धान के दुश्मन कीटों से कैसे करें बचाव, वैज्ञानिकों ने बताए टिप्स

By: MeriKheti
Published on: 09-Sep-2022

धान की बुवाई गतिविधियों को प्रभावित करने वाले पूर्वी क्षेत्रों में मानसूनी वर्षा में इस साल काफी कमी दर्ज की गयी है। अनुमान है कि 2022-23 फसल वर्ष (जुलाई-जून) के लिए देश का चावल उत्पादन पिछले साल के रिकॉर्ड स्तर से कम से कम 10 मिलियन टन कम हो सकता है। मानसून के कमजोर होने के कारण उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड के कुछ हिस्सों में धान की बुवाई पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। सबसे बड़े चावल उत्पादक पश्चिम बंगाल में 23 में से 15 जिलों में कम बारिश हुई है, जिससे फसल के नुकसान की संभावना बढ़ गई है। लेकिन, इसके साथ ही अब धान में विभिन्न तरह के कीटों के कारण रोगों की भी आशंका बन रही है। पंजाब में पहले से ही एक रहस्यमयी वायरस के कारण धान के पौधे बौने होते जा रहे हैं, साथ ही तना छेदक कीट का प्रकोप भी झेलना पड़ सकता है। ऐसे में, कृषि वैज्ञानिकों की राय अहम् हो जाती है। यह भी पढ़ें : अकेले कीटों पर ध्यान देने से नहीं बनेगी बात, साथ में करना होगा ये काम: एग्री एडवाइजरी

ब्राउन प्लांट होपर से बचाव

पूसा के एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट्स ने अपनी सलाह में कहा है कि इस साल ब्राउन प्लांट होपर (पौधे का कत्थई फुदका - Brown Plant Hopper) जैसे कीट का आक्रमण देखने को मिल सकता है। इससे बचाव के लिए किसानों को खेत में जा कर मच्छारानुमा कीट को देखने की जरूरत है। यदि वे इसे वहाँ पाते हैं, तो किसानों को उस क्षेत्र में डाईनेटोफुरान ( Dinotefuran ) नाम की दवा का इस्तेमाल करना होगा और प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में इसका 100 ग्राम ले कर छिड़काव करना चाहिए, ताकि ब्राउन प्लांट होपर को ख़त्म किया जा सके।

बासमती की सुरक्षा

धान का आभासी कांगियारी या कंडुवा रोग यानी राइस फाल्स स्मट डिजीज (False smut of rice (Villosiclava virens) disease), जो फंगस यूस्टिलागिनोइडिया विरेन्स  के कारण होता है, वर्तमान में दुनिया में सबसे विनाशकारी चावल कवक रोगों में से एक है। राइस फाल्स स्मट रोग न केवल गंभीर उपज हानि और अनाज की गुणवत्ता में कमी का कारण बनता है, बल्कि इसके माइकोटॉक्सिन के उत्पादन के कारण खाद्य सुरक्षा को भी खतरा है। इस रोग के कई लक्षण हैं, जैसे धान की गांठों पर छोटे नारंगी दाने दिखाई देने लगते हैं, प्रभावित दानों में पीली हल्दी या काला पाउडर दिखाई देता है। दानों को छूने पर यह चूर्ण हाथ में लग जाता है। इस रोग से प्रभावित होने पर दानों का रंग फीका पड़ जाता है और उनका वजन कम हो जाता है। इस रोग के लक्षण फूल आने की अवस्था में प्रकट होते हैं, इसका समाधान यही है कि रोग ग्रस्त बीजों का प्रयोग न करें। यह भी पढ़ें : धान की खड़ी फसलों में न करें दवा का छिड़काव, ऊपरी पत्तियां पीली हो तो करें जिंक सल्फेट का स्प्रे बीज हमेशा प्रमाणित स्रोतों से ही खरीदें, फिर रोग प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें। खेतों, खेत के बांधों और सिंचाई नालियों को खरपतवारों से मुक्त रखें। इस बीमारी से बचने के लिए बुवाई से पहले बीज को 52 डिग्री सेंटीग्रेड पर 10 मिनट तक उपचारित करें इसके अलावा फफूंदनाशक दवाओं से भी बीजों का उपचार किया जा सकता है। रोकथाम के लिए पिकोक्सीस्ट्रोबिन 7.05% एससी, प्रोपिकोनाजोल 11.7% एससी जो बाजार में गैलीलियो (ड्यूपॉन्ट) के रूप में उपलब्ध है, इसको 360 मिली 200 लीटर पानी में 10 दिनों के अंतराल पर फूल आने की अवस्था में दो बार स्प्रे करें। दवाओं का छिड़काव सुबह या शाम को ही सूर्योदय से पहले करें।

तना छेदक से कैसे बचाएं धान

तना छेदक यानी स्टेम बोरर (stem borer) की छह प्रजातियां चावल पर हमला करती हैं। तना छेदक धान को अंकुर से लेकर परिपक्वता तक किसी भी अवस्था में नष्ट कर सकते हैं। तना छेदक लार्वा पौधों के तना और जड़ पर छेद करते हैं। तनों और टिलर पर छोटे छेद हो तो इसका अर्थ है की आपकी फसल पर इसका आक्रमण हो चुका है, इसके लिए आपको धान की प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए। यह भी पढ़ें : धान की उन्नत किस्में अपनाकर छत्तीसगढ़ के किसान हो रहे मजबूत सीड बेड और ट्रांसप्लांट के समय इसके अंडे को हाथ से तोड़कर नष्ट कर दें। समय-समय पर सिंचाई के पानी का स्तर बढ़ाएं ताकि पौधे के निचले हिस्से में जमा अंडे जलमग्न हो जाएं। रोपाई से पहले, बीज की क्यारी से खेत तक अंडों के ले जाने को कम करने के लिए पत्ती के उपरी हिस्से को काट लें। जैविक नियंत्रण एजेंटों को प्रोत्साहित करें जैसे ब्रोकोनिड, यूलोफिड, मायमैरिड, स्केलिओनिड, चेल्सीड, टेरोमेलिड और ट्राइकोग्रामाटिड ततैया, चींटियाँ, लेडी बीटल, स्टैफिलिनिड बीटल, ग्रिलिड, ग्रीन मीडो टिड्डा,और मिरिड, फोरिड और प्लैटिसोमैटिड मक्खियाँ, बेथिलिड, ब्रोकोनिड और एलास्मिड।

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