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कड़कनाथ

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

एकीकृत कृषि प्रणाली से खेत को बना दिया टूरिज्म पॉइंट

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम मॉडल (Integrated Farming System Model) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली मॉडल (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee Model) को बिहार के एक नर्सरी एवं फार्म में नई दशा-दिशा मिली है। पटना के नौबतपुर के पास कराई गांव में पेशे से सिविल इंजीनियर किसान ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग (INTEGRATED FARMING) को विलेज टूरिज्म (Village Tourism) में तब्दील कर लोगों का ध्यान खींचा है। कराई ग्रामीण पर्यटन प्राकृतिक पार्क नौबतपुर पटना बिहार (Karai Gramin Paryatan Prakritik Park, Naubatpur, Patna, Bihar) महज दो साल में क्षेत्र की खास पहचान बन चुका है।

लीज पर ली गई कुल 7 एकड़ भूमि पर खान-पान, मनोरंजन से लेकर इंटीग्रेटेड फार्मिंग के बारे में जानकारी जुटाकर प्रेरणा लेने के लिए काफी कुछ मौजूद है। एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती किसानी को ग्रामीण पर्यटन (Village Tourism) का केंद्र बनाने के लिए सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने क्या कुछ जतन किए, इसके बारे में जानने से पहले यह समझना जरूरी है कि आखिर इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (ekeekrt ya samekit krshi pranaalee) क्या है।

एकीकृत या समेकित कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)

एकीकृत कृषि प्रणाली किसानी की वह पद्धति है जिसमे, कृषि के विभिन्न घटकों जैसे फसल पैदावार, पशु पालन, फल एवं साग-सब्जी पैदावार, मधुमक्खी पालन, कृषि वानिकी, मत्स्य पालन आदि तरीकों को एक दूसरे के पूरक बतौर समन्वित तरीके से उपयोग में लाया जाता है। इस पद्धति की खेती, प्रकृति के उसी चक्र की तरह कार्य करती है, जिस तरह प्रकृति के ये घटक एक दूसरे के पूरक होते हैं। 

इसमें घटकों को समेकित कर संसाधनों की क्षमता, उत्पादकता एवं लाभ प्रदान करने की क्षमता में वृद्धि स्वतः हो जाती है। इस प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि इसमें भूमि, स्वास्थ्य के साथ ही पर्यावरण का संतुलन भी सुरक्षित रहता है। हम बात कर रहे थे, बिहार में पटना जिले के नौबतपुर के नजदीकी गांव कराई की। यहां बिहार स्टेट हाउसिंग बोर्ड में कार्यरत सिविल इंजीनियर दीपक कुमार ने समेकित कृषि प्रणाली को विलेज टूरिज्म का रूप देकर कृषि आय के अतिरिक्त विकल्प का जरिया तलाशा है।

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सफलता की कहानी अब तक

जैसा कि हमने बताया कि, इंटीग्रेटेड फार्मिंग में खेती के घटकों को एक दूसरे के पूरक के रूप मेें उपयोग किया जाता है, इसी तर्ज पर इंजीनियर दीपक कुमार ने सफलता की इबारत दर्ज की है। उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर, पिछले साल 2 जून 2021 को 7 एकड़ लीज पर ली गई जमीन पर अपने सपनों की बुनियाद खड़ी की थी। बचपन से कृषि कार्य में रुचि रखने वाले दीपक कुमार इस भूमि पर समेकित कृषि के लिए अब तक 30 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम के उदाहरण के लिए उनका फार्म अब इलाके के साथ ही, देश के अन्य किसान मित्रों के लिए आदर्श मॉडल बनकर उभर रहा है। उनके फार्म में कृषि संबंधी सभी तरह की फार्मिंग का लक्ष्य रखा गया है। 

इस मॉडल कृषि फार्म में बकरी, मुर्गा-मुर्गी, कड़कनाथ, मछली, बत्तख, श्वान, विलायती चूहों, विदेशी नस्ल के पिग, जापानी एवं सफेद बटेर संग सारस का लालन-पालन हो रहा है। मुख्य फसलों के लिए भी यहां स्थान सुरक्षित है। आपको बता दें प्रगतिशील कृषक दीपक कुमार ने इंटीग्रेटेड फार्मिंग के इन घटकों के जरिए ही विलेज टूरिज्म का विस्तार कर कृषि आमदनी का अतिरिक्त जरिया तलाशा है। मछली एवं सारस के पालन के लिए बनाए गए तालाब के पानी में टूरिस्ट या विजिटर्स नौकायन का लुत्फ ले सकते हैं।

