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गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

पशुओं में कुपोषण की वजह से बांझपन की बीमारियां निरंतर बढ़ती जा रही हैं। खास कर गोवंश में देखी जा रही है। गोवंश में बांझपन के बढ़ते मामलों के का सबसे बड़ा कारण कुपोषण है। इसका मतलब है, कि पशुओं को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है। इस गंभीर समस्या से किसानों के साथ-साथ पशुपालन से संबंधित समस्त संस्थाऐं भी काफी परेशान हैं। सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय वेटनरी कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ राजीव सिंह ने बताया है, कि व्यस्क पशुओं में कम वजन व जननागों के अल्प विकास से पशुओं में प्रजनन क्षमता में कमी देखने को मिल रही है। जैसा कि उपरोक्त में बताया गया है, कि इसका मुख्य कारण कुपोषण है। इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड के वित्तीय सहयोग से कृषि विश्व विद्यालय और पशुपालन विभाग द्वारा मेरठ के ग्राम बेहरामपुर मोरना ब्लॉक जानी खुर्द में निशुल्क पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कुलपति डॉ के.के. सिंह एवं पशुपालन विभाग के अपर निदेशक डॉ अरुण जादौन के निर्देश में हुआ है।

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इस उपलक्ष्य पर परियोजना के मार्ग दर्शक डॉ राजवीर सिंह ने कहा है, कि मादा पशुओं को संतुलित आहार के साथ-साथ प्रोटीन और खनिज मिश्रण जरूर देना चाहिए। जिसकी सहायता से उनकी गर्भधारण क्षमता बरकरार रहे। परियोजना प्रभारी डॉ अमित वर्मा का कहना है, कि पशुओं में खनिज तत्वों के अभाव की वजह से भूख ना लगना, बढ़वार एवं प्रजनन क्षमता में कमी जैसे समय पर गर्मी में ना आना, अविकसित संतानो की उत्पत्ति, दूध उत्पादन में कमी, एनीमिया इत्यादि समस्याऐं आ सकती हैं। बतादें, कि पशुओं को प्रतिदिन 30 - 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर पाउडर पशु आहार के लिए जरूर देना चाहिए। पशु स्वास्थ्य शिविर में पशु चिकित्सा महाविद्यालय कॉलेज मेरठ के विशेषज्ञों इनमें डॉ. अमित वर्मा, डॉ अरविन्द सिंह, डॉ अजीत कुमार सिंह, डॉ विकास जायसवाल, डॉ प्रेमसागर मौर्या, डॉ आशुतोष त्रिपाठी और डॉ रमाकांत इत्यादि की टीम के द्वारा 157 पशुओं को कृमिनाशक, बाँझपन प्रबंधन, गर्भावस्था निदान, रक्त व गोबर की जाँच जैसी पशु चिकित्सा सेवाएं और तदानुसार मुफ्त दवाएं भी प्रदान की गईं। पशु चिकित्साधिकारी डॉ रिंकू नारायण एवं डॉ विभा सिंह ने पशुपालन के लिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले किसान क्रेडिट कार्ड तथा सब्सिड़ी योजनाओं के संबंध में जानकारी प्रदान की। प्रशांत कौशिक ग्राम प्रधान समेत अन्य ग्रामवासियों ने शिविर के आयोजन हेतु कृषि विवि की कोशिशों की सराहना करते हुए धन्यवाद व्यक्त किया।

डेयरी पशुओं में हरे चारे का महत्व

डेयरी पशुओं में हरे चारे का महत्व

पशुपालन पर होने वाली कुल लागत का लगभग 60 प्रतिशत व्यय पशु आहार पर होता है। इसलिए पशुपालन व्यवसाय की सफलता प्रमुख रूप से पशु आहार पर होने वाले खर्च पर निर्भर करती है। पशु आहार में स्थानीय रूप से उपलब्ध पशु आहार के घटकों एवं हरे चारे का प्रयोग करने से पशु आहार की लागत को कम किया जा सकता है, और पशुपालन व्यवसाय से अधिकाधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। शारीरिक विकास, प्रजनन तथा दूध उत्पादन हेतु आवश्यक पोषक तत्वों को सही मात्रा एवं उचित अनुपात में देना अत्यन्त आवश्यक है। भारतवर्श में पशुओं का पोषण प्रमुख रूप में कृषि उपज तथा फसलों के चक्र पर निर्भर करता है। हरा चारा पशु आहार का एक अभिन्न अंग है। 

हरा चारा पशुओं के लिए सस्ते प्रोटीन व शक्ति का मुख्य स्रोत है तथा दो दलहनी चारे की फसलों से प्राप्त, दाने से प्राप्त प्रोटीन दाने से सस्ती होती है। कम लागत में दुधारू पशुओं को पौष्टिक तत्व प्रदान करने के लिए हरा चारा पशुओं को खिलाना जरूरी हो जाता है। दाना मिश्रण के अलावा संतुलित आहार हेतु चारे की पौष्टिकता का अलग महत्व है, अतः हमें चारे की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए। जहाँ हम हरे चारे से पशुओं के स्वास्थय एवं उत्पादन ठीक रख सकते हैं वहीं दाना व अन्य कीमत खाद्यान की मात्रा को कम करके पशु आहार की लागत में भी बचत कर सकते हैं। 

 पशुओं में हरे चारे का होना अत्यंत आवश्यक है। यदि किसान चाहते हैं कि उनके पशु स्वस्थ्य रहें व उनसे दूध एवं मांस का अधिक उत्पादन मिले तो उनके आहार में वर्ष भर हरे चारे को शामिल करना चांहिये। मुलायम व स्वादिष्ट होने के साथ-साथ हरे चारे सुपाच्य भी होते हैं। इसके अतिरिक्त इनमें विभिन्न पौष्टिक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं। जिनसे पशुओं की दूध देने की क्षमता बढ़ जाती है और खेती में काम करने वाले पशुओं की कार्यशक्ति भी बढ़ती है। दाने की अपेक्षा हरे चारे से पौष्टिक तत्व कम खर्च पर मिल सकते हैं। हरे चारे से पशुओं को विटामिन ए का मुख्य तत्व केरोटिन काफी मात्रा में मिल जाता है। हरे चारे के अभाव में पशुओं को विटामिन ए प्राप्त नहीं हो सकेगा और इससे दूध उत्पादन में भारी कमी आ जाएगी, साथ ही पशु विभिन्न रोगों से भी ग्रस्त हो जायेगा। 

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 गाय व भैंस से प्राप्त बच्चे या तो मृत होंगे या वे अंधे हो जायेंगे और अधिक समय तक जीवित भी नहीं रह सकेंगे। इस प्रकार आप देखते हैं कि पशु आहार में हरे चारे का होना कितना आवश्यक है। साधारणतः किसान भाई अपने पशुओं को वर्ष के कुछ ही महीनों में हरा चारा खिला पते हैं इसका मुख्य कारण यह है कि साल भर हरा चारा पैदा नहीं कर पाते। आमतौर पर उगाये जाने वाले मौसमी चारे मक्का, एम. पी. चरी, ज्वार, बाजरा, लोबिया, ग्वार, बरसीम, जई आदि से सभी किसान भाई परिचित हैं। इस प्रकार के अधिक उपज वाले पौष्टिक उन्नतशील चारों के बीज़ पशुपालन विभाग व राष्ट्रीय बीज निगम द्वारा किसानों को उपलब्ध कराए जाते है जिससे वह अपने कृषि फसल चक्र के अंदर अधिक से अधिक इनका उपयोग करके फायदा उठा सकते हैं जिससे अधिक से अधिक पशुओं के पोषण की पूर्ति हो सके और दूध एवं मांस उत्पादन की ब्रधि में सहायता मिले। 

