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Cow-based Farming: भारत में गौ आधारित खेती और उससे लाभ के ये हैं साक्षात प्रमाण

Cow-based Farming: भारत में गौ आधारित खेती और उससे लाभ के ये हैं साक्षात प्रमाण

दूध की नदियां बहाने वाला देश और सोने की चिड़िया उपनामों से विख्यात, भारत देश के अंग्रेजों के राज में इंडिया कंट्री बनने के बाद, देश में सनातन शिक्षा विधि, स्वास्थ्य रक्षा, कृषि तरीकों एवं सांस्कृतिक विरासत का व्यापक पतन हुआ है।

आलम यह है कि, कालगणना (कैलेंडर), ऋतु चक्र जैसे विज्ञान से दुनिया को परिचित कराने वाले देश में, आज गौ आधारित प्राकृतिक कृषि को अपनाने के लिए लोगों को प्रेरित करना पड़ रहा है।

घर-घर गौपालन करने वाले भारत में सरकार को सार्वजनिक गौशाला बनाना पड़ रही हैं। पुरातन इतिहास में एक नहीं बल्कि ऐसे कई प्रमाण हैं कि कृषि प्रधान भारत में गौ आधारित कृषि को विशिष्ट स्थान प्रदान किया गया था। जैविक तरीकों की आधुनिक खेती में अब गौवंश के महत्व को स्वीकारते हुए, गौमूत्र एवं गाय के गोबर का प्रचुरता से उपयोग किया जा रहा है।

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सरकारें भी गौपालन के लिए नागरिक एवं कृषकों को प्रेरित कर रही हैं। छत्तीसगढ़ सरकार ने तो किसान एवं पंचायत समितियों से गौमूत्र एवं गाय का गोबर खरीदने तक की योजना को प्रदेश मे लागू कर दिया है।

क्यों पूजनीय है गौमाता

गौमाता के नाम से सम्मानित गाय को भारत में पूजनीय माना जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार गाय में 33 करोड़ देवताओं का वास मानकर गौमाता की पूजा अर्चना की जाती है। प्रमुख त्यौहारों खासकर दीपावली के दिन एवं अन्नकूुट पर गाय का विशिष्ट श्रृंगार कर पूजन करने का भारत में विधान है।

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हिंदू पूजन विधियों में गौमय (गोबर) तथा गोमूत्र को भारतीय पवित्र और बहुगुणी मानते हैं। गाय के गोबर से बने कंडों का हवन में उपयोग किया जाता है। वातावरण शुद्धि में इसके कारगर होने के अनेक प्रमाण हैं। अब तक अपठित सिंधु-सरस्वती सभ्यता में गौवंश संबंधी लाभों के अनेक प्रमाण मिले हैं। सिंधु-सरस्वती घाटी एवं वैदिक सभ्यता में गौ आधारित किसानी से स्पष्ट है कि भारत में गौ आधारित कृषि कितनी महत्वपूर्ण रही है। सिंधु-सरस्वती सभ्यता से जुड़े अब तक प्राप्त प्रमाणों के अनुसार इस सभ्यता काल में मानव बस्तियों के साथ खेत, अनाज की प्रजातियों आदि के बारे में कृषकों ने काफी तरक्की कर ली थी। सिंधु-सरस्वती सभ्यता से जुड़ी अब तक प्राप्त हुई मुद्राओं में बैल के चित्र अंकित हैं। इससे इस कालखंड में गाय-बैल के महत्व को समझा जा सकता है।

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खेत, जानवर, गाड़ी/ गाड़ी चालक, यव (बार्ली), चलनी, बीज आदि संबंधी चित्र भी इस दौर की कृषि पद्धति की कहानी बयान करते हैं। सिंधु-सरस्वती सभ्यता के अब तक प्राप्त प्रमाणों में अनाज का संग्रह करने के लिये कोठार (भंडार) की भी पुष्टि हुई है। संस्कृत लिपि में प्रयोग में लाए जाने वाले लाङ्गल, सीर, फाल, सीता, परशु, सूर्प, कृषक, कृषीवल, वृषभ, गौ शब्द अपना इतिहास स्वयं बयान करने के लिए पर्याप्त हैं।

