को मूल जड़ से समाप्त करने हेतु सरकार व वैज्ञानिक निरंतर कोशिश कर रहे हैं, जिसके बावजूद इस वर्ष भी बेहद संख्या में पराली जलाने की घटनाएं देखने को मिली हैं। बतादें कि, पराली के समुचित प्रबंधन हेतु विभिन्न राज्यों में पराली को पशु चारा बनाने को खरीदा जा रहा है।

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा यह उपाय निकाला गया

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (PAU) द्वारा पराली के समुचित प्रबंधन करने हेतु उपाय निकाला गया है। दरअसल, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के डिपार्टमेंट आफ अपैरल एंड टेक्सटाइल ने पराली से नर्सरी प्लांटर्स निर्मित किये हैं। इन प्लांटर्स की सहायता से प्लास्टिक व सीमेंट के प्लांटर्स के आधीन कम रहेंगे व पेड़-पौधे भी उचित तरीके से उन्नति करेंगे। विषेशज्ञों के अनुसार शहरों में तीव्रता से बड़ रहे बागवानी के खुमार के बीच इन नर्सरी प्लांटर्स का प्रयोग किचन बागवानी के लिए भी हो पायेगा। पराली के इन प्लांटर्स में उत्पादित होने वाली सब्जियां स्वास्थ्य हेतु अत्यंत लाभकारी होंगी।


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पराली से निर्मित होंगे प्लांटर्स

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पराली से निर्मित नर्सरी प्लांटर्स किसानों के एवं किचन बागवानी का शौक रखने वालों हेतु भी लाभकारी है। निश्चित रूप से इससे प्लास्टिक के प्लांटर्स पर निर्भरता में कमी आएगी। पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट आफ अपैरल एंड टेक्सटाइल की रिसर्च एसोसिएट डॉ. मनीषा सेठी जी का कहना है, कि वर्तमान दौर में पेड़-पौधे लगाने का शौक बढ़ रहा है। आज तक लोग पौधे लगाने हेतु प्लास्टिक के प्लांटर्स का प्रयोग कर रहे थे। दरअसल प्लास्टिक प्लांटर्स से प्रदूषण बढ़ता है, इसलिए पराली से बने नर्सरी प्लांटर्स अब प्लास्टिक प्लांटर्स की जगह ले रहे हैं।

किस प्रकार से होगा उपयोग

विशेषज्ञों ने कहा है, कि केवल किचन बागवानी हेतु नहीं, पराली से बने प्लांटर्स को पौधा सहित भूमि में भी लगाया जा सकता है। पूर्ण रूप से पराली निर्मित इस प्लांटर्स में किसी भी अन्य पदार्थ का उपयोग नहीं हुआ है। इसके प्रयोग से भूमि में भी उर्वरक की पूर्ति होगी व खरपतवार से भी निपटा जा सकेगा। कृषि वैज्ञानिकों द्वारा इन प्लांटर्स में पौधरोपण का परीक्षण भी किया जा चुका है। विशेषज्ञों ने इस पराली के प्लांटर का भाव १० से १५ रुपये करीब है, यदि प्लांटर को मशीन द्वारा निर्मित किया जाये तो २ से ३ रुपये में बन सकता है। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा प्रशिक्षण लेकर किसान व युवा प्लांटर बना सकते हैं। किसान खेती करते समय प्लांटर मैनुफैक्चरिंग यूनिट स्थापित कर इनका उत्पादन कर अन्य नर्सरियों को विक्रय कर सकते हैं।
इस राज्य के एक गांव में आज तक नहीं जलाई गयी पराली बल्कि कर रहे आमदनी

