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नींबू

नींबू की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

नींबू की खेती की सम्पूर्ण जानकारी

किसान भाइयों नींबू का इस्तेमाल दवाओं, सौंदर्य प्रसाधनों व टूथपेस्ट, साबुन आदि के निर्माण में किया जाता है। इसलिये इसकी व्यावसायिक खेती करके कमाई की जा सकती है। दूसरी बात यह है कि नीबू कम उपजाऊ वाली मिट्टी में कहीं भी उगाया जा सकता है। नीबू की खेती में शुरुआत में जो लागत लगती है, वही लगती है, उसके बाद तो इसकी फसल 10-15 साल तक साल में दो या तीन बार तक होती है। इसलिये इसकी खेती फायदेमंद होती है। आइये जानते हैं नींबू की खेती के बारे में |

मिट्टी एवं जलवायु

नींबू के पौधे के लिए बलुई, दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी गयी है। इसके अलावा लाल लेटराईट मिट्टी में भी नीबू उगाया जा सकता है। नीबू की खेती अम्लीय या क्षारीय मिट्टी में भी की जा सकती है। इसे पहाड़ी क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। नीबू के पौधे को सर्दी और पाला से बचाने की जरूरत होती है।  4 से 9 पीएच मान वाली मृदा में नीबू की खेती की जा सकती है। नींबू के पौधे के लिए अर्ध शुष्क जलवायु सबसे अच्छी होती है। जहां पर सर्दियां अधिक पड़तीं हैं या पाला पड़ता है, वहां पर नीबू की खेती में पैदावार कम होती है, क्यों अधिक सर्दी पड़ने से नीबू के पौधे का विकास रुक जाता है।  इसलिये भारत में नीबू की सबसे अधिक खेती उष्ण जलवायु वाले दक्षिण भारत के प्रदेशों में होती है। उत्तर भारत के पंजाब,हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार,राजस्थान में नीबू की खेती की जाती है लेकिन जिस वर्ष सर्दियों में अधिक सर्दी पड़ती है, उस सीजन में नीबू की पैदावार बहुत कम होती है। नींबू की उन्नत किस्में

नींबू की उन्नत किस्में

नींबू की अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों में कुछ इस प्रकार हैं:-
  1. कागजी नींबू : इस नीबू में 52 प्रतिशत रस होता है।
  2. प्रमालिनी : इस किस्म के नींबू के फलों में 57 प्रतिशत रस होता है।
  3. विक्रम या पंजाबी बारहमासी : इस किस्म की खास बात है कि इसके फल गुच्छे के रूप में आते हैं और प्रत्येक गुच्छे में 10-10 नींबू तक आते हैं।
  4. चक्रधर: बीज रहित नींबू में रस की मात्रा सबसे अधिक 60 से 66 प्रतिशत तक होती है।
  5. पी के एम-1: इस किस्म के नींबू में रस की मात्रा तो 52 प्रतिशत ही होती है लेकिन फल का आकार बहुत बड़ा होता है।
  6. साई सरबती : पतले छिल्के और बीज रहित किस्म के नींबू की फसल पहाड़ी इलाकों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। यह नींबू असम के पर्वतीय क्षेत्रों में अधिक होता है। इसका उत्पादन अन्य किस्मों की फसलों से दो गुना होता है।

खेत की तैयारी कैसे करें

मैदानी इलाकों में खेतों की अच्छी तरह से जुताई करनी होती है। खेत को समतल बनाना चाहिये ताकि खेत में कहीं भी जल जमाव न हो। पर्वतीय इलाकों में खेतों को तैयार करने के बाद उनमें मेड़ बनाकर नींबू के पौधे लगाने चाहिये। जमीन की जुताई करने के बाद खेत में गोबर की खाद डाल दें, उसके बाद फिर जुताई करके खेत को रोपाई के लिए छोड़ दें। एक सप्ताह तक खेत को अच्छी धूप लगने के बाद उसमें नीबू के पौधे की रोपाई के लिए गड्ढे बनाने चाहिये। प्रति हेक्टेयर 500 पौधे लगाने के लिए चार गुणा चार मीटर के अंतर से गड्ढे बनाने चाहिये। अधिक उपजाऊ मिट्टी में पौधों की दूरी 5 गुणा 5 मीटर रखना चाहिये। पौध लगाने के लिए दो फिट गहरा, दो फिट वर्गाकार का गड्ढा होना चाहिये।

बिजाई, रोपाई और उचित समय

किसान भाइयों नींबू की बिजाई यानी बीज की बुआई भी की जा सकती है। नींबू के पौधों की रोपाई भी की जा सकती है। दोनों विधियों से बुआई की जा सकती है। पौधों रोप कर नींबू की खेती जल्दी और अच्छी होती है तथा इसमें मेहनत भी कम लगती है जबकि बीज बोकर बुआई करने से समय और मेहनत दोनों अधिक लगते हैं। खेत में उन्नत किस्म की फसल लेनी हो और उसकी पौध न मिल रही हो तब आपको बीज बोकर ही खेती करनी चाहिये। ये भी पढ़े: बिजाई से वंचित किसानों को राहत, 61 करोड़ जारी नींबू का पौधा जून से अगस्त के बीच लगाया जाना चाहिये। यह मौसम ऐसा होता है जिसमें नींबू का पौधा सबसे तेजी से बढ़ता है। इस दौरान बारिश का पानी भी पौधे को मिलता है। दूसरा पौधे की बढ़वार के लिए सबसे उपयुक्त तापमान इस समय होता है। नींबू की खेती कैसे करें?

सिंचाई प्रबंधन

नींबू के पौधे को अधिक पानी की जरूरत नहीं होती है। किसान भाइयों इसका मतलब यह नहीं कि नींबू के पौधे की सिंचाई ही नहीं करनी है। वर्षाकाल में बारिश न हो तो 15 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिये लेकिन यह सिंचाई हल्की होनी चाहिये जिससे भूमि में 6-8 प्रतिशत तक नमी बनी रहे। सर्दियों में पाला व सर्दी से बचाने के लिए एक सप्ताह मे एक बार पानी अवश्य देना चाहिये। इसके अलावा पौधे में कलियां आती दिखाई दें तब पानी देने की जरूरत है। उसे बाद पानी को रोक देना चाहिये। जड़ों में अधिक पानी होने के कारण फूल हल्के किस्म के आते हैं और वे झड़ जाते हैं। जिससे पैदावार पर सीधा असर पड़ता है।

खाद एवं उर्वरक प्रबंधन

नींबू के पौधों कों खेत में लगाने के बाद गोबर की खाद देनी होती है। पहले साल गोबर की खाद प्रति पौधे के हिसाब से 5 किलो देनी चाहिये। दूसरे साल 10 किलो पौधा गोबर की खाद देना चाहिये। इसी अनुपात में गोबर की खाद को तब तक बढ़ाते रहना चाहिये जब तक उसमें फल न आने लगें। इसी तरह खेत में यूरिया भी पहले साल 300 ग्राम देनी चाहिये। दूसरे साल 600 ग्राम देनी चाहिये। इसी अनुपात में इसको भी बढाते रहना चाहिये। यूरिया की खाद को सर्दी के महीने में देना चाहिये तथा पूरी मात्रा को दो या तीन बार में पौधें में डालें।