 वैदिक संस्कृत और आधुनिक फारसी में भी बहुत से साम्य हैं। फारसी में उच्चारित गो शब्द का मूल अर्थ गाय से ही है। मतलब गाय भारत में पनपी कई संस्कृतियों का अविभाज्य अंग रही है। गाय के गोबर का खेत में खाद, मकान की लिपाई-पुताई में उपयोग भारत में विधि नहीं बल्कि परंपरा का हिस्सा है। रसोई में चूल्हे को सुलगाने से लेकर पूजन हवन तक गाय के गोबर के कंडों की अपनी उपयोगिता है। गाय की उपयोगिता इस बात से भी प्रमाणित होती है कि पुरातन कृषि मेें गौपालक को दूध, दही, छाछ, मक्खन, घी का पौष्टिक आहार प्राप्त होता था वहीं खेती कार्य के लिए तगड़े बैल भी गाय से प्राप्त होते थे।

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खेत में हल जोतने, अनाज ढोने, गाड़ी खींचने के लिये बैलों का उपयोग पुराने समय से भारत में होता रहा है। खेत की सिंचाई के लिए रहट चलाने में भी बैलों की तैनाती रहती थी।

कभी चलता था 24 बैलों वाला हल गौवंश से मिली इंसान, शहर को पहचान कामधेनु करे इतनी कामनाओं की पूर्ति

24 बैलों वाला हल

कई हॉर्स पॉवर वाले आज के प्रचलित आधुनिक ट्रैक्टर का काम पुराने समय में बैल करते थे। पुरातन ग्रंथों में दो, छह, आठ, बारह, यहां तक कि, 24 बैलों वाले भारी भरकम हलों का भी उल्लेख है।

गाय के नाम अनेक

आपको अचरज होगा कि अनेक शब्दों, नामों का आधार गाय से संबंधित है। गोपाल, गोवर्धन, गौशाला, गोत्र, गोष्ठ, गौव्रज, गोवर्धन, गौधूलि वेला, गौमुख, गौग्रास, गौरस, गोचर, गोरखनाथ (शब्द अभी और शेष हैं) जैसे प्रतिष्ठित शब्दों की अपनी विशिष्ट पहचान है। उपरोक्त वर्णित शब्दों से उसकी प्रकृति की पहचान सुनिश्चित की जा सकती है। जैसे गौधूली बेला से सूर्यास्त के समय का भान होता है, इसी तरह गाय के बछड़े को वसु कहा जाता है। इससे ही भगवान श्रीकृष्ण के पिता का नाम वसुदेव रखा गया। हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार दीपावली के कुछ दिन पहले वसुबारस मनाकर गौवंश का पूजन कर पशुधन के प्रति कृतज्ञता जताई जाती है।

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ऋग्वेद काल में भी रथों में बैल जोतने का जिक्र है। मतलब गाय कृषक, कृषि के साथ ही ग्राम वासियों का प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तरीके से सहयोगी रही है। गाय और बैल पुरातन काल से भारतीय जनजीवन का आधार रहे हैं। गाय की इन बहुआयामी उपयोगिताओं के कारण ही गौमाता को ‘कामधेनु’ भी कहा जाता है। मानव की इतनी सारी कामनाएं पूरी करने वाली बहुउपयोगी ‘कामधेनु’ (इच्छा पूर्ति करने वाली गाय) वर्तमान मशीनी युग (कलयुग) में और अधिक महत्वपूर्ण होती जा रही है।

गबरबंद

प्राचीन भारत में पानी रोकने के लिए मिट्टी पत्थर से बनाए जाने वाले गबरबन्द को बनाने में गोबर, मिट्टी, घासफूस का उपयोग किया जाता था। महाभारत में गायों की गिनती से संबंधित घोषयात्रा, गोग्रहण का भी उल्लेख है।

गौ अधारित खेती एवं फसल चक्र

भगवान श्रीकृष्ण के पिता का नाम जहां गौवंश पर आधारित वसुदेव है, वहीं उनके भाई बलराम को ‘हलधर’ भी कहा जाता है। हल बलराम का अस्त्र नहीं, बल्कि कृषि कार्य में उपयोगी था। इससे उस कालखंड की खेती-किसानी के तरीकों का भी बोध होता है।

चक्र का महत्व समझिये

प्राचीन भारत में बैल गाड़ियों में प्रयुक्त होने पहिये, कुएं से पानी खींचने के लिये रहट में लगने वाला चक्र, कोल्हू के बैल की चक्राकार परिक्रमा के अपने-अपने महत्व हैं। मतलब कृषि की सुरक्षा में भी चक्र महत्वपूर्ण है। खेती के महत्वपूर्ण चक्र को काल या ऋतु चक्र कहा जाता है। 