इस राज्य के एक गांव में आज तक नहीं जलाई गयी पराली बल्कि कर रहे आमदनी

बीते खरीफ सीजन की कटाई के दौरान जलने वाली पराली से जनता का सांस तक लेने में दिक्क्त पैदा करदी थी। परंतु फिर भी एक गांव में एक भी पराली नहीं  जलाई गयी थी। बल्कि इस गांव में पराली द्वारा बहुत सारी समस्याओं का निराकरण किया गया है। अक्टूबर-नवंबर माह के दौरान खरीफ फसलों की कटाई उपरांत देश में पराली जलाने की परेशानी चिंता का विषय बन जाती है। यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा एवं पंजाब से लेकर के बहुत सारे गांव में किसान धान काटने के उपरांत बचे-कुचे अवशेष को आग के हवाले कर देते हैं, इस वजह से बड़े स्तर पर पर्यावरण प्रदूषित होता है। यह धुआं हवा में उड़ते हुए   शहरों में पहुंच जाता है एवं लोगों के स्वास्थ्य पर अपना काफी प्रभाव डालता है। साथ ही, खेत में अवशेष जलने की वजह से खेती की उर्वरक ताकत कम हो जाती है। इन समस्त बातों से किसानों में सजगता एवं जागरुकता लाई जाती है, इतना करने के बाद भी बहुत सारे किसान मजबूरी के चलते पराली में आग लगा देते हैं। अब हम बात करेंगे उस गांव के विषय में, जहां पर पराली जलाने का एक भी मामला देखने को नहीं मिला है। इस गांव में किसान पूर्व से ही सजग एवं जागरूक हैं एवं खुद से कृषि से उत्पन्न फसल अवशेषों को जलाने की जगह पशुओं के चारे एवं मल्चिंग खेती में प्रयोग करते हैं। इसकी सहायता से गांव में ना तो पशु चारे का कोई खतरा होता है एवं ना ही प्रदूषण, साथ ही, पशुओं के दुग्ध के और फसल की पैदावार भी बढ़ जाती है। किसानों को बेहतर आय अर्जन में बेहद सहायता मिलती है।

किसानों की पहल काबिले तारीफ है

किसान तक की खबर के अनुसार, झारखंड राज्य भी धान का एक प्रमुख उत्पादक राज्य माना जाता है। झारखंड के किसानों द्वारा भी खरीफ सीजन में धान का उत्पादन करते हैं। परंतु इस राज्य में पराली जलाने के अत्यधिक कम मामले देखने को मिले हैं। यहाँ बहुत से गांवों में बहुत वर्षों से पराली जलाने की एक भी घटना नहीं हुई है। अब यह किसानों की समझदारी और जागरुकता का परिचय देती है। खबरों के मुताबिक, झारखंड राज्य के अधिकाँश किसानों द्वारा धान की कटाई-छंटाई हेतु थ्रेसिंग उपकरणों का प्रयोग किया गया है। इसके उपरांत पराली को खेत में ही रहने दिया जाता है, जिससे कि यह मृदा में गलने के बाद खाद में तब्दील हो जाए अथवा सब्जी की खेती हेतु मल्चिंग के रूप में पराली का समुचित प्रयोग किया जा सके। हालांकि, कई सारे किसान इस पराली को घर भी उठा ले जाते हैं।

पराली से बनाया जा रहा है पशु चारा

बतादें, कि केवल झारखंड के गांव ही नहीं बल्कि देश में बहुत सारे गांव ऐसे हैं, जिन्होंने शून्य व्यर्थ नीति को अपनाया है। मतलब कि, फसल अवशेषों में आग नहीं लगाई जाती है, बल्कि उसको पशुओं के चारे हेतु तथा पुनः खेती में ही प्रयोग किया जाता है। बहुत सारे गांव में इस पराली द्वारा पशुओं हेतु सूखा चारा निर्मित किया जाता है, जिसको भुसी अथवा कुटी के नाम से जाना जाता है।


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पराली से निर्मित चारे में मवेशियों के लिए काफी पोषक तत्व एवं देसी आहार विघमान होते हैं, जिससे कि पशु भी चुस्त दुरुस्त व स्वस्थ रहते हैं। साथ ही, बेहतर दूध भी प्राप्त हो पायेगा। भारत में चारे की बढ़ती कीमतों की सबसे मुख्य वजह यह है, कि जिस पराली को पूर्व में पश चारे के रूप में उपयोग किया जाता था।  विडंबना की बात यह है, कि आज पराली को जला दिया जाता है। बहुत सारे स्थानों पर पशुपालन की जगह मशीनों का उपयोग बढ़ रहा है, इस वजह से चारे और दूध दोनों के दाम बढ़ रहे हैं । विशेषज्ञों का कहना है, कि बहुत सारे गांव में लंपी के बढ़ते संक्रमण के मध्य पशुपालन में बेहद कमी देखने को मिली है। फिलहाल, चारे को खाने के लिए पशु ही नहीं होंगे, तो पराली भी किसी कार्य की नहीं है। इसलिए ही किसान पराली को आग लगा देते हैं, हालाँकि किसान यदि चाहें तो अन्य राज्यों में अथवा अन्य चारा निर्माण करने वाली इकाइयों को पराली विक्रय कर आय कर सकते हैं।