हरे चारे का महत्व

 

 चारा स्वादिश्ट, रसदार, सुपाच्य तथा दुर्गन्ध रहित होने चाहिए। चारे की फसल थोड़े समय में तैयार होने वाली, अधिक पैदावार देने वाली, कई कटाई वाली होनी चाहिए। फसलों में जल्दी फुटवार होनी चाहिए फसल साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त होनी चाहिए तथा जहरीलें पदार्थ रहित होनी चाहिए। हरे चारे की नस्ल कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी उगाने योग्य होनी चाहिऐ।

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हरे चारे की मुख्य फसलें

 

 हरे चारे की दो दाल वाली फसलों में मुख्यतः वार्शिक फसल रबी में बरसीम, खरीफ में लोबिया, ग्वार तथा एक दाल वाली फसलों में रबी में जई, सर्दियों की मक्का, खरीफ में मक्का, ज्वार, बाजरा, चरी आदि हैं। तिलहन में सरसों तथा बहुवर्शीय दलहनी फसलों में रिजका, स्टाइलो, राईस बीन आदि, घासों में हाथी, पैरा, गिन्नी, दीनानाथ, मीठा सुडान, रोड, नन्दी, राई, घास आदि मुख्य चारे की घासें हैं। साल में दो बार हरे चारे की तंगी के अवसर आते हैं।

 ये अवसर है- अप्रैल, जून (मानसून प्रारम्भ होने से पहले) तथा नबम्बर, दिसम्बर (मानसून खत्म होने के बाद) जबकि पशुओं में साल भर हरे चारे की जरूरत पड़ती है। चारे उगाने की उचित वैज्ञानिक तकनीक अपना कर पर्याप्त मात्रा में हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। अच्छे उत्पादन के विभिन्न फसल चक्र का चुनाव वहाॅं की जलवायु अथवा मिट्टी की संरचना पर आधारित है। उत्तर में रबी के मौसम में बरसीम, जई, सेंजी, मेथा आदि फसलें आसानी से उगाई जा सकती हैं। दक्षिणी इलाकों में जहां सामान्यतः तापमान 12-15 से. ग्रे. से नीचे नहीं आता ऐसे इलाकों में ज्वार, मक्का, स्टाइलो, बाजरा, हाथी घास, गिनी घास, पैरा घास व चरी आदि उगाये जा सकते हैं। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें जैसे सूडान घास, ज्वार, अंजन, ब्ल्यू पैनिक आदि उगाना उत्तम रहता है। हरे चारे हेतु उपयोगी फसलें नीचे दी हुई है।

पशुओं को आवारा छोड़ने वालों पर राज्य सरकार करेगी कड़ी कार्रवाही

पशुओं को आवारा छोड़ने वालों पर राज्य सरकार करेगी कड़ी कार्रवाही

योगी सरकार प्रदेश में घूम रहे निराश्रित पशुओं की सुरक्षा के लिए अभियान चलाने जा रही हैं। इसके लिए समस्त जनपदों के अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में सड़कों पर विचरण कर रहे पशुओं को लेकर अक्सर राजनीति होती रहती है। ऐसी स्थिति में सड़कों पर छुट्टा घूम रहे गोवंश को लेकर राज्य सरकार काफी सख्ताई बरत रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के समस्त जिला अधिकारियों को सड़कों पर घूम रहे निराश्रित गोवंश को गौशालाओं तक पहुंचाने के निर्देश दिए हैं। उत्तर प्रदेश के पशुधन और दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया है, कि राज्य में यह अभियान चलाकर हम निराश्रित गोवंश का संरक्षण करने के साथ-साथ उन्हें गौशालाओं तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इसके लिए अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं। राज्य सरकार की ओर से गौ संरक्षण करने के लिए यह योजना जारी की गई है।

गोवंश संरक्षण हेतु अभियान का समय

उत्तर प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह का कहना है, कि इस योजना का प्रथम चरण बरेली, झांसी और गोरखपुर मंडल में 10 सितंबर से 25 सितंबर तक सुनिश्चित किया जाएगा। सड़कों पर विचरण कर रहे गोवंश को गोआश्रय तक पहुंचाने का कार्य किया जाएगा। वहीं, इसके साथ ही उनके खान-पान की भी समुचित व्यवस्था की जाएगी। यह भी पढ़ें: योगी सरकार ने मुख्यमंत्री खेत सुरक्षा योजना के लिए 75 से 350 करोड़ का बजट तय किया

पशुओं को छुट्टा छोड़ने वालों पर होगी कानूनी कार्रवाई

उत्तर प्रदेश के पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने इन जनपद के किसानों एवं पशुपालकों से निवेदन किया है, कि कोई भी पशुओं को सड़कों पर निराश्रित ना छोड़ें। यदि कोई भी शक्श ऐसा करता पाया गया तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। उन्होंने जनपद के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं, कि ऐसे लोगों की पहचान की जाए जो पशुओं को खाली सड़कों पर छोड़ दे रहे हैं। साथ ही, संपूर्ण राज्य में इस अभियान का चरणबद्ध ढ़ंग से प्रचार-प्रसार किया जाए। सरकार स्थानीय प्रशासन, मनरेगा एवं पंचायती राज विभाग के सहयोग से समस्त जनपदों में गोआश्रय स्थल बनवाएगी और पहले से मौजूद गौशालाओं की क्षमता का विस्तार भी किया जाऐगा। यह भी पढ़ें: योगी सरकार द्वारा जारी की गई नंदिनी कृषक बीमा योजना से देशी प्रजातियों की गायों को प्रोत्साहन मिलेगा

मवेशियों की ईयर टैगिंग की जाऐगी

पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया है, कि ग्रामीण क्षेत्र के सभी पशुओं का ईयर टैगिंग किया जाएगा। इसकी सहायता से मवेशियों की देखभाल और निगरानी में काफी आसानी होगी। इसके अतिरिक्त सरकार ने बाढ़ प्रभावित जनपदों में पशुओं के लिए पर्याप्त चारा, औषधीय और संक्रामक रोगों से संरक्षण के लिए दवाईयों एवं टीकाकरण की व्यवस्था भी करेगी।
ब्रीडिंग फार्म खोलकर पशुपालक हो रहे हैं मालामाल, जाने कैसे कर सकते हैं आप यह बिजनेस

ब्रीडिंग फार्म खोलकर पशुपालक हो रहे हैं मालामाल, जाने कैसे कर सकते हैं आप यह बिजनेस

भारत में किसान काफी पहले से खेती के साथ-साथ पशुपालन भी करते रहे हैं। पशु पालन करते हुए किसान अलग-अलग तरह से आमदनी कमा सकते हैं। 