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इसके अलावा यहां तैयार रेस्टॉरेंट में वे अपनी पसंद की प्रजाति के मुर्गा-मुर्गी और मछली के स्वाद का भी लुत्फ ले सकते हैं। इस फार्म के रेस्टॉरेंट में कड़कनाथ मुर्गे की चाहत विजिटर्स पूरी कर सकते हैं। इलाके के लोगों के लिए यह फार्म जन्मदिन जैसे छोटे- मोटे पारिवारिक कार्यक्रमों के साथ ही छुट्टी के दिन सैरगाह का बेहतरीन विकल्प बन गया है।

अगले साल से होगा मुनाफा

दीपक कुमार ने मेरीखेती से चर्चा के दौरान बताया, कि फिलहाल फार्म से होने वाली आय उसके रखरखाव में ही खर्च हो जाती है। इससे सतत लाभ हासिल करने के लिए उन्हें अभी और एक साल तक कड़ी मेहनत करनी होगी। नौकरी के कारण कम समय दे पाने की विवशता जताते हुए उन्होंने बताया कि पर्याप्त ध्यान न दिए जाने के कारण लाभ हासिल करने में देरी हुई, क्योंकि वे उतना ध्यान फार्म प्रबंधन पर नहीं दे पाते जितने की उसके लिए अनिवार्य दरकार है।

हालांकि वे गर्व से बताते हैं कि उनकी पत्नी उनके इस सपने को साकार करने में हर कदम पर साथ दे रही हैं। उन्होंने अन्य कृषकों को सलाह देते हुए कहा कि जितना उन्होंने निवेश किया है, उतने मेंं दूसरे किसान लगन से मेहनत कर एकीकृत किसानी के प्रत्येक घटक से लाखों रुपए की कमाई प्राप्त कर सकते हैं।

इनका सहयोग

उन्होंने बताया कि वेटनरी कॉलेज पटना के वीसी एवं डॉक्टर पंकज से उनको समेकित कृषि के बारे में समय-समय पर बेशकीमती सलाह प्राप्त हुई, जिससे उनके लिए मंजिल आसान होती गई। वे बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट पर उन्होंने किसी और से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं जुटाई है एवं अपने स्तर पर ही आवश्यक धन राशि का प्रबंध किया।

युवाओं को जोड़ने की इच्छा

समेकित कृषि को अपनाने का कारण वे बेरोजगारी का समाधान मानते हैं। उनका मानना है कि ऐसे प्रोजेक्ट्स के कारण इलाके के बेरोजगारों को आमदनी का जरिया भी प्राप्त हो सकेगा।

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नए प्रयोग

आधार स्थापना के साथ ही अब दीपक कुमार के कृषि फार्म पर गोबर गैस प्लांट ने काम करना शुरू कर दिया है। उन्होंने बताया कि उनके फार्म पर गाय, बकरी, भैंस, सभी पशुओं के प्रिय आहार, सौ फीसदी से भी अधिक प्रोटीन से भरपूर अजोला की भी खेती की जा रही है। इस चारा आहार से पशु की क्षमता में वृद्धि होती है।

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आपको बता दें अजोला घास जिसे मच्छर फर्न (Mosquito ferns) भी कहा जाता है, जल की सतह पर तैरने वाला फर्न है। अजोला अथवा एजोला (Azolla) छोटे-छोटे समूह में गठित हरे रंग के गुच्छों में जल में पनपता है। जैव उर्वरक के अलावा यह कुक्कुट, मछली और पशुओं का पसंदीदा चारा भी है। इसके अलावा समेकित कृषि प्रणाली आधारित कृषि फार्म में हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) तकनीक द्वारा निर्मित हरा चारा तैयार किया जा रहा है। 

इसमेें गेहूं, मक्का का चारा तैयार होता है। आठ से दस दिन की इस प्रक्रिया के उपरांत चारा तैयार हो जाता है। अनुकूल परिस्थितियों में हाइड्रोपोनिक्स चारे में 9 दिन में 25 से 30 सेंटीमीटर तक वृद्धि दर्ज हो जाती है। इस स्पेशल कैटल डाइट में प्रोटीन और पाचन योग्य ऊर्जा का प्रचुर भंडार मौजूद है। उनके अनुभव से वे बताते हैं कि इस प्रक्रिया में लगने वाला एक किलो गेहूं या मक्का तैयार होने के बाद दस किलो के बराबर हो जाता है। अल्प लागत में प्रोटीन से भरपूर तैयार यह चारा फार्म में पल रहे प्रत्येक जीव के जीवन चक्र में प्राकृतिक रूप से कारगर भूमिका निभाता है।