 भारत के पूर्वज किसानों ने साल में मौसम के बदलाव के आधार पर फसल चक्र का तक निर्धारण कर लिया था। ऋतुचक्र के मुताबिक ही किसान रवि और खरीफ की फसल का निर्धारण करते आए हैं। बीज बोने, क्यारी बनाने आदि में गौवंश का उल्लेखनीय उपयोग होता आया है। गौ एवं पशु पालन के लिए भी ऋतु चक्र में पूर्वजों ने बहुमूल्य व्यवस्थाएं की थीं। फसल चक्र का खेती, कृषि पैदावार के साथ ही गौ एवं अन्य पशु पालन से पुराना बेजोड़ नाता रहा है।

गौ अधारित खेती

भगवान श्रीकृष्ण के जीवन में गौपालन, गोकुल और बृंदाबन से जुड़ी बातें गौपालन के महत्व को रेखांकित करती हैं। पुरातन व्यवस्था में पालतू गायों का दूध, दही, मक्खन जहां अर्थव्यवस्था की धुरी था वहीं खेती में भी गाय की भूमिका अतुलनीय रही है। मानव उदर पोषण हेतु अनाज की पूर्ति के लिए गौ एवं पशु-पालन के साथ खेती किसानी के मिश्रित प्रबंधन का भारत में इतिहास बहुत पुराना है। गाय-बैलों के पालन का प्रबंध, खाद बनाने में गौमूत्र एवं गोबर का उपयोग, बीजारोपण, सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण आदि के लिए भारतवासी पुरातनकाल से गौवंश का बखूबी उपयोग करते आए हैं।

दिल्ली सरकार ने की लम्पी वायरस से निपटने की तैयारी, वैक्सीन खरीदने का आर्डर देगी सरकार

दिल्ली सरकार ने की लम्पी वायरस से निपटने की तैयारी, वैक्सीन खरीदने का आर्डर देगी सरकार

देश में लम्पी वायरस ( Lumpy Virus ) कहर मचा रहा है। इस बीमारी के कारण देश में अब तक लाखों मवेशी मारे जा चुके हैं। लम्पी वायरस का सबसे ज्यादा कहर राजस्थान में देखने को मिला है, जहां पर इस वायरस की वजह से रातों रात लाखों गायों ने दम तोड़ दिया। इसके साथ ही राजस्थान की सीमा से लगने वाले राज्यों में भी इस वायरस का प्रकोप देखा जा रहा है। इस वायरस ने दिल्ली को भी अपनी चपेट में ले लिया है, जिससे दिल्ली के किसान बेहद चिंतित हैं। इसके समाधान के लिए अब दिल्ली सरकार ने पहल शुरू कर दी है। इसके तहत दिल्ली सरकार 60 हजार गोट पॉक्स वैक्सीन ( Goat Pox Vaccine ) खरीदने जा रही है। इसकी जानकारी दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने दी थी। उन्होंने बताया कि लम्पी वायरस दिल्ली में तेजी से फ़ैल रहा है। अभी तक दिली में इस वायरस के 173 मामले दर्ज किये जा चुके हैं जो बेहद चिंता का विषय है। दिल्ली में लम्पी वायरस के सभी मामले दक्षिण-पश्चिम दिल्ली से सामने आये हैं जहां इस वायरस का प्रकोप दिनों दिन बढ़ता जा रहा है। सरकारी पशु चिकित्स्कों के साथ दिल्ली सरकार की टीम ने गोयला डेयरी, घुम्मनहेड़ा, नजफगढ और रेवला खानपुर इलाके से लम्पी वायरस के ये मामले दर्ज किये हैं। इन इलाकों में बहुत सारी गौशालाएं मौजूद हैं जहां पर हजारों की तादाद में गायें रहती हैं।