पराली से इस प्रकार होती है आमदनी

झारखंड राज्य में रहने वाले किसान रामहरी उरांव का कहना है, कि पूर्व में किसान पारंपरिक तौर से कृषि करते थे। फसल कटाई के उपरांत जो अवशेष बचते थे, उसे पशुओं को चारे के रूप में खिलाया जाता था। खेत में ही इन अवशेषों को सड़ाकर खाद में तब्दील किया जाता था। उनका कहना है, कि वर्तमान में भी उनके गांव में पराली से पशुओं हेतु कुटी निर्मित की जाती है, जिसमें चोकर इत्यादि का मिश्रण कर पशुओं को खिलाते हैं। बहुत सारे किसान फसल अवशेषों को मल्चिंग के रूप में उपयोग करते हैं। यह पूर्णतया पर्यावरण के अनुकूल एवं जैविक है, जिसे खेत में फैलाने से मृदा को बहुत सारे लाभ अर्जित होते हैं। इसी वजह से बहुत सारे किसान पराली को जलाने की जगह फसल की पैदावार में वृद्धि हेतु खेती में प्रयोग करते हैं।
पंजाब में पराली जलाने के मामलों ने तोड़ा विगत दो साल का रिकॉर्ड

पंजाब में पराली जलाने के मामलों ने तोड़ा विगत दो साल का रिकॉर्ड

पंजाब भर में पराली जलाने की घटनाओं में बढ़ोतरी होने के साथ, राज्य के ज्यादातर गांवों में धुंध की हालत बनी हुई है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पंजाब में इस साल घटनाओं की कुल संख्या 1,027 के आंकड़े को छू गई है। भारत के करीब समस्त राज्यों में धान की कटाई आरंभ हो चुकी है। साथ ही, हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं देखने को मिल रही हैं। हालांकि, इस वर्ष पराली जलाने के मामलों में काफी वृद्धि देखने को मिली है। नतीजतन, राज्य के ज्यादातर गांवों में धुंध की स्थिति बनी हुई है। ट्रिब्यून इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, इस सीजन में खेतों में आग लगने के मामले विगत दो वर्षों की अपेक्षा में काफी ज्यादा हैं। बतादें, कि इससे सरकार द्वारा फसल अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध लगाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। ज्ञात हो कि सोमवार को पंजाब में पराली जलाने के 58 मामले दाखिल किए गए हैं। इसके साथ ही इस वर्ष घटनाओं की कुल तादात 1,027 के चार अंकों के आंकड़े तक पहुँच चुकी है।

पराली जलाने के मामलों में बढ़ोतरी

गौरतलब है, कि पंजाब में आज तक खेतों में आग लगने की अत्यधिक घटनाएं सीमावर्ती क्षेत्रों से दर्ज की जा रही थीं। फिलहाल, मालवा क्षेत्र में किसानों ने धान की पराली जलाना आरंभ कर दिया है। इसका प्रभाव पंजाब एवं दिल्ली की वायु गुणवत्ता पर भी देखने को मिलेगा। पंजाब रिमोट सेंसिंग सेंटर (पीआरएससी) के आंकड़ों के मुताबिक, 9 अक्टूबर को राज्य में 58 पराली जलाने की घटनाओं को एक सैटेलाइट द्वारा कैद किया गया था। वहीं, 2021 में उसी दिन 114 पराली जलाने की घटनाओं को दर्ज किया गया था। साथ ही, 2022 में ऐसे तीन मामले सामने आए थे।

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पराली जलाने की घटनाओं ने विगत दो वर्षों का तोड़ा रिकॉर्ड

