पंजाबी यूनिवर्सिटी के बायोटेक्नोलॉजी विभाग के प्रोफ़ैसर डॉ. मिन्नी सिंह और आईएएस अधिकारी और कृषि पंजाब के मौजूदा सचिव स. काहन सिंह पन्नू, ने एक सहयोगी अनुसंधान परियोजना में नैनो टैक्रोलॉजी और बायो टैक्रोलॉजी का प्रयोग करते हुए 5 सालों की अनुसंधान परियोजना के द्वारा सिट्रस फलों के छिलकों में मौजूद लिमोनिन को निकालने में सफलता हासिल की है। लिमोनिन में काफ़ी मात्रा में प्राकृतिक ऐंटीबायोटिक गुण पाए जाते हैं।
स. काहन सिंह पन्नू ने बताया कि इस उत्पाद की पोल्ट्री फार्मिंग में ऐंटीबायोटिक्स के प्रयोग के विकल्प के रूप में पोल्ट्री फीड सप्लीमेंट के तौर पर प्रयोग को मंज़ूरी दी गई है। पोल्ट्री फीड में ऐंटीबायोटिक के निरंतर प्रयोग को मनुष्य में ऐंटीबायोटिक प्रतिरोधक पाए जाने का कारण माना गया है, क्योंकि मानव पोल्ट्री में बने अवशेष के ज़रिये पैसिव कन्स्यूमर बन जाते हैं।
उन्होंने बताया कि फाइटो कम्पोनेंट्स की एक विशेश श्रेणी, सिट्रस फलों के छिलकों में काफ़ी मात्रा में पाई जाती है। लिमोनोइड्ज़ में ऐंटीमाईक्रोबायल गतिविधि होती है और इसमें ऐंटीबायोटिक होने की संभावनाएं पैदा होती हैं, जो इस उत्पाद का प्रयोग का आधार बना है।
स. पन्नू ने कहा कि पोल्ट्री में इसके अवशोषण क्षमता में सुधार करने के लिए, नैनो टैक्रोलॉजी का प्रयोग किया गया है, जिसके ट्रायल में सकारात्मक नतीजे पाए गए, जोकि गडवासू, लुधियाना में वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किया गया था। अध्ययन में मासपेशियों के वजऩ और लालिमा के मद्देनजऱ स्वास्थ्य में सुधार हुआ, जो पोल्ट्री उद्योग के लिए पोल्ट्री मीट की विशेषताओं में महत्वपूर्ण सुधार का स्पष्ट सूचक है। स. पन्नू ने कहा कि उम्मीद की जाती है कि इस उत्पाद को शामिल करने के साथ न सिफऱ् मानवीय उपभोग के लिए पोल्ट्री आधारित उत्पादों में बेहतरी आएगी, बल्कि इसके निर्यात में भी वृद्धि होगी।
स. पन्नू ने कहा कि ऐसा करते हुए बाग़बानी कूड़े का प्रयोग और इसको महत्वपूर्ण उत्पादों में बदलने के लिए एक हल मुहैया कराया गया है। उन्होंने आगे कहा कि पंजाब एग्रो इंडस्ट्री कॉर्पोरेशन द्वारा इस उत्पाद के लिए टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की प्रक्रिया जारी है।
उन्होंने बताया कि मानवीय उपभोग के लिए पौष्टिक तौर पर विकसित एक और रूप जो लीवर की बीमारी को दूर करने के उद्देश्य के साथ ग़ैर-अल्कोहल लीवर की बीमारी वाले मरीज़ों के लिए मानव परीक्षणों से गुजऱ रहा है। उन्होंने बताया कि यह ट्रायल डीएमसी, लुधियाना के गैस्ट्रोऐंट्रोलॉजिस्ट विभाग द्वारा किया जा रहा है।