पौधों की देखभाल

नींबू के पौधों की देखभाल भी करनी होती है। कोई पौधा एक ही शाखा से सीधा बढ़ रहा है तो उसका प्रबंधन करना चाहिये। तीन चार महीने में पौधों की जड़ों के पास निराई गुड़ाई करते रहना चाहिये। एक साल में एक बार पौधों के आसपास की मिट्टी निकाल कर उसमें गोबर की खाद भरना चाहिये। जब पौधों पर फल-फूल न हों तब सूखी टहनियों को हटा देना चाहिये।

कीट-रोग नियंत्रण

नींबू कीट-रोग नियंत्रण किसान भाइयों नींबू के पौधों में कई प्रकार के कीट व रोग लगते हैं। जिससे फसल का बहुत नुकसान होता है। आइये देखते हैं कि इसका प्रबंधन किस प्रकार से करना होता है।
  1. कैंकर रोग: इस रोग के संकेत मिलने पर किसान भाइयों को पौघों पर स्ट्रेप्टोमाइसिल सल्फेट का छिड़काव 15 दिन में दो बार करना चाहिये। इससे काफी फायदा मिलता है।
  2. कीट रोग नियंत्रण: कीटों से होने वाले रोगों पर नियंत्रण के लिए एन्थ्रेकनोज के मिश्रण का छिड़काव करने से नियंत्रण होता है। इसके छिड़काव से मुख्य रोगों के अलावा अन्य कई तरह के कीट रोग पर भी काबू पाया जा सकता है।
  3. गोंद रिसाव रोग: गोंद रिसाव का रोग खेत में पानी भर जाने के कारण होता है। जड़ें गलने लगतीं हैं और पौधा पीला पड़ने लगता है। सबसे पहले तो खेत से पानी को निकाला जाना चाहिये। उसके बाद मिट्टी में 0.2 प्रतिशत मैटालैक्सिल, एमजेड-72 और 0.5 प्रतिशत ट्राइकोडरमा विराइड मिलाकर पौधों में डालने से लाभ मिलता है।
  4. काले धब्बे का रोग: यह रोग फल को लगता है। धब्बे नजर आते ही पेड़ को पानी से साफ कर देना चाहिये। सफेद तेल और कॉपर कोमिक्स करके पानी में मिलाकर पौधों पर छिड़काव करना चाहिये।
  5. धफडी रोग्: इस रोग से नींबू पर सिलेटी रंग की परत जम जाती है। इससे नीबू खराब हो जाता है। इससे फसल को बचाने के लिए भी सफेद तेल व कॉपर छिड़काव करना चाहिये। इससे काफी लाभ होता है।
  6. रस चूसने वाले कीट: नींबू के पेड़ की शाखाओं और पत्तियों का रस चूस कर खत्म करने वाले कीट सिटरस सिल्ला, सुरंगी, चेपा को नियंत्रण के लए मोनोक्राटोफॉस का छिड़काव पौधों पर करना चाहिये। पौधों की शाखाएं रोग से सूख गर्इं हों तो उन्हें तत्काल काट कर जला दें ताकि यह रोग और न बढ़ सके।
  7. सफेद धब्बे का रोग : इस रोग में पौधों के ऊपरी भाग में रुई जैसी जमी दिखाई देती है। इससे पत्तियां मुड़कर टेढ़ी-मेढ़ी होने लगतीं हैं। बाद में इसका सीधा असर फल पर पड़ता है। इसलिये जैसे ही इस रोग का पता चले तभी प्रभावित पत्तियों को हटा कर जला दें। रोग बढ़ने पर कार्बेनडाजिम का छिड़काव महीने में तीन या चार बार करें। काफी लाभ होगा।
  8. आयरन व जिंक की कमी को नियंत्रण करें: कभी कभी मिट्टी में जिंक व आयरन की कमी के कारण पौधों की बढ़वार रुक जाती है और पत्तियां पीलीं पड़कर गिरने लगतीं हैं। इस रोग के लगने पर गोबर की खाद दें तथा दो चम्मच जिंक 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इससे फायदा होगा।

फसल की कटाई कैसे करें

किसान भाइयों नींबू की फसल तीन या चार साल बाद तैयार होती है। नींबू का फल गुच्छे में आता है। गुच्छे का कोई नींबू पहले पक कर पीला हो जाता है और कुछ हरे रह जाते हैं। ऐसी स्थिति अक्सर फूल आने के लगभग चार महीने बाद आती है। उस समय आपको गुच्छों से पके हुए फल चुनकर तोड़ने चाहिये। ध्यान रखें कि हरे फल न टूटें। फलों को तोड़ने के बाद उनकी अच्छी तरह से सफाई कर लें। सफाई करने के लिए एक लीटर पानी में 2.5 ग्राम क्लोरीनेटेड मिलाकर नीबू को उसमें अच्छी तरह से धो कर साफ करें। उसके बाद उन्हें छायादार जगह पर सुखायें। इससे फल की चमक बढ़ जाती है। इसके बाद बाजार में भेजें।
इस माह नींबू, लीची, पपीता का ऐसे रखें ध्यान

इस माह नींबू, लीची, पपीता का ऐसे रखें ध्यान

नींबू (Lemon) की नीली फफूंद से सुरक्षा

लीची (Lychee) खाने वाली इल्ली से रक्षा

पपीता (Papaya) पौधे को गलने से बचाएं

फलदार पौधों की बागवानी तैयार करने के लिए अगस्त का महीना अनुकूल माना जाता है। नींबू, बेर, केला, जामुन, पपीता, आम, अमरूद, कटहल, लीची, आँवला का नया बाग-बगीचा तैयार करने का काम किसान को इस महीने पूरा कर लेना चाहिए। भाकृअनुप- 
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR -Indian Council of Agricultural Research), पूसा, नई दिल्ली के कृषि एवं बागवानी विशेषज्ञों ने इनकी खेती के लिए महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं। इस लेख में हम नींबू (Lemon), लीची (Lychee), पपीता (Papaya) की बागवानी से जुड़े खास बिंदुओं पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे।

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नींबू (Lemon) की देखभाल

नींबू के पौधे खेत, बागान या घर की बगिया में रोपने के लिए अगस्त का महीना काफी अच्छा होता है। कृषक मित्र उपलब्ध मिट्टी की गुणवत्ता के हिसाब से नींबू की किस्मों का चयन कर सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र, उद्यानिकी विभाग से संबद्ध नर्सरी के अलावा ऑन लाइन प्लेटफॉर्म से किसान, उपलब्ध लागत के हिसाब से पौधों की किस्मों का चयन कर सकते हैं। इन केंद्रों पर 20 रुपये से लेकर 100, 200 एवं 500 रुपया प्रति पौधा की दर से पौधे खरीदे जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि पौधे की कीमत उसकी किस्म के हिसाब से घटती-बढ़ती है।

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अगस्त का महीना नींबू और लीची के पेड़-पौधों में गूटी बांधने के लिहाज से काफी उपयुक्त माना जाता है।