आजकल दूध डेयरी प्रोडक्ट की डिमांड काफी ज्यादा बड़ी है। इस बढ़ती हुई डिमांड के कारण ही पुराने किसान और बहुत से नए लोग भी डेयरी फार्मिंग (Dairy farming) के बिजनेस में बहुत ज्यादा रुचि ले रहे हैं। 

इसके अलावा जो लोग पहले से इस बिजनेस में लगे हुए हैं, वह सभी भी बढ़-चढ़कर अपने बिजनेस को फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। दूध-डेयरी उत्पादों की साल भर डिमांड रहती है, इसलिए यह बिजनेस फायदे का सौदा साबित हो रहा है। 

आने वाले समय में दूध और डेयरी उत्पादों की ज्यादा खपत का अनुमान है। ऐसे में यदि आप डेयरी फार्मिंग कर रहे हैं, तो साथ में एक ब्रीडिंग फार्म भी खोल सकते हैं, जिसके लिए सरकार आर्थिक मदद भी देती है।

क्यों जरूरी है पशुओं की ब्रीडिंग

इस फील्ड से जुड़े हुए एक्सपर्ट से बात करने पर पता चलता है, कि पशुओं की ग्रेडिंग करने का सबसे मुख्य उद्देश्य उनके उत्पादन में वृद्धि करना है। 

इसके अलावा इस बात पर खास ध्यान देने की जरूरत है, कि आप जो भी उत्पादन कर रहे हैं उसमें गुणवत्ता का खास ख्याल रखा जाए। इस तकनीक के जरिए आप विलुप्त मवेशियों की प्रजातियों को भी पुनर्जीवित कर सकते हैं और ऐसा किया भी जा रहा है। 

कई संस्थाएं गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी, सूअर और बत्तख आदि पशुओं की देसी और पुरानी नस्लों का कृत्रिम गर्भाधान करवाके उनका संरक्षण और संवर्धन कर रहे हैं।

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ब्रीडिंग फार्म क्या है?

हमेशा से ही हमारे देश में दूध की डिमांड बहुत ज्यादा रही है, जिसके चलते देश में दूध का उत्पादन बढ़ाने को लेकर भी कोशिशें की जा रही हैं। 

बहुत से पशुपालक अच्छी नस्ल के पशुओं को खरीदकर अपने डेयरी फार्म बिजनेस को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। 

इस तरह के डेरी फॉर्म में पशुपालकों का सबसे पहला उद्देश्य दूध उत्पादन होता है। इसलिए अगर उन्हें पशुओं की नस्ल में कुछ कमी दिखती है, तो वह उन्हें बदलने से झिझकते नहीं है। 

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अगर डेयरी फार्म की बात की जाए तो यहां पर केवल इस बात पर ध्यान दिया जाता है, कि दूध की सप्लाई लगातार बनी रहे। लेकिन ब्रीडिंग फार्म में अच्छी गुणवत्ता के पशुओं की संख्या बढ़ाने पर ध्यान दिया जाता है। 

इसमें अच्छी नस्ल को प्रमोट करते हुए ब्रीडिंग के जरिए पशुओं की संख्या बढ़ाई जाती है। यहां पर डेयरी फार्म बिजनेस वालों के पास एक फायदा है, कि अगर उनके पास पहले से अच्छी नस्ल के पशु मौजूद हैं। 

तब वह उन्हीं के जरिए ब्रीडिंग फार्म खोल सकते हैं और अच्छी गुणवत्ता वाले पशुओं की संख्या बढ़ा सकते हैं। अब यदि डेयरी फार्म में पशुपालकों के पास पहले से ही अच्छी नस्ल है, तो ब्रीडिंग फार्म के जरिए पशुओं की संख्या बढ़ा सकते हैं।

पशु विशेषज्ञ, डॉ. रोहित गुप्ता बताते हैं, कि 'ब्रीडिंग फार्म में पशुओं का मल्टीप्लीकेशन किया जाता है। यहां अच्छे जीन को प्रोपगेट किया जाता है, ताकि अच्छे दूध देने वाले पशु की संख्या बढ़ाई जा सके। 

गुड क्वालिटी एनिमल को प्रमोशन मिले। ब्रीडिंग फार्म में हर एक पशु के बारे में पूरी तरह से रिकॉर्ड रखे जाते हैं और साथ ही उनकी हिस्ट्री भी मेंटेन की जाती है। जिसमें पशु की मां और सिबलिंग की सेहत, दूध की मात्रा और प्रजनन क्षमता के बारे में भी लिखा होता है। 

जिन पशुओं का रिकॉर्ड अच्छा रहता है, उन्हीं की ब्रीडिंग होती है और उनसे पैदा होने वाले नौनिहाल डेयरी फार्म्स का फ्यूचर (Future) बनते हैं। यदि आप डेयरी फार्म के साथ ब्रीडिंग का काम भी कर रहे हैं, ज्यादा जगह की आवश्यकता नहीं होगी। 

इस मामले में कृषि विज्ञान केंद्र, जालंधर के पशु विशेषज्ञ डॉ. रोहित गुप्ता बताते हैं, कि एक 'ब्रीड मल्टीप्लिकेशन फार्म' में पशुओं के खाने, पीने से लेकर बीमारी, घूमने-फिरने का ध्यान रखकर कंफर्टेबल वातावरण दिया जाता है। 

जिसे वैज्ञानिक विधि से पशुपालन भी कहते हैं। अगर आप एक बिल्डिंग फॉर्म शुरू करना चाहते हैं, तो आप इसे 20 पशुओं के साथ आसानी से शुरू कर सकते हैं। 

यदि आप डेयरी फार्मिंग कर रहे हैं, तो अपनी अच्छी नस्लों की हिस्ट्री का रिकॉर्ड रखते हुए ब्रीडिंग फार्म भी खोल सकते हैं।

मादा पशु हैं डेयरी-ब्रीडिंग फार्म का भविष्य

देश में हमेशा से ही अच्छा दूध देने वाले पशुओं की नस्ल की मांग रही है। पशु विशेषज्ञ डॉ. रोहित गुप्ता बताते हैं कि एक मादा मवेशी ही गर्भधारण करती है और दूध देती है। 

इसलिए राष्ट्रीय गोकुल मिशन के तहत सेक्स सॉर्टेट सीमेन को प्रमोट किया जा रहा है। जिससे मादा पशु के पैदा होने की संभावना 90 से 95 फीसदी तक होती है। इस स्कीम के तहत इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के तहत अच्छी गुणवत्ता के पशु पैदा किए जा रहे हैं।

अच्छे ब्रीडिंग फार्म का रजिस्ट्रेशन जरूरी

इस बिज़नेस में धोखाधड़ी की संभावनाएं बहुत ज्यादा है। बहुत से लोग अच्छी नस्ल का पशु बोलकर ऐसे पशु बेच देते हैं, जिनकी सेहत और प्रजनन क्षमता इतनी अच्छी नहीं होती है। आपको उनसे ना तो अच्छी नस्ल के पशु मिल पाते हैं और ना ही अच्छा दूध उत्पादन ही हो पाता है। 

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आप चाहते हैं, कि आपका ब्रीडिंग फार्म अच्छी तरह चलता रहे। साथ ही, अच्छी क्षमता वाले उन्नत नस्ल के पशुओं को दूसरे पशुपालक भी पसंद करके बेझिझक खरीद लें। 