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हाइड्रोपोनिक्स (Hydroponics) अर्थात जल संवर्धन विधि से हरा चारा तैयार करने में मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इसे केवल पानी की मदद से अनाज उगाकर निर्मित किया जा सकता है। इस विधि से निर्मित चारे को ही हाइड्रोपोनिक्स चारा कहते हैं। यदि आप भी इस फार्म के आसपास से यदि गुजर रहे हों तो यहां समेकित कृषि प्रणाली में पलने बढ़ने वाले जीवों और उनके जीवन चक्र को समझ सकते हैं। 

अन्य कृषि मित्र इस तरह की खेती से अपने दीर्घकालिक लाभ का प्रबंध कर सकते हैं। (फार्म संचालक दीपक कुमार द्वारा दूरभाष संपर्क पर दी गई जानकारी पर आधारित, आप इस फार्म के बारे में फेसबुक लिंक पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।) 

संपर्क नंबर - 8797538129, दीपक कुमार 

फेसबुक लिंक- https://m.facebook.com/Karai-Gramin-Paryatan-Prakritik-Park-Naubatpur-Patna-Bihar-100700769021186/videos/1087392402043515/

यूट्यूब लिंक-https://youtube.com/channel/UCfpLYOf4A0VHhH406C4gJ0A

इस तकनीक का प्रयोग कर बिना मुर्गीफार्म, मुर्गीपालक कमा सकते हैं बेहतर मुनाफा

इस तकनीक का प्रयोग कर बिना मुर्गीफार्म, मुर्गीपालक कमा सकते हैं बेहतर मुनाफा

अभी के समय में किसान खेती के साथ साथ अब पशुपालन में ज्यादा ध्यान दे रहे हैं और आपको जान कर हैरानी होगी कि आज के समय में किसानों के बीच पशु पालन में मुर्गी पालन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हो रहा है। 

लेकिन आज भी किसान इस बात से बहुत हैरान हैं कि इस व्यवसाय में काफी लागत है, जैसे की मुर्गी फार्म बनाने के लिए जमीन और पैसा। लेकिन आज इस लेख में जो मैं बताने जा रहा हूं उसको जान कर आप हैरान हो जाएंगे, 

अब आप कम लागत में भी अपने घर के पास बैकयार्ड में भी मुर्गी पालन कर सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते है। यह किसानों के लिए काफी किफायती साबित हो रहा है।

अगर आप भी अभी तक परेशान थे कि मुर्गीपालन के लिए बहुत जगह और पैसे की आवश्यकता है, तो अब इस बात को दिमाग से निकाल दें। अब कम जगह में मुर्गी पालन कर भी कमा सकते हैं पैसा। 

अगर आपके घर के बगल में है खाली जगह, तो वहाँ पर आप मुर्गियों के लिए बेड़े बना सकते हैं और उसमें मुर्गी पालन कर सकते हैं।

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आपको यह भी बता दें की घर के आस पास जगह होने से घरेलू लोग भी आसानी से उसमे काम कर सकते हैं और इससे आपका मजदूरी भी बचेगा जिससे आपको मुनाफा होगा। 

लेकिन इन सब बातों के अलावा जो सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है मुर्गी के सही नस्लों को चुनना, जो आपके बेड़े में आसानी से रह सकें व उसको आसानी से पाला जा सके। 

गौरतलब है की पुरे भारत में मुर्गी के सैकड़ो प्रकार की नस्ल पाली जाती हैं। लेकिन आज कल जो सबसे प्रचलित और सबसे जयादा मुनाफा देने वाली नस्ल कड़कनाथ, केरी श्याम, स्वरनाथ, ग्रामप्रिये, वनराज आदि हैं। 

अगर आप भी मुर्गी पालन से कमाना चाहते हैं तो इसी सब नस्ल के मुर्गी का पालन करें। आपको यह भी बता दें की मुर्गीपालन को बढ़ावा देने के लिए सरकार के तरफ से बहुत सारे ऋण की भी सुविधा उपलब्ध है। 

