कपास की खेती की संपूर्ण जानकारी

By: MeriKheti
Published on: 01-Jun-2023

कपास एक प्रमुख रेशा फसल है। कपास सफेद सोने के नाम से मशहूर है। इसके अंदर नैचुरल फाइबर विघमान रहता है, जिसके सहयोग से कपड़े बनाए जाते हैं। भारत के कई इलाकों में कपास की खेती काफी बड़े स्तर पर की जाती है। इसकी खेती देश के सिंचित और असिंचित इलाकों में की जा सकती है। इस लेख में हम आपको कपास की खेती की संपूर्ण जानकारी देने वाले हैं

कपास की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

कपास की खेती भारत के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। इसकी सफलतापूर्ण खेती करने के लिए निम्नतम तापमान 21 डिग्री सेल्सियस और अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त माना जाता है।

कपास की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

कपास की खेती के लिए गहरी काली मिट्टी एवं बलुई दोमट मिट्टी उत्तम होती है। वहीं, मिट्टी में जीवांश की पर्याप्त मात्रा होनी अनिवार्य है। इसके साथ-साथ जलनिकासी की भी बेहतर व्यवस्था होनी चाहिए।

कपास की खेती के लिए प्रमुख किस्में

कपास की प्रमुख उन्नत किस्में इस प्रकार हैं

बीटी कपास की किस्में- बीजी-1, बीजी-2 कपास की संकर किस्में- डीसीएच 32, एच-8, जी कॉट हाई. 10, जेकेएच-1, जेकेएच-3, आरसीएच 2 बीटी, बन्नी बीटी, डब्ल्यू एच एच 09बीटी ये भी देखें: महाराष्ट्र में शुरू हुई कपास की खेती के लिए अनोखी मुहिम – दोगुनी होगी किसानों की आमदनी कपास की उन्नत किस्में- जेके-4, जेके-5 तथा जवाहर ताप्ती आदि

कपास की खेती के लिए बुवाई का समय तथा विधि

आमतौर पर कपास की बुवाई वर्षाकाल में मानसून आने के वक्त की जाती है। परंतु, अगर आपके पास सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं है, तो आप मई माह में कपास की बुवाई की जा सकती है। कपास की खेती से पूर्व खेत को रोटावेटर अथवा कल्टीवेटर की सहायता से मृदा को भुरभुरा कर लिया जाता है। उन्नत किस्मों का बीज प्रति हेक्टेयर 2 से 3 किलोग्राम और संकर और बीटी कपास की किस्मों का बीज प्रति हेक्टेयर 1 किलोग्राम उपयुक्त होता है। उन्नत किस्मों में कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखी जाती है। लेकिन, संकर और बीटी किस्मों में कतार से कतार की दूरी 90 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 120 सेंटीमीटर रखी जाती है। सघन खेती के लिए कतार से कतार का फासला 45 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे का फासला 15 सेंटीमीटर रखा जाता है।

कपास की खेती के लिए खाद एवं उर्वरक

कपास की उन्नत किस्मों से बंपर उपज पाने के लिए प्रति हेक्टेयर सल्फर 25 किलोग्राम, नाइट्रोजन 80-120 किलोग्राम, फास्फोरस 40-60 किलोग्राम और पोटाश 20-30 किलोग्राम देना उचित रहता है। तो उधर संकर व बीटी किस्म के लिए प्रति हेक्टेयर फास्फोरस 75 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम, सल्फर 25 किलोग्राम और नाइट्रोजन 150 किलोग्राम उपयुक्त होता है। सल्फर की पूरी मात्रा बुवाई के दौरान और नाइट्रोजन की 15 प्रतिशत मात्रा बुवाई के वक्त तथा बाकी मात्रा ( तीन बराबर भागों में) 30, 60 तथा 90 दिन के अंतराल पर देनी चाहिए। वहीं, पोटाश एवं फास्फोरस की आधी मात्रा बुआई के समय और आधी मात्रा 60 दिन के उपरांत देनी चाहिए। उत्तम पैदावार के लिए 7 से 10 टन गोबर खाद प्रति हेक्टेयर अंतिम जुताई के वक्त डालना चाहिए।

कपास की खेती के लिए निराई-गुड़ाई एवं सिंचाई

प्रथम निराई-गुड़ाई अंकुरण के 15 से 20 दिनों के पश्चात करनी चाहिए। साथ ही, अगर फसल में सिंचाई की आवश्यकता पड़ रही है, तो हल्की सिंचाई करनी चाहिए। इससे कीट एवं रोगों का संक्रमण कम रहता है एवं बेहतरीन पैदावार होती है। ये भी देखें: भारत में पहली बार जैविक कपास की किस्में हुईं विकसित, किसानों को कपास के बीजों की कमी से मिलेगा छुटकारा

कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट

गुलाबी सुंडी

कपास की फसल के लिए यदि कोई सबसे बड़ा दुश्मन कीट है, तो वह गुलाबी सुंडी है। जो अपनी पूरी जिंदगी इसके पौधे पर बिताता है। यह कपास के छोटे पौधे, कली और फूल को क्षति पहुंचाकर फसल को बर्बाद कर देता है। इसका संक्रमण प्रति वर्ष होता है।

गुलाब सुंडी का प्रबंधन

गुलाबी सुंडी की रोकथाम करने के लिए कोरोमंडल के कीटनाशक फेन्डाल 50 ई.सी. का छिड़काव करें। फेन्डाल एक बहुआयामी कीटनाशक होता है। यह कीड़े पर दीर्घकाल तक नियंत्रण रखता है। इसके अतिरिक्त, इसमें तेज व तीखी गंध होती है, जो कि वयस्क कीट को अंडा देने से रोकती है।

