केसर की खेती कैसे की जाती है जानिए इसके बारे में

Published on: 14-Jul-2025
Updated on: 14-Jul-2025
Blooming saffron flowers (Kesar) with purple petals and red stigmas grown in soil
फसल मसाले फसल

केसर भारतीय कृषि में एक विशेष स्थान रखता है। भारत विश्व के प्रमुख केसर उत्पादक देशों में शामिल है। यह मसाला न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। 

भारत में केसर की खेती एक समृद्ध परंपरा रही है, जो कृषि विरासत और सांस्कृतिक पहचान से गहराई से जुड़ी हुई है।

यह लेख भारत में केसर उत्पादन से संबंधित ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, अनुकूल जलवायु, खेती की विधियाँ, कटाई की प्रक्रिया, आर्थिक योगदान और भविष्य की संभावनाओं की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत करता है। 

केसर की परंपरागत खेती से लेकर आज की आधुनिक चुनौतियों और अवसरों तक, यह लेख केसर उद्योग की एक समग्र झलक देता है।

केसर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

केसर को उगाने के लिए ठंडी और समशीतोष्ण जलवायु सबसे उपयुक्त मानी जाती है। सामान्यत: इसकी खेती समुद्र तल से 1500 से 2800 मीटर की ऊँचाई पर की जाती है। 

हालांकि केसर कुछ हद तक ठंड और बर्फ को सहन कर सकता है, लेकिन अक्टूबर-नवंबर में अधिक बर्फबारी इससे नुकसान पहुँचा सकती है। ऊँचाई वाले क्षेत्रों में फूल देर से आते हैं। फूल आने के समय अगर मौसम साफ और धूप वाला हो, तो उत्पादन बेहतर होता है।

अच्छी उपज के लिए पौधों को प्रतिदिन 8 से 11 घंटे तक सूर्यप्रकाश मिलना चाहिए। ऐसे क्षेत्र जहाँ गर्मियों में लगभग 300-400 मिमी वर्षा होती है और सर्दियों में बर्फ गिरती है, वहाँ इसकी खेती लाभकारी रहती है। दिन का तापमान 20-25 डिग्री सेल्सियस और रात का 5-10 डिग्री के बीच होना चाहिए।

केसर के लिए उपयुक्त भूमि

केसर की सफल खेती के लिए रेतीली दोमट और चिकनी मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। मिट्टी का पीएच मान 6.8 से 7.8 के बीच होना चाहिए। खेत में यदि देसी खाद के साथ रेत मिलाई जाए, तो मिट्टी की बनावट खुली और जलनिकासी योग्य बनी रहती है। 

ध्यान रहे, अधिक नमी वाली जमीन में घनकंद (Corm) सड़ सकते हैं। ऐसे में खेत में कैल्शियम कार्बोनेट की पर्याप्त मात्रा देना फसल के लिए लाभदायक होता है।

खेत की तैयारी

खेत की तैयारी अप्रैल-मई में कर लेनी चाहिए। चूंकि केसर घनकंदों से उगाया जाता है, इसलिए जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। 

खेत की जुताई 3-4 बार करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसकी खेती आमतौर पर उठे हुए बेड (2mx1mx15cm) पर की जाती है। बेड्स के चारों ओर जल निकासी के लिए नालियाँ बना लेनी चाहिए।

केसर की प्रमुख किस्में

वर्तमान में भारत में दो प्रकार की केसर प्रचलित हैं:

कश्मीरी मोंगरा केसर: यह दुनिया की सबसे महंगी केसर मानी जाती है, जिसकी कीमत 3 लाख रुपये प्रति किलो तक जाती है। 

इसकी खेती मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ और पंपोर क्षेत्रों में होती है। इसके पौधे 20-25 सेमी ऊँचाई तक बढ़ते हैं और लगभग 75,000 फूलों से 450 ग्राम केसर प्राप्त होता है।

अमेरिकन केसर: इसकी खेती कश्मीर के अलावा अन्य राज्यों में भी की जा रही है। इसकी कीमत कश्मीरी केसर से कम होती है, लेकिन यह कई प्रकार की जलवायु में उगाई जा सकती है। 

यह किस्म राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाई जा रही है और इसके पौधे 4 से 5 फीट तक ऊँचाई तक बढ़ सकते हैं।