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दिल्ली सरकार में कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने बताया कि दिल्ली में लगभग 80 हजार गायें हैं। इस हिसाब से सरकार ने कैलकुलेशन करके 60 हजार गोट पॉक्स वैक्सीन खरीदने की योजना बनाई है। ताकि जल्द से जल्द राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की गायों को लम्पी वायरस से सुरक्षित किया जा सके। गोपाल राय ने बताया कि वैक्सीन खरीददारी अपने अंतिम दौर में है और दवा कम्पनी की तरफ से जल्द से जल्द दिल्ली सरकार को वैक्सीन उपलब्ध करवा दी जाएंगी। गोपाल राय ने बताया कि सरकार इस वायरस से निपटने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसके तहत दिल्ली सरकार ने वायरस की रोकथाम में के लिए सैम्पल लेने प्रारम्भ कर दिए हैं और सैम्पलों की जांच जल्दी से जल्दी की जा रही है ताकि समय रहते गायों में वायरस का पता लगाया जा सके। इसके लिए सरकार ने वायरस के नमूने इकट्ठे करने के लिए दो मोबाइल पशु चिकित्सालय भी तैनात किए हैं जो जगह-जगह पर जाकर पशुओं से सैंपल एकत्रित करके जांच के लिए भेज रहे हैं। इसके साथ ही सरकार ने वायरस से निपटने के लिए ग्यारह रैपिड रिस्पांस टीमों का गठन किया है। साथ ही कई अन्य लोगों को नियुक्त किया है जो समूह में जाकर गौ पालकों को लम्पी वायरस से होने वाले नुकसान के बारे में जागरुक करेंगे। गोपाल राय ने बताया कि सरकार ने इस बीमारी से सम्बंधित गौ पालकों और किसानों की समस्याओं को सुनने के लिए एक हेल्पलाइन नंबर भी जारी किया है। किसान 8287848586 में फ़ोन करके वायरस से सम्बंधित अपनी शंकाओं का समाधान कर सकते हैं। इसके लिए सरकार ने एक अलग से कार्यालय बनाया है जहां पर इसका कॉल सेंटर स्थापित किया गया है।


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पशुओं में फैलने वाला यह लम्पी रोग देश के कई राज्यों में तेजी से पैर पसार रहा है। अभी तक देश के 12 से अधिक राज्यों में 15 लाख से ज्यादा पशु इस रोग से संक्रमित हो चुके हैं। साथ ही हजारों पशुओं की इस वायरस की वजह से मौत हो चुकी है। इसका कहर मुख्यतः राजस्थान, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में देखने को मिल रहा है। हालांकि कई प्रदेशों की सरकारों ने वैक्सीनेशन की रफ़्तार तेज करके इस रोग पर काबू पाने का भरसक प्रयास किया है। फिलहाल सबसे ज्यादा वैक्सीनेशन राजस्थान में किया जा रहा है क्योंकि इस वायरस की वजह से राजस्थान सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है।

क्या है लम्पी वायरस और यह कैसे फैलता है ?

विशेषज्ञों ने बताया है कि लम्पी वायरस एक त्वचा रोग है। यह पशुओं के बीच तेजी से फैलता है। इस वायरस के माध्यम से स्वस्थ्य पशु, संक्रमित पशु के संपर्क में आने के बाद तुरंत ही संक्रमित हो जाता है। इसके अलावा यह वायरस मच्छरों, मक्खियों, जूं और ततैया के माध्यम से भी फैलता है, क्योंकि इनकी वजह से स्वस्थ्य पशुओं का बीमार पशुओं के साथ संपर्क स्थापित हो जाता है। इसके अलावा यह वायरस पशुओं के एक ही पात्र में पानी पीने से भी तेजी से फैलता है। इस वायरस से संक्रमित होने के बाद मवेशियों में तेज बुखार, आंखों से पानी आना, नाक से पानी निकलना, त्वचा की गांठें और दुग्ध उत्पादन में कमी हो जाना जैसे लक्षण आसानी से देखे जा सकते हैं जो बेहद चिंता का विषय है, क्योंकि इस वायरस से संक्रमित होने के बाद पशु बहुत जल्दी दम तोड़ देते हैं।


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लम्पी वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण देश में हजारों मवेशी प्रतिदिन मारे जा रहे हैं, जिससे देश में जानवरों की कमी हो सकती है। इसका सीधा असर देश में दुग्ध उत्पादन पर पड़ेगा। अगर ऐसा ही चलता रहा तो कुछ दिनों बाद भारत में दूध की कमी महसूस की जाने लगेगी, जो सरकार के लिए एक नया सिरदर्द साबित हो सकती है। क्योंकि दुग्ध उत्पादन में कमी के बाद दूध के दामों में तेजी से बढ़ोत्तरी संभव है और यह बाजार में ग्राहकों को प्रभावित करेगी।
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देश भर में देसी गाय-भैंस की लगातार कमी होती जा रही है, इसकी एक बहुत बड़ी वजह देसी गाय-भैसों के कारण लगातार घटता हुआ मुनाफा है। विदेशी नस्लों की गाय-भैंसों की अपेक्षा देसी गाय-भैंसों को पालने में किसानों को उतना फायदा नहीं होता, जितना किसान वास्तव में मुनाफा कमाना चाहते हैं। इसलिए दिन प्रतिदिन देसी गाय-भैंसों को लेकर किसानों की उदासीनता बढ़ती जा रही है। इसका परिणाम यह है कि गाय-भैंसों की कई प्रकार की देसी नस्लें अब विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गईं हैं।