तो रजिस्ट्रार कॉर्पोरेटिव सोसाइटी से रजिस्टर करवाएं और पशुपालन विभाग से एक्रेडेशन लें। इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि सरकार की तरफ से तमाम योजनाओं का लाभ ले पाएंगे। 

सरकारी योजनाओं से सब्सिडी मिल पाएगी और पशुपालक को भी बिजनेस और ग्राहक को पशु खरीदने पर सिक्योरिटी रहेगी।

क्या है कमाई की संभावनाएं

इस व्यवसाय में आपको फायदा तभी होगा जब आप अच्छी नस्ल के पशुओं को रखेंगे और पशुओं में यह क्वालिटी बनाए रखेंगे। इसके अलावा जरूरी है, कि आप अपने पशुओं से जुड़े हुए सभी तरह के रिकॉर्ड अच्छी तरह से संभाल कर रखें।

यदि मुनाफा कमाने का सोच रहे हैं, तो 3 से 5 साल का समय लग सकता है। एक बार ब्रीडिंग फार्म जम जाए तो हर साल 10 दुधारु पशुओं की बिक्री कर सकते हैं।

ब्रीडिंग फार्म के लिए आर्थिक मदद

मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो कुछ दिन पहले ही केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री संजीव बालियान ने जानकारी दी कि ब्रीडिंग फार्म बिजनेस के लिए सरकार 50% सब्सिडी देने की योजना बना रही है। 

 यदि आप गाय, भैंस, बकरी, सूअर और मुर्गी के ब्रीडिंग फार्म पर 4 करोड़, 1 करोड़, 60 लाख या 50 लाख खर्च करते हैं। तो राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना का लाभ लेकर 50% अनुदान हासिल कर सकते हैं।

कहां से मिलेगी जानकारी

सरकार ने हर एक जिले में जगह-जगह पर पशुपालन विभाग या फिर डेयरी विभाग के कार्यालय खोले हैं। आप अपने नजदीकी पशु पालन विभाग में जाकर इस बिजनेस से जुड़ी हुई सारी जानकारी ले सकते हैं। 

वहां मौजूद वेटनरी डॉक्टर आपको तकनीकी सहयोग भी करेंगे। यहां पर आपको सरकार की तरफ से दी गई सभी सुविधाओं के बारे में पूरी तरह से जानकारी देने के लिए पशुपालन अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। 

अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से आप ब्रीडिंग फार्म खोलने के लिए ट्रेनिंग और अन्य तकनीकी जानकारियां भी हासिल कर सकते हैं। यदि सही जानकारी के साथ ब्रीडिंग फार्म चालू करेंगे तो निश्चित ही मुनाफा होगा।

भारतीय नस्लों ने विदेश में बढ़ाया दूध

रिपोर्ट के मुताबिक बहुत सी ऐसी देसी गाय की नस्ल हैं जो भारतीय है, लेकिन उन्होंने विदेशों में भी दूध में उत्पादन बढ़ा दिया है। 

पशु विशेषज्ञ डॉ. रोहित गुप्ता बताते हैं, कि ब्राजील ने भारत की गिर नस्ल (गुजरात) की गाय और ऑस्ट्रेलिया ने साहीवाल नस्ल (पंजाब) की गाय की सलेक्टिव ब्रीडिंग के जरिए दूध का उत्पादन बढ़ा लिया है। 

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1970 के दशक से ही हम वाइट रिवोल्यूशन का हिस्सा रहे हैं और बहुत सी विदेशी नस्लों के साथ हमने अपने देसी ब्रीड का क्रॉस ब्रीडिंग किया है। जिससे पशुओं की नस्लों में काफी अच्छा सुधार आया है। 

आज इस बात को लगभग 50 साल बीत गए हैं और हमने काफी पशुओं को क्रॉस ब्रीड करते हुए चेंज कर लिया है। इसके अलावा बहुत सी रिसर्च में अब यह भी पता चल रहा है, कि भारत की देसी नस्ल में भी दूध में ज्यादा पोषण है और उसकी गुणवत्ता भी ज्यादा अच्छी है। 

इसी रिचार्ज के चलते अब राष्ट्रीय गोकुल मिशन चलाया जा रहा है, जिसमें देसी नस्ल के पशुओं को ज्यादा से ज्यादा प्रमोट किया जा रहा है। इस तरह से आप पूरी जानकारी लेते हुए यह बिजनेस आसानी से शुरू कर सकते हैं और अगले 3 से 5 साल में इस से मुनाफा कमाते हुए अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं।

हरियाणा में 39 वें राज्य स्तरीय पशु मेले का आयोजन किया जा रहा है

हरियाणा में 39 वें राज्य स्तरीय पशु मेले का आयोजन किया जा रहा है

हरियाणा में आयोजित होने वाले 39 वें पशु मेले में 50 लाख तक की ईनामी धनराशि रखी गई है। इस मेले में पशुओं की प्रर्दशनी समेत उनके रैंप वॉक का भी आयोजन किया गया है। आज किसान भाई पशुपालन में भी प्रयाश कर रहे हैं। दूध एवं इससे निर्मित उत्पादों की माँग वृद्धि के मध्य फिलहाल किसान भी पशुपालन की तरफ रुख कर रहे हैं। इससे कृषि सहित अतिरिक्त आय की भी व्यवस्था हो जाती है। पशुपालन क्षेत्र के प्रगति-विस्तार हेतु केंद्र एवं राज्य सरकारें एकजुट होकर लगातार कोशिश कर रही हैं। जहां केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय पशुधन मिशन योजना जारी की गई है। साथ ही, राज्य सरकारें भी स्वयं के स्तर से पशुपालन को प्रोत्साहन देने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं।

हरियाणा में आयोजित किया जा रहा पशु मेला

हरियाणा पशुपालन विभाग चरखी दादरी में 11 से 13 मार्च तक 39वीं राज्य स्तरीय पशु मेले का आयोजन किया जा रहा है। जहां घोड़े एवं ऊंटों के शानदार करतबों का कार्यक्रम आयोजित भी होगा। इस पशु मेले के अंतर्गत 50 से भी ज्यादा पशु प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाएंगी। मेले में जीतने वाले पशुपालकों को 50 लाख रुपये के पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे। 

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पशुपालकों को 50 लाख रुपये का ईनाम

मीडिया खबरों के मुताबिक, हरियाणा के चरखी दादरी में आयोजित 39वां राज्य स्तरीय पशु मेले में खागड़, मेंढ़े, ऊंट, सूअर, गधों, गाय, भैंस, बैल, बकरी, भेड़, की उन्नत नस्लों की प्रदर्शनियां की जाएंगी। इसके अतिरिक्त, विश्वभर में प्रसिद्ध हरियाणा की पशु प्रजातियां मुर्रा एवं साहीवाल के साथ-साथ विदेशी नस्ल के मवेशियों के मध्य 50 से ज्यादा प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएँगी। इन प्रतियोगिताओं में जीतने वाले पशु पालकों को 50 लाख रुपये का पुरस्कार देने का नियोजन है। इन प्रतियोगिताओं में दूजा एवं तीजा स्थान पाने वाले पशुपालकों को भी निर्धारित मानकों के अनुसार से पुरस्कृत किया जाएगा।

