रबी सीजन की फसलों की बिजाई किसानों द्वारा संपन्न की जा चुकी है। साथ ही, सर्दियों ने भी अपनी दस्तक दे दी है।
फिलहाल, मौसमिक बदलाव और कोहरा की वजह से तापमान में उतार-चढ़ाव और उच्च सापेक्षिक आर्द्रता की स्थिति सामने आ रही है, जिसके चलते कृषकों के खेत में लगे आलू की फसल में पिछाता झुलसा और अगात झुलसा रोग के संक्रमण की आशंका भी बढ़ चुकी है।
यह दोनों ही रोग आलू की फसल को बेहद हानि पहुंचाते हैं। यदि किसान वक्त रहते अपनी आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने के निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखते हैं, तो वह इससे काफी अच्छा मुनाफा हांसिल कर सकते हैं। आगे इस लेख में हम जानेंगे इन रोगों की पहचान और प्रबंधन के बारे में।
इस रोग में आलू की पत्तियां किनारों से सूखने लग जाती हैं। सूखे हुए हिस्से को उंगलियों से रगड़ने पर खरखराहट की आवाज आती है।
यह रोग मुख्य रूप से उस समय फैलता है, जब वायुमंडलीय तापमान 10°C से 19°C के मध्य होता है। इसको किसान भाई 'आफत' कहते हैं।
यदि फसल संक्रमित हो गई हो तो निम्नलिखित दवाओं का छिड़काव करें:
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इस रोग में पत्तियों पर भूरे रंग के गोल धब्बे लग जाते हैं, जो कि आहिस्ते-आहिस्ते बढ़कर पत्तियों को जला देते हैं। यह रोग सामान्य रूप से जनवरी के दूसरे या तीसरे सप्ताह में दिखाई पड़ता है।
अगात झुलसा रोग के प्रबंधन हेतु जिनेब 75% घुलनशील पाउडर (2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर), मैंकोजेब 75% घुलनशील पाउडर (2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर), कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50% घुलनशील पाउडर (2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर), कैप्टान 75% घुलनशील पाउडर (2 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर), जैसे ही रोग के लक्षण नजर आने लगें, शीघ्र ही छिड़काव करें।
जानकारी के लिए बतादें कि 400-500 लीटर पानी में निम्नलिखित में से किसी एक का घोल बनाकर छिड़काव करें।
किसान भाई फसल की नियमित तौर पर निगरानी करें, जिससे कि शुरुआती लक्षण दिखते ही उपाय किए जा सकें।
साथ ही, छिड़काव के लिए सही दवाइयों और उनकी मात्रा का खास रूप से ध्यान रखें। सिर्फ इतना ही नहीं छिड़काव के दौरान मौसम साफ सुथरा और शांत होना चाहिए।
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अगर किसी भी किसान भाई को आलू के फसलीय रोग प्रबंधन या किसी भी समस्या हेतु ज्यादा जानकारी प्राप्त करनी हो तो किसान कॉल सेंटर (टोल-फ्री नंबर: 18001801551) पर बेझिझक संपर्क कर सकते हैं।
इसके अलावा कृषक अपने जनपद के सहायक निदेशक, पौधा संरक्षण से भी मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।