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इसमें चिंता का विषय यह है, कि इस वर्ष की कुल संख्या 1,027 विगत दो वर्षों के संबंधित आंकड़ों से काफी ज्यादा है। 2022 और 2021 के दौरान पंजाब में 9 अक्टूबर तक क्रमशः 714 और 614 घटनाएं दर्ज हुई थीं। दरअसल, आज तक के मामले विगत वर्ष की तुलना में 43.8% ज्यादा और 2021 के आंकड़े (9 अक्टूबर तक) से 67% अधिक हैं। कुल मिलाकर, 2022 में 49,900 खेतों में आग लगने की घटनाएं दर्ज की गईं। 2021 में 71,304; 2020 में 76,590; और 2019 में 52,991 घटनाऐं दर्ज हुई थीं।

पराली जलाने के मामलों में वृद्धि की संभावना - कृषि विभाग

कृषि विभाग के एक अधिकारी का कहना है, कि "संगरूर, पटियाला और लुधियाना में किसानों ने फसल की कटाई शुरू कर दी है और इन तीन जिलों में अगले सप्ताह तक खेत में आग लगने का आंकड़ा काफी बढ़ जाएगा।" जानकारों का कहना है, कि "कुछ खास नहीं किया जा सकता, क्योंकि किसान 2,500 रुपये प्रति एकड़ मुआवजे पर अड़े हुए हैं। परंतु, सरकार इस बात पर बिल्कुल सहमत नहीं हुई है।" साथ ही, अमृतसर प्रशासन ने पराली जलाने पर 279 लोगों पर 6.97 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है।
धान की पराली को जलाने की जगह उचित प्रबंधन कर किसान ने लाखों की कमाई की

धान की पराली को जलाने की जगह उचित प्रबंधन कर किसान ने लाखों की कमाई की

पंजाब राज्य के लुधियाना जिला के नूरपुर निवासी लॉ ग्रेजुएट हरिंदरजीत सिंह गिल ने जनपद में धान की पराली के प्रबंधन से 31 लाख रुपये से ज्यादा कमा डाले हैं। वहीं, अपने आसपास के कृषकों के लिए मिशाल प्रस्तुत की है। धान की कटाई आरंभ होते ही पराली की समस्या किसानों एवं सरकार दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है। आए दिन किसान पराली को खेतों में जलाते हैं। साथ ही, उन पर मुकदमा दर्ज होता है। सिर्फ इतना ही नहीं उनको इसके लिए कृषकों को हर्जाना भी देना पड़ता है। परंतु, इन सब के मध्य पंजाब में लुधियाना जनपद के नूरपुर निवासी लॉ ग्रेजुएट हरिंदरजीत सिंह गिल ने जनपद में धान की पराली के प्रबंधन से 31 लाख रुपये से ज्यादा कमा लिए। इससे उनके आसपास के किसानों के लिए मिशाल पेश करने के साथ-साथ उन किसानों को आय का मार्ग दिखाया है। जो किसान भाई आज भी पराली जलाने का सहारा ले रहे हैं। मीडिया खबरों के अनुसार, प्रगतिशील किसान ने बात करते हुए कहा कि उन्होंने इस सीजन में धान की कटाई के उपरांत अपने खेतों में बचे तकरीबन 17,000 क्विंटल धान की पराली की गांठें निर्मित करने के लिए 5 लाख रुपये का एक सेकेंड-हैंड चौकोर बेलर और 5 लाख रुपये का रैक खरीदा है।

धान की पराली से 31.45 लाख रुपये की आमदनी कर ड़ाली

किसान का कहना है, कि "मैंने धान की पराली से 31.45 लाख रुपये कमाने के लिए उन्हें 185 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से पेपर मिलों को बेच दिया।" अपने सफल पराली प्रबंधन से उत्साहित, 45 वर्षीय किसान ने अब अपने पराली प्रबंधन व्यवसाय को और बड़ा करने की योजना तैयार की है। एक बेलर और दो ट्रॉलियों का खर्चा 11 लाख रुपये था। सभी खर्चों को पूर्ण करने के उपरांत उन्होंने 20.45 लाख रुपये का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया है।

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 साथ ही, गिल ने अपने पराली प्रबंधन व्यवसाय को और विस्तारित करने के लिए 40 लाख रुपये के दो रेक के साथ एक और गोल बेलर और 17 लाख रुपये के रेक के साथ एक वर्गाकार बेलर खरीदते हुए कहा, “इसके अलावा, बेलर और दो ट्रॉलियां मेरे पास हैं।” उन्होंने कहा, "अब, हम दो वर्गाकार बेलरों की सहायता से 500 टन गोल गांठें और 400 टन वर्गाकार गांठें बनाने की योजना बना रहे हैं।"


