भारत में गन्ने की खेती सदियों से किसानों की आय का प्रमुख स्रोत रही है। यह एक महत्वपूर्ण नकदी फसल (Cash Crop) है, जिसका उपयोग न केवल चीनी उद्योग में होता है, बल्कि गुड़, शीरा (molasses), इथेनॉल और पशु चारे जैसी कई उप-उत्पादों के निर्माण में भी किया जाता है। देश में उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्य गन्ने के प्रमुख उत्पादक हैं। यदि किसान समय पर बुआई, उचित किस्म का चयन, संतुलित उर्वरक प्रबंधन और रोग नियंत्रण तकनीक अपनाएं, तो शरदकालीन गन्ने से उन्हें प्रति हेक्टेयर हजार क्विंटल से भी अधिक उत्पादन प्राप्त हो सकता है।
शरदकालीन गन्ना सामान्यतः अक्टूबर से नवंबर के बीच बोया जाता है। इस समय तापमान, नमी और मिट्टी की स्थिति गन्ने की जड़ों के विकास के लिए अत्यंत अनुकूल रहती है। इस मौसम में बोया गया गन्ना मजबूत पौध तैयार करता है, जिसमें शर्करा प्रतिशत (Sugar Recovery) अधिक होता है। इसके अलावा, यह किस्में गर्मी और सूखे दोनों परिस्थितियों में बेहतर प्रदर्शन करती हैं।
बेहतर फसल के लिए बीज चयन सबसे महत्वपूर्ण चरण है।
गन्ने की किस्में सामान्यतः जल्दी पकने वाली (Early Maturing) और मध्यम से देर पकने वाली (Mid to Late Maturing) दो श्रेणियों में आती हैं। किसानों को अपनी क्षेत्रीय जलवायु, मिट्टी और चीनी मिलों के Crushing Schedule के अनुसार किस्म का चयन करना चाहिए।
ये किस्में 10–11 महीनों में तैयार हो जाती हैं और शुरुआती पेराई सीजन के लिए उपयोगी हैं:
इन किस्मों में शर्करा की मात्रा अधिक होती है और खेत में देर तक रहने पर भी यह नहीं गिरतीं।
शरदकालीन गन्ने की बुआई अक्टूबर के पहले पखवाड़े में करना सर्वोत्तम माना जाता है। पंक्ति दूरी: साधारण बुआई में 75 सेमी, मिश्रित फसल (जैसे आलू, चना, सरसों) के लिए 90 सेमी।
बीज की मात्रा:
रासायनिक उपचार:
205 ग्राम एरीटॉन या 500 ग्राम एगलॉल को 100 लीटर पानी में मिलाकर 25 क्विंटल बीज डुबोएं।
जैविक उपचार:
1 लीटर एजोटोबैक्टर + 1 लीटर पी.एस.बी. को 100 लीटर पानी में मिलाकर 30 मिनट तक बीज डुबोकर सुखाएं और फिर बुआई करें। इस प्रक्रिया से रोगजनक फफूंद और कीटों का खतरा काफी हद तक कम होता है और अंकुरण दर बढ़ती है।
यदि मिट्टी परीक्षण नहीं हुआ है, तो औसतन निम्न मात्रा प्रति हेक्टेयर डालना लाभकारी रहेगा:
इसके साथ ही खेत तैयार करते समय 10 टन सड़ी हुई गोबर की खाद या प्रेसमड डालना न भूलें। यह मिट्टी की संरचना सुधारती है, सूक्ष्मजीवों की सक्रियता बढ़ाती है और गन्ने की जड़ों को पोषण प्रदान करती है।
गन्ने की फसल को दीमक, शूट बोरर, टॉप बोरर, और रेड रॉट जैसी बीमारियों से बचाना आवश्यक है।
दीमक व अंकुर बेधक के लिए: क्लोरोपाइरीफॉस (20 ईसी) – 6.25 लीटर/हेक्टेयर + क्लोरेन्ट्रेनिलिप्रोल (18.5 एससी) – 500–600 मिली/हेक्टेयर को 1500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें। खेत की नियमित निगरानी करें और प्रारंभिक अवस्था में ही निराई-गुड़ाई कर खरपतवार नियंत्रण सुनिश्चित करें।
यदि किसान उन्नत किस्मों का चयन, समय पर बीज उपचार, उचित सिंचाई और पोषण प्रबंधन अपनाते हैं, तो उन्हें 1000–1100 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज प्राप्त हो सकती है। इन किस्मों की खासियत यह है कि इनसे रोगों का खतरा कम रहता है और रस में शर्करा प्रतिशत अधिक होता है, जिससे चीनी मिलों में Recovery Rate भी बेहतर रहती है। शरदकालीन गन्ने की खेती किसानों के लिए एक स्थायी और लाभकारी विकल्प है। सही तकनीक और रोगप्रतिरोधी किस्मों के उपयोग से किसान न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि मिट्टी की सेहत और फसल की गुणवत्ता भी बनाए रख सकते हैं।
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