ऐसे करें लेमन सिट्रस कैंकर का उपचार

नींबू के सिट्रस कैंकर (Citrus canker) रोग का समय रहते उपचार जरूरी है। यह उपाय ज्यादा कठिन भी नहीं है। नींबू में सिट्रस कैंकर रोग के लक्षण पहले पत्तियों में दिखने शुरू होते हैं। बाद में यह नींबू के पौधे-पेड़ की टहनियों, कांटों और फलों पर पर भी फैल जाते हैं। इसकी रोकथाम के लिए जमीन पर गिरी हुई पौधे की पत्तियों को इकट्ठा कर नष्ट कर देना चाहिए। इसके अलावा नींबू की रोगयुक्त टहनियों की काट-छांट भी जरूरी है। बोर्डाे (Bordo) मिश्रण (5:5:50), ब्लाइटाॅक्स (Blitox) 0.3 फीसदी (3 ग्राम दवा प्रति लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव भी सिट्रस कैंकर रोग से नींबू के पेड़ के बचाव में कारगर साबित होता है।

रसजीवी कीट से रक्षा

नींबू के पौधे का रस चूसने वाले कीट से भी समय रहते बचाव जरूरी है। नींबू के पौधे का रस चूसने वाले कीट से बचाव करने के लिए मेलाथियान (Malathion) का स्प्रे मददगार होता है। मेलाथियान को 2 मिलीलीटर पानी में घोलकर पौधे पर छिड़काव करने से नींबू की रक्षा करने में गार्डनर को मदद मिल सकती है।
लग सकता है नीला फफूंद रोग
अगस्त महीने के दौरान नींबू के पौधों पर नीला फफूंद रोग लगने की आशंका रहती है। लेमन ट्री या प्लांट की नीले फफूंद रोग से रक्षा के लिए आँवला वाला तरीका अपनाया जा सकता है। इसके लिए नींबू के फलों को बोरेक्स या नमक से उपचारित कर नीला फफूंद रोग से रक्षा की जा सकती है। नींबू के फलों को कार्बेन्डाजिम या थायोफनेट मिथाइल की महज 0.1 प्रतिशत मात्रा से उपचारित करके भी नीला फफूंद रोग को फैलने से रोका जा सकता है।

लीची (Lychee or Litchi) की रक्षा

रस से भरी, चटख लाल, कत्थई रंग की लीची देखकर किसके मुंह में पानी न आ जाए। बार्क इटिंग कैटरपिलर (Bark Eating Caterpillar) भी अपनी यही चाहत पूरी करने लीची पर हमला करती है।

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आपको बता दें बार्क इटिंग कैटरपिलर लीची का छिलका खाने की शौकीन होती है। लीची का छिलका खाने वाले पिल्लू (बार्क इटिंग कैटरपिलर) की रोकथाम भी संभव है। इसके लिए लीची के जीवित छिद्रों में पेट्रोल या नुवाॅन या फार्मलीन से भीगी रुई ठूंसकर छिद्र मुख को चिकनी मिट्टी से अच्छी तरह से बंद कर देना चाहिए। बगीचे को स्वच्छ एवं साफ-सुथरा रखकर भी इन कीटों से लीची का बचाव किया जा सकता है।

पपीता (Papaya) का रखरखाव

पपीता का पनामा विल्ट (Panama wilt) एवं कॉलर रॉट (Collar Rot) जैसे प्रकोप से बचाव किया जाना जरूरी है। पपीते के पेड़ में फूल आने के समय 2 मिली. सूक्ष्म तत्वों को एक लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने की सलाह वैज्ञानिकों ने दी है।

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पनामा विल्ट की रोकथाम

पनामा विल्ट के पपीता पर कुप्रभाव को रोकने के लिए बाविस्टीन(BAVISTIN) का उपयोग करने की सलाह दी गई है। बाविस्टीन के 1.5 मि.ग्रा. प्रति लीटर पानी मिश्रित घोल से पनामा विल्ट से रक्षा होती है। बताए गए घोल का पपीते के पौधों के चारों ओर मिट्टी पर 20 दिनों के अंतराल से दो बार छिड़काव करने की सलाह उद्यानिकी सलाहकारों ने दी है।

काॅलर राॅट की रोकथाम

काॅलर राॅट भी पपीता के पौधों के लिए एक खतरा है। पपाया प्लांट पर काॅलर राॅट के प्रकोप से पपीता के पौधे, जमीन की सतह से ठीक ऊपर गल कर गिर जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए पौधों पर रिडोमिल (RIDOMIL)(2 ग्राम/लीटर) दवा का छिड़काव करना फायदेमंद होगा। नींबू, लीची और पपीता के खेत में जलभराव से फल पैदावार प्रभावित हो सकती है। इन खेतों पर जल भराव न हो इसलिए कृषकों को जल निकासी के पर्याप्त इंतजाम नींबू, लीची, पपीता के खेतों पर करने चाहिए।
ICAR ने विकसित की नींबू की नई किस्म, तीसरे ही साल लग जाते हैं फल

ICAR ने विकसित की नींबू की नई किस्म, तीसरे ही साल लग जाते हैं फल

बागवानी खेती करने वाले किसानों के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च यानि ICAR) एक अच्छी खबर लेकर आया है। पिछले कई सालों से ICAR नींबू (Lemon) की नई किस्में विकसित करने की कोशिश कर रहा था, जिसमें इस संस्थान को अंततः सफलता मिल गई है। ICAR के कृषि वैज्ञानिकों ने नींबू के फल में एसिड और रस की मात्रा को ध्यान में रखते हुए नींबू की एक नई किस्म विकसित है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस नई किस्म को 'थार वैभव' (Thar Vaibhav) नाम दिया है। थार वैभव नींबू की किस्म को सेंट्रल हॉर्टिकल्चरल एक्सपेरिमेंट स्टेशन (Central Horticultural Experiment Station (ICAR-CIAH)), वेजलपुर, गोधरा, गुजरात में विकसित किया गया है।

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कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, इस थार वैभव नींबू की किस्म की कई विशेषताएं हैं-

सिर्फ 3 साल बाद ही आने लगते हैं पेड़ में फल

नींबू की यह किस्म एक तरह की एसिड लाइम किस्म है, इसके पौधे को लगाने के बाद मात्र 3 साल में ही फल लगने शुरू हो जाते हैं। नींबू के इस पेड़ में बेहद पास-पास फल लगते हैं, जिससे उत्पादन ज्यादा होता है। इसके फल गोलाकार होते हैं, साथ ही आकर्षक पीले और चिकने छिलके वाले होते हैं, एक फल में 6 से 8 बीज होते हैं।

एक पौधे में होगा इतना उत्पादन

यह पेड़ अन्य नींबू के पेड़ों के मुकाबले जल्द ही फल देने लगता है, इसके एक गुच्छे में 3 से 9 नींबू तक लगते हैं। 'थार वैभव' किस्म के नींबू के फल में रस की मात्रा 49 प्रतिशत तक हो सकती है, साथ ही अम्लता 6.84 प्रतिशत तक होती है। नींबू की इस किस्म का एक पेड़ एक मौसम में कम से कम 60 किलो नींबू का उत्पादन कर सकता है। कृषि वैज्ञानिकों ने इस फल के बारे में बताया है कि ये फल गर्मियों में तैयार हो जाते हैं। इन दिनों भारत में एसिड लाइम के उत्पादक ऐसे फलों की मांग करते हैं, उनकी मांग को देखते हुए बाजार में ऐसे फलों की डिमांड बढ़ सकती है।

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कोरोना काल में बढ़ी थी ऐसे नींबू की मांग