साथ ही आपको यह जान कर हैरानी होगी की ये जो ऋण है उसका दर भी बहुत कम है और उसमे अनेक प्रकार के सब्सिडी की भी सुविधा सरकार के तरफ से किसानों को दी जा रही है।

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क्या क्या है सब्सिडी

आपको बता दें की मुर्गी पालन पे नेशनल लाइवस्टॉक मिशन स्कीम के तहत किसानो को 50 प्रतिशत तक का अनुदान दिया जाता है। इसके आलावा नाबार्ड के द्वारा भी मुर्गी पालन के लिए किसानों को बेहतर सब्सिडी की सुविधा दी जाती है।

इस सब्सिडी के अंतर्गत मुर्गी के स्वास्थ से लेकर मुर्गीफार्म के सुरक्षा तक पर सरकार के द्वारा बेहतर सब्सिडी दी जाती है।

कम लागत में बम्पर मुनाफा कम सकते हैं किसान

उपरोक्त सभी नस्लों के अलावा देसी मुर्गीपालन पर भी किसानों को काफी ध्यान है, जिसमें किसान देसी मुर्गी के एक चूजे को लगभग 50 रूपए में खरीदते हैं और वह मुर्गी साल भर बाद लगभग 200 अंडे देती है। 

अभी एक अंडे का कीमत कम से कम 7 रूपए है, अगर किसान इस तरीके से अच्छी खासी संख्या में मुर्गीपालन करते हैं, तो सालाना लाखों कमा सकते हैं। जब वह अंडा देना बंद कर दे तो इसके मांस को बेचकर भी अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं।

कड़कनाथ पालें, लाखों में खेलें

कड़कनाथ पालें, लाखों में खेलें

इस दौर में कड़कनाथ(Kadaknath, also called Kali Masi) पालना आसान हो गया है। आप कड़कनाथ पाल कर अपनी आर्थिक हालत सुधार सकते हैं, महीने में हजारों कमा सकते हैं। कहते हैं, मूंछें हों तो नत्थूलाल की तरह वरना ना हो। इसे थोड़ा बदल लें तो कह सकते हैं कि मुर्गा खाना है, तो कड़कनाथ खाओ, वरना ना खाओ। दरअसल, कड़कनाथ ने पूरे मार्केट को हिला कर रख दिया है। यह मुर्गे की एक ऐसी प्रजाति है, जिसने पूरे बिजनेस मॉडल को बदल कर रख दिया है। इसकी कीमत तो ज्यादा है ही, पर जो स्वाद है, उसका क्या कहना। आप कड़कनाथ का मीट खाएं और बकरे का मटन, मुकाबला टक्कर का रहेगा।

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कई रोगों में लाभकारी

कड़कनाथ का महत्व इसलिए ज्यादा हो चला है, क्योंकि मेडिकल साइंस ने भी इसके मीट को अप्रूव किया है। कहा जाता है, कि अगर आपको हाई बीपी है, शुगर है, कमजोरी है और मन मिचलाता है, तो कड़कनाथ का मीट आपको फायदा करेगा। ऐसा कई लोगों का कहना है, कि कड़कनाथ का मीट खाने के बाद उनका बीपी, शुगर आदि कंट्रोल में रहता है। अब इसमें कितनी सच्चाई है, ये तो वही बता सकते हैं जो इसे खाते हैं। लेकिन, इसकी बढ़ती डिमांड यही इंगित करती है कि मुर्गे में दम है।

धोनी भी पाल रहे हैं कड़कनाथ

मशहूर क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी ने भी अपने फार्म हाउस में कड़कनाथ रखा है। पहले 100 चूजे लाए गए थे, अब इनकी संख्या सैकड़ों में हो गई है। कड़कनाथ का स्वाद ऐसा है, कि धोनी के फार्महाउस पर लोग लाइन लगाए रहते हैं कड़कनाथ के लिए और उन्हें पता चलता है माल खत्म हो गया है। दरअसल, इसके मीट का टेस्ट ही ऐसा है।

