धान की नर्सरी विधियाँ: अधिक उपज के लिए सही तरीका

Published on: 15-May-2025
Updated on: 15-May-2025
Rice nursery bed with young green paddy seedlings in a waterlogged field
फसल खाद्य फसल

धान (Rice) भारत की एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है, जो देश की खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसकी खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, समुचित जल आपूर्ति और उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है। 

धान की खेती की शुरुआत नर्सरी तैयार करने से होती है, जहां पर बीजों से पौध तैयार किए जाते हैं, जिन्हें बाद में मुख्य खेत में रोपा जाता है।

इस लेख में हम आपको धान की नर्सरी तैयार करने की तीन प्रमुख विधियों के बारे में बताएंगे, जिनसे पौध न केवल जल्दी तैयार होती है, बल्कि स्वस्थ और अधिक उत्पादक भी बनती है – जिससे आपकी फसल की उपज दोगुनी हो सकती है।

धान की नर्सरी का महत्व

नर्सरी वह स्थान होता है जहां धान के बीजों को अंकुरित करके छोटे पौधों में बदला जाता है। नर्सरी में पौधों को बेहतर देखभाल और पोषण मिलता है, जिससे वे मजबूत बनते हैं और रोपाई के बाद बेहतर वृद्धि करते हैं। इससे उत्पादकता बढ़ती है, फसल की गुणवत्ता सुधरती है और पौधे रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं।

धान की नर्सरी तैयार करने की प्रमुख विधियां

 1. गीली नर्सरी विधि (Wet Nursery Method)

मुख्य विशेषताएं:

  •  पारंपरिक और सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली विधि।
  •  उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त जहां पर्याप्त पानी उपलब्ध हो।
  •  एक हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 20 सेंट (800 वर्ग मीटर) क्षेत्र में नर्सरी तैयार की जाती है।

तैयारी प्रक्रिया:

  •  भूमि की दो बार सूखी जुताई करें।
  •  1 टन एफवाईएम/कम्पोस्ट डालें और फिर खेत को सिंचित करें।
  •  मिट्टी को एक सप्ताह तक गीला रखें, फिर दो बार पोखर (ploughing) करें।
  •  समतलीकरण के बाद 2.5 मीटर चौड़ाई और 8–10 मीटर लंबाई के बेड बनाएं।
  •  बिस्तरों के बीच में 30–50 सेमी की चौड़ाई में पानी निकासी के लिए नाली छोड़ें।
  •  पूर्व-अंकुरित बीज बुआई के 20–25 दिन बाद रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

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 2. डैपोग/मैट नर्सरी विधि (Dapog/Mat Nursery Method)

मुख्य विशेषताएं:

  •  कम जगह में तैयार होने वाली उन्नत विधि।
  •  एक हेक्टेयर के लिए केवल 100 वर्ग मीटर (2.5 सेंट) की आवश्यकता।
  •  14–20 दिनों में पौधे रोपाई के लिए तैयार।

तैयारी प्रक्रिया:

समतल क्षेत्र का चयन करें और नीचे पॉलीथीन शीट, केले के पत्ते या सीमेंटेड फर्श बिछाएं ताकि जड़ें जमीन में न घुसें।

मिट्टी मिश्रण तैयार करें:

  • 70% मिट्टी + 20% कम्पोस्ट + 10% चावल की भूसी
  • इसमें 1.5 किग्रा DAP या 2 किग्रा NPK (17:17:17) मिलाएं।
  • लकड़ी के फ्रेम में 4 सेमी मोटाई तक यह मिश्रण भरें।
  • बीजों को 24 घंटे भिगोकर, फिर 24 घंटे सेतें और अंकुरित होने पर बोएं।
  • बीजों को 5 मिमी मोटी सूखी मिट्टी की परत से ढक दें।

 3. सूखी नर्सरी विधि (Dry Nursery Method) (संक्षेप में उल्लेख करें)

यह विधि उन क्षेत्रों में उपयोगी होती है जहां पानी की उपलब्धता सीमित होती है। इसमें बीजों को सीधे सूखी और तैयार की गई मिट्टी में बोया जाता है और सीमित सिंचाई की जाती है।

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निष्कर्ष

यदि आप धान की उपज को बढ़ाना चाहते हैं, तो नर्सरी तैयार करने की विधियों को सही ढंग से अपनाना बहुत जरूरी है। गीली, डैपोग और सूखी नर्सरी विधियों में से आप अपने क्षेत्र की जलवायु, जल-स्रोत और संसाधनों के अनुसार उपयुक्त विधि चुन सकते हैं। अच्छी तरह से तैयार की गई नर्सरी मजबूत पौधे और अधिक उपज का आधार बनती है।


प्रश्न 1: धान की नर्सरी तैयार करने की कितनी प्रमुख विधियाँ हैं?

उत्तर: धान की नर्सरी तैयार करने की तीन प्रमुख विधियाँ हैं:

  1. गीली नर्सरी विधि
  2. डैपोग (मैट) नर्सरी विधि
  3. सूखी नर्सरी विधि

प्रश्न 2: गीली नर्सरी विधि किन क्षेत्रों में उपयुक्त होती है?

उत्तर: गीली नर्सरी विधि उन क्षेत्रों में उपयुक्त होती है जहां पानी की पर्याप्त उपलब्धता होती है।

प्रश्न 3: एक हेक्टेयर खेत के लिए गीली नर्सरी तैयार करने में कितने क्षेत्र की आवश्यकता होती है?

उत्तर: एक हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 20 सेंट (800 वर्ग मीटर) क्षेत्र की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4: डैपोग नर्सरी विधि में पौधे कितने दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं?

उत्तर: डैपोग नर्सरी विधि में पौधे 14–20 दिनों में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं।

प्रश्न 5: डैपोग नर्सरी विधि में मिट्टी मिश्रण का क्या अनुपात होता है?

उत्तर: डैपोग नर्सरी विधि में मिट्टी मिश्रण का अनुपात होता है:

  •  70% मिट्टी
  •  20% कम्पोस्ट
  •  10% चावल की भूसी

प्रश्न 6: डैपोग विधि में मिट्टी को किस चीज पर बिछाया जाता है?

उत्तर: डैपोग विधि में मिट्टी को पॉलीथीन शीट, केले के पत्ते या सीमेंटेड फर्श पर बिछाया जाता है ताकि जड़ें जमीन में न घुसें।