 

सफल किसान हरिंदर गिल कितने एकड़ में खेती करते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि वर्तमान समय में गिल 52 एकड़ भूमि में खेती करते हैं, जिसमें से उन्होंने 30 एकड़ में धान की खेती की थी। वहीं, 10 एकड़ में अमरूद एवं पीयर मतलब कि नाशपाती के बाग स्थापित किए थे। इसके अतिरिक्त बाकी 12 एकड़ में चिनार के पौधे स्थापित किए थे।


 

गेहूं की खेती के लिए हैप्पी सीडर का इस्तेमाल किया जाता है

उन्होंने बताया, “मैंने पिछले सात वर्षों से धान अथवा गेहूं का पराली नहीं जलाया है और गेहूं की बुआई के लिए हैप्पी सीडर का इस्तेमाल कर रहा हूं।” किसान ने आगे बताया “फसल उत्पादन तब से बढ़ गया है जब से उन्होंने खेतों में पराली जलाना बंद कर दिया है। इस वर्ष उन्होंने अपनी 30 एकड़ भूमि से 900 क्विंटल धान की पैदावार हांसिल की है। बीते दो वर्षों से मुझे ऐसा करते हुए देखकर, मेरे गांव एवं आसपास के अधिकांश किसानों ने भी यही प्रथा अपनानी चालू कर दी है।"

पराली क्यों नहीं जलाना चाहिए? कैसे जानेंगे की आपकी मिट्टी सजीव है की निर्जीव है ?

पराली क्यों नहीं जलाना चाहिए? कैसे जानेंगे की आपकी मिट्टी सजीव है की निर्जीव है ?

आप की मिट्टी की ऊपरी सतह में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव (माइक्रोब्स) ही निर्धारित करते है की आपकी मिट्टी सजीव है या निर्जीव है,निर्जीव मिट्टी को ही बंजर भूमि कहते है। धान का पुआल जलाने से अत्यधिक गर्मी जी वजह से मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव मर जाते है जिसकी वजह से मिट्टी बंजर हो जाती है। पराली जलाने की समस्या को कम करने के लिए इस तथ्य को प्रचारित करने की आवश्यकता है। कोई भी होशियार एवं जागरूक किसान स्वयं अपनी मिट्टी को स्वयं बंजर नही बनाएगा। तात्कालिक लाभ के लिए एवं जानकारी के अभाव में वह अपने पैरों स्वयं कुल्हारी मार रहा है। यह निर्धारित करने में कि मिट्टी जीवित है या निर्जीव है, इसमें इसकी जैविक, रासायनिक और भौतिक विशेषताओं का आकलन करना शामिल है। मिट्टी एक जटिल पारिस्थितिकी तंत्र है जो सूक्ष्मजीवों से लेकर केंचुए जैसे बड़े जीवों तक जीवों के विविध समुदाय को मिलाकर बनता है। यह गतिशील वातावरण पौधों के जीवन को समर्थन देने और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम विभिन्न संकेतकों और कारकों का पता लगाएंगे जो हमें मिट्टी की जीवित प्रकृति को समझने में मदद करते हैं जैसे.

1. जैविक संकेतक

मिट्टी जीवन से भरपूर है, और इसकी जीवंतता का एक प्रमुख संकेतक सूक्ष्मजीवों की उपस्थिति है। बैक्टीरिया, कवक, प्रोटोजोआ और नेमाटोड मिट्टी के स्वास्थ्य के आवश्यक घटक हैं। ये जीव पोषक चक्र, कार्बनिक पदार्थ अपघटन और रोग दमन में योगदान करते हैं। मृदा परीक्षण, जैसे माइक्रोबियल बायोमास और गतिविधि परख, इन सूक्ष्मजीवों की प्रचुरता और विविधता में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

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केंचुए एक अन्य महत्वपूर्ण जैविक संकेतक हैं। उनकी बिल खोदने की गतिविधियाँ मिट्टी की संरचना, वातन और जल घुसपैठ को बढ़ाती हैं। केंचुओं की उपस्थिति और विविधता का अवलोकन एक स्वस्थ और जैविक रूप से सक्रिय मिट्टी का संकेत देता है।

