काली हल्दी की खेती और इससे होने वाले लाभ से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी

Published on: 28-May-2025
Updated on: 28-May-2025
Fresh Blue Turmeric Rhizomes in Hand
फसल मसाले फसल हल्दी

भारत के हर घर की रसोई में कई प्रकार के मसालों का उपयोग किया जाता है जिनमे से हल्दी का नाम सबसे पहले आता है। हल्दी दो प्रकार की होती है पिली हल्दी और काली हल्दी। 

पिली हल्दी की खेती के बारे में तो आप जानते ही है, इसकी प्रकार काली हल्दी भी बहुत मथावपूर्ण है इसकी हेति से किसानों को भी अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है इस लेख में हम आपको काली हल्दी की खेती से जुड़ी सम्पूर्ण जानकरी देंगे। 

काली हल्दी कैसी होती है? 

काली  हल्दी का कंद (राइज़ोम) स्वाद में कड़वा, तीखा और तासीर में गर्म होता है, तथा इसमें एक सुखद सुगंध होती है। इसमें जीवाणुरोधी (एंटी-बैक्टीरियल) और कवकरोधी (एंटी-फंगल) गुण होते हैं, और यह एक सौम्य विरेचक (लैक्सेटिव) के रूप में कार्य करती है। यह मस्तिष्क और हृदय के लिए एक टॉनिक के रूप में उपयोग की जाती है।

2016 से, काली हल्दी को भारतीय कृषि विभाग द्वारा संकटग्रस्त (एंडेंजर्ड) प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। ओडिशा राज्य में, जो पूर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है, काली हल्दी को संरक्षित और संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

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काली हल्दी के उपयोग और इसमें पाई जाने वाले रासायनिक घटक 

काली हल्दी का उपयोग कई प्रकार के रोगो के उपचार के लिए किया जाता है इसमें कई प्रकार के एंटीऑक्सीडेंट होते है जो की बीमारियों को जड़ से खत कर सकते है।  काली हल्दी के उपयोग और इसमें पाई जाने वाले रासायनिक घटक निम्नलिखित दिए गए है - 

काली हल्दी के उपयोग 

काली हल्दी के कंदों का उपयोग श्वेत कुष्ठ (ल्यूकोडर्मा), बवासीर, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, ट्यूमर, गले की तपेदिक ग्रंथियों, प्लीहा वृद्धि, मिर्गी के दौरे, सूजन और एलर्जी से होने वाले चकत्तों के इलाज में किया जाता है।

काली हल्दी पूर्वोत्तर और मध्य भारत की मूल निवासी है, जहां यह सांस्कृतिक अनुष्ठानों और पारंपरिक औषधीय उपचारों का हिस्सा रही है।

मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्य के कई आदिवासी समुदायों द्वारा काली हल्दी का उपयोग किया जाता है। यह जड़ी-बूटी भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के बाजारों में ताज़ा या सूखी अवस्था में बेची जाती है।

काली हल्दी पाई जाने वाले रासायनिक घटक

काली हल्दी के सूखी कंदों (Curcuma caesia) में 1.6% आवश्यक तेल पाया गया है, जिसमें 76.6% डी-कैंफर, 8.2% कैंफीन और बॉर्निलीन, और 10.5% सिसक्वीटर्पीन, कुर्कुमिन, आयोनोन और टरमेरोन शामिल होते हैं। 

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काली हल्दी के लिए जलवायु 

Curcuma Caesia  (काली हल्दी) आमतौर पर नम पर्णपाती और आर्द्र क्षेत्रों में उगाई जाती है। काली हल्दी लगाने का सबसे अच्छा मौसम वसंत (spring) या गर्मी (summer) का होता है। 

इसे उगाने के लिए गर्म और आर्द्र (humid) जलवायु की आवश्यकता होती है। गर्म क्षेत्रों में काली हल्दी के पौधे को अधिक धुप वाले स्थानों में नहीं नहीं लगाना चाहिए।  इसकी खेती के लिए तापमान 15 से 40 डिग्री सेन्टीग्रेट होना चाहिए।  

काली हल्दी की खेती के लिए मिट्टी की आवश्यकता  

यह जैविक पदार्थों से भरपूर, नम और अच्छी तरह से जलनिकासी वाली मिट्टी में अच्छी तरह उगती है। इसे हल्की काली, दोमट और लाल मिट्टी से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक में उगाया जाता है, लेकिन सबसे अच्छी पैदावार बालूयुक्त या चिकनी दोमट मिट्टी में मिलती है। वसंत से पतझड़ तक पूरे बढ़ने के मौसम में मिट्टी को नम रखें और इस दौरान तरल खाद (liquid fertilizer) देना आदर्श होता है।  

फसल की परिपक्वता और कटाई

फसल को पकने में लगभग 9 महीने लगते हैं। इसकी कटाई जनवरी के मध्य में की जाती है। कंदों को खोदने से पहले मिट्टी में सिंचाई करके उसे नम किया जाता है ताकि कंदों को नुकसान न पहुंचे। कंदों को चोट लगने से उनका सड़ना शुरू हो सकता है।

कटाई के बाद प्रबंधन 

छिले हुए, आधे कटे या टुकड़ों में काटे गए कंदों को 55°C तापमान पर ओवन में या फिर अच्छी हवा-दार छाया में सुखाना चाहिए। सूखने के बाद इन्हें नमी-रोधी (damp-proof) कंटेनरों में सुरक्षित रूप से संग्रहित करना चाहिए।

सूखे कंदों में लगभग 1.6% आवश्यक तेल पाया गया है, जिसमें 76.6% डी-कैफ़र, 8.2% कैम्‍फीन और बॉर्निलीन तथा 10.5% सिसक्वीटर्पीन, कुर्कुमिन, आयोनोन और टरमेरोन शामिल होते हैं।