गाय-भैंसों की देसी नस्लों का संरक्षण

इसको देखते हुए सरकार ने कई योजनाएं चलाईं हैं, ताकि गाय-भैंसों की देसी नस्लों का संरक्षण किया जा सके। इसी उद्देश्य के साथ आगे बढ़ते हुए केंद्र सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के
पशुपालन और डेयरी विभाग (Department of Animal Husbandry and Dairying) ने गोपाल रत्न पुरस्कार (National Gopal Ratna Award-2022) देना प्रारम्भ किया है, राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना (Rashtriya Gokul Mission ( RGM)) के तहत, जो हर साल की तरह इस साल भी पशुपालकों को दिया जाएगा। सरकार यह पुरस्कार पशुपालन में गाय भैंसों को संरक्षण देने के साथ ही दुग्ध उत्पादन में बढ़ोत्तरी के लिए दिया जाता है। इस योजना का मकसद स्वदेशी दुधारू गाय-भैसों में कृतिम गर्भाधान करके दुग्ध उत्पादन को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाना है। किसानों को इसके लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार यह योजना लेकर आई है। 2022 के दौरान पशुपालन और डेयरी में राष्ट्रीय गोपाल रत्न पुरस्कार के निर्धारण के लिए दिशानिर्देश के लिए, यहां क्लिक करें। राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना का एक अन्य उद्देश्य कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियनों को 100 प्रतिशत आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस या एआई (AI - Artifical Intelligence) कवरेज लेने के लिए प्रेरित करना है। इसके साथ ही सरकार इस योजना के माध्यम से सहकारी और दुग्ध उत्पादक कंपनियों को विकसित करने पर जोर दे रही है। साथ ही सरकार चाहती है कि दुग्ध उत्पादक कंपनियों के बीच प्रतिस्पर्धा बनी रहे, ताकि उत्पादन के साथ दुग्ध क्वालटी को ज्यादा से ज्यादा ऊपर ले जाया जा सके।


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राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना का लाभ प्राप्त करने के लिए पशुपालक 30 सितंबर तक ऑनलाइन माध्यम से आवेदन कर सकते हैं। विजेताओं को 26 नवंबर 2022 को राष्ट्रीय दुग्ध दिवस (NMD - National Milk Day) के अवसर पर केंद्र सरकार पुरस्कृत करेगी। राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के तहत गोपाल रत्न पुरस्कार के तहत तीन पुरस्कार दिए जाएंगे। इसमें प्रथम पुरस्कार के अंतर्गत 5 लाख रूपये, द्वितीय पुरस्कार के अंतर्गत 3 लाख रूपये और तीसरे पुरस्कार के लिए 2 लाख रुपये की राशि प्रदान की जाएगी। चूंकि अंतिम तारीख नजदीक ही है, इसलिए राजस्थान के पशुपालन मंत्री लालचन्द कटारिया ने अपने राज्य के किसानों को जल्द से जल्द इस स्कीम के अंतर्गत आवेदन करने के लिए कहा है। पशुपालन, मत्स्य और डेयरी मंत्रालय ने पिछले कुछ सालों में लगातार बढ़ रहे दुग्ध उत्पादन को लेकर प्रसन्नता जाहिर की है। इसलिए मंत्रालय अब हर साल पशुपालकों के लिए गोपाल रत्न पुरस्कार प्रदान करेगा।

कौन लोग हैं इस पुरस्कार के लिए पात्र ?

