बड़ी इलायची (Zingiberaceae परिवार) एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जो मुख्य रूप से सिक्किम और पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले में उगाई जाती है। यह मानव द्वारा उपयोग किए जाने वाले सबसे प्राचीन मसालों में से एक है। उत्पादन के मामले में सिक्किम अग्रणी है और यह घरेलू तथा अंतरराष्ट्रीय बाजार दोनों में प्रमुख योगदान देता है। हाल के वर्षों में नागालैंड, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में भी इसकी खेती शुरू हो चुकी है। इस लेख में हम आपको बड़ी इलायची की खेती के बारे में जानकारी देंगे।
बड़ी इलायची एक छायाप्रेमी पौधा है, जो स्वाभाविक रूप से उप-हिमालयी नम उपोष्णकटिबंधीय वनों में पाया जाता है। Badi Elaichi Ki Kheti वाले क्षेत्रों में सालाना वर्षा 2000–3500 मिमी तक होती है, जो लगभग 200 दिनों में वितरित रहती है।
ठंडे क्षेत्रों की निचली ऊँचाई और गर्म क्षेत्रों की ऊँची पहाड़ियाँ इलायची की फसल विकास के लिए उपयुक्त होती हैं। यहाँ औसत वार्षिक तापमान 6°C (दिसंबर–जनवरी) से 30°C (जून–जुलाई) तक होता है और वातावरण में नमी अधिक रहती है।
फूल आने के समय लगातार वर्षा परागण करने वाले कीटों की सक्रियता को प्रभावित करती है, जिससे फलन और इलायची उत्पादन पर असर पड़ता है। सर्दियों में पौधे निष्क्रिय रहते हैं और 2°C तक सहन कर लेते हैं, लेकिन पाला और ओलावृष्टि इनके लिए हानिकारक होते हैं।
इलायची की फसल सामान्यत जंगल की दोमट मिट्टी में पनपती है, जिसकी गहराई कुछ सेंटीमीटर से कई इंच तक हो सकती है। मिट्टी का रंग भूरा–पीला से गहरा धूसर–भूरा तक पाया जाता है और इसकी बनावट रेतीली, बलुई दोमट, सिल्टी दोमट से लेकर चिकनी मिट्टी तक हो सकती है।
बड़ी इलायची के लिए मिट्टी सामान्यत अम्लीय होती है (pH 5.0–5.5) और इसमें 1% से अधिक जैविक कार्बन होता है। ऐसी मिट्टियाँ नाइट्रोजन में समृद्ध, जबकि फॉस्फोरस व पोटैशियम में मध्यम स्तर की होती हैं। ढलानदार जमीन होने से जलभराव की संभावना कम रहती है, लेकिन उचित जल निकासी जरूरी है।
यह फसल हल्की से मध्यम ढलान वाली, अच्छी जल निकासी वाली भूमि में बेहतर उगती है। पहले झाड़ियाँ और खरपतवार हटाए जाते हैं तथा पुराने पौधे निकाल दिए जाते हैं। गड्ढे 30×30×30 सेमी आकार के बनाते हैं और दूरी किस्म के अनुसार 1.45 से 1.8 मीटर तक रखी जाती है। गड्ढों को 15 दिन खुला छोड़ने के बाद ऊपर की मिट्टी में 1–2 किग्रा गोबर खाद मिलाकर भर दिया जाता है। मई के अंत तक गड्ढों की तैयारी पूरी कर लेना चाहिए ताकि मानसून से पहले रोपाई हो सके।
इलायची की खेती में रोपाई जून–जुलाई में की जाती है, जब मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है। एक परिपक्व टिलर के साथ 2–3 कलियों वाली रोपण सामग्री लगाई जाती है। पौधों को कॉलर ज़ोन तक रोपते हैं और गहरे रोपण से बचते हैं। तेज हवा और बारिश से बचाव हेतु पौधों को सहारा दिया जाता है और नमी बनाए रखने के लिए मल्चिंग की जाती है।
इसका प्रसार बीज और सकर से किया जाता है। बीज से अधिक संख्या में पौध तैयार होते हैं और यदि नर्सरी सुरक्षित हो तो यह वायरस मुक्त रहते हैं। हालांकि, बीज से उपज हमेशा स्थिर नहीं रहती क्योंकि यह पर-परागण वाली फसल है। सकर द्वारा रोपण करने पर मूल पौधे की विशेषताएँ बनी रहती हैं और यदि रोग-मुक्त, उच्च उत्पादक पौधों से लिया जाए तो उपज अधिक होती है।
इलायची उत्पादन अधिक करने के लिए प्रति पौधा साल में दो बार (अप्रैल–मई व अगस्त–सितंबर) 5 किग्रा गोबर खाद/कम्पोस्ट डालना लाभकारी है। नर्सरी व बेड में वर्मी कम्पोस्ट विशेष रूप से उपयोगी है। बड़ी इलायची की रोपाई के समय 1 किलो माइक्रो भू पावर, 1 किलो माइक्रो फर्ट सिटी कम्पोस्ट, 1 किलो सुपर गोल्ड मैग्नीशियम, 1 किलो सुपर गोल्ड कैल्सी और 1 किलो माइक्रो नीम को मिलाकर एक संतुलित खाद मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण को पौध रोपाई के दौरान जुलाई में और खेत में खड़ी फसल पर नवम्बर में डालें।
बड़ी इलायची की खेती से किसान प्रति हेक्टेयर सालाना लगभग 2 से 3 लाख रुपये तक की आमदनी कर सकते हैं। बाजार में इसकी कीमत 900 से 1200 रुपये प्रति किलो तक रहती है। पौधा रोपण के बाद पहले और दूसरे वर्ष में बढ़वार और विकास करता है, जबकि तीसरे और चौथे वर्ष में एक हेक्टेयर क्षेत्र से 500 से 700 किलो तक उत्पादन प्राप्त होता है।
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उत्तर- बड़ी इलायची ज़िंगिबेरेसी (Zingiberaceae) परिवार की फसल है।
उत्तर- अम्लीय (pH 5.0–5.5), जैविक कार्बन >1%, नाइट्रोजन से भरपूर, अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी।
उत्तर- रैम्से, रामला, सॉनी, वारलांगेय और सेरेमना।
उत्तर- जून–जुलाई में, जब मिट्टी में पर्याप्त नमी होती है।
उत्तर- बीज और सकर (सकर विधि अधिक लाभकारी)।
उत्तर- प्रति पौधा साल में दो बार 5 किग्रा गोबर खाद/कम्पोस्ट देना चाहिए।
उत्तर- लगभग 50% छाया आदर्श है। अधिक या कम छाया दोनों हानिकारक हैं।
उत्तर- सालाना 2–3 लाख रुपये।
उत्तर- तीसरे–चौथे वर्ष से 500–700 किलो प्रति हेक्टेयर।
उत्तर- 900 से 1200 रुपये प्रति किलो।