धान की कटाई के बाद भंडारण के लिए कुछ आवश्यक सुझाव | Merikheti

धान की कटाई के बाद भंडारण के वैज्ञानिक तरीका

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हमारा देश विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धान उत्पादक देश है। हमारे देश में 50 प्रतिशत धान का इस्तेमाल खाने के रूप में होता है। धान की खेती की देखभाल समय से नहीं करने पर काफी नुकसान होता है। विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार धान की फसल की बुआई, सिंचाई, कटाई, मड़ाई, गहाई और भंडारण समय और सही तरीके ने नहीं करने से उत्पादन का 10 प्रतिशत का नुकसान होता है। इसमें थोड़ी सी लापरवाही भंडारण के समय हो जाये तो यह नुकसान काफी बढ़ जाता है। इसलिये किसान भाइयों को चाहिये कि वो धान के भंडारण के समय वैज्ञानिक तरीका अपनायें तो होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। आइये जानते हैं कि धान के भंडारण के समय कौन-कौन सी सावधानियां बरती जानी चाहिये।

Content

  1. क्यों होती है भंडारण की आवश्यकता
  2. धान के भंडारण की प्रथम तैयारी
  3. भंडार गृह के लिए उचित स्थान
  4. भंडार गृह कैसा बनवायें
  5. कीटाणु रहित गोदाम बनवाने के लिए करें ये काम
  6. पुरानी बोरियों का इस तरह से करें इस्तेमाल
  7. कीट प्रबंधन के लिए करें ये काम
  8. बोरों को कीटाणु रहित बनाने के लिए करें ये उपाय
  9. हवा का रुख देखकर करें भंडारण

क्यों होती है भंडारण की आवश्यकता

पूरे साल पर धान यानी चावल मिलता रहे। इसके लिए धान के भंडारण की आवश्यकता होती है। इसके लिए किसान भाइयों को चाहिये कि धान का उचित तरीके से भंडारण करें। भंडारण से पूर्व नमी की मात्रा सुरक्षित कर लें। लम्बी अवधि के लिए धान के भंडारण के लिए उसमें नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से कम नहीं होनी चाहिये। यदि कम समय के लिए भंडारण करना है तो धान में नमी का प्रतिशत 14 तक चलेगा।

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धान के भंडारण की प्रथम तैयारी

धान के भंडारण करने के लिए एक अच्छी जगह तलाश करनी चाहिये। इस स्थान पर भंडार गृह बनाने से पहले जमीन को कीटमुक्त कर लेना चाहिये। उसके बाद भंडारण की तैयारी करनी चाहिये।

भंडार गृह के लिए उचित स्थान

धान के भंडार गृह के निर्माण के लिए उचित स्थान एक ऊंची जगह होनी चाहिये।जहां पर पानी न भरता हो और बरसात आदि का पानी तत्काल निकल जाता हो। इसके साथ ही इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिये कि भंडार गृह में नमी व अत्यधिक गर्मी, धान नाशक कीट, चूहों तथा खराब मौसम का प्रभाव न होता हो। भंडार गृह में जमीन से 20 से 25 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर लकड़ी से प्लेटफार्म बनाकर उसमें बोरियों की छल्लियों को लगायें ताकि जमीन से सीलन न आ सके और अनाज को नुकसान से बचाया जा सके।

 भंडार गृह कैसा बनवायें

भंडारण से पहले या बाद में भंडारित कीटों से बचाव करने के लिए भी वैज्ञानिक प्रबंध करने जरूरी हैं। भंडारण के लिए पारंपरिक रूप से विभिन्न आकारों और विभिन्न सामग्रियों के बने बड़े बड़े पात्र प्रयोग किये जाते हैं। इन्हें कोठी, कुठला आदि ग्रामीण भाषा में कहा जाता है। ये पात्र लकड़ी, मिट्टी, बांस, जूट की बोरियों, ईंटों, कपड़ों आदि उपलब्ध वस्तुओं से बनाये जाते हैं। इस तरह के पात्रों में थोडे समय के लिए धान का भंडारण किया जा सकता है जबकि लम्बे समय के लिए भंडारण करने के लिए आधुनिक भंडार गृह बनवाने चाहिये। लम्बी अवधि के लिए धान के भंडारण के लिए पूसा कोठी, धातुओं की कोठी, साइलो स्टील जैसे आधुनिक भंडारण गृह आदि का प्रयोग किया जाता है। इसमें धान को लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

