अरहर की खेती भारत में कई स्थानों पर की जाती है। अरहर की खेती खरीफ की फसल के रूप में की जाती है। इसकी दाल की कीमत अच्छी खासी होती है। अरहर की खेती के लिए कम पानी की आवश्यकता होती हैं। इसलिए इसको कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता हैं।
अरहर की खेती में किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं जिससे उपज में कमी आती हैं। अरहर की खेती में किसानों को सबसे अधिक रोगों के कारण नुकसान का सामना करना पड़ता हैं।
अगर समय रहते किसान रोग की पाचन करके इसकी नियंत्रण कर लेते हैं तो नुकसान को कम किया जा सकता हैं। इस लेख में हम आपको अरहर की खेती में लगने वाले प्रमुख रोग और उनके प्रबंधन के बारे में जानकारी देंगे।
अरहर की फसल में कई प्रकार के रोग लगते हैं जिससे की फसल को भारी नुकसान होता हैं, इन में से कुछ प्रमुख रोग हैं जिनके लक्षण और प्रबंधन के उपाय निचे दिए गए हैं -
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अरहर का यह रोग पौधे की प्रारंभिक अवस्था (4-6 सप्ताह की उम्र) से लेकर फूल आने और फली बनने तक किसी भी समय फसल को संकर्मित कर सकता हैं। यह रोग धीरे-धीरे पौधे के मुरझाने और सूखने के रूप में सामने आता है।
इस रोग के प्रमुख लक्षण पत्तियों का पीला पड़ना और तने का कॉलर भाग से शाखाओं की ओर काला पड़ना होता हैं, जिससे पत्तियाँ, तना और शाखाएँ झुक जाती हैं और समय से पहले सूखकर पूरा पौधा मर जाता है।
रोग से संकर्मित पौधे के संवहनी ऊतकों (vascular tissues) में भूरी रंग की विकृति (discoloration) दिखाई देती है। अक्सर तने और जड़ प्रणाली का केवल एक हिस्सा प्रभावित होता है जिससे आंशिक मुरझाहट होती है।
रोग के प्रकोप को ख़तम करने के लिए बुवाई से पहले बीजों को कार्बेन्डाज़िम या थिरम से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें या ट्राइकोडर्मा विरिडे से 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से लेपित करें।
विल्ट को ख़त्म करने के लिए kheखेत में भारी मात्रा में गोबर की खाद या हरी खाद जैसे ग्लिरीसिडिया मैकुलाटा 10 टन प्रति हेक्टेयर डालें या नीम की खली 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाएं।
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पाउडरी मिल्ड्यू से फरभावित पत्तियों की निचली सतह पर सफेद पाउडर जैसा कवक बन जाता हैं। इसके विपरीत ऊपरी सतह पर पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं।
यह सफेद पाउडर कवक के कंडीओफोर और कंडीया से बना होता है। गंभीर संक्रमण की स्थिति में यह सफेद कवक पत्तियों की ऊपरी सतह पर भी फैल जाता है।
पाउडरी मिल्ड्यू रोग के तीव्र संक्रमण से पत्तियाँ समय से पहले झड़ जाती हैं और पौधा सुख जाता हैं।
अरहर की खेती में स्टेम ब्लाइट के लक्षण शुरुआत में तने के निचले हिस्से पर बैंगनी से गहरे भूरे रंग के गले हुए धब्बे (नेक्रोटिक लेशन्स) के रूप में दिखाई देते हैं, जो बाद में ऊपरी हिस्सों में भी फैल सकते हैं।
रोग की शुरुआती अवस्था में ये धब्बे छोटे और चिकने होते हैं, लेकिन बाद में ये बड़े और दबे हुए हो जाते हैं। संक्रमित ऊतक नरम हो जाते हैं और पूरा पौधा मर सकता है। बड़े पौधों में संक्रमण आमतौर पर तने के निचले हिस्से तक सीमित रहता है। संक्रमित छाल भूरी हो जाती है और ऊतक नरम हो जाते हैं जिससे पौधा टूट कर गिर जाता है।
अगर संक्रमण पत्तियों में हैं तो पीले रंग का धब्बा पत्तियों के किनारे और सिरे से शुरू होकर मध्यशिरा (mid-rib) की ओर फैलता है।
धब्बे का केंद्र बाद में भूरा और सख्त हो जाता है। ये धब्बे बड़े होकर पूरी पत्ती को ढँक लेते हैं जिससे पत्तियाँ सूख जाती हैं।