देश में जब कोरोना चरम पर था तब डॉक्टरों ने लोगों को ज्यादा से ज्यादा Vitamin C के सेवन की सलाह दी थी, क्योंकि Vitamin C लोगों के भीतर इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में कारगर होता है, और इसलिए लोगों ने इस दौरान Vitamin C का भरपूर सेवन किया, चाहे वह गोली के रूप में हो या नींबू और संतरे जैसे फलों के रूप में। कोरोना के बाद से लोगों के बीच Vitamin C को लेकर जागरूकता आई है और बाजार में नींबू की खपत बढ़ गई है। ऐसे में यदि किसान इस नई किस्म की खेती करते हैं तो वो 3 साल में ही उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं और 'थार वैभव' नींबू को बेचकर अपनी आमदनी तेजी से बढ़ा सकते हैं। 'थार वैभव' के साथ ही ICAR के वैज्ञानिक नींबू की और भी नई किस्में विकसित करने पर काम कर रहे हैं, जिनमें नींबू का उत्पादन भी ज्यादा मात्रा में हो और नींबू में रस की मात्रा भी ज्यादा हो, ताकि इस प्रकार की नई किस्म से मार्केट में बढ़ी हुई डिमांड को पूरा किया जा सके। फिलहाल कृषि वैज्ञानिक 'थार वैभव' को लेकर भी विश्लेषण करेंगे कि यह किस्म किसानों के बीच लोकप्रिय हो पाती है या नहीं।
जाने कैसे लेमन ग्रास की खेती करते हुए किसानों की बंजर जमीन और आमदनी दोनों में आ गई है हरियाली

जाने कैसे लेमन ग्रास की खेती करते हुए किसानों की बंजर जमीन और आमदनी दोनों में आ गई है हरियाली

आजकल किसान खेती में अलग-अलग तरह के प्रयोग कर रही हैं. पारंपरिक फसलों की खेती से हटकर आजकल के साथ ऐसी फसलें उगा रहे हैं जो उन्हें इनके मुकाबले ज्यादा मुनाफा देती हैं और उनकी आमदनी बढ़ाने में भी मदद करती हैं. इसी तरह की फसलों में बागवानी सच में काफी ज्यादा चलन में हैं. आज हम लेमन ग्रास/ मालाबार ग्रास या हिंदी में नींबू घास के नाम से जाने वाली फसल के बारे में बात करने वाले हैं जिसे उगा कर आजकल किसान अच्छा खासा लाभ और मुनाफा कमा रहे हैं. इस फसल की सबसे अच्छी बात यह है कि इसे बंजर जमीन में भी आसानी से उगाया जा सकता है और इसे बहुत ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है.  इसके अलावा इस फसल को उगाने में बहुत ज्यादा कीटनाशक दवाइयां वेतनमान नहीं करनी पड़ती है. यह एक औषधीय फसल मानी जाती है और पशु लेमन ग्रास को नहीं खाते हैं इसलिए आपको अपने खेतों में पशुओं से बचाव करने की भी जरूरत नहीं है. आप बिना कोई  बाड़ा बनाई भी खुले खेत में नींबू घास की फसल आसानी से उग सकते हैं.

बिहार सरकार दे रही है लेमन ग्रास की फसल उगाने पर सब्सिडी

लेमन ग्रास की फसल से जुड़ी हुई एक बहुत बड़ी खबर बिहार राज्य सरकार की तरफ से सामने आ रही है. बिहार सरकार किसानों को नींबू घास की खेती करने पर सब्सिडी दे रही है.  पिछले साल ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड में बहुत ही महिला किसानों की तारीफ भी की थी जो उच्च स्तर पर लेमन ग्रास की खेती कर रही है.इसी झारखंड के साथ-साथ बिहार में भी यह फसल उगाने का चलन पिछले कुछ समय में बहुत बढ़ गया है. बिहार के बांका, कटोरिया, फुल्लीडुमर, रजौन, धोरैया, सहित अन्य जिलों के किसान में नींबू घास की खेती कर रहे हैं.

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प्रति एकड़ लेमन ग्रास की फसल पर दी जाएगी ₹8000 की सब्सिडी

जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि नींबू घास की खेती बंजर जमीन पर भी की जा सकती है. ऐसे में बिहार सरकार बंजर जमीन का इस्तेमाल करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रही है और इसी कड़ी में अगर किसान बंजर भूमि में लेमन ग्रास की खेती करते हैं तो उन्हें प्रति एकड़ की दर से ₹8000 की सब्सिडी बिहार सरकार द्वारा दी जाएगी. अब वहां पर आलम ऐसा है कि कई वर्षों से खाली पड़ी हुई बंजर जमीन पर किसान बढ़-चढ़कर नींबू घास की खेती कर रहे हैं और इससे पूरे राज्य भर में हरियाली तो आई ही है साथ ही किसानों की आमदनी में भी अच्छा खासा इजाफा हुआ है.

लेमन ग्रास का इस्तेमाल कहां किया जाता है?

यह एक औषधि है और लेमन ग्रास का तेल निकाला जा सकता है जो कई तरीकों से इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके तेल से बहुत ही दवाइयां, घरेलू उपयोग की चीजें, साबुन तेल और बहुत से कॉस्मेटिक प्रोडक्ट (Cosmetic Product) भी बनाए जा सकते हैं. नींबू घास की फसल से बनने वाले तेल में पाया जाने वाला सिट्रोल उसे विटामिन ई का एक बहुत बड़ा स्त्रोत बनाता है.

कम पानी में भी आसानी से उगाई जा सकती है यह फसल

अगर आपके पास पानी का स्रोत नहीं है तब भी आप आसानी से लेमन ग्रास की खेती कर सकते हैं. इसके अलावा इस फसल को बहुत ज्यादा कीटनाशक या उर्वरक की भी जरूरत नहीं पड़ती है.  जानवर एक खास को नहीं खाते हैं इसलिए किसानों को जानवरों से भी फसल को किसी तरह के नुकसान होने का डर नहीं है. एक बार लगाने के बाद इस फसल की बात से छह बार कटाई की जा सकती है.

कितनी लगती है लागत?

शुरुआत में अगर आप 1 एकड़ जमीन में है फसल उगाना चाहते हैं तो लगभग बीज और खाद आदि को मिलाकर 30 से 40,000 तक खर्च आ सकता है. 1 एकड़ के खेत में यह फसल उगाने के लिए लगभग 10 किलो बीज की आवश्यकता पड़ती है. बीज लगाने के बाद 2 महीने के अंदर-अंदर इसके पौधे तैयार हो जाते हैं. अगर किसान चाहे तो किसी नर्सरी से सीधे ही लेमन ग्रास के पौधे भी खरीद सकते हैं

1 साल में नींबू घास की फसल की 5 से 6 बार कटाई करके पत्तियां निकाली जा सकती हैं.

अगर आप इस फसल को किसी बंजर या कम उपजाऊ जमीन पर भी लगा रहे हैं तो एक बार लगाने के बाद यह लगभग अगले 6 सालों तक आपको अच्छा खासा मुनाफा देती है.

एक्सपर्ट बताते हैं कि अगर आप नींबू घास की अच्छी पैदावार करना चाहते हैं तो खेत में गोबर और लकड़ी की राख डालते रहें.

