तिल की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

By: MeriKheti
Published on: 04-Jun-2023

भारत में तिलहन की खेती बेहद ही प्रसिद्ध है। साथ ही, यह किसानों को अच्छा-खासा मुनाफा भी प्रदान करती है। अब ऐसी स्थिति में तिल की खेती काफी ज्यादा उपयोगी है। क्योंकि, तिल सबसे प्राचीन फसलों में से एक है। विशेष बात यह है, कि तिल 40-50% की तेल सामग्री सहित एक महत्वपूर्ण तेल की पैदावार देने वाली फसल है।तिल की खेती की बड़ी महत्ता है। क्योंकि, तिल सबसे प्राचीन देशी तिलहन फसल है। तिल की खेती भारत के तकरीबन प्रत्येक इलाके में की जाती है। साथ ही, भारत में इसकी खेती का सबसे लंबा इतिहास है।

तिल की खेती के लिए कैसी मिट्टी की जरूरत होती है

तिल की खेती विभिन्न प्रकार की मिट्टी में बड़ी सहजता से की जा सकती है।

  • क्षारीय अथवा अम्लीय मृदा इस फसल के लिए अच्छी नहीं होती है।
  • तिल की खेती के लिए बेहतर जल निकासी वाली हल्की से मध्यम बनावट वाली मृदा अच्छी होती है।
  • इसके लिए पीएच रेंज 5 - 8.0 के मध्य रहनी चाहिए।
  • तिल की खेती के लिए बीज उपचार
  • बीज जनित रोगों से संरक्षण के लिए बाविस्टिन 0 ग्राम/किलोग्राम बीज से उपचारित बीज का इस्तेमाल करें।
  • बैक्टीरियल लीफ स्पॉट रोग संक्रमण के दौरान बीज को बिजाई से पूर्व एग्रीमाइसीन-100 के 025% घोल में 30 मिनट के लिए भिगो दें।
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तिल की खेती के लिए जमीन की तैयारी

  • तिल के खेत की तैयारी के लिए 2-4 बार जुताई करें एवं मृदा को बारीक जुताई में तैयार करने के लिए गांठों को तोड़ दें।
  • उसके उपरांत बीज समान तौर से फैला दें।
  • तिल की खेती में आसान बिजाई के लिए, समान तौर से वितरित बीज को रेत अथवा सूखी मृदा के साथ मिश्रित किया जाता है।
  • बीज को मृदा में ढकने के लिए हैरो का इस्तेमाल करें, उसके पश्चात लकड़ी के तख्ते का इस्तेमाल करें।

तिल की खेती के लिए उपयुक्त मौसम क्या होता है

  • यह फसल प्रदेशों के प्रत्येक बड़े या छोटे इलाकों में उत्पादित की जा सकती है।
  • तिल की खेती को जीवन चक्र के दौरान उच्च तापमान की जरूरत पड़ती है।
  • जीवन चक्र के दौरान ज्यादा से ज्यादा तापमान 25-35 डिग्री के मध्य होता है।
  • अगर तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पहुँच जाता है, तो गर्म हवाएं तेल की मात्रा को कम कर देती हैं।
  • अगर तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा या 15 डिग्री सेल्सियस से कम होता है, तो पैदावार में काफी कमी आ सकती है।
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तिल की फसल की बिजाई में कितना अंतर है

  • तिल की पंक्तियों एवं पौधों दोनों के मध्य 30 सेमी का फासला काफी जरूरी होता है।
  • सूखे बालू की मात्रा के चार गुना बीजों को मिलाना चाहिए।
  • बीज की 3 सेमी गहराई में बिजाई करनी चाहिए एवं मृदा से ढक देनी चाहिए।

तिल की फसल में सिंचाई किस तरह से की जाए

तिल का उत्पादन फसल वर्षा आधारित हालत में उत्पादित की जाती है। परंतु, जब सुविधाएं मुहैय्या हों तब फसल को 15-20 दिनों की समयावधि के अंदर खेत की क्षमता के मुताबिक सिंचित किया जा सकता है। फली पकने से बिल्कुल पहले सिंचाई बंद कर देनी चाहिए। महत्वपूर्ण चरणों के चलते, सतही सिंचाई 3 सेमी गहरी होनी जरूरी है। जिसका अर्थ है, कि 4-5 पत्तियां, शाखाएं, फूल और फली बनने से पैदावार में 35-52% की बढ़ोत्तरी होगी।

तिल के पौधे का बचाव कैसे करें

  • पत्ती और पॉड कैटरपिलर की रोकथाम करने के लिए कार्बेरिल 10% प्रतिशत से प्रभावित पत्तियों, टहनियों और धूल को हटा दें।
  • पत्ती और पॉड कैटरपिलर की घटनाओं का प्रबंधन करने हेतु फली बेधक संक्रमण व फीलोडी घटना 7 वें एवं 20 वें डीएएस पर 5 मिलीलीटर प्रति लीटर स्प्रे का इस्तेमाल करें।
  • पॉड केटरपिलर की रोकथाम करने के लिए 2% कार्बरी सहित निवारक स्प्रे का इस्तेमाल करें।

तिल की फसल की कटाई कब और कैसे की जाती है

  • तिल की खेती के लिए कटाई प्रातः काल के दौरान करनी चाहिए।
  • फसल की कटाई तब करनी चाहिए जब पत्तियां पीली होकर लटकने लगें। साथ ही, नीचे के कैप्सूल पौधों को खींचकर नींबू की भांति पीले रंग का हो जाए।
  • जब पत्तियां झड़ जाएं तो जड़ वाले हिस्से को काटकर बंडलों में कर दें। उसके पश्चात 3-4 दिन धूप में फैलाएं व डंडों से फेंटें जिससे कैप्सूल खुल जाएं।
  • इसको तीन दिन तक पुनः दोहराते रहें।

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