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रेट थोड़ा ज्यादा है

कड़कनाथ का रेट थोड़ा ज्यादा है, यह प्रति मुर्गा 1000 से 1600 रुपये तक बिकता है। अमूमन एक मुर्गा 900 ग्राम से लेकर 1500 ग्राम तक का होता है। उसी के हिसाब से इसका रेट वैरी करता है, आम तौर पर अगर आप देसी मुर्गा भी खाते हैं, तो उसका रेट 400 से 500 रुपये प्रति किलो है। वैसे, कॉकरेल आपको 300 रुपये प्रति किलो भी मिल जाएगा और बॉयलर 140 से 150 रुपये प्रति किलो पर, जो टेस्ट कड़कनाथ का है, उसका कोई जवाब नहीं।

कैसे पहचानें कड़कनाथ को

कड़कनाथ का खून, मीट सब काला होता है, इसकी ब्रीड पूरी तरह काली है। अगर कोई कड़कनाथ कह कर आपको लाल खून वाला मुर्गा दे रहा है तो सतर्क रहें।

Kadaknath Hen

कैसे करें कड़कनाथ का पालन

कड़कनाथ को पालना थोड़ा कठिन है, पहले तो आप मन बना लें कि कड़कनाथ ही पालना है। जब मन बन जाए तो मध्य प्रदेश या छत्तीसगढ़ चले जाएं, वहां इसके चूजे आपको ठीक रेट पर मिल जाएंगे। चूजों को कैसे 30 दिनों तक रखना है, इसकी बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है। उसे बहुत ध्यान से देखें फिर, चूजा लाने के पहले ट्रेनिंग में बताए गए तरीके से ही आप पोल्ट्री फार्म बनाएं।

कड़कनाथ (Kadaknath; Kali Masi)

कड़कनाथ (Kadaknath; Kali Masi)

ध्यान रखें, कड़कनाथ की ब्रीड को खुला पसंद है, इसलिए अगर आप ठीक-ठाक जमीन वाले हैं, आपके पास खुली जमीन है तो उसे ही इस्तेमाल करें। शुरुआती निवेश अगर आप 50000 रुपये से भी करते हैं, तो काम ठीक-ठाक चल निकलेगा। इसमें चूजों का दाना-पानी आ जाएगा, बढ़ते वक्त के साथ आपको ज्यादा निवेश करने की जरूरत पड़ेगी। उसके लिए आप बैंकों से भी संपर्क कर सकते हैं। बहुत कम इंट्रेस्ट रेट पर आपको आसानी से मुर्गापालन के लिए कोई भी बैंक लोन दे देगी।

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विभिन्न राज्य सरकारें मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाओं की शुरुआत की हैं। इससे किसानों के द्वारा स्थानीय स्तर पर मुर्गी पालन (पोल्ट्री फार्मिंग, Poultry farming)या कुक्कुट पालन(kukkut paalan) का व्यवसाय पिछले एक दशक में काफी तेजी से बढ़ा है।

 
कड़कनाथ मुर्गे का पालन कर जाने कैसे लॉक डाउन में हो गया यह किसान मालामाल

कड़कनाथ मुर्गे का पालन कर जाने कैसे लॉक डाउन में हो गया यह किसान मालामाल

नॉनवेज खाने वाले लोग यह अच्छी तरह से जानते हैं कि चिकन का स्वाद बेहद अच्छा लगता है. लेकिन अगर स्वाद के साथ-साथ यह गुणकारी भी हो तो क्या कहना.यहां पर हम कड़कनाथ मुर्गे की बात कर रहे हैं.आजकल बाजार में कड़कनाथ मुर्गी का मांस और अंडे दोनों ही काफी ज्यादा डिमांड में है जिसके कारण बहुत से युवा कड़कनाथ पालन की ओर रुख कर रहे हैं. आज हम आपको मध्य प्रदेश के एक किसान विपिन शिवहरे के बारे में बताने वाले हैं जिन्होंने लॉकडाउन के समय में कड़कनाथ पालन करना शुरू किया था. अब उनका यह व्यवसाय अच्छा खासा फल फूल गया है और वह से बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं. विपिन से हुई बातचीत में पता चला है कि उन्होंने यह व्यवसाय ₹2 लाख की लागत लगाकर शुरू किया था. आज उनके पास लगभग 12000 मुर्गियां हैं और वह इनको बहरीन जैसे बाहरी देशों में भी निर्यात कर रहे हैं. 

