धान की फसल में कई प्रकार के कीट लगते हैं जो पत्तियों, तनों और दानों को नुकसान पहुंचाते हैं। इन कीटों के कारण फसल की पैदावार कम होती है और गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
उनके कारण फसल की गुणवत्ता में गिरावट आती है और उपज में कमी होती है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है।
इसके अतिरिक्त, ये कीट बीमारियों का प्रसार भी कर सकते हैं, जो फसल की संपूर्णता को खतरे में डालते हैं। इसलिए, धान की फसल में लगने वाले कीटों के बारे में जागरूक होना और उनके प्रबंधन के लिए उचित उपाय करना बहुत जरूरी है।
इस लेख में आप भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिको द्वारा बताए गए धान की फसल में लगने वाले प्रमुख कीटों के नियंत्रण और प्रबंधन के उपायों के बारे में जानेंगे।
ये धान की फसल में लगने वाला एक खतरनाक कीट है जो फसल को भी नुकसान पहुंचाता हैं, भूरा पौध फुदका सम्पूर्ण भारत में धान का प्रमुख कीट है।
इस कीट को Brown Plant Hopper (BPH) के नाम से भी जाना जाता है। पौध फुदकों की मादाएँ लीफशीथ (पर्णच्छद) पर अंडे देती हैं। उत्तरी भारत में भूरा फुदके की जनसंख्या विस्फोट के परिणामस्वरूप वर्ष 2008 एवं 2013 में भयंकर नुकसान हुआ था।
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इस कीट के शिशु एवं वयस्क तने व लीफशीथ (पर्णच्छद) से रस चूसकर पौधे की वृद्धि पर दुष्प्रभाव डालते हैं जिससे पौध पीले हो जाते हैं। इस तरह के लक्षणों को 'हॉपरबर्न' कहते हैं।
कीटों के अधिक प्रकोप से पौधा सूख कर गिर जाता है। जैसे-जैसे प्रकोप बढ़ता है, खेत में सूखी फसल के गोलाकार क्षेत्र (हॉपरबर्न) नजर आते हैं।
तना छेदक भी धान के घातक कीटों में से हैं जो की फसल को बहुत नुकसान पहुँचाता हैं, तना छेदक की तीन प्रजातियाँ पीला, गुलाबी और सफेद तना छेदक धान की फसल को नुकसान पहुँचाती हैं।
इनमें से केवल पीला तना छेदक ही धान का महत्वपूर्ण कीट है। इन कीटों के वयस्क पतंगे होते हैं और केवल सुंडी ही फसल को नुकसान पहुँचाती है। सुंडी तने में छेद करके तने में घुस जाती है और इसे काट देती हैं।
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फसल के फुटाव की अवस्था में इनके प्रकोप के लक्षण को "मृत-केन्द्र" (डेडहार्ट) व बाली आने के उपरान्त इनके लक्षणों को "सफेद बाली" (व्हाइटहेड) के नाम से जाना जाता है। इससे फसल की उपज को बहुत हानि होती हैं।