भारतवर्ष में रुद्राक्ष को अत्यंत पवित्र और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है। यह मुख्यतः धार्मिक अनुष्ठानों, मंत्र जाप और साधना में उपयोग किया जाता है। मान्यता है कि रुद्राक्ष भगवान शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुआ था, अतः इसे शिवभक्तों के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
रुद्राक्ष का वृक्ष एक सदाबहार (evergreen) पेड़ होता है, जिसका वैज्ञानिक नाम Elaeocarpus ganitrus है। यह पेड़ प्रायः 50 से 200 फीट तक ऊँचा हो सकता है।
भारत में इसके Elaeocarpus वंश की लगभग 35 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इसके बीज को ही "रुद्राक्ष" कहा जाता है। यह विशेष रूप से हिमालय क्षेत्र, नेपाल, दक्षिण भारत और कुछ दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों में पाया जाता है।
"रुद्राक्ष" दो शब्दों से मिलकर बना है—"रुद्र" अर्थात भगवान शिव और "अक्ष" यानी आंसू। पौराणिक मान्यता के अनुसार, जब भगवान शिव ने गहन तपस्या के बाद अपनी आँखें खोलीं, तब उनके आंसुओं से जो बूंदें धरती पर गिरीं, वे रुद्राक्ष के रूप में परिणत हो गईं।
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रुद्राक्ष के बीज पर मौजूद खाँचों को "मुख" कहा जाता है। मुखों की संख्या के अनुसार इनके प्रकार और उपयोग तय होते हैं:
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रुद्राक्ष का पेड़ हर स्थान पर आसानी से नहीं उगता, इसलिए इसकी कीमत भी उसके प्रकार और दुर्लभता पर निर्भर करती है।
आमतौर पर एक असली रुद्राक्ष की कीमत ₹4,000 से शुरू होकर कई हजारों रुपये तक जाती है, विशेषकर एक मुखी और दुर्लभ मुखी रुद्राक्षों की कीमत काफी अधिक होती है।
रुद्राक्ष न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह आध्यात्मिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने में भी सहायक है। यह प्रकृति और अध्यात्म का एक अद्भुत उपहार है, जो व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और आंतरिक शांति लाने में मदद करता है।