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कीटाणु रहित गोदाम बनाने के लिए करें ये काम

आम तौर पर भवनों में बनने वाले भंडार गृह में धान के बोरों के दो ढेरों के बीच उचित हवा का संचारण के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध करानी चाहिये। साफ मौसम के दौरान उचित हवा संचारण होनी चाहिये जबकि वर्षा के मौसम से इससे बचना चाहिये। गोदाम मं धान या चावल के सुरक्षित भंडारण से पहले उसे उपयुक्त धुआं देकर कीटाणु रहित करना चाहिये। भंडार गृह को अच्छीतरह से साफ कर लेना चाहिये। वहां पर पुराने दाने नहीं रहने देना चाहिये। भंडार गृह की दरारों व छेदों को अच्छी तरह से भर देना चाहिये।

पुरानी बोरियों का इस तरह से करें इस्तेमाल

भंडारण के दौरान धान के नुकसान को कम करने के लिए रोगमुक्त बीट्वील पटसन के थैलों में सूखे हुए धान रखने चाहिये। केवल नयी व सूखी बोरियों का ही धान को रखने में प्रयोग करना चाहिये। यदि पुरानी बोरियों में ही धान की फसल को रखा जाना जरूरी हो तब उस दशा में पुरानी बोरियों को एक प्रतिशत मालाथियान के उबलते हुए घोल में 3 से 4 मिनट तक भिगोएं और फिर उसको धूप में अच्छी तरह से सुखा कर उसमें धान को रखें। यदि विद्युत चालित यंत्र से भी बोरियों को सुखाया जा सकता है तो उसे सुखा लें लेकिन यह तय कर लें कि उनमे नमी न रह जाये।

कीट प्रबंधन के लिए करें ये काम

भंडारण गृह में कीट प्रबंधन करना बहुत जरूरी होता है। इसके लिए गोदाम में साधारण मौसम में प्रत्येक 15 दिन में प्रति 100 वर्ग मीटर क्षेत्र में मालाथियान (Malathiyan) (50 प्रतिशत ईसी) 10 लीटर पानी में एक लीटर मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। सर्दियों के दिनों मे इस तरह के घोल का छिड़काव 21 दिन में एक बार अवश्य कर देना चाहिये।

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यदि किसी कारण से मालाथियान न मिल सके तो उसकी जगह पर किसान भाई 40 ग्राम डेल्टामेथ्रिन (Deltamethrin) (2.5 प्रतिशत) चूरन को एक लीटर पानी में मिलाकर  तीन महीने में प्रत्येक 100 वर्ग मीटर के क्षेत्र में छिड़काव करना चाहिये। इसके अलावा डीडीवीपी (DDVP) (75 प्रतिशत ईसी) () को 150 लीटर पानी में एक लीटर मिलाकर छिड़काव करना चाहिये। इन दोनों कीटनाशकों का छिड़काव करते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि इनका छिड़काव प्रति 100वर्ग मीटर में कम से कम तीन लीटर हो।

बोरों को कीटाणु रहित बनाने के लिए करें ये उपाय

गोदाम या भंडार गृह में बोरियों में धान की फसल को रखने से पहले दूसरी जगह पर बोरों का धूम्रीकरण कर देना चाहिये। उसके बाद 5 से 7 दिनों के लिए 9 ग्राम प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से एलुमिनियम फास्फाइड (Aluminium Phosphide) से धुआं दें।

केवल पॉलीथिन से ढके गोदाम में किसान भाइयों को चाहिये कि धान की बोरियों में एलुमिनियम फास्फाइड से 10.8 ग्राम प्रति मीट्रिक टन की दर से धूम्रीकरण करें। पुरानी व नई बोरियों को अलग-अलग रखें और उनमें साफ सफाई का पूरा ध्यान रखें। जिससे दानों में किसी प्रकार का रोग न लग सके।

हवा का रुख देखकर करें भंडारण

धान का भंडारण करते समय हवा के रुख को ध्यान से देखना चाहिये। यदि पुरवैया हवा चल रही हो तब धान की फसल का भंडारण नहीं करना चाहिये।

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