बिहार में बनवाए जा रहे हैं लेमन ग्रास का तेल निकालने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट

बिहार में राजपूत और कटोरिया में लेमन ग्रास तेल निकालने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट बनाई जा चुकी है. इसका तेल निकालने के लिए काम में आने वाली मशीन लगभग ₹400000 की आती है.  नींबू घास के 1 लीटर तेल की कीमत बाजार में 1200  से ₹2000 तक लगाई जाती है. इस तरह से किसान कुछ एकड़ में यह फसल उगा कर लाखों का मुनाफा थाने से कमा सकते हैं. अगर 1 एकड़ में भी है फसल लगाई जाती है तो उसमें इतनी फसल आसानी से हो जाती है कि उससे 100 लीटर के लगभग तेल की निकासी की जा सके. यहां के किसानों से हुई बातचीत में पता चला है कि कृषि विभाग भी इस फसल को उगाने में किसानों की आगे बढ़कर मदद कर रहा है. किसानों का कहना है कि इस फसल की मदद से उनकी बंजर  भूमि में तो हरियाली आती ही है साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति में भी हरियाली आई है.
नींबू, भिंडीऔर धनिया पत्ती की कीमतों में अच्छा खासा उछाल आया है 

नींबू, भिंडीऔर धनिया पत्ती की कीमतों में अच्छा खासा उछाल आया है 

दिल्ली में मयूर विहार के साप्ताहित बाजार में सब्जियों का व्यवसाय करने वाले सुरेंद्र कुमार का कहना है, कि सब्जियों की कीमत विगत सप्ताह अधिक बढ़ी हैं। टमाटर को छोड़ दीजिए, तब समस्त सब्जियों की कीमत दोगुनी हो जाएगी।  बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि का प्रभाव फिलहाल सब्जियों की कीमत पर भी दिखाई देने लगा है। विशेष रूप से दिल्ली- एनसीआर में हरी सब्जियों की कीमत में आग लगी हुई है। बतादें, कि नींबू 250 से 300 रुपये किलो के हिसाब से बिक रहा है। ऐसी स्थिति में आम जनता के लिए नींबू खरीदना फिलहाल बेहद कीमती वस्तु खरीदने के समरूप साबित हो रहा है। दरअसल, इसके अतिरिक्त बाकी हरी सब्जियों की कीमतों में भी खूब वृद्धि देखने को मिली है।  वास्तविकता में विगत माह थम-थम कर हरियाणा, उत्तर प्रदेश और पंजाब समेत बहुत सारे राज्यों में ओलावृष्टि समेत मूसलाधार बेमौसम वर्षा दर्ज की गई है। इसकी वजह से खेतों में लहलहा रही गेहूं की फसल समेत हरी सब्जियां भी बर्बाद हो चुकी हैं। इससे उत्पादन पर काफी असर देखने को मिला है, जिसका प्रभाव अब दिल्ली की गाजीपुर सब्जी मंडी में भी दिखाई पड़ रही है। इसके चलते यहां पर हरी सब्जियों की आवक पूर्व की तुलना में कम हो गई है। गाजीपुर सब्जी मंडी के सचिव मनोज कुमार के अनुसार, मंडी में ही हरी सब्जियां कम दिखाई पड़ रही हैं। उनके बताने के अनुसार, बेमौसम बारिश की वजह से विशेषकर  पत्तियों वाली सब्जियां काफी प्रभावित हुई हैं। 

भिंडी 130 से 150 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेची जा रही है 

मनोज कुमार ने बताया है, कि आवक पर असर पड़ने की वजह से नींबू की कीमतों पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ा है। थोक बाजार में बेहतरीन गुणवत्ता वाले नींबू की  कीमत 125 से 150 रुपये किलो पर पहुंच गया है। वहीं, यही नींबू खुदरा बाजार में 50 से 70 रुपये पाव के हिसाब से विक्रय किया जा रहा है। इसी प्रकार भिंडी की बढ़ती कीमत भी आम जनता को रूला रही है। मतलब कि साप्ताहिक बाजार में इसका भाव 30 से 40 रुपये पाव है। ऐसी स्थिति में आम जनता को एक किलो भिंडी हेतु 130 से 150 रुपये का खर्चा करना पड़ रहा हैं। 

धनिया पत्ती की कीमतों में भी काफी बढ़वार  

मयूर विहार के साप्ताहित बाजार में सब्जियों का व्यवसाय करने वाला सुरेंद्र कुमार कहता है, कि सब्जियों के भावों में विगत सप्ताह से उछाल देखने को मिल रही है। केवल टमाटर को छोड़कर समस्त सब्जियों के मूल्यों में दोगुनी वृद्धि देखने को मिली है। उन्होंने बताया है, कि सब्जियों की कीमत में वृद्धि होने से उनकी आमदनी में गिरावट देखी जा रही है। महंगाई की वजह से मांग में गिरावट आती है, इसलिए लोग कम खरीददारी करते हैं। साथ ही, धनिया की पत्ती केवल एक सप्ताह पूर्व 10 से 20 रुपये किलो के हिसाब से बिक रही थी। आज इसके भाव 20 से 30 रुपये पाव पर पहुँच गए हैं।  यह भी पढ़ें: जानें किस वजह से धनिया के भाव में हुई 36 रुपए की बढ़ोत्तरी, फिलहाल क्या हैं मंडी भाव

गर्मी के बढ़ते ही कीमतों में भी बढ़ोत्तरी होगी 

दुकानदार मोहम्मद खालिद के अनुसार, रमजान के समय नींबू की मांग में वृद्धि देखने को मिली है। एक नींबू का भाव 5 रुपये तक हो चुका है। उन्होंने बताया है, कि जैसे- जैसे गर्मी में इजाफा होगा सब्जियों की कीमत में भी वृद्धि होगी। गाजीपुर मंडी के सचिव के मुताबिक, आलू एवं प्याज की कीमतें ज्यों की त्यों हैं। उसमें कोई खास अंतर देखने को नहीं मिला है।
नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की खेती अधिकांश किसान मुनाफे के तौर पर करते हैं। नींबू के पौधे एक बार अच्छी तरह विकसित हो जाने के बाद कई सालों तक उत्पादन देते है। यह कम लागत में ज्यादा मुनाफे देने वाली फसलों में से एक है। बतादें, कि नींबू के पौधों को सिर्फ एक बार लगाने के उपरांत 10 साल तक उत्पादन लिया जा सकता है। पौधरोपण के पश्चात सिर्फ इनको देखरेख की जरूरत पड़ती है। इसका उत्पादन भी प्रति वर्ष बढ़ता जाता है। भारत विश्व का सर्वाधिक नींबू उत्पादक देश है। नींबू का सर्वाधिक उपयोग खाने के लिए किया जाता है। खाने के अतिरिक्त इसे अचार बनाने के लिए भी इस्तेमाल में लिया जाता है। आज के समय में नींबू एक बहुत ही उपयोगी फल माना जाता है, जिसे विभिन्न कॉस्मेटिक कंपनियां एवं फार्मासिटिकल कंपनियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता है। नींबू का पौधा झाड़ीनुमा आकार का होता है, जिसमें कम मात्रा में शाखाएं विघमान रहती हैं। नींबू की शाखाओ में छोटे-छोटे काँटे भी लगे होते है। नींबू के पौधों में निकलने वाले फूल सफेद रंग के होते हैं, लेकिन अच्छी तरह तैयार होने की स्थिति में इसके फूलों का रंग पीला हो जाता है। नींबू का स्वाद खट्टा होता है, जिसमें विटामिन ए, बी एवं सी की मात्रा ज्यादा पाई जाती है। बाजारों में नींबू की सालभर काफी ज्यादा मांग बनी रहती है। यही वजह है, कि किसान भाई नींबू की खेती से कम लागत में अच्छी आमदनी कर सकते हैं।