सफेद मक्खी

दिखने में यह कीट पीले रंग का होता है। परंतु इसका शरीर सफेद मोम जैसे पाउडर से ढंका होता है। सफेद मक्खी कीट पौधे की पत्तियों पर एक चिपचिपा तरल पदार्थ छोड़ता है और पत्तियों का रस चूसता है।

सफेद मक्खी कीट की रोकथाम कैसे करें

सफेद मक्खी कीट प्रबंधन के लिए कोरोमंडल का फिनियो कीटनाशक का उपयोग करें। फिनियो में दो अनोखी कीटनाशकों की जोड़ी है, जोकि दो विभिन्न कार्यशैली से कार्य करते हैं। इसके अतिरिक्त, यह पाइटोटॉनिक प्रभाव से युक्त है, जिसमें कीटों को तुरंत और लंबे समय तक समाप्त करने की क्षमता मौजूद है। यह सफेद मक्खी के समस्त चरणों जैसे- अंड़ा, निम्फ, वयस्क को एक बार में समाधान मुहैय्या कराता है। इसको प्रति एकड़ 400 से 500 मिली की मात्रा की आवश्यकता होती है।

माहू (एफिड) कीट

माहू (एफिड) कीट काफी ज्यादा कोमल कीट होता है। जो दिखने में मटमैले रंग का सा होता है। माहू कीट कपास की पत्तियों को खुरचकर उसके रस को चूस लेता है। इसके बाद पत्तियों पर एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ देता है। प्रबंधन- इस कीट पर काबू करने के लिए भी कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक का छिड़काव करें। यह कीटनाशक कीटों को शीघ्र और लंबे समय तक समाप्त करने में कारगर है।

तेला कीट

काले रंग का यह कीट पौधे की पत्तियों को खुरचकर उनके रस को चूस लेता है। प्रबंधन- इसकी रोकथाम करने के लिए कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

थ्रिप्स

यह रस चूसक कीट है, जो कपास की फसल को काफी ज्यादा हानि पहुंचाता है। प्रबंधन- थ्रिप्स की रोकथाम के लिए भी कोरोमंडल के फिनियो कीटनाशक का छिड़काव कारगर माना गया है।

हरा मच्छर

यह दिखने में पांच भुजाकर और पीले रंग का होता है। इस कीट के आगे के पंखों पर एक काला धब्बा मौजूद होता है। जो कपास की शिशु एवं वयस्क अवस्था में पत्तियों के रस को चूसता है, जिससे पत्तियां पीली पड़कर सूखने लग जाती हैं। ये भी देखें: इस राज्य में किसान कीटनाशक और उर्वरक की जगह देशी दारू का छिड़काव कर रहे हैं प्रबंधन- इस कीट का प्रबंधन करने के लिए पूरे खेत में प्रति एकड़ 10 पीले प्रपंच लगाने चाहिए। इसके अतिरिक्त 5 मिली.नीम तेल को 1 मिली टिनोपाल या सेन्डोविट को प्रति लीटर जल के साथ घोल बनाकर छिड़काव करना चाहिए।

मिलीगब -

इस किस्म के कीट की मादा पंख विहीन होती है। साथ ही, इसका शरीर सफेद पाउडर से ढका होता है। दरअसल, इस कीट के शरीर पर कालेरंग के पंख होते हैं। यह शाखाओं, फूल पूड़ी, तने, पर्णवृतों और घेटों का रस चूस जाता है। इसके बाद यह मीठा चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है। कीट प्रबंधन- इसकी रोकथाम के लिए लिए भी पूरे खेत के आसपास पिले प्रपंच लगाए

जानें कपास की फसल में लगने वाले प्रमुख रोगों के बारे में

पौध अंगमारी रोग

यह रोग पौधे की मूसला जड़ों को छोड़कर मूल तंतूओं को क्षति पहुंचाता है, जिसकी वजह से पौधा मुरझा जाता है। इस रोग की रोकथाम के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

मायरोथीसियम पत्ती धब्बा रोग

इस रोग की वजह से पत्तियां पर हल्के एवं बाद में बड़े भूरे धब्बे बन जाते हैं, इसके बाद पत्तियां टूटकर जमीन पर गिर जाती हैं। इससे 25 से 30 प्रतिशत पैदावार में कमी आती है। इसके नियंत्रण के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

अल्टरनेरिया पत्ती धब्बा रोग

मौसम में हद से ज्यादा नमी के वक्त पत्तियों पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बनते हैं, जिनकी वजह से अंत में पत्तियां टूटकर नीचे गिर जाती हैं। ठंड के मौसम में इस रोग की उग्रता ज्यादा हो जाती है। इसका नियंत्रण करने के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

जीवाणु झुलसा एवं कोणीय धब्बा रोग

यह रोग पौधे के वायुवीय हिस्सों को क्षति पहुंचाता है। जहां छोटे गोल धब्बे बन जाते हैं, जो कि बाद में पीले पड़ जाते हैं। यह कपास की सहपत्तियों एवं घेटों को भी नुकसान पहुंचाता है। इस रोग की वजह घेटा समय से पूर्व ही खुल जाता है, जिससे रेशा बेकार हो जाता है। इसकी रोकथाम करने के लिए अनुशंसित कीटनाशक का इस्तेमाल करें।

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