कमल का फूल (Lotus) अन्य फूलों से काफी अलग होता है। यह कटिबंधीय और बारहमासी पौधा पानी के गर्म वातावरण में उगता है, इसलिए यह तालाबों, नदियों के किनारे और कीचड़ वाले स्थिर पानी में बेहतर पनपता है।
बीजों के अंकुरण से लेकर फूलों के खिलने की प्रक्रिया अन्य फूलों से कुछ भिन्न होती है।
कमल का फूल न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सौंदर्य के कारण भी महत्वपूर्ण है।
यह पौधा दुनियाभर में मुख्यतः कटिबंधीय और शीतोष्ण क्षेत्रों के तालाबों, नदियों और कीचड़ वाले पानी में उगता है, और यह अत्यधिक चुनौतीपूर्ण वातावरण में भी पनपने की क्षमता रखता है।
इसी कारण से हिंदी में यह कहावत प्रचलित है कि "कीचड़ में कमल खिलता है"। कमल के पनपने की प्रक्रिया के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।
इसके बीजों को अंकुरित होने के लिए विशेष परिस्थितियां चाहिए और इसकी परागीकरण प्रक्रिया भी कुछ विशेष प्रकार की होती है।
कमल (Lotus) का वैज्ञानिक नाम नेलुम्बो न्यूसिफेरा है और यह नेल्युम्बोएसिया परिवार का हिस्सा है।
यह दो प्रकार के होते हैं: कटिबंधीय कमल (Tropical Lotus) और बारहमासी कमल (Perennial Lotus)। इन दोनों में मुख्य अंतर उनके भौगोलिक क्षेत्रों में होता है।
कटिबंधीय कमल गर्म और आर्द्र जलवायु में उगता है और इसमें अधिक ऊष्मा और नमी की आवश्यकता होती है। दिखने में कटिबंधीय कमल बड़े और अधिक रंगीन होते हैं, और इनके पंखुड़ियों की नसें साफ-साफ दिखाई देती हैं।
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कमल के फूल केवल सफेद और गुलाबी रंग के नहीं होते, बल्कि ये बैंगनी, पीले और लाल रंग के भी हो सकते हैं। ये फूल कठिन वातावरण में भी उगते हैं, और कीचड़ वाले पानी में भी पनप सकते हैं।
ये पौधे दक्षिण-पूर्व एशिया से दुनिया के अन्य हिस्सों में पहुंचे हैं। इनकी खेती मुख्य रूप से फूलों के लिए की जाती है, लेकिन उनकी पत्तियां और बीज भी खाए जाते हैं।
कमल का जीवन चक्र बीजों से शुरू होता है, जो फूलों में उत्पन्न होते हैं और छोटे, काले होते हैं। ये बीज कई प्रकार के आवासों में पनप सकते हैं, जैसे कीचड़ वाले तालाबों से लेकर धूप वाले नदी के किनारों तक।
इनकी विशेषता यह है कि ये भारी संख्या में बीज उत्पन्न करते हैं, जो बाद में फैलते हैं। इनमें से कुछ बीज अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर पौधों में बदल जाते हैं।
इसलिए कठिन वातावरण में भी ये पौधे उग जाते हैं, और यही कारण है कि ये लोकप्रिय होते हैं।
कमल के बीज पानी के नीचे कीचड़ में अंकुरित होते हैं, जिसे दो सप्ताह से लेकर दो महीने तक का समय लगता है। अंकुरित होने के बाद जड़ें जमीन में फैलने लगती हैं और पत्तियां पानी की सतह तक पहुंचने तक बढ़ती रहती हैं।
कटिबंधीय कमल के पत्ते बड़े होते हैं, जबकि कीचड़ वाले पौधे छोटे होते हैं। दोनों प्रकार के कमल के फूल पानी की सतह के ऊपर खिलते हैं।
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कमल के फूल का परागीकरण कुछ ही दिनों में पूरा हो जाता है। हर दिन फूल खिलता है और रात में सिकुड़ कर पानी में चला जाता है, और अगले दिन फिर से खिलता है।
परागीकरण की प्रक्रिया में भौंरे भी शामिल होते हैं, जो फूल की गर्मी और खुशबू से आकर्षित होते हैं। परागीकरण के बाद पंखुड़ियां झड़ने लगती हैं और बीजों का प्रसार शुरू हो जाता है। कुछ प्रकार के कमल स्वपरागीकरण करते हैं, यानी उन्हें कीटों की जरूरत नहीं होती।
कमल के पौधों में बीजों की फली का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। बीज उत्पादन एक दिलचस्प प्रक्रिया है, जिसमें ऊष्मा और खुशबू का महत्वपूर्ण योगदान होता है।
प्रत्येक फली में सैकड़ों बीज होते हैं, जो पकने पर भूरे रंग के हो जाते हैं और फट कर खुलने लगते हैं। इसके बाद ये बीज पानी के बहाव में बहकर दूसरे स्थानों पर फैल जाते हैं और वहां अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित हो जाते हैं।
कमल का फूल प्रकृति के साथ गहरे संबंध और जीवन की दृढ़ता की प्रतीक माना जा सकता है।