 

नींबू की खेती के लिए उपयुक्त मृदा

नींबू की खेती के लिए सबसे अच्छी बलुई दोमट मृदा मानी जाती है। साथ ही, अम्लीय क्षारीय मृदा एवं लेटराइट में भी इसका उत्पादन सहजता से किया जा सकता है। उपोष्ण कटिबंधीय एवं अर्ध शुष्क जलवायु वाले इलाकों में नींबू की पैदावार ज्यादा मात्रा में होती है। भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार और राजस्थान राज्यों के विभिन्न इलाकों में नींबू की खेती काफी बड़े क्षेत्रफल में की जाती है। ऐसे इलाके जहां पर ज्यादा वक्त तक ठंड बनी रहती हैं, ऐसे क्षेत्रों में नींबू का उत्पादन नहीं करनी चाहिए। क्योंकि, सर्दियों के दिनों में गिरने वाले पाले से इसके पौधों को काफी नुकसान होता है। 

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नींबू में रोग एवं उनका नियंत्रण

कागजी नींबू

नींबू की इस किस्म का भारत में अत्यधिक मात्रा में उत्पादन किया जाता है। कागजी नींबू के अंदर 52% प्रतिशत रस की मात्रा विघमान रहती है | कागजी नींबू को व्यापारिक तौर पर नहीं उगाया जाता है।


 

प्रमालिनी

प्रमालिनी किस्म को व्यापारिक तौर पर उगाया जाता है। इस प्रजाति के नींबू गुच्छो में तैयार होते हैं, जिसमें कागजी नींबू के मुकाबले 30% ज्यादा उत्पादन अर्जित होता है। इसके एक नींबू से 57% प्रतिशत तक रस अर्जित हो जाता है।


 

विक्रम किस्म का नींबू

नींबू की इस किस्म को ज्यादा उत्पादन के लिए किया जाता है। विक्रम किस्म के पौधों में निकलने वाले फल गुच्छे के स्वरुप में होते हैं, इसके एक गुच्छे से 7 से 10 नींबू अर्जित हो जाते हैं। इस किस्म के पौधों पर सालभर नींबू देखने को मिल जाते हैं। पंजाब में इसको पंजाबी बारहमासी के नाम से भी मशहूर है। साथ ही, इसके अतिरिक्त नींबू की चक्रधर, पी के एम-1, साई शरबती आदि ऐसी किस्मों को ज्यादा रस और उत्पादन के लिए उगाया जाता है। 

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नींबू के खेत की तैयारी इस तरह करें

नींबू का पौधा पूरी तरह से तैयार हो जाने पर बहुत सालों तक उपज प्रदान करता है। इस वजह से इसके खेत को बेहतर ढंग से तैयार कर लेना चाहिए। इसके लिए सर्वप्रथम खेत की बेहतर ढ़ंग से मृदा पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर देनी चाहिए। क्योंकि, इससे खेत में उपस्थित पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है। इसके पश्चात खेत में पुरानी गोबर की खाद को डालकर उसकी रोटावेटर से जुताई कर मृदा में बेहतर ढ़ंग से मिला देना चाहिए। खाद को मृदा में मिलाने के पश्चात खेत में पाटा लगाकर खेत को एकसार कर देना चाहिए। इसके उपरांत खेत में नींबू का पौधरोपण करने के लिए गड्डों को तैयार कर लिया जाता है।


 

नींबू पोधरोपण का उपयुक्त समय एवं विधि

नींबू का पौधरोपण पौध के तौर पर किया जाता है। इसके लिए नींबू के पौधों को नर्सरी से खरीद लेना चाहिए। ध्यान दने वाली बात यह है, कि गए पौधे एक माह पुराने एवं पूर्णतय स्वस्थ होने चाहिए। पौधों की रोपाई के लिए जून और अगस्त का माह उपयुक्त माना जाता है। बारिश के मौसम में इसके पौधे काफी बेहतर ढ़ंग से विकास करते हैं। पौधरोपण के पश्चात इसके पौधे तीन से चार साल उपरांत उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाते हैं। नींबू का पौधरोपण करने के लिए खेत में तैयार किये गए गड्डों के बीच 10 फीट का फासला रखा जाता है, जिसमें गड्डो का आकार 70 से 80 CM चौड़ा एवं 60 CM गहरा होता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 600 पौधे लगाए जा सकते हैं। नींबू के पौधों को ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। वह इसलिए क्योंकि नींबू का पौधरोपण बारिश के मौसम में किया जाता है। इस वजह से उन्हें इस दौरान ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसके पौधों की सिंचाई नियमित समयांतराल के अनुरूप ही करें। सर्दियों के मौसम में इसके पौधों को 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी देता होता है। इससे ज्यादा पानी देने पर खेत में जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जो कि पौधों के लिए अत्यंत हानिकारक साबित होती है।


 

नींबू की खेती में लगने वाले कीट

रस चूसक कीट

सिटरस सिल्ला, सुरंग कीट एवं चेपा की भांति के कीट रोग शाखाओं एवं पत्तियों का रस चूसकर उनको पूर्णतय नष्ट कर देते हैं। बतादें, कि इस प्रकार के रोगों से बचाव करने के लिए पौधों पर मोनोक्रोटोफॉस की समुचित मात्रा का छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा इन रोगो से प्रभावित पौधों की शाखाओं को काटकर उन्हें अलग कर दें।

काले धब्बे

नींबू की खेती में काले धब्बे का रोग नजर आता है। बतादें, कि काला धब्बा रोग से ग्रसित नींबू के ऊपर काले रंग के धब्बे नजर आने लगते हैं। शुरआत में पानी से धोकर इस रोग को बढ़ने से रोक सकते हैं। अगर इस रोग का असर ज्यादा बढ़ जाता है, तो नींबू पर सलेटी रंग की परत पड़ जाती है। इस रोग से संरक्षण करने हेतु पौधों पर सफेद तेल एवं कॉपर का घोल बनाकर छिड़काव किया जाता है। 

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नींबू में जिंक और आयरन की कमी होने पर क्या करें

नींबू के पौधों में आयरन की कमी होने की स्थिति में पौधों की पत्तियां पीले रंग की पड़ जाती हैं। जिसके कुछ वक्त पश्चात ही पत्तियां सूखकर गिर जाती हैं और पौधा भी आहिस्ते-आहिस्ते सूखने लगती है। नींबू के पौधों को इस किस्म का रोग प्रभावित ना करे। इसके लिए पौधों को देशी खाद ही देनी चाहिए। इसके अलावा 10 लीटर जल में 2 चम्मच जिंक की मात्रा को घोलकर पौधों में देनी होती है।


 