बुवाई का समय

केसर एक बहुवर्षीय फसल है और इसे जुलाई से अगस्त के पहले सप्ताह तक बोया जाता है। इसकी बुवाई 2.5 से 5 सेमी आकार के घनकंदों से की जाती है, जो 8-10 साल तक फूल देते हैं। 

रोपाई से पहले घनकंदों को 0.5 ग्राम कॉपर सल्फेट प्रति लीटर पानी में उपचारित किया जाना चाहिए। बुवाई 6-7 सेमी गहराई पर पंक्तियों में करनी चाहिए, जिनमें पौधों के बीच 10 सेमी और पंक्तियों के बीच 20 सेमी की दूरी हो।

खाद और उर्वरक प्रबंधन

अंतिम जुताई से पहले प्रति हेक्टेयर 20 टन गोबर की खाद डालना चाहिए। इसके अलावा, 90 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और 60 किलो पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। नाइट्रोजन की एक चौथाई मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा जुताई से पहले डालें। बची हुई नाइट्रोजन को 3-4 बार में 20-20 दिन के अंतराल पर खड़ी फसल में दें।

सिंचाई प्रबंधन

केसर को सामान्यतः 300-400 मिमी वर्षा की जरूरत होती है। अगर रोपण के बाद हल्की वर्षा हो जाए, तो सिंचाई की जरूरत नहीं होती। लेकिन वर्षा न हो तो 15-15 दिन के अंतराल पर 2 से 3 बार सिंचाई करें। ध्यान रखें कि खेत में पानी न ठहरे, क्योंकि इससे फसल को नुकसान हो सकता है।

खरपतवार नियंत्रण

अच्छी उपज के लिए फसल को खरपतवार मुक्त रखना जरूरी है। इसके लिए दो से तीन बार निराई-गुड़ाई करें। फरवरी-मार्च में पौधों के चारों ओर की मिट्टी को हल्के से तोड़ देना चाहिए, जिससे पुष्पविकास ठीक से हो सके। पहली निराई जुलाई के अंत तक और दूसरी निराई अंकुरण से पहले सितंबर में करनी चाहिए।

यहाँ "केसर की कटाई और सुखाना" अनुभाग का परिष्कृत और पुनर्लिखित (paraphrased) संस्करण प्रस्तुत है, जो मूल आशय को बनाए रखते हुए भाषा को और प्रभावी एवं प्रवाहपूर्ण बनाता है:

केसर की कटाई और सुखाने की प्रक्रिया

ऊँचाई वाले क्षेत्रों में केसर के पौधों में फूलों का आना आमतौर पर सितंबर से शुरू होता है, जबकि निचले पहाड़ी इलाकों में यह प्रक्रिया अक्टूबर के मध्य से प्रारंभ होती है और दिसंबर तक जारी रहती है। केसर की फसल जुलाई-अगस्त तक परिपक्व हो जाती है, जिसके बाद इसकी कटाई की जाती है।

जब फूलों की पंखुड़ियाँ लाल या भगवा रंग में रंगने लगें, तब यह संकेत होता है कि फूल तोड़ने का सही समय आ गया है। इन फूलों की तुड़ाई प्रायः हर सुबह हाथों से की जाती है ताकि ताजगी और गुणवत्ता बनी रहे।

केसर के फूलों का रंग बैंगनी, नीला या सफेद होता है और ये फूल कीपनुमा आकृति के होते हैं। हर फूल में तीन लाल-नारंगी मादा भाग होते हैं, जिन्हें वर्तिका या तंतुओं के नाम से जाना जाता है – यही वास्तविक केसर होता है। यह केसर "अग्निशाखा" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इसका रंग जलती अग्नि की तरह चमकदार होता है।

प्रत्येक फूल में तीन पीले नर भाग भी होते हैं, लेकिन ये केसर का हिस्सा नहीं होते।

कटाई के बाद फूलों को पहले छायायुक्त स्थान में सुखाया जाता है। जब फूल अच्छी तरह सूख जाते हैं, तो उनके अंदर से मादा भाग (तंतु) निकाल लिए जाते हैं। इन तंतुओं को उनके रंग, आकार और गुणवत्ता के आधार पर विभिन्न श्रेणियों जैसे – मोगरा, लच्छी और गुच्छी में वर्गीकृत किया जाता है।

यह ध्यान देने योग्य है कि केसर अत्यंत श्रम-साध्य फसल है – लगभग 1 किलो सूखा केसर प्राप्त करने के लिए 1.5 लाख (150,000) फूलों की आवश्यकता होती है।