छुट्टा गौवंश से परेशान किसान ने अपनी सात बीघा भूमि में खड़ी फसल पर चलाया ट्रैक्टर

छुट्टा गौवंश से परेशान किसान ने अपनी सात बीघा भूमि में खड़ी फसल पर चलाया ट्रैक्टर

उत्तर प्रदेश राज्य के अंतर्गत आने वाले बिजनौर जनपद में आवारा पशुओं से दुखी होकर एक किसान ने खेत में खड़ी गेहूं की फसल पर ट्रैक्टर चला दिया। कहा गया है, कि ग्रामीण एवं किसान छुट्टा गोवंश से बेहद दुखी हैं। इसी कारण किसान ने अपने खेत में खड़ी फसल को जोत डाला।

किसान सुनील कुमार ने सात बीघा में खड़ी फसल को उजाड़ा

बिजनौर के गंज दारानगर में निराश्रित पशुओं से परेशान किसान ने
गेहूं की फसल जोत डाली। जानकारी के अनुसार गांव शांहपुर में एक किसान ने अपने करीब सात बीघा गेहूं की फसल ट्रैक्टर से जोत डाली। किसान सुनील कुमार का आरोप है कि छुट्टा पशु फसलों को बर्बाद कर रहे हैं। शासन-प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा। इसीलिए उसने अपनी गेहूं की खड़ी-फसल को ट्रैक्टर से जोत दिया।

बिजनौर के ग्राम शाहपुर में हुई यह घटना

ग्राम शाहपुर निवासी सुनील कुमार ने सात बीघा गेहूं की फसल आवारा पशु से हताश होकर फसल जोत डाली। पशु गेहूं की फसल को काफी प्रभावित कर रहे हैं। किसान पूरी-पूरी रात जागकर फसल की निगरानी करते रहे हैं एवं निराश्रित पशुओं को खेतों से भगाते हैं। इसके उपरांत आवारा पशुओं ने गेहूं की फसल को काफी हानि पहुंचाई है। इससे हताश होकर किसान सुनील कुमार ने मंगलवार को सात बीघे में गेहूं की फसल को जोत दिया है।

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क्षेत्र में भारी तादात में पशु घूम रहे हैं, जो फसल को काफी हानि पहुंचा रहे हैं। जब तक आवारा पशुओं को पकड़कर गौशालाओं में नहीं पहुँचाया जाता, तब तक फसल की सुरक्षा करना काफी दुर्लभ सा काम हो गया है। किसानों ने आवारा पशुओं को पकड़ कर गौशाला में भेजने की मांग जाहिर की है।

योगी सरकार का निराश्रित गौवंश के लिए क्या कर रही है

हालाँकि, राज्य सरकार गौवंश के बेहतर प्रबंधन के लिए कई सारे अहम कदम उठा रही है। योगी सरकार गौ-आधारित कृषि को प्रोत्साहन देने का कार्य कर रही है। जिसके लिए राज्य सरकार ने काफी मोटी धनराशि आवंटित की है। साथ ही, तारबंदी कराने के लिए भी किसानों को अनुदान भी मुहैय्या कराया जाता है।
जानें सबसे छोटी नस्ल की वेचुर गाय की विशेषताओं के बारे में

जानें सबसे छोटी नस्ल की वेचुर गाय की विशेषताओं के बारे में

सर्वप्रथम भारत के वैज्ञानिकों द्वारा देसी प्रजाति की 4 गायों का ड्राफ्ट जीनोम सिक्वेंस विकसित किया गया है। जिसके अंतर्गत उनको विभिन्न प्रकार की विशेष बातों की जानकारी हुई है। आज हम इस लेख में आपको बताने जा रहे हैं सबसे छोटी नस्ल की गाय के विषय में। हमारे भारत में किसान भाई अतिरिक्त आमदनी अर्जित करने हेतु खेती के साथ-साथ पशुपालन भी किया करते हैं। इसी दौरान भारत में नित-नए दिन पशुपालन के चलन में तीव्रता से वृद्धि देखी जा रही है। इसके लिए किसान भाइयों को सरकार के माध्यम से भी आर्थिक सहायता अर्जित होती है। यदि आप भी ज्यादा धन कमाने हेतु पशुपालन करने के विषय में विचार कर रहे हैं। तो आपको उसके लिए देसी नस्ल की गाय का चयन करना बेहद फायदेमंद माना जाएगा। इन गायों से किसानों को काफी सारे फायदे होते हैं। असलियत में प्राकृतिक खेती से लेकर यह दूध उत्पादन तक बेहद फायदेमंद साबित होती हैं। इसी संबंध में IISER के वैज्ञानिकों द्वारा देसी गायों पर शोध किया गया है, जिसमें उनको विभिन्न तरह की विशेष बातों के बारे में जानकारी मिली।

पहली बार देसी नस्ल की गाय का हुआ जीनोम सीक्वेंसिंग

खबरों के मुताबिक, भारतीय विज्ञान शिज्ञा और अनुसंधान संस्थान (IISER) के वैज्ञानिकों द्वारा देसी गायों की ड्राफ्ट जीनोम सिक्वेंस विकसित कर दिया गया है। कहा जा रहा है, कि भारत में सर्वप्रथम देसी गाय पर आजमाई गई जीनोम सीक्वेंसिंग की प्रोसेस की गई है। जिसमें 4 नस्ल की गाय वेचूर, ओगोंल कासरगोड ड्वार्फ और कोसरगोड कपिला को शम्मिलित किया गया है। यह भी पढ़ें: इन नस्लों की गायों का पालन करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं

जानें सबसे छोटी गाय के बारे में

इस शोध से वैज्ञानिकों को यह मालूम करने में भी सहायता मिली है, कि विश्व की सर्वाधिक छोटी नस्ल की गाय वेचुर गाय है। आपको बतादें कि इस गाय की हाइट बस 2.8 फीट तक होती है। केवल यह ही नहीं इस गाय के दूध में अन्य गायों की तुलना में सर्वाधिक प्रोटीन पाया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें कि विश्व की सर्वाधिक छोटी नस्ल की इस गाय के माध्यम से प्रतिदिन 2 से 3 लीटर तक दूध अर्जित किया जा सकता है। यदि आप इस गाय का पालन करते हैं, तो इसके लिए आपको ज्यादा परिश्रम करने की भी आवश्यकता नहीं होती है। क्योंकि यह अन्य गायों की अपेक्षा कम चारे में ही अपना जीवन यापन करने की विशेषता रखती है।
इस राज्य के कई गांवों में पशुओं को रविवार की छुट्टी देने की परंपरा चली आ रही है