2. रासायनिक संकेतक

मिट्टी की रासायनिक संरचना से भी उसकी जीवंतता का पता चलता है। जीवित मिट्टी की विशेषता एक संतुलित पोषक तत्व है जो पौधों के विकास का समर्थन करती है। पीएच, पोषक तत्व स्तर (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, आदि), और कार्बनिक पदार्थ सामग्री के लिए मिट्टी का परीक्षण मिट्टी की उर्वरता और पौधों के जीवन को बनाए रखने की क्षमता का आकलन करने में मदद मिलता है। विघटित पौधे और पशु सामग्री से प्राप्त कार्बनिक पदार्थ, जीवित मिट्टी का एक प्रमुख घटक है। यह पोषक तत्व प्रदान करता है, जल प्रतिधारण में सुधार करता है और माइक्रोबियल गतिविधि का समर्थन करता है। उच्च कार्बनिक पदार्थ सामग्री जीवंत और जैविक रूप से सक्रिय मिट्टी का संकेत है।

3. भौतिक संकेतक

मिट्टी की भौतिक संरचना उसकी जीवंतता को प्रभावित करती है। एक स्वस्थ मिट्टी की संरचना उचित जल निकासी, जड़ प्रवेश और वायु परिसंचरण की अनुमति देती है। कणों के बंधन से बनने वाले मृदा समुच्चय, एक अच्छी तरह से संरचित मिट्टी में योगदान करते हैं।

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मिट्टी की बनावट (रेत, गाद, मिट्टी) का अवलोकन करने से इसके भौतिक गुणों के बारे में जानकारी मिल सकती है। जीवित मिट्टी में अक्सर विविध बनावट होती है, जो जल निकासी और जल प्रतिधारण के संतुलित मिश्रण को बढ़ावा देती है। संकुचित या खराब संरचित मिट्टी जैविक गतिविधि की कमी का संकेत देती है।

4. पौधों का स्वास्थ्य

मिट्टी में उगने वाले पौधों का स्वास्थ्य और जीवन शक्ति मिट्टी की जीवंतता का प्रत्यक्ष संकेतक है। हरे-भरे और जोरदार पौधों की वृद्धि पोषक तत्वों से भरपूर और जैविक रूप से सक्रिय मिट्टी का संकेत देती है। इसके विपरीत, रुका हुआ विकास, पीली पत्तियां, या बीमारियों के प्रति बढ़ती संवेदनशीलता मिट्टी की समस्याओं का संकेत देती है। माइकोराइजा पौधों की जड़ों के साथ सहजीवी संबंध बनाते हुए, पोषक तत्व ग्रहण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। माइकोराइजा की उपस्थिति एक जीवित मिट्टी पारिस्थितिकी तंत्र का संकेतक होती है जो पौधे-सूक्ष्मजीव इंटरैक्शन का समर्थन करती है।

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5. मृदा श्वसन

मृदा श्वसन दर को मापने से माइक्रोबियल गतिविधि का प्रत्यक्ष मूल्यांकन मिलता है। सूक्ष्मजीव मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों का उपभोग करते हैं, श्वसन के माध्यम से कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं। उच्च मृदा श्वसन दर एक सक्रिय माइक्रोबियल समुदाय का संकेत देती है और पोषक तत्वों के चक्रण में योगदान करती है।

निष्कर्ष

निष्कर्ष में, यह निर्धारित करने के लिए कि मिट्टी जीवित है या नहीं, इसमें इसकी जैविक, रासायनिक और भौतिक विशेषताओं का व्यापक विश्लेषण शामिल है। सूक्ष्मजीवों और केंचुओं जैसे जैविक संकेतक, पोषक तत्वों के स्तर और कार्बनिक पदार्थ सामग्री जैसे रासायनिक संकेतक और मिट्टी की संरचना जैसे भौतिक संकेतक सामूहिक रूप से मूल्यांकन में योगदान करते हैं। इसके अतिरिक्त, पौधों के स्वास्थ्य का अवलोकन करना और मृदा श्वसन परीक्षण करने से मिट्टी की गतिशील और जीवित प्रकृति के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिलती है। कुल मिलाकर, एक समग्र दृष्टिकोण जो कई संकेतकों पर विचार करता है, मिट्टी की आजीविका की गहन समझ के लिए आवश्यक है।

