मूंग एक प्रमुख दलहनी फसल है जिसे भारत के अधिकांश क्षेत्रों में उगाया जाता है। इसमें प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है—करीब 24-25% प्रोटीन, 60% कार्बोहाइड्रेट और लगभग 1.3% वसा।
यह न केवल मानव पोषण के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में भी सहायक है क्योंकि यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को पकड़ने की क्षमता रखती है। उत्तर भारत में विशेष रूप से गर्मियों में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
मूंग की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। इसके लिए 25°C तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। यह फसल 20 से 40°C तक का तापमान सहन कर सकती है।
अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार अधिक होती है। खेत की मिट्टी का pH मान 7.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
खेत को तैयार करते समय सबसे पहले एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी जुताई करें। फिर 2-3 बार कल्टीवेटर या देसी हल से जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लें। अंतिम बार सुहागा चला कर खेत समतल कर लें ताकि बीज अच्छे से जम सकें।
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बीज को कार्बेन्डाजिम या थायरम जैसे फफूंदनाशक से उपचारित करना जरूरी है ताकि बीज जनित रोगों से फसल की रक्षा हो सके। इसके अलावा, क्विनालफॉस 1.5% चूर्ण को 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं ताकि दीमक और अन्य मृदा जनित कीटों से सुरक्षा मिले।
उन्नत किस्मों का उपयोग ही अच्छी पैदावार की कुंजी है। मूंग की प्रमुख उन्नत किस्मों में नरेंद्र मूंग 1, पंत मूंग 2, एचयूएम 6, सुनैना, जवाहर मूंग 45 और 70 आदि शामिल हैं। इन किस्मों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है और ये कम समय में अच्छी पैदावार देती हैं।
गर्मी के मौसम में मूंग की बुवाई के लिए 8 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ की दर से उपयोग करें। बुवाई कतारों में 20-25 सेंटीमीटर की दूरी पर करें। खरीफ की फसल के लिए जून के दूसरे पखवाड़े से जुलाई के पहले सप्ताह तक बुवाई कर लेनी चाहिए।
हालाँकि मूंग की फसल नाइट्रोजन को खुद ग्रहण कर सकती है, फिर भी 10 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस और 8-10 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ देना लाभकारी होता है। गंधक की कमी वाले क्षेत्रों में 8 किलोग्राम गंधक युक्त उर्वरक का प्रयोग करें। सारी खादें बुवाई से पहले या उसी समय दें।
गर्मी की फसल में सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है। मूंग की फसल में 15-20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें। ध्यान रहे कि बारिश के बाद खेत में पानी न रुके—इसलिए जल निकासी का उचित प्रबंध आवश्यक है।
मूंग की फसल को खरपतवारों से बचाने के लिए 15-20 दिन और फिर 40-45 दिन बाद निराई करें। यदि खरपतवार अधिक हो तो फ्लूएक्लोरीन 45 EC की 500 ग्राम मात्रा को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव करें।
मूंग की खेती वैज्ञानिक तरीकों से की जाए तो कम लागत में अधिक उत्पादन मिल सकता है। उचित किस्मों का चयन, समय पर बुवाई, उर्वरक का सही प्रयोग, सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण—इन सभी बातों का ध्यान रखकर आप मूंग की खेती से बेहतरीन और लाभदायक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।