सोया साग की खेती: कम लागत में अधिक मुनाफा देने वाली फसल

Published on: 05-May-2025
Updated on: 05-May-2025
dill leaves in a green field
फसल

आज के समय में किसानों के लिए मुनाफे वाली खेती की तलाश में सोया साग एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभरा है। यह न केवल पोषण से भरपूर है, बल्कि इसकी बाजार में मांग भी निरंतर बनी रहती है। 

सोया साग में एंटीऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा होती है, साथ ही इसमें मैग्नीशियम, आयरन, पोटैशियम, फाइबर और प्रोटीन जैसे तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। 

इसके सेवन से आंखों की रोशनी बढ़ती है, त्वचा में निखार आता है और यह हड्डियों को मजबूत करने में मददगार होता है। साथ ही, नींद की समस्याओं और श्वसन संबंधी विकारों में भी यह लाभकारी है। इसकी लगातार मांग के चलते किसान इससे अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

उपयुक्त जलवायु और मिट्टी

सोया साग की खेती के लिए शीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह फसल 15 से 25 डिग्री सेल्सियस तापमान पर अच्छी वृद्धि करती है। हल्की ठंड को यह सहन कर सकती है। 

मिट्टी की बात करें तो दोमट या रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें पानी की निकासी अच्छी हो, सोया साग के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी का pH स्तर 6.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

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बीज चयन और किस्में

हालांकि सोया साग के लिए कोई विशिष्ट किस्में नहीं होती, लेकिन सोयाबीन की कुछ किस्में जैसे पीबी-1, पीबी-2 और जेएस-335 उपयुक्त मानी जाती हैं। इन किस्मों से अच्छी गुणवत्ता वाला साग प्राप्त होता है।

खेत की तैयारी और बुवाई

खेत को 2-3 बार अच्छी तरह जुताई कर भुरभुरी मिट्टी तैयार की जाती है। समतल भूमि में सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट मिलाना आवश्यक है। 

बुवाई करते समय बीजों को 5 सेमी गहराई पर बोया जाता है और पंक्तियों के बीच 25 से 30 सेमी की दूरी रखी जाती है। प्रति एकड़ 8-10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

उर्वरक और खाद प्रबंधन

अच्छी उपज के लिए संतुलित पोषण जरूरी है। प्रति एकड़ 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फॉस्फोरस (प्रति हेक्टेयर) और 20 किलोग्राम पोटाश बुवाई के समय देना चाहिए। जैविक खाद के प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।

सिंचाई, खरपतवार और कीट नियंत्रण

फसल को 3 से 4 बार सिंचाई की आवश्यकता होती है, जो मौसम और मिट्टी की नमी पर निर्भर करती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रारंभिक जुताई और समय-समय पर हाथ से निराई करनी चाहिए। लीफ माइनर और तना छेदक जैसे कीटों के लिए जैविक या रासायनिक कीटनाशकों का संतुलित प्रयोग लाभकारी होता है।

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रोग प्रबंधन और उत्पादन

फसल में फ्यूजेरियम विल्ट और डाउनी मिल्ड्यू जैसे रोगों की आशंका रहती है। इनसे बचाव के लिए बीजों की उपचारित बुवाई और फफूंदनाशकों का प्रयोग करें। 

कटाई बुवाई के 30-40 दिनों बाद शुरू होती है और यह एक से अधिक बार काटी जा सकती है। प्रति हेक्टेयर लगभग 15 क्विंटल साग की उपज प्राप्त होती है।

निष्कर्ष:

कम लागत, कम समय में तैयार होने और पोषण से भरपूर होने के कारण सोया साग की खेती किसानों के लिए एक उत्तम विकल्प है। यदि उचित तकनीक और देखभाल के साथ खेती की जाए तो यह फसल सालभर आय का सशक्त स्रोत बन सकती है।


Q-सोया साग में कौन-कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं?

उत्तर: सोया साग में एंटीऑक्सीडेंट, मैग्नीशियम, आयरन, पोटैशियम, फाइबर और प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

Q-एक एकड़ में बुवाई के लिए कितने किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है?

उत्तर: एक एकड़ क्षेत्र में 8-10 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

Q-सोया साग की खेती में प्रति हेक्टेयर औसतन कितनी उपज मिलती है?

उत्तर:प्रति हेक्टेयर औसतन 15 क्विंटल साग की उपज प्राप्त होती है।

Q-सोया साग की पहली कटाई कितने दिनों में हो जाती है?

उत्तर: बुवाई के 30-40 दिनों बाद पहली कटाई की जा सकती है।