इस राज्य के कई गांवों में पशुओं को रविवार की छुट्टी देने की परंपरा चली आ रही है

झारखंड राज्य के 20 गांवों में पशुओं की देखरेख और सेहत के लिहाज से स्वस्थ्य परंपरा जारी है। ग्रामीण इस अवसर पर अपने पशुओं से किसी भी प्रकार का कोई कार्य नहीं लेते हैं। यहां तक कि ग्रामीण अपनी गाय-भैंस का दूध भी नहीं निकालते हैं। झारखंड राज्य के 20 से ज्यादा गांवों में पशुओं को भी एक दिन का अवकाश प्रदान किया जाता है। इनका भी आम लोगों की तरह रविवार को आराम का दिन होता है। क्योंकि रविवार के दिन इन मवेशियों से किसी भी प्रकार का कोई काम नहीं लिया जाता है। लोतहार जनपद के 20 गांवों में पशुओं की यह छुटटी रविवार के दिन होती है। इस दिन गाय-भैंसों का दूध भी नहीं निकाला जाता है।

पशुपालक रोपाई और खुदाई भी अपने आप करते हैं

पशुपालक रविवार के दिन अपने समस्त पशुओं की खूब सेवा किया करते हैं। पशुओं को काफी बेहतरीन आहार प्रदान किया जाता है। पशुपालक रविवार के दिन स्वयं ही कुदाल लेकर के खेतोें में पहुँच जाते हैं। पशुपालक स्वयं ही जाकर के खेतों में कार्य करते हैं। किसी भी स्थिति में मवेशियों को रोपाई अथवा बाकी कामों हेतु खेत पर नहीं ले जाते हैैं। किसान भाई इस दिन अपने आप ही कार्य करना पसंद करते हैं।

इस परंपरा को चलते 100 वर्ष से भी अधिक समय हो गया

आपको बतादें कि स्थानीय लोगों के बताने के अनुसार, यह परंपरा उनको उनके बुजुर्गों से मिली है। जो कि 100 वर्ष से ज्यादा वक्त से चलती आ रही है। वर्तमान में नई पीढ़ियां इस परंपरा का पालन कर रही हैं। पशु चिकित्सकों ने बताया है, कि यह एक बेहतरीन सकारात्मक परंपरा है। जिस प्रकार मनुष्यों को सप्ताह में एक दिन विश्राम हेतु चाहिए। उसी तरह पशुओं को भी विश्राम अवश्य मिलना चाहिए।

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परंपरा को शुरू करने के पीछे क्या वजह थी

ग्रामीणों का कहना है, कि लगभग 100 वर्ष पूर्व खेत की जुताई करने के दौरान एक बैल की मृत्यु हो गई थी। इस घटना की वजह से गांववासी काफी गंभीर हो गए थे। इसके संबंध में गांव में एक बैठक की गई। बैठक के दौरान यह तय किया गया कि एक सप्ताह में पशुओं को एक दिन आराम करने के लिए दिया जाएगा। रविवार का दिन पशुओं को अवकाश देने के लिए तय किया गया था। तब से आज तक रविवार के दिन पशुओं से किसी भी तरह का कोई काम नहीं लिया जाता है। गांव के समस्त पशु रविवार में दिनभर केवल विश्राम किया करते हैं।
बढ़ती प्रचंड गर्मी से पशुओं को ऐसे बचाएं, गर्मी से दुग्ध उत्पादन में 15% प्रतिशत गिरावट

बढ़ती प्रचंड गर्मी से पशुओं को ऐसे बचाएं, गर्मी से दुग्ध उत्पादन में 15% प्रतिशत गिरावट

गर्मी में बढ़ोत्तरी होने की स्थिति में मवेशी चारा तक खाना कम कर देते हैं। इससे पशुओं की दुग्ध उत्पादक क्षमता में गिरावट आ जाती है। साथ ही, तेज धूप की तपिश की वजह से पशु तनाव में आ जाते हैं। इसकी वजह से उनके शरीर में सुस्ती बढ़ने लग जाती है। आजकल देशभर में अत्यधिक गर्मी पड़ रही है। इससे आम जनमानस के साथ- साथ मवेशियों का भी हाल-बेहाल हो चुका है। सुबह के 9 बजते ही शरीर को तपा देने वाली गर्म हवाएं चलने लगती हैं। ऊपर से चिलचिलाती प्रचंड धूप ने लोगों को परेशान कर दिया है। विभिन्न राज्यों में तापमान 40 डिग्री के भी लांघ चुका है। इसकी वजह से मुख्यतः मवेशी बहुत ज्यादा प्रभावित हुए हैं। गर्मी की वजह से दुधारू मवेशियों ने दूध देना कम कर दिया है। ऐसी स्थिति में पशुपालकों की आमदनी कम हो गई है।

दुग्ध उत्पादन में 15 प्रतिशत की गिरावट

मीडिया खबरों के अनुसार, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में तापमान 43 डिग्री के आसपास पहुंच चुका है। तापमान में बढ़ोत्तरी होने से मवेशियों ने दूध देना तक कम कर दिया है। बतादें, कि बढ़ती गर्मी की वजह से दूध की पैदावार में 15 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। वह दूध बेच कर पशु चारे पर आने वाली लागत जैसे-तैसे निकाल पा रहे हैं। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों का कहना है, कि यदि इसी प्रकार तापमान में वृद्धि जारी रही, तो दूध उत्पादन में और भी कमी आ सकती है। इससे उनको पशुपालन में घाटा उठाना पड़ सकता है। ये भी देखें: बढ़ते तापमान और गर्मी से पशुओं को बचाने की काफी आवश्यकता है

मवेशियों को सुबह-शाम तालाब में स्नान कराऐं

पशु चिकित्सकों के अनुसार, गर्मी बढ़ने पर मवेशी चारा खाना काफी कम कर देते हैं। इससे उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता में गिरावट आ जाती है। साथ ही, चिलचिलाती धूप की तपिश की वजह से पशु तनाव में आ जाते हैं। इससे उनके शरीर में सुस्ती बढ़ने लगती है, जिसका प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दूध देने की क्षमता पर पड़ता है। ऐसी स्थिति में दूध की मात्रा में कमी आने लगती है। ऐसी स्थिति में पशुओं को गर्मी और लू से संरक्षण देने के लिए सुबह- शाम उसे नहर अथवा तालाब में नहलाना चाहिए। इससे उनके शरीर का तापमान काफी कम रहता है, जिससे वह सेहतमंद रहते हैं।

मवेशियों को प्रतिदिन 4 से 5 बार शीतल जल पिलाएं

साथ ही, मवेशियों को गर्मी से बचाव के लिए 4 से 5 बार शीतल जल पिलाएं। साथ ही, पशुओं को छायादार और हवादार स्थान पर ही बांधे। यदि दोपहर में काफी ज्यादा तापमान बढ़ गया है, तब मवेशी के बाड़े में कूलर या पंखा भी चला सकते हैं। इससे मवेशियों को गर्मी से काफी सहूलियत मिलती है। यदि मवेशी सूखा चारा नहीं खा पा रहे हैं, तो उन्हें हरी- हरी घास खाने को दें। इससे दूध की पैदावार कम नहीं होगी। अगर संभव हो तो किसान भाई अपनी गाय- भैंस को लोबिया घास खाने के लिए उपलब्ध कराऐं। इसके अंदर काफी ज्यादा मात्रा में फाइबर, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्व विघमान रहते हैं। इससे गाय- भैंस पूर्व की तुलना में अधिक दूध देने लगती हैं।