इस योजना के अंतर्गत आवेदन करने के लिए सिर्फ ऐसे पशुपालक ही पात्र हैं, जो गाय की प्रमाणित स्वदेशी 50 नस्लों अथवा भैंस की 17 देसी प्रमाणित नस्लों में से किसी एक का पालन करते हों। इसके साथ ही ऐसे तकनीशियन, जो पशुधन विकास बोर्ड, दुग्ध फेडरेशन, गैर सरकारी संगठन में काम करते हो तथा ऐसा कोई भी कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन जिसने इसके लिए 90 दिनों का प्रशिक्षण प्राप्त किया हो, ऐसे सभी लोग इस पुरस्कार को प्राप्त करने के लिए आवेदन के पात्र हैं।


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इनके अलावा ग्राम स्तर की ऐसी सहकारी समिति जो दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में सहकारी कंपनी अधिनियम के तहत स्थापित हुई हो, ऐसा दुग्ध उत्पादक यूनियन जो प्रतिदिन 100 लीटर दूध का उत्पादन करता है, साथ ही उसके साथ कम से कम 50 किसान जुड़े हैं और एमपीसी या एफपीओ भी इस पुरस्कार के लिए आवेदन के पात्र होंगे।

कैसे कर सकते हैं आवेदन ?

इच्छुक किसान, कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन और सहकारी व दुग्ध उत्पादक कम्पनियां 30 सितंबर के पहले तक गोपाल रत्न पुरस्कार को प्राप्त करने के लिए भारत सरकार की ऑफिसियल वेबसाइट https://awards.gov.in में जाकर ऑनलाइन माध्यम से अपना आवेदन कर सकते हैं। आवेदन करते वक़्त किसान आधार कार्ड, बैंक खाता, फोटो, मोबाइल नंबर, पशु की जानकारी वाले कागजात ज़रूर साथ रखें। आवेदन करते वक़्त इनकी जरुरत पड़ सकती है।
इस राज्य में गोपालक योजना के अंतर्गत बेरोजगार युवाओं को दिया जा रहा 9 लाख का लोन

इस राज्य में गोपालक योजना के अंतर्गत बेरोजगार युवाओं को दिया जा रहा 9 लाख का लोन

यूपी गोपालक योजना के मुताबिक, राज्य के बेरोजगार युवाओं को डेयरी फार्म खोलने के लिए 9 लाख रुपए तक के कर्जे की सुविधा प्राप्त होगी। सरकार की इस योजना का फायदा उन लोगों को मिल सकेगा, जिनके पास कम से कम 5 दुधारू पशु हैं। बेरोजगार युवाओं के लिए उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से एक अनोखी योजना की शुरुआत की है, जिससे राज्य के युवाओं को रोजगार के अवसर प्राप्त हो सकें। साथ ही, वह अपनी आर्थिक स्थिति में भी सकारात्मक सुधार कर पाऐं। बतादें, कि योगी सरकार ने राज्य की जनता के लिए गोपालक योजना (Gopalak Yojana) की शुरुआत करी है। इस योजना के तहत राज्य के युवा अपना खुद का डेयरी फार्म खोल सकते हैं। इस कार्य के लिए राज्य सरकार की तरफ से युवाओं को 9 लाख रुपए तक कर्ज की सुविधा मुहैय्या कराई जाऐगी। परंतु, सरकार की यह योजना समस्त युवाओं के लिए नहीं हैं।

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गो-पालकों के लिए अच्छी खबर, देसी गाय खरीदने पर इस राज्य में मिलेंगे 25000 रुपए दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार की गोपालक योजना के अंतर्गत राज्य के सिर्फ वहीं युवा आवेदन कर पाऐंगे, जिनके पास कम से कम 5 अथवा फिर इससे ज्यादा पशु हैं। चलिए आगे हम इस लेख में आपको सरकार की इस योजना के बारे में जानकारी देंगे। ताकि युवा सरलता से आवेदन कर पाएं।

गोपालक योजना में सिर्फ दुधारू पशु ही शम्मिलित होंगे

गोपालक योजना में गाय-भैंस मतलब कि दुधारू पशुओं को शम्मिलित किया गया है। यदि आप पशु पालक हैं एवं आपके पास पशुशाला भी है, तो ऐसे में भी आप इस योजना से कर्ज का फायदा उठा सकते हैं। परंतु, इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें कि आवेदक की आमदनी वार्षिक 1 लाख रुपए से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।

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गोपालक योजना का लाभ उठाने के लिए पात्रता

  • इस योजना का फायदा सिर्फ राज्य के युवाओं को ही मिलेगा यानी की पशुपालक को UP का स्थाई निवासी होना अनिवार्य है।
  • इस योजना का लाभ उठाने के लिए पशुपालक के पास कम से कम 5 पशु होने ही चाहिए।
  • आवेदन की आमदनी वार्षिक 1 लाख से कम होनी चाहिए।
  • आवेदक के पास ऐसा पशु भी होना चाहिए, जो पशु मेले से खरीदा गया हो।