लॉकडाउन के समय शुरू किया व्यवसाय

विपिन शिवहरे के लिए यह सफर आसान नहीं रहा है. एक गरीब परिवार ताल्लुक रखने वाले ने केवल 12वीं तक पढ़ाई की है और उसके बाद वह मुंबई नौकरी की तलाश में निकल गई थी. मुंबई में उन्होंने 16 सो रुपए प्रति माह के वेतन से फूड पैकर के तौर पर नौकरी शुरू की. बाद में उन्होंने वेटर और मैनेजर के तौर पर पदोन्नति पाते हुए ₹16000  प्रतिमाह की आमदनी कम आना शुरू कर दिया था. विपिन बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने अपनी बहन और भाई दोनों की शादी करवा दी थी और  गांव में एक छोटा सा घर बनाने में भी कामयाब रहे. 

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लेकिन लाखों की तरह उनके लिए भी कोविड-19 बहुत बड़ी समस्या सामने लेकर आए और उन्हें नौकरी से हाथ धोना पड़ा. नौकरी छूट जाने के बाद वह मुंबई में ही रुके रहे और उन्होंने सब्जियां आदि बेचने का काम करते हुए किसी तरह अपना गुजर बसर किया लेकिन अंततः उन्हें गांव में वापस लौट कर ही आना पड़ा. विपिन के एक दोस्त कड़कनाथ पालन पहले से करते आ रहे थे तो उन्हें उसका ख्याल आया और समय के अनुसार कड़कनाथ मांस की बढ़ती हुई डिमांड के कारण उन्होंने भी यह व्यवसाय अपनाने का फैसला किया. पैसों की तंगी के कारण उन्हें बैंक से ₹200000 उधार में लेने पड़े और विपिन ने बताया कि कड़कनाथ पालन की पूरी जानकारी दी उन्होंने इंटरनेट के माध्यम से ही प्राप्त की.मध्य प्रदेश राज्य के झाबुआ और धार जिलों में भील और भिलाला में आदिवासी समुदायों द्वारा कड़कनाथ मुर्गियों को पाला जाता है.

कड़कनाथ चिकन स्वाद में तो बेहतरीन होता ही है साथ ही साथ इस के मांस की क्वालिटी और सेहत के लिए उसका गुणकारी होना भी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है. सेहत के लिए अच्छा होने के कारण देश के बहुत से राज्यों में इसकी डिमांड आए दिन बढ़ रही है. विपिन ने अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए शुरू में झाबुआ से कड़कनाथ के पक्षी खरीदे जो उसे ₹900 प्रति पक्षी के हिसाब से दिए गए. उन्होंने बताया कि शुरू शुरू में पैसों की कमी के कारण चूजों की देखभाल करना भी काफी मुश्किल हो रहा था.बहुत बार ऐसी स्थिति भी सामने आई जब उन्हें केवल अपने पक्षियों को खाना खिलाने के लिए भी उधार पैसा  लेना पड़ा.  ऐसे में विपिन ने एक बार अपने व्यवसाय के बारे में यूट्यूब पर वीडियो अपलोड किया और कुछ ही दिनों में ओडिशा के एक बहुत बड़े व्यापारी ने उन्हें फोन किया.  इस व्यापारी ने विभिन्न से मुर्गे खरीदने को लेकर एक डील की और एडवांस में उसे ₹100000 भी दिए. 

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कितने समय में तैयार हो जाते हैं कड़कनाथ मुर्गे

कड़कनाथ मुर्गे चार से छह महीने के अंतराल में बिक्री के लिए तैयार हो जाते हैं. यह मुर्गे 5 महीने में लगभग डेढ़ किलो वजन तक पहुंच जाते हैं. ज्यादातर नर्क कड़कनाथ का वजन डेढ़ किलोग्राम के आसपास रहता है तो वहीं पर मुर्गियां 1 से 1.2 किलोग्राम वजन पर पहुंच जाती है.कड़कनाथ मुर्गी के चूजे को भी बेचा जा सकता है और विपिन भी ऐसा करते हैं. उन्होंने बताया कि वह कड़कनाथ चूजे से लगभग ₹500 में बेचते हैं. और महीने भर में वह लगभग 3,000 चूजे बेच देते हैं. पूरी तरह से व्यस्क मुर्गों को बेचकर वह लगभग महीने में ₹40000 कमा लेते हैं. इस तरह से विपिन द्वारा लिया गया एक सही कदम उनके लिए बहुत ही बेहतरीन साबित हुआ और वह आज आर्थिक रूप से बेहद सक्षम है और अच्छी तरह से अपना व्यवसाय आगे बढ़ा रही हैं.