यह घास दुग्ध उत्पादन को बढ़ा सकती है

यदि किसान भाई चाहते हैं, तो दूध की पैदावार बढ़ाने के लिए मवेशियों को अजोला घास भी खिला सकते हैं। यह घास पानी में उत्पादित की जाती है और पोषण से भूरपूर होती है। गर्मी के मौसम में इसे मवेशियों के लिए संजीवनी कहा गया है। साथ ही, प्रतिदिन 200 ग्राम सरसों के तेल में 250 ग्राम गेहूं का आटा मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण को प्रतिदिन सुबह- शाम चारे के साथ मिश्रित करके मवेशियों को खिलाएं। सिर्फ एक हफ्ते तक ऐसा करें, इससे पशुओं में दूध देनी की क्षमता बढ़ सकती है।
योगी सरकार ने किसानों की फसल को आवारा पशुओं से बचाने के लिए प्रस्ताव तैयार किया

योगी सरकार ने किसानों की फसल को आवारा पशुओं से बचाने के लिए प्रस्ताव तैयार किया

सोलर फेसिंग लगाने से किसानों को काफी हद तक फायदा मिलेगा। आवारा या निराश्रित पशु इसकी वजह से किसानों की फसलों को हानि नहीं पहुंचा पाऐंगे। क्योंकि फेसिंग से टच होते ही मवेशियों को हल्का सा करंट महसूस होगा। उत्तर प्रदेश में निराश्रित मवेशी किसानों के लिए एक बड़ी समस्या बन गए हैं। इन आवारा पशुओं के चलते हजारों हेक्टेयर में लगी फसल प्रति वर्ष चौपट हो जाती है। इससे किसानों को बड़े स्तर पर आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। परंतु, वर्तमान में उत्तर प्रदेश के किसानों को आवारा मवेशियों को लेकर अब चिंतित होने की कोई आवश्यकता नहीं है। क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा आवारा पशुओं से फसलों का बचाव करने के लिए एक शानदार प्रस्ताव पेश किया है। योगी सरकार का यह दावा है, कि इस प्रस्ताव के जारी होने के पश्चात काफी हद तक आवारा पशुओं के आतंक पर रोक लगेगी और फसल की बर्बादी भी काफी हद तक कम होगी।

योगी सरकार सोर ऊर्जा से संचालित फेसिंग का आधा खर्च उठाएगी

उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से सोलर एनर्जी यानी सौर ऊर्जा से संचालित होने वाले सोलर फेंसिंग लगाने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। इस प्रस्ताव के अनुसार, सरकार निराश्रित पशुओं के आतंक पर रोक लगाने के लिए खेतों की तारबंदी करेगी। मुख्य बात यह है, कि तारबंदी में 6 से 10 वॉट का करंट बहता रहेगा। इस करंट की आपूर्ति खेत में लगे सोलर पावर के माध्यम से होगी। इसके लिए योगी सरकार किसानों को अच्छा-खासा अनुदान दे सकती है। सोलर पावर और तारबंदी करने पर जो खर्चा आएगा उसका आधा खर्च राज्य सरकार द्वारा उठाया जाएगा।

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बहुत सारे पशुओं की मृत्यु भी हो चुकी है

सोलर फेंसिंग लगाने के उपरांत किसानों को इसका काफी फायदा होगा। आवारा मवेशी उनकी फसलों को चौपट नहीं कर पाऐंगे। क्योंकि, फेंसिंग से टच होते ही मवेशियों को हल्का सा करंट लगेगा। हालांकि, इस करंट की वजह से मवेशियों को कोई भी नुकसान नहीं होगा। हालांकि, पहले भी किसान मवेशियों से फसलों का बचाव करने के लिए खेतों की कटीले तारों से फेसिंग करते थे। कटीले तारों की फेसिंग में करंट की आपूर्ति करना प्रतिबंधित है। क्योंकि, इस की वजह से मवेशियों को काफी हानि पहुंचती थी। वह करंट एवं कटीले तार की चपेट में आने की वजह से घायल हो जाते थे। अब तक उत्तर प्रदेश में इलेक्ट्रिक फेंसिंग की चपेट में आने से बहुत सारे मवेशियों की मृत्यु भी हो चुकी है।

प्रस्ताव कब तक पेश होगा

बता दें, कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के आने से पहले आवारा मवेशी बहुत बड़ा चुनावी मुद्दा बन गए थे। यही कारण है, कि कृषि विभाग की तरफ से आवारा मवेशियों से फसलों का बचाव करने के लिए इस प्रकार का प्रस्ताव तैयार किया है। ऐसा कहा जा रहा है, कि सोलर फेंसिंग के लिए सरकार अच्छी-खासी सब्सिडी प्रदान कर सकती है। इसके लिए बजट का आकलन किया जा रहा है। कैबिनेट बैठक के पश्चात यह प्रस्ताव लाया जा सकता है।
मवेशियों और फसलों की आने वाले 15 दिनों में विशेष ध्यान रखने की जरूरत

मवेशियों और फसलों की आने वाले 15 दिनों में विशेष ध्यान रखने की जरूरत

नवंबर माह में आगामी 15 दिनों के दौरान कृषकों को अपने खेत में क्या करना चाहिए एवं क्या नहीं इस संबंध में कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा सलाह जारी कर दी गई है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों ने पशुपालकों के लिए भी जरूरी सलाह जारी की है। जैसा कि हम जानते हैं, कि नवंबर महीना चाल हो चुका है। ऐसी स्थिति में प्रसार शिक्षा निदेशालय, चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर के वैज्ञानिकों ने कृषकों के लिए नवंबर माह के प्रथम पखवाड़े मतलब कि आगामी 15 दिनों के चलते किए जाने वाले कृषि एवं पशुपालन से जुड़े कार्यों को सुव्यवस्थित ढ़ंग से करने के लिए सलाह जारी कर दी गई है। जिससे किसान इन कामों को करके स्वयं की आय को बढ़ा सकें। बतादें, कि कृषि वैज्ञानिकों की तरफ से जारी की गई सलाह में फसल उत्पादन, मसर, सब्जी उत्पादन, फसल संरक्षण और पशुधन इत्यादि के विषय में बताया गया है।

गेंहू की रबी फसलों का उत्पादन

भारत के विभिन्न राज्यों में गेहूं रबी मौसम की प्रमुख फसल है। ऐसे में गेहूं की आरंभिक फसल को शीतोष्ण वातावरण की आवश्यकता पड़ती है। यदि वातावरण प्रारंभ में गर्म है, तो फसल की जड़ काफी कम बनती है। साथ ही, इसके रोगग्रसित होने की संभावना भी ज्यादा बढ़ जाती है। साथ ही, निचले एवं मध्यवर्ती इलाकों के कृषक नवंबर माह के प्रथम पखवाड़े में गेहूं की ऐच.पी.डब्ल्यू-249, एच.पी.डब्ल्यू-368, एच.पी.डब्ल्यू-155, एच.पी.डब्ल्यू-236, वी.एल.-907, एच.एस.507, एच.एस.562 व एच.पी. डब्ल्यू-349 किस्मों को अपने खेत में लगाना चाहिए। इसके अतिरिक्त निचले इलाकों के किसान गेहूं की एच.डी. -3086. डी. पी. डब्ल्यू- 621-50-595, व एच.डी.-2687 किस्में लगाएं। किसान को बिजाई के लिए रैक्सिल 1 ग्राम/कि.ग्रा बीज बाविस्टिन या विटावेक्स 2.5 ग्राम/किग्रा. बीज से उपचारित बीज का उपयोग करना चाहिए।