नींबू की कटाई, उत्पादन और आय

नींबू के पौधों पर फूल आने के तीन से चार महीने बाद फल आने शुरू हो जाते हैं। इसके उपरांत पौधों पर लगे हुए नींबू को अलग कर लिया जाता है। नींबू की उपज गुच्छो के रूप में होती है, जिसके चलते इसके फल भिन्न-भिन्न समय पर तुड़ाई हेतु तैयार होते है। तोड़े गए नीबुओं को बेहतरीन ढंग से स्वच्छ कर क्लोरीनेटड की 2.5 GM की मात्रा एक लीटर जल में डालकर घोल बना लें। इसके पश्चात इस घोल से नीबुओं की साफ-सफाई करें। इसके पश्चात नीबुओं को किसी छायादार स्थान पर सुखा लिया जाता है। नींबू का पूरी तरह विकसित पौधा एक साल में लगभग 40 KG की उपज दे देता है। एक हेक्टेयर के खेत में लगभग 600 नींबू के पौधे लगाए जा सकते हैं। इस हिसाब से किसान भाई एक वर्ष की उपज से 3 लाख रुपए तक की आमदनी सुगमता से कर सकते हैं।

नींबू की प्रमुख किस्मों के विषय में जानें, जिनसे किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

नींबू की प्रमुख किस्मों के विषय में जानें, जिनसे किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि नींबू एक प्रसिद्ध बागवानी फसल है। देश के लगभग हर घर में नींबू रसोई में पाया जाता है। आज हम इस लेख में आपको बताऐंगे नींबू की उन्नत किस्मों के संबंध में जिसकी उत्पादन क्षमता के साथ रस की मात्रा भी ज्यादा है। नींबू जिसकी मांग आज के समय में सबसे ज्यादा है। इसकी इतनी ज्यादा मांग की वजह से बाजार में नींबू के भाव भी काफी ज्यादा हैं। ऐसी स्थिति में अगर किसान भाई अपने खेत में नींबू की उन्नत खेती करते हैं, तो उन्हें काफी मुनाफा प्राप्त होगा। लेकिन इसके लिए किसान भाई के पास सटीक और बेहतर जानकारी का होना अत्यंत आवश्यक है। चलिए आज हम आपको नींबू की उन्नत किस्मों के संदर्भ में सही और विस्तृत रूप से जानकारी प्रदान करेंगे।

जानिए नींबू की उन्नत प्रजातियों के विषय में

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि हमारे भारत में नींबू की विभिन्न प्रकार की किस्में पाई जाती हैं। परंतु, इन सभी में से कुछ ही किस्में किसानों को बेहतर मुनाफा कमाकर देती हैं। बतादें, कि इनके प्रमालिनी, कागजी नींबू, विक्रम किस्म का नींबू इत्यादि शामिल हैं। आइए जानते हैं, एक-एक करके इन किस्मों के संबंध में।

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कागजी नींबू (Paper lemon)

कागजी नींबू की यह प्रजाति भारत के तकरीबन समस्त राज्यों के कृषकों के द्वारा उत्पादित की जाती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस प्रकार के नींबू में 52 प्रतिशत रस की मात्रा होती है। किसानों के द्वारा इस नींबू की व्यापारिक तौर पर खेती नहीं की जाती है।

प्रमालिनी (Pramalini)

यह किस्म किसानों के द्वारा व्यापारिक तौर पर उगाई जाती है। यह पेड़ पर एक गुच्छों में उगते हैं, प्रमालिनी नींबू का उत्पादन अन्य नींबू की तुलना से काफी ज्यादा होता है। साथ ही, इसमें रस की मात्रा भी 57 प्रतिशत तक होती है।

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विक्रम किस्म (Vikram variety)

यह नींबू भी गुच्छों के रूप में उगते हैं। बतादें, कि इस किस्म का सर्वाधिक उत्पादन किया जात है। इस वजह से किसान इस नींबू की खेती बेहतरीन मुनाफा कमाने के उद्देश्य से सबसे ज्यादा करते हैं। इस किस्म के एक गुच्छे के माध्यम से नींबू की मात्रा 7 से 10 तक पाई जाती है। यदि देखा जाए तो विक्रम किस्म नींबू के पेड़ पर संपूर्ण वर्षभर पैदावार देखने को मिलती है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जब हमारी टीम ने भारत के किसान भाई से बात की तो उन्होंने बताया कि हमारे भारत में किसानों के द्वारा नींबू की भिन्न-भिन्न प्रजातियां भी उत्पादित की जाती हैं। जैसे कि- दार्जिलिंग (दार्जिलिंग क्षेत्र), खासी (मेघालय क्षेत्र), रंगपुर नींबू, बारामासी नींबू, चक्रधर नींबू, पी.के.एम.1 नींबू, मैंडरिन ऑरेंज: कुर्ग (कुर्ग और विलीन क्षेत्र), नागपुर (विदर्भ क्षेत्र) इत्यादि हैं।
किसान श्रवण सिंह बागवानी फसलों का उत्पादन कर बने मालामाल  

किसान श्रवण सिंह बागवानी फसलों का उत्पादन कर बने मालामाल  

किसान श्रवण सिंह के बगीचे में 5 हजार अनार के पेड़ हैं। बतादें कि लगभग इतने ही पेड़ उन्होंने अपने भाई के फॉर्म हाउस में लगाए हैं। इसके अतिरिक्त वे ताइवान पिंक अमरूद, केसर आम की एक विशेष किस्म की भी खेती कर रहे हैं। वह सभी फसलों की खेती जैविक विधि के माध्यम से करते हैं। वर्तमान में राजस्थान में किसान पारंपरिक खेती करने की जगह बागवानी में अधिक परिश्रम कर रहे हैं। इससे यहां के किसान बागवानी से फिलहाल खुशहाल हो गए हैं। उनकी कमाई लाखों में हो रही है। आज हम राजस्थान के एक ऐसे किसान के विषय में बात करेंगे जो चीकू, खीरे, नींबू, आम और अनार की खेती से साल में 40 लाख रुपये की आय कर रहा है। विशेष बात यह है, कि इस किसान द्वारा उगाए गए अनार की माँग विदेशों तक में है।

श्रवण सिंह एक पढ़े-लिखे ग्रेजुएट किसान हैं

दरअसल, हम बात कर रहे हैं राजस्थान के सिरोही जनपद के रहने वाले किसान श्रवण सिंह के विषय में। श्रवण सिंह पढ़े- लिखे ग्रेजुएट किसान हैं। पहले वह रेडीमेड कपड़ों का व्यवसाय करते थे। परंतु, इस व्यवसाय में उनका मन नहीं लग रहा है। अब ऐसी स्थिति में श्रवण सिंह ने बागवानी करने का निर्णय लिया। वे आधुनिक विधि के माध्यम से  चीकू, खेरी, नींबू, आम और सिंदूरी अनार की खेती कर रहे हैं। इससे उन्हें वार्षिक 40 लाख रुपये की आमदनी हो रही है।

अंगूर की खेती पर प्रयोग चल रहा है

वर्तमान में श्रवण सिंह अंगूर के ऊपर भी प्रयोग कर रहे हैं। उनका कहना है, कि अनार, नींबू, और अमरूद की बिक्री करके वह साल में 40 लाख रुपये की कमाई कर लेते हैं।

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नींबू की खेती इतने हेक्टेयर रकबे में शुरू की गई