रबी सीजन की गेहूं और सरसों की फसल हेतु पूसा वैज्ञानिकों का दिशा निर्देशन

रबी सीजन की गेहूं और सरसों की फसल हेतु पूसा वैज्ञानिकों का दिशा निर्देशन

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है, ि तापमान को मंदेनजर रखते हुए कृषकों को सलाह दी कि वे पछेती गेहूं की बुजाई अतिशीघ्रता से करें। बीज दर–125 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर रखें। नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 80, 40 40 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए।  पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की खेती के िए निर्देश िए हैं। इसमें बताया गया है, ि जिन कृषकों की गेहूं की फसल 21-25 दिन की हो गई हो, वे आगामी पांच दिनों तक मौसम की संभावना को देखते हुए प्रथम सिंचाई करें। सिंचाई के 3-4 दिन उपरांत उर्वरक की दूसरी मात्रा डालें। तापमान को मंदेनजर रखते हुए कृषकों को सलाह है, कि वे पछेती गेहूं की बुवाई अतिशीघ्रता से करें। बीज दर–125 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर तक रखें। इसकी उन्नत प्रजातियां- एचडी 3059, एचडी 3237, एचडी 3271, एचडी 3369, एचडी 3117, डब्ल्यूआर 544 और पीबीडब्ल्यू 373 हैं।

बीज उपचार अवश्य करें 

बिजाई से पूर्व बीजों को बाविस्टिन @ 1.0 ग्राम अथवा थायरम @ 2.0 ग्राम प्रति िलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। बतादें, कि जिन खेतों में दीमक का संक्रमण हो किसान क्लोरपाईरिफास (20 ईसी) @ 5.0 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पलेवा के साथ अथवा सूखे खेत में छिड़क दें। नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश उर्वरकों की मात्रा 80, 40 40 िलोग्राम प्रति हेक्टेयर होनी चाहिए। 

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सरसों की फसल मुख्य रूप से िरलीकरण का कार्य संपन्न करें 

विलंभ से बोई गई सरसों की फसल में विरलीकरण और खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें। औसत तापमान में कमी को मंदेनजर रखते हुए सरसों की फसल में सफेद रतुआ रोग की नियमित ढ़ंग से निगरानी करें। इस मौसम में तैयार खेतों में प्याज की रोपाई से पूर्व बेहतरीन तरीके से सड़ी हुई गोबर की खाद और पोटास उर्वरक का इस्तेमाल जरूर करें। हवा में ज्यादा नमी की वजह आलू एवं टमाटर में झुलसा रोग आने की संभावना है। इस वजह से फसल की नियमित ढ़ंग से निगरानी करें। लक्षण दिखाई देने पर डाईथेन-एम-45 को 2.0 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें।

किसान भाई पत्ती सेवन करने वाले कीटों की निगरानी करें 

बतादें कि जिन कृषकों की टमाटर, फूलगोभी, बन्दगोभी एवं ब्रोकली की पौधशाला तैयार है। वह मौसस को मंदेनजर रखते हुए पौधों की रोपाई कर सकते हैं। गोभी वर्गीय सब्जियों में पत्ती खाने वाले कीटों की लगातार निगरानी करते रहें। अगर संख्या ज्यादा हो तो बी. टी.@ 1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी अथवा स्पेनोसेड दवा @ 1.0 एमएल प्रति 3 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें। इस मौसम में किसान सब्जियों की निराई-गुड़ाई के जरिए खरपतवारों को समाप्त करें, सब्जियों की फसल में सिंचाई करें और उसके पश्चात उर्वरकों का बुरकाव करें।  

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कृषक पराली का कैसे प्रबंधन करें

कृषकों को सलाह है, कि खरीफ फसलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को जलाएं। क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण काफी ज्यादा होता है। इससे उत्पन्न धुंध के कारण सूर्य की किरणें फसलों तक कम पहुचती हैं। इससे फसलों में प्रकाश संश्लेषण तथा वाष्पोत्सर्जन की प्रकिया अत्यंत प्रभावित होती है। ऐसा होने से भोजन निर्माण में कमी आती है। इस वजह से फसलों की उत्पादकता और गुणवत्ता प्रभावित होती है। किसानों को सलाह है, कि धान की बची पराली को भूमि में मिला दें, इससे मृदा की उर्वरकता में वृद्धि होती है।