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 बतादें, कि गेहूं की बिजाई सितंबर माह के समापन या फिर अक्टूबर माह की शुरुआत में की गई हो। खरपतवारों के पौधे 2-3 पत्तों की अवस्था, बिजाई के 35 से 40 दिनों पश्चात में हो तो इस समय गेहूं में खरपतवार नाशक रसायनों का छिड़काव जरूर करें। आइसोप्रोट्यूरॉन 75 डब्ल्यू.पी. 70 किग्रा दवाई या वेस्टा 16 ग्राम एक कनाल के लिए पर्याप्त होती है। छिड़काव के लिए 30 लीटर पानी प्रति कनाल के अनुरूप इस्तेमाल करें।


 

पशुओं में बिमारियों को पहचाने

पशुओं में शर्दियों के मौसम में होने वाले रोगों की और प्रबंधन से जुड़े काम को पशुपालक सुनिश्चित करें। अगर देखा जाए तो इस मौसम में फेफड़ों वसन तंत्र और चमड़ी के रोग ज्यादा होते हैं। घातक संक्रामक रोग जैसे पी. पी. आर. इस समय सिरमौर जनपद में सम्भावित भेड़ एवं बकरी पॉक्स, इस समय किन्नौर जनपद में संभावित गलघोंटू रोग, शिमला में खुरपका एवं मुंहपका रोग होते हैं। अगर पशुपालक मवेशियों में बीमारी के किसी भी लक्षण जैसे कि भूख न लगना अथवा कम होना, तीव्र बुखार की हालत में शीघ्र पशु चिकित्सक की सलाह लें। इस वक्त फेशियोला और एम्फीस्टोम नामक फीता कृमियों के संक्रमण को नजरअंदाज ना करें।

गाय की इस नस्ल का पालन करने पर पशुपालकों को मिल सकती है सब्सीडी

गाय की इस नस्ल का पालन करने पर पशुपालकों को मिल सकती है सब्सीडी

खेती के सात साथ किसान पशुपालन करके भी अपनी आमदनी बढ़ा सकते है।  पशुपालन के अंदर ज्यादातर गाय और भैंस जैसे दुधारू पशुओं का पालन किया  जाता है। 

पशुपालक को गाय की उत्तम किस्म का चयन करना चाहिए ताकि अधिक दूध प्राप्त किया जा सके। गाय की ऐसी बहुत सी नस्ल है जिनसे अच्छा दूध प्राप्त किया जा सकता है। ऐसी ही गाय की नस्ल मे से एक नस्ल है साहीवाल। 

साहीवाल गाय को अधिक दूध देने वाली गाय माना जाता है यदि गाय का अच्छे से रखरखाव किया जाए तो प्रतिदिन गाय से 10 से 16 लीटर दूध प्राप्त किया जा सकता है। 

साहीवाल नस्ल की गाय का ज्यादातर पालन हरियाणा और राजस्थान मे किया जाता है। यदि आप भी दूध के अधिक उत्पादन के लिए डेयरी खोलना चाहते है तो उसके लिए साहीवाल गाय का ही चयन करें। 

बहुत से पशुपालक साहीवाल गाय का पालन करके अपनी इनकम बढ़ा रहे है। इसके अलावा सरकार  द्वारा देशी गाय के पालन के लिए सब्सीडी भी प्रदान की जा रही है। 

कैसे करें साहीवाल गाय की पहचान 

साहीवाल गाय की पहचान करना काफी सरल है, साहीवाल गाय की पहचान उसके शरीर की बनावट, सींघो और गाय की रंग से आसानी से की जा सकती है। 

  1. साहीवाल गाय की सींघ दिखने मे छोटे और मोटे होते है। 
  2. साहीवाल गाय की गर्दन की नीचे खाल की एक मोटी परत लटकी हुई होती है। 
  3. इस नस्ल की गाय के शरीर का आकर मध्यम और माथा आगे से चौड़ा होता है। 
  4. साहीवाल गाय का रंग गहरे भूरे और लाल रंग का होता है, इसके शरीर पर सफ़ेद रंग के चमकदार धब्बे भी होते है। 
  5. इस नस्ल की गाय के पीठ पर बने कूबड़ की ऊंचाई 120 सेंटीमीटर होती है। 
  6. साहीवाल नस्ल की इस गाय का वजन 300 से 400 किलोग्राम होता है। 

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साहीवाल गाय की विशेषताएं क्या है ?

साहीवाल गाय की बहुत सी ऐसी विशेषताएं है जो इसे अन्य गायों से अलग बनाती है , आइये बात करते है साहीवाल गाय की विशेषताओं के बारे मे। 

  1. साहीवाल गाय की इस नस्ल को अन्य गायों की तुलना मे अधिक दूध देने वाली गाय माना गया है। 
  2. साहीवाल गाय एक ब्यात पर 10 महीने तक दूध देती है , पुरे ब्यांत मे यह  2270 लीटर दूध देती है। 
  3. रोजाना की बात करें यह गाय प्रतिदिन 10 से 16 लीटर दूध देती है। 
  4. अन्य गायों की तुलना मे इस गाय के दूध मे प्रोटीन और वसा ज्यादा मात्रा मे पायी जाति है। 
  5. गर्म इलाकों मे भी यह गाय आसानी रह सकती है। 
  6. साहीवाल गाय के रखरखाव पर ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता है , इसे आसानी से कोई भी पशुपालक पाल सकता है। 
  7. इस नस्ल की गाय की प्रजनन अवधी मे 15 महीने का समय अंतराल होता है। 

साहीवाल गाय की कीमत 

किसी गाय की कीमत उसकी दूध देने की क्षमता, उम्र और नस्ल पर निर्भर करती है।  ऐसे मे साहीवाल गाय की कीमत 40000 से 60000 रुपए तक है। 

साहीवाल गाय की खरीद पर कितनी सब्सीडी मिल रही है ?

सरकार द्वारा किसानों को देसी गायों की खरीद के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके अलावा गाय पालन को बढ़ावा देने के लिए बिहार सरकार द्वारा गौपालन प्रोत्साहन योजना 2023 -2024 चलाई जा रही है। 

इस योजना के अंतर्गत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को गौपालन के लिए डेरी लगाने के लिए 75% सब्सीडी प्रदान की जा रही है। इसके अलावा सामान्य वर्ग के लोगो को 40% सब्सिडी प्रदान की जा रही है। 

कहाँ से खरीदे साहीवाल गाय की उन्नत नस्ल 

साहीवाल गाय भारत के उत्तर दिशा मे सबसे ज्यादा पायी जाती है। इस नस्ल की गाय का उद्गम स्थल रावी नदी के आसपास और पाकिस्तान पंजाब के मोंटगोमरी जिला माना जाता है। 

साहीवाल गाय सबसे अधिक दूध देने वाली गाय मे से एक है , ज्यादातर यह नस्ल पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जिलों मे पायी जाती है। राजस्थान के गंगानगर और फिरोजपुर जिले के फाजिलका और अबोहर कस्बे मे इस गाय की नस्ल को पाला जाता है।