श्रवण सिंह के कहने के अनुसार पहले उन्होंने बागवानी की शुरुआत क्रॉप पपीते से की थी। इसमें उन्हें काफी मोटा मुनाफा प्राप्त हुआ। ऐसे में वह आहिस्ते-आहिस्ते बागवानी का क्षेत्रफल बढ़ाते गए। ऐसे में उन्हें तीसरे वर्ष से 18 लाख रुपये की आय होने लगी। इसके उपरांत उन्होंने वर्ष 2011 में 12 हेक्टेयर में नींबू की खेती चालू कर दी। उसके बाद साल 2013 से उन्होंने अनार के भी पौधे रोपने शुरू कर दिए। 2 साल के उपरांत से ही अनार का उत्पादन शुरू हो गया। श्रवण सिंह ने बताया है, कि वे अपने खेत में उगाए गए अनार की सप्लाई बांग्लादेश, नेपाल और दुबई में भी करते है। मुख्य बात यह है, कि लैब में जाँच होने के बाद उनके उत्पादों का निर्यात होता है। इसके अतिरिक्त वे रिलायंस फ्रेश, सुपरमार्केट एवं जैन इरीगेशन जैसी मल्टिनेशनल कंपनियों को भी फल सप्लाई करते हैं।
नींबू की खेती से अच्छी उपज पाने के लिए नींबू की इन खास किस्मों के विषय में जानें

नींबू की खेती से अच्छी उपज पाने के लिए नींबू की इन खास किस्मों के विषय में जानें

नींबू की खेती करने के लिए दोमट मृदा सबसे उपयुक्त होती है। नींबू का उपयोग सब्जी के स्वाद को बढ़ाने, नींबू की चाय बनाने और गर्मियों में शिकंजी बनाने के लिए किया जाता है। आज हम इस लेख में आपको नींबू की विभिन्न प्रकार की किस्मों के विषय में बताने वाले हैं। नींबू की खेती काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। यह पीले रंग का बेहद ही खट्टा एवं चटपटे स्वाद का होता है। इसका उपयोग चटनी, अचार एवं शरबत आदि बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसे औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। इसकी खेती के लिए कम देखभाल की आवश्यकता होती है। आज हम आपको इन विभिन्न तरह की किस्मों एवं उनसे जुड़ी विशेषताओं के संबंध में बताने जा रहे हैं।

नींबू की गोंधोराज लेबू किस्म

बतादें, कि
नींबू की इस किस्म की खेती अधिकांश बंगाल में होती है। गोंधोराज लेबू की खेती इन क्षेत्रों में काफी बड़े पैमाने पर की जाती है। इसके छिलके मोटे एवं काफी मजबूत होते हैं। इसकी सुगंध बेहद अच्छी होती है। इसका उपयोग बंगाल के डाक्टर दवाइयाँ तैयार करते हैं। ये भी पढ़े: नींबू की खेती से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी

नींबू की नेपाली गोल किस्म

नेपाली गोल किस्म के नींबू की खेती भारत के दक्षिणी राज्यों में की जाती है। इस नींबू के अंदर बाकी नींबू की तुलना में काफी अधिक रस होता है। बतादें, कि इस प्रजाति का नाम नेपाली है। परंतु, यह दक्षिणी राज्यों में काफी ज्यादा मशहूर है।

नींबू की मौसंबी नींबू किस्म

मौसंबी नींबू आकाक मौसंबी की तरह होता है। यह सबसे सहजता से मिलने वाली किस्म है। इसे आप किसी भी फल अथवा सब्जियों की दुकान पर सहजता से खरीद सकते हैं। यह नींबू की प्रमुख किस्मों में से एक है, जो स्वाद में हल्का कड़वा एवं मीठा होता है।

नींबू की शरबती नींबू किस्म

शरबती नींबू के छिलके आकार में काफी मोटे होते हैं। साथ ही, इनका रस भी काफी मोटा होता है। इसकी खेती मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ राज्यों में अधिक होती है। इसका अधिकांश इस्तेमाल आचार निर्मित करने के लिए किया जाता है। ये भी पढ़े: नींबू की बढ़ती कीमत बढ़ा देगी आम लोगों की परेशानियां

नींबू की काजी नींबू किस्म

काजी नींबू असम राज्य का मशहूर नींबू है। बतादें, कि इस पौधे को तैयार होने में लगभग एक वर्ष तक का समय लग जाता है। बाकी नींबू के मुकाबले में यह काजी नींबू ज्यादा रसदार एवं ताजा होता है। बतादें, कि इसका उपयोग भी जूस एवं अचार तैयार करने में किया जाता है।
कम खर्च में सालों लाभ पाने के लिए नींबू की खेती एक अच्छा विकल्प है

कम खर्च में सालों लाभ पाने के लिए नींबू की खेती एक अच्छा विकल्प है

कृषक भाई नींबू की खेती कर बेहतरीन मुनाफा अर्जित कर सकते हैं। नींबू के पौधे को भरपूर मात्रा में पानी देना बेहद जरूरी है। नींबू का उपयोग हर घर में किया जाता है। दाल-सब्जी में डालने से ये उसका स्वाद और ज्यादा बढ़ा देता है। भारत के अंदर नींबू सबसे अधिक बिकने वाली सब्जियों में से भी एक है। इसकी खेती करना कृषक भाइयों के लिए काफी फायदे का सौदा सिद्ध हो सकती है। बाजार में नींबू का भाव 100 रुपये प्रति किलो तक चलता है। परंतु, कभी-कभी इसके भाव भी आसमान छूने लग जाते हैं। हालांकि, इसकी मांग बाजार में एक समान रहता है। नींबू की खेती कर किसान भाई बेहद ही ज्यादा मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जिस नींबू का रंग नारंगी जैसा होता है, वह अन्य दूसरे नींबू के मुकाबले में ज्यादा खट्टा होता है। इस नींबू का इस्तेमाल सब्जी में डालने से लगाकर अचार निर्मित करने तक में किया जाता है। बतादें, कि इसकी मांग काफी अधिक होने के साथ-साथ किसानों को इसकी फसल बेचकर शानदार मुनाफा होता है।

नींबू की फसल में भरपूर मात्रा में पानी बेहद जरूरी है

नींबू की खेती करने से पूर्व खेत को संपूर्ण ढ़ंग से तैयार करना आवश्यक है। पौधों की रोपाई के दौरान लगभग 1 फीट गहरा गड्ढा खोदें। इस गड्ढे में पानी डालकर छोड़ दें। जब पानी सूख जाए, तो पौधा लगाने हेतु मृदा डालें एवं पौधे के चारों तरफ से घेरा बनाकर एक गोल कियारी निर्मित करें। इसके उपरांत किसान भाई उसमें पानी डालें। इस दौरान ख्याल रखें कि बहुत बार पौधे अच्छे तरीके से नहीं लगते हैं। इस वजह से उन्हें पर्याप्त पानी देना बेहद आवश्यक होता है।

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किसान भाई नींबू से सालों लाभ उठा सकते हैं

नींबू की पौधरोपण के तीन से साढ़े तीन साल के उपरांत ही फल निकलने चालू हो जाते हैं। एक पौधे से एक वर्ष में बाजार के आधार पर तीन हजार किलो की पैदावार होती है। नींबू का बगीचा एक बार लगाने पर 30 वर्ष तक फल प्रदान करता है, जिसका अर्थ यह है कि किसान भाई 30 सालों तक इससे मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। नींबू की खेती कर किसान भाई कुछ ही वर्ष में लाखों रुपये तक की आमदनी हांसिल कर सकते हैं।