चने की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए किसान अपनाएं यह उन्नत बुवाई विधि

Published on: 19-Oct-2025
Updated on: 22-Oct-2025
चने की अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए किसान अपनाएं यह उन्नत बुवाई विधि
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रबी सीजन में चने की खेती से करें ज्यादा कमाई – जानें वैज्ञानिक बुवाई पद्धति


तबीजी फार्म अजमेर  के उप निदेशक कृषि (शस्य) श्री मनोज कुमार शर्मा ने बताया कि चना रबी सीजन की एक प्रमुख दलहनी फसल है, जो मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के साथ-साथ किसानों के लिए आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी है।

उन्होंने कहा कि चने की खेती के लिए ऐसी भूमि उपयुक्त रहती है जो लवण और क्षार रहित, जल निकास वाली और उपजाऊ हो। वर्तमान समय चने की बुवाई के लिए अत्यंत उपयुक्त माना जाता है। यदि किसान बुवाई से पहले मृदा उपचार (Soil Treatment) एवं बीजोपचार (Seed Treatment) करें तो फसल को कीटों व रोगों से प्रभावी रूप से बचाया जा सकता है, जिससे उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि होती है।


उन्होंने किसानों को यह भी सलाह दी कि कृषि रसायनों का उपयोग करते समय सुरक्षा उपकरणों का अवश्य प्रयोग करें — जैसे पूरे कपड़े, दस्ताने, मास्क और जूते पहनें, ताकि स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का दुष्प्रभाव न पड़े।


बीजोपचार और भूमि उपचार से बढ़ेगी पैदावार


कृषि अनुसंधान अधिकारी (पौध व्याधि) डॉ. जितेन्द्र शर्मा ने बताया कि बीजोपचार फसल को बीज और मिट्टी जनित रोगों एवं कीटों से बचाने के साथ-साथ बीज अंकुरण की दर बढ़ाने में मदद करता है।

चने की फसल में अक्सर जड़ गलन (Root Rot), सूखा जड़ गलन (Dry Root Rot) और उकठा (Wilt) जैसे रोगों का प्रकोप होता है, जो उत्पादन को 30–40% तक घटा सकते हैं।


इन रोगों से बचाव के लिए किसानों को फसल चक्र (Crop Rotation) अपनाना चाहिए और खेत की मिट्टी को ट्राईकोडर्मा से उपचारित करना चाहिए।


भूमि उपचार की विधि:


बुवाई से पहले 2.5 किलो ट्राईकोडर्मा को 100 किलो आर्द्र गोबर की खाद में अच्छी तरह मिलाएं और इस मिश्रण को 10–15 दिनों तक छाया में रखें। इसके बाद बुवाई के समय प्रति हेक्टेयर की दर से यह खाद मिट्टी में मिला दें। इससे मिट्टी में रोगाणु नष्ट होते हैं और पौधों की जड़ें मजबूत बनती हैं।


बीजोपचार की विधि:


बुवाई से पहले बीजों को निम्न में से किसी एक उपचार से तैयार करें:


  •  कार्बेण्डाजिम 1 ग्राम + थाइरम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज, या
  •  कार्बोक्सीन 37.5% + थाइरम 37.5% (2 ग्राम प्रति किलो बीज), या
  •  ट्राईकोडर्मा 10 ग्राम प्रति किलो बीज

इन उपचारों से बीज रोगमुक्त रहेंगे और अंकुरण दर 90% तक बढ़ेगी।


कीट नियंत्रण के लिए अपनाएं ये उपाय


सहायक कृषि अनुसंधान अधिकारी (कीट) डॉ. सुरेश चौधरी के अनुसार, चने की फसल में दीमक, कटवर्म और वायरवर्म जैसे कीटों का प्रकोप अधिक देखा जाता है।

इनसे बचाव के लिए किसानों को चाहिए कि वे अंतिम जुताई से पूर्व क्यूनालफॉस 1.5% चूर्ण 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में भुरकाव करें।


इसके अलावा बीजों को फिप्रोनिल 5 एस.सी. (10 मि.ली./किलो बीज) या इमीडाक्लोप्रिड 600 एफ.एस. (5 मि.ली./किलो बीज) से उपचारित करने पर दीमक एवं अन्य मिट्टी जनित कीटों से फसल की प्रारंभिक अवस्था में प्रभावी सुरक्षा मिलती है।


खाद एवं उर्वरक प्रबंधन


कृषि अनुसंधान अधिकारी (रसायन) डॉ. कमलेश चौधरी ने बताया कि चने की अधिक उपज के लिए संतुलित पोषण प्रबंधन बेहद जरूरी है।


बुवाई से पूर्व बीजों को तरल आधारित राईजोबियम, फॉस्फेट सॉल्युबिलाइजिंग बैक्टीरिया (PSB), गंधक एवं जिंक घोलक जैसे जैव उर्वरकों की 3 से 5 मिली लीटर प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।


ये सूक्ष्मजीव मिट्टी में नाइट्रोजन स्थिरीकरण, फॉस्फोरस घुलनशीलता और सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ाते हैं।


कृषि अनुसंधान अधिकारी (शस्य) रामकरण जाट ने बताया कि चने की अधिकतम पैदावार के लिए मृदा परीक्षण आधारित पोषण प्रबंधन अपनाना चाहिए।


  •  असिंचित क्षेत्रों में: 10 किलो नाइट्रोजन (N) + 25 किलो फास्फोरस (P₂O₅) प्रति हेक्टेयर
  •  सिंचित क्षेत्रों में: 20 किलो नाइट्रोजन (N) + 40 किलो फास्फोरस (P₂O₅) प्रति हेक्टेयर

इन उर्वरकों को आखिरी जुताई के समय 12–15 सेंटीमीटर की गहराई पर मिट्टी में मिला देना चाहिए ताकि पौधों को पोषक तत्व शुरू से ही मिल सकें।


खरपतवार नियंत्रण के उपाय

चना की सिंचित फसल में प्रारंभिक अवस्था में खरपतवार तेजी से बढ़ते हैं, जिससे पैदावार प्रभावित होती है। इसे नियंत्रित करने के लिए:

  •  पेन्डीमिथेलीन 30 ई.सी. – 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर, या
  •  पेन्डीमिथेलीन 38.7 सी.एस. – 1.9 लीटर प्रति हेक्टेयर

इनमें से किसी एक शाकनाशी को 600 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के बाद लेकिन बीज अंकुरण से पहले छिड़काव करें। इससे खेत 25–30 दिनों तक खरपतवार मुक्त रहता है, और पौधों की वृद्धि समान रूप से होती है।


निष्कर्ष

यदि किसान उपरोक्त उन्नत कृषि तकनीकों का पालन करें — जैसे बीजोपचार, भूमि उपचार, फसल चक्र, संतुलित उर्वरक उपयोग और उचित खरपतवार नियंत्रण — तो वे प्रति हेक्टेयर 20–25 क्विंटल तक की उच्च उपज प्राप्त कर सकते हैं। चना न केवल मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने वाली फसल है बल्कि यह किसानों को रबी सीजन में बेहतर आमदनी का अवसर भी प्रदान करती है।