मशरूम का उपयोग हजारों वर्षों से खाद्य और औषधीय रूप में किया जा रहा है। आज के समय में इसकी लोकप्रियता और मांग तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है।
इसमें वसा की मात्रा कम होती है, जबकि प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट अधिक होते हैं। एक समय था जब मशरूम कुछ गिने-चुने देशों में ही खाया जाता था, लेकिन अब यह पूरी दुनिया में पसंद किया जा रहा है।
भारत में खासकर शाकाहारी लोगों के लिए यह पोषण का एक बेहतर स्रोत बन चुका है। मशरूम की कई किस्में होती हैं और उनमें से कुछ खाने योग्य होती हैं। कुकुरमुत्ता भी इन्हीं में से एक है, लेकिन दोनों के बीच कुछ विशेष अंतर होते हैं।
भारत में आम बोलचाल में मशरूम को कुकुरमुत्ता भी कहा जाता है, लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह दोनों एक जैसे नहीं हैं। आमतौर पर कुकुरमुत्ता को लेकर एक धारणा है कि यह कुत्ते की मूत्र से उत्पन्न फफूंद (फंगस) है, जबकि यह एक भ्रांति है।
वास्तव में, मशरूम एक प्रकार का फंगी होता है, जो किसी पत्ते या जड़ वाला पौधा नहीं होता। मशरूम की कई किस्में होती हैं – कुछ खाने योग्य और कुछ जहरीली। इसलिए पहचान के बिना किसी भी जंगली मशरूम का सेवन नहीं करना चाहिए।
मशरूम की खेती कृषि अपशिष्ट पदार्थों जैसे कि गेहूं या धान का पुआल, ज्वार-बाजरे की भूसी, मक्का की कड़वी, गन्ने की खोई आदि पर की जाती है। ध्यान रहे कि ये अवशेष सूखे होने चाहिए, अधिक नमी से फफूंद की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
आमतौर पर मशरूम उत्पादन में सूखे पुआल का सबसे अधिक उपयोग होता है। साथ ही उत्पादन कक्ष की साफ-सफाई और उचित तापमान बनाए रखना जरूरी होता है।
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इस तकनीक में मजबूत लकड़ी की तख्तियों से शेल्फ तैयार किए जाते हैं जिन्हें लोहे के फ्रेम से जोड़ा जाता है। एक शेल्फ की चौड़ाई लगभग 3 फीट होती है और उनके बीच लगभग 1.5 फीट का अंतर होता है। इन्हें पांच स्तरों तक एक के ऊपर एक लगाया जा सकता है, जिससे कम जगह में अधिक उत्पादन किया जा सकता है।
यह सबसे सामान्य और आसान विधि मानी जाती है। इसमें 25x23 इंच आकार के और 200 गेज मोटे पॉलीथीन बैग का उपयोग होता है।
बैग की ऊँचाई 14-15 इंच और व्यास 15-16 इंच होता है। कमरे में आसानी से इसे अपनाया जा सकता है और इसमें मशरूम का अच्छा विकास होता है।
इसमें मशरूम को ट्रे में उगाया जाता है, जिससे उसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है। एक ट्रे की गहराई लगभग 6 इंच और आकार लगभग आधा वर्ग मीटर होता है। इसमें 28-32 किलोग्राम खाद भरी जाती है।
मशरूम और कुकुरमुत्ता दोनों ही फंगी समूह से संबंधित होते हैं, लेकिन वैज्ञानिक तौर पर दोनों में भिन्नता होती है। मशरूम की खेती एक उभरता हुआ व्यवसाय है जिसे कम लागत में शुरू किया जा सकता है। सही तकनीक और सफाई का ध्यान रखकर किसान इससे अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।